Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ भास रचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से सम्पादित कर लिया गया है। दुर्योधन आदि कौरव वीरों ने राजा विराट की गायों का अपहरण कर लिया। विराट-पुत्र उत्तर बृहन्नला (छद्मवेषी अर्जुन) को सारथी बनाकर कौरवों से युद्ध करने जाता है। कौरवों की ओर से अभिमन्यु (अर्जुन-पुत्र) भी युद्ध करता है। युद्ध में कौरवों की पराजय होती है। इसी बीच विराट को सूचना मिलती है, वल्लभ (छद्मवेषी भीम) ने रणभूमि में अभिमन्यु को पकड़ लिया है।

अभिमन्यु भीम तथा अर्जुन को नहीं पहचान पाता और उनसे उग्रतापूर्वक बातचीत करता है। दोनों अभिमन्यु को महाराज विराट के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। अभिमन्यु उन्हें प्रणाम नहीं करता। उसी समय राजकुमार उत्तर वहाँ पहुँचता है जिसके रहस्योद्घाटन से अर्जुन तथा भीम आदि पाण्डवों के छद्मवेष का उद्घाटन हो जाता है।

पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या –

भटः – जयतु महाराजः।
राजा – अपूर्व इव ते हर्षों ब्रूहि विस्मितः?
भटः – अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तं सौभद्रो ग्रहणं गतः॥
राजा – कथमिदानी गृहीतः?
भटः – रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्यामवतारितः। (प्रकाशम्) इत इतः कुमारः।
अभिमन्युः – भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बालाधि-केनापि न पीडितः अस्मि।
बृहन्नला – इत इतः कुमार।

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कठिन-शब्दार्थ :

भटः = सैनिक।
ब्रूहि = बोलिए।
अपूर्वः = जो पहले नहीं हुआ हो।
अश्रद्धेयम् = श्रद्धा के अयोग्य।
सौभद्रः = सुभद्रा का पुत्र, अभिमन्यु।
ग्रहणं गतः = पकड़ा गया।
आसाद्य = पाकर, पहुँचकर।
निश्शङ्कम् = बिना किसी हिचक के।
अवतारितः = उतार लिया गया।
इतः = इधर।
एषः = यह।
भुजैकनियन्त्रितः = एक ही हाथ से पकडा गया।
बलाधिकेन = अत्यधिक बल होने पर भी।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित किया गया है। इस अंश में सैनिक एवं राजा का संवाद.प्रस्तुत करते हुए उसमें अभिमन्यु के पकड़े जाने की सूचना तथा तदनुसार अभिमन्यु का प्रवेश एवं उसका वार्तालाप वर्णित है।

हिन्दी-अनुवाद :

सैनिक – महाराज की जय हो।
राजा – आज आपमें अपूर्व प्रसन्नता है, कहो किसलिए आश्चर्यचकित हो?
सैनिक – अविश्वसनीय परन्तु प्रिय समाचार मिला है।
“सुभद्रा – पुत्र अभिमन्यु पकड़ा गया”।
राजा – किस प्रकार से उन्हें पकड़ा गया? वह कहाँ हैं?
सैनिक – रथ के द्वारा पहुँचा कर, बिना किसी हिचक के (उन्हें) भुजाओं से पकड़कर उतार लिया गया है। (प्रकट रूप में) इधर से कुमार! इधर से।
अभिमन्यु – अरे! यह शक्तिशाली व्यक्ति कौन है? जिसके द्वारा एक भुजा से पकड़ा गया, अत्यधिक बल के होते हुए भी, मैं पीड़ा (कष्ट) नहीं पा रहा। अर्थात् उन्होंने मुझे पकड़ तो रखा है, लेकिन बिना मुझे विशेष कष्ट दिए।
बृहन्नला – इधर से कुमार! इधर से आइए।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्ग – प्रस्तुतनाट्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः पाठोऽयं महाकविभासविरचितस्य ‘पञ्चरात्रम्’ इति नाटकात् संकलितः। अस्मिन् नाट्यांशे निगृहीतेन अभिमन्युना सह अर्जुनस्य भटस्य नृपस्य च तद्विषये संवादः वर्तते।

संस्कृत-व्याख्या –

भट: – विजयताम् देवः! राजा-अविद्यमाना पूर्वम् इव तव प्रसन्नता, कथय, केन कारणेन आश्चर्यचकितोऽसि?
भट: – न श्रद्धायोग्यम् इष्टं वृत्तं लब्धम् यत् अभिमन्युः निगृहीतः।
राजा: – कथम् सम्प्रति निगृहीतः?
भटः – शङ्कारहितं स्यन्दनम् आरुह्य (प्राप्य) भुजाभ्याम् अवरोहितः।
(प्रकटरूपेण) अत्र एहि राजकुमारः।
अभिमन्युः – अरे कोऽयं वस्तुतः? येन एकेन बाहुना संयतः बलवत्तरेण अपि न क्लिष्टोऽस्मि।
बृहन्नला – अत्र एहि अत्र एहि कुमार।

