Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1. 
इनमें कौनसा सही नहीं है?
(अ) कोशिका की खोज रॉबर्ट ब्राउन ने की थी। 
(ब) श्लाइडेन व श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रतिपादित किया था।
(स) वर्चाव के अनुसार कोशिका पूर्व स्थित कोशिका से बनती हैं। 
(द) एककोशिकीय जीव अपने जीवन के कार्य एक कोशिका के भीतर करते हैं। 
उत्तर:
(अ) कोशिका की खोज रॉबर्ट ब्राउन ने की थी।

प्रश्न 2. 
नई कोशिका का निर्माण होता है:
(अ) जीवाणु किण्वन से 
(ब) पुरानी कोशिकाओं के पुनरुत्पादन से 
(स) पूर्व स्थित कोशिकाओं से 
(द) अजैविक पदार्थों से
उत्तर:
(स) पूर्व स्थित कोशिकाओं से 

प्रश्न 3. 
निम्न के जोड़े बनाइए:

(अ) क्रिस्टी

(i) पीठिका में चपटे कलामय थैली

(ब) कुंडिका

(ii) सूत्र कणिका में अंतर्वलन

(स) थाइलेकोइड

(iii) गॉल्जी उपकरण में बिंब आकार की थैली


उत्तर:

(अ) क्रिस्टी

(i) पीठिका में चपटे कलामय थैली

(ब) कुंडिका

(ii) सूत्र कणिका में अंतर्वलन

(स) थाइलेकोइड

(iii) गॉल्जी उपकरण में बिंब आकार की थैली


प्रश्न 4. 
इनमें से कौनसा सही है:
(अ) सभी जीव कोशिकाओं में केन्द्रक मिलता है। 
(ब) दोनों जन्तु व पादप कोशिकाओं में स्पष्ट कोशिका भित्ति होती है। 
(स) प्रोकैरियोटिक की झिल्ली में आवरित अंगक नहीं मिलते हैं।
(द) कोशिका का निर्माण अजैविक पदार्थों से नए सिरे से होता हैं।
उत्तर:
(स) प्रोकैरियोटिक की झिल्ली में आवरित अंगक नहीं मिलते हैं।

प्रश्न 5. 
प्रोकैरियोटिक कोशिका में क्या मीसोसोम होता है? इसके कार्य का वर्णन करो।
उत्तर:
हाँ, प्रोकैरियोटिक कोशिका में मीसोसोम (Mesosomes) होता है।
मीसोसोम के कार्य:

  1. कोशिका भित्ति (cell wall) के निर्माण में।
  2. डी.एन.ए. प्रतिकृति व इसके संतति कोशिका के वितरण में सहायक।
  3. श्वसन (Respiration)। 
  4. स्लावी प्रक्रिया। 
  5. कोशिका विभाजन (Cell division)।
  6. जीवद्रव्य झिल्ली के पृष्ठ क्षेत्र एवं एंजाइम मात्रा को बढ़ाने में सहायक।

प्रश्न 6. 
कैसे उदासीन विलेय जीवद्रव्यी झिल्ली से होकर गति करते हैं? क्या ध्रुवीय अणु उसी प्रकार से इससे होकर गति करते हैं? यदि नहीं तो इनका जीवद्रव्य झिल्ली से होकर परिवहन कैसे होता है?
उत्तर:
जीवद्रव्य झिल्ली का महत्त्वपूर्ण कार्य इससे होकर अणुओं का परिवहन है। यह झिल्ली वरणात्मक पारगम्य होती है। उदासीन विलेय अणु सामान्य या निष्क्रिय परिवहन द्वारा उच्च सांद्रता से कम सांद्रता की ओर साधारण विसरण द्वारा झिल्ली से आते-जाते रहते हैं। इसमें ऊर्जा व्यय नहीं होती।

ध्रुवीय अणु सामान्य विसरण द्वारा इससे होकर आ – जा नहीं सकते। इन्हें परिवहन हेतु वाहक प्रोटीन्स की आवश्यकता होती है। इन्हें आयन वाहक भी कहते हैं। इनका परिवहन सामान्यतः सक्रिय विसरण द्वारा होता है। इसमें ऊर्जा व्यय होती है। ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है। ऊर्जा व्यय करके आयन या अणुओं का परिवहन निम्न सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की ओर भी होता है।

