Day
Night

Chapter 1 Constitution: Why and How? (संविधान : क्यों और कैसे?)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इनमें कौन-सा संविधान का कार्य नहीं है?
(क) यह नागरिकों के अधिकार की गारण्टी देता है।
(ख) यह शासन की विभिन्न शाखाओं की शक्तियों के अलग-अलग क्षेत्र का रेखांकन | करता है।
(ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आएँ।
(घ) यह कुछ साझे मूल्यों की अभिव्यक्ति करता है।
उत्तर-
(ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आएँ।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा कथन इस बात की एक बेहतर दलील है कि संविधान की प्रमाणिकता संसद से ज्यादा है?
(क) संसद के अस्तित्व में आने से कहीं पहले संविधान बनाया जा चुका था।
(ख) संविधान के निर्माता :संसद के सदस्यों से कहीं ज्यादा बड़े नेता थे।
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनाई जाए और इसे कौन-कौन सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
(घ) संसद, संविधान का संशोधन नहीं कर सकती।
उत्तर-
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनाई जाए और इसे कौन-कौन सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।

प्रश्न 3.
बताएँ कि संविधान के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत-
(क) सरकार के गठन और उसकी शक्तियों के बारे में संविधान एक लिखित दस्तावेज है।
(ख) संविधान सिर्फ लोकतांत्रिक देशों में होता है और उसकी जरूरत ऐसे ही देशों में होती है।
(ग) संविधान के कानूनी दस्तावेज हैं और आदर्शों तथा मूल्यों से इसका कोई सरोकार नहीं।
(घ) संविधान एक नागरिक को नई पहचान देता है।

उत्तर-
(क) सही, (ख) गलत, (ग) सही, (घ) सही।

प्रश्न 4.
बताएँ कि भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में निम्नलिखित अनुमान सहीं हैं या नहीं? अपने उत्तर का कारण बताएँ-
(क) संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
(ख) संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया क्योंकि उस समय नेताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।
(ग) संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है।
उत्तर-
(क) भारतीय संविधान की रचना करने वाली संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच से नहीं हुआ था, किन्तु उसमें अधिक-से-अधिक वर्ग के लोगों को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया था। भारत के विभाजन के बाद संविधान सभा के सदस्यों में कांग्रेस के सर्वाधिक 82 प्रतिशत सदस्य थे। ये सदस्य सभी विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते थे। अतः यह कहना किसी भी दृष्टि से सही नहीं होगा कि संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई और इसका निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।

(ख) यह कथन भी सही नहीं है कि संविधान सभा के सदस्यों में प्रत्येक विषय पर आम सहमति थी और संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया। भारतीय संविधान का केवल एक विषय ऐसा था जिस पर संविधान सभा के सदस्यों में आम सहमति थी और वह विषय था-“मताधिकार किसे प्राप्त हो?” इस विषय के अतिरिक्त संविधान के सभी विषयों पर संविधान सभा के सदस्यों के बीच गहन विचार-विमर्श और वाद-विवाद हुआ।

संविधान के विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श के लिए आठ कमेटियों का गठन किया गया था। सामान्यतया पं० जवाहरलाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुलकलाम आजाद तथा डॉ० भीमराव अम्बेडकर इन कमेटियों के अध्यक्ष पद पर पदस्थ थे। ये सभी लोग ऐसे विचारक थे जिनके विचार विभिन्न विषयों पर कभी एकसमान नहीं होते थे। डॉ० अम्बेडकर तो कांग्रेस और महात्मा गांधी के कट्टर विरोधी थे। उनका आरोप था कि कांग्रेस और महात्मा गांधी ने कभी अनुसूचित जातियों की उन्नति के लिए गम्भीर प्रयास नहीं किए। पं० जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच भी अनेक विषयों पर गम्भीर मतभेद थे। किन्तु फिर भी सबने एक साथ मिलकर काम किया। कई विषयों पर फैसले मत-विभाजन द्वारा भी लिए गए। अतः यह कहना गलत है कि संविधान सभा के सदस्यों में प्रत्येक विषय पर आम सहमति थी।
यह कथन भी गलत है कि संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया। निम्नांकित महत्त्वपूर्ण और बड़े फैसले संविधान सभा द्वारा ही लिए गए-

  • भारत में शासन प्रणाली केन्द्रीकृत होनी चाहिए अथवा विकेन्द्रीकृत।
  • केन्द्र व राज्यों के बीच कैसे सम्बन्ध होने चाहिए।
  • राज्यों के बीच कैसे सम्बन्ध होने चाहिए।
  • न्यायपालिका की क्या शक्तियाँ होनी चाहिए।
  • क्या संविधान को सम्पत्ति के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। उपर्युक्त के अतिरिक्त अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण और बड़े फैसले संविधान सभा द्वारा ही लिए गए जो भारत की शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था का मूल आधार हैं।

(ग) यह कथन भी गलत है कि भारतीय संविधान मौलिक नहीं है, क्योकि इसकी अधिकांश भाग विश्व के अन्य देशों के संविधान से ग्रहण किया गया है। सही अर्थों में संविधान सभा के सदस्यों ने अन्य देशों की संवैधानिक व्यवस्थाओं के स्वस्थ प्रावधानों को लेने में कोई संकोच नहीं किया। किन्तु इसे नकल करने की मानसिकता भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने ग्रहण किए गए प्रावधानों को अपने देश की व्यवस्थाओं के अनुकूल बना लिया। अतः भारतीय संविधान की मौलिकता पर कोई प्रश्न चिह्न लगाना नितान्त गलत है।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें-
(क) संविधान का निर्माण विश्वसनीय नेताओं द्वारा हुआ। इसके लिए जनता के मन में आदर था।
(ख) संविधान ने शक्तियों का बँटवारा इस तरह किया कि इसमें उलट-फेर मुश्किल है।
(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है।
उत्तर-
(क) संविधान की रचना उस संविधान सभा द्वारा की गई जिसके सदस्यों में जनता का अटूट विश्वास था। संविधान सभा के अधिकांश बड़े नेताओं ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया था। देश की तत्कालीन जनता इस तथ्य से भली-भाँति परिचित थी कि इन बड़े नेताओं द्वारा किए गए अथक संघर्ष और परिश्रम के परिणामस्वरूप ही देश को आजादी प्राप्त हुई है। अतः सभी नेताओं के प्रति हृदय में विश्वास होना स्वाभाविक बात थी। ये नेता भारतीय समाज के सभी अंगों, सभी जातियों और समुदायों, सभी धर्मों का प्रतिनिधित्व करते थे। संविधान सभा के सदस्य के रूप में इन नेताओं ने संविधान की रचना करते समय जनता की आशाओं और आकांक्षाओं का पूरा ध्यान रखा। इसीलिए जनता के मन में इन नेताओं के प्रति आदर को भाव था।

(ख) संविधान सभा ने संविधान की रचना करते समय विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों पर बँटवारा इस प्रकार किया ताकि सरकार के तीनों अंग अपना-अपना कार्य सुचारु रूप से कर सकें। तीनों अंगों के बीच शक्तियों के वितरण की व्यवस्था करते समय संविधान निर्माताओं ने ‘नियंत्रण एवं सन्तुलन’ (Checks and Balances) के सिद्धान्त को अपनी कार्यविधि का आधार बनाया है। तीनों में से कोई भी अंग एक-दूसरे के कार्य में किसी प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप नहीं कर सकता। कार्यपालिका की सम्पूर्ण कार्यप्रणाली पर संसद का नियन्त्रण रहता है। न्यायिक पुनरावलोकन की प्रक्रिया से संसद एवं मन्त्रिमण्डल के कार्यों पर टीका-टिप्पणी की जा सकती है। संविधान-निर्माताओं ने ऐसा प्रावधान किया है कि कोई भी अंग अपने स्वार्थ के लिए संविधान को नष्ट नहीं कर सकता।