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व्याकरणात्मक टिप्पणी –

विस्मितः – वि + स्मि + क्त।
अपूर्वः – न पूर्वः इति (नञ् तत्पुरुष समास)।
सौभद्रः – सुभद्रायाः पुत्रः इति अण् प्रत्यय।
गृहीतः – ग्रह + क्त।
अवतारित: – अव + तृ + णिच् + क्त।
भुजैकः – भुजा + एकः (वृद्धि सन्धि)।
पीडितः – पीड् + क्त।

  1. अभिमन्युः – अये! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः।
    बृहन्नला – आर्य, अभिभाषणकौतूहलं मे महत्। वाचाल-यत्वेनमार्यः।
    भीमसेनः – (अपवार्य) बाढम् (प्रकाशम्) अभिमन्यो!
    अभिमन्युः – अभिमन्युर्नाम?
    भीमसेनः – रुष्यत्येष मया त्वमेवैनमभिभाषय।
    बृहन्नला – अभिमन्यो!
    अभिमन्युः – कथं कथम्। अभिमन्यु माहम्। भोः! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूताः नीचैः
    अपि नामभिः अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रवशं गतः। अतएव तिरस्क्रियते।।

कठिन-शब्दार्थ :

अपरः = दूसरा।
विभाति = सुशोभित हो रहा है।
उमा = पार्वती।
हरः = भगवान् शिव।
कौतुहलम् = जानने की उत्कण्ठा।
मे = मुझे।
महत् = महान्।
वाचालयतु = बोलने को प्रेरित करे।
अपवार्य = हटाकर।
बाढम् = ठीक है।
रुष्यति = क्रोधित होता है।
अभिभाषय = बोलो।
गतः = गया हुआ।
तिरस्क्रियते = उपेक्षा की जाती है।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ महाकवि भास विरचित ‘पञ्चरात्रम्’ नामक नाटक से संकलित किया गया है। इस अंश में गुप्त वेश धारण किये हुए भीम एवं अर्जुन द्वारा युद्ध में अभिमन्यु को पकड़े जाने पर उनके वार्तालाप का यथार्थ व सुन्दर चित्रण किया गया है।

हिन्दी-अनुवाद :

अभिमन्यु – अहो! यह दूसरे कौन हैं। जो पार्वती के वेश को धारण किए हुए भगवान् शिव के समान सुशोभित –
बृहन्नला – पूज्य, मुझे इससे बात करने की महान् उत्कण्ठा हो रही है, आप इसे बुलवाइये तो। भीमसेन-(हटाकर) ठीक है (प्रकट रूप में) हे अभिमन्यु!
अभिमन्यु – (क्या)? ‘अभिमन्यु’ नाम से पुकार रहे हैं? भीमसेन-यह मुझसे कुपित है। तुम ही इसे बुलवाओ।
बृहन्नला – अरे! अभिमन्यु !
अभिमन्यु – कैसे, कैसा व्यवहार है इनका? ये सभी मुझ अभिमन्यु को नाम से सम्बोधित कर रहे हैं। (आदर सम्मान से नहीं)
अरे! क्या इस विराटनगर में क्षत्रियकुल में जन्मे वीरों को, नीच सैनिक आदि के द्वारा भी नाम लेकर बोला जाता है अथवा (ठीक है) मैं अब शत्रु के अधीन हो गया हूँ, इसीलिए ये मेरा तिरस्कार कर रहे हैं।

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सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्ग: – प्रस्तुतनाट्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ इतिशीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः पाठोऽयं महाकविभासविरचितात् ‘पञ्चरात्रम्’ इति नाटकात् संकलितः। अस्मिन् नाट्यांशे निगृहीतेन अभिमन्युना सह विराटराज्ये भीमार्जुनयोः संवादः वर्तते। क्रुद्धः अभिमन्युः अनभिज्ञानात् तौ प्रति विनम्रतारहितं व्यवहारं करोति। भीमार्जुनौ अपि तस्य वीरोचितवचनस्य उपेक्षां कुरुतः।

संस्कृत – व्याख्या

अभिमन्युः – अरे ! एषः इतरः कः पार्वत्याः रूपधारिणा शिवेन इव शोभते?
बृहन्नला – आर्य, मम वक्तुम् औत्सुक्यम् अधिकम्। श्रीमान् इमं वक्तुं प्रेरयतु।
भीमसेनः – (दूरीकृत्य) समुचितम् (प्रकटरूपेण) अभिमन्यो!
अभिमन्युः – ‘अभिमन्युः’ इति अभिधानम्?
भीमसेनः – अयं मह्यं क्रुध्यति, अतः भवान् एव इमं वक्तुं प्रेरयतु।
बृहन्नला – अभिमन्यो!
अभिमन्युः – किं.किम् अहम् अभिमन्युरभिधः? अरे! किम् अस्मिन् विराटनगरे राजन्यकुलोत्पन्नाः अधमैः अपि अभिधानैः वादयन्ते उत वा अहम अरिदलस्याधिकारे प्राप्तः अत एव तिरस्कारं विधीयते।

