Chapter 1 Introducing Indian Society

 (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र०1. भारत के राष्ट्रीय एकीकरण की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर- भारत की मुख्य समस्याएँ हैं-भाषागत पहचान, क्षेत्रीयतावाद, पृथक राज्य की माँग तथा आंतकवाद। ये सभी भारत के एकीकरण में बाधा उत्पन्न करते हैं। इन समस्याओं के कारण अकसर हड्तालें, दंगे तथा परस्पर झगड़े होते रहते हैं। इन्हीं कारणों के चलते भारतीय एकता और अखंडता पर खतरा उत्पन्न होता है।

प्र० 2. अन्य विषयों की तुलना में समाजशास्त्र एक भिन्न विषय क्यों है?
उत्तर- समाजशास्त्र एक ऐसा विषय है, जिसके द्वारा कोई समाज के बारे में कुछ जानता है। अन्य विषयों की शिक्षा हमें घर, विद्यालय या अन्य स्थानों पर निर्देशों के द्वारा प्राप्त होती है, किंतु समाज के बारे में हमारा अधिकतर ज्ञान बिना किसी सुस्पष्ट शिक्षा के अर्जित होता है। समय के साथ बढ़ने वाला यह एक अभिन्न अंग की तरह है, जो स्वाभाविक तथा स्वतः स्फूर्त तरीके से प्राप्त होता है।

प्र० 3. समाज के आधारभूत कार्य क्या हैं?
उत्तर- समाजशास्त्रियों तथा सामाजिक मानवविज्ञानियों ने शब्द ‘Function’ (कार्य) को जीवविज्ञान से लिया है, जहाँ इसका प्रयोग कुछ निश्चित जैविक प्रक्रियाओं के लिए शारीरिक रचना के रख-रखाव हेतु किया जाता था। किसी भी समाज की निरंतरता तथा अस्तित्व को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित कार्य आवश्यक हैं
(i) सदस्यों की नियुक्ति
(ii) विशेषज्ञता
(iii) सेवाओं का उत्पादन तथा वितरण एवं
(iv) आदेश का पालन

प्र० 4. सामाजिक संरचना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- एक समाज में शामिल होते हैं
(i) महिला तथा पुरुष, वयस्क तथा बच्चे, विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक तथा धार्मिक समूह इत्यादि।
(ii) माता-पिता, बच्चों तथा विभिन्न समूहों के बीच अंतर्सबंध।
(iii) अंत में, समाज के सभी अंग मिलते हैं तथा व्यवस्था अंतर्सबंधित तथा पूरक अवधारणा बन जाती है।

प्र० 5. भ्रमित करने वाले सामाजीकरण के द्वारा हमें बचपन में सामाजिक मानचित्र क्यों उपलब्ध कराया जाता है?
उत्तर- सामाजिक मानचित्र हमें अपने माता-पिता, भाई-बहन, सगे-संबंधी तथा पड़ोसियों के द्वारा प्रदान किया जाता है। यह विशिष्ट अथवा आंशिक हो सकता है। इसके द्वारा हमें आसपास की दुनिया को समझना तथा तौर-तरीके सिखाए जाते हैं। यह वास्तविक हो भी सकता है और नहीं भी। दूसरे प्रकार के मानचित्रों का निर्माण करते समय उसके समुचित प्रयोग तथा प्रभाव का ध्यान रखा जाना चाहिए। एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य आपको विभिन्न प्रकार के सामाजिक मानचित्र बनाना सिखाता है।

प्र० 6. सामुदायिक पहचान क्या है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर- समुदाय हमें भाषागत तथा सांस्कृतिक मूल्य सिखाता है, जिसके द्वारा हम विश्व को समझते हैं। यह जन्म तथा संबंधों पर आधारित होता है, न कि अर्जित योग्यता अथवा निपुणता पर। जन्म-आधारित पहचान को आरोपित कहा जाता है क्योंकि इसमें व्यक्ति विशेष की पसंदों का कोई महत्त्व नहीं होता। यह वस्तुतः निरर्थक तथा विभेदात्मक है। आरोपित पहचान से पीछा छुड़ाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि बिना विचार किए उन्हें त्यागने पर अन्य संबंधियों की पहचान के आधार पर हमें चिह्नित किया जाएगा। इस प्रकार की आरोपित पहचान आत्म-निरीक्षण के लिए बहुत ही हतोत्साहित करने वाली है। समुदाय के विस्तारित तथा अतिव्यापी समूहों के संबंध; जैसे–परिवार, रिश्तेदारी, जाति, नस्ल, भाषा क्षेत्र अपना धर्म विश्व को अपनी पहचान बताता है तथा स्वयं की पहचान की चेतना पैदा करता है कि हम क्या हैं।

प्र० 7. आत्मवाचक क्या है?
उत्तर- समाजशास्त्र हमें यह दिखा सकता है कि दूसरे हमें किस तरह से देखते हैं। यह आपको सिखा सकता है कि आप स्वयं को बाहर से कैसे देख सकते हैं। इसे ‘स्ववाचक’ या कभी-कभी ‘आत्मवाचक’ भी कहा जाता है।

