गद्य खंड
11 भक्तिन
अभ्यास
पाठ के साथ
- भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?
उत्तर भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था। यह नाम उसके माता-पिता ने दिया था, क्योंकि वह अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी। 'लक्ष्मी' शब्द समृद्धि का सूचक है, किंतु लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। भक्तिन लेखिका के पास विधवा व निर्धन रूप में सेवा करने आई थी। लक्ष्मी जहाँ एक ओर धन की देवी होती है, वहीं दूसरी ओर भक्तिन एक सेविका है। उसने सोचा कि मेरे सेवक रूप और मेरे नाम को सुनकर लोग मेरा मजाक उड़ाएँगे, इसीलिए नाम छिपाना ही उचित है। यही कारण है कि वह लोगों से अपना वास्तविक नाम छुपाती थी। भक्तिन को यह नाम स्वयं लेखिका (महादेवी वर्मा) ने दिया, क्योंकि यह मोटी धोती पहने हुए तथा गले में कंठी-माला धारण किए हुए थी और साथ ही सिर मुंडाए हुए वैरागी (भक्तिन) जैसी दिखाई देती थी।
- दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर भक्तिन ने तीन कन्याओं को जन्म दिया था। भक्तिन की सास तीन पुत्रों की जननी थी। भक्तिन की जिठानियों के भी पुत्र ही थे, इसीलिए वह घर में उपेक्षा व घृणा का शिकार बनी। इस संदर्भ में भक्तिन को घृणा व उपेक्षा नारी से ही मिली, अपने पति से नहीं। पति के स्नेह में कोई कमी नहीं आई। ऐसी बातों से यही धारणा
बनती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है। यह धारणा वास्तविकता को ही दर्शाती है। आज का समाज पितृसत्तात्मक है। वह पुत्र को ही वंश का संचालक मानता है। इसी कारण लड़कियों के जन्म के लिए स्त्री को ही दोषी ठहराया जाता है। स्त्रियों में पुत्र की चाहत बलवती होती है और यदि वह पुत्रों की माता नहीं है, तो उसे घृणा और उपेक्षा का पात्र बनना पड़ता है। अतः यह धारणा काफी हद तक सही है कि नारी को उलाहना या उपेक्षा नारियों से ही मिलता है।
- भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?
उत्तर नारी सामाजिक संक्रमण के चौराहे पर खड़ी है। उसे परिवार और समाज के अनेक ऐसे फैसलों के सामने नतमस्तक होने को विवश होना पड़ता है, जिसके कारण उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। भक्तिन की विधवा बेटी को भी उसकी इच्छा के विरुद्ध उस तीतरबाज युवक, जिसने उसके साथ अभद्रता की थी, पंचायत के फैसले ने जबरन बाँध दिया। विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार को कुचलने की इस देश में संदियों पुरानी परंपरा रही है। आज भी भारतीय नारी को अनुकूल जीवन साथी नहीं मिल पाता, क्योंकि उसे समझने तथा परखने का अवसर ही नहीं दिया जाता है। उसे शादी के लिए विवशता के साथ समझौता ही करना पड़ता है। यहाँ भक्तिन की बेटी की तरह यदि कोई विरोध करने का साहस भी करती है तो पंचायत द्वारा उसका स्वर दबा दिया जाता है।
- 'भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर भक्तिन में सहृदयता, सादगी, सरलता तथा सेवा-भाव जैसे गुण हैं, पर इसके साथ उसमें कई अवगुण भी हैं, जिसे लेखिका ने देखा और अनुभव भी किया। अतः वह भक्तिन को अच्छी कहने में कठिनाई अनुभव करती है। यह लेखिका के इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे मटकी में छिपाकर रख देती थी। जब उससे पूछा जाता तो वह इसे चोरी न मानकर तर्क शिरोमणि के समान शास्त्रार्थ के लिए चुनौती देती है। वह चोरी मानने से इंकार कर देती। शास्त्रीय बातों की व्याख्या वह अपनी इच्छानुसार करती है। इसी कारण लेखिका ने ऐसा कहा।
- भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
उत्तर शास्त्र का प्रश्न भी भक्तिन अपनी सुविधा के अनुसार सुलझा लेती। इसका उदाहरण लेखिका ने यह दिया कि उन्हें स्त्रियों का सिर मुंडाना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उसने उसे ऐसा करने से रोकना चाहा किंतु भक्तिन ने शास्त्र का उदाहरण देते हुए कहा कि तीरथ गए मुंडाए सिद्ध अर्थात् सिद्ध लोग सिर मुंडवा कर तीर्थ करने गए। कौन-से शास्त्र का यह रहस्यमय सूत्र है यह जान लेना लेखिका के लिए संभव नहीं था, अतः वह चुप हो गई। यही उदाहरण लेखिका ने भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझाने के लिए दिया है।
6. भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई?