व्याकरणात्मक टिप्पणी :

विभात्युमा – विभाति + उमा (यण् सन्धि)।
वाचालयतु – वच् + णिच् धातु, लोट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
अपवार्य – अप + वृ + णिच् + ल्यप्।
अभिमन्युर्नाम – अभिमन्युः + नाम (विसर्ग-रुत्व सन्धि)।
रुष्यत्येष – रुष्यति + एष (यण् सन्धि)।
अभिभाषय – अभि + भाष् धातु, लोट्लकार, मध्यम पुरुष एकवचन।

  1. बृहन्नला – अभिमन्यो! सुखमास्ते ते जननी?
    अभिमन्युः – कथं कथम्? जननी नाम? किं भवान् मे पिता अथवा पितृव्यः? कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे?
    बृहन्नला – अभिमन्यो! अपि कुशली देवकीपुत्रः केशवः?
    अभिमन्युः – कथं कथम्? तत्रभवन्तमपि नाम्ना। अथ किम् अथ किम्?
    (उभौ परस्परमवलोकयतः)
    अभिमन्युः – कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते?
    बृहन्नला – न खलु किञ्चित्।

पार्थं पितरमुद्दिश्य मातुलं च जनार्दनम्।
तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः॥

कठिन-शब्दार्थ :

सुखमास्ते = सुखपूर्वक है।
जननी = माता।
पितृव्यः = चाचा।
आक्रम्य = प्रकट होकर।
स्त्रीगतां = स्त्री के विषय में।
पृच्छसे = पूछ रहे हो।
केशवः = श्रीकृष्ण।
उभौ = दोनों।
अवलोकयतः = देखते हैं।
सावज्ञम् = उपेक्षा करते हुए।
हस्यते = हँसा जा रहा है।
पार्थम् = अर्जुन को।
मातुलम् = मामा।
तरुणस्य = युवक के।
कृतास्त्रस्य = शस्त्रविद्या में निपुण।
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प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। कौरव सेना की ओर से युद्ध हेतु आये हुए अभिमन्यु को जब गुप्तवेश धारण किये हुए एवं विराटनरेश की ओर से युद्ध करने वाले अर्जुन एवं भीम द्वारा पकड़ लिया जाता है तब उनमें हुए परस्पर वार्तालाप का सुन्दर एवं स्वाभाविक चित्रण इस अंश में किया गया है।

हिन्दी-अनुवाद :

बृहन्नला – अरे! अभिमन्यु! तुम्हारी माता सुखी है अर्थात् ठीक तो है?
अभिमन्यु – कैसे? कैसा व्यवहार किया जा रहा है? माता के बारे में पूछा। क्या आप मेरे पिता हैं या चाचा हैं? फिर कैसे आप पिता की तरह प्रकट होकर मुझसे स्त्री (माता) के विषय में पूछताछ कर रहे हैं?
बृहन्नला – हे अभिमन्यु! देवकीपुत्र केशव (श्रीकृष्ण) सकुशल तो हैं?
अभिमन्यु – कैसे, कैसे (क्या) कहा? पूज्य श्रीकृष्ण को भी नाम से (बिना यथोचित सम्मान के)
पुकारा जा रहा – है। अथवा इनसे और क्या आशा की जा सकती है? (दोनों आपस में एक-दूसरे को देखते हैं)
अभिमन्यु – (देखकर) कैसे अब आप निरादरपूर्वक मुझ पर हँस रहे हैं?
बृहन्नला – नहीं, ऐसा कुछ नहीं।
अर्जुन तुम्हारे पिता हैं, श्रीकृष्ण तुम्हारे मामा। तुम युवा हो और शस्त्र-विद्या में निपुण भी। अतः युद्ध में तुम्हारी पराजय उचित ही है।

आशय – अर्जुन और भीम दोनों छद्मवेश में हैं। अभिमन्यु उन्हें पहचान नहीं पाता है। अर्जुन अपने पुत्र अभिमन्यु थ बात करने को उत्सुक है। जबकि अभिमन्यु युद्ध में मिली पराजय से खिन्न है, वह इसलिए भी खिन्न है कि विराट के यहाँ सामान्य सैनिक भी उसे नाम लेकर पुकार रहे थे। अतः वह स्वयं को अपमानित महसूस कर रहा है। जब वह बात नहीं करता तो अर्जुन उसे छेड़ने के लिए उपर्युक्त कटु-वचन (व्यंग्योक्ति) कहता है ताकि वह कुछ बोले और अर्जुन की अभिलाषा पूर्ण हो।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्ग: – प्रस्तुतनाट्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलत: पाठोऽयं महाकविभासविरचितात् ‘पञ्चरात्रम्’ इति नाटकात् संकलितः। अस्मिन् नाट्यांशे विराटनगरे युद्धे निगृहीतेन अभिमन्युना सह भीमार्जुनयोः संवादः वर्तते। क्रुद्धः अभिमन्युः अनभिज्ञानात् तौ प्रति अविनयं प्रकटयन् व्यवहरति। भीमार्जुनौ तं कथमपि वक्तुं प्रेरयतः।

