कविता के बहाने, बात सीधी थी पर
Textbook Questions and Answers
कविता के साथ –
प्रश्न 1.
इस कविता के बहाने बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने क्या हैं?
उत्तर :
‘सब घर एक कर देने’ का आशय है कि आपसी भेदभाव, अलगाव-बोध तथा आस-पड़ोस के अन्तर को समाप्त करके सभी के प्रति अपनत्व की भावना रखना और वैसा ही आचरण करना। इस तरह का व्यवहार खासकर बच्चे करते हैं। बच्चे खेल में अपने-पराये का भेद भूल जाते हैं, सभी घरों को अपना घर.जैसा मानते हैं। उसी तरह कवि अपनी कविता में सारे मानव-समाज को समान मानकर अपनी बात कहता है। कविता में शब्दों के खेल के साथ मानवीय भावना जुड़ी होती है, जिसमें सभी प्रकार की सीमाएँ स्वयं टूट जाती हैं।
प्रश्न 2.
‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या सम्बन्ध बनता है?
उत्तर :
तितलियाँ उड़ती हैं और फूल खिलते हैं। इसी प्रकार कवि भी कविता-रचना में कल्पनाओं-भावनाओं की उड़ान भरता है। उसकी काल्पनिक उड़ान से कविता फूलों की तरह खिलती एवं विकसित होती है। अतः ‘उड़ने’ और ‘खिलने’ से कविता का मनोगत उल्लास से अनुभूतिमय सम्बन्ध है।
प्रश्न 3.
कविता और बच्चे को समानान्तर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर :
बच्चों के खेल में कौतुक की कोई सीमा नहीं रहती है। कविता में भी स्वच्छन्द शाब्दी-क्रीड़ा रहती है। बच्चे आनन्द-प्राप्ति के लिए खेलते हैं, वे खेल में अपने-पराये का भेदभाव भूल जाते हैं तथा खेल-खेल में उनका संसार विशाल हो जाता है। कवि भी कविता-रचना करते समय सांसारिक सीमा को त्यागकर आनन्द भरता है तथा कविता के बहाने सबको खुशी देना चाहता है। इसी कारण कविता और बच्चों को समानान्तर रखा गया है।
प्रश्न 4.
कविता के सन्दर्भ में ‘बिना मुरझाये महकने के माने क्या होते हैं?
उत्तर :
फूल तो खिलकर कुछ समय बाद मुरझा जाते हैं, परन्तु कविता कभी नहीं मुरझाती है, वह सदा खिली रहती है तथा अपनी भावगत सुगन्ध को बिखेरती रहती है। वस्तुतः कविता अनन्त काल तक जीवित रहकर आनन्द का प्रसार कर सकती है, इस कारण उसकी सुगन्ध सदा बनी रहती है।
प्रश्न 5.
‘भाषा को सहूलियत से बरतने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
इसका अभिप्राय है. भाषा का सरलता, सादगी, सहजता एवं भावानुरूपता से प्रयोग करना । कविता में या लेखन में शब्दों का प्रयोग भावों के अनुरूप होना चाहिए, भाषा पूर्णतया सुबोध एवं सम्प्रेष्य होनी चाहिए।
प्रश्न 6.
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किन्तु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। कैसे?
उत्तर :
बात और भाषा का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। मानव द्वारा मन में उत्पन्न विचारों और भावों को भाषा या शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जाता है। व्यक्ति जैसा सोचता एवं अनुभव करता है, वह उसे उसी रूप में सहजता से कह देता है। परन्तु कभी-कभी व्यक्ति अपनी बात को कलात्मक ढंग से, अलंकृत शब्दावली के द्वारा तथा सजा-सँवार कर कहना चाहता है।
तब वह भाषा के मोह में पड़ जाता है और ऐसे शब्द प्रयुक्त करने लगता है, जो कृत्रिम हो, भावानुकूल न हो तथा क्लिष्ट भी हो। इस तरह के चक्कर में पड़कर सीधी-सरल बात भी टेढ़ी हो जाती है जिससे उसकी सरल सहज अभिव्यक्ति तथा सम्प्रेष्यता बाधित होती है। ऐसी भाषा कठिन शब्द-चमत्कार बनकर रह जाती है। रचना-कर्म में इसे दोष ही मानते हैं।
प्रश्न 7.
बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिम्बों/मुहावरों से मिलान करें –
1
उत्तर :
2
कविता के आसपास –
प्रश्न :
बात से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं। कुछ मुहावरों का प्रयोग करते हुए लिखें।
उत्तर :
बात का धनी-सुरेन्द्र बात का धनी है, इसलिए मैं उसका विश्वास करता हूँ।
बात गाँठ में बाँधना-बेटा, तुम मेरी बात गाँठ में बाँध लोगे, तो जिन्दगी भर खुश रहोगे।
बातें बनाना-कुछ बातूनी लोग बातें बनाने में चालाक होते हैं।
बात बिगड़ जाना-तुम्हारे गुस्से के कारण आज बात बिगड़ गई।
बातों ही बातों में-बातों ही बातों में लुटेरों ने उसका सामान पार कर लिया।
व्याख्या करें –
प्रश्न :
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
उत्तर :
काव्यांश का भावार्थ-भाग देखिए।
चर्चा कीजिए –
प्रश्न 1.
आधुनिक युग में कविता की सम्भावनाओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
आधुनिक युग में कविता का स्वरूप काफी प्रभावशाली बन गया है। आज कविता की विषय-वस्तु काफी व्यापक हो गई है। उसमें भावगत तथा शिल्पगत काफी परिवर्तन आने लगे हैं। जीवन के यथार्थ से जुड़ी कविताओं में अभिव्यक्ति की सहजता एवं प्रखरता बढ़ रही है। इसलिए आधुनिक युग में कविता की अनेक सम्भावनाएँ दिखाई दे रही हैं तथा इसके विकास की गति बढ़ रही है।
प्रश्न 2.
चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त उपमानों के माध्यम से कवि ने कंथ्य की अमूर्तता को साकार किया है। भाषा को समृद्ध एवं सम्प्रेषणीय बनाने में, बिंबों और उपमानों के महत्त्व पर परिसंवाद आयोजित करें।
उत्तर :
(i) चूड़ी, कील, पेंच आदि उपमानों के प्रयोग से कथ्य कुछ कठिन हो गया है। कवियों को ऐसी उपमान योजना नहीं अपनानी चाहिए।
(ii) कविता-रचना में भाषा को समृद्ध एवं सम्प्रेष्य होना ही चाहिए, परन्तु इसके लिए सरल-सुबोध बिम्बों और उपमानों का प्रयोग करना उचित रहता है। इसलिए ऐसे बिम्बों और उपमानों को कविता में स्थान देना चाहिए, जो क्लिष्ट कल्पना एवं शब्दगत चमत्कार से रहित हों, तभी कविता आकर्षक बन सकती है।
आपसदारी –
प्रश्न 1.
सुंदर है सुमन, विहग सुंदर
मानव तुम सबसे सुंदरतम।
पंत की इस कविता में प्रकृति की तुलना में मनुष्य को अधिक सुन्दर और समर्थ बताया गया है। कविता के बहाने’ कविता में से इस आशय को अभिव्यक्त करने वाले बिन्दुओं की तलाश करें।
उत्तर :
‘कविता के बहाने’ कविता में चिड़िया और फूल की अपेक्षा कविता को अधिक समर्थ और प्रभावी बताया गया है। यथा –
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने!
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
RBSE Class 12 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Important Questions and Answers
लघूत्तरात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
“कविता एक खेल है बच्चों के बहाने”कविता के बहाने’ पाठ में कविता और बच्चे मानव-समाज को क्या संदेश देते हैं?
उत्तर :
आज के युग में यान्त्रिकता बढ़ गई है। कविता हमें यान्त्रिकता के दबाव से निकालने तथा उल्लास के साथ आगे बढ़ने का सन्देश देती है। बच्चों के सपने एवं खेल सदा आनन्ददायी होते हैं जो हमें भी सुनहरे भविष्य का सन्देश देते हैं उसी प्रकार कविता का भी यही कार्य है।
प्रश्न 2.
‘कविता के बहाने’ शीर्षक कविता का कथ्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता चिड़िया की उड़ान और फूलों के विकास से भी अधिक काल्पनिक उड़ान और भावात्मक सुगन्ध वाली होती है। कविता बच्चों के खेल जैसी आनन्ददायी होती है, लेकिन आज के युग में यान्त्रिकता के दबाव में कविता के अस्तित्व पर संकट आ रहा है।
प्रश्न 3.
‘कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’-इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता और चिड़िया दोनों की उड़ान काफी ऊँची होती है, परन्तु चिड़िया की उड़ान सीमित होती है, जबकि कविता की कल्पनानभतियों की उडान असीमित होती है। अतः चिड़िया कविता की उड़ान का अर्थ नहीं समझ सकती है।
प्रश्न 4.
