संवाद-लेखन 7
दो व्यक्तियों की बातचीत को ही संवाद कहा जाता है। परीक्षा में किसी विषय पर दो व्यक्तियों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखने के लिए कहा जाता है। संवाद लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- संवाद संक्षिप्त, सरल एवं सारगर्भिक होना चाहिए।
- संवादों की भाषा सरल, पात्रानुकूल होनी चाहिए।
- संवादों में क्रमबद्धता का ध्यान रखना चाहिए अर्थात् एक पात्र का संवाद दूसरे संवाद से परस्पर जुड़ा होना चाहिए।
- पात्रों के मनोभावों एवं मुद्राओं को कोष्ठकों में लिखना चाहिए।
- संवादों में भावानुसार विराम-चिह्नों का प्रयोग करना चाहिए।
1. पिता और पुत्र के बीच संवाद
ओजस्व – पिता जी, मुझे अपने दोस्तों के साथ मॉल जाना है।
पिता – नहीं ओजस्व, तुम अपने दोस्तों के साथ रहकर घुमक्कड़ होते जा रहे हो। तुमने पढ़ना लिखना तो बिलकुल ही छोड़ दिया है।
ओजस्व – नहीं पिता जी, अब मैं पढ़ेगा, वायदा करता हूँ।
पिता – बेटे, ऐसे वायदे तो रोज करते हो।
ओजस्व – पर इस बार मैं पक्का वायदा करता हूँ कि आपको 80% से ऊपर अंक लाकर दिखलाऊँगा।
पिता – और अगर नहीं लाए तो ……….
ओजस्व – फिर आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगा।
पिता – ठीक है। तुम्हें यह आखिरी अवसर देता हूँ।
2. बढ़ती महँगाई को लेकर दो नागरिकों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।
हरिप्रसाद – अरे पंकज क्या लाए हो बाजार से?
पंकज – जी, अंकल ज्यादा कुछ नहीं, बस थोड़ी सी दालें और चावल ही लाया हूँ।
हरिप्रसाद – अब इस बढ़ती महँगाई ने तो सबका हाथ ही तंग कर दिया है।
पंकज – कुछ न पूछिए! सभी चीजों के दाम आसमान को छू रहे हैं, कोई भी चीज सस्ती नहीं है। कुछ दालों के तो 200 रुपए किलो तक पहुँच गए हैं।
हरिप्रसाद – दालें ही क्या सभी चीजें इतनी महँगी हो गई हैं कि वे आम आदमी की पहुँच से बाहर होती जा रही हैं।
पंकज – पर मेरी एक बात समझ में नहीं आती। महँगाई को रोकने के लिए सरकार क्यों कुछ नहीं कर रही है?
हरिप्रसाद – अरे भैया! मुझे तो लगता है दाल में कुछ काला है। वरना सरकार चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकती। महँगाई के खिलाफ़ कानून बना सकती है। चीजों के दाम तय कर सकती है।
पंकज – यही नहीं, उचित दाम से अधिक मूल्य वसूलने वालों को धर पकड़ भी सकती है।
हरिप्रसाद – हाँ, सरकार आए दिन कुछ न कुछ बयान अवश्य देती है। कभी वायदे करती है, कभी योजनाएँ बनाती है, पर न तो वे वायदे कभी पूरे होते हैं और न ही वे योजनाएँ।
पंकज – आश्चर्य की बात यह है कि विपक्षी पार्टियाँ भी सरकार पर दबाव डालने के लिए कुछ नहीं कर रही हैं।
3. माँ और बच्चे के बीच संवाद
बबीत – माँ, मुझे बहुत भूल लग रही है। आप डॉनल्ड का बर्गर मँगा दो।
माँ – बबीत, कल तुमने पीज़ा खाया था और सुबह मैगी। तुम्हें कितनी बार समझाया है कि यह कूड़ा अर्थात ‘जंक फूड’ है, इसे नहीं खाना चाहिए।
बबीत – माँ, पीजी तो कल अक्षत के जन्मदिन की पार्टी में खाया था और मैगी भैय्या ने बनाई थी।
माँ – पर, गया तो तुम्हारे पेट में न। नुकसान तो तुम्हारा हुआ ना। जानते हो ये सब चीजें दिल को तो कमजोर करती ही हैं, साथ ही शरीर को मोटा करती हैं और न जाने कितनी बीमारियों को जन्म देती हैं। तुम अपने शरीर को ऐसा करना चाहोगे।
बबीत – सॉरी, माँ अब से मैं ‘जंक फूड’ नहीं केवल हरी सब्ज़ियाँ खाऊँगा।
माँ – शाबाश, मेरा अक्लमंद बेटा।