Chapter 2 दुर्बुद्धिः विनश्यति
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ की कथा पं. विष्णु शर्मा द्वारा लिखित सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘पञ्चतन्त्र’ से ली गई है। इस कथा में बताया गया है कि अनुचित समय पर बोलने से किस प्रकार सब कुछ नष्ट हो जाता है। कभी-कभी मौन रहकर भी कार्य सफल हो सकता है। अतः हमें उचित-अनुचित समय को देखकर ही बोलना चाहिए तथा मित्रों की बात भी माननी चाहिए।
पाठ का हिन्दी-अनुवाद एवं पठितावबोधनम् –
1. अस्ति मगधदेशे …………………………………….. प्रतिवसति स्म।
हिन्दी अनुवाद – मगध प्रदेश में फुल्लोत्पल नामक तालाब था। वहाँ संकट और विकंट नामक दो हंस रहते थे। कम्बुग्रीव नामक उन दोनों का मित्र एक कछुआ भी वहीं रहता था। पठितावबोधनम्
निर्देशः – उपर्युक्तं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारितप्रश्नानाम् उत्तराणि यथानिर्देशं लिखतप्रश्ना:
(क) सरोवरः कस्मिन् देशे आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कूर्मस्य किम् नाम आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) हंसौ कुत्र निवसतः स्म? तयोः मित्र कः आसीत? (पर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘तत्र संकटविकट हंसौ निवसतः’ इत्यत्र अव्ययपदं किम्?
(ङ) ‘निवसतः’ इति क्रियापदस्य गद्यांशे कर्तृपदं किं प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(क) मगधदेशे।
(ख) कम्बुग्रीवः।
(ग) हंसौ सरोवरे निवसतः स्म। तयोः मित्रम् एकः कूर्मः आसीत्।
(घ) तत्र।
(ङ) हंसौ।
2. अथ एकदा धीवराः …………………………………………………….. अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।”
हिन्दी अनुवाद – एक बार मछुआरे वहाँ पर आये। वे बोले-“हम कल मछली, कछुआ आदि को मारेंगे।” यह सुनकर कछुआ बोला-“हे मित्रो! क्या तुम दोनों ने मछुआरों की बातचीत सुनी? अब मैं क्या करूं?” दोनों हंस बोले “सुबह जो उचित हो वह करना चाहिए।” कछुआ बोला-“ऐसा नहीं है। इसलिए जिस प्रकार से मैं अन्य तालाब में पहुँच जाऊँ वैसा कीजिए।” दोनों हंस बोले-“हम दोनों क्या करें?” कछुआ बोला-“मैं तुम दोनों के साथ आकाश मार्ग से दूसरी जगह जाना चाहता हूँ।”
पठितावबोधनम्प्रश्ना:
(क) कूर्मः काभ्यां सह अन्यत्र गन्तुम् इच्छति? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) एकदा तत्र के आगच्छन्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) धीवराः कान् मारयिष्यन्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘करवाव’ इति क्रियापदस्य कर्त्तापदं गद्यांशे किमस्ति?
(ङ) ‘ते अकथयन्’-इत्यत्र ‘ते’ सर्वनामपदं केभ्यः प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(क) हंसाभ्याम्।
(ख) धीवराः।
(ग) धीवराः मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्यन्ति।
(घ) आवाम्।
(ङ) धीवरेभ्यः।
3. हंसौ अवदताम-“अत्र कः उपायः?”…………………………………… तथा युवां कुरुतम्।
हिन्दी अनुवाद – दोनों हंस बोले-“यहाँ क्या उपाय है?” कछुआ बोला-“तुम दोनों लकड़ी का एक डण्डा चोंच से पकड़ो (धारण करो)। मैं लकड़ी के डण्डे के बीच में लटककर तुम दोनों के पंखों के बल से सरलता से चला जाऊँगा।” दोनों हंस कहने लगे-“यह उपाय सम्भव है। किन्तु इसमें एक हानि भी है। हम दोनों के द्वारा ले जाते हुए तुम्हें देखकर लोग कुछ बोलेंगे ही। यदि तुम उत्तर दोगे तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।”
“इसलिए तुम यहीं पर रहो।” यह सुनकर क्रुद्ध हुआ कछुआ बोला-“क्या मैं मूर्ख हूँ? उत्तर नहीं दूंगा। कुछ भी नहीं बोलूँगा। इसलिए जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही तुम दोनों करो।”
पठितावबोधनम्प्रश्ना:
(क) “किमहं मूर्खः” इति कः अवदत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कच्छपः कयो: पक्षबलेन सुखेन गमिष्यति? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) कच्छपः किं न दास्यति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘उपायः’ इति पदस्य गद्यांशे विलोमशब्दः कः?
