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The Sermon at Benares Summary and Translation in Hindi

(कठिन शब्दार्थ एवं हिन्दी अनुवाद)

Gautama Buddha………………………………….parent or friend”. (Pages 133-134)

कठिन शब्दार्थ – sacred (सेक्रिड्) = पवित्र । scriptures (स्क्रिप्च(र)) = धर्म-ग्रन्थ। befitted royalty (बिफिड रॉइअल्टि) = उपयुक्त राजसत्ता (राजसी ठाठ)। heretofore (हिर्टफॉर) = वर्तमान समय तक (अब तक)। shielded (शील्ड्डि ) = परिरक्षित (बचा कर)। chanced upon (चान्स्ड अपॉन्) = संयोग से सामने आना। funeral procession (फ्यूनरल प्रसेशन्) = मृतक की अन्तिम संस्कार यात्रा । monk (मॉङ्क्) = संन्यासी/भिक्षु । begging for alms (बेगिङ् फॉ(र) आम्ज्) = भिक्षा माँगते हुए। enlightenment (इन्लाइट्न्मन्ट) = उच्च आध्यात्मिक ज्ञान की एक अवस्था। preached (प्रीच्ट) = दिया। sermon (समन्) = उपदेश। most holy (मोस्ट् होलि) = सर्वाधिक पवित्र । dipping places (डिपिङ् प्लेसज) = डुबकी तट/पवित्र स्नान तट। sufferings (सफ(रि)ज) = दु:ख। inscrutable (इन्स्क्रू ट्बल) = अनवेक्षणीय/अबोधगम्य। repaired (रिपेअ(र)ड) = गई।

हिन्दी अनुवाद – गौतम बुद्ध (563 B.C.- 483 B.C.) ने उत्तरी भारत में एक राजकुमार के रूप में जीवन आरम्भ किया था जिसे सिद्धार्थ गौतम नाम दिया गया था। 12 वर्ष की उम्र में उसे हिन्दू धर्म के पवित्र-ग्रन्थों के ज्ञान प्राप्ति के लिए भेजा गया और चार वर्ष उपरान्त वह एक राजकुमारी से विवाह करने के लिए लौटा। उनके एक पुत्र हुआ और 10 वर्ष तक वे राजसी ठाठ से रहे। लगभग 25 वर्ष की उम्र में, राजकुमार, जिसे अब तक संसार के दुःखों से बचाकर रखा गया था, ने शिकार के लिए बाहर रहने के दौरान संयोग से एक बीमार व्यक्ति को देखा, फिर एक वृद्ध व्यक्ति को, फिर एक मृतक की अन्तिम संस्कार यात्रा, और अन्त में एक संन्यासी/भिक्षुक को भिक्षा माँगते देखा। इन दृश्यों ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह तुरन्त ही जो दुःख उसने देखे थे उनसे सम्बन्धित उच्च आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिये बाहर संसार में निकल पडा।

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वह संत वर्षों तक इधर-उधर विचरण करता रहा और अन्त में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गया, जहाँ उसने तब तक बैठे रहने की प्रतिज्ञा की जब तक उच्च आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त न हो जाए। सात दिन बाद ज्ञानोदय की प्राप्ति होने पर उन्होंने वृक्ष का नाम बोधि वृक्ष (ज्ञान का वृक्ष) रखा और पढ़ाना (अर्थात् उपदेश देना) और नए ज्ञान को बाँटना आरम्भ कर दिया। उस समय वह बुद्ध या ज्ञाना) के रूप में प्रसिद्ध हो गए।

बुद्ध ने अपना प्रथम धमापदेश बनारस नगरी, जो कि डुबको/स्नान के स्थानों में से सर्वाधिक पवित्र है, में दिया; उस धर्मोपदेश को सुरक्षित रखा गया है और यहाँ नीचे दिया गया है। यह (धर्मोपदेश) एक अबोधगम्य प्रकार के दु:ख के बारे में बुद्ध के ज्ञान को दर्शाता है। किसा गोतमी के केवल एक ही पुत्र था और वह मर गया। अपने दु:ख में वह अपने मृत बच्चे को अपने के पास ले गई, उनसे दवा के लिए पूछने लगी, और लोगों ने कहा, “उसने अपनी सुधबुध खो दी है, बालक मृत है।”

अन्त में, किसा गोतमी एक व्यक्ति से मिली जिसने उसके निवेदन का उत्तर दिया, “मैं तुम्हें तुम्हारे बच्चे के लिए दवा नहीं दे सकता, किन्तु मैं एक फिजिशन (डॉक्टर) को जानता हूँ जो यह कर सकता है।” और उस स्त्री ने कहा, “प्रार्थना करती हूँ, मुझे बताइए, श्रीमान्; वह कौन है?” और उस पुरुष ने कहा, “शाक्यमुनि, बुद्ध के पास जाइए।” किसा गोतमी बुद्ध के पास गई और रोने लगी, “हे प्रभु, हे मालिक, मुझे वह दवा दीजिए जो मेरे लड़के को ठीक कर दे।” बुद्ध ने उत्तर दिया, “मुझे सरसों के मुट्ठीभर दाने दीजिए।” और उस स्त्री ने जब इसे लाने का हर्ष से वचन दिया, तो बुद्ध ने आगे कहा, “सरसों के दाने एक ऐसे घर से लाने हैं जहाँ किसी ने अपने बच्चे, पति, माता या पिता, या मित्र को नहीं खोया हो (अर्थात् जिस घर में कभी कोई मृत्यु नहीं हुई हो)।”

Poor Kisa Gotami………………….and be blessed. (Pages 134-135)