प्र० 8. समाजशास्त्र व्यक्तिगत परेशानियों तथा ‘सामाजिक मुद्दों के बीच कड़ी तथा संबंधों का खाका खींचने में हमारी मदद कर सकता है। चर्चा कीजिए।
उत्तर- प्रसिद्ध अमेरिकन समाजशास्त्री सी. राईट मिल्स ने लिखा है-“समाजशास्त्र व्यक्तिगत परेशानियों एवं ‘सामाजिक मुद्दों के बीच की कड़ियों एवं संबंधों को उजागर करने में मदद कर सकता है।” व्यक्तिगत परेशानियों से मिल्स का तात्पर्य है कि वे विभिन्न प्रकार की व्यक्तिगत चिंताएँ, समस्याएँ या सरोकार जो सबके जीवन में होते हैं।

प्र० 9. किस प्रकार से औपनिवेशिक शासन ने भारतीय चेतना को जन्म दिया? चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  1. औपनिवेशिक शासन ने पहली बार राजनीतिक तथा प्रशासनिक रूप से सभी भारतीयों को एक किया।
  2. औपनिवेशिक शासन ने पूँजीवादी आर्थिक परिवर्तन एवं आधुनिकीकरण की ताकतवर प्रक्रियाओं से भारत का परिचय कराया।
  3. यद्यपि इस प्रकार की भारत की आर्थिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक एकीकरण की उपलब्धि भारी कीमत चुका कर प्राप्त हुई।
  4. औपनिवेशिक शासन के शोषण तथा प्रभुत्व ने भारतीय समाज को कई प्रकार से भयभीत किया।
  5. औपनिवेशिक काल ने अपने शत्रु राष्ट्रवाद को भी जन्म दिया। आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा का सूत्रपात ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में ही हुआ।
  6. तेजी से बढ़ते शोषण तथा औपनिवेशिक प्रभुत्व के साझे अनुभवों ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में एकता तथा बल प्रदान किया। इसने नए वर्गों तथा समुदायों का भी गठन किया। शहरी मध्यम वर्ग राष्ट्रवाद का प्रमुख वाहक था।

प्र० 10. औपनिवेशिक शासन द्वारा अपनी शासन-व्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए?
उत्तर- अपनी शासन-व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए औपनिवेशिक शासन द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए गएः
(i) उत्पादन में नई यांत्रिक तकनीक का इस्तेमाल।
(ii) व्यापार में नई बाजार व्यवस्था का आरंभ।
(iii) परिवहन तथा संचार के साधनों का विकास।
(iv) अखिल भारतीय स्तर पर लोक सेवा आधारित नौकरशाही का गठन।
(v) लिखित तथा औपचारिक कानून का गठन।

प्र० 11. किन समाज सुधारकों ने भारत में ब्रिटिश उपनिवेशकाल के दौरान समाज सुधार आंदोलन चलाए?
उत्तर- भारत में ब्रिटिश उपनिवेशकाल के दौरान समाज सुधार आंदोलन के प्रमुख नेता थे- राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी इत्यादि।

प्र० 12. उन प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए जो ब्रिटिश उपनिवेशकाल के दौरान प्रारंभ की गईं।
उत्तर- यह वह समय था, जब भारत में आधुनिक काल का प्रारंभ हो चुका था तथा आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, औद्योगीकरण की शक्तियाँ भारत में प्रवेश कर चुकी थीं।

प्र० 13. समाजशास्त्र तथा अन्य विषयों के बीच मुख्य अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

  1. समाजशास्त्र एक ऐसा विषय है, जिसमें कोई भी शून्य से प्रारंभ नहीं होता, क्योंकि हर किसी को समाज के बारे में जानकारी होती है। जबकि अन्य विषय विद्यालयों, घरों तथा अन्य जगहों पर पढ़ाए जाते हैं।
  2. चूँकि जीवन के बढ़ते हुए क्रम में यह एक अभिन्न हिस्सा होता है, इसलिए समाज के बारे में किसी को जानकारी स्वतःस्फूर्त तथा स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाती है। दूसरे विषयों के संबंध में छात्रों से इस प्रकार के पूर्व ज्ञान की अपेक्षा नहीं होती।
  3. इसका अर्थ यह हुआ कि हम उस समाज के विषय में बहुत कुछ जानते हैं, जिसमें हम रहते तथा अंतक्रिया करते हैं। जहाँ तक दूसरे विषयों का संबंध है, इसमें छात्रों को पूर्व जानकारी नगण्य होती है।
  4. यद्यपि इस प्रकार की पूर्व जानकारी अथवा समाज के साथ प्रगाढ़ता का समाजशास्त्र में लाभ तथा हानि दोनों ही हैं। पूर्व जानकारी के अभाव में दूसरे विषयों के संबंध में लाभ अथवा हानि का प्रश्न ही नहीं उठता।
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