संस्कृत-व्याख्या –

बृहन्नला – सौभद्र! तव माता सकुशलम्?
अभिमन्युः – किं किम्? माता अभिधानम्? कथं त्वं मम जनकः पितृभ्राता वा? कस्मान्माम् जनकेवाधिकृत्य नारीविषयकं वृत्तान्तं पृच्छसि?
बृहन्नला – अभिमन्यो! किं देवकीपुत्रः कृष्णः सकुशलम्?
अभिमन्युः – किं किम्? तं श्रीमन्तं कृष्णमपि अभिधानेन व्यवहरति? कथं नु आम्?
(द्वावपि अन्योऽन्यम् पश्यतः)
अभिमन्यु: – कस्माद् अधुना अपमानेन सहितं माम् उपहस्यते?
बृहन्नला – निश्चयेन किञ्चिदपि नास्ति।
पृथासुतः अर्जुनः तव जनकः, जनार्दनः श्रीकृष्णः च तव मातुलः, इति वर्णितस्य तव यौवनारूढस्य शस्त्रविद्यासम्पन्नस्य सङ्ग्रामे पराभवः उचितमेव।

व्याकरणात्मक टिप्पणी –

आक्रम्य – आ + क्रम् + ल्यप्।
पृच्छसे – पृच्छ धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
अवलोकयतः – अव + लोक् धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, द्विवचन।
उद्दिश्य – उत् + दिश् + ल्यप्।
पितरम् – पितृ शब्द, द्वितीया विभक्ति, एकवचन।

  1. अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदते अन्यत् नाम न भविष्यति।
    बृहन्नला – एवं वाक्यशौण्डीर्यम्। किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः?
    अभिमन्युः – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति। अतः अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान्।
    राजा – त्वर्यतां त्वर्यतामभिमन्युः।
    बृहन्नला – इत इतः कुमारः। एष महाराजः। उपसर्पतु कुमारः।
    अभिमन्युः – आः। कस्य महाराजः?
    राजा – एोहि पुत्र! कथं न मामभिवादयसि? (आत्मगतम् ) अहो! उत्सिक्तः खल्वयं क्षत्रियकुमारः। अहमस्य दर्पप्रशमनं करोमि। (प्रकाशम्) अथ केनायं गृहीतः?
    भीमसेनः – महाराज! मया।
    अभिमन्युः – अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्।
    भीमसेनः – शान्तं पापम्। धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते। मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
    अभिमन्युः – मा तावद् भोः! किं भवान् मध्यमः तातः यः तस्य सदृशं वचः वदति।
    भीमसेनः – पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम?

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कठिन-शब्दार्थ :

स्वच्छन्दप्रलापेन = अनर्गल प्रलाप से।
कुले = कुल में।
आत्मस्तवम् = अपनी स्तुति।
हतेषु = मृत पड़े हुए।
शरान् = बाणों को।
मदृते = मेरे अतिरिक्त।
वाक्यशौण्डीर्यम् = वाणी की वीरता।
पदातिना = पैदल चलने वाले के द्वारा।
गृहीतः = पकड़ा गया।
अभिगतः = सम्मुख आए।
हन्याम् = मारता।
मादृशाः = मेरे जैसे।
वञ्चयित्वा = धोखा देकर।
उत्सिक्तः = गर्व से युक्त।
एहि = आओ।
दर्पप्रशमनम् = घमण्ड को शान्त करना।
प्रहरणम् = हथियार, शस्त्र।
प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस अंश में बृहन्नला रूप में स्थित अर्जुन, भीम तथा उनके द्वारा युद्ध में पराजित किये गये अभिमन्यु का परस्पर वार्तालाप वर्णित है। अभिमन्यु उन्हें वास्तविक रूप से पहचान नहीं पाता है तथा सामान्य सैनिक मानकर अपने वीरोचित उद्गार व्यक्त करता है –

हिन्दी-अनुवाद :

