सरोज स्मृति

सरोज स्मृति
  1. सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर सरोज का विवाह पूर्णतया नए विधि-विधान से संपन्न हुआ। सर्वप्रथम कलश के पावन जल से उसको अभिषिक्त किया गया। उस समय वह मंद-मंद मुस्कान से अपने पिता अर्थात् निराला जी की ओर निहार रही थी तथा उसके होठों में मानो बिजली के स्पंदन के समान हँसी की लहर फैल गयी थी। उस समय मानों उसके हृदय में पति की सुंदर छवि प्रतिबिंबित हो रही थी और उसके सुंदर मुख पर भावी दांपत्य को लेकर सुख का भाव मुखरित हो रहा था। वह एक कली के समान आकर्षक लग रही थी। उसके नेत्र लज्जा के कारण झुके हुए थे और होठों में कंपन हो रहा था। नववधू के रूप में सरोज धैर्य की मूर्ति के समान दिखाई दे रही थी।

2. कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद क्यों आई?

उत्तर निराला ने पत्नी की मृत्यु के बाद अपनी पुत्री सरोज को माता-पिता दोनों का प्यार दिया। सरोज के विवाह-आयोजन के अवसर पर कवि निराला अपनी स्वर्गीया पत्नी को याद करते हैं तो यह स्वाभाविक है। निराला सरोज के नवोढ़ा के रूप को देखने के बाद अपनी पत्नी के साथ वसंत की प्रथम गीति को याद करते हैं। उन्हें सरोज अपनी माँ का प्रतिरूप प्रतीत होती है और उसके रूप में स्वर्गीया पत्नी का सौंदर्य धरती पर उतरा मालूम होता है।

कवि निराला पुत्री के विवाह आयोजन में एक साथ माता तथा पिता के कार्यों को सम्पादित करते हुए भी अपनी पत्नी को याद करते हैं। निराला ने स्वयं पुत्री को कुल-शिक्षा दी तथा उसके लिए पुष्प-सेज भी निर्मित की।

3. 'आकाश बदल कर बना मही' में 'आकाश' और 'मही' शब्द किनकी ओर संकेत करते हैं?

उत्तर कवि निराला अपनी स्वर्गीया पत्नी की छवि नवोढ़ा सरोज में देखते हैं। एक निराकार है तथा दूसरा साकार। स्वर्गीया पत्नी आकाश की तरह निराकार है तो पुत्री धरती की तरह साकार। निराला अपनी पुत्री सरोज के विवाह के समय उसके सौंदर्य में अपनी पत्नी के विवाह के समय की छवि को देखते हैं। इस छवि के प्रतिबिंबन में कवि को निराकार के साकार होने की प्रवृति का रूप सामने दिखता है। उसे लगता है जैसे आकाश ने स्वयं धरती का रूप ग्रहण कर लिया है। 'आकाश' उनकी पत्नी और 'मही' उनकी पुत्री के प्रतीक हैं।

4. सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था?

उत्तर सामान्य विवाह आयोजनों में उल्लास का माहौल रहता है। विवाह से कई दिन पूर्व नाते-रिश्तेदार पहुँचने लगते हैं। विवाह के गीत गूँज उठते हैं। शहनाइयाँ बजती हैं। बारात आती है तथा विवाह में लोगों की आवाजाही बढ़ जाती है, किंतु सरोज का विवाह सामान्य विवाहों से भिन्न था।

सरोज के विवाह में किसी सगे-संबंधी को आमंत्रित नहीं किया गया था। कवि निराला ने माता-पिता दोनों के द्वारा की जाने वाली सभी वैवाहिक रस्मों को स्वयं निभाया। 'मौन' के बीच विवाह बड़ी सादगी तथा शांति के साथ संपन्न हुआ। पिता निराला ने विवाह के बाद माता द्वारा पुत्री को दी जाने वाली कुल-शिक्षा स्वयं दी तथा पुत्री के लिए पुष्प-सेज भी पिता ने ही तैयार की।

5. 'शकुंतला' के प्रसंग के माध्यम से कवि क्या संकेत करना चाहता है?

उत्तर निराला ने प्रायः पौराणिक प्रतीकों का प्रयोग अपनी कविताओं में किया है। 'सरोज र्मृति' में 'शकुंतला' एक प्रतीक के रूप में आई है। शकुंतला कण्व महर्षि के स्नेह के बीच पली-बढ़ी है। वह सरोज की तरह ही मातृहीन है। किंतु निराला ने शकुंतला और सरोज के बीच अंतर माना है। दोनों की परिरिथतियाँ अलग-अलग हैं। सरोज कालिदास की शकुंतला से पाठ तथा कला (रूप-रचना) दोनों में भिन्न है। उन दोनों के पीड़ा स्तर में भी अंतर है।

6. 'वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली' पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?

