छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

Textbook Questions and Answers
कविता के साथ –

प्रश्न 1.
छोटे चौकोने खेत को कागज का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है?
उत्तर :
इसमें में यह अर्थ निहित है कि खेत चौकोर आकार में बना होता है तथा जिस प्रकार खेत में बीज, पानी, खाद आदि डाले जाते हैं और तब उसमें अंकुर उगकर फूल-फल आदि लगते हैं, उसी प्रकार कागज के चौकोर पन्ने पर ही कवि अपने मन के भावों को शब्दबद्ध करके रस, अलंकार आदि की अभिव्यक्ति करता है तथा फलरूपी आनंद रस की। उत्पत्ति करता है। इस तरह कवि ने अपने कवि-कर्म को किसान की तरह बताने के लिए कागज के पन्ने को चौकोना खेत कहा है।

प्रश्न 2.
रचना के सन्दर्भ में ‘अंधड़’ और ‘बीज’ क्या हैं?
उत्तर :
रचना के सम्बन्ध में अंधड़’ का तात्पर्य है- भावना का आवेग, मन में उत्पन्न भाव तथा ‘बीज’ का तात्पर्य भावानुरूप विचार या निश्चित विषय-वस्तु का मन में जागना। कवि या रचनाकार के मन में किसी निश्चित विचार की। अभिव्यक्ति जब शब्दगत हो, तो वह बीजारोपण कहलाता है।

प्रश्न 3.
‘रस का अक्षय पात्र’ से कवि ने रचना-कर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?
उत्तर :
कवि ने रचना-कर्म, कविता अथवा काव्य को ‘रस का अक्षयपात्र’ बताया है। अक्षयपात्र से आशय कभी न खाली होने वाला कविता या काव्य से रस और भाव का आस्वाद सदा-सर्वदा होता रहता है। रचना-कर्म की ये विशेषताएँ कि उनकी स्थिति कालजयी होती है तथा शताब्दियों तक पाठक उनसे रस, भाव, प्रेरणा एवं सन्देश ग्रहण करते रहते हैं।

प्रश्न 4.
व्याख्या करें

  1. शब्द के अंकुर फूटे,
    पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
  2. रोपाई क्षण की,
    कटाई अनंतता की
    लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
    उत्तर :
  3. जब कवि के मन में कोई कल्पना या भाव रूपी बीज जागा, तो उचित खाद-पानी अर्थात् अभिव्यक्ति का साथ पाकर उससे शब्द रूपी अंकुर फूटे, जो कि पल्लवित-विकसित भावों के पत्ते और पुष्प रूप में कविता रूपी पौधे . में बदल जाते हैं।
  4. कविता या काव्य की अभिव्यक्ति तो हृदयगत भावों-विचारों की क्षण भर की प्रक्रिया में उत्पन्न होती है परन्तु उसकी फसल रूपी रसधारा अनन्त काल तक रहती है। कविता का बार-बार आस्वाद करने पर भी तथा पाठकों के द्वारा उसका रस लगातार लुटाते रहने पर भी वह कम नहीं होती है, उसका रस समाप्त नहीं होता है। इसी विशेषता से कविता सर्वकालिक होती है।

कविता के आसपास –

प्रश्न 1.
शब्दों के माध्यम से जब कवि दृश्यों, चित्रों, ध्वनि-योजना अथवा रूप-रस-गंध को हमारे ऐन्द्रिक अनुभवों में साकार कर देता है तो बिम्ब का निर्माण होता है। इस आधार पर प्रस्तुत कविता से बिम्ब की खोज करें।
उत्तर :
जोशीजी की प्रस्तुत कविताओं में दृश्य (चाक्षुष) बिम्बों की योजना की गई है। वे बिम्ब इस प्रकार हैं –

छोटा मेरा खेत चौकोना।
कागज का एक पन्ना।
कोई अंधड़ कहीं से आया।
पल्लव-पुष्पों से नमित।
अमृत-धाराएँ फूटतीं।
नभ में पाँती-बँधे बगुलों की पाँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया।
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।

प्रश्न 2.
जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो, रूपक कहलाता है। इस कविता में से रूपक का चुनाव करें।
उत्तर :

