पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में अत्यन्त सरल संस्कृत के श्लोकों में बालकों के मनोभावों को व्यक्त किया गया है।
प्रथम श्लोक में बालक परस्पर में एक-दूसरे का आह्वान करते हुए एक वायुयान का निर्माण करके आकाश में स्वच्छन्दता के साथ घूमना चाहते हैं।
द्वितीय श्लोक में उन्नत वृक्षों और भवनों को लाँघने, आकाश में विचरण करने तथा हिमालय को पार करके चन्द्रमा पर जाने की भावना को दर्शाया गया है।
तृतीय श्लोक में सूर्य आदि ग्रहों को गिनकर तारों का हार बनाने की भावना व्यक्त हुई है।
चतुर्थ श्लोक में आकाश में बादलों को लाकर दीन-दुःखियों की सहायता करने की पवित्र भावना को चित्रित किया गया है।

पाठ के कठिन-शब्दार्थ –

पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ/सरलार्थ – 

1. राघव! माधव! सीते! …………………. वायुविहारं करवाम।। 

अन्वयः – राघव! माधव! सीते! ललिते! विमानयानं रचयाम। विपुले विमले नीले गगने वायुविहारं करवाम।
हिन्दी-भावार्थ/सरलार्थ – राघव!, माधव!, सीते!, ललिता!, हम हवाई जहाज बनाएँ, (और) विस्तृत व निर्मल नीले आकाश में हम वायुयात्रा करें।

2. उन्नतवृक्षं तुङ्गं भवनं …………………. चन्दिरलोकं प्रविशाम।। 

अन्वयः – उन्नतवृक्षं तुङ्गं भवनं (च) क्रान्त्वा खलु आकाशं याम। हिमवन्तं सोपानं कृत्वा चन्दिरलोकं प्रविशाम ।
हिन्दी-भावार्थ/सरलार्थ – कवि बालकों को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि हम ऊँचे वृक्ष को और ऊँचे| भवन को पार करके चलें। हिमालय की सीढ़ी बनाकर हम चन्द्रलोक में प्रवेश करें।

3. शुक्रश्चन्द्रः सूर्यो गुरुरिति ……………… मौक्तिकहारं रचयाम ।। 

अन्वयः – हि शुक्रः, चन्द्रः, सूर्यः, गुरुः इति सर्वान् ग्रहान् गणयाम। विविधाः सुन्दरताराः चित्वा (वयम्) मौक्तिकहारं रचयाम।
हिन्दी-भावार्थ/सरलार्थ – कवि प्रेरणा देता हुआ कहता है कि निश्चय ही हम शुक्र, चन्द्र, सूर्य, गुरु आदि सभी ग्रहों को गिर्ने । हम विविध सुन्दर तारों को चुनकर मोतियों के हार को बनाएँ।

4. अम्बुदमालाम् अम्बरभूषाम् ……………………. गृहेषु हर्षं जनयाम।। 

अन्वयः – हि अम्बरभूषाम् अम्बुदमालाम् आदाय एव (वयं) प्रतियाम। (वयं) दु:खित-पीडित-कृषिकजनानां गृहेषु हर्ष जनयाम।
हिन्दी-भावार्थ/सरलार्थ – कवि प्रेरणा देता हुआ कहता है कि हम आकाश की शोभा बादलों की माला को लेकर ही लौटें। हम दुःखी व पीड़ित किसानों के घरों में खुशी उत्पन्न करें।

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