प्रश्न 7. 
दो कोशिकीय अंगकों का नाम बताइए जो द्विकला से घिरे होते हैं। इन दो अंगकों की क्या विशेषताएँ हैं? इनके कार्य व रेखांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
निम्न दो कोशिकीय अंगक हैं जो द्विकला से घिरे होते हैं। 

1. अन्तर्द्रव्यी जालिका (Endoplasinic reticulum) एवं विशेषताएँ: यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में चपटे, आपस में जुड़े, थैलीयुक्त छोटी नलिकावत् जालिका तन्त्र पाया जाता है, जिसे अन्तद्रव्यी जालिका कहते हैं।
अन्तःप्रद्रव्यी जालिका दो प्रकार की होती हैं:


अन्नद्रव्यी जालिका के निम्न कार्य हैं- 

  1. खुरदरी अंत:प्रद्रव्यी जालिका पर स्थित राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं।
  2. चिकनी अंत:प्रदव्यी जालिका वसा, ग्लाइकोजन एवं स्टीराइड्स आदि के संश्लेषण के लिए स्थान प्रदान करती है।
  3. ER से कोशिका के कोलॉइडी तन्त्र को अधिक शक्ति मिलती हैं।
  4. यह अभिगमन तन्य का कार्य करता है। नलिकाओं के जाल के रूप में व्यवस्थित होने के कारण ये कोशिका के भीतर व बाहर पदार्थों के संवहन का कार्य सुचारु रूप से करते हैं।
  5. इसकी उपस्थिति से कोशिका पिचकती नहीं है। अत: यह मुख्यत: कोशिका का कंकाल बनती है।
  6. यह ग्लिसरोला, कोलेस्टरोल इत्यादि वसा के संश्लेषण हेतु स्थान प्रदान करती है।
  7. यह झिल्ली निर्माण हेतु प्रोटीन व लिपिड संश्लेषण में सहायता करती है।
  8. यह कोशिका विभाजन में केन्द्रक आवरण बनाने में सहायक होती है।
  9.  यह कोशिका भित्ति व प्लाज्मोडेस्मैटा के निर्माण में सहायता करती है।

2. गॉल्जीकाय (Golgibody) की विशेषताएँ: यह काय केन्द्रक के पास घनी रंजित जालिकावत् संरचना है। यह बहुत सारी चपटी डिस्क के आकार की थैली या कुंड से मिलकर बनी होती है। ये एकदूसरे के समानान्तर ढेर के रूप में मिलते हैं जिसे जालिकामय कहते है।

गाल्जीकाय में कुंडों की संख्या अलग – अलग होती है। गाल्जी कुंड केन्द्रक के पास संकेन्द्रित व्यवस्थित होते हैं। इनमें निर्माणकारी (उन्नतोदर सिस) व परिपक्व सतह (उत्तलावतल ट्रांस) होती है। अंगक

सिस व ट्रांस सतह पूर्णतया अलग होते हैं लेकिन आपस में जुड़े रहते है।

गाल्जीकाय के कार्य (Functions of Golgibody)

  1. कोशिका विभाजन के समय मध्य में सावी पुटिकाएँ आपस में मिलकर कोशिका पट्टी बनाते हैं।
  2. कोशिका के अन्दर हार्मोन का निर्माण होता है।
  3. ये लाइसोसोम के निर्माण तथा पदार्थों का संचय, संवेष्टन (Packaging) तथा स्थानान्तरण करते हैं।
  4. श्लेष्मा, गोंद, एंजाइम तथा त्रावण तथा पॉलीसैकेराइड का संश्लेषण करते हैं।
  5. वेसीकल में प्रोटीन तथा वसा का संचय होता है।
  6. कार्बोहाइड्रेट को प्रोटीन से संयोजित कर ग्लाइकोप्रोटीन का निर्माण करते हैं।
  7. उत्सर्जी पदार्थों को कोशिका से बाहर निकालते हैं। 
  8. शुक्राणु के एक्रोसोम के निर्माण में सहायक।

