Chapter 7 Psychological Experiments (मनोवैज्ञानिक प्रयोग)
नोट- नवीनतम पाठ्यक्रम के अन्तर्गत कक्षा-12 के पाठ्यक्रम में दो प्रयोग-लेखन का प्रावधान है। ये प्रयोग हैं—
(1) सीखने में दर्पण लेखन का प्रयोग तथा
(2) द्विपाश्विक अन्तरण।
प्रयोग-1 : सीखने में दर्पण लेखन का प्रयोग
प्रश्न 1
सीखने में दर्पण-लेखन के प्रयोग का वर्णन कीजिए। (2008, 10, 15)
या
आपने जो प्रयोग सीखने में ‘दर्पण-लेखन विधि के सम्बन्ध में किया हो, उसका विवरण दीजिए तथा प्राप्त निष्कर्षों की विवेचना कीजिए। (2012, 15, 17, 18)
उत्तर
प्रयोग की समस्या या उद्देश्य- प्रयोगकर्ता ने निम्नलिखित उद्देश्यों को सामने रखकर यह प्रयोग किया
(1) प्रयास और भूल द्वारा सीखने में थॉर्नडाइक द्वारा दिये गये नियमों के प्रभाव की जाँच करना।
(2) ‘दर्पण-लेखन यन्त्र’ की सहायता से हाथ और आँख के समन्वय का अध्ययन करना। सामग्री तथा यन्त्र-प्रयोगकर्ता ने इस प्रयोग में निम्नलिखित सामग्री का प्रयोग किया
- दर्पण-लेखन यन्त्र
- स्टॉप वाच
- सितारों की बारह आकृतियाँ
- पिन
- पेन्सिल
- पर्दा।।
प्रयोग विधि- प्रयोग आरम्भ करने से पहले प्रयोगकर्ता ने प्रयोज्य को आराम से बैठाकर दर्पण लेखन यन्त्र के बोर्ड पर तारे की आकृति वाला कागज इस प्रकार लगाया कि तारे की आकृति दर्पण में स्पष्ट रूप से दिखाई दे। दर्पण और पर्दे को इस प्रकार लगाया कि प्रयोज्य को तारे की आकृति वाला कागज सीधा न दिखाई पड़े वरन् दर्पण में परोक्ष रूप से प्रतिबिम्बित होकर दिखाई दे।
निर्देश- प्रयोग की तैयारी कर लेने के बाद प्रयोज्य को निम्नलिखित निर्देश दिये-
- मेरे सावधान’ कहते ही आप प्रयोग के लिए तैयार हो जाएँगे और प्रारम्भ’ कहते ही कार्य प्रारम्भ कर देंगे।
- आपको प्रथम दो तथा अन्तिम दो प्रयास उल्टे हाथ द्वारा तथा बीच में आठ प्रयास सीधे हाय द्वारा करने होंगे।
- आपको प्रारम्भ बिन्दु से घड़ी की दिशा में पेन्सिल चलाते हुए तारे का पूरा चक्कर करके फिर प्रारम्भिक स्थान पर पहुँचना होगा।
- आपको यह ध्यान रखना होगा कि जितनी बार पेन्सिल की नोक तारे की दोहरी रेखाओं में से किसी को छुएगी या काटेगी उतनी ही गलतियाँ मानी जाएंगी।
- रेखा खींचते समय पेन्सिल को बीच में उठाना नहीं है।
सावधानियाँ- प्रयोगकर्ता ने प्रयोग करने में निम्नलिखित सावधानियाँ रखीं
- वातावरण शान्त रखा गया।
- दर्पण-लेखन यन्त्र को व्यवस्थित करने में यह विशेष ध्यान रखा गया कि बोर्ड के नीचे की तारे की आकृति प्रयोज्य को सीधे न दिखाई दे।
- प्रत्येक प्रयास के पश्चात् विश्राम का ध्यान रखा गया।
वास्तविक प्रयोग- प्रयोज्य को निर्देश देने के बाद प्रयोगकर्ता ने प्रयोग प्रारम्भ किया। सर्वप्रथम प्रयोगकर्ता ने ‘सावधान’ कहा, जिससे प्रयोज्य तैयार होकर बैठ गया। पाँच सेकण्ड के बाद ‘प्रारम्भ’ कहा गया और प्रयोज्य ने दर्पण घड़ी की दिशा में तारे की दोहरी रेखाओं के बीच में रेखा खींचना आरम्भ कर दिया। ‘प्रारम्भ’ कहते ही प्रयोगकर्ता ने घड़ी चालू कर दी। जब प्रयोज्य रेखा खींचता हुआ अपने प्रारम्भिक स्थान पर फिर आ गया तो प्रयोगकर्ता ने घड़ी रोक दी। प्रत्येक प्रयास में गलतियों और समय को नोट कर लिया तथा प्रत्येक प्रयास के पश्चात् प्रयोज्य को दो मिनट का विश्राम दिया गया।
