रुबाइयाँ, गज़ल

Textbook Questions and Answers
पाठ के साथ –

प्रश्न 1.
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?
उत्तर :
शायर कहता है कि राखी भाई-बहिन के पवित्र रिश्ते की प्रतीक है। बहिनें चमकदार मुलायम रेशों वाली राखियाँ खरीदती हैं, ताकि उनकी चमक एवं प्रेम-सौहार्द्र के समान भाई-बहिन के अटूट सम्बन्ध की चमक एवं प्रेम सौहार्द अर्थात् उन्हें निभाने का उत्साह-उल्लास सदा बना रहे।

प्रश्न 2.
खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?
उत्तर :
खुद का परदा खोलने का आशय है – अपना वास्तविक स्वरूप प्रकट करना, अपनी कमजोरियों एवं खूबियों को व्यक्त करना। प्रायः लोग दूसरों के दोषों की निन्दा करते हैं, ऐसा करके वे अपने चुगलखोर एवं निन्दक चरित्र को उजागर कर देते हैं।

प्रश्न 3.
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं-इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तनातनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए।
उत्तर :
कवि या शायर व्यक्तिगत जीवन में अभावों के कारण ऐसा मानता है कि किस्मत उसका साथ नहीं दे रही . है। प्रायः शायर अतीव भावुक स्वभाव के तथा प्रेमी हृदय होते हैं। वे अपनी बुरी स्थिति के लिए भाग्य को दोष देते हैं। इस तरह की भावना होने से शायर और किस्मत में तना-तनी का सम्बन्ध बना रहता है।

प्रश्न 4.
टिप्पणी करें
(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।
(ख) सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व।
उत्तर :
(क) गोदी का चाँद नन्हा प्यारा शिशु होता है। माँ अपने प्यारे शिशु को चाँद से भी अधिक प्यारा मानती है। आकाश का चाँद बच्चों को प्यारा लगता है और वे उसे खिलौना मानकर पाने के लिए मचलने लगते हैं। इन दोनों की स्थितियों में यही अन्तर है।
(ख) रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण की पूर्णिमा पर पड़ता है। इस समय आकाश में बादल छाये रहते हैं, बिजली चमकती रहती है। आकाश में बादलों की उमड़-घुमड़ के साथ भाई-बहिन के हृदय में पवित्र प्रेम-प्यार का उल्लास बना रहता है।

कविता के आसपास –

प्रश्न 1.
इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोगों को छाँटिए।
उत्तर :
हिन्दी के प्रयोग
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी.
× × ×
रक्षा-बन्धन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी इत्यादि
उर्दू के प्रयोग –
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
× × ×
देख आईने में चाँद उतर आया है।
लोकभाषा के प्रयोग –
रह-रह के हवा में जो लोका देती है।

प्रश्न 2.
फिराक ने सुनो हो, रक्खो हो आदि शब्द मीर की शायरी के तर्ज पर इस्तेमाल किए हैं। ऐसी ही मीर की कुछ गजलें ढूँढ़ कर लिखिए।
उत्तर :
शिक्षक एवं पुस्तकालय की सहायता लेकर स्वयं करें। आपसदारी
प्रश्न-कविता में एक भाव, एक विचार होते हुए भी उसका अंदाजे बयाँ या भाषा के साथ उसका बर्ताव अलग-अलग रूप में अभिव्यक्ति पाता है। इस बात को ध्यान रखते हुए नीचे दी गई कविताओं को पढ़िए और दी गई फ़िराक की गजल/रुबाई में से समानार्थी पंक्तियाँ ढूँढ़िए
(क) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।

RBSE Class 12 रुबाइयाँ, गज़ल Important Questions and Answers
लघूत्तरात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
फ़ितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो लेते हैं
(अ) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि द्वारा वर्णित भावों को समझाइए।
(ब) प्रस्तुत काव्यांश की शिल्पगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
(अ) प्रेम और सौन्दर्य के संसार में भी यह आदत कायम (स्थापित) है कि जो प्रेम में स्वयं को जितना अधिक खो लेता है, वह उतना ही अधिक प्रेम प्राप्त करता है। यह सन्तुलन का भाव प्रेम के क्षेत्र में भी होता है।
(ब) वर्गों की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है, सहेतुकथन होने से काव्यलिंग अलंकार है। उर्दू शब्दों का प्रयोग एवं गजल की गति उचित है।

