जनसंचार माध्यम और लेखन – पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया
एक अच्छा पत्रकार कैसे बनें?
एक अच्छा पत्रकार या लेखक बनने के लिए विभिन्न जनसंचार माध्यमों में लिखने की अलग-अलग शैलियों से परिचित होना जरूरी है। अखबारों या पत्रिकाओं में समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट, लेख और टिप्पणियाँ प्रकाशित होती हैं। इन सबको लिखने की अलग-अलग पद्धतियाँ हैं, जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए। समाचार-लेखन में उलटा पिरामिड-शैली का उपयोग किया जाता है। समाचार लिखते हुए छह ककारों का ध्यान रखना जरूरी है।
फ़ीचर-लेखन में उलटा पिरामिड की बजाय फ़ीचर की शुरुआत कहीं से भी हो सकती है। जबकि विशेष रिपोर्ट के लेखन में तथ्यों की खोज और विश्लेषण पर जोर दिया जाता है। समाचार-पत्रों में विचारपरक लेखन के तहत लेख, टिप्पणियों और संपादकीय लेखन में भी विचारों और विश्लेषण पर जोर होता है।
अच्छे लेखन में ध्यान देने योग्य बातें
- छोटे-छोटे वाक्य लिखें। जटिल वाक्य की तुलना में सरल वाक्य की संरचना को वरीयता दें।
- आम बोलचाल की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल करें। गैर-जरूरी शब्दों के इस्तेमाल से बचें। शब्दों को उनके वास्तविक अर्थ समझकर ही प्रयोग करें।
- अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत जरूरी है। जाने-माने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़ें।
- लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के साथ-साथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े आकार के वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके साथ-साथ मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से लेखन में रंग भरने की कोशिश करें।
- अपने लिखे को दुबारा जरूर पढ़ें और अशुद्धयों के साथ-साथ गैर-जरूरी चीजों को हटाने में संकोच न करें। लेखन में कसावट बहुत जरूरी है।
- लिखते हुए यह ध्यान रखें कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों और तथ्यों को व्यक्त करना है, न कि दूसरे को प्रभावित करना।
- एक अच्छे लेखक को पूरी दुनिया से लेकर अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए और उन्हें इस तरह से देखना चाहिए कि वह अपने लेखन के लिए उससे विचारबिंदु निकाल सके। एक अच्छे लेखक में तथ्यों को जुटाने और किसी विषय पर बारीकी से विचार करने का धैर्य होना चाहिए।
पत्रकारीय लेखन क्या है?
अखबार पाठकों को सूचना देने, उन्हें जागरूक और शिक्षित बनाने तथा उनका मनोरंजन करने का दायित्व निभाते हैं। लोकतांत्रिक समाजों में वे एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत-निर्माता के तौर पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अपने पाठकों के लिए वे बाहरी दुनिया में खुलने वाली ऐसी खिड़की हैं, जिनके जरिये असंख्य पाठक हर रोज सुबह देश-दुनिया और अपने पास-पड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों तथा विचारों से अवगत होते हैं।
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-
1. पूर्णकालिक
2. अंशकालिक और
3. फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र।
- पूर्णकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन में कमकने वाले नाम बेनोग कर्मबारी होते हैं।
- अंशकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर एक निश्चित समयावधि के लिए कार्य करते हैं।
- फ्रीलांसर पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकारों का संबंध किसी विशेष समाचार-पत्र से नहीं होता, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग समाचार-पत्रों के लिए लिखते हैं।
साहित्यिक और पत्रकारीय लेखन में अंतर
- पत्रकारीय लेखन का संबंध तथा दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं तथा मुद्दों से होता है। यह साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि-इस मायने में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से होता है, न कि कल्पना से।
- पत्रकारीय लेखन साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों तथा जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है, जबकि साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है।
पत्रकारीय लेखन के स्मरणीय तथ्य
पत्रकारीय लेखन करने वाले विशाल जन-समुदाय के लिए लिखते हैं, जिसमें पाठकों का दायरा और ज्ञान का स्तर विस्तृत होता है। इसके पाठक मजदूर से विद्वान तक होते हैं, अत: उसकी लेखन-शैली और भाषा-
- सरल, सहज और रोचक होनी चाहिए।
- अलंकारिक और संस्कृतनिष्ठ होने की बजाय आम बोलचाल वाली होनी चाहिए।
- शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए।
- वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए।
समाचार कैसे लिखा जाता है?
पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-पहचाना रूप समाचार-लेखन है। आमतौर पर समाचार-पत्रों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं।
समाचार-लेखन की विशेष शैली
अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ़ में लिखा जाता है। उसके बाद के पैराग्राफ़ में उससे कम महत्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी जाती है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता।
उलटा पिरामिड शैली
समाचार-लेखन की एक विशेष शैली है, जिसे उलटा पिरामिड शैली (इन्वर्टेड पिरामिड टी या स्टाइल) के नाम से जाना जाता है। यह समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी या कथा-लेखन की शैली के ठीक उलटी है, जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है। इसे ‘उलटा पिरामिड शैली’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना यानी ‘क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले उलटा पिरामिड में हिस्से में नहीं होती, बल्कि इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है।
हालाँकि इस शैली का प्रयोग 19वीं सदी के मध्य से ही शुरू हो गया था लेकिन इसका विकास अमेरिका में दौरान हुआ। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ़ संदेशों के ज् यूँ महँगी, अनियमित और दुर्लभ थीं। कई बार तकनीकी कारणों से सेवा ठप्प हो किसी घटना की खबर कहानी की तरह विस्तार से लिखने की बजाय संक्षेप में पिरामिड शैली का विकास हुआ और धीरे-धीरे लेखन और संपादन की सुविधा के की मानक (स्टैंडर्ड) शैली बन गई।
समाचार – लेखन और छह ककार
किसी समाचार को लिखते हुए जिन छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है, वे हैं-
- क्या हुआ?
- किसके साथ हुआ?
- कब हुआ?
- कहाँ हुआ?
- कैसे हुआ?
- क्यों हुआ?
इस क्या, किसके (या कौन), कब, कहाँ, कैसे और क्यों को ही छह ककारों के रूप में जाना जाता है।
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या शुरुआती दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे ‘ और क्यों-का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार-क्या, कौन, कब और कहाँ-सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों-में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।
उदाहरणतया 26 जून, 2015 के ‘हिंदुस्तान’ दैनिक में प्रकाशित समाचार पर ध्यान दीजिए-
23 अगस्त को देश भर के लखों केंद्रों पर नव साक्षरों की परीक्षा होगी, जिसमें एक करोड़ से ज्यादा लोगों के बैठने की संभावना है | |
देश मैं होगी दूनिया की सबसे बड़ी परीक्षा | |
क्या – दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा किसकी – नवसाक्षरों की कब – 23 अगस्त, 2015 को कहाँ – देशभर के लाखों केंद्रों पर |
समाचार का इंट्रो-मानव संसाधन विकास मंत्रालय अगले महीने 23 अगस्त, 2014 को दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा कराने जा रहा है। इसमें एक करोड़ से ज्यादा नवसाक्षर परीक्षार्थियों के हिस्सा लेने की संभावना है। परीक्षा देश के 26 राज्यों के 410 जिलों में दो लाख सै ज्यादा केंद्रों पर होगी। |
कैसे – मानव संसाधन विकास मंत्रालय, राज्य के शिक्षा विभाग तथा मुक्त बिदूयालयी संस्थान के सहयोग से क्यों – अधिकाधिक लोगों को साक्षर बनाना |
समाचार की बाँडी-साक्षरता अभियान में पढ़ रहे लोग परीक्षा में शामिल होंगे : मंत्रालय ‘साक्षर भारत अभियान’ के तहत पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के लिए इस परीक्षा का आयोजन कर रहा है। स्कूल न जा पाने वाले 16 साल सै लेकर किसी भी आयु तक के वे लोग इसमें भाग लेंगे जो साक्षर भारत अभियान’ शिक्षा ले रहे हैं। इसे अंजाम देने में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अलावा राज्यों के शिक्षा महकमे, प्रौढ़ शिक्षा विभाग और राष्ट्रीय मुक्त विदूयालयी संस्थान के कार्मिक एवं स्वंयसेवक भी जुटेंगे। |
उदूधरपा/स्त्रोत-संवाददाता , हिंदुस्तान, नई दिल्ली। | 150 अंकों का प्रश्न-पत्र : करीब 13 भाषाओ में 150 अच्छे का प्रश्न-पत्र होता हे। इसमें लिखने, अक्षर या शब्द पहचानने और गणित के छोटे-छोटे सवाल होते हैं। 60 फीसदी से ज्यादा अंक लाने वालों को ए ग्रेड, 40 फ्रीसदी रनै ज्यादा अंक लाने वालों को बी ग्रेड दिया जाता है। सी ग्रेड वाले फेल माने जाते हैं, उन्हें दुबारा परीक्षा देनी होती है।
परीक्षार्थियों में होंगी 70 फीसदी महिलाएँ: मत्रालय के अनुसार यह कार्यक्रम उन जिलों में चल रहा है, जहाँ महिलाओँ की साक्षरता दर 50 फीसदी से कम है, इसलिए इसमें ‘ज्यादातर महिलाएं होती हैं। यह कार्यक्रम 2010 से शुरू हुआ था और तब से पाँच करोड़ लोग साक्षर हो चुके हैं। |
उपर्युक्त समाचार के पहले पैराग्राफ़ यानी मुखड़े (इंट्रो) में चार ककारों-क्या, कौन, कब और कहाँ-के बाबत जानकारी दी गई है जबकि उसके बाद के तीन पैराग्राफ़ में दो अन्य ककारों-कैसे और क्यों-के माध्यम से परीक्षा के आयोजन के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। अधिकांश समाचार इसी शैली में लिखे जाते हैं। लेकिन कभी-कभी अपने महत्व के कारण ‘कैसे” या ‘क्यों’ भी समाचार के मुखड़े में आ सकते हैं। एक और बात याद रखने की है कि समाचार में सूचना के स्रोत यानी जिससे जानकारी मिली है, उसको भी अवश्य उद्धृत करना चाहिए।
समाचार-लेखन के कुछ अन्य उदाहरण
आठ मिनट में आठ कारों की बैटरी चोरी
नई दिल्ली, वरिष्ठ सवाददाता।
लक्ष्मी नगर में चोरों ने सिर्फ़ आठ मिनट में आठ कारों से बैटरियाँ चोरी कर लीं। खास बात यह है कि इन चोरों ने सिर्फ़ मारुति की कारों को ही निशाना बनाया। मंगलवार सुबह चार बजे हुई घटना गली में लगे सीसीटीवी में कैद हुई है। पीड़ित लोगों ने शकरपुर थाने में चोरी का मामला दर्ज कराया है।
इलाके में रहने वाले शैलेंद्र नारंग ने बताया कि चोर उनकी मारुति वैन से बैटरी चोरी कर ले गए। उन्होंने बताया कि उनके मुताबिक उनकी गली से आठ कारों की बैटरिया चोरी की गई। यहाँ रहने वाले राधेश्याम ने बताया कि एक साल के भीतर यह तीसरी घटना है जब उनकी कार से बैटरी निकाल ली गई। लोगों ने बताया कि ये लोग सिर्फ़ मारुति की गाड़ियों को निशाना बनाते हैं। यह पूरी घटना गुरुरामदास नगर में रहने वाले बृजेश कौशिक के घर के बाहर लगे सीसीटीवी में कैद हो गई है।
सीसीटीवी फुटेज देखने पर पता चला कि सुबह चार बजे दो संदिग्ध व्यक्ति सफेद रंग की एक्टिवा से पूरी गली का जायजा लेते हैं और फिर वापस चले जाते हैं। पाँच मिनट बाद वे वापस आते हैं और राजकिशन जैन की गाड़ी को निशाना हैं। सफेद कुर्ता-पाजामा और सफेद जालीदार टोपी पहने तकरीबन 27-28 वर्षीय युवक फुर्ती से कार का बोनट खोल देता है और जेब से औजार निकालकर बैटरी चुरा लेता है। ऐसा करने में उसे करीब एक मिनट का समय लगता है।
गैस सिलेंडर में रिफ़िलिंग से धमाका, छत उड़ी
नोएडा, प्रमुख सवाददाता।
चौड़ा गाँव में बुधवार को छोटे सिलेंडर में गैस रिफ़िलिंग के दौरान आग लग गई। आग तीन बड़े सिलेंडरों में भी जा लगी, जिससे जोरदार धमाका हुआ और दुकान की छत उड़ गई।
इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ है, लेकिन पड़ोस की बिजली की एक दुकान का सारा सामान जल गया है। दुकानदार ने एफ़आईआर दर्ज कराने के साथ ही प्रशासन ने भी रिफ़िलिंग करने वाले के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कराई है। सोनू भारद्वाज की गैस रिफ़िलिंग की दुकान में बुधवार सुबह 11 बजे पाँच किलो के सिलेंडर में रिफ़िलिंग के दौरान बर्नर की जाँच करते हुए आग लग गई। सोनू आग लगते ही मौके से भाग गया। देखते-ही-देखते चार सिलेंडरों में धमाके हुए और दुकान की छत उड़ गई। सूचना पर पुलिस और दमकल की गाड़ियाँ मौके पर पहुँचीं। दमकल की चार गाड़ियों ने सोनू की दुकान तथा देवेंद्र की बिजली के सामान की दुकान में लगी आग को बुझाया।
फीचर क्या है?
समकालीन घटना या किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जानकारी के सचित्र तथा मोहक विवरण को फ़ीचर कहा जाता है। इसमें तथ्यों को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। इसके संवादों में गहराई होती है। यह सुव्यवस्थित, सृजनात्मक व अद्धि न है जिक उद्देश्य पाठकों को स्चना ने तथा उह शतकने के साथ मुष्यरूप सेउक मोजना करना होता है।
फ़ीचर में विस्तार की अपेक्षा होती है। इसकी अपनी एक अलग शैली होती है। एक विषय पर लिखा गया फ़ीचर प्रस्तुति विविधता के कारण अलग अंदाज प्रस्तुत करता है। इसमें भूत, वर्तमान तथा भविष्य का समावेश हो सकता है। इसमें तथ्य, कथन व कल्पना का उपयोग किया जा सकता है। फ़ीचर में आँकड़े, फोटो, कार्टून, चार्ट, नक्शे आदि का उपयोग उसे रोचक बना देता है।
फीचर व समाचार में अंतर.
