Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

In Text Questions and Answers

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प्रश्न 1.
कुछ लोगों का कहना है कि बंगाल का अकाल चावल की कमी के कारण हुआ था। सारणी 4.1 का अध्ययन करें और बताएँ कि क्या आप इस कथन से सहमत हैं? 
सारणी 4.1 : बंगाल प्रान्त में चावल की उपज 


उत्तर:
मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ कि वर्ष 1943 का बंगाल का अकाल चावल की कमी के कारण हुआ था क्योंकि वर्ष 1943 में चावल का बंगाल प्रान्त का उत्पादन 76 लाख टन था तथा वह इतना कम नहीं था कि अकाल पड़े। क्योंकि इससे दो वर्ष पूर्व 1941 में बंगाल प्रान्त में चावल का उत्पादन 68 लाख टन ही था तथा तब अकाल नहीं पड़ा। अतः यह कहना उचित नहीं है कि वर्ष 1943 में बंगाल का अकाल चावल की कमी के कारण पड़ा था। 

प्रश्न 2.
किस वर्ष में खाद्य उपलब्धता में भारी कमी हई? 
उत्तर:
सन् 1941 में। 

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प्रश्न 1.
कृषि एक मौसमी क्रिया क्यों है? 
उत्तर:
कृषि एक मौसमी क्रिया इसलिए है कि कृषि पदार्थों का उत्पादन एक विशेष मौसम में ही होता है। जैसे रबी एवं खरीफ की फसल के लिए एक निश्चित मौसम है। कृषि के अन्तर्गत बुआई, कटाई, निराई आदि का कार्य निश्चित मौसम में ही होता है। इसी कारण कृषि क्षेत्र में लगे मजदूर वर्ष में कई महीने बेरोजगार रहते हैं क्योंकि कृषि में उन्हें एक मौसम विशेष में ही रोजगार मिलता है। 

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प्रश्न 1.
आरेख 4.1 का अध्ययन करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
(अ) हमारे देश में किस वर्ष में अनाज उत्पादन 200 करोड़ टन प्रतिवर्ष से अधिक हुआ? 
(ब) भारत में किस दशक में अनाज उत्पादन में सर्वाधिक दशकीय वृद्धि हुई? 
(स) क्या 2000-01 से भारत में उत्पादन में वृद्धि स्थायी है? 
उत्तर:
(अ) भारत में वर्ष 2010-11 के पश्चात् सभी वर्षों में अनाज का उत्पादन प्रतिवर्ष 200 करोड़ टन से अधिक रहा है। 
(ब) भारत में वर्ष 1960-61 से 1970-71 की अवधि में अनाज उत्पादन में सर्वाधिक दशकीय वृद्धि हुई है। 
(स) भारत में 2000-01 की उत्पादन वृद्धि स्थायी नहीं रही क्योंकि उसके पश्चात् के वर्षों में भी उत्पादन में वृद्धि हुई है। वर्ष 2011-12 के पश्चात् वृद्धि की प्रवृत्ति लगभग स्थायी रही है। 
आरेख 4.1 : भारत में अनाज की उपज (करोड़ टन) 

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प्रश्न 1.
एफ.सी.आई. के भण्डारों में खाद्यान्न ठसाठस क्यों भरा हुआ है? 
उत्तर:
एफ.सी.आई. के भंडारों में खाद्यान्न ठसाठस इसलिए भरा हुआ है क्योंकि (i) पी. डी. एस. डीलर की दुकान पर घटिया किस्म का खाद्यान्न होने के कारण उसकी बिक्री नहीं होती है। (ii) कार्ड की व्यवस्था और कीमतों की अलग-अलग दर के कारण लोग पी. डी. एस. डीलर से खाद्यान्न नहीं खरीदते हैं। क्योंकि ए. पी. एल. परिवार कार्ड धारकों के लिए निर्धारित कीमतें बाजार कीमतों के समकक्ष हैं। 

Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है? 
उत्तर:
भारत में सरकार द्वारा तैयार की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के कारण अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित हो गई है। भारत की खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के प्रमुख घटक निम्न प्रकार हैं- 
(1) बफर स्टॉक-बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा क्रय कर एकत्रित किया अनाज, गेहूँ और चावल का भण्डार है । बफर स्टॉक में सरकार न्यूनतम समर्थित कीमत पर खाद्यान्न खरीदती है तथा निर्धन लोगों को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध करवाती है। साथ ही, आपातकालीन स्थिति में भी सरकार बफर स्टॉक का उपयोग करती है। अतः बफर स्टॉक से भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है। 

(2) सार्वजनिक वितरण प्रणाली-भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक सार्वजनिक वितरण प्रणाली है। इस प्रणाली के अन्तर्गत सरकार विभिन्न स्थानों पर उचित दर वाली अथवा राशन की दुकानें खोलती है तथा इन दुकानों के माध्यम से सरकार निर्धन वर्ग को बहुत कम कीमत पर खाद्यान्न एवं अन्य आवश्यक वस्तुएँ; जैसे चीनी, साबुन, तेल आदि उपलब्ध करवाई जाती हैं। 

(3) सरकारी कार्यक्रम एवं योजनाएँ-भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु अनेक सरकारी कार्यक्रम एवं योजनाएँ चलाई हैं। भारत सरकार ने 1975 में एकीकृत बाल विकास सेवाएँ शुरू की, 1977-78 में काम के बदले अनाज योजना प्रारम्भ की। 2013 में भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 लागू किया गया। इसके अतिरिक्त भी सरकार द्वारा अनेक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनसे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है। 

प्रश्न 2. 
कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं? 
उत्तर:
भारत में अनेक आर्थिक वर्ग एवं सामाजिक वर्ग हैं, जो खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं। भारत में खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से अधिक असुरक्षित लोग निम्न प्रकार हैं- 
(i) ग्रामीण क्षेत्रों के निम्न आर्थिक समूह-भारत में खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से सबसे असुरक्षित लोगों में ग्रामीण भमिहीन श्रमिक, पारम्परिक दस्तकार, पारम्परिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग, अपना छोटा-मोटा काम करने वाले लोग, निराश्रित, भिखारी आदि शामिल हैं। 

(ii) शहरी क्षेत्रों के निम्न आर्थिक समूह-शहरी क्षेत्रों में खाद्य दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित परिवार वे हैं जिनमें कार्य करने योग्य सदस्य प्रायः कम वेतन वाले व्यवसायों और अनियत श्रम बाजार में कार्य करते हैं तथा उन्हें बहुत कम मजदूरी पर भी पूरे समय का रोजगार नहीं मिलता है। 

(iii) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ी जातियों के लोग-सामाजिक वर्गों में प्राय: खाद्य दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित वर्ग में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जाति के उन परिवारों को शामिल किया जाता है, जिनके पास बहुत कम भूमि है अथवा जिनकी भूमि की उत्पादकता अत्यन्त कम है। 

(iv) प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित लोग-वे लोग भी खाद्य दृष्टि से काफी असुरक्षित हैं जिन्हें प्राकृतिक आपदाओं के कारण कार्य की तलाश में दूसरी जगह जाना पड़ता है। 

(v) निर्धन परिवारों की महिलाएँ व बच्चे-भारत में निर्धन परिवारों की महिलाएँ एवं बच्चे भी खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से काफी असुरक्षित हैं। 

(vi) पिछड़े राज्यों के आपदाग्रस्त क्षेत्रों के निर्धन लोग-भारत में पिछड़े हुए राज्यों, जहाँ काफी प्राकृतिक आपदाएँ आती रहती हैं, के निर्धन लोग खाद्य दृष्टि से काफी असुरक्षित हैं। 

प्रश्न 3. 
भारत में कौन से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं? 
उत्तर:
भारत में पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र का कुछ भाग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं। 