प्रश्न 2.
“हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला किस्मत हमको रो लेवे है, हम किस्मत को रो ले हैं।” फ़िराक गोरखपुरी की इन पंक्तियों के भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि स्वयं को और अपनी किस्मत को निराशावादी शब्दों में कहता है कि हमारी परिस्थितियाँ सदैव एकसमान रही हैं। मैं और मेरी किस्मत सदा ही वेदना-निराशा से प्रताड़ित रही है। इसलिए हम हमेशा एक-दूसरे को रो लेते हैं अर्थात् एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं।

प्रश्न 3.
‘उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं फिराक गोरखपुरी की इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रेम के क्षेत्र में मनुष्य जितना स्वयं को खोता है वह उतना ही प्रेम प्राप्त करता है। प्रेम में ‘मैं’ का भाव तिरोहित होने के पश्चात् ही ‘हम’ की प्राप्ति होती है

प्रश्न 4.
“बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे”-फिराक गोरखपुरी ने रक्षा-बन्धन के लच्छों अर्थात् धागों को बिजली की तरह चमकीला क्यों बताया है?
उत्तर :
रक्षा-बन्धन अर्थात् राखी के लच्छों में रंग-बिरंगी सुन्दरता और चमक का सहज आकर्षण रहता है। बादलों के साथ बिजली की चमक के समान राखी के धागों में भाई-बहिन का अटूट स्नेह-सम्बन्ध बना रहता है। इसीलिए कवि ने उन्हें चमकीला बताया है।

प्रश्न 5.
बच्चे की चाँद को लेने की जिद को माता किस प्रकार अपनी ममताभरी समझ से पूर्ण करती है? फिराक गोरखपुरी की रुबाइयों के आधार पर समझाइए।
उत्तर :
माता बच्चे की जिद को पूरी करने के लिए उसके हाथ में दर्पण देती है और उसका प्रतिबिम्ब दिखाकर कहती है कि देख, चाँद तुम्हारे पास आ गया है। इस तरह वह ममताभरी समझ से बच्चे को मना लेती है।

प्रश्न 6.
रक्षा-बन्धन को लक्ष्य कर कवि फिराक ने क्या भाव व्यक्त किये?
उत्तर :
कवि ने भाव व्यक्त किया है यह प्रेम-व्यवहार का मीठा त्योहार है। इस दिन बहिन अपने स्नेहिल बंधन को मजबूत करने के लिए अपने भाई के हाथ में बिजली की तरह चमचमाती राखी बाँधती है। सावन का यह त्योहार भाई-बहिन को अपार खुशियाँ प्रदान करने वाला है।

प्रश्न 7.
रुबाइयों के आधार पर घर-आँगन में दीपावली के दृश्य-बिम्ब को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
फिराक गोरखपुरी ने दीपावली का दृश्य-बिम्ब इस प्रकार चित्रित किया है—शाम का समय, लिपा-पुता एवं स्वच्छ घर-आँगन, माँ अपने बच्चों के लिए जगमगाते चीनी के खिलौने सजाती और प्रसन्नता से दीपक जलाती है तथा बच्चों की खिलखिलाहट से पूरा घर-आँगन जगमगा जाता है।

प्रश्न 8.
रुबाई के आधार पर रक्षाबन्धन का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
रक्षाबन्धन का चित्रण करते हुए फिराक कहते हैं कि सावन में आकाश में घटाएँ छायी रहती हैं, बिजली चमकती हैं। बहिन सज-धज कर और प्रसन्नता से भरकर भाई की कलाई में चमकते रेशों.वाली राखी बांधती है।

प्रश्न 9.
“मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं”-इसका आशय बताइये।
उत्तर :
इसका आशय यह है कि जो लोग दूसरों की निन्दा करते हैं, बुराई करते हैं, वे लोग वस्तुतः अपनी ही निन्दा एवं बुराई करते हैं, क्योंकि ऐसे लोग स्वयं ही ईर्ष्या और द्वेष से ग्रस्त रहते हैं। इस कारण वे अपनी कमजोरी व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 10.
फिराक गोरखपुरी की रुबाई के आधार पर दीपावली की सजावट और माँ के वात्सल्य का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
दीपावली पर माँ सारे घर को स्वच्छ करके उसे सजाती है और दीपक जलाती है। उस समय उसके चेहरे पर अपने बच्चे के लिए ममता एवं वात्सल्य की भावमयी चमक-दमक रहती है। वह दृश्य अतीव मनोरम और दर्शनीय होता है।