- फ़ीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएँ जाहिर करने का अवसर होता है। जबकि समाचार-लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है।
- फ़ीचर-लेखन में उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं होता। इसकी शैली कथात्मक होती है।
- फ़ीचर-लेखन की भाषा सरल, रूपात्मक व आकर्षक होती है, परंतु समाचार की भाषा में सपाटबयानी होती है।
- फ़ीचर में शब्दों की अधिकतम सीमा नहीं होती। ये आमतौर पर 200 शब्दों से लेकर 250 शब्दों तक के होते हैं, जबकि समाचारों पर शब्द-सीमा लागू होती है।
- फ़ीचर का विषय कुछ भी हो सकता है, समाचार का नहीं।
फ़ीचर के प्रकार
फ़ीचर के प्रकार निम्नलिखित हैं
- समाचार फीचर
- घटनापरक फीचर
- व्यक्तिपरक फीचर
- लोकाभिरुचि फ़ीचर
- सांस्कृतिक फ़ीचर
- साहित्यिक प्रफीचर
- विश्लेषण प्रफीचर
- विज्ञान फ़ीचर।
फीचर-लेखन संबंधी मुख्य बातें
- फ़ीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों की मौजूदगी जरूरी होती है।
- फ़ीचर के कथ्य को पात्रों के माध्यम से बताना चाहिए।
- कहानी को बताने का अंदाज ऐसा हो कि पाठक यह महसूस करें कि वे घटनाओं को खुद देख और सुन रहे हैं।
- फ़ीचर मनोरंजक व सूचनात्मक होना चाहिए।
- फ़ीचर शोध रिपोर्ट नहीं है।
- इसे किसी बैठक या सभा के कार्यवाही विवरण की तरह नहीं लिखा जाना चाहिए।
- फ़ीचर का कोई-न-कोई उद्देश्य होना चाहिए। उस उद्देश्य के इर्द-गिर्द सभी प्रासंगिक सूचनाएँ तथ्य और विचार गुंथे होने चाहिए।
- फ़ीचर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है।
- फ़ीचर-लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फ़ॉर्मूला नहीं होता। इसे कहीं से भी अर्थात प्रारंभ, मध्य या अंत से शुरू किया जा सकता है।
- फ़ीचर का हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज तरीके से जुड़ा होना चाहिए तथा उनमें प्रारंभ से अंत तक प्रवाह व गति रहनी चाहिए।
- पैराग्राफ छोटे होने चाहिए तथा एक पैराग्राफ में एक पहलू पर ही फोकस करना चाहिए।
उदाहरण
वुदहरणस्वरूप कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर फीचर दिए जा रहे हैं, इन्हें पढ़कर समझिए।
1. आदत, जो छूटती नहीं ….
बार-बार एक ही शब्द दोहराने की आदत आपको मुश्किल में भी डाल सकती है। खुद पर विश्वास और दृढ़ निश्चय हो तो आप इससे छुटकारा पाने में सफल हो सकते हैं। तकिया कलाम यानी सखुन तकिया। सोते समय सिर को आराम देने के लिए जैसे तकिया का सहारा लिया जाता है, उसी प्रकार अपने कथन या उक्ति को जोर देने के लिए ‘आपकी कृपा …….आपकी कृपा’, ‘यानी कि ………..यानी कि’, ‘है ना ’ है ना’ शब्द विशेष का सहारा लिया जाता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तकिया कलाम हकलाने या तुतलाने जैसा ही एक रोग है। कुछ लोग निश्चित अवस्था तक सुधर जाते हैं और जो नहीं सुधरते, वे उसके रोगी हो जाते हैं। लंदन के मनोवैज्ञानिक डॉ० बुच मानते हैं कि तकिया कलाम एक प्रकार का इ०सी०ए० है, यानी एक्स्ट्रा केरिक्यूलर एक्शन है। इस इस कुक करता होता हैऔ वाक्टुता बात है तिकया कहामक बेल प्रयोग सायक बाद व बारता करना भी है।
दृढ़ निश्चय से निजात
इस आदत को खुद से दूर करने के लिए आप में दृढ़ निश्चय का भाव होना बेहद जरूरी है। सबसे पहले अपने संवाद को तौलें कि आप कब-कब और किन परिस्थितियों में तकिया कलाम का प्रयोग करते हैं। स्थितियाँ चिहनित कर लेने के बाद आपको तकिया कलाम से बचना है। साथ ही ‘कम बोलो-सार्थक बोली’ के नियम का अनुसरण भी करना होगा। धीरे-धीरे जब आम बोलचाल में आप तकिया कलाम के इस्तेमाल में कोताही बरतेंगे, तो खुद-ब-खुद आपकी आदत बदल जाएगी। लेकिन सकारात्मक परिणामों के लिए आपका दृढ़-निश्चयी होना बेहद जरूरी है। कोशिश करें, यह इतना मुश्किल भी नहीं, जितना आप समझ रहे हैं।
तकिया कलाम के इस्तेमाल से आपको कई बार विपरीत और हास्यास्पद परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ सकता है, इसलिए बेहतर होगा कि दूसरों के टोकने या खुद मजाक बनने से पहले आप खुद अपने स्वभाव को बदल लें।
2. बिना प्यास के भी पिएँ पानी
सर्दी के मौसम में वैसे तो सब कुछ हजम हो जाता है, इसलिए जो मर्जी खाएँ। इसके अलावा सर्दी के मौसम में पानी पीना शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है। गर्मी के दिनों में तो बार-बार प्यास लगने पर व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में पानी पी लेता है, लेकिन सर्दी के मौसम में वह इस चीज को नजरअंदाज कर देता है। ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि मौसम चाहे सर्दी का हो या फिर गर्मी का, शरीर को पानी की जरूरत होती है। जब तक शरीर को पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा, तब तक शरीर का विकास भी सही तरीके से नहीं हो पाएगा।
माना कि सर्दी में प्यास नहीं लगती, लेकिन हमें बिना प्यास के भी पानी पीना चाहिए। पानी पीने से एक तो शरीर की अंदर से सफ़ाई होती रहती है। इसके अलावा पथरी की शिकायत भी अधिक पानी पीने से दूर हो जाती है। पानी पीने से शरीर की पाचन-शक्ति भी सही बनी रहती है तथा पाचन-रसों का स्राव भी जरूरत के अनुसार होता रहता है। बिना पानी के शरीर अंदर से सूखा हो जाता है, जिससे शारीरिक क्रियाओं में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है। विज्ञान में पानी को हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का मिश्रण माना गया है और अॉक्सीजन हमारे जीवन के लिए सबसे जरूरी गैस है। इसी वजह से पानी को भी शरीर के लिए जरूरी माना गया है, चाहे सर्दी हो या फिर गर्मी।
3. अच्छे काम पर बच्चों को करें एप्रिशिएट
हर कोई गलतियों से सबक लेता है। जब गलती ही अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करती है तो बच्चों को भी गलती करने पर दुबारा अच्छे कार्य के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। अच्छा काम करने पर बच्चों को यानी प्रोत्साहित करना जरूरी है, जब हम बच्चों को प्रोत्साहित करेंगे तो वे आगे भी बेहतर करने को उत्सुक होंगे।
लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ० तनुज के मुताबिक आम तौर पर दो वर्ष के बच्चे का 90 प्रतिशत दिमाग सीखने-समझने के लिए तैयार हो जाता है और पाँच वर्ष तक वह पूर्ण रूप से सीखने, बोलने लायक हो जाता है। यही वह उम्र होती है, जब बच्चा तेजी से सीखता है। ऐसे में माहौल भी इस तरह का हो कि बच्चा अच्छा सीखे। गलती करने पर यदि प्यार से समझाया जाए तो वह उसे समझेगा। उसे गलत करने पर टोकना जरूरी हो जाता है। वरना वह गलती को दोहराता रहेगा। बच्चों को बेहतर करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
डॉ० तनुज कहते हैं कि बच्चों को यह नहीं पता होता कि वे जो कर रहे हैं, वह सही है या गलत। उसे बताया जाए कि जो उसने किया है, वह गलत है, क्योंकि जब तक बच्चों को बताया नहीं जाएगा, उन्हें गलती के बारे में पता नहीं चलेगा। यदि एक बार उसकी गलती के विषय में उसे बताते हैं तो वह दुबारा वही गलती नहीं करेगा। बच्चों के साथ हमारा व्यवहार वैसा ही हो, जैसा हम खुद के लिए अपेक्षा करते हैं। बच्चों को प्यार-दुलार की ज्यादा जरूरत होती है।
4. बच्चों में आत्मविश्वास
सफलता के लिए आत्मविश्वास बहुत जरूरी है। आत्मविश्वास से भरपूर बच्चे किसी भी मुश्किल का सामना बड़ी आसानी से कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है। ऐसे बच्चे अपने कामों के लिए अपने मम्मी-पापा पर ही निर्भर रहते हैं। हर कदम बढ़ाने के लिए उन्हें मम्मी-पापा के सहारे की जरूरत होती है। बड़े होने पर ऐसे बच्चों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर शुरुआत से ही ध्यान दिया जाए तो बच्चों को आत्मविश्वासी बनाया जा सकता है।
छोटे-छोटे फैसले खुद करने दें
आत्मविश्वास कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे किसी परीक्षा में पास करके हासिल कर लिया जाए। आत्मविश्वास खुद फैसले लेने से आता है। अगर हम बच्चों को खुद कोई फैसला लेने ही नहीं देंगे तो उनमें आत्मविश्वास कभी नहीं आ पाएगा। हमें चाहिए कि बच्चों को छोटे-छोटे फैसले खुद लेने दें, लेकिन साथ ही उन पर नजर भी रखें। जहाँ उनसे गलती हो, वहाँ उन्हें सही मार्ग दिखाएँ। ऐसा करने से बच्चों में अपने फैसले खुद लेने की क्षमता तो आएगी ही, साथ ही उनमें आत्मविश्वास भी पैदा होगा।
विकसित करें आत्मविश्वास की भावना
बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। अगर शुरुआत से ही उनमें आत्मविश्वास की भावना विकसित की जाए तो वे हर काम को बड़ी आसानी से कर सकते हैं। आत्मविश्वास से भरपूर बच्चों का बौद्धक और शारीरिक विकास भी अच्छा होता है।
दें खुलकर जीने की आजादी
बच्चों को खुलकर जीने दें। जब कोई पूरी स्वतंत्रता और अपनी मर्जी से जीता है और हालातों का सामना करता है तो उसमें आत्मविश्वास खुद-ब-खुद आ जाता है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि बच्चों को मनमुताबिक कुछ भी करने दें। उनकी हरकतों पर पूरी नजर रखें और गलती करने पर उन्हें गलती का अहसास भी कराएँ।
5. बस्ते का बढ़ता बोझ
आज जिस किसी भी गली, मोहल्ले या चौराहे पर सुबह के समय देखिए, हर जगह छोटे-छोटे बच्चों के कंधों पर भारी बस्ते लदे हुए दिखाई देते हैं। कुछ बच्चों से बड़ा तो उनका बस्ता ही होता है। यह दृश्य देखकर आज की शिक्षा-व्यवस्था की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिहन लग जाता है। क्या शिक्षा-नीति के सूत्रधार बच्चों को किताबों के बोझ से लाद देना चाहते हैं।
वस्तुत: इस मामले पर खोजबीन की जाए तो इसके लिए समाज अधिक जिम्मेदार है। सरकारी स्कूलों में छोटी कक्षाओं में बहुत कम पुस्तकें होती हैं, परंतु निजी स्कूलों में बच्चों के सर्वागीण विकास के नाम पर बच्चों व उनके माता-पिता का शोषण किया जाता है। स्कूल गैर-जरूरी विषयों की पुस्तकें भी लगा देते हैं, ताकि वे अभिभावकों को यह बता सकें कि वे बच्चे को हर विषय में पारंगत कर रहे हैं, जिससे भविष्य में वह हर क्षेत्र में कमाल दिखाने में समर्थ होगा।
अभिभावक भी सुपरिणाम की चाह में यह बोझ झेल लेते हैं, परंतु इसके कारण बच्चे का बचपन समाप्त हो जाता है। वह हर समय पुस्तकों के ढेर में दबा रहता है। खेलने का समय उसे नहीं दिया जाता। अधिक बोझ के कारण उसका शारीरिक विकास भी कम होता है। छोटे-छोटे बच्चों के नाजुक कंधों पर लदे भारी-भारी बस्ते उनकी बेबसी को ही प्रकट करते हैं। इस अनचाहे बोझ का वजन विद्यार्थियों पर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
6. महानगर की ओर पलायन की समस्या
महानगर सपनों की तरह है। मनुष्य को ऐसा लगता है मानो स्वर्ग वहीं है। हर व्यक्ति ऐसे स्वर्ग की ओर खिचा चला आता है। चमक-दमक, आकाश छूती इमारतें, मनोरंजन आदि सब कुछ पा लेने की चाह में गाँव का सुदामा भी लालायित होकर चल पड़ता है, महानगर की ओर। आज महानगरों में भीड़ बढ़ रही है। हर ट्रेन, बस में आप यह देख सकते हैं। गाँव यहाँ तक कि कस्बे का व्यक्ति भी अपनी दरिद्रता समाप्त करने के ख्वाब लिए महानगरों की तरफ चल पड़ता है।
शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार के अधिकांश अवसर महानगरों में ही मिलते हैं। इस कारण गाँव व कस्बे से शिक्षित व्यक्ति शहरों की तरफ भाग रहा है। इस भाग-दौड़ में वह अपनों का साथ भी छोड़ने को तैयार हो जाता है। दूसरे, अच्छी चिकित्सा सुविधा, परिवहन के साधन, मनोरंजन के अनेक तरीके, बिजली-पानी की कमी न होना आदि अनेक आकर्षण महानगर की ओर पलायन को बढ़ा रहे हैं, जिससे महानगरों की व्यवस्था चरमराने लगी है।
यहाँ के साधन भी भीड़ के सामने बौने हो जाते हैं। महानगरों का जीवन एक ओर आकर्षित करता है तो दूसरी ओर यह अभिशाप से कम नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह कस्बों व गाँवों के विकास पर भी ध्यान दे। इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, रोजगार आदि की सुविधा होने पर महानगरों की ओर पलायन रुक सकता है।
7. फुटपाथ पर सोते लोग
महानगरों में सुबह सैर पर निकलिए, एक तरफ आप स्वास्थ्य-लाभ करेंगे तो दूसरी तरफ आपको फुटपाथ पर सोते हुए लोग नजर आएँगे। महानगर को विकास का आधार-स्तंभ माना जाता है, लेकिन वहीं पर मानव-मानव के बीच इतना अंतर है। यहाँ पर दो तरह के लोग हैं-एक उच्च वर्ग, जिसके पास उद्योग, सत्ता, धन है, जिससे वह हर सुख भोगता है। उसके पास बड़े-बड़े भवन हैं और यह वर्ग महानगर के जीवन-चक्र पर प्रभावी है।
