Chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम्
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में मध्यप्रदेश के डिण्डोरी जिले में परधानों के बीच प्रचलित एक लोककथा है। यह कथा पञ्चतन्त्र की शैली में रचित है। इस कथा में यह स्पष्ट किया गया है कि संकट में पड़ने पर चतुराई एवं प्रत्युत्पन्नमतित्व से बाहर निकला जा सकता है।
पाठ के गद्यांशों का हिन्दी-अनुवाद एवं पठितावबोधनम् –
1. आसीत् कश्चित् ………………………… बद्धः आसीत्।
कठिन-शब्दार्थ :
- व्याधः = शिकारी, बहेलिया।
- ग्रहणेन = पकड़कर।
- स्वीयां = स्वयं की।
- विस्तीर्य = फैलाकर।
- व्याघ्रः = सिंह।
- बद्धः = बँधा हुआ।
हिन्दी अनुवाद – कोई चञ्चल नामक शिकारी था। पशु, पक्षी आदि पकड़कर वह अपनी जीविका चलाता था। एक बार वह वन में जाल बिछाकर घर आ गया। दू दिन सुबह जब चञ्चल वन में गया तो उसने देखा कि उसके द्वारा बिछाये गये जाल में दुर्भाग्य से एक सिंह बँधा हुआ था। पठितावबोधनम्
निर्देशः – उपर्युक्तंगद्यांशं पठित्वा प्रदत्तप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत प्रश्ना :
(क) जाले कः बद्धः आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) व्याधस्य किम् नाम आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) व्याधः कथं स्वीया जीविका निर्वाहयति स्म? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘तदा सः दृष्टवान्’- इत्यत्र ‘सः’ इति सर्वनामस्थाने संज्ञापदं किम् अस्ति?
उत्तराणि :
(क) व्याघ्रः।
(ख) चञ्चलः।
(ग) व्याधः पक्षिमृगादीनां ग्रहणेन स्वीयां जीविका निर्वाहयति स्म।
(घ) चञ्चलः।
2. सोऽचिन्तयत्, …………………….. बहिः निरसारयत्।
कठिन-शब्दार्थ :
- अचिन्तयत् = सोचा।
- 3पलायनम् = पलायन करना, भाग जाना।
- न्यवेदयत् = निवेदन किया।
- मोचयिष्यसि = मुक्त करोगे/छुड़ाओगे।
हिन्दी अनुवाद – उसने (शिकारी ने) सोचा-“सिंह मुझे खा जायेगा, इसलिए मुझे भाग जाना चाहिए।” सिंह ने. निवेदन किया- “हे मानव! तुम्हारा कल्याण हो। यदि तुम मुझे मुक्त करोगे तो मैं तुम्हें नहीं मारूँगा।” तब उस शिकारी ने सिंह को जाल से बाहर निकाल दिया।
पठितावबोधनम् प्रश्नाः
(क) कः पलायनं कर्तुम् इच्छति? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) व्याधः कम् जालात् बहिः निरसारयत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) व्याधः किम् अचिन्तयत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘तर्हि अहं त्वां न हनिष्यामि’..इत्यत्र अव्ययपदं किम्?
उत्तराणि :
(क) व्याधः।
(ख) व्याघ्रम्।
(ग) व्याधः अचिन्तयत् “व्याघ्रः मां खादिष्यति, अतएव पलायनं करणीयम्।”
(घ) तर्हि।
3. व्याघ्रः क्लान्तः ………………………………. खादितुम् इच्छसि?
कठिन-शब्दार्थ :
- क्लान्तः = थका हुआ।
- पिपासुः = प्यासा।
- आनीय = लाकर।
- शमय = शान्त कर, मिटाओ।
- साम्प्रतम् = इस समय।
- बुभुक्षितः = भूखा।
- त्वकृते = तुम्हारे लिए।
- मिथ्या = झूठ, असत्य।
- भणितम् = कहा है।
हिन्दी अनुवाद – सिंह थका हुआ था। वह बोला-“हे मानव! में प्यासा.हूँ। नदी का जल लाकर मेरी प्यास शान्तं करो।” सिंह जल पीकर पुन: शिकारी से बोला-“मेरी प्यास शान्त हो गई है। इस समय मैं भूखा हूँ। अब मैं तुम्हें खाऊँगा।” चञ्चल ने कहा-“मैंने तुम्हारे प्रति धर्म का आचरण किया है। तुमने झूठ कहा था। तुम मुझको खाना चाहते हो?”