प्रश्न 8. 
प्रोकैरियोटिक कोशिका की क्या विशेषताएँ हैं? 
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिका की विशेषताएँ: नौल हरित शैवाल, जीवाणु एवं माइकोप्लाज्मा जैसी प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में झिलीयुक्त सुसंगठित केन्द्रक तथा द्विस्तरीय झिल्लीयुक्त कोशिकांगों का अभाव होता है। इसमें केन्द्रक का अभाव होता है तथा केन्द्रक समतुल्य अंगक को प्रोकैरियोन या केन्द्रकाभ (mucleoid) कहते हैं। आनुवंशिक पदार्थ गुणसूत्र के रूप में न होकर नग्न न्यूक्लिक अम्ल के रूप में होते हैं। हिस्टोन प्रोटीन का अभाव तथा इनमें सूत्री विभाजन का लिंगी विभाजन भी नहीं होता है।
कोशिकाद्रव्य में झिल्लीयुक्त कोशिकांगों का पूर्ण विकास नहीं होता है। राइबोसोम भी 705 प्रकार के होते हैं। कशाभिकाओं की संरचना भी 9 + 2 की नहीं होती है। इनमें माइटोकॉण्डिया का अभाव होता है परन्तु प्लाज्मा झिल्ली के अन्तर्वलन के कारण मोजोसोम बनते हैं, जिनके द्वारा श्वसन होता है। केन्द्रक, केन्द्रझिल्ली तथा केन्द्रिक अनुपस्थित होते हैं अत: आनुवंशिक पदार्थ कोशिका के मध्य में बिखरा होता है।

प्रश्न 9. 
बहुकोशिकीय जीवों में श्रम विभाजन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
श्रम विभाजन का सिद्धान्त हेनरी मिलने एडवर्ड (Henery Miline Edward) ने प्रस्तुत किया। बहुकोशिकीय जीवों में कोशिकाएँ परस्पर मिलकर विभिन्न प्रकार के ऊतक, अंग तथा अंग तंत्रों का निर्माण करती हैं जो अत्यन्त सफलता के साथ विभिन्न शरीर क्रियाओं को पूर्ण करते हैं। अर्थात् अंग युक्त जन्तुओं में क्रियात्मक श्रम विभाजन उच्च कोटि का होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जन्तु में शरीर क्रियाओं को सफलतापूर्वक चलाने के लिए क्रियात्मक श्रम विभाजन आवश्यक होता है तथा इसी क्रियात्मक श्रम विभाजन को जन्तुओं में अधिकाधिक सफल बनाने के लिए कोशिकाओं से ऊतक तथा ऊतकों से अंग एवं अंगतंत्रों का उद्विकास निम्न श्रेणी से उच्च श्रेणी के जन्तुओं में हुआ है।
क्रियात्मक श्रम विभाजन से बहुकोशिकीय जन्तुओं में ‘ऊर्जा का संरक्षण’ (Energy Conservation) होता है।

प्रश्न 10. 
कोशिका जीवन की मूल इकाई है, इसका संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर:
कोशिका जीवन की मूल इकाई है। प्रत्येक सजीव अस्तित्व कोशिका (cell) से ही है। यह जीवन की संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई है। इसमें प्रजनन करने, उत्परिवर्तित होने, उद्दीपनों के प्रति प्रतिक्रिया प्रदर्शित करने जैसे जैविक गुण पाये जाते हैं। साथ ही इसमें उस जीव के आकारिकीय, भौतिक, कार्यिकीय, जैव रासायनिक, आनुवंशिक एवं परिवर्धनीय लक्षण विद्यमान होते हैं जिससे यह सम्बन्धित है। संक्षेप में कोशिका किसी जीव की वह सूक्ष्मतम इकाई है जिसमें उस जीव विशिष्ट के सभी लक्षण पाये जाते हैं।