(ग) संविधान सभा द्वारा बनाया गया भारत का संविधान देश की जनता की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप है। संविधान का कार्य यही है कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करे जिससे वह जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सके। देश की जनता के कल्याण के लिए जहाँ भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है, वहीं राज्य नीति के निदेशक सिद्धान्तों का भी प्रावधान किया गया है। इन सिद्धान्तों का उद्देश्य समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामाजिक, कानूनी और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना है। मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निदेशक सिद्धान्तों के अतिरिक्त भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, वयस्क मताधिकार, अनुसूचित जातियों व जनजातियों के कल्याण के प्रति विशेष ध्यान रखा गया है। देश में निवास कर रहे प्रत्येक धर्म के लोगों को अपने-अपने धर्म पर चलने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। देश के प्रत्येक नागरिक को कानून के सम्मुख समानता का अधिकार प्राप्त है। प्रत्येक नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, सभा और सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता तथा संघ और समुदाय बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस प्रकार भारत का संविधान देश की जनता की आशाओं व आकांक्षाओं के अनुरूप है।

प्रश्न 6.
किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो, तो क्या होगा?
उत्तर-
प्रत्येक देश के संविधान में ऐसी संस्थाओं का प्रावधान किया जाता है जो देश का शासन चलाने में सरकार की सहायता करती हैं। इन संस्थाओं को कुछ शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ भी सौंपी जाती हैं और यह अपेक्षा की जाती है कि ये संस्थाएँ सीमा में रहकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करें और जिम्मेदारियों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करें। यदि कोई अपनी निर्धारित शक्ति से बाहर जाकर अपने कार्य का संचालन करती है तो यह माना जाता है कि वह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रही है। और संविधान को नष्ट कर रही है। इसीलिए प्रत्येक देश के संविधान में संस्थाओं के गठन के साथ ही उनकी शक्तियों और सीमाओं का विवेचन स्पष्ट रूप से कर दिया जाता है ताकि संस्थाएँ शक्तियों के पालन में तानाशाह न बन जाएँ। इस व्यवस्था को न्यायसंगत बनाने के लिए यह भी आवश्यक है कि संविधान में प्रत्येक संस्था को प्रदान की गई शक्तियों का सीमांकन इस प्रकार किया जाए कि कोई भी संस्था संविधान को नष्ट करने का प्रयास न कर सके। संविधान की रूपरेखा बनाते समय शक्तियों का बँटवारा इतनी बुद्धिमत्ता से किया जाना चाहिए कि कोई भी संस्था एकाधिकार स्थापित न कर सके। ऐसा करने के लिए यह भी आवश्यक है कि शक्तियों का बँटवारा विभिन्न संस्थाओं के बीच उनकी जिम्मेदारियों को देखकर किया जाए।

उदाहरणार्थ, भारत के संविधान में शक्तियों का विभाजन विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच किया गया है, साथ ही निर्वाचन आयोग जैसी स्वतन्त्र संस्था को शक्तियाँ व जिम्मेदारियाँ अलग से सौंपी गई हैं। केन्द्र और राज्यों के बीच भी शक्तियों का निर्धारण किया गया है। इस शक्ति-सीमांकन से यह निश्चित हो जाता है कि यदि कोई संस्था शक्तियों का गलत उपयोग करके संवैधानिक व्यवस्थाओं का हनन करने का प्रयास करती है तो अन्य संस्थाएँ उसे ऐसा करने से रोक सकती हैं। भारतीय संविधान में नियंत्रण व सन्तुलन’ (Checks and Balances) के सिद्धान्त का प्रतिपादन शक्तियों के सीमांकन के लिए ही किया गया है। यदि विधायिका कोई ऐसा कानून बनाती है। जो देश की जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करता हो तो न्यायपालिका ऐसे कानून को अमल में लाने पर रोक लगा सकती है और कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकती है। आपात्काल के दौरान बनाए गए अनेक कानूनों को उच्चतम न्यायालय द्वारा बाद में असंवैधानिक घोषित किया गया। कार्यपालिका की शक्तियों को सीमा में बाँधने के लिए विधायिका उस पर अनेक प्रकार के अंकुश लगाती है। संसद में सदस्य प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव आदि प्रस्तुत कर कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखते हैं। इस प्रकार विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का सीमांकन संविधान की रचना करते समय ही कर दिया जाता है और ये सभी संस्थाएँ अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र रूप से अपनी सीमाओं का ध्यान रखते हुए कार्य करती रहती हैं।

प्रश्न 7.
शासकों की सीमा का निर्धारण संविधान के लिए क्यों जरूरी है? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे?
उत्तर-
संविधान का एक कांम यह है कि वह सरकार या शासकों द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किए। जाने वाले कानूनों पर कुछ सीमाएँ लगाए। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार उनका कभी उल्लंघन नहीं कर सकती।

संविधान द्वारा सरकार या शासकों की शक्तियों पर सीमाएँ लगाना इसलिए आवश्यक है ताकि वे अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न कर सकें और जनता के हितों को नुकसान न पहुँचा सकें। संसद नागरिकों के लिए कानून बनाती है, कार्यपालिका कानूनों को जनता द्वारा अमल में लाने का कार्य करती है और यदि कोई कानून जनता की भावनाओं और हितों के अनुरूप नहीं होता तो न्यायपालिका ऐसे कानून को अमल में लाने से रोक देती है अथवा उस पर प्रतिबन्ध लगा देती है।

भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए संसद को न्यायपालिका ने यह निर्देश दे दिया है कि संसद संविधान के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती। संविधान सरकार अथवा शासकों की शक्तियों को कई प्रकार से सीमा में बाँधता है। उदाहरणार्थ, संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की विवेचना की गई है। इन मौलिक अधिकारों का हनन कोई भी सरकार नहीं कर सकती। नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना किसी कारण के बन्दी नहीं बनाया जा सकता। यही सरकार अथवा शासक की। शक्तियों पर एक सीमा या बन्धन कहलाती है।

देश का प्रत्येक नागरिक अपनी रुचि और इच्छा के अनुसार कोई भी व्यवसाय करने के लिए स्वतन्त्र है। इस स्वतन्त्रता पर सरकार कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती। नागरिकों को मूल रूप से जो स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं; जैसे-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, देश के किसी भी भाग में स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने की स्वतन्त्रता, संगठन बनाने की स्वतन्त्रता आदि पर सरकार सामान्य परिस्थिति में कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती। कोई भी सरकार स्वयं किसी व्यक्ति से बेगार नहीं ले सकती और न ही किसी व्यक्ति को यह छूट दे सकती है कि वह किसी भी रूप में किसी व्यक्ति का शोषण करे अथवा उसे बन्धुआ मजदूर बनाकर रखे। इस प्रकार सरकार के कार्यों पर सीमाएँ लगाई जाती हैं। अधिकांश देशों के संविधानों में कुछ मौलिक अधिकारों का प्रावधान अवश्य किया जाता है। अधिकारों के बिना मनुष्य का जीवन निरर्थक है।