पठितावबोधनम् प्रश्ना –
(क) पिपासुः कः आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) व्याघ्रस्य कृते कः धर्मम् आचरितवान? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) व्याघ्रः जलं पीत्वा पुनः व्याधं किम् अवदत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘त्वं मां खादितुम् इच्छसि’-इत्यत्र ‘त्वम्’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(क) व्याघ्रः।
(ख) चञ्चलः (व्याधः)।
(ग) व्याघ्रः जलं पीत्वा पुनः व्याधमवदत्-“शान्ता मे पिपासा। साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मि। इदानीम् अहं त्वा खादिष्यामि।”
(घ) व्याघ्राय।
4. व्याघ्रः अवदत्, ………………………………………………… स्वार्थं समीहते।’
कठिन-शब्दार्थ :
- क्षुधार्ताय = भूखे के लिए।
- अकार्यम् = न करने योग्य।
- समीहते = चाहते हैं।
- प्रक्षालयन्ति = धोते हैं।
- विसृज्य = छोड़कर।
- निवर्तन्ते = चले जाते हैं।लौटते हैं।
हिन्दी अनुवाद – सिंह बोला-‘अरे मूर्ख ! भूखे के लिए कुछ भी न करने योग्य नहीं होता है अर्थात् भूखा व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। सभी अपना भला (स्वार्थ) ही चाहते हैं।’
चञ्चल ने नदी के जल से पूछा, नदी का जल बोला-‘ऐसा ही होता है, लोग मेरे अन्दर स्नान करते हैं, वस्त्रों को धोते हैं और मल-मूत्र आदि छोड़कर चले जाते हैं, वास्तव में सभी स्वार्थ सिद्ध ही करना चाहते हैं।’
पठितावबोधनम् प्रश्ना :
(क) चञ्चलः किम् अपृच्छत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) सर्वः किम् समीहते? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) जनाः नद्यां किं कृत्वा किञ्च विसृज्य निवर्तन्ते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘अपृच्छत्’ इति क्रियापदस्य गद्यांशे कर्तृपदं किं प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(क) नदीजलम्।
(ख) स्वार्थम्।
(ग) जनाः नद्यां स्नानं वस्त्र-प्रक्षालनं च कृत्वा मल-मूत्रादिकञ्च विसृज्य निवर्तन्ते।
(घ) चञ्चलः।
5. चञ्चलः वृक्षम् ……………………………………………… कथांन्यवेदयत्।
कठिन-शब्दार्थ :
- उपगम्य = पास जाकर।
- विरमन्ति = विश्राम करते हैं।
- कुठारः = कुल्हाड़ियों से।
- प्रहृत्य = प्रहार करके।
- छेदनम् = काटना।
- लोमशिका = लोमड़ी।
- बदरी-गुल्मानां = बेर की झाड़ियों के।
- निलीना = छुपी हुई।
- मातृस्वसः = मौसी।
- निखलाम् = सम्पूर्ण, पूरी।
- न्यवेदयत् = निवेदन कर दिया।
हिन्दी अनुवाद – चञ्चल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा। वृक्ष बोला-“मानव हमारी छाया में विश्राम करते हैं। हमारे फलों को खाते हैं और फिर कुल्हाड़ियों से प्रहार करके हमें हमेशा कष्ट देते हैं। जहाँ कहीं भी काटने का कार्य करते हैं। सभी अपना ही भला करना (स्वार्थ) चाहते हैं।”
पास में ही एक लोमड़ी बेर की झाड़ियों के पीछे छुपी हुई इस बात को सुन रही थी। वह अचानक चञ्चल के समीप जाकर बोली-“क्या बात है? मुझे भी बतलाइए।” वह बोला-“अरे हे मौसी! समय पर तुम आई हो। मेरे द्वारा इस सिंह के प्राणों की रक्षा की गई, परन्तु यह ‘मुझे ही खाना चाहता है।” इसके बाद उसने लोमड़ी को सम्पूर्ण कथा बतला दी।
पठितावबोधनम् प्रश्नाः
(क) बदरी-गुल्मानां पृष्ठे का निलीना आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) लोमशिकायै निखिलां कथां कः न्यवेदयत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) व्याघ्रस्य प्राणाः केन रक्षिताः? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) “परम् एषः मामेव खादितुम् इच्छति’-इत्यत्र ‘एषः’ सर्वनामपदस्थाने संज्ञापदं किम्?
उत्तराणि :
(क) लोमशिका।
(ख) चञ्चलः।
(ग) व्याघ्रस्य प्राणा: चञ्चलेन व्याधेन रक्षिताः।
(घ) व्याघ्रः।
6. लोमशिका चञ्चलम् …………………………….. स्वार्थं समीहते।’
कठिन-शब्दार्थ :
- बाढम् = ठीक है, अच्छा।
- प्रसारय = फैलाओ।
- प्राविशत् = प्रवेश किया।
- कूर्दनम् = उछल कूद।
- दर्शय = दिखलाओ।
- समाचरत् = आचरण करने लगा।
- अनारतं = निरन्तर, लगातार।
- श्रान्तः = थका हुआ।
- अयाचत = माँगने लगा।
- भणितम् = कहा गया है।
हिन्दी अनुवाद – लोमड़ी ने चञ्चल से कहा-ठीक है, तुम जाल फैलाओ। फिर वह सिंह से बोली-किस प्रकार से तम इस जाल में बँध गये थे. ऐसा मैं अपने सामने देखना चाहती हैं। सिंह उस घटना को दिखलाने के लिए उस जाल में प्रवेश कर गया। लोमड़ी फिर से बोली-अब बार-बार कूदकर दिखलाओ। वह उसी प्रकार से आचरण करने लगा। लगातार कूदने से वह (सिंह) थका हुआ हो गया। जाल में बँधा हुआ वह सिंह थकने से बेसहारा होकर वहाँ गिर गया और प्राणों की भिक्षा के समान याचना करने लगा। लोमड़ी सिंह से बोली-“सभी अपना ही भला (स्वार्थ) चाहते है।”

पठितावबोधनम् प्रश्ना:
(क) जालं प्रसारयितुं का अकथयत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) तद् वृत्तान्तं प्रदर्शयितुं व्याघ्रः कुत्र प्राविशत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) लोमशिका किं प्रत्यक्षं द्रष्टुमिच्छति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत).
(घ) ‘पुनः सा व्याघ्रम् अकथयत्’-इत्यत्र ‘सा’ इतिसर्वनामपदस्थाने संज्ञापदं किम्?
उत्तराणि :
(क) लोमशिका।
(ख) जाले।
(ग) ‘व्याघ्रः केन प्रकारेण जाले बद्धः’ इति लोमशिका प्रत्यक्षं द्रष्टुमिच्छति।
(घ) लोमशिका।