‘कविता एक खिलना है फूलों के बहाने’ इसका अभिप्राय क्या है?
उत्तर :
जिस प्रकार फूल खिलकर अपनी सुन्दरता, सुगन्ध एवं पराग को फैलाकर सभी को आनन्दित-उल्लसित करते हैं, उसी प्रकार कविता भी कल्पनाओं एवं कोमल अनुभूतियों से सभी को आनन्दित कर सन्देश रूपी सुगन्ध फैलाती है।
प्रश्न 5.
‘कविता के बहाने’ शीर्षक कविता में बच्चों और कविता की क्या समानता बतायी गई है?
उत्तर :
बच्चों में भेदभाव की भावना नहीं होती है। वे अपने-पराये का अन्तर भूलकर खेल खेलते हैं तथा स्वयं आनन्दित होकर दूसरों को भी प्रसन्न करते हैं। इसी प्रकार कविता भी अपना-पराया भूलकर, मानवीय भावों की अभिव्यक्ति से सभी को आनन्द देती है।
प्रश्न 6.
‘कविता एक खेल है बच्चों के बहाने’-इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
बच्चों को खेल से आनन्द मिलता है, वे अपने-पराये का भेदभाव भूलकर खेल खेलते हैं। कवि भी खेल के समान आनन्ददायी होती है। उसमें काल्पनिक भाव-सौन्दर्य का चित्रण भेदभावरहित और अतीव आनन्ददायी होता है।
प्रश्न 7.
‘सब घर एक कर देने के माने’-इससे कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है?
उत्तर :
कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि बच्चे खेल में अपने-पराये घर का भेद नहीं करते हैं, वे सभी घरों में जाकर साथियों के साथ खेलकर आनन्दित होते हैं। उसी प्रकार कविता भी समानता का व्यवहार कर सभी को आनन्दित करती है।
उत्तर :
कविता में भाषा की सहजता-सरलता पर ध्यान देना चाहिए। सीधी-सी बात को तोड़-मरोड़ कर कहने से उसका सौन्दर्य व अर्थ नष्ट हो जाता है। वह सही ढंग से अभिव्यक्त नहीं हो पाती है, उसमें जटिलता आ जाती है।
प्रश्न 9.
अच्छी बात कहने या अच्छी कविता-रचना के लिए क्या जरूरी बताया गया है?
उत्तर :
इसके लिए यह जरूरी है कि सही शब्दों और सरल भाषा का प्रयोग किया जाये। चमत्कार के लिए शब्दों को जटिल एवं क्लिष्ट न बनाया जावे और कथ्य को सहजता से सरल भाषा में व्यक्त किया जावे।
प्रश्न 10.
‘जरा टेढ़ी फँस गई’-सीधी बात कहाँ पर फँस गई?
उत्तर :
कवि बताता है कि बात सीधी-सरल थी, परन्तु उसे व्यक्त करने के लिए जो भाषा या शब्दावली प्रयुक्त की गई, वह जटिल और चमत्कारपर्ण थी। इस तरह भाषा को प्रभावी बनाने के चक्कर में सीधी बात उसमें फंस गई।
प्रश्न 11.
‘भाषा को उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा’-कवि ने ऐसा क्यों किया?
उत्तर :
भाषा को प्रभावी एवं क्लिष्ट बनाने के चक्कर में कंथ्य स्पष्ट नहीं हुआ तो कवि ने अपनी बात को समझाने के लिए शब्दों का उलट-फेर किया तथा उसे प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का प्रयास किया। परन्तु इससे कथ्य और पेचीदा हो गया। “
प्रश्न 12.
‘बात और भी पेचीदा होती चली गई’-इसका आशय बताइये।
उत्तर :
कवि ने अपनी सीधी-सरल बात को प्रभावी बनाने के लिए भाषा को सँवारने का प्रयास किया। इस हेतु शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा तथा उनमें घुमाव-फिराव किया। लेकिन इससे वह बात सरल ढंग से प्रकट न होकर जटिल हो गई।
प्रश्न 13.
‘पेंच को खोलने के बजाय उसे बेतरह कसने’ का क्या परिणाम रहा? बताइये।
उत्तर :
प्रभावी अभिव्यक्ति हेतु कवि भाषा रूपी पेंच को खोलने अर्थात् भाषा को सरल बनाने के बजाय उसे सता रहा। इस प्रयास में पेंच की चूडी मरने के समान भाषा भी बेकार हो गई और बात सही ढंग से व्यक्त नहीं हो सकी।
प्रश्न 14.