प्रश्न 8.
जब-जापान का संविधान बना तब दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था। जापान के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान होना असम्भव था, जो अमेरिकी सेना को पसन्द न हो। क्या आपको लगता है कि संविधान को इस तरह बनाने में कोई कठिनाई है? भारत में संविधान बनाने का अनुभव किस तरह इससे अलग है?
उत्तर-
जापान का संविधान उस समय बनाया गया था जब वह अमेरिकी सेना के कब्जे में था। अतः जापान के संविधान में की गई व्यवस्थाएँ अमेरिकी सरकार की इच्छाओं को ध्यान में रखकर की गई थीं। जापान तत्कालीन परिस्थितियों में अमेरिकी सरकार की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकता था। इसका मूल कारण यह था कि अधिकांश देशों के संविधान लिखित थे। इन लिखित संविधानों में राज्य से सम्बद्ध विषयों पर अनेक प्रावधान किए जाते थे जो यह निर्देशित करते थे कि राज्य किन सिद्धान्तों का पालन करते हुए सरकार चलाएगा। सरकार कौन-सी विचारधारा अपनाएगी। किन्तु जब किसी देश पर कोई दूसरा देश कब्जा कर लेता है तो उस देश के संविधान में शासक देश की इच्छाओं के विपरीत कोई प्रावधान नहीं किया जा सकता। अतः यहाँ निष्कर्ष रूप में कहना होगा कि जापान के तत्कालीन संविधान में अमेरिकी शासकों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया होगा।

भारत की स्थिति जापान की स्थिति के ठीक विपरीत थी। भारत अपनी स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए अन्तिम लड़ाई लड़ रहा था और यह लगभग निश्चित हो चुका था देश को आजादी अवश्य प्राप्त होगी। भारतीय संविधान की रचना पर औपचारिक रूप से एक संविधान सभा ने दिसम्बर, 1946 में विचार करना शूरू किया था; अर्थात् आजादी प्राप्त होने से केवल नौ माह पूर्व भारत के लिए एक संविधान बनाने की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी थी। भारत पर अंग्रेजों का नियन्त्रण लगभग समाप्ति के कगार पर था; अतः भारतीय संविधान में अंग्रेजों के दबाव के कारण कोई प्रावधान स्वीकार करना असम्भव था।

भारत ने लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था को अपनाया। उसने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दिनों में जिन समस्याओं का अनुभव किया था, उनके समाधान का मार्ग ढूंढ़ने का प्रयास किया। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि भारतीय संविधान बनाने वाली संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के लम्बे समय तक चले संघर्ष से काफी प्रेरणा ली। संविधान सभा के सदस्यों को समाज के सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त था। इसीलिए देश में भारतीय संविधान को अत्यधिक सम्मान प्राप्त हुआ। संविधान की प्रस्तावना के प्रारम्भिक शब्द हैं “हम, भारत के लोग ……….|” ये शब्द यह घोषित करते हैं कि भारत के लोग संविधान के निर्माता हैं। यह ब्रिटेन की संसद का उपहार नहीं है। इसे भारत के लोगों ने अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से पारित किया था। संविधान सभा में सभी प्रकार के विचारों वाले लोग थे। इस संविधान सभा का गठन उन लोगों के द्वारा हुआ था जिनके प्रति लोगों की अत्यधिक विश्वसनीयता थी। इस प्रकार भारत में संविधान बनाने का अनुभव बिल्कुल अलग है।

प्रश्न 9.
रजत ने अपने शिक्षक से पूछा–“संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज है और इस कारण पुराना पड़ चुका है। किसी ने इसको लागू करते समय मुझसे राय नहीं माँगी। यह इतनी कठिन भाषा में लिखा हुआ है कि मैं इसे समझ नहीं सकता। आप मुझे बताएँ कि मैं इस दस्तावेज की बातों का पालन क्यों करू?” अगर आप शिक्षक होते तो रजत को क्या उत्तर देते?
उत्तर-
यदि मैं रजत का शिक्षक होता तो उसके प्रश्न का संक्षेप में निम्नलिखित उत्तर देता भारत का संविधान एक गतिशील जीवन्त दस्तावेज है। भारत ने जो संविधान अपनाया है, वह 57 वर्षों से भी अधिक समय से अस्तित्व में है। इस अवधि में हम भारत के लोग अनेक दबावों और तनावों से गुजरे हैं। जून, 1975 में आपात्काल की घोषणा एक दुःखद घटना थी। ऐसी घटना एक लोकतान्त्रिक देश में कभी नहीं घटनी चाहिए थी। संसद सर्वोच्च है या न्यायपालिका-इस विषय पर एक तीखा विवाद उठाा था। किन्तु समय के साथ-साथ कठिन परिस्थितियाँ अपने आप सुलझती चली गईं। संविधान आज भी सजीव और सशक्त है।”

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था। तब से लेकर सन् 2007 तक इसमें 93 संशोधन किए जा चुके हैं। इतनी बड़ी संख्या में संशोधनों के बाद भी यह संविधान 57 वर्षों से अधिक समय से अस्तित्व में है। अतः इस संविधान को 50 साल से भी अधिक पुरानी दस्तावेज कहना गलत है। इस संविधान को बीते दिनों की पुस्तक इसलिए भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह कठोर होने के साथ-साथ पर्याप्त रूप से लचीला भी है। देश में सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने के लिए इसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है। संविधान में प्रस्तुत किए गए अधिकांश प्रावधानों की प्रकृति इस प्रकार की है कि उन्हें कभी पुराना नहीं कहा जा सकता।

इस संविधान की रचना उस संविधान सभा द्वारा की गई है जिसमें 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के प्रतिनिधि थे और कांग्रेस देश के सभी वर्गों, धर्मों, विचारधाराओं और जातियों का प्रतिनिधित्व करती थी। ये सभी व्यक्ति अत्यधिक योग्य और अनुभवी थे। अतः यह कथन भी तर्कसंगत नहीं है कि संविधान निर्माताओं द्वारा आपसे राय नहीं ली गई। जो संविधान सभा संविधान निर्माण का कार्य कर रही थी—वह सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व कर रही थी-अर्थात् वह आपका भी प्रतिनिधित्व कर रही थी। भारतीय संविधान का प्रारूप देश की बदलती परिस्थितियों के कारण पैदा होने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने में पूरी तरह से सक्षम है।

प्रश्न 10.
संविधान के क्रिया-कलाप से जुड़े अनुभवों को लेकर एक चर्चा में तीन वक्ताओं ने तीन अलग-अलग पक्ष दिए-
(क) हरबंस – भारतीय संविधान एक लोकतान्त्रिक ढाँचा प्रदान करने में सफल रहा है।
(ख) नेहा – संविधान में स्वतन्त्रता, समता और भाईचारा सुनिश्चित करने का विधिवत् वादा है।
चूंकि यह वादा पूरा नहीं हुआ इसलिए संविधान असफल है।
(ग) नाजिमा – संविधान असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया।
क्या आप इनमें से किसी पक्ष से सहमत हैं, यदि हाँ, तो क्यों? यदि नहीं, तो आप अपना पक्ष बताएँ।
उत्तर-
(क) हरबंस का कथन सही है। भारत का संविधान एक लोकतान्त्रिक ढाँचा देने में सफल रहा है। संविधान में यह घोषणा की गई है कि प्रभुत्व शक्ति’ जनता में निहित है। संविधान की प्रस्तावना के प्रारम्भिक शब्द हैं- “हम, भारत के लोग “……….।” ये शब्द यह उद्घोषणा करते हैं। कि भारत के लोग’ संविधान के निर्माता हैं। लोकतन्त्र का अर्थ है-थोड़े-थोड़े समय के बाद शासकों का चयन। नए संविधान के अन्तर्गत अब तक देश में चौदह आम चुनाव कराए जा चुके हैं। भारत एक गणतन्त्र भी है। यहाँ किसी पुश्तैनी शासक को मान्यता नहीं दी गई है। राष्ट्रपति भारतीय गणतन्त्र का मुखिया है जिसे पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिए चुना जाता है।