कागज का एक पन्ना (उपमेय) छोटा मेरा खेत चौकोना (उपमान)।
शब्द के अंकुर फूटे (शब्द उपमेय, अंकुर उपमान)।
कल्पना के (उपमेय) रसायनों को पी (उपमान)।
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ (अलंकार आदि उपमेय, पल्लव-पुष्प उपमान)।
रसानन्द की प्राप्ति (उपमेय), अमृत-धाराएँ फूटती (उपमान)।
कला की बात –

प्रश्न :
बगुलों के पंख कविता को पढ़ने पर आपके मन में कैसे चित्र उभरते हैं? उनकी किसी भी अन्य कला माध्यम में अभिव्यक्ति करें।
उत्तर :
‘बगुलों के पंख’ कविता पढ़ने से हमारे मन में ऐसे चित्र उभरते हैं –

आसमान में काले-काले बादलों का घिरना।
सन्ध्याकालीन सुरमई चमक का फैलना।
बादलों के मध्य बिजली की चमक के साथ बगुलों का उड़ना।
ये सभी चित्र शब्दों के द्वारा और चित्रकला के द्वारा व्यक्त किये जा सकते हैं। अतः छात्र स्वयं करें।

RBSE Class 12 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Important Questions and Answers
लघूत्तरात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
“कल्पना के रसायनों को पी, बीज गल गया निःशेष”-‘छोटा मेरा खेत’ कविता की ऊपर लिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जिस प्रकार धरती के अन्दर बोया गया बीज पूरी तरह गलकर अंकुरित हो जाता है, उसी प्रकार कवि के भाव एवं विचार कल्पना रूपी खाद में विगलित होकर उत्तम काव्य रूपी रचनाओं में अभिव्यक्त होते हैं। गलने में निःशेष का अर्थ अहंभाव का खत्म होना तथा सर्वजन हिताय भाव का कविता में प्रकट होने से है।

प्रश्न 2.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता का प्रतिपाद्य या मूल भाव बताइए।
उत्तर :
‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने रूपक के द्वारा बताया है कि कागज का चौकोर पन्ना एक छोटे खेत के समान है जिसमें कविता का जन्म भावात्मक आँधी के प्रभाव से किसी भी क्षण हो जाता है और वह शब्दबद्ध होकर कविता के आनंदमयी रूप में फूटता है जिसका रस-प्रभाव अनन्त काल के लिए फलदायी होता है।

प्रश्न 3.
‘बीज गल गया निःशेष’-‘छोटा मेरा खेत’ कविता में इसका क्या आशय है?
उत्तर :
इसका आशय यह है कि जिस प्रकार धरती के अन्दर बोया गया बीज पूरी तरह गलकर अंकुरित होता है, उसी प्रकार कवि के भाव अहम भावना से मुक्त होकर सर्वजन हिताय के लिए अभिव्यक्त हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
‘रोपाई क्षण की, कटाई अनन्तता की’-‘मेरा छोटा खेत’ कविता की इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भावनात्मक आँधी के प्रभाव से कविता रूपी बीज का रोपण होता है। कविता के रस या भाव का आस्वाद अनन्त काल तक श्रोताओं-पाठकों को आनन्दमग्न करता रहता है। इस तरह क्षणभर की अभिव्यक्ति का फल अनन्त काल तक चलता रहता है। . . . . .

प्रश्न 5.
“लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।” यह कथन किसके बारे में कहा गया है? समझाइए।
उत्तर :
यह कथन कविता के आनन्द-रस रूपी फल के बारे में कहा गया है। संसार में अन्य वस्तुएँ निरन्तर उपभोग करने पर समाप्त हो जाती हैं, परन्तु कविता की सरसता निरन्तर आस्वादित होती है और उसका आनन्द सर्वदा मिलता रहता है।

प्रश्न 6.
‘बगुलों के पंख’ कविता का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता का प्रतिपाद्य सन्ध्याकालीन प्राकृतिक दृश्य के सौन्दर्य का चित्रण करना है। आकाश में बादलों के मध्य उड़ती हुई बगुलों की पंक्ति को देखकर कवि को विशिष्ट सौन्दर्यानुभूति होती है।

