Chapter 11 पर्यावरणम्
अभ्यासः
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि कानि सन्ति?
उत्तर:
पृथिवी, जलं, तेजो, वायुकाशश्चेति प्रकृत्या प्रमुखतत्त्वानि सन्ति।
(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति?
उत्तर:
स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति।
(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति?
उत्तर:
पर्यावरणे विकृते जाते विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च जायन्ते।
(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया? –
उत्तर:
वापीकूपतडागादिनिर्माणं कृत्वा, कुक्कुरसूकरसर्पनकुलादिस्थलचराणां, मत्स्यकच्छपमकरप्रभृतीनां जलचराणां रक्षणेन पर्यावरणस्य रक्षा करणीया।
(ङ) लोकरक्षा कथं सम्भवति?
उत्तर:
प्रकृतिरक्षयैव लोकरक्षा सम्भवति।।
(च) परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति?
उत्तर:
परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं, माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति।
प्रश्न 2.
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते।
उत्तर:
के निर्विवेकं छिद्यन्ते?
(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते।
उत्तर:
कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते?
(ग) प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति।
उत्तर:
प्रकृतिः किं प्रददाति?
(घ) अजाताशिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति।
उत्तर:
अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?
(ङ) पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति।
उत्तर:
पर्यावरणरक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति।
प्रश्न 3.
उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत-
(क) यथा – जले चरन्ति इति = जलचराः।
उत्तर:
(i) स्थले चरन्ति इति = स्थलचराः
(ii) निशायां चरन्ति इति = निशाचराः
(iii) व्योम्नि चरन्ति इति = व्योमचराः
(iv) गिरौ चरन्ति इति = गिरिचराः
(v) भूमौ चरन्ति इति = भूमिचराः
(ख) यथा – न पेयम् इति = अपेयम्
उत्तर:
(i) न वृष्टिः इति = अवृष्टिः
(ii) न सुखम् इति = असुखम्
(iii) न भावः इति = अभावः
(iv) न पूर्णः इति = अपूर्णः
प्रश्न 4.
उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत- .
यथा = वि + कृ + क्तिन् = विकृतिः।।
उत्तर:
(क) प्र + गम् + क्तिन् = प्रगतिः
(ख) दृश् + क्तिन् = दृष्टिः
(ग) गम् + क्तिन् = गतिः
(घ) मन् + क्तिन्
(ङ) शम् + क्तिन् = शान्तिः
(च) भी + क्तिन् = भीतिः
(छ) जन् + क्तिन् = जातिः
(ज) भज् + क्तिन् = भक्तिः
(झ) नी + क्तिन् = नीतिः
प्रश्न 5.
निर्देशानुसारं परिवर्तयत यथा-स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति (बहुवचने)। स्वार्थान्धाः मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयन्ति।
(क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः? (बहुवचने)
उत्तर:
सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलं कुतः?
(ख) मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्तिं (एकवचने)
उत्तर:
मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति।
(ग) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते (एकवचने)
उत्तर:
वनवृक्षः निर्विवेक छिद्यते।
(घ) गिरिनिर्झराः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (द्विवचने)
उत्तर:
गिरिनिर्झराः निर्मलं जलं प्रयच्छतः।
(ङ) सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति (बहुवचने)।
उत्तर:
सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छति।
प्रश्न 6.
पर्यावरणरक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्चवाक्यानि लिखत्।
यथा –
अहं विषाक्तम् अवकरं नदीषु न पातयिष्यामि।
(क) अहं वृक्षच्छेदनं न करिष्यामि।
(ख) अहं नूतनवृक्षान् लताः च आरोपयिष्याणि।
(ग) अहं पशून पालयिष्यामि।।
(घ) अहं पशुपक्षिणाम् आखेटं न करिष्यामि।
(ङ) अहं वापीकूपतडागादीनां निर्माणं करिष्यामि।
प्रश्न 7.
(क) उदाहरणमनुसत्य उपसर्गान पृथक्कृत्वा लिखत
यथा-
संरक्षणाय = सम्।
उत्तर:
(i) प्रभवति
(ii) उपलभ्यते = उप
(iii) निवसन्ति = नि
(iv) समुपहरन्ति = सम् + उप
(v) वितरन्ति = वि
(vi) प्रयच्छन्ति = प्र
(vii) उपगता = उप
(viii) प्रतिभाति = प्रति
(क) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत
यथा-
तेजोवायुः = तेजः वायुः च।
गिरिनिर्झराः = गिरयः निर्झराः च।
उत्तर:
पत्रपुष्पे = पत्रम् पुष्पम् च.