परिणाम- प्रयोग द्वारा प्राप्त परिणामों को निम्नलिखित तालिका में नोट कर लिया, जो इस प्रकार हैं
अन्तर्दर्शन रिपोर्ट- प्रयोज्य द्वारा दी गयी अन्तर्दर्शन रिपोर्ट इस प्रकार थी-“प्रारम्भ में पेन्सिल चलाने में गति की दिशा का अन्दाज नहीं लगा पा रहा था। बार-बार पेन्सिल इधर-उधर की रेखाओं को छूने लगती थी। कुछ देर में ठीक दिशा का अन्दाजा हुआ। पहले प्रयास में कुछ कठिनाई हुई, लेकिन बाद के प्रयासों में कुछ आसानी हुई और त्रुटियाँ कम होने पर काफी प्रसन्नता हुई। बायें हाथ से प्रयास आरम्भ करने में कुछ कठिनाई हुई, किन्तु सीधे हाथ से उतनी कठिनाई महसूस नहीं हुई। जैसे-जैसे कार्य का अभ्यास होता गया, कार्य शीघ्रतापूर्वक होने लगा तथा त्रुटियाँ भी कम होने लगीं, . जिससे अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव हुआ।”
निष्कर्ष-
- प्रत्येक हाथ से प्रयास आरम्भ करने में त्रुटियाँ अधिक हुईं, किन्तु बाद में त्रुटियाँ कम होती गयीं व समय भी कम होता गया। इससे यह ज्ञात होता है कि अभ्यास द्वारा कार्य में शुद्धता आती है।
- प्रयोज्य के अनुभवों द्वारा यह सिद्ध होता है कि दायें हाथ का अनुभव बायें हाथ के प्रयास में सहायक होता है।
- क्रमश: गलतियाँ कम होने से जो प्रसन्नता प्रयोज्य को हुई उससे प्रयोज्य में उत्साह की वृद्धि होती है। इससे भी सीखने की योग्यता बढ़ती है।
प्रयोग-2द्विपाश्विक अन्तरण
प्रश्न 2
द्विपाश्विक अन्तरण सम्बन्धी प्रयोग का विवरण लिखिए। (2010, 12, 14, 16, 17, 18)
उत्तर
प्रयोग-समस्या– प्रयोग की मुख्य समस्या यह ज्ञात करना है कि अधिगम में एक हाथ से दूसरे हाथ में द्विपाश्विक अन्तरण किस प्रकार होता है।
प्रयोग की आवश्यक सामग्री प्रयोग के लिए आवश्यक सामग्री है- दर्पण-चित्रण उपकरण, पेन्सिल, कुछ ड्राइंग पिन, स्टॉप वाच, तारा बना कागज तथा ग्राफ पेपर।
प्रयोग की व्यवस्था प्रयोग की समुचित व्यवस्था के अन्तर्गत सर्वप्रथम विषय- पात्र को निर्धारित स्थान पर आराम से कुर्सी पर बिठाया जाता है। इस स्थिति में दर्पण-चित्रण उपकरण विषय-पात्र के सम्मुख होता है। दर्पण-चित्रण उपकरण में तारा चित्रित कागज को फिट कर दिया जाता है, परन्तु उसे एक पर्दे द्वारा ढककर रखा जाता है। इस व्यवस्था को पूरा कर लेने पर विषय-पात्र के हाथ को तारे के प्रारम्भिक बिन्दु पर रख दिया जाता है तथा उसे आगे की क्रिया प्रारम्भ करने के लिए यह निर्देश दिया जाता है-“मैं पहले तैयार’ कहूँगा तथा उसके दो सेकण्ड के उपरान्त ‘प्रारम्भ कहूँगा। इसके साथ ही तुम चित्रण का कार्य प्रारम्भ कर दोगे। चित्रण के लिए निर्दिष्ट बिन्दु से प्रारम्भ करोगे तथा अपनी पेन्सिल को निर्दिष्ट दिशा में ही चलाओगे। इसके लिए तुम्हें दर्पण में तारे की आकृति को देखना होगा। समय का विशेष ध्यान रखना होगा तथा इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि पेन्सिल तारे की बाहरी सीमा को न छूने पाये। प्रयोग में मुख्य