दूसरा वर्ग वह है जो अमीर बनने की चाह में गाँव छोड़कर आता है तथा यहाँ आकर फुटपाथ पर सोने के लिए मजबूर हो जाता है। इसका कारण उसकी सीमित आर्थिक क्षमता है। महँगाई, गरीबी आदि के कारण इन लोगों को भोजन भी मुश्किल से नसीब होता है। घर इनके लिए एक सपना होता है। इस सपने को पूरा करने के चक्कर में यह वर्ग अकसर छला जाता है। सरकारी नीतियाँ भी इस विषमता के लिए दोषी हैं।
सरकार की तमाम योजनाएँ भ्रष्टाचार के मुँह में चली जाती हैं और गरीब सुविधाओं की बाट जोहता रहता है। वह गरीबी में पैदा होता है, गरीबी में पलता-बढ़ता है और गरीबी में ही मर जाता है। वह जीते-जी रूखी-सूखी खाकर पेट की आग जैसे-तैसे बुझा लेता है और फटे-पुराने कपड़ों से तन ढँक लेता है, पर उसके सिर पर छत नसीब नहीं हो पाती और वह फुटपाथ, पार्क या अन्य खुली जगहों पर सोने को विवश रहता है।
8. ‘आतंकवाद की समस्या’ या ‘आतंकवाद का धिनौना चेहरा’
सुबह अखबार खोलिए-कश्मीर में चार मरे, मुंबई में बम फटा-दो मरे, ट्रेन में विस्फोट। इन खबरों से भारत का आदमी सुबह-सुबह साक्षात्कार करता है। उसे लगता है कि देश में कहीं शांति नहीं है। न चाहते हुए भी वह आतंक के फ़ोबिया से ग्रस्त हो जाता है। आतंकवाद एक विश्वव्यापी समस्या बन गया है। यह क्रूरतापूर्ण नरसंहार का एक रूप है। आतंकवाद मुख्यत: 20वीं सदी की देन है तथा इसके उदय के अनेक कारण हैं।
कहीं यह एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के शोषण का परिणाम है तो कहीं यह विदेशी राष्ट्रों की करतूत है। कुछ विकसित देश धर्म के नाम पर अविकसित देशों में लड़ाई करवाते हैं। आतंकवाद की जड़ में अशिक्षा, बेरोजगारी, पिछड़ापन है। सरकार का ध्यान ऐसे क्षेत्रों की तरफ तभी जाता है, जब वहाँ हिंसक घटनाएँ शुरू हो जाती हैं। देश के कुछ राजनीतिक दल भी अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए आतंक के नाम पर दंगे करवाते रहते हैं। इस समस्या को सामूहिक प्रयासों से ही समाप्त किया जा सकता है।
आतंकवादी भय का माहौल पैदा करके अपने उद्देश्यों में सफल होते हैं। जनता को चाहिए कि वह ऐसे तत्वों का डटकर मुकाबला करे। आतंक से जुड़े व्यक्तियों के खिलाफ़ सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार को भी आतंक-प्रभावित क्षेत्रों में विकास-योजनाएँ शुरू करनी चाहिए ताकि इन क्षेत्रों के युवक गरीबी के कारण गलत हाथों का खिलौना न बनें।
9. चुनावी वायदे
“अगर हम जीते तो बेरोजगारी भत्ता दो हजार रुपये होगा।”
“किसानों को बिजली मुफ़्त, पानी मुफ़्त।”
“बूढ़ों की पेंशन डबल।”
जब भी चुनाव आते हैं तो ऐसे नारों से दीवारें रैंग दी जाती हैं। अखबार हो, टी०वी० हो, रेडियो हो या अन्य कोई साधन, हर जगह मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए चुनावी वायदे किए जाते हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ हर पाँच वर्ष बाद चुनाव होते हैं तथा सरकार चुनने का कार्य संपन्न किया जाता है। चुनावी बिगुल बजते ही हर राजनीतिक दल अपनी नीतियों की घोषणा करता है। वह जनता को अनेक लोकलुभावने नारे देता है।
जगह-जगह रैलियाँ की जाती हैं। भाड़े की भीड़ से जनता को दिखाया जाता है कि उनके साथ जनसमर्थन बहुत ज्यादा है। उन्हें अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं का पता होता है। चुनाव-प्रचार के दौरान वे इन्हीं समस्याओं को मुद्दा बनाते हैं तथा सत्ता में आने के बाद इन्हें सुलझाने का वायदा करते हैं। चुनाव होने के बाद नेताओं को न जनता की याद आती है और न ही अपने वायदे की। फिर वे अपने कल्याण में जुट जाते हैं।
वस्तुत: चुनावी वायदे कागज के फूलों के समान हैं जो कभी खुशबू नहीं देते। ये केवल चुनाव जीतने के लिए किए जाते हैं। इनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं होता। अत: जनता को नेताओं के वायदों पर यकीन नहीं करना चाहिए और विवेक तथा देशहित के मद्देनजर अपने मत का प्रयोग करना चाहिए।
10. वैलेंटाइन डे : शहरी युवाओं का त्योहार
फरवरी माह की शुरुआत में ही मीडिया एक नए त्योहार को मनाने की तैयारी शुरू कर देता है। कंपनियाँ अपने उत्पादों में इस त्योहार के नाम पर छूट देनी शुरू कर देती हैं। यह सब प्रेम के नाम पर होता है। जी हाँ, यह त्योहार है-वैलेंटाइन डे। यह 14 फरवरी को मनाया जाता है। वैसे तो भारत में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं; जैसे-होली, दीवाली, दशहरा, वैशाखी आदि।
इन सबके पीछे पौराणिक, धार्मिक व आर्थिक आधार होते हैं, परंतु वैलेंटाइन डे पूर्णत: विदेशी है। इसका भारतीय मिट्टी से कोई लेना-देना नहीं है। मीडिया के प्रचार-प्रसार से यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि यह भारत के गाँव-गाँव में मनाया जाने वाला त्योहार है। वस्तुत: यह शहरी त्योहार है। यहाँ के युवा इस दिन अपने प्यार का इजहार करते हैं। इस दिन युवा लड़के-लड़कियाँ अपने दोस्तों तथा प्रेमियों को कुछ-न-कुछ उपहार देकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं। इस दिन के लिए बाजारों में तरह-तरह के उपहार व ग्रीटिंग कार्डस की भरमार देखी जा सकती है।
कुछ लोग इसे ‘फ्रेंडशिप डे’ भी कहते हैं। इस दिन युवा अपने मन की इच्छाएँ व्यक्त करने के लिए आतुर होता है। वैसे इस दिन अनेक आपराधिक घटनाएँ भी घटती हैं। अपने प्रेमी से उचित जवाब न मिलने पर तेजाब डालने या आत्महत्या करने जैसी खबरें अकसर सुनाई देती हैं। वैसे समाज में उन्हीं त्योहारों को मनाना चाहिए जो देश की मिट्टी तथा संस्कृति से जुड़े हों।
11. जंक फूड की समस्या
भोजन का स्वाद और स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। स्वादिष्ट भोजन देखते ही हमारी लार टपकने लगती है और हम अपने आपको रोक नहीं पाते। कई बार तो हम बिना भूख के भी खाने के लिए उतावले ही बैठते हैं। ऐसी स्थिति आने पर यह समझना चाहिए कि हम जाने-अनजाने व्यसन या भोजन के लालच का शिकार हो रहे हैं। आज इस उपभोक्तावादी युग में चारों ओर वातावरण ऐसा बना दिया गया है कि हम ललचाए बिना रह ही नहीं सकते। दुकानों पर टैंगे स्वादिष्ट चटपटे और कुरकुरे व्यंजन तथा खाद्य वस्तुएँ देखकर हमारे मुँह में पानी आना स्वाभाविक ही है।
हमारी भूख-प्यास को बढ़ाने में अभिनेत्रियों का योगदान भी कम नहीं है, जब वे यह कहती हुई ‘टेढ़ा है पर मेरा है’-कुरकुरे हमारी ओर बढ़ाती प्रतीत होती हैं; इसके अलावा सेवन अप, लिम्का, कोकाकोला आदि विज्ञापन हमें घर के भोजन से दूर करके अपनी ओर आकर्षित करते हैं; पिज्जा, बर्गर, नूडल, चाउमीन आदि के विज्ञापन हमारी भूख बढ़ा देते हैं तो हम उन्हें खरीदने के लिए बाध्य हो जाते हैं। अब तो विज्ञापन में बच्चे भी कहते दिखते हैं-‘खाने से डरता है क्या?”
यह सुनकर जंक फूड के प्रति हमारी झिझक दूर होती है और हम उनके नफ़े-नुकसान पर विचार किए बिना उनको अपने नाश्ते और भोजन के अलावा समय-असमय खाना शुरू कर देते हैं। जंक फूड के प्रति बच्चों और युवाओं की दीवानगी देखने लायक होती है। आप कहीं भी चले जाइए, चप्पे-चप्पे पर बर्गर, हॉट डॉग, सैंडविच, पैटीज, नूडल्स, कोल्ड ड्रिक, समोसे, चाउमीन, ढोकले आदि मिल जाएँगे।
इनमें छिपी उच्च कैलोरी की मात्रा बच्चों में मोटापा और आलस्य बढ़ाते हैं। डॉक्टर इन्हें स्वास्थ्य के लिए विष बताते हैं। योगगुरु रामदेव जैसे लोग इनका विरोध करते हैं, पर लोगों की समझ में यह बात आए तब न। मोटापा, मधुमेह, रक्तचाप हृदयाघात जैसी बीमारियों से यदि बचना है तो जंक फूड से तौबा करना ही पड़ेगा।
12. घरों में बढ़ती चोरी, हत्या आदि की घटनाओं पर फीचर
निरंतर बढ़ती जनसंख्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। इनमें से एक है-समाज में अवांछित घटनाओं में वृद्ध। खाली-ठाली बैठे लोग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए अनैतिक कार्यों में संलिप्त हो जाते हैं। इसी का परिणाम है-गाँव, शहर और महानगरों में चोरी, हत्या की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्ध।
महानगरों में ये घटनाएँ होनी आम बात हो गई हैं। शहरों में लोगों का एकल परिवार और वृद्धावस्था में अपनों से अलग रहने को विवश वृद्ध दंपति प्राय: इन घटनाओं का शिकार बनते रहते हैं। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के कारण कानून-व्यवस्था उतनी चुस्त-दुरुस्त नहीं रह पाती, जितनी होनी चाहिए। इसका अनुचित फ़ायदा चोर-उचक्के, डकैत आदि उठाते हैं और चोरी-डकैती की घटनाओं को अंजाम देते हैं। इन घटनाओं का विरोध करने वालों को ये मार-पीटकर घायल कर देते हैं और हत्या तक कर देते हैं। इनके शिकार शहर के बड़े-बड़े व्यापारी और धनाढ्य लोग बनते हैं।
उनके बच्चों का अपहरण करके फिरौती राशि की माँग करना तथा उसकी पूर्ति न होने पर हत्या कर देना आम बात है। यद्यपि यहाँ पुलिस की तैनाती गाँवों की अपेक्षा अधिक होती है, पर पुलिस की निष्क्रियता देखकर लगता है कि अपराधियों और पुलिस में कोई साठ-गाँठ हो क्योंकि डकैत और हत्यारे अपना काम करके आसानी से चले जाते हैं। यद्यपि कुछ घटनाओं में पुलिस सफलता प्राप्त करती है, पर उनका प्रतिशत ‘न’ के बराबर है। इसके लिए सख्त कानून बनाकर उन्हें दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ लागू करवाकर पूरी निष्ठा और ईमानदारी से पालन करवाया जाना चाहिए।
अन्य हल प्रश्न
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
पत्रकारिता के विभिन्न पहलू कौन-कौन-से हैं?
उत्तर –
पत्रकारिता के विभिन्न पहलू हैं-
- समाचारों का संकलन,
- उनका संपादन कर छपने योग्य बनाना,
- उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में छापकर पाठकों तक पहुँचाना आदि।
प्रश्न 2:
पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर –
समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में छपने के लिए लिखित रूप में सामग्री देने, सूचनाएँ और समाचार एकत्र करने वाले व्यक्ति को पत्रकार कहते हैं।
प्रश्न 3:
संवाददाता के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
संवाददाता का प्रमुख कार्य विभिन्न स्थानों से खबरें लाना है।
प्रश्न 4:
संपादक के कार्य लिखिए।
उत्तर –
संपादक संवाददाताओं तथा रिपोर्टरों से प्राप्त समाचार-सामग्री की अशुद्धयाँ दूर करते हैं तथा उसे त्रुटिहीन बनाकर प्रस्तुति के योग्य बनाते हैं। वे रिपोर्ट की महत्वपूर्ण बातों को पहले तथा कम महत्व की बातों को अंत में छापते हैं तथा समाचार-पत्र की नीति, आचार-संहिता और जन-कल्याण का विशेष ध्यान रखते हैं।
प्रश्न 5:
किन गुणों के होने से कोई घटना समाचार बन जाती है?
उत्तर –
नवीनता, लोगों की रुचि, प्रभाविकता, निकटता आदि तत्वों के होने से घटना समाचार बन जाती है।
प्रश्न 6:
पत्रकारिता किस सिदधांत पर कार्य करती है?
उत्तर –
पत्रकारिता मनुष्य की सहज जिज्ञासा शांत करने के सिद्धांत पर कार्य करती है।
प्रश्न 7:
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर –
पत्रकारिता के कई प्रमुख प्रकार हैं। उनमें से खोजपरक पत्रकारिता, वॉचडॉग पत्रकारिता और एडवोकेसी पत्रकारिता प्रमुख हैं।
प्रश्न 8:
समाचार किसे कहते हैं?
उत्तर –
समाचार किसी भी ऐसी घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट होता है, जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिकाधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।
प्रश्न 9:
संपादन का अर्थ बताइए।
उत्तर –
संपादन का अर्थ है-किसी सामग्री से उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी एवं तथ्यात्मक अशुद्धयों को दूर करते हुए पठनीय बनाना।
प्रश्न 10:
पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए कौन-कौन-से सिदभांत अपनाए जाते हैं?
उत्तर –
पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांत अपनाए जाते हैं
- तथ्यों की शुद्धता,
- वस्तु परखता,
- निष्पक्षता,
- संतुलन, और
- स्रोत।
प्रश्न 11:
किन्हीं दो राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर –
- नवभारत टाइम्स (हिंदी)
- हिंदुस्तान (हिंदी)
प्रश्न 12:
समाचार-पत्र संपूर्ण कब बनता है?
उत्तर –
जब समाचार-पत्र में समाचारों के अलावा विचार, संपादकीय, टिप्पणी, फोटो और कार्टून होते हैं तब समाचार-पत्र पूर्ण बनता है।
प्रश्न 13:
खोजपरक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर –
सार्वजानिक महत्व के भ्रष्टाचार और अनियमितता को लोगों के सामने लाने के लिए खोजपरक पत्रकारिता की मदद ली जाती है। इसके अंतर्गत छिपाई गई सूचनाओं की गहराई से जाँच की जाती है। इसके प्रमाण एकत्र करके इसे प्रकाशित भी किया जाता है।
प्रश्न 14:
वॉचडॉग पत्रकारिता क्या है?