प्रश्न 11.
फिराक की गजलों में प्रकृति को किस रूप में चित्रित किया गया है?
उत्तर :
फिराक की गजलों में प्रकृति का चित्रण मानवीकरण शैली में हुआ है। प्रातःकाल कलियाँ अपनी गाँठें धीरे-धीरे खोलती हैं तथा रंग व सुगंध के सहारे उड़ने को आतुर हैं। तारे आँखें झपकाते-से प्रतीत होते हैं। रात का सन्नाटा प्रकृति के रहस्य को मौन स्वर में बोलता हुआ किसी की याद दिलाता सा प्रतीत होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘देख आईने में चाँद उतर आया है’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या बता रहे हैं?
उत्तर :
कवि गोरखपुरी की रुबाइयाँ उनकी रचना ‘गुले नग्मा’ से ली गई हैं। ये रुबाई उर्दू और फारसी का एक छंद है या लेखन शैली है। इस पंक्ति में कवि ने माँ और शिशु के मध्य के वात्सल्य रस को स्पष्ट किया है। शिशु चन्द्र खिलौना लेने के लिए मचल रहा है। माँ अनेक प्रयत्नों से उसे बहलाने की कोशिश कर रही है।

किन्तु बच्चा तो बच्चा – ही है उसे उस समय जो चाहिए, जब तक उसे मिल न जाये वह स्वयं को और माँ को परेशान ही रखता है। तभी माँ उसकी जिद पूरी करने हेतु आईना (दर्पण) लाकर शिशु को उसमें चाँद का प्रतिबिम्ब दिखाती है और कहती है कि देख इसमें तेरा चाँद खिलौना, अब यह तेरा हुआ। बच्चा उस खिलौने को पाकर अति प्रसन्न है तथा उसकी खिलखिलाहट से पूरा वातावरण गुंजायमान है।

प्रश्न 2.
‘तेरी कीमत भी अदा करे हैं हम बदरुस्ती ए-होशो-हवास’ गजल की पंक्ति में कवि, शायर क्या भाव प्रकट कर रहे हैं?
उत्तर :
फिराक गोरखपुरी हिन्दी-उर्दू-फारसी भाषा के विद्वान तथा बहुत बड़े शायर थे। उन्होंने अपनी रुबाइयों व गजलों द्वारा प्रेम के कई पक्षों का स्वरूप प्रस्तुत किया है। इन पंक्तियों में शायर अपनी प्रियतमा को कह रहे हैं कि तुमसे प्रेम करने की जो कीमत है वह हम पूरे होशोहवास में रखकर भी चुका रहे हैं। कहने का आशय है कि जो व्यक्ति प्रेम में रोता है उसे लोग पागल-दीवाना कहते हैं और पागलपन में वह दीवाना अपने प्रेम के किस्से और प्रियतमा का नाम सबको बताता रहता है।

यहाँ शायर पूरी तरह से अपने होश में है लेकिन लोग उन्हें प्रेमी दीवाना कहकर बुलाते हैं, उसके बाद भी शायर किसी को भी अपने प्यार के किस्से नहीं सुनाता और न ही प्रियतमा का नाम बताकर उसे बदनाम कर रहा है। इसलिए शायर कह रहे हैं कि तेरे प्यार की कीमत हम पूरे होशोहवास में अदा कर रहे हैं।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
कवि, शायर फिराक गोरखपुरी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
फिराक गोरखपुरी उर्दू-फारसी के जाने-माने शायर हैं। इनका जन्म 28 अगस्त, सन् 1896 को गोरखपुर में हुआ। इनका मूल नाम रघुपतिसहाय ‘फिराक’ था। इन्होंने अरबी, फारसी व अंग्रेजी में शिक्षा ग्रहण की। 1917 में डिप्टी कलक्टर बने परन्तु स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने के कारण 1918 में इन्होंने पद त्याग दिया। ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक भी रहे।

इनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ – ‘गुले नग्मा’, ‘बज्मे जिंदगी’, ‘रंगे शायरी’, ‘उर्दू गजलगोई आदि। इनकी शायरियों में सामाजिक दुःख-दर्द, व्यक्तिगत अनुभूति बनकर शायरी में ढला है। इंसान के हाथों इंसान पर जो गुजरती है, उसकी तल्ख सच्चाई भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर उन्होंने अपनी शायरी का अनूठा महल खड़ा किया।

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