भारत में प्रत्येक वयस्क व्यक्ति मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार है, बशर्ते वह पागल न हो और अपराध या अवैध गतिविधियों के कारण अयोग्य घोषित न किया गया हो। संविधान द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, सभा और सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता तथा संघ और समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। भारतीय संविधान का उदारवादी लोकतान्त्रिक स्वरूप इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि यह भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को अवैधानिक गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करता है। सभी नागरिकों को प्राप्त अन्य अधिकारों में धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार और कानून के समक्ष समानता का अधिकार भी शामिल है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सरकारी कार्यालयों या उपक्रमों में रोजगार देने के लिए उपयुक्त व्यवस्थाएँ की गई हैं। उनके लिए लोकसभा और राज्य विधानमण्डलों में भी सीटें आरक्षित की गई हैं। सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को भी आरक्षण प्रदान किया गया है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता को बनाए रखने के लिए मौलिक अधिकार, न्यायालय की स्वतन्त्रता, विधि का शासन आदि को अपनाया गया है। इस प्रकार भारत में लोकतन्त्र की नींव रखी गई है और इसे शक्तिशाली बनाने के हर सम्भव प्रयास किए गए हैं। अत: हरबंस को कथन पूरी तरह सही है कि भारत का संविधान एक लोकतान्त्रिक ढाँचा देने में सफल रहा है।

(ख) नेहा का कथन भी सही है। उसका कथन है कि संविधान में स्वतन्त्रता, समानता और भाईचारा सुनिश्चित करने का वादा किया है, किन्तु वादा पूरा नहीं हुआ है इसलिए संविधान असफल है। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार देश की सरकार नागरिकों की स्वतन्त्रता पर विशेष अवसरों पर प्रतिबन्ध लगा सकती है। समानता के अधिकार का क्रियान्वयन आज भी सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। समाज के दबे-कुचले वर्ग को आज भी शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। कृषि-भूमि के अधिकांश भाग पर दबंग और सम्पन्न लोगों का कब्जा है। ग्रामीण लोगों को आज भी इनके खेतों पर मजदूरों के रूप में कठोर परिश्रम करना पड़ता है और मजदूरों को पारिश्रमिक के रूप में मिलती हैं गालियाँ, मारपीट और अभद्र व्यवहार। देश में भाईचारे का घोर अभाव है। देश के विभिन्न भागों में होने वाले साम्प्रदायिक दंगे इस तथ्य के स्पष्ट प्रमाण हैं। देश के नेता अपने वोटों के लिए साम्प्रदायिक दंगे कराने की साजिश रचते हैं और देश को मार-काट की आग में झोंक देते हैं। अत: उपर्युक्त संक्षिप्त विवेचन के आधार पर हम नेहा के कथन को पूरी तरह सही मानते हैं।

(ग) नाजिमा का कथन है कि संविधान स्वयं असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया है। अनेक बार हमारे नेताओं ने संविधान के मूल स्वरूप को बदलने का प्रयास तक किया है, किन्तु सजग न्यायपालिका के कारण वह ऐसा करने में सफल नहीं किया जाता; जैसे–नागरिकों को काम का अधिकार, सबको शिक्षा का अधिकार, महिला और पुरुष को समान काम के लिए समान वेतन के प्रावधानों के लिए आज भी जनता को संघर्ष करना पड़ रहा है। देश के बहुत बड़े वर्ग को दो वक्त का भोजन और पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। इस वर्ग के पास तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं हैं। इन सारी स्थितियों के लिए संविधान नहीं, हम स्वयं जिम्मेदार हैं। देश के बड़े नेता इस निम्न वर्ग को मात्र अपने वोट का साधन समझते हैं, उसकी सुख-सुविधाओं और भू-प्यास से उनका कोई सरोकार नहीं है।

किन्तु नाजिमा के कथन को शत-प्रतिशत सही मान लेना न्यायसंगत नहीं होगा, क्योंकि संविधान के प्रावधानों के अन्तर्गत देश में हो रहे विकास की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा भारत में विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। भारत सभी विकासशील देशों में अग्रणी है। विश्व राजनीति में उसकी आवाज को सुना जाता है। निचले स्तर पर भी पर्याप्त विकास हुआ है, किन्तु विकास का लाभ समाज के कमजोर वर्गों तक नहीं पहुंच पा रहा है। अतः इस दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान कब लागू हुआ ?
या
भारत में गणराज्य की स्थापना कब हुई?
(क) 26 जनवरी, 1949 ई० को
(ख) 26 जनवरी, 1950 ई० को
(ग) 30 अक्टूबर, 1950 ई० को
(घ) 20 नवम्बर, 1950 ई० को
उत्तर :
(ख) 26 जनवरी, 1950 ई० को।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान का स्वरूप है –
(क) संघात्मक
(ख) एकात्मक
(ग) अर्द्ध-संघात्मक
(घ) एकात्मक व संघात्मक दोनों
उत्तर :
(घ) एकात्मक व संघात्मक दोनों।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान का निर्माण किसने किया?
(क) संविधान सभा
(ख) डॉ० बी० आर० अम्बेडकर
(ग) सी० राजगोपालाचारी
(घ) पं० जवाहरलाल नेहरू
उत्तर :
(क) संविधान सभा।

प्रश्न 4.
संविधान सभा की प्रथम बैठक कब आयोजित की गई?
(क) 9 दिसम्बर, 1946 को
(ख) 7 दिसम्बर, 1947 को
(ग) 14 अगस्त, 1947 को।
(घ) 15 अगस्त, 1947 को
उत्तर :
(क) 9 दिसम्बर, 1946 को।

प्रश्न 5.
भारत विभाजन के परिणामस्वरूप संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर कितनी रह गई?
(क) 260
(ख) 271
(ग) 299
(घ) 265
उत्तर :
(ग) 299.

प्रश्न 6.
संविधान सभा में अनुसूचित वर्ग के कितने सदस्य थे?
(क) 34
(ख) 36
(ग) 26
(घ) 42
उत्तर :
(ग) 26.

प्रश्न 7.
संविधान सभा में किस राजनीतिक दल का वर्चस्व था?
(क) मुस्लिम लीग
(ख) हिन्दू महासभा
(ग) कांग्रेस
(घ) जनसंघ
उत्तर :
(ग) कांग्रेस।

प्रश्न 8.
संविधान के विषयों पर विचार-विमर्श हेतु कितनी समितियों का गठन किया गया?
(क) 7
(ख) 6
(ग) 8
(घ) 10
उत्तर :
(ग) 8.