उत्तर –
जो पत्रकारिता सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है और कोई गड़बड़ी होते ही उसका परदाफ़ाश करती है, उसे वॉचडॉग पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 15:
एडवोकेसी पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर –
जो पत्रकारिता किसी विचारधारा या विशेष उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर उसके पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और जोर-शोर से अभियान चलाती है, उसे एडवोकेसी पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 16:
वैकल्पिक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर –
जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करते हैं, उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 17:
पेज थ्री पत्रकारिता क्या है?
उत्तर –
पेज श्री पत्रकारिता का आशय उस पत्रकारिता से है, जिसमें फ़ैशन, अमीरों की बड़ी-बड़ी पार्टियों, महफ़िलों तथा लोकप्रिय लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। ऐसे समाचार सामान्यत: समाचार-पत्र के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होते हैं।
प्रश्न 18:
पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं?
उत्तर –
पत्रकार अखबार या अन्य समाचार माध्यमों के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, इसे पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
प्रश्न 19:
स्वतंत्र या फ्री-लांसर पत्रकार किसे कहा जाता है?
उत्तर –
फ्री-लांसर पत्रकार को स्वतंत्र पत्रकार भी कहा जाता है। ये किसी विशेष समाचार-पत्र से संबद्ध नहीं होते। ये किसी भी समाचार-पत्र के लिए लेखन करके पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 20:
पत्रकारीय लेखन संबंधी भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर –
पत्रकारीय भाषा सीधी, सरल, साफ़-सुथरी परंतु प्रभावपूर्ण होनी चाहिए। वाक्य छोटे, सरल और सहज होने चाहिए। भाषा में कठिन और दुरूह शब्दावली से बचना चाहिए, ताकि भाषा बोझिल न हो।
प्रश्न 21:
समाचार-लेखन की कितनी शैलियाँ होती हैं?
उत्तर –
समाचार-लेखन की दो प्रमुख शैलियाँ होती हैं-
- सीधा पिरामिड शैली,
- उलटा पिरामिड शैली।
प्रश्न 22:
सीधा पिरामिड शैली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
सीधा पिरामिड शैली में सबसे महत्वपूर्ण समाचार (घटना, समस्या, विचार के सबसे महत्वपूर्ण अंश) को पहले पैराग्राफ में लिखा जाता है। इसके बाद कम महत्वपूर्ण समाचार की जानकारी दी जाती है।
प्रश्न 23:
उलटा पिरामिड शैली (इंवटेंड पिरामिड शैली) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर –
यह समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह कहानी या कथा लेखन शैली की ठीक उलटी होती है। इसमें आधार ऊपर और शीर्ष नीचे होता है। इसमें शुरू में समापन, मध्य में बॉडी और अंत में मुखड़ा होता है।
प्रश्न 24:
समाचार-लेखन के छह ककारों के नाम लिखिए।
उत्तर –
क्या, कौन, कहाँ, कब, क्यों और कैसे-ये समाचार-लेखन के छह ककार हैं।
प्रश्न 25:
समाचार-लेखन में छह ककारों का महत्व क्या है?
उत्तर –
किसी समाचार को लिखते समय मुख्यत: छह सवालों के जवाब देने की कोशिश की जाती है। समाचार लिखते समय क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ का उत्तर दिया जाता है।
प्रश्न 26:
समाचारों के मुखड़े (इंट्रो) में किन ककारों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर –
समाचारों के मुखड़े (इंट्रो) में तीन या चार ककारों-क्या, कौन, कब और कहाँ-का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि ये सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं।
स्वयं करें
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 150 शब्दों में फीचर लिखिए
- किसानों पर कर्जे का बढ़ता बोझ
- महानगरों में बढ़ते अपराध
- बाल-श्रमिक
- बँधुआ मजदूर
- जातीयता-सामाजिक समरसता में बाधक
- महॅगी शिक्षा
- कृषकों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति
- शहरों का दमघोंटू वातावरण
- सचिन तेंदुलकर की उपलब्धियाँ
- मेरे विद्यालय का पुस्तकालय
- आज की तनावपूर्ण जीवन-शैली
- मोबाइल के सुख-दुख
- गाँवों से पलायन करते लोग
- देश की सीमाओं पर मँडराता खतरा
- वाहनों की बढ़ती संख्या से उत्पन्न समस्याएँ
- खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या
- नदियों की स्वच्छता हमारा नैतिक दायित्व
- जनसंख्या-वृद्ध पर नियंत्रण
- भारतीय युवक कैसे करें देश-सेवा
- नशाखोरी की बढ़ती प्रवृत्ति
- बाल-श्रमिकों की समस्या
- अपहरण की बढ़ती घटनाएँ
- शहरों की ओर दौड़ते लोग
रिपोर्ट
रिपोर्ट समाचार-पत्र, रेडियो और टेलीविजन की एक विशेष विधा है। इसके माध्यम से किसी घटना, समारोह या आँखों-देखे किसी अन्य कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। चूँकि दूरदर्शन दृश्य एवं श्रव्य दोनों ही उद्देश्य पूरा करने वाला माध्यम है, अत: इसके लिए आँखों-देखी घटना की रिपोर्ट तैयार की जाती है जबकि रेडियो के लिए केवल सुनने योग्य रिपोर्ट तैयार करने से काम चल जाता है। कभी संचालक द्वारा दी जा रही कार्यवाही का विवरण देखकर ही उसे रिपोर्ट का आधार बनाकर रिपोर्ट तैयार कर ली जाती है।
रिपोर्ट की विशेषताएँ-
- रिपोर्ट की पहली मुख्य विशेषता उसकी संक्षिप्तता है। संक्षिप्त रिपोर्ट को ही लोग पढ़ पाते हैं। ज्यादा विस्तृत रिपोर्ट पढ़ी नहीं जाती, अत: उसे तैयार करना उद्देश्यहीन हो जाता है।
- रिपोर्ट की दूसरी मुख्य विशेषता उसकी निष्पक्षता है। रिपोर्ट को प्रभावशाली बनाने के लिए निष्पक्ष रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।
- रिपोर्ट की तीसरी प्रमुख विशेषता उसकी सत्यता है। इस तथ्य से रहित रिपोर्ट अप्रासंगिक और निरुद्देश्य हो जाती है। असत्य रिपोर्ट पर न कोई विश्वास करता है और न कोई पढ़ना पसंद करता है।
- रिपोर्ट की अगली विशेषता उसकी पूर्णता है। आधी-अधूरी रिपोर्ट से रिपोर्टर का न उद्देश्य पूरा होता है और न वह पाठकों की समझ में आती है।
- रिपोर्ट की अगली विशेषता है-उसका संतुलित होना। अर्थात इसे सभी पक्षों को समान महत्व देते हुए तैयार करना चाहिए।
रिपोर्ट के कुछ उदाहरण
प्रश्न 1:
मुंबई पर हमले के संबंध में सरकारी लापरवाही के संबंध में रिपोर्ट।
उत्तर –
खुलासा : मुबई पर हमले के सबध में रिपोर्ट पेश
कमजोर थे हम मुंबई आतंकी हमले की जाँच करने वाली प्रधान समिति ने मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर हसन गफूर की गंभीर चूक पाई है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गफूर आतंकी हमले के दौरान शहर में फैली युद्ध जैसी स्थिति से निपटने में नाकाम रहे। रिपोर्ट में राज्य व शहर के आला अधिकारियों पर हमले के दौरान सामान्य कार्य-प्रणाली (एसओपी) का पालन न करने का आरोप लगाया गया है। इसमें पुलिस फ़ोर्स के तत्काल उन्नयन व लगातार समीक्षा के सुझाव भी दिए गए हैं।
छह माह पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की सौंपी जा चुकी इस रिपोर्ट का मराठी अनुवाद गृहमंत्री आर०आर० पाटिल ने सोमवार को विधान सभा के पटल पर रखा। इस रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों की जानकारी स्वयं पाटिल ने सदन को दी। इस रिपोर्ट को पूर्व गवर्नर आरडी प्रधान की अध्यक्षता में गठित दो-सदस्यीय समिति ने तैयार किया था।
पाटिल ने सदन को बताया कि मुख्यमंत्री को मिलाकर गठित 16-सदस्यीय दल इस रिपोर्ट के सभी पहलुओं का अध्ययन करेगा। साथ ही मीडिया में इसके लीक होने की भी जाँच की जाएगी। उन्होंने स्वीकार किया कि महाराष्ट्र सरकार को दी गई रिपार्ट और लीक हुई रिपोर्ट एक जैसी थी। विधान सभा में विपक्ष के नेता एकाथ खडसे ने रिपोर्ट के मीडिया में लीक होने की सीबीआई जाँच की माँग की। उन्होंने इस मामले में सरकार पर लापरवाही बरतने का।
विशेष रिपोर्ट के प्रकार
विशेष रिपोर्ट कई प्रकार की होती है –
- खोजी रिपोर्ट (इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट)
- इन-डेप्थ रिपोर्ट
- विश्लेष्माक रिपोर्ट
- विवरणात्मक रिपोर्ट
- खोजी रिपोर्ट (इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट)-इस प्रकार की रिपोर्ट में रिपोर्टर मौलिक शोध और छानबीन के जरिये ऐसी सूचनाएँ या तथ्य सामने लाता है जो सार्वजानिक तौर पर पहले से उपलब्ध नहीं थीं। खोजी रिपोर्ट का इस्तेमाल आमतौर पर भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया जाता है।
- इन-डेप्थ रिपोर्ट-इस प्रकार की रिपोर्ट में सार्वजानिक तौर पर उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं और आँकड़ों की गहरी छानबीन की जाती है और उसके आधार पर किसी घटना, समस्या या मुद्दे से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को सामने लाया जाता है।
- विश्लेष्माक रिपोर्ट-सप्रकरक पािर्टमेंट या सस्या सेजु तथा केविलेय औ व्याख्या पिरयो दिया जाता ह।
- विवरणात्मक रिपोर्ट-इस तरह की रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या के विस्तृत और बारीक विवरण को प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है। विभिन्न प्रकार की विशेष रिपोर्टों को समाचार-लेखन की उलटा पिरामिड-शैली में ही लिखा जाता है लेकिन कई बार ऐसी रिपोर्टों को फ़ीचर शैली में भी लिखा जाता है। चूँकि ऐसी रिपोर्ट सामान्य समाचारों की तुलना में बड़ी और विस्तृत होती हैं, इसलिए पाठकों की रुचि बनाए रखने के लिए कई बार उलटा पिरामिड और फ़ीचर दोनों ही शैलियों को मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। रिपोर्ट बहुत विस्तृत और बड़ी हो तो उसे श्रृंखलाबद्ध करके कई दिनों तक किस्तों में छापा जाता है। विशेष रिपोर्ट की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की होनी चाहिए।
विशेष रिपोर्ट का उदाहरण
पानी का संकट
पहल का इंतजार
कुएँ भले ही अतीत की चीज हो गए हैं, लेकिन फिलहाल वे हमारे भविष्य के अंदेशे को बता रहे हैं। देश में चार हजार कुओं पर किए गए अध्ययन से यह साबित हुआ कि सात साल में देश के भूजल में 54 फ़ीसदी की कमी हो गई है और 22 शहर गंभीर जल-आपूर्ति संकट से गुजर रहे हैं। नासा के 2003 से 2013 तक के अध्ययन पर आधारित हाल के आँकड़ों के अनुसार सिंधु बेसिन जल-स्तर -4.263 मिलीमीटर प्रतिवर्ष और गंगा-ब्रहमपुत्र बेसिन में जल-स्तर -19,564 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से कम हो रहा है।
नासा के उपग्रहों की हाल में जारी तस्वीरों ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। इनके मुताबिक भारत-पाकिस्तान में सिंधु नदी के बेसिन क्षेत्र यानी उत्तर-पश्चिम भारत में भूजल तेजी से कम हो रहा है। उसने अपने उपग्रहों की तस्वीरों के आधार पर एक अध्ययन 2009 में भी जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि सिंचाई के कारण उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली में 108 क्यूबिक किलोमीटर भूजल खत्म हो गया है। ये आँकड़े 2002 से 2008 के बीच के थे। तब से निश्चित रूप से यह संकट अब और गंभीर हुआ है।
नासा के जुड़वाँ उपग्रहों ग्रेविटी रिकवरी और क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (ग्रेस) ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में कुछ परिवर्तन महसूस किए। इनकी वजह जल-वितरण के तरीके में छिपी मिली। इसमें भूजल भी शामिल है। नासा ने पाया कि उत्तर भारत में भूजल तेजी से खत्म हो रहा है। मैट रोडेल की अगुवाई में हुए अध्ययन के मुताबिक उत्तर भारत कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए सिंचाई पर निर्भर हो गया है। यदि भूजल के संतुलित उपयोग के कदम नहीं उठाए गए तो क्षेत्र के 11 करोड़ से ज्यादा लोगों को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कृषि पैदावार में कमी आएगी और पीने योग्य पानी की किल्लत बढ़ेगी।
संकट उतना जल का नहीं है, जितना जल-नीतियों का खड़ा किया हुआ है। भूजल स्रोतों का अंधाधुध दोहन हो रहा है। देश के राजनीतिज्ञ बड़े वोट बैंक को खुश रखने के लिए ट्यूबवेल जैसे उपकरणों और बिजली जरूरतों पर बड़े पैमाने पर सब्सिडी दे रहे हैं। हरित क्रांति की शुरुआत से ही मिली इस छूट के कारण भारत में भूजल सिंचाई बहुत तेजी के साथ बढ़ी है। जब बरसात पर्याप्त नहीं होती तो यह निर्भरता और बढ़ जाती है।
जुलाई 2012 में भारत की कुल जनसंख्या का आधा यानी 67 करोड़ (दुनिया की आबादी का 10 प्रतिशत) लोगों को ग्रिड फेल होने की वजह से बिजली संकट से जूझना पड़ा था। विशेषज्ञों ने इसकी वजह उत्तर भारत में सूखे को ठहराया था। दरअसल कम वर्षा के कारण जल की कमी थी। किसानों ने फसल सींचने के लिए जरूरत से ज्यादा बिजली का उपयोग किया और ग्रिड फेल हो गई। –
कुछ क्षेत्रों में पानी की माँग-आपूर्ति की स्थिति में असंतुलन है। शहरी क्षेत्रों में माँग 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन । (एलपीसीडी) है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में वह माँग इसकी एक-तिहाई यानी 40 एलपीसीडी है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक शहरी भारत की आबादी कुल जनसंख्या का 50 प्रतिशत बढ़ जाएगी। यानी जल की कमी वाले क्षेत्रों में 84 करोड़ लोग निवास कर रहे होंगे। अभी यह संख्या 32 करोड़ है। जल के कारण कई राज्यों में आपसी विवाद देखने को मिल चुके हैं। इनके और बढ़ने की संभावना है।
नासा ने इस बात के लिए चेताया है कि भूजल का दोहन नियंत्रित नहीं किया गया तो संकट और गंभीर हो जाएगा। आज देश में 55 प्रतिशत भूजल-स्रोतों का उपयोग हो रहा है। सतह का जल हमें नदियों से मिलता है। बाँधों के जरिये इसका अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है। इन बाँधों के कारण कुछ नदियों का जल-प्रवाह प्रभावित हुआ है। देश की खेती में 60 प्रतिशत भूजल लग रहा है। कुल मिलाकर 80 फीसदी पानी खेती में जा रहा है। इसके अलावा शहरों में 30 फीसदी और गाँवों में 70 फीसदी आपूर्ति भूजल से ही होती है।
भारत में कुछ विशाल नदियाँ हैं। इन नदियों के एक बड़े हिस्से का उपयोग प्राकृतिक कारणों से नहीं हो पाता। ब्रहमपुत्र । जल उपयोग के हिसाब से सबसे ज्यादा संभावना वाली नदी है, लेकिन इसका हम महज चार प्रतिशत ही उपयोग कर सकते हैं। वास्तव में यह नदी दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों से बहती है, जिससे इसके पानी का समुचित उपयोग नहीं हो पाता। भारत में नदियों के 1900 अरब क्यूबिक मीटर जल उपयोग की संभावना है, लेकिन उपयोग 700 अरब क्यूबिक मीटर ७ ही हो पाता है। बाँधों के कारण सतह के जल पर भी असर पड़ा है।
अन्य हल प्रश्न
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
‘रिपोर्ताजन’ शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से मानी जाती है?