उत्तर भक्तिन के आ जाने के बाद महादेवी वर्मा को देहात की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा का ज्ञान हो गया था। इससे पहले लेखिका केवल शहरी जीवन से ही जुड़ी हुई थी। लेखिका अपने देहाती स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखती है कि आज मैं अधिक देहाती हूँ, क्योंकि भक्तिन ने मुझे यह सिखा दिया है कि-"मकई का, रात को बना दलिया, सवेरे मट्टे से सोंधा लगता है। बाजरे के तिल लगाकर बनाए हुए पुए गरम, कम अच्छे लगते हैं। ज्वार के भुने हुए भुट्टे के हरे दानों की खिचड़ी स्वादिष्ट होती है। सफेद महुए की लपसी संसार भर के हलवे को लजा सकती है।"
इसके साथ ही भक्तिन ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर देती थी कि वह देहाती परंपराएँ तक निभाने को बाध्य हो जाती थी। इस प्रकार भक्तिन के आ जाने से लेखिका अधिक देहाती हो गई।
पाठ के आस-पास
- भक्तिन की बेटी के मामले में जिस तरह का फैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज बात नहीं है। अखबारों या टीवी समाचारों में आने वाली किसी ऐसी ही घटना को 'भक्तिन' के उस प्रसंग के साथ रखकर उस पर चर्चा करें।
उत्तर भक्तिन की बेटी के मामले में जो फैसला पंचायत ने सुनाया वह आज के संदर्भ में तनिक भी आश्चर्यजनक नहीं है। आज भी ग्राम पंचायतें सभी महत्त्वपूर्ण फैसलों में हस्तक्षेप करती हैं। भूमि, विवाह, संबंध, धार्मिक मामलों में वे रूढ़िवादिता की पक्षधर हैं। ग्राम पंचायतों की संकीर्ण मानसिकता उन्हें रूढ़ियों व परंम्पराओं के बंधन तोड़ने नहीं देती। अनेक समाचार-पत्रों व दूरदर्शन के माध्यम से पता चलता है
अगर युवक-युवती बालिग होते हुए विवाह कर लेते हैं तो पंचायतें उन्हें अवैध ठहराकर अलग-अलग रहने का आदेश दे देती हैं। कभी-कभी इन पंचायतों ने पति-पत्नी को भाई-बहन की तरह से रहने पर मजबूर कर दिया और कई गाँवों में तो स्वार्थवश युवतियों को डायन करार देकर मृत्युदंड का फरमान सुना दिया जाता है।
भाषा की बात
- नीचे दिए गए विशिष्ट भाषा-प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट कीजिए
(क) पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले
(ख) खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी
(ग) अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण
उत्तर (क) जैसे किसी पुस्तक के नए रूप निकलते हैं, ठीक उसी तरह भक्तिन ने भी अपनी पहली कन्या के बाद दो अन्य कन्याएँ उत्पन्न कीं।
(ख) पुरुष प्रधान समाज में पुरुष प्रधान मानसिकता के अंतर्गत लड़के को 'खरा सिक्का' और लड़की को 'खोटा सिक्का' माना जाता है। भक्तिन ने एक-एक करके तीन लड़कियों को जन्म दिया, इसीलिए व्यंग्य में उसे खोटे सिक्कों की टकसाल (सिक्के ढालने वाली मशीन) जैसी पत्नी कहा गया है।
(ग) अपने पिता की बीमारी (मृत्यु) का हाल-चाल लेने भक्तिन जब गाँव पहुँची तो गाँव वाले उसे देखकर फुसफुसाते हुए कहने लगे-'वो आ गई, लछमी आ गई।' इस खुसर-फुसर में स्पष्ट रूप से भक्तिन के प्रति सहानुभूति थी।
- 'बहनोई' शब्द 'बहन' (स्त्री) + ओई' से बना है। इस शब्द में हिंदी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई है। पुंलिंग शब्दों में कुछ स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्रीलिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया कई भाषाओं में दिखती है, पर स्त्रीलिंग शब्द में कुछ पुं. प्रत्यय जोड़कर पुंलिंग शब्द बनाने की घटना प्रायः अन्य भाषाओं में दिखलाई नहीं पड़ती। यहाँ पु. प्रत्यय 'ओई' हिंदी की अपनी विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और उनमें लगे पुं. प्रत्ययों की हिंदी तथा और भाषाओं में खोज करें।