अभिमन्यु – बस, यह अनर्गल प्रलाप बन्द करो, हमारे कुल में आत्म-स्तुति करना उचित नहीं माना जाता। युद्ध भूमि में मृत पड़े बाणों को देखो, मेरे अतिरिक्त और कोई नाम नहीं मिलेगा।
बृहन्नला – अच्छा तो वाग्वीरता दिखाई जा रही है। क्यों तुम उस पैदल सैनिक के द्वारा ही पकड़े गए?
अभिमन्यु यह सैनिक बिना शस्त्र के मेरे समीप आया था। अपने पिता अर्जुन की शिक्षा को याद करते हुए मैं कैसे उसे मारता? मुझ जैसे वीर निश्शस्त्र पर प्रहार नहीं किया करते। अतः निश्शस्त्र इसने धोखे से (छलकर) मुझे पकड़ा है।
राजा – शीघ्रता, शीघ्रता कीजिए अभिमन्यु। बृहन्नला-कुमार इधर से, इधर से….। ये महाराज हैं, आप इनके पास जाएँ।
अभिमन्य – ओह! किसके महाराज?
राजा – आओ आओ पुत्र! तुम प्रणाम क्यों नहीं कर रहे हो (केवल मन में सोचते हैं) अहो! निश्चय ही वह क्षत्रियवंशी बालक अत्यधिक गर्वित है। मैं इसके गर्व को शान्त करता हूँ (प्रकट रूप में) अच्छा तो किसने पकड़ा इसको?

भीमसेन – मैंने महाराज। अभिमन्यु-‘बिना शस्त्र के आकर’ ऐसा भी बोलो ना।
भीमसेन – ईश्वर पाप करने से बचाए, धनुष तो दुर्बलों के द्वारा ही ग्रहण किया जाता है। मेरे लिए तो मेरी दोनों भुजाएँ ही शस्त्र हैं।
अभिमन्यु – अरे! इतनी गर्वोक्ति भरी बात मत कहो। क्या आप पूज्य चाचा मध्यम (भीम) हो जो उनके समान वचन बोल रहे हो।
भीमसेन – पुत्र! यह मझला (मध्यम) कौन है?

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्गः – प्रस्तुतनाट्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः पाठोऽयं महाकविभासविरचितात् ‘पञ्चरात्रम्’ इति नाटकात् संकलितः। अस्मिन् नाट्यांशे विराटराज्ये निगृहीतेन अभिमन्युना सह भीमार्जुनादीनां वार्तालाप: वर्णितः। अभिमन्युः अनभिज्ञायोऽपि पाण्डवानां प्रशंसा करोति तान् प्रति च समुदाचारं प्रकटयति। सः स्वस्य निग्रहणकारणमपि कथयति।

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संस्कृत-व्याख्या –

अभिमन्युः – मा स्वेच्छया प्रलापं कुरु। अस्माकं वंशे स्वप्रशंसां विधातुमुचितं न मन्यते। युद्धक्षेत्रे मृतेषु बाणान् अवलोकय, मामन्तरेण इतरस्याभिधानं न वर्तिष्यते।
बृहन्नला – इत्थमिदं वाचिकं वीरत्वम्। केन कारणेन अमुना पादाभ्यां चलितेन निगृहीतः?
अभिमन्युः – शस्त्रदीनोऽयं मत्समीपम् आगतः। जनकस्य अर्जुनस्य स्मरणं कुर्वन् अस्य वधं कर्तुमहं कथं शक्नोमि। शस्त्रहीनेषु मम सदृशाः वीराः प्रहारं न कुर्वन्ति। अत एव शस्त्रहीनः एषः मां छलेन निगृहीतवान्।
राजा – शीघ्रतां कुरु, शीघ्रतां कुरु अभिमन्युः।
बृहन्नला – वत्स! अत्रागच्छतु। अयं नृपः। कुमारः समीपमागच्छतु।
अभिमन्युः – ओह! एषः कस्य नृपः?
राजा – आगच्छ आगच्छ पुत्र! किं मे अभिवादनं न करोषि? (स्वगतम्) अरे! गर्वोद्धतः वस्तुतः एषाः राजकुमारः। अहम् एतस्य गर्वशान्तिं विदधामि। (प्रकटरूपेण) ततः एषः केन गृहीतः?
भीमसेनः – हे राजन्! मया भीमसेनेन गृहीतः।
अभिमन्युः – ‘शस्त्रहीनेन’ इति कथ्यताम्।
भीमसेन – अपसरतु अमङ्गलम्। चा यस्तु निर्बलाः एव गृह्णन्ति। मे तु बाहू एव शस्त्रम्।
अभिमन्युः – रे तथा न वदतु! अपि त्वं मध्यमपिता भीमः यः तेन तुल्यं वचनं ब्रूते?
भीमसेनः – वत्स! क एषः मध्यमः अभिधानम्?

