कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य की क्रिया से जाना जाए, उसे कारक कहते हैं।
कारक को प्रकट करने के लिए जिन जिहनों का प्रयोग किया जाता है, उसे कारक की विभक्तियाँ या परसर्ग कहते हैं।
‘पर’ का अर्थ है- बाद। कारक चिह्न संज्ञा या सर्वनाम के बाद लगते हैं; जैसे

  1. मनोज ने सेब खाया।
  2. पेड़ से पत्ते गिर रहे हैं।
  3. शिक्षक छात्रों को पढ़ा रहे हैं।
  4. पिता जी बच्चों के लिए फल लाए।
  5. तोता डाल पर बैठा है।

इन वाक्यों में आए ने, को, से, के लिए तथा पर परसर्ग संज्ञा तथा क्रिया के संबंध को प्रकट कर रहे हैं। यदि हम वाक्यों से इन कारक चिह्नों को हटाकर पढ़े तो हमें वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा तथा क्रिया शब्दों को आपस में संबंध समझ में नहीं आएगा और वाक्यों का अर्थ स्पष्ट नहीं होगा। अतः वाक्यों का अर्थ समझने के लिए इन कारक चिह्नों का प्रयोग आवश्यक है।

कारक के भेद

कारक के निम्नलिखित आठ भेद हैं

कारक

विभक्ति चिह्न

लक्षण

1. कर्ता कारक

ने

क्रिया करने वाला

2. कर्म कारक

को

जिस पर क्रिया पड़े।

3. करण कारक

से (के द्वारा)

जिस साधन से क्रिया की जाए।

4. संप्रदान कारक

को, के लिए

जिसके लिए क्रिया हो।

5. अपादान कारक

से (पृथकता का भाव)

जहाँ अलक होने का भाव हो

6. संबंध कारक

का, की, के,/रा, री, रे

जिससे संज्ञा का अन्य पदों से संबंध ज्ञात हो

7. अधिकरण कारक

में, पर

क्रिया होने का आधार या स्थान

8. संबोधन कारक

हे ! अरे !

जिससे संबोधित किया जाए।

ऊपर लिखे आठों कारकों में से केवल छह कारक ही वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम का संबंध उस वाक्य की क्रिया बताते हैं। संबंध कारक तथा संबोधक कारक यह संबंध नहीं बताते । संबंध कारक वाक्य में प्रयुक्त दो संज्ञाओं का संबंध बताता है; जैसे–
(i) ये कोमल के खिलौने हैं।
(ii) वह अंशु का घर है।

1. कर्ता कारक – कर्ता का अर्थ है-काम करने वाला।
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं; जैसे
ओजस्व ने पाठ पढ़ा।
पिता जी ने खाना खाया।

2. कर्म कारक – संज्ञा या सर्वनाम द्वारा दी गई क्रिया का फल या प्रभाव जिस पर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। जैसे-

3. करण कारक – जिसकी सहायता से कोई कार्य हो वह संज्ञा या सर्वनाम शब्द, करण कारक कहलाता है; जैसे

4. संप्रदान कारक – ‘संप्रदान’ का शाब्दिक अर्थ है-देना। जिसके लिए कोई कार्य किया जाए या जिसे कुछ दिया जाए, वह संज्ञा या सर्वनाम पद संप्रदान कारक होता है। जैसे-

5. अपादान कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से अलग होने का भाव प्रकट हो, वहाँ अपादान कारक होता है। इसका ‘परसर्ग’ से होता है। जैसे-

6. संबंध कारक – संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो, उसे संबंध कारक कहते हैं। जैसे-

7. अधिकरण कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार या उसके होने के स्थान का या समय का बोध होता है; उसे अधिकरण कारक कहते हैं। जैसे-

8. संबोधन कारक – शब्द के जिस रूप में किसी को बुलाने या पुकारने का भाव प्रकट हो, उसे संबोधन कारक कहते हैं। संबोधन का अर्थ पुकारना। जैसे-

कर्मकारक और संप्रदान कारक में अंतर

दोनों कारकों में ‘को’ परसर्ग का प्रयोग किया है, लेकिन दोनों में अंतर है; जैसे–

  1. मैंने नेहा को पुस्तक दी (संप्रदान कारक)
  2. मैं रजत को समझाऊँगा। (कर्म कारक)

पहले वाक्य में देने का भाव है, अतः संप्रदान कारक है।
दूसरे वाक्य में ‘समझाने’ क्रिया का फल रजत पर पड़ रहा है।

करण कारक और अपादान कारक में अंतर

इन दोनों कारकों का परसर्ग से है, फिर भी दोनों में अंतर है; जैसे

  1. वह कलम से लिखती है।
  2. गंगा हिमालय से निकलती है।

पहले वाक्य में लिखने की क्रिया’ कलम से हो रही है यानी कलम लिखने की क्रिया का साधन है। अतः ‘करण कारक है। दूसरे वाक्य में पृथक होने का भाव है। अतः अधिकरण कारक है।

बहुविकल्पी प्रश्न

सही विकल्प चुनिए
1. संज्ञा या सर्वनाम को क्रिया से जोड़ने वाले चिह्न कहलाते हैं
(i) संज्ञा
(ii) सर्वनाम
(iii) क्रिया
(iv) कारक

2. कारक के भेद हैं
(i) चार
(ii) पाँच
(iii) सात
(iv) आठ

3. कारक चिह्न को कहा जाता है?
(i) रूप चिह्न
(ii) संसर्ग चिह्न
(iii) पद चिह्न
(iv) विभक्ति चिह्न

4. ‘संबोधन कारक’ के रूप में किस चिह्न का प्रयोग किया जाता है?
(i) |
(ii) !
(iii) ;
(iv) ?

5. ‘का’ के, की चिह्न है?
(i) संबंध कारक
(ii) अपादान कारक
(iii) अधिकरण कारक
(iv) संबोधन कारक

उत्तर-
1. (iv)
2. (iv)
3. (iv)
4. (ii)
5. (i)

0:00
0:00