उत्तर –
फ्रेंच भाषा से।
प्रश्न 2:
रिपोर्ताज की परिभाषा दीजिए।
उत्तर –
किसी घटना का उसके वास्तविक रूप में वर्णन, जो पाठक के सम्मुख घटना का चित्र सजीव रूप में उपस्थित कर, उसे प्रभावित कर सके, रिपोर्ताज रिपोर्ट कहलाता है।
प्रश्न 3:
रिपोर्ताज लेखन में क्या आवश्यक है?
उत्तर –
संबंधित घटना-स्थल की यात्रा, साक्षात्कार, तथ्यों की जाँच।
प्रश्न 4:
रिपोर्ताज की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
तथ्यता, कलात्मकता, रोचकता।
प्रश्न 5:
हिंदी में रिपोर्ताज प्रकाशित करने का श्रेय किस पत्रिका को है?
उत्तर –
हंस को।
प्रश्न 6:
रिपोर्ट की परिभाषा दीजिए।
उत्तर –
किसी योजना, परियोजना या कार्य के नियोजन एवं कार्यान्वयन के पश्चात उसके ब्यौरे के प्रस्तुतीकरण को रिपोर्ट कहते हैं।
प्रश्न 7:
विशेष रिपोर्ट किसे कहते हैं?
उत्तर –
किसी विषय पर गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर बनने वाली रिपोर्टों को विशेष रिपोर्ट कहते हैं।
प्रश्न 8:
विशेष रिपोर्ट के दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
खोजी रिपोर्ट, इन—डेप्थ रिपोर्ट।
प्रश्न 9:
विशेष रिपोर्ट के लेखन में किन बातों पर अधिक बल दिया जाता है?
उत्तर –
विशेष रिपोर्ट के लेखन में घटना, समस्या या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है तथा महत्वपूर्ण तथ्यों को इकट्ठा करके उनका विश्लेषण किया जाता है।
प्रश्न 10:
रिपोर्ट व रिपोर्ताज में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
रिपोर्ट में शुष्कता होती है, रिपोर्ताज में नहीं। रिपोर्ट का महत्व सामयिक होता है, जबकि रिपोर्ताज का शाश्वत।
प्रश्न 11:
खोजी रिपोर्ट का प्रयोग कहाँ किया जाता है?
उत्तर –
इस रिपोर्ट का प्रयोग आमतौर पर भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 12:
इन-डेप्थ रिपोर्ट क्या होती है?
उत्तर –
सुष्टि में सार्वजकि तैरप, उप्लब तथा स्वनाओं औरऑकों क छनन कके माहवर्णमुद्दों क बताया जाता ह। ,
प्रश्न 13:
विशेषीकृत रिपोर्टिग की एक प्रमुख विशेषता लिखिए।
उत्तर –
इसमें घटना या घटना के महत्व का स्पष्टीकरण किया जाता है।
प्रश्न 14:
रिपोर्ट-लेखन की भाषा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
रिपोर्ट-लेखन की भाषा सरल व सहज होनी चाहिए। उसमें संक्षिप्तता का गुण भी होना चाहिए।
- रिपोर्ट को परिभाषा दीजिए।
- विशेष रिपोर्ट किसे कहते हैं?
- खोजी रिपोर्ट से आप क्या समझते है? इसका प्रयोग कहाँ किया जाता हैं?
- इन-डेप्त रिपोर्ट किसे कहा जाता है?
- रिपोर्ट की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- विश्लेषणात्मक रिपोर्ट किसे कहते है?
- विवरणात्मक रिपोर्ट की परिभाषा दीजिए।
- रिपोर्ट और रिपोर्ताज में कोई दो मुख्य अंतर लिखिए।
- विशेष रिपोर्ट को किस शैली में लिखा जाता है?
विवरणात्मक रिपोर्ट की परिभाषा दीजिए। रिपोर्ट और रिपोर्ताज में कोई दो मुख्य अंतर लिखिए। विशेष रिपोर्ट को किस शैली में लिखा जाता है?
आलेख
किसी एक विषय पर विचार प्रधान एवं गद्य प्रधान अभिव्यक्ति को ‘आलेख’ कहा जाता है। आलेख वस्तुत: एक प्रकार के लेख होते हैं जो अधिकतर संपादकीय पृष्ठ पर ही प्रकाशित होते हैं। इनका संपादकीय से कोई संबंध नहीं होता। ये लेख किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकते हैं, जैसे-खेल, समाज, राजनीति, अर्थ, फिल्म आदि। इनमें सूचनाओं का होना अनिवार्य है।
आलेख के मुख्य अंग
आलेख के मुख्य अंग हैं-भूमिका, विषय का प्रतिपादन, तुलनात्मक चर्चा व निष्कर्ष। सर्वप्रथम, शीर्षक के अनुकूल भूमिका लिखी जाती है। यह बहुत लंबी न होकर संक्षेप में होनी चाहिए। विषय के प्रतिपादन में विषय का वर्गीकरण, आकार, रूप व क्षेत्र आते हैं। इसमें विषय का क्रमिक विकास किया जाता है। विषय में तारतम्यता व क्रमबद्धता अवश्य होनी चाहिए। तुलनात्मक चर्चा में विषयवस्तु का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता है और अंत में, विषय का निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है।
आलेख रचना के संबंध में प्रमुख बातें
- लेख लिखने से पूर्व विषय का चिंतन-मनन करके विषयवस्तु का विश्लेषण करना चाहिए।
- विषयवस्तु से संबंधित आँकड़ों व उदाहरणों का उपयुक्त संग्रह करना चाहिए।
- लेख में श्रृंखलाबद्धता होना जरूरी है।
- लेख की भाषा सरल, बोधगम्य व रोचक होनी चाहिए। वाक्य बहुत बड़े नहीं होने चाहिए। एक परिच्छेद में एक ही भाव व्यक्त करना चाहिए।
- लेख की प्रस्तावना व समापन में रोचकता होनी जरूरी है।
- विरोधाभास, दोहरापन, असंतुलन, तथ्यों की असंदिग्धता आदि से बचना चाहिए।
आलेख के कुछ उदाहरण
1. एक अच्छा स्कूल स्कूल
ऐसी जगह होना चाहिए जहाँ सीखने के लिए उचित माहौल बन सके। स्कूल के बुनियादी ढाँचे के अलावा इसके वैल्यू सिस्टम समेत हमें इसके वातावरण पर फिर से गौर करना होगा। हमें बच्चों को दखलंदाजी से मुक्त और रोचक माहौल देने की आवश्यकता है। हमें ऐसे तत्वों को पहचानकर दूर करना होगा, जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास में बाधक हैं। अनुशासन के लिहाज से यही बेहतर है कि ऐसे नियम-कायदों को, जिन्हें बच्चे सजा की तरह समझे, जबरन लादने की बजाय नियमों को तय करने में उनकी भागीदारी भी हो। हमें उन्हें सशक्त बनाना होगा और स्कूली प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
क्लास रूम में लोकतांत्रिक व्यवस्था नजर आए, जहाँ बच्चों के साथ इंटरएक्शन संवादात्मक हो, शिक्षात्मक नहीं; जहाँ सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार किया जाए। आपसी संपर्क, संवाद और अनुभव पर आधारित शिक्षा संबंधी प्रविधियाँ अधिक प्रभावशाली होंगी। अवधारणाओं को सिखाने पर ध्यान देना चाहिए।
मेरे विचार से यह बेहद जरूरी है कि हम शिक्षा को व्यापक सामाजिक संदर्भों के हिसाब से देखें। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बच्चे अपने ज्ञान को बाहरी दुनिया के साथ जोड़ सकें। ज्ञान वास्तविक अनुभवों से आता है और यदि क्लास रूम के क्रियाकलापों को वास्तविकता से नहीं जोड़ा जाता तो शिक्षा हमारे बच्चों के लिए महज शब्दों और पाठों का खेल ही बनी रहेगी। आज हम एक समाज के तौर पर बेहतर स्थिति में हैं और बदलाव के लिहाज से महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं।
देश में कई स्कूल और संस्थान यह दर्शा रहे हैं कि वस्तुत: हम पुराने तौर-तरीकों से निजात पाकर बेहतर शिक्षा के लिए प्रयास कर सकते हैं। जयपुर का दिगंतर द्वारा संचालित बंध्याली स्कूल, बंगलूरू का सेंटर फ़ॉर लर्निग या बर्दवान में विक्रमशिला का विद्या स्कूल जैसे कुछ शिक्षालय ऐसी शिक्षा के लिए जाने जाते हैं, जैसी हम चाहते हैं। एकलव्य, दिगंतर और विद्या भवन जैसे सामाजिक संस्थान और आई डिस्कवरी तथा ईजेड विद्या जैसे कुछ सामाजिक उपक्रम पूरे देश में चलाए जा रहे इस सतत आंदोलन का एक हिस्सा हैं। इन सबके प्रभाव मुख्यधारा की स्कूलिंग पर नजर आने लगे हैं।
2. भारतीय कृषि की चुनीती
ऐसे समय में, जब खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं और दुनिया में भुखमरी अपने पैर पसार रही है, जलवायु-परिवर्तन से संबंधित विशेषज्ञ आगाह कर रहे हैं कि आने वाले वक्त में हमें और भी भयावह स्थिति का सामना करना पड़ेगा। दिनों-दिन बढ़ते वैश्विक तापमान की वजह से भारत की कृषि-क्षमता में लगातार गिरावट आती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक इस क्षमता में 40 फ़ीसदी तक की कमी हो सकती है। (ग्लोबल वार्मिग एंड एग्रीकल्चर, विलियम क्लाइन)।
कृषि के लिए पानी और ऊर्जा या बिजली दोनों ही बहुत अह तत्व हैं, लेकिन बढ़ते तापमान की वजह से दोनों की उपलब्धता मुश्किल होती जा रही है। तापमान बढ़ने के साथ ही देश के एक बड़े हिस्से में सूखे और जल संकट की समस्या भी बद से बदतर होती जा रही है। एक तरफ वैश्विक तापमान से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल पर ब्रेक लगाने की जरूरत महसूस की जा रही है। वहीं दूसरी ओर कृषि-कार्य के लिए पानी की आपूर्ति के वास्ते बिजली की आवश्यकता भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
खाद्य सुरक्षा, पानी और बिजली के बीच यह संबंध जलवायु-परिवर्तन की वजह से कहीं ज्यादा उभरकर सामने आया है। एक अनुमान के मुताबिक अगले दशक में भारतीय कृषि की बिजली की जरूरत बढ़कर दुगुनी हो जाने की संभावना है। यदि निकट भविष्य में भारत को कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के समझौते को स्वीकारने के लिए बाध्य होना पड़ता है तो सबसे बड़ा सवाल यही उठेगा कि फिर आखिर भारतीय कृषि की यह माँग कैसे पूरी की जा सकेगी।
3. मनोरंजन का नया बॉस
‘रियलिटी शो’ किस चिड़िया का नाम है, इस दशक से पहले हिंदुस्तान में शायद ही कोई इस बात से वाकिफ़ था। लेकिन इस पूरे दशक में छोटे पर्दे और रियलिटी शो का मानो चोली-दामन का साथ हो गया। इन रियलिटी शो के जरिये आम लोगों की प्रतिभा सामने आई और हिंदुस्तानी दर्शकों को अहसास हुआ कि छोटा पर्दा बड़े सितारे तैयार कर सकता है और कुछ लोगों की किस्मत भी बदल सकता है।
छोटे पर्दे को रियलिटी शो ने इस दशक में वह ताकत दी कि यह बड़े पर्दे के सितारों को अपने फलक तक खींच लाया। बॉलीवुड के इतिहास के सबसे बड़े सितारे अमिताभ बच्चन हों या शाहरुख खान, सलमान खान, गोविंदा, अक्षय कुमार, माधुरी दीक्षित, शिल्पा शेट्टी और अरशद वारसी, एक के बाद एक सितारों को यहाँ पनाह मिली। गेम शो हो या डांस शो, गीत हों या एक घर में रहकर एक-दूसरे की टाँग खींचने वाले शो या फिर एमटीवी रोडीज जैसे बिगडैल युवाओं के शो, दर्शकों ने हरेक को पूरी तवज्जो दी।
4. हस्ती मिटती नहीं हमारी …………
अथवा
भारत का बदलता चेहरा
वर्ष 2000 के बाद का दशक समाप्त हो चुका है। अगला दशक प्रारंभ हो चुका है। सन 2001 में जॉर्ज डब्ल्यू० बुश के दुनिया के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सामरिक ताकत की कमान सँभालने के बाद से बराक ओबामा के द्रवितीय कार्यकाल तक बहुत कुछ बदल चुका है। बुश के पर्दे पर उभरने के समय जहाँ अमेरिका ही दुनिया के रंगमंच पर प्रमुख भूमिका में था, वहाँ अब ओबामा के दौर में चीन और भारत भी बेहद अह भूमिका में नजर आने लगे हैं।
शीतयुद्ध के बाद बनी एकध्रुवीय दुनिया ने भला ऐसी अँगड़ाई क्यों ली? इस सवाल के जवाब में कुछ लोग बुश की नीतियों को दोषी ठहराते हैं तो कुछ लोग चीन और भारत की नीतियों और प्रतिभाओं को इस चमत्कार का श्रेय देते हैं। छाछ भी फ्रैंक-फूंक कर पीने की तर्ज पर खुद ओबामा दोनों ही कारणों का अपने भाषणों और नीतियों में उल्लेख करते नजर आ रहे हैं।
मगर एक बात पर तो शायद सभी एक मत हैं कि दुनिया की इस बदलती तस्वीर के पीछे का असल कलाकार तो आर्थिक मंदी ही है। बीते दशक की शुरुआत में जहाँ सब कुछ हरा-हरा नजर आ रहा था, वहीं दबे पाँव आई मंदी ने मानो सब कुछ उलट-पुलट कर दिया। जाहिर है, ऐसे खतरनाक भूचाल के बाद अगर अमेरिका और यूरोप जैसे महारथी औधे मुँह गिर पड़े हों और भारत फिर भी मतवाली चाल से चलता चला जा रहा हो तो फिर क्यों न दुनिया इस चमत्कार को नमस्कार करे।
5. कॉमनवेल्थ गेम्स
कॉमनवेल्थ गेम्स का सबसे पहला प्रस्ताव दिया था, वर्ष 1891 में ब्रिटिश नागरिक एस्ले कूपर ने। उन्होंने ही एक स्थानीय समाचार-पत्र में इस खेल प्रतियोगिता का प्रारंभिक प्रारूप पेश किया था। इसके अनुसार, यदि कॉमनवेल्थ के सदस्य देश प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल पर इस तरह की खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करें, तो यह उनकी गुडविल तो बढ़ाएगा ही, आपसी एकजुटता में भी खूब इजाफ़ा होगा। फिर क्या था, ब्रिटिश साम्राज्य को कूपर का यह प्रस्ताव बेहद पसंद आया और उसके साथ ही शुरू हो गया खेलों का यह महोत्सव।