प्रश्न 4. 
क्या आप मानते हैं कि हरित क्रान्ति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है? कैसे? 
उत्तर:
भारत में 1960 के दशक के मध्य में खाद्यान्न उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हेतु हरित क्रान्ति की नीति अपनाई। हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, विशेषकर गेहूँ एवं चावल के उत्पादन एवं उत्पादकता में उल्लेखनीय प्रगति हुई। देश में हरित क्रान्ति के अन्तर्गत उच्च उत्पादकता वाले बीजों (एच.वाई.वी. बीजों) का उपयोग किया गया, रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के उपयोग में वृद्धि हुई, सिंचाई सुविधाओं का तेजी से विस्तार हुआ तथा कृषि में यन्त्रीकरण को बढ़ावा दिया गया। इन सबके फलस्वरूप देश में खाद्यान्न उत्पादन में भारी वृद्धि हुई तथा पिछले तीस वर्षों में खाद्यान्नों के मामले में भारत आत्म-निर्भर हो गया है। 

प्रश्न 5. 
भारत में लोगों का एक वर्ग अभी भी खाद्य से वंचित है। व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:
भारत में निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों की अभी भी आधारभत आवश्यकता परी नहीं हो पा रही है। समाज के कई आर्थिक एवं सामाजिक वर्ग ऐसे हैं, जो खाद्य की दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित हैं; जैसे—भूमिहीन श्रमिक, शहरों में अनियत मजदूरी वाले श्रमिक, छोटा-मोटा काम करने वाले अनियत मजदूर, भिखारी, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कई परिवार इत्यादि। साथ ही साथ प्राकृतिक आपदा एवं अकालग्रस्त क्षेत्रों में लोगों को खाद्य पदार्थ नहीं मिल पाते और वे मर जाते हैं । अतः अभी भी भारत में एक वर्ग ऐसा है, जो खाद्यान्न के अभाव में भुखमरी का शिकार है। 

प्रश्न 6. 
जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है? 
उत्तर:
जब भी देश में कोई भी आपदा आती है तो खाद्यान्न पूर्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। किसी भी प्राकृतिक आपदा, चाहे वह अकाल हो या चाहे बाढ़ हो, खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आती है। इस कारण प्राकृतिक आपदा वाले क्षेत्रों में खाद्यान्न में कमी आ जाती है, खाद्यान्न की पूर्ति में कमी एवं मांग में वृद्धि के कारण खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि होती है, इन ऊँची कीमतों पर कुछ लोग खाद्यान्न नहीं खरीद पाते हैं और देश में उस आपदा क्षेत्र में भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भारत में कई स्थानों पर अकाल एवं भुखमरी के कारण कई मौतें हुई हैं। यह सब खाद्य की कमी के कारण हुआ। यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जब आपदा व्यापक क्षेत्र में एवं लम्बे समय तक आती है।

प्रश्न 7. 
मौसमी भुखमरी और दीर्घकालीन भुखमरी में भेद कीजिए। 
उत्तर:
मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-

प्रश्न 8. 
गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारत में गरीबों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने हेतु सरकार ने कई प्रयास किए हैं। यथा-
(1) बफर स्टॉक की व्यवस्था-सरकार ने बफर स्टॉक की व्यवस्था की है जिसके अन्तर्गत सरकार भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से किसानों से उचित कीमत पर खाद्यान्न लेकर उसका भण्डारण करती है तथा निर्धन लोगों को बहुत कम कीमत पर बेचती है।

(2) सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था-सरकार ने खाद्य सुरक्षा प्रदान करने हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था की है, जिसके अन्तर्गत सरकार उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से निर्धनों को आवश्यक वस्तुएँ बहुत कम कीमत पर बेचती है।