(ङ) ‘अवलोक्य’ इति पदे कः प्रत्ययः?
उत्तराणि :
(क) कूर्मः।
(ख) हंसयौः।
(ग) कच्छप: उत्तरं न दास्यति।
(घ) अपायः।
(ङ) ल्यप्।
4. एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं …………………………………………………….”गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि” इति।
हिन्दी अनुवाद – इस प्रकार लकड़ी के डण्डे पर लटकते हुए कछुए को ग्वालों ने देखा। उसके पीछे दौड़े और बोले-“अरे! महान् आश्चर्य है। दो हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।” कोई कहने लगा-“यदि यह कछुआ किसी भी प्रकार से गिर जाता है तो यहीं पर पकाकर खाऊँगा।” दूसरा बोला-“तालाब के किनारे जलाकर खाऊँगा।” अन्य ने कहा-“घर ले जाकर खाऊँगा।”
पठितावबोधनम्प्रश्ना:
(क) काभ्यां सह कूर्मोऽपि उड्डीयते? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) ‘हंहो! महदाश्चर्यम्’ इति के अवदन्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) कीदृशं कूर्म गोपालका: अपश्यन्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘अधावन्’ इति क्रियापदस्य गद्यांशात् कर्तापदं चित्वा लिखत।
(ङ) ‘यद्ययम्’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदं कुरुत।
उत्तराणि :
(क) हंसाभ्याम्।
(ख) गोपालकाः।
(ग) काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्म गोपालकाः अपश्यन्।
(घ) गोपालकाः।
(ङ) यदि + अयम्।
5. तेषां तद् वचनं श्रुत्वा …………………………………………. स: मारितः। अत एवोक्तम्
सुहृदां हितकामानां ………………………………………. काष्ठा भ्रष्टो विनश्यति।
अन्वयः – यः सुहृदां हितकामानां वाक्यं न अभिनन्दति, सः दुर्बद्धिः काष्ठाद् भ्रष्टः कूर्मः इव विनश्यति।
हिन्दी-अनुवाद – उन (ग्वालों) के उस वचन को सुनकर कछुआ क्रोधित हो गया। मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर, वह बोला-‘तुम सब राख खाओ।’ उसी क्षण कछुआ डण्डे से भूमि पर गिर गया और ग्वालों के द्वारा मार दिया गया। इसीलिए कहा गया है जो कल्याण की इच्छा रखने वाले मित्रों के कथन/वचन को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नहीं करता है, वह दुष्ट बुद्धि वाला डण्डे से गिरे हुए कछुए के समान विनाश को प्राप्त होता है।
श्लोक का भावार्थ – भाव यह है कि कल्याण चाहने वाले अर्थात् हितैषी मित्र की बात न मानने वाला विनाश को प्राप्त होता है, जैसे कि अपने हितैषी मित्रों हंसों की बात न मानने वाले मूर्ख कछुए की मृत्यु हो गई। अतः सदैव हितैषी मित्रों की बात को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए।
पठितावबोधनम्प्रश्ना:
(क) कः क्रुद्धः जातः? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कूर्मः कस्मात् भूमौ पतित:? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) कूर्मः कै: मारित:? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘स: मारित:’-इत्यत्र ‘सः’ इति सर्वनामस्थाने संज्ञापदं किम?
(ङ) ‘भूमौ’ इति पदे का विभक्तिः ?
उत्तराणि :
(क) कूर्मः।
(ख) दण्डात्।
(ग) कूर्मः गोपालकैः मारितः।
(घ) कूर्मः।
(ङ) सप्तमी।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ –
- सरः = तालाब।
- कूर्मः/कच्छपः = कछुआ।
- प्रतिवसति स्म = रहता था।
- धीवराः = मछुआरे।
- मत्स्यकूर्मादीन् = मछली, कछुआ आदि को।
- मारयिष्यामः = मारेंगे।
- मैवम् (मा+एवम्) = ऐसा नहीं।
- ह्रदम् = तालाब को।
- धारयताम् = धारण करें।
- पक्षबलेन = पंखों के बल से।
- अपायः = हानि।
- नीयमानम् = ले जाते हुए।
- अवलोक्य = देखकर।
- लम्बमानम् = लटकते हुए (को)।
- उड्डीयते = उड़ रहा है।
- विस्मृत्य = भूलकर।
- भस्म = राख।
- सहदाम् = मित्रों का/के/की।
- हितकामानाम् = कल्याण की इच्छा रखने वाले का/के/की।
- अभिनन्दति = प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता/करती है।
- दुर्बुद्धिः = दुष्ट बुद्धि वाला।