पहली बार कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजित करने की कोशिश हुई वर्ष 1911 में। यह अवसर था किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक का। यह एक बड़ा उत्सव था, जिसमें अन्य सांस्कृतिक आयोजनों के अलावा, इंटर एंपायर चैंपियनशिप भी संपन्न हुई। इसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, साउथ अफ्रीका और यूके की टीमें शामिल हुई थीं। इसमें विजेता टीम थी-कनाडा, जिसे दो फीट और छह इंच की सिल्वर ट्रॉफ़ी से नवाजा गया था। काफी समय तक कॉमनवेल्थ गेम्स के शुरुआती प्रारूप में कोई बदलाव नहीं हुआ।
वर्ष 1928 में जब एम्सटर्डम ओलंपिक आयोजन हुआ तो फिर ब्रिटिश साम्राज्य ने इसे शुरू करने का निर्णय लिया और हैमिल्टन, ओटेरिया, कनाडा में शुरू हुए पहले कॉमनवेल्थ गेम्स। हालाँकि इसका नाम उस समय था ब्रिटिश एंपायर गेम्स। इसमें ग्यारह देशों ने हिस्सा लिया था।
ब्रिटिश एंपायर गेम्स की सफलता कॉमनवेल्थ गेम्स को नियमित बनाने के लिहाज से एक बड़ी प्रेरणा थी। वर्ष 1930 से ही यह प्रत्येक चार वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने लगा। वर्ष 1930 से 1950 तक यह ब्रिटिश एंपायर गेम्स के नाम से ही जाना जाता था। फिर वर्ष 1966 से 1974 तक इसे ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स के रूप में जाना जाने लगा। इसके चार वर्ष बाद यानी वर्ष 1978 से यह कॉमनवेल्थ गेम्स बन गया।
6. बढ़ती आबादी-देश की बरबादी
आधुनिक भारत में जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। देश के विभाजन के समय यहाँ लगभग 42 करोड़ आबादी थी, परंतु आज यह एक अरब से अधिक है। हर वर्ष यहाँ एक आस्ट्रेलिया जुड़ रहा है। भारत के मामले में यह स्थिति अधिक भयावह है। यहाँ साधन सीमित हैं। जनसंख्या के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। देश में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। हर वर्ष लाखों पढ़े-लिखे लोग रोजगार की लाइन में बढ़ रहे हैं।
खाद्यान्नों के मामले में उत्पादन बढ़ने के बावजूद देश का एक बड़ा हिस्सा भूखा सोता है। स्वास्थ्य सेवाएँ बुरी तरह चरमरा गई हैं। यातायात के साधन भी बोझ ढो रहे हैं। कितनी ही ट्रेनें चलाई जाएँ या बसों की संख्या बढ़ाई जाए, हर जगह भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। आवास की कमी हो गई है। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों ने फुटपाथों व खाली जगह पर कब्जे कर लिए हैं। आने वाले समय में यह स्थिति और बिगड़ेगी।
जनसंख्या बढ़ने से देश में अपराध भी बढ़ रहे हैं क्योंकि जीवन-निर्वाह में सफल न होने पर युवा अपराधियों के हाथों का खिलौना बन रहे हैं। देश के विकास के कितने ही दावे किए जाएँ, सच्चाई यह है कि आम लोगों का जीवन-स्तर बेहद गिरा हुआ है। आबादी को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए। सरकार को भी सख्त कानून बनाने होंगे तथा आम व्यक्ति को भी इस दिशा में स्वयं पहल करनी होगी। यदि जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं किया गया तो हम कभी भी विकसित देशों की श्रेणी में नहीं खड़े हो पाएँगे।
7. अॉखों-देखा जल-प्रलय
प्रकृति का सौंदर्य जितना मोहक होता है, उसका विनाशकारी रूप उतना ही भयावह होता है। प्रकृति जब कृद्ध होती है तो वह कई रूपों में बदला लेती है। इन्हीं में से एक है जल प्रलय। प्रकृति का यह रूप गतवर्ष जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ के रूप में देखने को मिला, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ।
आकाश से गिरती वर्षा की जो बूंदें तन-मन को शीतलता पहुँचा रही थीं, और मौसम को सुहावना बना रही थीं, उन्हीं बूंदों ने जब वर्षा का रूप ले लिया और कई घंटे तक अपने अविरल रूप में बरसती रहीं तो मन में शंकाएँ पनपना स्वाभाविक था। देखते-ही-देखते वर्षा का पानी नालियों की सीमा लाँघकर सड़कों पर जमा होने लगा।
हरे-भरे मैदान पानी में डूबने लगे। देखते-ही-देखते पानी घरों और दुकानों में घुसने लगा। अब लोगों के चेहरे पर भय और चिंता की रेखाएँ स्पष्ट दिखने लगी थीं। वे अपना सामान बाँधने और सुरक्षित स्थान पर जाने की तैयारी करने लगे। इधर वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। लोगों की कठिनाई कम होने का नाम नहीं ले रही थी। वे अपना सामान उठाए कमर भर पानी भरे रास्ते से सुरक्षित स्थान की ओर जाने लगे। बाढ़ अपना कहर ढाने पर तुली थी। लगता था इस जल-प्रलय में सब कुछ डूब जाएगा। हमारे होटल के कमरे की एक मंजिल पानी में डूब चुकी थी।
तीसरे दिन जब बरसात पूरी तरह रुकी तब लोगों की जान में जान आई। अब तक राहत एजेंसियों और सेना बचाव कार्य में जुट चुकी थीं। हेलीकॉप्टरों द्वारा भेाजन और अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएँ लोगों तक पहुँचाकर उनके घाव पर मरहम लगाने का कार्य किया जा रहा था। इस जल-प्रलय की छवि मेरे मनोमस्तिष्क पर अब भी अंकित है।
अन्य हल प्रश्न
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
आलेख किसे कहते हैं?
उत्तर –
समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में संपादकीय पृष्ठ पर कुछ लेख छपे होते हैं जो समसामयिक घटनाओं पर आधारित होते हैं। उन्हें ही आलेख कहते हैं।
प्रश्न 2:
आलेख किन-किन क्षेत्रों से संबंधित होते हैं?
उत्तर –
आलेख खेल, समाज, राजनीति, अर्थजगत, व्यापार, खेल आदि क्षेत्रों से संबंधित हो सकते हैं।
प्रश्न 3:
अच्छे आलेख के गुण/विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर –
- अच्छे आलेख में सूचनाओं का होना अनिवार्य होता है जिसमें नवीनता एवं ताजगी हो।
- विचारों में स्पष्टता तथा भाषा में सरलता, बोधगम्यता तथा रोचकता होनी चाहिए।
प्रश्न 4:
आलेख में किसकी प्रमुखता होती है?
उत्तर –
आलेख में लेखक के विचारों की प्रमुखता होती है। इसी कारण इसे विचार-प्रधान गदय भी कहा जाता है।
प्रश्न 5:
आलेख के मुख्य अंग कौन-कौन-से हैं?
उत्तर –
आलेख के मुख्य अंग हैं-भूमिका, विषय का प्रतिपादन व निष्कर्ष।
प्रश्न 6:
आलेख लिखते समय क्या-क्या तैयारियाँ आवश्यक होती हैं?
उत्तर –
- आलेख लिखते समय संबंधित विषय से जुड़े आँकड़ों व उदाहरणों का संग्रह करना आवश्यक होता है।
- लेखन से पूर्व विषय का चिंतन-मनन करके विषयवस्तु का विश्लेषण करना भी आवश्यक होता है।
स्वयं करें
- अच्छे आलेख की विशेषताएँ लिखिए।
- आलेख-लेखन किन-किन विषयों पर किया जा सकता है?
- आलेख के मुख्य अंगों का उल्लेख कीजिए।
- अच्छा आलेख लिखने से पूर्व आपको क्या-क्या तैयारियाँ करनी चाहिए?
- आलेख में किसकी प्रमुखता होती है?
- निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 150 शब्दों में आलेख लिखिए
(क) डॉक्टरों की हड़ताल
(ख) विद्यार्थी और बिजली-संकट
(ग) फ़िल्मों में हिंसा
(घ) सांप्रदायिक सद्भावना
(ड) कर्ज में डूबा किसान
(च) भारतीय चंद्रयान-एक बडी उपलब्धि
(छ) दिन-प्रतिदिन बढ़ते अंधविश्वास
(ज) पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें
विचारपरक लेखन
अखबारों में समाचार और फ़ीचर के अलावा विचारपरक सामग्री का भी प्रकाशन होता है। कई अखबारों की पहचान उनके वैचारिक रुझान से होती है। एक तरह से अखबारों में प्रकाशित होने वाले विचारपूर्ण लेखन से उस अखबार की छवि बनती है। अखबारों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय अग्रलेख, लेख और टिप्पणियाँ इसी विचारपरक पत्रकारीय लेखन की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा, विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों या वरिष्ठ पत्रकारों के स्तंभ (कॉलम) भी विचारपरक लेखन के तहत आते हैं। कुछ अखबारों में संपादकीय पृष्ठ के सामने ऑप-एड पृष्ठ पर भी विचारपरक लेख, टिप्पणियाँ और स्तंभ प्रकाशित होते हैं।
संपादकीय लेखन संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को उस अखबार की आवाज माना जाता है। संपादकीय के जरिये अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति-विशेष का विचार नहीं होता, इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों पर होता है। आमतौर पर अखबारों में सहायक संपादक ही संपादकीय लिखते हैं। कोई बाहर का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता।
हिंदी के अखबारों में कुछ में तीन, कुछ में दो और कुछ में केवल एक ही संपादकीय प्रकाशित होता है। संपादकीय का एक उदाहरण प्रस्तुत है-
विश्व योग दिवस के बाद
भारत की पहल पर रविवार को आयोजित प्रथम विश्व योग दिवस को आने वाले दौर में योग की ग्लोबल पॉप्युलैरिटी की बानगी के तौर पर देखा जा सकता है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यहाँ से आगे योग को लेकर भारत की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है। मन को स्थिर और शरीर को चपल बनाने वाले इस विज्ञान को दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह आजमाया जाता रहा है। स्वयं भारत में भी विभिन्न संस्थान और आचार्य इसे अपने-अपने ढंग से बरतते हैं। मानक स्वरूप जैसी कोई चीज योग पर लागू नहीं होती।
लेकिन बाहरी भिन्नताओं को छोड़ दें तो अपनी अंतर्वस्तु में योग एक दर्शन और जीवन-पद्धति है, जो समय बीतने के साथ कसरतों के जंगल में गुम होती जा रही है। दुनिया को योग की इस मूल आत्मा से परिचित कराने का काम भारत का है। जहाँ तक सवाल इसके बाहरी रूप का है तो पिछले पंद्रह-बीस वर्षों में दुनिया के कई देशों में योग का खासा बड़ा बाजार बन चुका है। हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस की तरह मनाने को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल 177 देशों की सहमति इस स्वत:स्फूर्त प्रक्रिया पर मोहर लगाने जैसी ही थी।
विश्व की अनेक स्वास्थ्य संस्थाएँ अब योग पर गंभीरता से विचार कर रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन तो बाकायदा शोध ही करा रहा है कि योग को युनिवर्सल हेल्थ केयर के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए। दरअसल, लोगों की जीवनचर्या अभी उनसे बहुत ज्यादा समर्पण की माँग करने लगी है। बहुत सारी शारीरिक और मानसिक बीमारियों को लाइफ़स्टाइल डिजीज के थैले में डाल देना आसान है, लेकिन इनसे बचने या निपटने के नाम पर अस्पतालों के लंबे-लंबे बिल के सिवाय लोगों के हाथ कुछ भी नहीं आता।
योग में इस खालीपन को भरने की भरपूर क्षमता है। लेकिन यह काम वह तभी कर पाएगा, जब इसे खुद ही मार्केटिंग फ़डों का शिकार होने से बचाया जाए। योग-भूमि होने के नाते भारत की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह योग को खतरनाक बिकाऊ चीज बनने से रोके। दुर्भाग्यवश, भारत में पहले विश्व योग दिवस का आयोजन एक आक्रामक ब्रैडिंग एक्सरसाइज जैसा ही बनकर रह गया, जिसमें एक वर्चस्ववादी राजनीति की गंध भी शामिल थी। उम्मीद करें कि आने वाले दिनों में हमारा समाज, खासकर हमारा राजनीतिक वर्ग, भारत की इस प्राचीन धरोहर को लेकर ज्यादा गंभीर होगा।
धंधे के टर्म में बात करें तो अच्छी ब्रैडिंग होने पर भारत में योग टूरिज्म के अवसर बढ़ेंगे। हमारे योग ट्रेनरों को भी देश से बाहर काम करने के मौके मिलेंगे। लेकिन यह सब तो तब होगा, जब हमारे पास सिखाने को कुछ अलग, कुछ खास होगा। सरकार अगर सोचती है कि एक प्राचीन ज्ञान को पुनर्जीवित करने का काम एक दिन का प्रदर्शन आयोजित करके या फिर पाँचवी कक्षा तक योग को अनिवार्य बनाने जैसे उपायों के जरिये संपन्न कर लिया जाएगा तो उसको इस मामले में सबसे पहले अपनी ही समझ दुरुस्त करनी चाहिए।
स्तंभ-लेखन
स्तंभ-लेखन भी विचारपरक लेखन का एक प्रमुख रूप है। कुछ महत्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अपनी एक लेखन-शैली भी विकसित हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने का जिम्मा दे देते हैं। स्तंभ का विषय चुनने और उसमें अपने विचार व्यक्त करने की स्तंभ लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ में लेखक के विचार अभिव्यक्त होते हैं। यही कारण है कि स्तंभ अपने लेखकों के नाम पर जाने और पसंद किए जाते हैं। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय होते हैं कि अखबार उनके कारण भी पहचाने जाते हैं।
स्तंभ-लेखन का एक उदाहरण
पलट सकते हैं पश्चिम एशिया के समीकरण