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान की एक सरल परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
संविधान कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धान्तों का समूह है जिसके आधार पर राज्य का निर्माण किया जाता है और उसका शासन चलाया जाता है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान का निर्माण किसके द्वारा हुआ ?
उत्तर :
भारतीय संविधान का निर्माण संविधान सभा के द्वारा किया गया।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान सभा का गठन कब हुआ ?
उत्तर :
भारतीय संविधान सभा का गठन 1946 ई० में किया गया था।

प्रश्न 4.
संविधान सभा के अध्यक्ष का नाम लिखिए।
उत्तर :
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे।

प्रश्न 5.
प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर :
प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ० भीमराव अम्बेडकर थे।

प्रश्न 6.
भारत का संविधान कितने समय में तैयार हुआ ?
उत्तर :
भारतीय संविधान 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन की अवधि में बनकर तैयार हुआ।

प्रश्न 7.
भारत के संविधान में कितने अनुच्छेद, अनुसूचियाँ और परिशिष्ट हैं ?
उत्तर :
भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 9 परिशिष्ट हैं।

प्रश्न 8.
भारतीय संविधान के दो प्रमुख स्रोत क्या हैं ?
उत्तर :
भारतीय संविधान के दो प्रमुख स्रोत हैं –

  1. अमेरिका का संविधान तथा
  2. ऑस्ट्रेलिया का संविधान।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भारतीय संविधान की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत तथा लिखित संविधान है
  2. संविधान में स्वतन्त्र न्यायपालिका का प्रावधान किया गया है।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान के दो संघात्मक तत्त्व लिखिए।
उत्तर :
भारतीय संविधान के दो संघात्मक तत्त्व निम्नलिखित हैं –

  1. संविधान को सर्वोच्चता प्रदान की गयी है।
  2. केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच अधिकारों तथा कार्यों को स्पष्ट विभाजन किया गया है।

प्रश्न 11.
भारतीय संविधान के दो एकात्मक तत्त्व लिखिए।
उत्तर :
भारतीय संविधान के दो एकात्मक तत्त्व निम्नलिखित हैं –

  1. संविधान में इकहरी नागरिकता का प्रावधान किया गया है।
  2. संविधान द्वारा एक ही न्याय-व्यवस्था की स्थापना की गयी है।

प्रश्न 12.
संविधान सभा का गठन किस मिशन के अनुसार किया गया था?
उत्तर :
संविधान सभा का गठन सन् 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार किया गया था।

प्रश्न 13.
संविधान सभा के लिए सदस्यों की संख्या कितनी निर्धारित की गई थी?
उत्तर :
जिस समय संविधान सभा के गठन का कार्य हुआ उस समय तक भारत का विभाजन नहीं हुआ था; अतः अविभाजित भारत के लिए संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 385 निर्धारित की गई थी।

प्रश्न 14.
अविभाजित भारत में संविधान सभा के लिए सदस्यों की संख्या का चयन कितना-कितना निर्धारित किया गया था?
उत्तर :
अविभाजित भारत में संविधान सभा के सदस्यों के चयन के लिए प्रान्तों को 292 सदस्यों का चुनाव करने का निर्देश दिया गया था और देसी रियासतों को 93 स्थान आवंटित किए गए थे।

प्रश्न 15.
भारत के विभाजन के पश्चात् संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर कितनी रह गई?
उत्तर :
भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई।

प्रश्न 16.
संविधान सभा ने औपचारिक रूप से भारतीय संविधान की रचना किस अवधि में की?
उत्तर :
संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान औपचारिक रूप से दिसम्बर, 1946 और नवम्बर, 1949 के मध्य बनाया गया।

प्रश्न 17.
संविधान सभा की पहली बैठक किस तिथि को हुई थी?
उत्तर :
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। इस बैठक का आयोजन अविभाजित भारत में किया गया था।

प्रश्न 18.
विभाजित भारत में संविधान सभा की बैठक किस तिथि को हुई?
उत्तर :
14 अगस्त, 1947 को विभाजित भारत में संविधान सभा की बैठक हुई।

प्रश्न 19.
संविधान सभा का चुनाव किस प्रकार हुआ?
उत्तर :
सन् 1935 में स्थापित प्रान्तीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव हुआ।

प्रश्न 20.
26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा की आयोजित बैठक में कितने सदस्य थे?
उत्तर :
26 नवम्बर, 1949 को आयोजित बैठक में कुल 284 सदस्य उपस्थित थे। इन सदस्यों ने ही अन्तिम रूप से पारित संविधान पर अपने हस्ताक्षर किए।

प्रश्न 21.
संविधान सभा में अनुसूचित वर्गों के कितने सदस्य थे?
उत्तर :
संविधान सभा में अनुसूचित वर्गों के 26 सदस्य थे।

प्रश्न 22.
संविधान सभा ने कितनी अवधि और कितनी बैठकों में संविधान पारित किया?
उत्तर :
दो वर्ष और ग्यारह माह की अवधि में आयोजित 166 बैठकों में संविधान सभा ने भारतीय संविधान को अन्तिम रूप दिया।

प्रश्न 23.
संविधान सभा ने संविधान की रचना के लिए कितनी समितियों का गठन किया था?
उत्तर :
संविधान सभा ने भारतीय संविधान की रचना के लिए आठ समितियों का गठन किया था।

प्रश्न 24.
संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव किस नेता द्वारा किस सन में प्रस्तुत किया गया था?
उत्तर :
संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव सन् 1946 में पं० जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किया गया था।

प्रश्न 25.
किस देश का संविधान लिखित दस्तावेज के रूप में नहीं है?
उत्तर :
इंग्लैण्ड के पास ऐसा कोई लिखित दस्तावेज नहीं है जिसे संविधान कही जा सके। उसके पास दस्तावेजों और निर्णयों की एक सूची है जिसे सामूहिक रूप से संविधान कहा जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान सभा की रचना ब्रिटिश मंत्रिमण्डल की एक समिति कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों के अनुरूप हुई थी। ये प्रस्ताव क्या थे? संक्षेप में विवेचना कीजिए।
उत्तर :
कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव निम्नांकित थे –

  1. प्रत्येक प्रान्त, देशी रियासत या रियासतों के समूह को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें दी गई थीं। सामान्य तौर पर दस लाख की जनसंख्या पर एक सीट का अनुपात रखा गया था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार के प्रत्यक्ष शासन वाले प्रान्तों को 292 सदस्य तथा देशी रियासतों के न्यूनतम 93 सीटें आवंटित की गई थीं।
  2. प्रत्येक प्रान्त की सीटों को दो प्रमुख समुदायों-मुसलमान और सामान्य में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया था। पंजाब में यह बँटवारा सिख, मुसलमान और सामान्य के रूप में किया गया था।
  3. प्रान्तीय विधान समस्याओं में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने अपने प्रतिनिधियों को चुना और इसके लिए उन्होंने समानुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल संक्रमण मत पद्धति का प्रयोग किया।
  4. देशी रियासतों के प्रतिनिधित्व के चुनाव का तरीका उनके परामर्श से तय किया गया।

प्रश्न 2.
‘संविधान की प्रस्तावना’ का क्या अर्थ है ? इसका महत्त्व लिखिए।
उत्तर :
संविधान की प्रस्तावना किसी पुस्तक की भूमिका की तरह है। यह संविधान की भावना को परिलक्षित करती है। यह उस खिड़की की भॉति है जिसमें झाँककर संविधान निर्माताओं के मन्तव्य को पढ़ा तथा समझा जा सकता है। दूसरे शब्दों में, प्रस्तावना में संविधान के आधारभूत आदर्शों तथा सिद्धान्तों की चर्चा की गयी है। यह उल्लेखनीय है कि प्रस्तावना संविधान का आरम्भिक अंग होते हुए भी कानूनी तौर पर उसका भाग नहीं होती। यद्यपि प्रस्तावना की अवहेलना होती है तो उसकी रक्षा के लिए हम अदालत की शरण में नहीं जा सकते, तथापि यह बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि –

  1. यह संकेत करती है कि देश की सरकार कैसे चलायी जाए।
  2. इसमें सरकार के सम्मुख नये समाज के निर्माण हेतु उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया है।
  3. इससे यह पता चलता है कि संविधान देश में किस प्रकार की शासन-व्यवस्था स्थापित करना चाहता है।

