Chapter 16 – नरेंद्र शर्मा
Question 1:
कविता के आधार पर बताइए कि कवि की दृष्टि में बाहर का अँधेरा भीतर दुखःस्वप्नों से अधिक भयावह क्यों है?
ANSWER:
कवि के अनुसार बाहर जो अँधेरा व्याप्त है, वह हटने का नाम नहीं ले रहा है। उसके कारण सुबह हो नहीं पा रही है। सुबह के आने से यह अँधकार हट जाएगा। लेकिन यह इतन गहरा गया है कि कुछ नहीं हो पा रहा है। इसी कारण कवि की दृष्टि में बाहर का अँधेरा भीतर दुखःस्वप्नों से अधिक भयावह है।
Question 2:
अंदर का भय कवि के नयनों को सुनहली भोर का अनुभव क्यों नहीं होने दे रहा है?
ANSWER:
कवि के मन में डर है। इस डर के कारण आशारूपी उषा आँखों के पास नहीं पहुँच पा रही है। कवि की आँखें सुखद पल का इंतज़ार कर रही है लेकिन वह पल समीप पहुँच नहीं पाता है। कवि के मन में निराशा तथा व्याकुलता से भय उपजा है।
Question 3:
कवि को किस प्रकार की आस रातभर भटकाती है और क्यों?
ANSWER:
कवि रातभर प्रकाश की आस में भटकता रहता है। वह चाहता है कि उषा जल्दी हो और प्रकाश फैल जाए।
Question 4:
कवि चेतन से फिर जड़ होने की बात क्यों कहता है?
ANSWER:
कवि जानता है कि चेतन मनुष्य पर बाहर व्याप्त वातावरण का प्रभाव पड़ेगा। उसे बाहर का अँधकार भयभीत करता है। इस कारण उसके मन में चिंताएँ हावी हो जाती हैं। इन सब बातों से स्वयं को छुटकारा दिलाने के लिए कवि सोना चाहता है। इस तरह सोकर वह जड़ अवस्था में पहुँच जाएगा। कुछ समय के लिए उसे चिंताओं तथा डर से पीछा छूट जाएगा। इस तरह उसे सुबह का इंतज़ार करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
Question 5:
अंधकार भरी धरती पर ज्योती चकफेरी क्यों देती है? स्पष्ट कीजिए।
ANSWER:
कवि को पृथ्वी पर अंधकार ही अंधकार दिखाई देता है। ज्योति चक्कर लगा रही है ताकि वह अंधकार को मिटा सके। वह अंधकार को हटाकर प्रकाश करने की प्रतीक्षा में है।
Question 6:
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) आती नहीं उषा, बस केवल
आने की आहट आती है!
(ख) करवट नहीं बदलता है तम,
मन उतावलेपन में अक्षम!
ANSWER:
(क) भाव यह है कि कवि अपने जीवन में कुछ अच्छा होने की आशा कर रहा है। उसके लिए चारों ओर अंधकार रूपी निराशा छायी हुई है। उसे लगता है कि उषा रूपी आशा होने वाली है लेकिन ऐसा होता नहीं है। उसे मात्र यह भान होता है।
(ख) इस पंक्ति का भाव है कि जीवन में निराशा रूपी अंधकार व्याप्त हो चूका है। वह शिला के समान खड़ा है। वह जाता नहीं है। उसके कारण कवि कुछ भी सोचने-समझने में अक्षम है।
Question 7:
जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,
नहीं गई भव-निशा अँधेरी!
उक्त पंक्तियों में ‘जागृति’ ‘अनिद्रा’ और ‘भव-निशा अँधेरी’ से कवि का सामाजिक संदर्भों में क्या अभिप्राय है?
ANSWER:
सामाजिक संदर्भों में ‘जागृति’ से तात्पर्य क्रांति से है। ‘अनिद्रा’ वह अवस्था है, जिसमें मनुष्य को सही गलत का ज्ञान नहीं होता। ‘भव-निशा अँधेरी’ समाज में व्याप्त रूढ़ियाँ और कुरतियाँ हैं, जो मनुष्य को सताती रहती हैं। जागृति जागने की अवस्था है, इसमें उसे सही-गलत का भान हो जाता है। अनिद्रा में मनुष्य न जागा होता है और न सोया होता है। यह अवस्था खतरनाक होती है। समाज में व्याप्त यही अवस्था नाश का कारण है।
Question 8:
‘अंतर्नयनों के आगे से शिला न तम की हट पाती है’ पंक्ति में ‘अंतर्नयन’ और ‘तम की शिला’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
ANSWER:
प्रस्तुत पंक्ति में ‘अंतर्नयन’ से कवि का तात्पर्य अंतर मन की आँखों से है। इसे ही अंतर्दृष्टि भी कहते हैं। ‘तम की शिला’ से तात्पर्य अंधकार रूपी शिला से है। यह अंधकार कवि की आँखों के आगे छाया हुआ है। यह पत्थर के समान स्थिर हो गया है। इसे हटाना कवि के लिए संभव नहीं है।
Question 1:
क्या आपको लगता है कि बाहर का अँधेरा भीतर के अँधेरे से ज़्यादा घना है? चर्चा करें।
ANSWER:
मुझे लगता है कि बाहर का अँधेरा भीतर के अँधेरे से ज़्यादा घना है। बाहर के अँधेरे से कवि का तात्पर्य समाज में व्याप्त कुरीतियाँ, असमानताएँ, विषमताएँ के रूप में हैं। ये कभी समाप्त होने का नाम नहीं लेती हैं। मनुष्य इन्हीं में पिसता चला जाता है। अंदर का अँधेरा तभी समाप्त होगा जब ये सब समाप्त हो जाएँगे। सदियों से इन सबने समाज का रूप विकृत कर दिया है। इसका प्रभाव यह पड़ा है कि मनुष्य में अक्षमता, व्याकुलता, निराशा, असंतोष के भाव विद्यमान हो गए हैं। जिस दिन बाहर का अँधकार हट जाएगा, मन का अँधकार भी मिट जाएगा।
Question 2:
संगीत शिक्षक की सहायता से इस गीत को लयबद्ध कीजिए।
ANSWER:
इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी स्वयं दें।