व्याकरणात्मक टिप्पणी –

कर्तुम् – कृ + तुमुन्।
शरान् – शर शब्द, द्वितीया विभक्ति, बहुवचन।
अभिगतः – अभि + गम् + क्त।
स्मरन् – स्मृशित।
वञ्चयित्वा- वञ्च् + णिच् + क्त्वा।

  1. “अभिमन्युः – योक्त्रयित्वा जरासन्धं कण्ठश्लिष्टेन बाहुना।
    असह्यं कर्म तत् कृत्वा नीतः कृष्णोऽतदर्हताम्॥

कठिन-शब्दार्थ :

योक्त्रयित्वा = बाँधकर।
कण्ठश्लिष्टेन = कण्ठ पर लिपटी हुई।
बाहुना = भुजा द्वारा।
असह्यम् = असहनीय।
अतदर्हताम् = उस प्रकार की कार्य अक्षमता को।
प्रसंग – हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी-प्रथमः भागः’ के ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ पाठ में संकलित इस श्लोक में अभिमन्यु “राजा के यह पूछने पर कि भीम कौन है?” प्रत्युत्तर स्वरूप भीम द्वारा पहले किए गए जरासन्ध-वध के माध्यम से राजा को गर्वसहित भीम का परिचय देता हुआ कहता है कि

हिन्दी-अनुवाद : कण्ठ पर लिपटी एक भुजा रूपी रस्सी से जरासन्ध को बाँधकर जो वह (प्रसिद्ध) असह्य कार्य उसके साथ किया था। (जरासन्ध की देह को दो भागों में, बीच से चीर डाला था) ऐसा करके उन्होंने (भीम ने) श्रीकृष्ण से उनकी (जरासन्ध को मारने की) असमर्थता सिद्ध कर दी थी।

आशय – जरासन्ध का श्रीकृष्ण से वैर जगत्प्रसिद्ध ही है। अतः श्रीकृष्ण ने जरासन्ध को मारने की प्रतिज्ञा की हुई थी, परन्तु भीम ने जरासन्ध की देह को बीच में से चीर कर उसे मार दिया। अतः श्रीकृष्ण का कार्य करके उन्होंने कृष्ण से उनकी जरासन्ध को मारने की पात्रता ले ली। ऐसे अदम्य वीर हैं पूज्य भीम। ऐसे उन भीम को कौन नहीं जानता। ये वचन कहकर अभिमन्यु परोक्ष रूप से राजा विराट को भी चेतावनी देना चाहता है।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्गः – प्रस्तुतपद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् पद्ये विराटनगरे निगृहीतः अभिमन्युः मध्यमतातस्य भीमस्य पराक्रमपूर्णपरिचयं ददन् राजानं प्रति कथयति यत् –

संस्कृत-व्याख्या –

अभिमन्यु: – येन भीमसेनेन तत्कण्ठासक्तेन निजभुजेन जरासन्धं नाम बृहद्रथपुत्रं मगधेशं बद्धं विधाय तत् अनिर्वर्णनीयम् अनितरसम्पाद्यं जरासन्धवधात्मकं कार्यं कृत्वा कृष्णः तादृशकार्याक्षमतां प्रापितः।
अर्थात् यः भीमसेनः निजबाहुना कण्ठे धृत्वा अतिबलं जरासन्धं हत्वा कृष्णमपि तादृशवीरहननाक्षम प्रमाणयामास, यः कृष्णेनापि न हतस्तमप्यवधीत्।

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

व्याकरणात्मक टिप्पणी –

योक्त्रयित्वा – योकत्र + णिच् + क्त्वा।
असह्यम् – न सह्यम् इति (नञ् तत्पुरुष समास)।
नीतः – नी + क्त।

  1. राजा – न ते क्षेपेण रुष्यामि, रुष्यता भवता रमे।
    किमुक्त्वा नापराद्धोऽहं, कथं तिष्ठति यात्विति॥
    अभिमन्युः – यद्यहमनुग्राह्यः –
    पादयोः समुदाचारः क्रियतां निग्रहोचितः।
    बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति॥

कठिन-शब्दार्थ :

क्षेपेण = निन्दा से।
रुष्यामि = क्रुद्ध होऊँगा।
रमे = प्रसन्न होता हूँ।
उक्त्वा = बोलकर।
यातु = जाओ।
अनुग्राह्य = कृपा के योग्य।
पादयोः = पैरों में।
समुदाचारः = सभ्य आचरण।
निग्रहोचितः = बन्दिजन योग्य दण्ड।
आहृतम् = लाया गया।
नेष्यति = ले जायेगा।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस अंश में विराट नरेश के सैनिक जो कि वस्तुतः अर्जुन और भीम थे, किन्तु गुप्त वेश में वहाँ रह रहे थे, के द्वारा बन्दी बनाये गए अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के वीरोचित उद्गारों का सुन्दर वर्णन किया गया है। यहाँ विराट राजा भी उसके गुणों से प्रभावित होकर उसे छोड़ना चाहता है।

हिन्दी-अनुवाद :

राजा – मैं (राजा विराट) तुम्हारे व्यंग्य वचनों से क्रोध नहीं कर रहा हूँ अपितु आपके क्रोधित होने से मुझे प्रसन्नता हो रही है। ‘तुम क्यों खड़े हो, जाओ यहाँ से’ यदि मैं ऐसा कहता हूँ तो क्या हम तुम्हारे विषय में अपराधी नहीं बनेंगे।