(ii) लतावृक्षौ = लता वृक्षः च
(iii) पशुपक्षी = पशुः पक्षी च
(iv) कीटपतङ्गौ = कीटः पतङ्गः च
परियोजनाकार्यम्
(क) विद्यालयप्राङ्गणे स्थितस्य उद्यानस्य वृक्षाः पादपाश्च कथं सुरक्षिताः। स्युः तदर्थं प्रयत्नः करणीयः इति सप्तवाक्येषु लिखत।
उत्तर:
1. सर्वप्रथमं वृक्षाणां पादपानां च स्पर्शस्य निषेधः स्यात्।
2. तेषां पुष्पाणामपि स्पर्शस्य निषेधः भवितव्यः।
3. वृक्षाणां फलानामपि कापि हानिः न भवितव्या।
4. तेषां जलसिञ्चनस्य पूर्णः प्रबन्धः स्यात्।
5. पुष्पविनाशकं प्रति दण्डस्य व्यवस्था स्यात्।।
6. वृक्षान् पादपान् वा प्रति रक्षाजालस्य व्यवस्था भवितव्या।
7. वृक्षाणां संरक्षणाय मालाकाराणामपि व्यवस्था भवितव्या।
(ख) अभिभावकस्य शिक्षकस्य वा सहयोगेन एकस्य वृक्षस्य आरोपणं कर णीयम्। (यदि स्थानम् अस्ति)। तर्हि विद्यालये प्राङ्गणे, नास्ति चेत् स्वस्मिन् प्रतिवेशे, गृहे वा।) कृतं सर्वं दैनिन्दिन्यां लिखित्वा शिक्षकं दर्शयत।
उत्तर:
छात्र अपने-अपने अध्यापक के सहयोग से अपने-अपने विद्यालय में वृक्ष लगाएँ तथा अपनी डायरी में लिखें कि वे उसकी रक्षा के लिए प्रतिदिन क्या-क्या करते हैं-यह सब वह अपने अध्यापक को भी लिखकर दिखाएँ।
Summary Translation in Hindi and English
संकेत-प्रकृतिः समेषां …………………………… क्व मङ्गलम्।
शब्दार्थ (Word-meanings)
हिन्दी अनुवाद-प्रकृति सब प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयत्न करती है। यह विभिन्न प्रकारों से सबको पुष्ट करती है तथा सुखसाधनों से तृप्त करती है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये इसके प्रमुख तत्त्व हैं। वे ही मिलकर या अलग-अलग हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। संसार जिसके द्वारा सब ओर से अच्छादित किया जाता है, वह ‘पर्यावरण’ कहलाता है। जिस प्रकार अजन्माशिशु अपनी माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है उसी प्रकार मनुष्य पर्यावरण की कोख में (सुरक्षित रहता है)। परिष्कृत तथा प्रदूषण से रहित पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन-सुख, अच्छे विचार, अच्छे संकल्प तथा मांगलिक सामग्री देता है। प्रकृति के क्रोधों से व्याकुल मनुष्य क्या कर सकता है? बाढ़, अग्नि भय, भूकम्पों, आँधी-तूफानों तथा उल्का आदि के गिरने से संतप्त मानव का कहाँ कल्याण है? अर्थात् कहीं नहीं।
Meaning in English: Nature tries for the protection of all the living-beings. It nourishes all in various ways and satisfies all by various means of happiness. Earth, water, fire, wind and sky all these are its main elements. They only collectively or individually form our environment. It is called environment by which the world is covered from all the sides. Just as the baby, before his birth, lives safely in his mother’s womb, similarly, man is safe in the cavity of the environment. The environment which is pure and is free from all the impurities provides us with worldly pleasures of life, good thoughts, good determinations, auspicious things etc. What can a man do when perplexed by the anger of the nature? Where can there be well-being or welfare of a man. who is perplexed by floods, fear of fire, earthquakes, storms, disasters etc.? (i.e. nowhere)
संकेत-अतएव …………………………… प्राणवायुं वितरन्ति।
शब्दार्थ (Word-meanings)
हिन्दी सरलार्थ-इसलिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए, उससे पर्यावरण अपने-आप सुरक्षित हो जाएगा। प्राचीनकाल में जनता का कल्याण चाहने वाले ऋषि वन में ही रहते थे क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था। विभिन्न प्रकार के पक्षी अपने मधुर कूजन से वहाँ कानों को अमृत प्रदान करते हैं। नदियाँ तथा पर्वतीय झरने अमृत के समान स्वादिष्ट पवित्र जल देते हैं। वृक्ष तथा लताएँ फल, फूल तथा ईन्धन की लकड़ी बहुत मात्रा में देते हैं। शीतल, मन्द तथा सुगन्धित वनवायु औषध के समान प्राणवायु बाँटते हैं।
Meaning in English-Therefore, we should protect the nature. Then the environment will be protected itself. In ancient times, the sages who desired for the welfare of the people, used to live in the forest only because the safe-environment was obtained in the forest. Various types of birds give pleasure to the ears by their sweet chirping. The rivers and mountain springs provide us pure and sweet nectar-like water. The trees and creepers give us fruits, flowers and fire-wood in big quantity. The cold, slow and fragrant wind of the forest give us medicine like oxygen which is necessary for our like.