महद्र राजा जैन (वरिष्ठ हिंदी लेखक)
पश्चिम एशिया के हालात से जिन्हें जरा-सा भी सरोकार है, उन्हें यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि सऊदी अरब और इजरायल में गुपचुप वार्ताएँ चल रही हैं। यहाँ तक कि दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग की बात भी हो रही है। दोनों की यह कूटनीति कौटिल्य के अर्थशास्त्र की इस उक्ति की याद दिलाती है कि दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त है।
वर्तमान में सऊदी अरब और इजरायल, दोनों ही देश ईरान को अपना एक बड़ा दुश्मन मानते हैं, और इसी कारण अपने तमाम मतभेद भुलाकर ये पास आ रहे हैं। इन दोनों देशों में से कोई भी यह पसंद नहीं करेगा कि ईरान के पास एटम बम हो, लेकिन दोनों में से कोई भी उस वार्ता में भाग नहीं ले रहा, जो ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य देशों के बीच हो रही है। इस वार्ता के पीछे की सोच यह है कि ईरान को अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को रोकने के लिए राजी कर लिया जाए और इसके बदले में उसके खिलाफ़ अभी जो आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनको हटा लिया जाए।
इजरायल और सऊदी अरब, दोनों को ही डर है कि इस वार्ता से ईरान को भले ही परमाणु हथियारों से दूर ले जाया जाए, पर प्रतिबंध हटने से ईरान की स्थिति पहले से भी अधिक मजबूत हो जाएगी। इजरायल को डर है कि इसके बाद ईरान फिलस्तीनियों को और अधिक हथियार तथा आर्थिक सहायता देने के साथ ही लेबनान में हिज्बुल्ला की शक्ति भी बढ़ाएगा। दूसरी ओर, सऊदी अरब के लिए शिया ईरान की बढ़ती शक्ति अरब जगत में उसके सुन्नी आधिपत्य को सीधी चुनौती होगी। सऊदी अरब और ईरान यमन में अभी एक तरह से आपसी युद्ध ही लड़ रहे हैं।
सऊदी अरब तो खुलेआम कहता है कि ईरान में हुकूमत बदलनी चाहिए। उसने ऐसे कुर्दिस्तान को भी सहायता देने का वादा किया है, जिसमें तुर्की और इराक के कुर्दिश क्षेत्रों के साथ ही ईरान का भी कुछ भाग होगा। जहाँ तक इजरायल और सऊदी अरब के बीच की दोस्ती की बात है, तो इस संबंध में अभी और कुछ कहना बहुत जल्दी होगी। वैसे भी सऊदी अरब ने न तो पहले कभी इजरायल को मान्यता दी है और न ही अभी वह इजरायल का अस्तित्व मानता है।
दूसरी ओर, इजरायल की नेतन्याहू सरकार ने भी ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि फिलस्तीनियों के साथ शांति का सऊदी अरब ने जो प्रस्ताव रखा है, उस पर वह सहमत है। साल 1981 में सऊदी अरब के शाह फहद ने अप्रत्यक्ष रूप से इजरायल के अस्तित्व को मान्यता दी थी और साल 1991 की मैड्रिक कॉन्फ्रेंस के बाद दोनों देश क्षेत्रीय समस्याओं पर विचार करने के लिए बराबर मिलते रहे थे। यह सिलसिला अब आगे भी बढ़ सकता है। इसलिए जो लोग अब भी यह मानते हैं कि अरब देशों की नाराजगी की कीमत पर भारत को इजरायल को बहुत महत्व नहीं देना चाहिए, उन्हें अब तो अपनी सोच बदल लेनी चाहिए।
संपादक के नाम पत्र
अखबारों के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी अखबारों में यह एक स्थायी स्तंभ होता है। यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है। इस स्तंभ के जरिये अखबार के पाठक न सिर्फ़ विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं बल्कि जन-समस्याओं को भी उठाते हैं। एक तरह से यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है। जरूरी नहीं कि अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने और उन्हें हाथ माँजने का भी अच्छा अवसर देता है।
संपादक के नाम पत्रों के कुछ उदाहरण
1. सबके लिए
19 जनवरी का संपादकीय ‘सिर पर एक छत’ पढ़ा। असल में, आर्थिक उदारीकरण के बाद हमारे यहाँ रीयल एस्टेट क्षेत्र में जो भारी उछाल आया, वह मध्य और उच्च-मध्य वर्ग तक सीमित था। बेशक यह फैसला सरकार की आर्थिक सेहत के अनुकूल नहीं है, आगे ब्याज-दर बढ़ने की स्थिति में उस पर सब्सिडी का बाझ और भी बढ़ सकता है। लेकिन आर्थिक तरक्की कर रहे देश की छवि के लिए ठीक नहीं कि सभी नागरिकों के सिर पर छत न हो।
2. पहचान का मसला
संपादकीय ‘नेपाल का संविधान’ पढ़ा। नेपाल का समाज बेहद ध्रुवीकृत है, और पहचान का मसला बड़ा मुद्दा है। ऐसे में प्रस्तावित राज्यों का नामकरण और सीमांकन उतना आसान भी नहीं है, जितना महसूस हो रहा है। ठीक है कि संघीय आयोग प्रस्तावित आठ राज्यों के नाम और उनकी सीमा-रेखा तय करेगा। लेकिन एक विभाजित समाज में ये काम भविष्य भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। फिर उस नजरिये को कैसे बदलेंगे, जो प्रस्तावित संघीय व्यवस्था को ७ अपने-अपने हिसाब से देख रहा है?
3. व्यवस्था की विफलता
संपादकीय ‘कैरियर पर कुठाराघात’ (16 जून) पढ़ा। असल सवाल परीक्षा की पवित्रता और विश्वसनीयता है। अनुचित तरीकों से लाभान्वित होने वाला हर परीक्षार्थी किसी-न-किसी वास्तविक हकदार का हक मारेगा, जो परीक्षा-व्यवस्था की विफलता भी है और एक गंभीर अपराध भी। इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि खुद परीक्षार्थियों ने भी परीक्षा रद्द करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर कीं। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई के तकों को दरकिनार करते हुए फिर से परीक्षा आयोजित करने के निर्देश दिए हैं।
4. भविष्य का सवाल
यह लाखों छात्रों के भविष्य का सवाल है। इसलिए पेपर लीक होने के पीछे जो भी लोग हों, उनको ऐसी सजा दी जानी चाहिए, जिससे भविष्य में कोई ऐसा करने की सोचे भी नहीं। पर हमारे देश में अकसर यह नहीं हो पाता, इसलिए बार-बार इस तरह की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। यूपीएससी में इस तरह के मामले इसलिए सामने नहीं आते क्योंकि यूपीएससी में किसी को सदस्य बनाने से पहले इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि पिछली सर्विस के दौरान उस व्यक्ति की साख कैसी रही है। वह कितना न्यायप्रिय, ईमानदार और सक्षम अधिकारी रहा है। परीक्षा से जुड़े दूसरे आयोगों में भी ऐसी ही व्यवस्था होनी चाहिए। -विवेक तन्जा,%पालक
5. अतिम पत्र
आप सरकार के विज्ञापन पर भड़कीं बीजेपी-कांग्रेस, कोर्ट जाने की धमकी दी : खबर। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, उनके अच्छे काम तो बस विज्ञापन में ही दिखाई देते हैं
साक्षात्कार (इंटरव्यू)
समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के जरिये ही समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्ठा करते हैं। पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फ़र्क होता है कि साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है। साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है। एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास न सिर्फ़ ज्ञान होना चाहिए बल्कि आपमें संवदेनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए।
सफल और अच्छा साक्षात्कार कैसे लें?
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए आवश्यक है कि-
- जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने आप जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए।
- आप साक्षात्कार से क्या निष्कर्ष निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत जरूरी है।
- आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं।
- साक्षात्कार को अगर रिकॉर्ड करना संभव हो तो बेहतर है, लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार के दौरान आप नोट्स लेते रहें।
- साक्षात्कार को लिखते समय आप दो में से कोई भी एक तरीका अपना सकते हैं। एक आप साक्षात्कार को सवाल और फिर जवाब के रूप में लिख सकते हैं या फिर उसे एक आलेख की तरह से भी लिख सकते हैं।
साक्षात्कार का उदाहरण
अभी तो मैं जवान हूँ
तीन दशक से भी अधिक समय से बॉलीवुड में सक्रिय 57-वर्षीय अनिल कपूर आज भी 35 वर्ष के नजर आते हैं, लेकिन किरदारों के चुनाव में वे अपनी उम्र को भी ध्यान में रखते हैं। वे बॉलीवुड-हॉलीवुड में पूरी तरह से सक्रिय हैं। हाल ही में रिलीज जोया अख्तर निर्देशित फिल्म ‘दिल धड़कने दो’ में उनके द्वारा निभाए गए किरदार कमल मेहरा की सभी तारीफ़ कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि लंबे समय बाद इंडस्ट्री को एक नया ‘पिता’ मिला है, जो फ़िल्म के हीरो को भी टक्कर दे सकता है।
- आप हर फिल्म में कुछ अलग करते हुए नजर आते हैं। लोग कहते हैं कि आपकी प्रतिभा दिन-ब-दिन निखर रही है?
– इनसान अपने कैरियर की शुरुआत से जिस तरह के फैसले लेता रहता है, उसका नतीजा उसे हमेशा मिलता रहता है। मुझे लगता है कि मैंने अपने कैरियर में जो फैसले लिए, उसी की वजह से मुझे हमेशा अलग-अलग तरह के किरदार निभाने के अवसर मिले। आज भी मिल रहे हैं। इसके अलावा मैंने एक ही तरह के किरदार कभी नहीं निभाए। मैंने हमेशा लंबी दौड़ पर ही जोर दिया। लंबी रेस का घोड़ा बनने के लिए मैंने आम मुंबइया फ़िल्मों की तरह अपनी हर फ़िल्म में हीरोइन के साथ ट्रेडिशनल नाच-गाना करना जरूरी नहीं समझा। मैंने जिस रास्ते को चुना, वह बहुत कठिन था, पर उसी का फल आज मुझे मिल रहा है। - अर्जुन कपूर का मानना है कि फिल्मों के प्रति आपका जो पैशन और समझ है, उससे वह प्रभावित हैं….
– मुझे लगता है कि मुझे अभी भी फ़िल्मों को लेकर बहुत कुछ सीखना है। जहाँ तक पैशन का सवाल है तो ये होता है या फिर नहीं होता है। मुझे फ़िल्मों का पैशन है! मैं जितनी ज्यादा फ़िल्में देखेंगा, मैं जितने ज्यादा-से-ज्यादा युवा कलाकारों से मिलेंगा, जितना घूमुँगा, उतना मेरा ज्ञान बढ़ेगा। यह अर्जुन का बड़प्पन है कि वह मेरी इतनी तारीफ़ करता है। - अपनी बेटियों को लेकर क्या कहेंगे?
मुझे अपनी दोनों बेटियों-सोनम और रिया-की उपलब्धियों पर गर्व है। अभिनय के क्षेत्र में सोनम काफी अच्छा काम कर रही है। एक दिन जब इन दोनों ने मेरे सामने प्रस्ताव रखा कि वे मेरे नाम का उपयोग किए बिना फ़िल्म-निर्माण करना चाहती हैं तो मैंने उनका हौसला बढ़ाया। मैंने कहा कि उन्हें ऐसा ही करना चाहिए। - रणवीर सिंह तो आपके दूर के रिश्तेदार हैं। ‘दिल धड़कने दो’ में उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
– सच यह है कि ‘दिल धड़कने दो’ में काम करने के दौरान ही मैं रणवीर के करीब आया। उसमें बनावटीपन नहीं है। मैं उसे बचपन से ही इसी रूप में देखता आ रहा हूँ। मस्तीखोरी करना, डांस करना और किसी की भी पप्पी ले लेना उसकी आदत रही है। - जोया अख्तर तो आपके काफी जूनियर हैं, उनके निर्देशन में काम करने का अनुभव कैसा रहा?
– मैंने पहले भी कई जूनियर और नए निर्देशकों के साथ काम किया है। बहुत कम ऐसे निर्देशक हैं, जिनकी तुलना मैं विश्व के अच्छे निर्देशकों के साथ कर सकता हूँ। ऐसे ही निर्देशकों में से एक हैं-जोया अख्तर। उनके काम 9 करने का तरीका, उनका पैशन, कलाकार के अंदर से उसकी प्रतिभा निकलवाने की उनकी जो काबिलियत है, वह बिरले निर्देशकों में ही मिलती है। - 57 साल की उम्र में भी 35 साल के युवा जैसी ऊर्जा का राज?
– कुछ लोग शराब पीते रहे और मैं अपनी एनर्जी का सही उपयोग करता रहा। घर-परिवार और अपनी सेहत पर खास ध्यान दिया। जब लोग पार्टियाँ करते हुए जागते थे, तब मैं घर पर चैन की नींद सोता था। अंदरूनी सुकून की वजह से भी यह सेहत मिली है। मैं दिल से बहुत युवा हूँ। - आपने प्रचार के लिए कभी चालू तरीके नहीं आज़माए……….
– जो सब कर रहे हैं, वह सब मैंने कभी नहीं किया। जब बच्चे बड़े हो रहे हों तो उनके सामने आप खुद को किस तरह से पेश करते हैं, यह बात बहुत मायने रखता है। मैं प्रचार के लिए झूठे संबंधों की खबरें उड़ाता तो उसका असर मेरे बच्चों पर क्या पड़ता? - सोनम के कैरियर को लेकर आपकी चिंताएँ किस तरह की हैं?
– मुझे कोई चिंता नहीं है। मेरी राय में सोनम का कैरियर जिस मुकाम पर है, उससे बेहतर नहीं हो सकता। उसने हर काम प्रोफ़ेशनल अंदाज में ही किया। उसके अंदर पारिवारिक मूल्य हैं। - अब तो आपके बेटे हर्षवर्धन भी अभिनेता बनकर आ रहे हैं ’?