प्रश्न 3.
सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न संविधान से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न संविधान से अभिप्राय यह है कि भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य है, अर्थात् भारत अपने आन्तरिक तथा बाह्य मामलों में स्वतन्त्र है। किसी बाह्य सत्ता को उस पर कोई नियन्त्रण नहीं है तथा भारत राज्य की सभी शक्तियाँ संघ के पास हैं। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत अपनी इच्छानुसार आचरण करने के लिए स्वतन्त्र है तथा वह किसी भी विदेशी समझौते या सन्धि को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

दीर्घ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
या
भारतीय संविधान के निर्माण में विभिन्न स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भारतीय संविधान का निर्माण बहुत सोच-समझकर और विचार-विमर्श के उपरान्त किया गया। भारतीय संविधान में विश्व के संविधान में निहित अनेक महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है। भारतीय संविधान के अधिकांश (लगभग 200) प्रावधान 1935 ई० के अधिनियम से लिये गये हैं। इसलिए इसको ‘1935 ई० के अधिनियम की कार्बन कॉपी’ भी कहा जाता है। भारतीय संविधान में संसदात्मक प्रणाली को ब्रिटेन से; संविधान की प्रस्तावना, नागरिकों के मूल अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना, न्यायिक पुनरावलोकन आदि अमेरिका के संविधान से; राज्य के नीति-निदेशक तत्त्व, राष्ट्रपति का निर्वाचक मण्डल द्वारा निर्वाचन, राज्यसभा में योग्यतम व्यक्तियों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत करना आदि आयरलैण्ड के संविधान से; संघात्मक शासन-व्यवस्था को कनाडा के संविधान से; संविधान की प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची तथा केन्द्र व राज्यों के मध्य उत्पन्न होने वाले विवादों को तय करने की प्रणाली ऑस्ट्रेलिया के संविधान से; संविधान में संशोधन की प्रणाली दक्षिणी अफ्रीका के संविधान से; राष्ट्रपति को प्रदत्त आपातकालीन शक्तियों के कुछ प्रावधान जर्मनी के संविधान से; कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को जापान के संविधान से तथा संविधान में निहित मौलिक कर्तव्यों को रूस के संविधान से लिया गया है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में संशोधन किस प्रकार होता है ?
उत्तर :
भारत के संविधान निर्माताओं ने ऐसा संविधान बनाया है, जो देश की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित किया जा सके। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेदों को संशोधन के लिए निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –

(1) संसद के साधारण बहुमत द्वारा – संविधान के 22 अनुच्छेद ऐसे हैं जिनका संशोधन संसद उसी प्रक्रिया से कर सकती है, जिससे वह साधारण कानून को पारित करती है। इस प्रकार के कुछ अनुच्छेद हैं-नागरिक से सम्बन्धित प्रावधान, नये राज्यों की रचना तथा वर्तमान राज्यों का पुनर्गठन, राज्यों के द्वितीय सदनों का निर्माण तथा उन्मूलन।

(2) संसद के विशिष्ट बहुमत द्वारा – संविधान में संशोधन के लिए विधेयक संसद के किसी भी सदन में पहले प्रस्तुत किया जा सकता है और जब वह विधेयक प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के बहुमत से तथा सदन में उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है तो विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है और राष्ट्रपति उस पर स्वीकृति दे देता है।

(3) संसद के विशिष्ट बहुमत और विधानमण्डलों की स्वीकृति से – संविधान के कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं जिनमें संशोधन के लिए संसद के विशिष्ट बहुमत तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से विधेयक पारित हो जाना चाहिए तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए जाने से पूर्व उसे राज्यों के विधानमण्डलों में से कम-से-कम आधे विधानमण्डलों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है। ये अनुच्छेद हैं-राष्ट्रपति का चुनाव, केन्द्रीय कार्यपालिका की । शक्तियों की सीमा, राज्य की कार्यपालिका की शक्तियाँ, केन्द्र द्वारा शासित क्षेत्रों में उच्च न्यायालय की व्यवस्था और राज्यों के उच्च न्यायालय आदि।

उपर्युक्त संशोधन प्रक्रिया से यह स्पष्ट है कि भारतीय संविधान में लचीलापन तथा कठोरता दोनों तत्त्वों का अद्भुत सम्मिश्रण है। यही कारण है कि 26 जनवरी, 1950 ई० को संविधान लागू किये जाने के समय से लेकर दिसम्बर, 2005 ई० तक संविधान में 93 संशोधन हो चुके हैं।

प्रश्न 3.
“भारत का संविधान एक सन्तुलित दस्तावेज है।” इस कथन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर :
भारत का संविधान एक सन्तुलित दस्तावेज है। सरकार के तीन मुख्य अंग विधायिका कार्यपालिका तथा न्यायपालिका संसद, मंत्रिगण तथा सर्वोच्च न्यायालय और अन्य न्यायालयों को सौंपे गए हैं। साथ ही केंद्रीय मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। राष्ट्रपति सामान्यत: प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा भंग करते हैं। भारत में न्यायपालिका को विधायिता और कार्यपालिका के नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त रखा गया है। इस प्रकार सरकार का कोई भी अंग यह दावा नहीं कर सकता कि उसके पास सत्ता का असीकित अधिकार है।

संविधान ने विशिष्ट मामलों के समाधान के लिए कुछ स्वतंत्र प्राधिकरणों की स्थापना भी की है। भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण है। इस प्राधिकरण का मुख्य कार्य केंद्र व राज्यों की आय और व्यय की जाँच करना है। निर्वाचन आयोग की स्थापना भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के उद्देश्य से की गई है। संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करे। संघ लोक सेवा आयोग अखिल भारतीय सेमें भर्ती के लिए परीक्षाएँ आयोजित करता है। संविधान द्वारा राज्यों में पृथक रूप से लोक सेवा आयोगों की स्थापना की गई है।

उपर्युक्त संवैधानिक प्राधिकरण यह सुनिश्चित करते हैं कि शासन के विधायी और कार्यकारी अग पूरी तरह नियंत्रण में रहे ताकि शक्ति संतुलन बना रहे। इस प्रकार सशासन की कोई एक शाखा संविधान के लोकतान्त्रिक स्वरूप को नष्ट नहीं कर सकती।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान से आप क्या समझते हैं ? किसी देश के लिए इसकी आवश्यकता और महत्त्व का वर्णन कीजिए।
या
संविधान किसे कहते हैं ? किसी देश के लिए यह क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर :
संविधान शब्द अंग्रेजी के ‘constitution’ शब्द का ही हिन्दी रूप है। ‘कॉन्स्टीट्यूशन’ का शाब्दिक अर्थ है-‘गठन’। दैनिक बोलचाल में ‘गठन’ शब्द का अर्थ मनुष्य के शारीरिक ढाँचे के गठन से लिया जाता है, किन्तु नागरिकशास्त्र में कॉन्स्टीट्यूशन’ शब्द का अर्थ ‘राज्य के शारीरिक ढाँचे के गठन’ से लिया जाता है।

अन्य शब्दों में, राज्यों की शासन-व्यवस्था के ढाँचे का निर्धारण करने तथा उसके समुचित संचालन के लिए प्रत्येक राज्य में कुछ लिखित या अलिखित नियम होते हैं, जिनके अनुसार ही सरकार देश में शासन का कार्य चलाती है। इन नियमों को ही कानूनी भाषा में राज्य का संविधान (Constitution) कहा जाता है।

