पद-विचारः

पद
शब्दों के मूल रूप को प्रातिपदिक कहते हैं। उनके साथ सुप् व तिङ् प्रत्यय लगने पर वे शब्द पद कहलाते हैं। इन विकारी शब्दों के अतिरिक्त ऐसे भी शब्द होते हैं जिनमें कोई परिवर्तन नहीं होता वे अविकारी कहलाते हैं।
शब्द के भेद-शब्द के दो भेद हैं-

1. विकारी के भेद
विकारी के दो भेद हैं- सुबन्त, तिङन्त।

सुबन्त (संज्ञा, सर्वनाम व विशेषण)
जिनके अन्त में सुप् प्रत्यय लगाते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण इसके अन्तर्गत आते हैं।

तिङन्त (आख्यात)
जिन पदों के अन्त में ‘ति’, तः, ‘न्ति’ इत्यादि प्रत्यय आते हैं उन्हें तिङन्त पद कहते हैं। सभी क्रियापद (आख्यात) इसके अन्तर्गत आते हैं। क्रियापद का मूलरूप धातु कहलाता है। धातुओं का विभाजन दस गणों में होता है। भ्वादिगण, दिवादिगण, तुदादिगण तथा चुरादिगण आदि प्रसिद्ध गण हैं।

2. अविकारी के भेद
अविकारी के दो भेद प्रसिद्ध हैं- निपात, अव्यय
निपात और अव्यय का स्वरूप नित्य एक-सा रहता है। वाक्य में इनका स्वतन्त्र रूप से प्रयोग होता है। अद्य, अधुना, कदा, कुत्र आदि अव्यय पद हैं।

प्रत्यय तथा उपसर्ग
धातु या शब्द के बाद लगने वाले अंश को प्रत्यय कहते हैं, किन्तु शब्द के पहले जुड़ने वाले अंश को उपसर्ग कहते हैं। प्र, उप, अव, निस्, निर्, सम्, आ तथा वि इत्यादि उपसर्ग हैं। इनसे शब्द के अर्थ में कोई प्रभाव/परिवर्तन आ जाता है।

विकार जनक तत्त्व
पदों का विचार करते समय वाक्य या पद में कुछ और तत्त्व महत्वपूर्ण होते हैं। जैसे-वचन, पुरुष, लिङ्ग, विशेषण, विशेष्य, लकार इत्यादि। संस्कृत भाषा की दृष्टि से इनके स्वरूप को भी संक्षेप में जान लेना आवश्यक है।

वचन
यह संख्या का बोध कराता है। इसके तीन भेद होते हैं। एक का बोध कराने वाला एकवचन, दो का बोध कराने वाला द्विवचन तथा दो से अधिक का बोध कराने वाला बहुवचन होता है।

पुरुष
वक्ता, श्रोता आदि की दृष्टि से पुरुष का भेद होता है। वक्ता के लिए उत्तम पुरुष, श्रोता के लिए मध्यम पुरुष तथा अन्य के लिए प्रथम पुरुष का प्रयोग होता है।

लिङ्ग
संस्कृत भाषा में पुरुषवाचक के लिए पुँल्लिङ्ग, स्त्रीवाचक के लिए स्त्रीलिङ्ग तथा अन्य के लिए नपुंसकलिङ्ग का प्रयोग होता है।

विशेषण-विशेष्य
संस्कृत में संज्ञा शब्दों की विशेषता प्रकट करने वाले शब्दों को विशेषण कहा जाता है और विशेषण के द्वारा जिसकी विशेषता प्रकट की जाती है उसको विशेष्य कहा जाता है। जो वचन तथा लिङ्ग विशेष्य का होता है वही वचन तथा लिङ्ग विशेषण का होता है। शोभना लता, शोभनम् वस्त्रम्, शोभनः छात्रः, शोभनानि आभूषणानि, शोभनाः नार्यः, शोभनाः वृक्षाः इत्यादि उदाहरण हैं।

कारक विचार
वाक्य में क्रियापद की सहायता के लिए अन्य पद होते हैं उन्हें कारक कहते हैं। क्रिया को करने वाला कर्ता, क्रिया पर जिस पर प्रभाव पड़े वह कर्म, जिसकी सहायता से क्रिया हो वह करण, जिसके लिए वह सम्प्रदान है, जिससे अलग हो वह अपादान, दो पदों के सम्बन्ध को सम्बन्ध, क्रिया के आधार को अधिकरण कहते हैं। ध्यान रहे कि संस्कृत में ‘संबंध’ को कारक नहीं माना जाता है।

लकार
क्रियापदों को काल तथा भावों की दृष्टि से दस भागों में बाँटा गया है जिन्हें लकार की संज्ञा दी है। ‘ वर्तमान काल के लिए लट् लकार, भूतकाल के लिए लङ् लकार तथा भविष्यत् काल के लिए लुट लकार का प्रयोग होता है। लट् लकार के साथ प्रथम पुरुष में स्म का प्रयोग करके भूतकाल का अर्थ प्रगट होता है जैसे गच्छति स्म (गया)।

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

प्रश्न 1.
____________ मूलरूपं प्रातिपदिकं कथ्यते।
(क) शब्दानाम्
(ख) धातूनाम्
(ग) पदानाम्
(घ) प्रत्ययानाम्
उत्तराणि:
(क) शब्दानाम्

प्रश्न 2.
विकारी ____________ च शब्दस्य भेदौ स्तः।
(क) तिङ्न्त
(ख) सुप्
(ग) अविकारी
(घ) उपसर्ग
उत्तराणि:
(ग) अविकारी

प्रश्न 3.
धातूनाम् अन्ते ____________ प्रत्ययाः भवन्ति।
(क) सुबन्त
(ख) स्त्रीप्रत्यया
(ग) तिङन्त
(घ) उपसर्गाः
उत्तराणि:
(ग) तिङन्त

प्रश्न 4.
निम्नलिखितपदेषु बहुवचनान्तपदं चित्वा पृथक् कुरुत-
(क) मुनी
(ख) धेनुः
(ग) अपठन्
(घ) कपिः
उत्तराणि:
(ग) अपठन्

प्रश्न 5.
अधोलिखितपदेषु नपुंसकलिङ्गं चित्वा लिखत-
(क) लता
(ख) मालाः
(ग) गङ्गा
(घ) मनः
उत्तराणि:
(घ) मनः

प्रश्न 6.
अनु, उप, अधि, इत्यादयः के सन्ति?
(क) प्रत्ययाः
(ख) उपसर्गाः
(ग) विकारी
(घ) धातुः
उत्तराणि:
(ख) उपसर्गाः

प्रश्न 7.
सुबन्तपदं किं अस्ति?
(क) गीतानि
(ख) पठानि
(ग) कुत्र
(घ) उप
उत्तराणि:
(क) गीतानि

प्रश्न 8.
निम्नलिखितपदेषु किं क्रियापदं न अस्ति।
(क) गायामि
(ख) गीतं
(ग) श्रूयते
(घ) जयति
उत्तराणि:
(ख) गीतं

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