प्रश्न 11. 
केन्द्रक छिद्र क्या है? इनके कार्य बताइये।
उत्तर:
केन्द्रक छिद्र (Nuclear Pores): केन्द्रक झिल्ली या केन्द्रक आवरण एक सतत (Continuous) स्तर नहीं होता बल्कि इसमें असंख्य अतिसूक्ष्म रन्ध्र (Pores) पाये जाते हैं। इन रंधों को केन्द्रक छिद्र कहते हैं। ये छिद्र एक पंक्ति समूह, षट्कोणीय अथवा यादृच्छिक रूप से वितरित होते हैं। प्रत्येक केन्द्रक छिद्र एक वृत्ताकार (Ring like) वलयिका (annulus) द्वारा पिरा रहता है। वलायिका प्रोटीन प्रकृति के अक्रिस्टलीय पदार्थ द्वारा बनी होती है तथा बाहर की ओर स्थित कोशिकाद्रव्य व भीतर की ओर स्थित केन्द्रकीय द्रव्य (nucleoplasm) के मध्य फैली रहती है। केन्द्रकीय छिद्र वलयिका को सामूहिक रूप से छिद्र सम्मिश्र (pore complex) कहते हैं।

कार्य (Function): केन्द्रक छिद्रों से होकर अनेक पदार्थ प्रोटीन व RNA आदि केन्द्रक व कोशिकाद्रव्य में आते व जाते हैं। यह आदानप्रदान की क्रिया चयनित या नियन्त्रित होती है एवं विशिष्ट अणुभार वाले कणों को ही विनिमय (exchange) की अनुमति होती है। इस प्रकार केन्द्रक आवरण अनेक पदार्थ के अणुओं व सूक्ष्म आयनों K+, Na+ व Cl- के लिए भी अवरोधक स्तर का कार्य करता है अर्थात् मुक्त रूप से विनिमय को अनुमति नहीं देता। इस प्रकार इनके pH में आवश्यक अन्तर बनाये रखा जाता है।

प्रश्न 12. 
लयनकाय व रसधानी दोनों अंतः झिल्लीमय संरचना है फिर भी कार्य की दृष्टि से ये अलग होते हैं। इस पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
लायनकाय (Lysosome) व रसपानी (Vacuoles) दोनों अंत: झिल्लीमय संरचनाएँ हैं फिर भी ये कार्य की दृष्टि से एक दूसरे से काफी भिन्न हैं। लयनकाय में हाइड्रोलाइटिक (Hydrolytic) एंजाइम पाये जाते हैं जैसे हाइड्रोलेज (hydrolases), लाइपेज (lipase), प्रोटीएज (proteases) एवं कार्बोहाइड्रेज (carbohydrases)। ये मुख्य रूप से अंत:कोशिकीय व बाह्य कोशिकीय पाचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रसधानी खाद्य पदार्थों व खनिज लवणों का संग्रहण व सान्द्रण करती है। रसधानी उत्सर्जी पदार्थों का संचय कर उपापचयी क्रियाओं को बाधित होने से बचाती है तथा कोशिकाओं के परासरणी दाब की स्फीति को बनाये रखने में सहायक होती है।

प्रश्न 13. 
रेखांकित चित्र की सहायता से निम्न की संरचना का वर्णन करें: 
(i) केन्द्रक 
(ii) तारककाय
उत्तर:
(i) केन्द्रक (Nucleus): राबर्ट ब्राउन ने (1831) में केन्द्रक की खोज की थी। यह कोशिका का महत्त्वपूर्ण भाग है। सामान्यतः कोशिका में केन्द्रक मध्य में स्थित होता है। यद्यपि इसका आकार, आमाप तथा संख्या भिन्न-भिन्न होती है। सामान्यतः यह गोल तथा एक कोशिका में एक ही केन्द्रक होता है। प्राय: केन्द्रक में DNA, RNA व प्रोटीन होते हैं। संरचना के अनुसार केन्द्रक के चार प्रमुख भाग होते हैं:

(a) केन्द्रक कला (Nuclear Membrane): केन्द्रक कला दोहरी एकक कला से बनी होती है तथा केन्द्रक को घेर कर रखती है। दोनों कलाओं के बीच 10 से 50 नैनोमीटर की दूरी होती है तथा इस स्थान को परिकेन्द्रकी अवकाश (Perinuclear Space) कहते हैं। प्रत्येक एकक कला 75 A° मोटी होती है। बाहरी कला में 500 – 800 A° व्यास के छिद्र होते हैं परन्तु अन्त:कला में ये छिद्र नहीं पाये जाते हैं। छिद्रों की संख्या, कोशिका के प्रकार एवं इसकी कार्यिकीय अवस्था पर निर्भर करती है। प्रत्येक छिद्र में छिद्र जटिल (Pore Comples) के रूप में एक जटिल रचना होती है। इन छिद्रों के द्वारा अनेक पदार्थों का आदानप्रदान कोशिकाद्रव्य व केन्द्रकीय द्रव्य के मध्य होता रहता है।

(b) केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm): केन्द्रकीय झिल्ली के अन्दर एक पारदर्शी अर्थ तरल आधार पदार्थ होता है, इसे केन्द्रक द्रव्य कहते हैं। यह कम श्यानता वाला समानीकृत तथा कणिकीय प्रोटीन सोल (Sol) है जो आवश्यकतानुसार जिलेटिनस हो जाता है। इसकी प्रकृति कोशिका विभाजन की विभिन्न प्रावस्थाओं में परिवर्तित होती रहती है। क्रोमेटिन जालिका इसमें निलम्बित रहती है। इसमें प्रोटीन्स, फॉस्फोरस व न्यूक्लिक अम्ल होते हैं। एन्जाइमेटिक प्रक्रियाओं के लिए स्थान उपलब्ध कराता है।कोशिका विभाजन के समय तर्क के निर्माण में भाग लेता है तथा DNA की पुनरावृत्ति व RNA के अनुलेखन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(c) क्रोमेटिन पदार्थ (Chromatin Material): केन्द्रक में पतले धागेनुमा संरचना जाल के रूप में मिलती है। कोशिका में DNA मुख्य आनुवंशिक पदार्थ होता है तथा वह स्वतंत्र रूप से भी मिलता है किन्तु प्रोटीन के साथ जुड़ने पर इससे ही क्रोमेटिन की संरचना बनती है। क्रोमेटिन चिपचिपा तथा इसमें DNA, RNA, हिस्टोन व नॉन हिस्टोन प्रोटीन इत्यादि मिलते हैं। हिस्टोन प्रोटीन अधिक क्षारीय तथा नान हिस्टोन अधिक अम्लीय होते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में हिस्टोन प्रोटीन का अभाव होता है। क्षारीय अभिरंजकों से क्रोमेटिन जाल रंगीन हो जाता है। कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटिन जाल संघनित होकर गुणसूत्रों में परिवर्तित हो जाता है। अभिरंजित करने पर क्रोमेटिन का वह भाग जो हल्का रंग लेता है, उस भाग को यूक्रोमेटिन (Euchromatin) कहते हैं। यही भाग आनुवंशिक क्रिया में भाग लेता है। अभिरंजित करने पर क्रोमेटिन का जो भाग गहरा रंग ले लेता है, वह हेटेरोनोमेटिन (Heterochromatin) कहलाता है। इस भाग में DNA की अपेक्षा RNA अधिक मिलता है।

(d) केन्द्रिका (Nucleolus): इसकी खोज फोन्टाना (1781) ने की। यह झिल्ली रहित संरचना है। केन्द्रक में एक या अनेक केन्द्रिक हो सकती है। केन्द्रिक का निर्माण गुणसूत्रों के द्वितीयक संकीर्णन क्षेत्र से होता है। अतः ये संकीर्णन केन्द्रिक संघटक कही जाती है। केन्द्रिक में मुख्यत: प्रोटीन्स DNA व RNA पाये जाते हैं। केन्द्रिक में कम महत्त्व वाला तरल होता है जो रवाहीन आधात्री या पार्स एमोफी कहलाता है। केन्द्रिक निम्न चार अवयवों का बना होता है:
(अ) तन्तुकी भाग (Fibrillar Part): इसमें DNA व RNA के तन्तुक होते हैं। DNA के तन्तुक समूह में पाये जाते हैं। DNA से TRNA का निर्माण होता है।