रूप से यह देखा जाएगा कि तुम अपने लक्ष्य तक पेन्सिल घुमाते हुए कितनी शीघ्रता से आते हो तथा तुम इस प्रक्रिया में कितनी त्रुटियाँ करते हो। एक बार पेन्सिल को कागज पर रख देने के बाद चक्कर पूरा किये बिना उठाना नहीं है।’
प्रयोग- विधि प्रयोग की व्यवस्था के अन्तर्गत प्रयोगकर्ता द्वारा विषय-पात्र को उपर्युक्त निर्देश देने के उपरान्त ‘तैयार रहने का संकेत दिया जाता है तथा इस संकेत के अल्प अन्तराल के उपरान्त ‘प्रारम्भ करो’ का महत्त्वपूर्ण निर्देश दे दिया जाता है। इस निर्देश के साथ-ही-साथ प्रयोगकर्ता द्वारा स्टॉप वाच को भी बटन दबाकर चालू कर दिया जाता है। जब विषय-पात्र की पेन्सिल निर्धारित लक्ष्य पर अर्थात् तारे के अन्तिम बिन्दु पर पहुँच जाती है तो प्रयोगकर्ता द्वारा स्टॉप वाच को रोक दिया जाता है। अब प्रयोगकर्ता द्वारा इस कार्य में लगे समय को तथा विषय-पात्र द्वारा की गयी त्रुटियों को भी नोट
कर लिया जाता है। प्रयोग में इस क्रिया को कुल 16 बार दोहराया जाता है। प्रयोग की प्रक्रिया में प्रारम्भ के तीन प्रयासों में विषय-पात्र को अपना बायाँ हाथ इस्तेमाल करना होता है तथा इसके उपरान्त किये जाने वाले 10 प्रयासों में विषय-पात्र को अपना दायाँ हाथ इस्तेमाल करना होता है। अन्तिम तीन प्रयासों में पुन: विषय-पात्र को अपना बायाँ हाथ ही इस्तेमाल करना होता है। विषय-पात्र को प्रत्येक प्रयास के उपरान्त एक मिनट का विश्राम दिया जाता है।
कुल 16 प्रयासों का विवरण निम्नलिखित तालिका में व्यवस्थित ढंग से साथ-ही-साथ लिख लिया जाता है-
उपर्युक्त वर्णित तालिका में प्रयोग से प्राप्त आँकड़ों को यथास्थान लिखने के उपरान्त इन आँकड़ों के आधार पर प्रयासों में लगने वाले समय तथा होने वाली त्रुटियों के दो अलग-अलग ग्राफ तैयार कर लिये जाते हैं। आँकड़ों का अलग से निम्नलिखित रूप में सांख्यिकीय विश्लेषण किया जाता है
E = पहले तीन (बायें हाथ से) प्रयासों में लगने वाले समय का औसत।
F = पहले तीन प्रयासों में होने वाली त्रुटियों का औसत मान।
G= चौथे से तेरहवें (दायें हाथ से) प्रयास तक 10 प्रयासों के समय का औसत।
H = उपर्युक्त दस प्रयासों (दायें हाथ से) में होने वाली त्रुटियों का औसत।
I = अन्तिम तीन प्रयासों (बायें हाथ से) में लगने वाले समय का औसत।
J= अन्तिम तीन प्रयासों (बायें हाथ से) में होने वाली त्रुटियों का औसत।
अवलोकन एवं निष्कर्ष– उपर्युक्त आँकड़ों का अवलोकन करने से स्पष्ट हो जाता है कि अन्तिम तीन प्रयासों में प्रथम तीन प्रयासों की तुलना में समय कम लगा। इन प्रयासों में त्रुटियाँ भी कम हुईं। इससे सिद्ध होता है कि अधिगम में द्विपाश्विक अन्तरण के सिद्धान्त सत्य हैं।
सावधानियाँ–
- परीक्षण-स्थल का वातावरण हर प्रकार से शान्त एवं सुविधाजनक होना चाहिए।
- प्रत्येक प्रयास के समय का मापन शुद्ध होना चाहिए।
- प्रत्येक प्रयास के उपरान्त विषय-पात्र को एक मिनट विश्राम अवश्य दें।