अभिमन्यु – यदि आप मुझ पर अनुग्रह करना चाहते हैं तो –
बन्दिजन के योग्य बेड़ियाँ हमारे पैरों में डलवा दीजिये, मुझे भुजाओं से पकड़कर लाया गया था और अब तात भीम भुजाओं से पकड़कर ही मुझे ले जाएँगे।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्ग: – प्रस्तुतनाट्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् नाट्यांशे विराटनगरे निगृहीतेन क्रुद्धेन चाभिमन्युना सह नृपस्य वार्तालापः वर्तते।

संस्कृत-व्याख्या –

राजा – राजा अभिमन्युं प्रति कथयति यत्-तव निन्दावचनेन अहं कुपितो न भवामि, कुप्यता त्वया प्रीतो भवामि। किमर्थमत्र तिष्ठतु, यथेच्छं गच्छतु इति कथयित्वा किमहं नापराधी स्याम्? अर्थात् त्वदगमनानुज्ञां दत्त्वाऽप्यहमपराधी भवेयम् अतः तथा नाचरामीति भावः।

अभिमन्युः – यदि मयि कृपा करणीया, तदा –
मदीय चरणयोः बन्दिजनोपयुक्तः निगडबन्धनस्वरूपः क्रियताम्। (त्वदीयेन भटेन) भुजाभ्याम् गृहीत्वा अत्रानीतं माम् मम मध्यमस्तातः भीमसेनः शस्त्रनिरपेक्षाभ्यां भुजाभ्याम् एव मोचयित्वा स्वगृहं प्रापयिष्यति।

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्

व्याकरणात्मक टिप्पणी –

रुष्यामि – रुष धातु, लुट्लकार, उत्तम पुरुष, एकवचन।
रमे – रम् धातु (आत्मनेपदी), लट्लकार, उत्तम पुरुष, एकवचन।
नेष्यति – नी धातु, लुट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
यात्विति – यातु + इति (यण् सन्धि)।
आहृतम् – आ + ह + क्त।

  1. (ततः प्रविशत्युत्तरः।)
    उत्तरः – तात! अभिवादये!
    राजा – आयुष्मान् भव पुत्र। कृतकर्माणो योधपुरुषाः।
    उत्तरः – पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा।
    राजा – पुत्र! कस्मै?
    उत्तरः – इहात्रभवते धनञ्जयाय।
    राजा – कथं धनञ्जयायेति?
    उत्तरः – अथ किम्
    श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके।
    नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिताः॥
    राजा – एवमेतत्।
    उत्तरः – व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम्। अयमेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः।
    बृहन्नला – यद्यहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः।
    अभिमन्युः – इहात्रभवन्तो मे पितरः। तेन खलु……
    न रुष्यन्ति.मया क्षिप्ता हसन्तश्च क्षिपन्ति माम्।
    दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः॥
    (इति क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम् आलिगन्ति।)

कठिन-शब्दार्थ :

तात! = पिताजी (बडों के लिए सम्बोधन)।
अभिवादये = अभिवादन करता हैं।
कर्माणो = कार्य करने वाले।
योधपुरुषाः = योद्धाओं को।
पूज्यतमस्य = पूजा के अत्यन्त योग्य की।
आदाय = लेकर।
तूणीर = तरकश।
अक्षयसायके = नष्ट न होने वाले बाणों को।
भग्नाः = भगाया।
व्यपनयतु = दूर होवे।
क्षिप्ताः = आक्षेप किये जाने पर।
हसन्तः = हँसते हुए। दिष्टया = भाग्य से।
गोग्रहणम् = गायों का अपहरण।
स्वन्तम् = सुखान्त।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। अज्ञातवास के समय पाण्डव गुप्तवेश में राजा विराट के यहाँ निवास कर रहे थे। गो-अपहरण के प्रसंग में राजकुमार उत्तर की सुरक्षा में लगे अर्जुन व भीम द्वारा जब प्रतिपक्ष की ओर से अभिमन्यु को पकड़ लिया जाता है तथा उसे विराट राजा के पास लाया जाता है तो वह उन्हें पहचाने बिना अपने वीरोचित उद्गार व्यक्त करता है।
प्रस्तुत अंश में राजकुमार उत्तर द्वारा रहस्योद्घाटन किये जाने पर अभिमन्यु द्वारा अपने पिता अर्जुन एवं चाचा भीम आदि को पहचान कर यथोचित प्रणाम किये जाने का और उसकी प्रसन्नता का सुन्दर वर्णन किया गया है।

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हिन्दी अनुवाद – (तभी राजकुमार उत्तर प्रवेश करते हैं।)