प्रश्न 7.
‘बगुलों के पंख’ कविता में चित्रित सौन्दर्य पर प्रकाश डालिये।
उत्तर :
‘बगुलों के पंख’ कविता में सान्ध्यकालीन आकाश का सुन्दर दृश्य-बिम्ब उपस्थित किया गया है। आकाश में कजरारे बादलों के मध्य श्वेत बगुले पंक्तिबद्ध उड़ते हैं, तो. ऐसा लगता है कि सन्ध्या की श्वेत काया बादलों के ऊपर तैर रही है।

प्रश्न 8.
“वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें”-इस पंक्ति में आँखें चुराने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
कवि का आशय है कि सन्ध्या के समय कजरारे बादलों के मध्य श्वेत बगुलों की पंक्ति इतनी मनोरम लगती है कि आँखें उनकी उड़ान के पीछे-पीछे भागती रहती हैं। मानो सन्ध्या की श्वेत काया कवि की आँखों को अपने साथ चुराये लिये जा रही है। कवि उस दृश्य से अपनी नजरें हटा नहीं पा रहे हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने खेत का साम्य चौकोर पन्ने से किस प्रकार बाँधा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि उमाशंकर जोशी छोटे चौकोर खेत को कागज का पन्ना कहते हैं। कवि अपनी इस भावना द्वारा यह बताना चाहते हैं कि कवि का कार्य भी एक किसान के कार्य के समान ही होता है। कविता रचना करना, खेती की तरह ही श्रम साध्य कार्य है। कागज के पन्ने और खेत के आकार में भी समानता है जैसे बुआई, अंकुरण और पौधों के पनपने तथा फल-फूल देने में है। भाव यह है कि कविता भी शब्दों में भाव के बीजों द्वारा अंकुरित होती है।

कल्पना के सहारे विकसित होती है। अपने रूप-रंग-सौंदर्य तथा भाव प्रसार व आनंद के प्रस्फुटन से सार्वकालिक होती है। उस रचना का आनन्द सदा-सर्वदा लिया जा सकता है। जिस प्रकार अपनी खेती की उन्नति को देख किसान हर्षित होता है उसी प्रकार कवि भी चौकोर पन्ने पर लिखी रचना के भाव-संदेश को देखकर प्रसन्न होता है।

प्रश्न 2.
‘बगुलों के पंख’ कविता में वर्णित भाव-कल्पना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
यह कविता सुन्दर भावबिम्बों को प्रस्तुत करने वाली कविता है। प्राकृतिक सौन्दर्य का मनोरम सजीव चित्रण हमारे समक्ष उपस्थित करती है। सौन्दर्य का प्रभावशाली प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कवि की रचनात्मक प्रवृत्ति का विशेष योगदान रहता है। इसमें कवि ने सौन्दर्य के चित्रात्मक वर्णन के साथ मन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का भी वर्णन किया भरे आकाश में पंक्ति बना कर उडते श्वेत बगलों को देखता है।

उस दृश्य को देख कर प्रतीत होता है मानो काजल लगे बादलों के मध्य संध्या की सफेद काया तैर रही हो। शाम का श्वेत व लाल वर्ण, जो कि सूर्य की लालिमा से युक्त होता है वह आकाश में सफेद बगुलों का साम्य करती-सी प्रतीत हो रही है। इस दृश्य से बँधी कवि की आँखें निरन्तर टकटकी लगाकर उनका पीछा कर रही हैं। अर्थात् इतना मनोरम दृश्य है जिससे आँखें हटने का नाम ही नहीं ले रही हैं।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
कवि उमाशंकर जोशी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
गुजराती कविता के जाने-माने कवि उमाशंकर जोशी का जन्म सन् 1911 में गुजरात में हुआ था। इन्होंने गुजराती कविता को प्रकृति से जोड़ा तथा आम जिन्दगी के अनुभव से परिचय करवाया। इन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में भाग लिया तथा जेल भी गए। इनकी काव्य-कृतियाँ-विश्व शांति, गंगोत्री निशिथ, प्राचीना, आतिथ्य, बसंत वर्षा, महाप्रस्थान, अभिज्ञा (एकांकी); सापनाभारा, शहीद (कहानी); श्रावणी मेणो विसामो (उपन्यास) तथा ‘संस्कृति’ पत्रिका का सम्पादन भी किया। साहित्य की नयी भंगिमा व स्वर देने वाले उमाशंकर का निधन सन् 1988 में हुआ।

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