संकेत-परन्तु स्वार्थान्धो …………………………… प्रतिभाति।
शब्दार्थ (Word-meanings)
हिन्दी सरलार्थ-किन्तु स्वार्थ में अन्धा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। थोड़े से लाभ के लिए मनुष्य बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे हैं। कारखानों का विषैला जल नदियों में गिराया जा रहा है जिससे मछली आदि जलचरों का क्षणभर में ही नाश हो जाता है। नदियों का पानी भी सर्वथा न पीने योग्य (अपेय) हो जाता है। वन के वृक्ष व्यापार बढ़ाने के लिए अंधाधुंध काटे जाते हैं जिससे अवृष्टि में वृद्धि होती है तथा वन के पशु असहाय होकर गाँवों में उपद्रव उत्पन्न करते हैं। वृक्षों के कट जाने से शुद्ध वायु भी दुर्लभ हो गई है। इस प्रकार स्वार्थ से अन्धे मनुष्यों के द्वारा विकारयुक्त प्रकृति ही उनकी विनाशिनी हो गई है। पर्यावरण में विकार आ जाने से विभिन्न रोग तथा भयंकर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए अब सब कुछ चिन्तायुक्त प्रतीत हो रहा है।
Meaning in English-But the men being mad after self-interest only are destroying the environment today. People are destroying precious things just for their small interest. The poisonous water of the factories is flown into rivers by which the aquatic animals like fish etc. are destroyed in a short while. The water of the rivers also becomes unfit to drink. The forest-trees are cut relentlessly, just to increase the business by which the scarcity of rain increases. The wild animals become helpless and they create chaos in the villages. The pure wind has also become unavailable by cutting of trees. Thus, the nature has been made polluted by the selfish people and this has herself become their destroyer. The polluted environment has given birth to various diseases and to many serious problems. Therefore, everything seems to be disturbed today.
संकेत-धर्मो रक्षितः …………………………… न संशयः।
शब्दार्थ (Word-meanings)
हिन्दी सरलार्थ-‘रक्षित धर्म रक्षा करता है’- ये ऋषियों के वचन हैं। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग है-ऐसा ऋषियों ने प्रतिपादित किया है। इसीलिए बावड़ी, कुएँ, तालाब आदि बनवाना, मन्दिर, विश्रामगृह आदि की स्थापना धर्मसिद्धि के साधन के रूप ही माने गए हैं। कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि स्थलचरों तथा मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि जलचरों की भी रक्षा करनी चाहिए क्योंकि ये पृथ्वी तथा जल की मलिनता को दूर करने वाले हैं। प्रकृति की रक्षा से ही संसार की रक्षा हो सकती है-इसमें सन्देह. नहीं है।
Meaning in English-‘The protected religion protects. These are the famous words of the sages. The sages have also propounded that the protection of environment is also a part of religion. Therefore, digging of small tanks, wells and ponds etc. and making temples, rest-houses etc. are also considered means of establishing religion. We should protect the creatures living on land like dogs, pigs, snakes, mongoose etc. and the aquatic animals like fish, tortoise, crocodiles etc. because they are scavengers of the impurities of land and that of water. No doubt, protection of the environment can only protect the world.