उत्तर – पिताजी! अभिवादन करता हूँ।
राजा – पुत्र चिरञ्जीवी हो। पुत्र! युद्धभूमि में उचित (वीर) कर्म करने वाले योद्धाओं को सम्मानित कर दिया?
उत्तर – (पिताजी)! पूजा (सम्मान) के अत्यन्त योग्य की पूजा की जाए।
राजा – पुत्र! किसकी पूजा?
उत्तर – यहीं उपस्थित पूज्य धनञ्जय (अर्जुन) की। राजा-कैसे? धनञ्जय की पूजा, कैसे?
उत्तर : और क्या?…..
जिसने श्मशान भूमि में (पहले से छुपाए) धनुष, तरकश तथा अक्षय बाणों को लाकर भीष्म आदि कुरु राजाओं को खदेड़ा तथा हमारी सब प्रकार से रक्षा की। (उस धनञ्जय अर्जुन को पूजित किया जाए)
राजा – अच्छा, तो इस प्रकार से है।
उत्तर – आपकी शङ्का दूर हो। यही है (श्रेष्ठ) धनुर्धर अर्जुन।
बृहन्नला – यदि मैं अर्जुन हूँ तो ये भीम हैं और ये राजा युधिष्ठिर।
अभिमन्यु – मेरे पूज्य पितृजन यहीं पर हैं?
(तभी तो) मेरे निन्दा करने पर भी ये कुपित नहीं हो रहे थे और हँसते हुए मेरा परिहास कर रहे थे। भाग्य से ‘गो-अपहरण’ सुखान्त ही रहा जिसने मुझे पितृजनों से मिला दिया।
(और क्रमशः सभी को यथायोग्य प्रणाम करता है तथा सभी उसे गले लगाते हैं, आलिङ्गन करते हैं।)

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्ग – प्रस्तुतनाट्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘प्रत्यभिज्ञानम्’ इति शीर्षक पाठाद् उद्धृतः। मूलतः पाठोऽयं महाकविभासविरचितात् ‘पञ्चरात्रम्’ इति नाटकात् संकलितः। अस्मिन् नाट्यांशे विराटनगरे राजकुमारः उत्तरः आगत्य अर्जुनादीनां रहस्योद्घाटनं करोति। स्वकीयान् पितृन् प्राप्य अभिमन्युरपि प्रसन्नो भूत्वा सर्वान् अभिवादयति गुरवश्च तमालिङ्गन्ति।

संस्कृत-व्याख्या – (तदनन्तरं विराटपुत्रः उत्तरः प्रवेशं करोति।)

उत्तर: – पितः! अहं प्रणमामि।
राज – वत्स! चिरञ्जीवी भव। सम्पादितकर्मणा: योद्धारः पूजिताः।
उत्तर – पूजनीयेषु श्रेष्ठतमस्य पूजा करणीया।
राजा – वत्स! कस्य पूजा करणीया?
उत्तर – अत्रैवोपस्थितस्य पाण्डुपुत्रार्जुनस्य।
राजा – किम् अर्जुनस्यैव? .
उत्तर: – आम्! अत्रभवता धनञ्जयेन श्मशानात् निजगाण्डीवम् अक्षीणबाणे तूणीरयुगलञ्च गृहीत्वा भीष्मादयो नृपाः पराजिताः, वयं च त्राताः, अतोऽयं धनञ्जय एव पूजामर्हतीति भावः।
राजा – इदम् तु एवमेव।
उत्तरः – भवान् स्वस्य सन्देहं दूरीकरोतु। एष एव धनुर्धरः अर्जुनः वर्तते।
बृहन्नला – चेदहं धनञ्जयः तदा एषः वृकोदरः, एषः च नृपः धर्मराजयुधिष्ठिरः।
अभिमन्यु: – अस्मिन् स्थले श्रीमन्तः मम पितृजनः। तेन निश्चयेन …………..।
मया अभिमन्युना आक्षिप्यमाणाः अपि कोपं न कुर्वन्ति, उपहसन्तश्च मां निन्दन्ति। भाग्येन मम विराटसम्बन्धिगोहरणम् शुभावसानं जातम् येन गोग्रहणेन तातपादानां दर्शनावसरो दत्तः।

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‘व्याकरणात्मक टिप्पणी –

प्रविशत्युत्तरः – प्रविशति + उत्तरः (यण् सन्धि)।
पूज्यतमस्य – पूज्य + तमप्, षष्ठी विभक्ति, एकवचन।
कस्मै – किम् शब्द, चतुर्थी विभक्ति, एकवचन।
धनञ्जयायेति – धनञ्जयाय + इति (गुण सन्धि)।
आदाय – आ + दा + ल्यप्।
परिरक्षिताः – परि + रश् + क्त।
व्यपनयतु – वि+अप+नी धातु, लोट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
यद्यहम् – यदि+अहम् (यण् सन्धि)।
हसन्तः-हस्+शतृ।
स्वन्तम्-सु+अन्तम् (यण् सन्धि)।

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