उत्तर सरोज की माता की मृत्यु के बाद कवि की अल्पायु पुत्री का लालन-पालन ननिहाल में हुआ। सरोज ने वहीं अपनी आँखें खोलीं और वहीं की मिट्टी में लेटकर

बड़ी हुई। कवि निराला काव्य रचना संसार में प्रवृत रहने तथा हिंदी के विस्तार के लिए भ्रमणशील रहे। इस अवस्था में पुत्री का लालन-पालन उनके लिए संभव नहीं था। ऐसी स्थिति में सरोज अपनी नानी की गोद में बड़ी हुई। विवाह के समय वह अवश्य कुछ दिनों के लिए अपने पिता के घर गई, किंतु विवाह के बाद पुनः ननिहाल चली गई, जहाँ उसने अंतिम साँस ली। कवि ने सरोज की माता को 'लता' तथा सरोज को 'कली' कहा। वह कली सरोज वहीं पर खिली, जहाँ की उसकी लता थी।

7. कवि ने अपनी पुत्री का तर्पण किस प्रकार किया है?

उत्तर भारतीय संस्कृति में दिवंगत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए उसे विधिवत् तर्पण किया जाता है। यह तर्पण वस्तुतः जल तथा धन-धान्य का अर्पण होता है। कवि 'तर्पण' के महत्त्व को मानता है। निराला आत्मा की अमरता पर विश्वास करते हैं लेकिन पुत्री के प्रति स्नेह उनके विवेक पर हावी रहता है। कवि अपनी पुत्री को सामान्य तर्पण नहीं देता। वह उसे अपने समस्त सद्कर्मों का तर्पण देता है। कवि मानता है कि इन सद्कर्मों ने जीते जी पुत्री का भला नहीं किया, लेकिन शायद उसकी आत्मा की शांति में ये कर्म अपना योगदान दे सकें।

8. निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए

(क) नत नयनों से आलोक उतर

(ख) शृंगार रहा जो निराकार

(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला

(घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ

उत्तर (क) विवाह के समय नववधू के रूप में सुसज्जित सरोज इतनी सुंदर तथा आकर्षक प्रतीत हो रही थी कि लज्जा के कारण उसके झुके हुए नेत्रों से भी एक दिव्य प्रकाश आलोकित हो रहा था। ऐसा लगता था मानो दांपत्य जीवन की भावी सुखद कल्पनाओं की ज्योति उसके नेत्रों में जगमगा रही हो।

(ख) कवि उसके दुल्हन रूप में उस शृंगार का दर्शन करता है जो आकारहीन होकर भी उसके काव्य रस की उमड़ती हुई धारा के समान प्रस्फुटित हो रहा था। कवि अपनी पुत्री को देखकर यौवन काल के दिनों को स्मरण करता है।

(ग) कवि सरोज की विदाई के समय उसे शिक्षा देते हुए सोचता है कि वह भी इस समय सरोज को उसी प्रकार शिक्षा दे रहा है जैसे कण्व ऋषि ने शकुंतला की विदाई के अवसर पर दी थी, परंतु उसे स्मरण हो आता है कि उसके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा कण्व ऋषि से भिन्न है क्योंकि उसकी पुत्री सरोज की स्थिति शकुंतला

से भिन्न है। इसलिए उसने सरोज को उस समय की परिस्थितियों के अनुकूल ही शिक्षा दी।

(घ) निराला जी ने अपनी पुत्री सरोज का वर्णन स्वयं किया था। वह अपनी पुत्री के वर्णन के लिए सब प्रकार की विपत्तियाँ सहन करने के लिए उत्सुक हैं। वह कहते


हैं कि मैं सरोज के प्रति अपने पितृ धर्म का निर्वाह करते हुए उसका तर्पण अवश्य करूँगा। चाहे मेरे सभी कर्मों पर बिजली गिर जाए, तब उसे भी सिर झुकाकर स्वीकार करूँगा।

योग्यता विस्तार

  1. 'सरोज स्मृति' पूरी कविता पढ़कर आम आदमी के जीवन-संघर्षों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर सरोज-स्मृति कविता एक आम-आदमी के जीवन की व्यथा है। एक आम आदमी जो अपनी मेहनत पर ईमानदारी के साथ जीवन जीना चाहता है, उसका जीवन सरल नहीं है। उसमें अनेक संघर्ष, कठिनाइयाँ और कंटीले रास्ते हैं जो आजीवन मनुष्य के हृदय को र्मृतियों के रूप में बाँधते रहते हैं। आम व्यक्ति का जीवन कष्टों से इतना परिपूर्ण है कि वह अपनी पत्नी का इलाज करा सकने में अक्षम है। चिकित्सा के अभाव में अनेक निर्धन स्त्रियाँ बच्चों को जन्म देते समय ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं। उचित दवा का अभाव, डॉक्टर को दिखाने की असमर्थता और अपने नवजात शिशु की देखभाल न कर सकने की लाचारी एक आम व्यक्ति के जीवन संघर्ष की कहानी है। सामान्य आदमी अपने जीवन की इन्हीं विषमताओं, अभावों और पीड़ाओं के साथ जीवन जीने को मजबूर है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

0:00
0:00