कठिन शब्दार्थ – flickered up (फ्लिक(र)ड अप्) = टिमटिमाई/जन्म लिया। extinguished (इक्स्टिग्विश्ट) = बुझ गई/मर गई। valley of desolation (वैलि ऑव् डेसलेश्न्) = एक क्षेत्र जो गहन दु:खों से भरा है। mortals (मॉट्ल्ज ) = नश्वर प्राणी। earthen vessels (अथ्न् वेस्लज) = मिट्टी के बर्तन। overcome (ओवकम्) = नियन्त्रण स्थापित कर लेना। slaughter (स्लॉट(र)) = बूचड़खाना/कसाईखाना | deepest (डीपेस्ट) = गहनतम। grief (ग्रीफ्) = गहरा शोक | weary (विअरि) = थक .जाना। selfish (सेल्फिश) = स्वार्थी। kinsmen (किन्जमेन) = रिश्तेदार। afflicted with (अफ्लिक्ट्ड विथ) = ग्रसित होना। grieve (ग्रीव्) = दु:खी होना। obtain (अब्टेन्) = प्राप्त करना। peace (पीस्) = शान्ति।

हिन्दी अनुवाद – बेचारी किसा गोतमी अब एक घर से दूसरे घर गई (अर्थात् घर-घर चक्कर काटने लगी) और लोगों को उस पर दया आती और कहते, “ये लो सरसों; इसे रख लो!” किन्तु जब वह पूछती, “क्या आपके परिवार में कभी कोई पुत्र या पुत्री, पिता या माता की मृत्यु हुई थी?” वे उसे उत्तर देते, “ओह! जीवित बहुत कम हैं किन्तु मृतक अनेक हैं। हमें हमारे गहरे दु:खों की याद मत दिलाओ।” और वहाँ एक भी घर ऐसा नहीं था जिसमें किसी प्रिय सदस्य की मृत्यु न हुई हो।

किसा गौतमी थक गई और निराश हो गई और रास्ते के किनारे बैठकर शहर की रोशनियों को देखने लगी, जो टिमटिमाती थीं और फिर बुझ जाती थीं। अन्त में रात के अन्धकार ने सभी जगह साम्राज्य फैला लिया और तब उसने मनुष्य की नियति को माना, कि उनका जीवन टिमटिमाता है और फिर बुझ जाता है। और उसने फिर अपने आप में सोचा, “मैं अपने दुःख में कितनी स्वार्थी हो गई हूँ! मृत्यु सबके लिए समान है; फिर भी इस दुःखमय संसार में एक मार्ग ऐसा है जो उसे अमरता की ओर ले जाता है जिसने सभी स्वार्थों का समर्पण कर दिया है।”

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बुद्ध ने कहा, “इस संसार में नश्वरों का जीवन परेशानी भरा है और संक्षिप्त है और पीड़ा से जुड़ा हुआ है। क्योंकि कोई ऐसा साधन नहीं है जिसके द्वारा वे जिन्होंने जन्म लिया है, मृत्यु से बच सकें, वृद्धावस्था में पहुँचने के उपरान्त, मृत्यु ही होनी है; जीवित प्राणी ऐसी ही प्रकृति के हैं। जैसे कि पके फल के टूट कर गिरने का खतरा अधिक होता है, अतः नश्वर प्राणी जब जन्म लेते हैं तब से ही मृत्यु का खतरा हमेशा बना रहता है।

जैसे कि मिट्टी के सभी बर्तन जो कुम्हार द्वारा बनाए जाते हैं, टूटने से ही उनका अन्त होता है, नश्वर प्राणियों का जीवन भी इस ही प्रकार का है। दोनों युवा व वयस्क (प्रौढ़), दोनों वे जो मूर्ख हैं और वे जो बुद्धिमान हैं, सभी मृत्यु की शक्ति से गिर जाते हैं (अर्थात् सभी समान रूप से मृत्यु को प्राप्त होते हैं); सभी मृत्यु से बँधे हैं (अर्थात् सबकी मृत्यु होनी है)।” “वे जिन्हें मृत्यु द्वारा विजित कर लिया जाता है, जीवन से प्रस्थान कर जाते हैं, एक पिता अपने पुत्र को नहीं बचा सकता, न ही एक सम्बन्धी अपने रिश्तेदारों को। ध्यान देना! जब रिश्तेदार देख रहे हैं और गहन विलाप कर रहे हैं, एक-एक कर नश्वरों को ले जाया जाता है जैसे कि एक बैल को बूचड़खाने ले जाया जाता …
है। अतः यह संसार मृत्यु व क्षय से आक्रान्त है, इसीलिए बुद्धिमान दुःख नहीं करते हैं क्योंकि वे इस संसार के तौर-तरीके जानते हैं।”

“न तो रोने से और न ही दु:खी होने से किसी को दिमागी शान्ति प्राप्त होगी; इसके विपरीत, उसका दु:ख बढ़ जायेगा और उसका शरीर कष्ट पायेगा। वह स्वयं को बीमार व कमजोर कर लेगा, उसके विलाप द्वारा मरे हुए लोगों को फिर भी नहीं बचाया जा सकता । वह जो शान्ति खोजता है उसे विलाप, शिकायत व दु:ख का तीर बाहर निकाल देना चाहिए। वह जिसने तीर निकाल दिया है और शान्त हो गया है, दिमागी शान्ति प्राप्त कर लेगा; वह जिसने सभी दुःखों को विजित कर लिया है वह दुःखों से मुक्त हो जायेगा और पवित्र हो जायेगा।” [स्त्रोत : बेटि रेनशॉ वेल्यूज एण्ड वॉइसिज : ए कॉलिज रीडर (1975)]

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