परन्तु यहाँ यह बात ध्यान देने की है कि राज्य द्वारा बनाये गये सभी नियमों व कानूनों के समूह को संविधान नहीं कहा जाता, वरन् संविधान के अन्तर्गत केवल वे नियम व कानून सम्मिलित होते हैं। जिनके द्वारा शासन के संगठन एवं उसके ढाँचे का निर्धारण किया जाता है और शासन के विभिन्न अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों का, उनके अधिकारों व कर्तव्यों का तथा शासन वे नागरिकों के मध्य के सम्बन्धों का निर्धारण किया जाता है।

संविधान की आवश्यकता तथा महत्त्व आधुनिक

लोकतन्त्रीय युग में, जब कि शासन-व्यवस्था गाँव के एक लेखपाल से लेकर राष्ट्रपति तक सैकड़ों सरकारी पदों में बिखरी हुई है, यह अत्यन्त आवश्यक है कि शासन-कार्य को ठीक प्रकार से चलाने तथा सरकारी पदाधिकारियों एवं जनता के अधिकारों का निर्धारण करने के लिए राज्य का एक संविधान हो। वर्तमान समय में तो किसी भी देश के लिए निम्नलिखित कारणों से संविधान बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है –

(1) संविधान के अभाव में जनता को यह पता नहीं होगा कि सरकारी शासन के किस-किस अंग के क्या अधिकार हैं और राज्य तथा जनता के बीच क्या सम्बन्ध है। ऐसा करने का उद्देश्य यह होता है कि सरकार के विभिन्न अंगों की कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में किसी प्रकार की भ्रान्ति या विवाद की सम्भावना कम-से-कम हो।

(2) संविधान के अभाव में देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। निश्चित नियमों के न होने से सरकारी कर्मचारी मनमानी करने लगेंगे और राज्य एक निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासन में परिवर्तित हो जाएगा, जिससे अविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाएगी।

(3) राज्य का संविधान होने से शासन के प्रत्येक अंग को अपने कार्य-क्षेत्र का ज्ञान होगा। उन्हें यह भी पता होगा कि उनके क्या-क्या अधिकार हैं और जनता के प्रति उन्हें किन-किन कर्तव्यों का पालन करना है।

(4) नागरिक भी अपनी स्वतन्त्रता तथा अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान का संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं।

(5) संविधान राज्य तथा जनता दोनों के लिए ही एक प्रकाश-स्तम्भ के रूप में मार्गदर्शन का कार्य करता है। बिना संविधान के यह निश्चित है कि शासन तथा जनता दोनों ही अपने मार्ग से भटक जाएँगे। अतः किसी भी राज्य के अस्तित्व एवं प्रजा के सुखमय जीवन के निर्माण के लिए राज्य का एक संविधान होना अत्यन्त आवश्यक है और कोई भी राज्य संविधान के महत्त्व की उपेक्षा करके अपने अस्तित्व को खतरे में नहीं डाल सकता। अतः संविधान राज्य की नींव है।

जेलिनेक का यह कथन ठीक ही है – “उस राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती, जिसका अपना संविधान न हो। संविधानविहीन राज्य में अराजकता की स्थिति होगी।”

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान का निर्माण कब और कैसे हुआ ? संविधान की प्रस्तावना का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
भारतीयों के लिए 26 जनवरी, 1950 ई० का दिन अत्यन्त गौरवपूर्ण है, क्योंकि इस दिन स्वतन्त्र भारत में स्वयं भारतवासियों द्वारा निर्मित संविधान लागू हुआ था और भारतवासियों ने पूर्ण स्वतन्त्रता का अनुभव किया। इसी दिन भारत को एक गणराज्य भी घोषित किया गया।

संविधान सभा का गठन एवं कार्य

भारत के स्वतन्त्र होने से पूर्व ही भारतीय नेताओं ने 1939 ई० में अंग्रेजों से संविधान सभा के द्वारा संविधान का निर्माण करने की माँग की थी, परन्तु उस समय भारतीयों की इस माँग को स्वीकार नहीं किया गया। कालान्तर में परिस्थितियोंवश 16 मई, 1946 ई० को कैबिनेट मिशन की योजना में इस बात पर अंग्रेजों ने अवश्य विचार किया कि भारतीयों को भारतीय संविधान के निर्माण की स्वतन्त्रता दी। जानी चाहिए, क्योंकि वे ही अपने देश की परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार संविधान का निर्माण कर सकते हैं।

फलस्वरूप शीघ्र ही संविधान सभा का गठन करने के उद्देश्य से जनसंख्या के आधार पर (लगभग दस लाख पर एक) प्रतिनिधि निर्धारित किये गये। चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल मत-संक्रमण प्रणाली द्वारा हुए। निर्वाचन के आधार पर संविधान सभा के कुल 389 सदस्य चुने गये। बाद में पाकिस्तान के अलग होने पर 389 सदस्यों में से 79 सदस्य अलग हो गये। इन सदस्यों के पृथक् होने के पश्चात् संविधान सभा में 310 सदस्य शेष बचे। इन्हीं सदस्यों को संविधान निर्माण का कार्य सौंपा गया।

संविधान सभा को प्रथम अधिवेशन 9 दिसम्बर, 1946 ई० को डॉ० सच्चिदानन्द सिन्हा की अस्थायी अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ। इसमें मुस्लिम लीग के सदस्यों ने भाग नहीं लिया। बाद में, 11 दिसम्बर, 1946 ई० को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष चुने गये।

संविधान सभा की समितियाँ – संविधान सभा के अन्तर्गत विभिन्न समितियों का गठन किया गया; जैसे—प्रक्रिया समिति, वार्ता समिति, संचालन समिति, कार्य समिति, अनुवाद समिति, सलाहकार समिति, संघ समिति, वित्तीय मामलों की समिति, झण्डा समिति, भाषा समिति, प्रारूप समिति आदि। इन समितियों में सबसे महत्त्वपूर्ण समिति प्रारूप समिति (Draft Committee) थी जिसने संविधान का प्रारूप तैयार किया था।

संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए जिस प्रारूप समिति (Draft Committee) का गठन किया गया उसके अध्यक्ष डॉ० भीमराव अम्बेडकर और अन्य सदस्य श्री के० एम० मुन्शी, श्री टी० टी० कृष्णमाचारी, श्री गोपाल स्वामी आयंगर, श्री अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, श्री मुहम्मद सादुल्ला खाँ, श्री माधव राव और श्री डी० पी० खेतान थे। इस प्रारूप को तैयार करने में 141 दिन का समय लगा। प्रारूप समिति ने संविधान का जो प्रारूप बनाया, उसको कुछ संशोधन के साथ 26 नवम्बर, 1949 ई० को स्वीकार कर लिया गया। इसके उपरान्त संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के इस पर हस्ताक्षर हुए। इसके निर्माण में 2 वर्ष, 11 महीने तथा 18 दिन लगे थे और इस पर १ 63,96,729 व्यय हुए। इसमें 395 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूचियाँ थीं। बाद में इसमें चार अनुसूचियाँ और जोड़ दी गयीं (9वीं अनुसूची प्रथम संवैधानिक संशोधन में सन् 1951 ई० में, 10वीं अनुसूची 35वें संवैधानिक संशोधन में सन् 1975 ई० में, 11वीं अनुसूची 73वें संवैधानिक संशोधन में अप्रैल में व 12वीं अनुसूची 74वें संवैधानिक संशोधनों के आधार पर जून 1993 ई० में)। पश्चात्वर्ती संशोधनों के बाद 2000 को यथाविद्यमान संविधान में 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं। दिसम्बर 2014 तक संविधान का 99 बार संशोधन हो चुका है।