(ब) कणिकीय भाग (Gramilar Part): ये राइबोन्यूक्लिओप्रोटीन के कण होते हैं।

(स) रवाहीन मैट्रिक्स (Amorphous Matris): यह प्रोटीन से बना होता है तथा इसमें ही तन्तुकी व कणिकीय भाग अन्त:स्थापित रहते है, इसे पार्स एमोर्फी भी कहते हैं।

(द) क्रोमेटिन (Chromatin): केन्द्रिका को घेरे रहने वाले भाग को बाह्य केन्द्रकीय क्रोमेटिन तथा केन्द्रिक के अन्दर की ओर स्थित रहने वाले को अंतः केन्द्रकीय क्रोमेटिन कहते हैं। केन्द्रिक को राइबोसोम की फैक्ट्री (Factory) कहते हैं। इसका मुख्य कार्य TRNA का संश्लेषण करना व राइबोसोम बनाने का है।

(ii) तारककाय (Centrosome): सेन्ट्रोसोम या तारक काय जन्तु कोशिकाओं में मिलते हैं, किन्तु पादप जगत में भी कुछ कवकों, युग्लीना व डाइनोफ्लेजिलेट कुल के सदस्यों में भी पाये जाते हैं। प्रत्येक सेन्ट्रोसोम दो तारक केन्द्रों का बना होता है, इसे डिप्लोसोम (diplosome) कहते हैं।

यह एक बेलनाकार रचना है जो 9 तन्तुओं से निर्मित होता है। प्रत्येक तन्तु 3 द्वितीयक तन्तुओं से बनते हैं, इन्हें त्रिक तन्तु कहते हैं। प्रत्येक त्रिक में तीन सूक्ष्म नलिकाएँ एक रेखा में स्थित रहती हैं। मध्य में नाभि होती है। इसकी संरचना बैलगाड़ी के पहिये की भाँति होती हैं।

सम्पूर्ण रचना एक मोटी झिल्ली से घिरी रहती है। इसका कार्य कोशिका विभाजन के समय दोनों ध्रुवों से तर्कु (spindle) तन्तुओं का निर्माण करना होता है तथा शुक्राणु जनन में शुक्राणु की पुच्छ बनाता है।

इसमें ट्यूब्यूलिन नामक प्रोटीन होते हैं। यह जन्तु कोशिका विभाजन के समय तक तन्तुओं का निर्माण, पक्ष्माभ तथा पक्षाभिका के आधार पर कणिका का निर्माण करती है।

प्रश्न 14. 
गुणसूत्र बिन्दु क्या है? कैसे गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र का वर्गीकरण किस रूप से होता है? अपने उत्तर को देने हेतु विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों पर गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति को दर्शाने हेतु चित्र बनाइये।
उत्तर:
गुणसूत्र बिन्दु (सेन्ट्रोमीयर): प्रत्येक गुणसूत्र में एक प्राथमिक संकीर्णन मिलता है जिसे गुणसूत्र बिन्दु अथवा सेन्ट्रोमीयर (centromere) कहते हैं। इस पर बिम्ब आकार की संरचना मिलती है जिसे काइनेटोकोर कहते हैं।
गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्रों को चार प्रकारों में विभाजित किया गया है:

  1. मध्यकेन्द्री (Metacentric): गुणसूत्र में गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्रों के बीचों-बीच स्थित होता है, जिससे गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ बराबर लम्बाई की होती हैं तथा इनका आकार V प्रकार का होता है।
  2. उपमध्य केन्द्री (Sub – metacentric): गुणसूत्र में गुणसूत्र बिन्दु (Centromere) गुणसूत्र के मध्य से हटकर होता है। जिसके परिणामस्वरूप एक भुजा छोटी व एक भुजा बड़ी होती है। गुणसूत्र की आकृति J अथवा L के आकार की होती है।
  3. अग्र बिन्दु (Acrocentric): गुणसूत्र में गुणसूत्र बिन्दु इसके बिल्कुल किनारे पर मिलता है, जिससे एक भुजा अत्यन्त छोटी व एक भुजा बहुत बड़ी होती है।
  4. अंतः केन्द्री (Telocentric): गुणसूत्र में गुणसूत्र बिन्दु (Centromere) गुणसूत्र के शीर्ष पर स्थित होता है।

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