उत्तर 'ननद' स्त्रीलिंग शब्द है, जिसमें पुंलिंग प्रत्यय ओई जोड़ने पर 'ननदोई' शब्द बनता है, जिसका अर्थ है-ननद का पति।
- पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझकर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में ढालकर प्रस्तुत कीजिए
(क) ई कउन बड़ी बाता आय। रोटी बनाय जानित है, दाल राँध लेइत है, साग-भाजी छँउक सकित है, अउर बाकी का रहा।
(ख) हमारे मालकिन तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़ै लागब तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।
(ग) ऊ बिचरिअ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं, अउर तुम पचै घूमती-फिरती हौ, चलौ तनिक हाथ बटाय लेउ।
(घ) तब ऊ कुच्छौ करिहैं-धरिहैं ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं।
(ङ) तुम पचै का का बताईयहै पचास बरिस से संग रहित है।
(च) हम कुकुरी बिलारी न होयँ, हमार मन पुसाई तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा भूँजब और राज करब, समुझे रहौ।
उत्तर (क) यह कौन बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ। दाल राँध (बना) लेती हूँ। साग-सब्जी छौंक सकती हूँ और शेष क्या रहा।
(ख) हमारी स्वामिन तो रात-दिन पुस्तकों में ही व्यस्त रहती हैं। अब यदि मैं भी पढ़ने लगूँ तो घर-परिवार के कार्य कौन करेगा।
(ग) वह बेचारी तो रात-दिन काम में लगी रहती है और तुम लोग घूमते फिरते हो। जाओ, थोड़ी उनकी सहायता करो। है।
(घ) तब वह कुछ करता-धरता नहीं है, बस गली-गली में गाता-बजाता फिरता
(ङ) तुम लोगों को क्या बताऊँ-लगभग पचास वर्ष से साथ रहती हूँ।
(च) मैं कुतिया-बिल्ली नहीं हूँ। मेरा मन करेगा तो मैं दूसरे के घर जाऊँगी, अन्यथा तुम लोगों की छाती पर ही होला (होरहा) भूनूँगी और राज करूँगी, इसे समझ लो।
- भक्तिन पाठ में पहली कन्या के दो संस्करण जैसे प्रयोग लेखिका के खास भाषाई संस्कार की पहचान कराता है, साथ ही ये प्रयोग कथ्य को संप्रेषणीय बनाने में भी मददगार हैं। वर्तमान हिंदी में भी कुछ अन्य प्रकार की शब्दावली समाहित हुई है। नीचे कुछ वाक्य दिए जा रहे हैं जिससे वक्ता की खास पसंद का पता चलता है। आप वाक्य पढ़कर बताएँ कि इनमें किन तीन विशेष प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हुआ है? इन शब्दावलियों या इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए आप भी कुछ वाक्य बनाएँ और कक्षा में चर्चा करें कि ऐसे प्रयोग भाषा की समृद्धि में कहाँ तक सहायक हैं?
अरे! उससे सावधान रहना! वह नीचे से ऊपर तक वायरस से भरा हुआ है। जिस सिस्टम में जाता है उसे हैंग कर देता है।
घबरा मत! मेरी इनस्वींगर के सामने उसके सारे वायरस घुटने टेकेंगे। अगर ज्यादा फ़ाउल मारा तो रेड कार्ड दिखा के हमेशा के लिए पवेलियन भेज दूँगा।
जानी टेंसन नई लेने का वो जिस स्कूल में पढ़ता है अपुन उसका हैडमास्टर है।
उत्तर उपरोक्त वाक्यों में कम्प्यूटर, खेल-जगत तथा मुंबई की फिल्मी दुनिया की शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
वायरस - दोष
सिस्टम - प्रणाली
हैंग - गतिरोध, ठहराव
अर्थ उससे सावधान रहना। वह पूरी तरह प्रदूषित है। वह जहाँ भी जाता है, पूरी व्यवस्था में ठहराव आ जाता है।
इनस्वींगर - भीतर तक भेदने वाली कार्रवाई
फाउल - गलत काम
रेड कार्ड - बाहर जाने का संकेत
पवेलियन - वापस घर लौटना
अर्थ घबरा मत। जब मैं अंदर तक मार करने वाली कार्रवाई करूँगा तो उसकी सारी अड़ंगेबाजी समाप्त हो जाएगी। अगर उसने गड़बड़ की तो उसे कानूनी दाँवपेंच में फँसाकर बाहर कर दूँगा।
जानी - प्रिय के लिए हल्का संबोधन
टेंसन लेना - परवाह करना
स्कूल में पढ़ना - काम करना
हैडमास्टर होना - उस्ताद होना
अर्थ प्रिय मित्र! चिंता मत करो। वह जो काम कर रहा है, उस काम में मैं उसका उस्ताद हूँ।