भारत के संविधान को 26 जनवरी, 1950 ई० को विधिवत् लागू कर दिया गया। इसके साथ ही भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न गणराज्य बन गया। 26 जनवरी, 1950 ई० को संविधान लागू करने का वास्तविक कारण यह था कि 26 जनवरी, 1929 ई० को भारत के निवासियों ने रावी नदी के तट पर कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में पंडित नेहरू की अध्यक्षता में यह प्रतिज्ञा की थी कि वे देश को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र कराएँगे। संविधान के लागू होने से भारतवर्ष एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न गणराज्य बन गया।

संविधान की प्रस्तावना

सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की प्रस्तावना को स्पष्ट करते हुए एक विवाद में कहा है कि, ‘प्रस्तावना संविधान के निर्माताओं के आशय को स्पष्ट करने वाली कुंजी है।

संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि, “हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष ,लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए और उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचाराभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा व अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवम्बर, 1949 ई० (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् 2006 विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

प्रस्तावना में समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘अखण्डता’ शब्द संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा जोड़े गये हैं।

1. (स्रोत–इण्टरनेट पर भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट)।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत के लोगों तथा यहाँ के पदाधिकारियों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इससे सभी पदाधिकारियों को संविधान के उद्देश्यों का ज्ञान प्राप्त होता है। इसलिए कहा गया है कि प्रस्तावना संविधान का मूल अंग, उसकी कुंजी तथा आत्मा है। डॉ० सुभाष कश्यप के अनुसार, प्रस्तावना में निहित पावन आदर्श हमारे राष्ट्रीय लक्ष्य हैं और जहाँ वे एक ओर हमें अपने गौरवमय अतीत से जोड़ते हैं, वहाँ उस भविष्य की आशंका को भी सँजोते हैं।”

प्रश्न 3.
“भारतीय संविधान संघात्मक है, परन्तु उसमें एकात्मकता के लक्षण भी विद्यमान हैं।” विवेचना कीजिए।
या
भारतीय संविधान की संघात्मक व एकात्मक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
भारतीय संविधान में संघात्मक और एकात्मक दोनों प्रकार के संविधानों के लक्षण पाये जाते हैं। भारत का संविधान एकात्मकता की ओर झुकता हुआ संघात्मक संविधान है। एक विद्वान्के  शब्दों में, “भारतीय संविधान की प्रकृति संघीय है, किन्तु आत्मा एकात्मक।”

संघात्मक विशेषताएँ

भारतीय संविधान में संघात्मक संविधान की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –

(1) लिखित तथा स्पष्ट – भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है जिसमें सरल तथा स्पष्ट अर्थों वाली शब्दावली का प्रयोग किया गया है। इसे संविधान सभा ने तैयार किया था।

(2) सर्वोच्च तथा कठोर – भारतीय संविधान को देश के सर्वोच्च कानून की स्थिति प्राप्त है। कोई भी सरकार इसका उल्लंघन नहीं कर सकती। यह कठोर इसलिए है, क्योंकि इसमें संशोधन की प्रक्रिया को बहुत जटिल रखा गया है। राज्यों के अधिकार-क्षेत्र के सम्बन्ध में तो अकेले केन्द्रीय संसद कोई संशोधन कर ही नहीं सकती।

(3) शक्तियों का विभाजन – भारतीय संविधान के अन्तर्गत केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है तथा सभी विषयों को तीन सूचियों में बाँट दिया गया है-

  1. संघ सुंची
  2. राज्य सूची तथा
  3. समवर्ती सूची।

संघ सूची पर केन्द्रीय सरकार को तथा राज्य सूची पर राज्यों की सरकारों को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। समवर्ती सूची पर केन्द्र तथा राज्यों की सरकारें कानून बना सकती हैं, किन्तु सर्वोच्चता केन्द्रीय सरकार को प्राप्त है। अवशिष्ट विषय केन्द्रीय सरकार के अधीन हैं। संघ, राज्य और समवर्ती सूची के विषयों की संख्या क्रमशः 97, 66 तथा 47 है।

(4) स्वतन्त्र न्यायपालिका – भारतीय संविधान में एक स्वतन्त्र तथा शक्तिशाली न्यायपालिका की व्यवस्था की गयी है। देश का सर्वोच्च न्यायालय केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों के नियन्त्रण से मुक्त है। यह संसद तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्मित कानूनों को अवैध घोषित कर सकता है। इसे संविधान की रक्षा का कार्यभार सौंपा गया है।

(5) द्विसदनीय व्यवस्थापिका – भारतीय संसद का उच्च सदन अर्थात् राज्यसभा राज्यों को सदन है, जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है तथा निम्न सदन अर्थात् लोकसभा जनता का प्रतिनिधित्व करता है।

(6) संशोधन प्रणाली – भारतीय संविधान में संशोधन की प्रणाली पूर्ण रूप से संघात्मक शासन के अनुरूप है।

एकात्मक विशेषताएँ भारतीय संविधान में एकात्मक संविधान की निम्नांकित विशेषताएँ पायी जाती हैं –

(1) इकहरी नागरिकता – संविधान में देश के नागरिकों को केवल भारतीय नागरिकता प्रदान की गयी है। इसमें राज्यों की पृथक् नागरिकता की कोई व्यवस्था नहीं है।

(2) राष्ट्रपति की सर्वोच्च शक्तियाँ – संविधान के अनुसार संकट या आपात्काल में देश की शासन सम्बन्धी सम्पूर्ण शक्तियाँ राष्ट्रपति के हाथों में आ जाती हैं। राज्यों की सरकारों को राष्ट्रपति की इच्छानुसार अपने राज्यों को शासन चलाना पड़ता है।

(3) सीमाओं में परिवर्तन – संसद को राज्यों की सीमाओं तथा नाम में परिवर्तन करने का अधिकार है।

(4) सेना भेजना – केन्द्रीय सरकार प्रान्तीय सरकार के परामर्श के बिना भी राज्य में सेना को भेज सकती है।

(5) राज्यपाल को पद  राज्यपाल प्रान्तीय शासन का अध्यक्ष होता है। राज्यपाल की नियुक्ति, स्थानान्तरण तथा पदच्युति का अधिकार राष्ट्रपति को है। वस्तुतः राज्यपाल प्रान्तों में केन्द्रीय सरकार के एजेण्ट के रूप में कार्य करती है।

(6) वित्तीय निर्भरता – प्रान्तीय सरकारें अपने विकासशील कार्यों हेतु केन्द्रीय अनुदानों (Grants) तथा ऋण पर निर्भर करती हैं।

(7) राज्य सूची पर कानून – निर्माण–भारतीय संविधान के अन्तर्गत सामान्य तथा आपातकालीन परिस्थितियों में संसद को राज्य सूची में दिये गये विषयों पर कानून-निर्माण का अधिकार प्राप्त

(8) समान न्याय-व्यवस्था – एकात्मक संविधान की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि सम्पूर्ण देश में समान न्यायव्यवस्था पायी जाती है। भारतीय संविधान में यह विशेषता भी विद्यमान है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्यों के न्यायालयों में दीवानी तथा फौजदारी मुकदमों के लिए एक जैसे कानून बनाये गये हैं। साथ ही राज्यों के उच्च न्यायालयों को उच्चतम (सर्वोच्च) न्यायालय के अधीन रखा गया है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारत का संविधान न तो पूर्णतया संघात्मक है और न ही पूर्णतया एकात्मक, वरन् इसमें दोनों ही प्रकार की विशेषताओं का समावेश है।

0:00
0:00