(3) अनेक कार्यक्रम व योजनाएँ-सरकार ने खाद्य सुरक्षा हेतु अनेक कार्यक्रम व योजनाएँ चलाई हैं, जैसे-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013, राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम, अन्त्योदय अन्न योजना, दोपहर का भोजन योजना, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम आदि। भारत में खाद्य सुरक्षा हेतु प्रारम्भ किए गए दो प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं-
(i) राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम-पूरक श्रम रोजगार के सृजन को तीव्र करने हेतु राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम 14 नवम्बर, 2004 को प्रारंभ किया गया। यह कार्यक्रम उन सब ग्रामीण गरीबों के लिए था, जिन्हें वेतन पर रोजगार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक हैं। इसमें मजदूरी के रूप में नकद व अनाज प्रदान किया गया। इस कार्यक्रम को शत प्रतिशत केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में लागू किया गया। इसे अब महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम में मिला दिया गया है।

(ii) अंत्योदय अन्न योजना-अंत्योदय अन्न योजना दिसम्बर, 2000 में प्रारम्भ की गई। इस योजना के अन्तर्गत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई जिन्हें 2 रुपये किलो में गेहूँ तथा 3 रु. किलो में चावल का कुल 25 किलोग्राम अनाज उपलब्ध करवाया गया। वर्तमान में इस योजना से.लाभान्वित लोगों की संख्या 2 करोड़ हो गई है तथा अनाज की मात्रा भी बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दी गई है।

प्रश्न 9. 
सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है?
उत्तर:
सरकार द्वारा बफर स्टॉक बनाने के दो प्रमुख कारण हैं-पहला, देश में खाद्यान्न की कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के निर्धन लोगों में कम कीमत पर अनाज उपलब्ध करवाने के लिए तथा दूसरा, देश में आपातकाल या अन्य किसी विपदा के समय अनाज उपलब्ध करवाने के लिए।

प्रश्न 10. 
टिप्पणियाँ लिखें : 
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत; 
(ख) बफर स्टॉक
(ग) निर्गम कीमत; 
(घ) उचित दर की दुकान।
उत्तर:
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत-न्यूनतम समर्थित कीमत, वह कीमत है जिस पर सरकार भारतीय खाद्य निगम द्वारा किसानों से अनाज खरीदती है।
(ख) बफर स्टॉक-बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भण्डार है।
(ग) निर्गम कीमत-निर्गम कीमत वह कीमत है जिस पर सरकार राशन की दुकानों के माध्यम से निर्धनों को अनाज का वितरण करती है।
(घ) उचित दर की दुकान-उचित दर की दुकान अथवा राशन की दुकान वे हैं, जिनके माध्यम से सरकार निर्धन लोगों को अनाज का अत्यन्त कम मूल्य पर वितरण करती है।

प्रश्न 11. 
राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर:
राशन की दुकानों के संचालन में कई समस्याएँ आती हैं। राशन की दुकानों के संचालन में सबसे बड़ी समस्या संचालकों द्वारा की जाने वाली बेईमानी है। राशन की दुकानों के डीलर प्रायः खाद्यान्न एवं अन्य वस्तुएँ अधिक लाभ पर खुले बाजार में बेच देते हैं। इसके अतिरिक्त ये डीलर अच्छा अनाज बाजार में बेच देते हैं तथा राशन की दुकानों पर घटिया अनाज का वितरण करते हैं। राशन की दुकानें समय पर नहीं खोली जाती हैं। इसके अतिरिक्त राशन की दुकानों के डीलर कम तौल के द्वारा भी बेईमानी करते हैं। वर्तमान में तीन प्रकार के कार्ड दिए जाने से भी समस्या उत्पन्न हुई है। अब लोग राशन की दुकानों से सामान खरीदने हेतु कम प्रोत्साहित होते हैं।

प्रश्न 12. 
खाद्य और सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
खाद्य और सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत की दुकानें खोलती हैं। दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को सरकार द्वारा निर्धारित कीमतों पर दूध एवं सब्जियाँ उपलब्ध करवाती है। इसी प्रकार गुजरात में अमूल के प्रयासों के फलस्वरूप ही श्वेत क्रान्ति का जन्म हुआ। महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साईंस (ए.डी.एस.) ने विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है। उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि खाद्य सुरक्षा के सम्बन्ध में सहकारी समितियों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

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