– वह राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फ़िल्म कर रहा है। अभी उसे सलाह देना गलत होगा, इससे नुकसान हो जाता है। मैं मानता हूँ कि हर इनसान अपना मुकद्दर, अपनी तकदीर लेकर आता है। कोई उससे उसकी तकदीर नहीं छीन सकता। वह मेरे नक्शे-कदम पर चलने की बजाय अपनी एक अलग राह बनाना चाहता है। - आप अब नई उम्र की हीरोइनों के साथ हीरो बनकर नजर नहीं आते ’?
– देखिए, युवा पीढ़ी की सोच काफी बदल चुकी है। जो लोग विग पहनकर चेहरा बनाकर नई हीरोइनों के साथ हीरो बनकर आ रहे हैं, उनकी फ़िल्में चलती नहीं हैं। उम्र के अनुरूप कलाकार को किरदार निभाने चाहिए। फ़िल्म व किरदार अच्छा होना चाहिए। दुनिया के लोग पढ़े-लिखे हैं। सिर्फ़ अनपढ़ लोगों को ही आप मूर्ख बना सकते हैं।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
प्रश्न 1:
किसे क्या कहते हैँ-
(क) सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना को सबसे ऊपर रखना और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में सूचनाएँ देना…………………
(ख) समाचाएर के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्त्वपूर्ण पहलू…………………
(ग) किसी समाचार के अंतर्गत उसका विस्तार, पृष्ठभूमि, विवरण आधि देना …………………
(घ) ऐसा सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ट लेखन; जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ मनोरंजन पर भी ध्यान दिया जाता है…………………
(ङ) किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण…………………
(च) वह लेख, जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचार-पत्र को अपनी राय प्रकट होती है…………………
उत्तर –
(क) उलटा पिरामिड
(ख) रेखांकन एव कार्टोंग्राफ
(ग) विशेष रिपोर्ट
(घ) फीचर
(ङ) आलेख एवं स्तंभ
(च) संपादकीय
प्रश्न 2:
नीचे दिए गए समाचार के अंश को ध्यानपूर्वक पढिए-
शांति का संदेश लेकर आए फ़ज़लुर्रहमान
पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने अपनी भारत-यात्रा के दौरान कहा कि वे शांति व भाईचारे का संदेश लेकर आए हैं। यहॉ दारूलउलुश्नम पहूँचने पर पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संबंधो में निरंतर सुधार हो रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से गत सप्ताह नई दिल्ली में हुई वार्ता के संदर्भ में एक प्रश्न के उतार में उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 9 प्रस्ताव दिए हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन पर विचार करने का आश्वासन दिया है। कश्मीर समस्या के संबंध में मौलाना साहब ने आशावादी रवैया अपनाते हुए कहा कि 50 वर्षों की इतनी बड़ी जटिल समस्या का एक-दो वार्ता में हल होना संभव नहीं है। लेकिन इस समस्या का समाधान अवश्य निकलेगा। प्रधानमंत्री के प्रस्तावित पाकिस्तान दौरे की बाबत उनका कहना था कि निकट भविष्य में यह संभव है और हम लोग उनका ऐतिहासिक स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों देशी के रिश्ते बहुत मज़बूत हुए हैं और प्रथम बार सीमाएँ खुली हैं, व्यापार बढ़ा है तथा बसों का आवागमन आरभ हुआ है।
(क) दिए गए समाचार में से ककार ढूंढ़कर लिखिए।
(ख) उपर्युक्त उदाहरण के आधार यर निम्नलिखित बिंदुओं कौ स्पष्ट कीजिए :
● इंट्रो
● बॉडी
● समापन
(ग) उपर्युक्त उदाहरण का गौर से अवलोकन कीजिए और बताइए कि ये कौन-सी पिरामिड-शेली में है, और क्यों?
उत्तर –
(क)
क्या – शांति का संदेश।
कौन – फ़ज़लुर्रहमान, पाकिस्तान के विपक्षी नेता।
कब – दारुलउलूम पहुंचने पर, भारत और पाक के मध्य होने वाली वार्ता के अवसर पर।
कहाँ – भारत-यात्रा पर आए।
कैसे – वार्ता द्वारा दोनों देशो में निकटता लाना और समस्या का हल खोजना।
क्यों – कश्मीर समस्या का हल चाहने के उदृदेश्य से
(ख)
- इंट्रो-पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने अपनी-भारत पात्रों के दौरान कहा कि वे शांति व भाईचारे का सदेश लेकर भारत आए हैं।
- बॉडी-फ़ज़लुर्रहमान द्वारा दारूलउलूम पहुँचने पर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हुई बातचीत को पत्रकारों हैं बताने क अंश।
- समापन-भारतीय प्रधानमंत्री को आमंत्रण तथा दोनों देशों के रिश्तों में आई मजबूती संबंधो कथन।
(ग) यह समाचार उलटा पिरामिड शैली में है क्योंकि इसमें इंट्रो पहले, बॉडी मध्य में और समापन सबसे अंत में है।
प्रश्न 3:
एक दिन के किन्हीं जीन समाचार-पत्रों को पढिए और दिए गए बिन्दुओं के संदर्भ में उनका तुलनात्मक अध्ययन कीजिए-
(के) सूचनाओं का केंद्र/मुख्य आकर्षण
(ख) समाचार का पृष्ठ एवं स्थान
(ग) समाचार की प्रस्तुति
(घ) समाचार की भाषा-शैली
उत्तर –
हिंदुस्तान | नवभारत टाइम्स | पंजाब केसरी |
(क) सूचनाएँ आकर्षक एवं विस्तृत हैं। | (क) सूचनाएँ आकर्षक एवं जिज्ञासापूर्ण हैं। | (क) सूचनाएँ सामान्यतया ठीक हैं। |
(ख) समाचार प्रारंभ के सात-आठ पृष्ठों पर होते हैं। | (ख) समाचार पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे पृष्ठों यर अधिक हैं। | (ख) पहले तीन-चार पृष्ठों पर समाचार हैं। |
(ग) समाचार प्रस्तुति का ढंग रोचक, आकर्षक एवं प्रभावशाली है। | (ग) समाचार प्रस्तुति का ढंग आकर्षक एवं प्रभावी है। | (ग) समाचार प्रस्तुति का ढंग साधारण है। |
(घ) समाचार की भाषा सरल, सहज तथा स्तरीय है। | (घ) भाया सरल, सुबोध एवं स्तरीय है। | (घ) भाषा अच्छी है। |
प्रश्न 4:
अपने विद्यालय और मोहल्ले के आस-यास की समस्याओं यर नज़र डालें। जैसे-यानी की कमी, बिजली की कटौती, खराब सड़कें, सफाई की दुर्व्यवस्था। इनमें से किन्हीं दो विषयों यर रिपोर्ट तैयार करें और अपने शहर के अखबार में भेजें।
उत्तर –
पानी को कमी-मार्च का महीना बीता नहीं कि पानी की किल्लत शुरू हो गई। तालाब और पोखर सूखने लगे और नलों में भी पानी आना कम हो गया । पानी की कमी और उपर से बढ़ती गर्मी, दोनों मिलकर जीना कितना कठिन वना देती हैं, पर परेशानियों का नाम ही तो जीवन है। शहरी क्षेत्रों में यह समस्या और भी विकराल रूप ले लेती है। अनधिकृत कॉलोनियों में यानी के टैंकर समय पर न आना, सप्ताह में एक-दो बार आने पर युदृध जैसी स्थिति उत्पन्न होना आम बात हो जाती है। पानी के टैंकर की राह देखते हुए रात बिताना सामान्यतः कोई नई बात नहीं है। चुनावी वायदे करने वाले नेता अब दर्शन नहीं देते और शिकायत लेकर जाने पर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते नज़र आते हैं। वे कभी जल बोर्ड की दोष देते हैं तो कभी पिछली सरकार को। आखिर यह समस्या लोगों का पीछा कब छोड़ेगी?
सफाई की दुर्व्यवस्थर-सफाईं का नाम लेते ही जगह-जगह पहुँ कूड़े के ढेर, गंदे पानी से भरी नालियाँ, कूडेदान के बाहर तक सड़क पर बिखरा कूड़ा और उनमें मुँह मारते जानवरों का दृश्य साकार हो उठता है। कुछ एसा दृश्य उतारी दिल्ली को पुनर्वास कॉलोनियों में देखा जा सकता हैं। यूँ तो उत्तारी दिल्ली नगर निगम साफ़-सफाई के बड़े-बड़े दावे करता है, पर हल्की-सी बारिश होते ही उसके दावों की पोल खुल जाती है। वर्षा होते ही सड़कों पर पानी का भरना, उनमें कूड़ा-करकट तैरना सांगा को नाक बंद करके जाने के लिए मज़बूर करता है।
ऐसा गंदगीपूर्ण दृश्य देखकर इसे देश को राजधानी का हिस्सा कहने में संकोच होने लगता है। नगर निगम के अध्यक्ष और अधिकारी सफाई-कार्यों का बजट कहीं और खर्च करके तथा सफाई के लिए किए गए कार्यों के झूठे आँकड़े प्रस्तुत करके जनता को धोखा देन का प्रयास करते हैं। उनके इस कृत्य से दिल्ली की आधी से अधिक आबादी साफ हवा-यानी के लिए तरसने को मज़बूर है।
प्रश्न 5:
किसी क्षेत्र-विशेष से जुड़े व्यक्ति से साक्षात्कार करने के लिए प्रश्न-सूची तैयार कीजिए, जैसे-
- संगीत/नृत्य
- चित्रकला
- शिक्षा
- अभिनय
- साहित्य
- खेल
उत्तर –
अभिनय के दुनिया में पैर जमा चुके अभिनेता से साक्षात्कार के लिए तैयार की गई प्रशन-सूची-
- आपकी अभिनय की दुनिया में आने के लिए प्रेरणा कहाँ से मिली?
- आपकों इस क्षेत्र में पैर जमाने के लिए क्या-क्या करना पड़ा?
- आपके अभिनय के क्षेत्र में आने पर आपके माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया रही?
- अब तक आपने किन-किन फिल्मों में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाया है?
- अभिनय के क्षेत्र में आज आप खुद को कहाँ पाते हैं?
- प्रसिदृधि के शिखर पर पहुँचकर कुछ लोग पैसों के लालच में विज्ञापनों के माध्यम रने गलत संदेश देकर अपनी छवि का दुरुपयोग करते हें? उनके इस कृत्य की आप किस रूप में देखते हैं?
- अभिनय के क्षेत्र में नवागंतुकों की मदद आप कैसे करते हैं?
- अच्छे अभिनय के बाद भी जब आपको सरकार दुवारा पुरस्कृत नहीं किया जाता तब आप कैसा महसूस करते हैं?
- आपकी आने वाली फिल्में कौन-कौंन-सी हैं? वे आपकी पिछली फिल्मों से किस तरह अलग हैं?
- अभिनय की दुनिया में आपने धन तो खूब कमाया पर इससे आपकी कितनी संतुष्टि मिली?
- यदि आप अभिनेता न होते तो क्या करना पसंद करते?
प्रश्न 6:
आप अखबार के मुखपृष्ठ पर कौन-से छह समाचार शीर्षक/सुखियाँ (हेडलाइन) देखना चाहेंगे? उन्हें लिखिए।
उत्तर –
अखबार के मुखपृष्ठ पर मैं निम्नलिखित छह समाचार शीर्षक/सुखियाँ (हेडलाइन) देखना चाहूँगा
- अपने देश की सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं चर्चित खबर का शीर्षक।
- महत्वपूर्ण विश्वस्तरीय खबर का शीर्षक।
- अपने राज्य की राजधानी संबंधी मुख्य खबर।
- दिल्ली में आयोजित खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम की जानकारी संबंधी शीर्षक।
- किनारे बने बॉक्स में मुख्य समाचारों की झलकियाँ।
- मौसम-संबंधी पूर्वानुमान, तापमान, शेयर बाजार भाव आदि की तालिका।
अन्य हल प्रश्न
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
संपादकीय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर –
संपादकीय समाचार-पत्र का वह महत्त्वपूर्ण अंश होता है, जिसे संपादक, सहायक संपादक तथा संपादक मंडल के सदस्य लिखते हैं।
प्रश्न 2:
संपादकीय का समाचार-पत्र के लिए क्या महत्व है?
उत्तर –
संपादकीय को किसी समाचार-पत्र की आवाज माना जाता है। यह एक निश्चित पृष्ठ पर छपता है। यह अंश समाचारपत्र को पठनीय तथा अविस्मरणीय बनाता है। संपादकीय से ही समाचार-पत्र की अच्छाइयाँ एवं बुराइयाँ (गुणवत्ता) का निर्धारण किया जाता है। समाचार-पत्र के लिए इसकी महत्ता सर्वोपरि है।
प्रश्न 3:
संपादकीय किसी नाम के साथ नहीं छापा जाता, क्यों?
अथवा
संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं होता?
उत्तर –
संपादकीय किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति-विशेष की राय, भाव या विचार नहीं होता अत: उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता।
प्रश्न 4:
संपादकीय पृष्ठ पर किन-किन सामग्रियों को स्थान दिया जाता है?
उत्तर –
संपादकीय पृष्ठ पर संपादकीय, महत्वपूर्ण लेख, फ़ीचर, सूक्तियाँ, संपादक के नाम पत्र आदि को स्थान दिया जाता है।
प्रश्न 5:
संपादकीय का उददेश्य क्या है?
उत्तर –
किसी घटना, समस्या अथवा विशिष्ट मुद्दे पर संपादक मंडल की राय (समाचार-पत्र के विचार) जनता तक पहुंचाना संपादकीय का उद्देश्य होता है।
प्रश्न 6:
संपादकीय लेखन के चार कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
संपादकीय लेखन के चार कार्य हैं-समाचारों का विश्लेषण, पृष्ठभूमि की तैयारी, भविष्यवाणी करना तथा नैतिक निर्णय देना।
प्रश्न 7:
स्तंभ-लेखन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर –
स्तंभ-लेखन विचारपरक लेखन का एक महत्वपूर्ण रूप है। कुछ लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं, जिनकी लोकप्रियता देखते हुए अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने का जिम्मा दे देते हैं। इसमें विषय चुनने और विचार अभिव्यक्ति की छूट लेखक को होती है।
स्वयं करें
- किन गुणों के होने से कोई घटना समाचार बन जाती है?
- समाचार प्रकाशन में द्वारपाल की भूमिका कौन निभाते हैं?
- डॉगवाँच पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?
- एडवोकेसी पत्रकारिता किसे कहते हैं?
- समाचार के छह ककार कौन-कौन-से हैं?
- संपादकीय किसी के नाम के साथ क्यों नहीं छापा जाता?
- किसी भी समाचार-पत्र में संपादकीय का क्या महत्व होता है?