‘बात को कील की तरह ठोंक देना’ का क्या परिणाम रहा?
उत्तर :
चूड़ी मर जाने पर यदि पेंच को कील की तरह ठोक दिया जावे, तो मजबूत नहीं हो पाती है। इसी प्रकार सरल बात को भाषा के कसावट के चक्कर में उलट-पलटकर कहने से अभिव्यक्ति में ढीलापन आ जाता है।
प्रश्न 15.
‘एक शरारती बच्चे की तरह खेल रही थी। इसमें बात को शरारती बच्चा कहने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
कवि सीधी बात को कहने के लिए शब्दों की अदला-बदली कर रहा था। शरारती बच्चे को काबू में लाने की तरह वह भाषा में चमत्कार लाना चाहता था और बात को नये ढंग से कहना चाहता था, परन्तु कह नहीं पा रहा था।
प्रश्न 16.
“आखिरकार वहीं हुआ, जिसका मुझे डर था।”-कवि को क्या डर था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि को यह डर था कि भाषा में चमत्कार लाने हेतु वह जितने भी प्रयत्न कर रहा था वे सब निरर्थक हो गए। इस चक्कर में भाषा का सरल अर्थ चूड़ी के पेंच की तरह मर गया।
प्रश्न 17.
“तमाशबीनों की शाबाशी और वाह-वाह” का क्या दुष्परिणाम रहता है?
उत्तर :
तमाशबीन लोग जब सही-गलत किसी भी कार्य के लिए शाबाशी देते हैं, तो इससे व्यक्ति गलत काम को भी सही मानने लगता है और अपने लक्ष्य से भटककर वह सीधा-सरल काम भी सही ढंग से नहीं कर पाता है।
प्रश्न 18.
“क्या तुमने भाषा को सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?” इस पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इसमें व्यंग्य यह है कि चमत्कार-प्रदर्शन के लोभ में कविता की सम्प्रेषणीयता एवं सहजता नष्ट हो जाती है। भाषा को तोड़ना-मरोड़ना उसके सीधे-सरल अर्थ को नष्ट करना है जिससे कविता के भाव-सौन्दर्य की हानि होती है। ऐसा आचरण उसकी नासमझी मानी जाती है।
प्रश्न 19.
“मुझे पसीना पोंछते देखकर”- कवि को किस कारण पसीना आ गया?
उत्तर :
सीधी-सरल बात को सहज अभिव्यक्ति न दे पाने से, भावों को क्लिष्ट से सरलता की ओर लाने का प्रयास करने से कवि को पसीना आ गया। काफी परिश्रम-प्रयास करने पर भी वांछित कार्य न हो पाने से पसीना आना स्वाभाविक ही लगता है।
निबन्धात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
कविता के बहाने’ कवि कुँवर नारायण क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर :
‘कविता के बहाने’ कविता में कवि ने एक यात्रा का वर्णन किया है। जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। एक ओर प्रकृति का विशाल साम्राज्य है तथा दूसरी ओर भविष्य की तरफ कदम बढ़ाता बच्चा है। कवि ने चिड़िया के उड़ान के माध्यम से उसके उड़ने की सीमा बताई है कि एक सीमा तक ही वह अपनी उड़ान भर सकती है। उसी तरह फूलों के खिलने, सुगन्ध देने तथा मुरझाने की भी एक सीमा है। समयानुसार फूल खिलता है, रंग और खुशबू बिखेरता है और फिर मुरझा जाता है। लेकिन बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा या बंधन नहीं होता है।
उसी प्रकार कविता भी तो शब्दों का खेल ही है और इस खेल में जड़, चेतन, अतीत और वर्तमान-भविष्य सभी उसके उपकरण मात्र हैं। कविता की कल्पना अनन्त है। शब्दों का जाल अनन्त है। इसलिए जहाँ भी रचनात्मक क्रिया की बात आती है, वहाँ सीमाओं के बंधन स्वतः ही टूट जाते हैं। वह चाहे घर की सीमा हो, भाषा की हो या फिर समय की हो। इन्हीं भावों से संचित कविता कवि की राय को प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 2.
‘कविता के बहाने’ कविता में कवि ने कविता रचना को किसके समकक्ष बताया है और कैसे?
उत्तर :
कविता के बहाने’ कविता में कवि ने कविता-रचना को बच्चों के खेल के समान बताया है। कवि बच्चों की खेल-क्रीडा को देख कर शब्द-क्रीडा करता है। आशय है कि बच्चे विभिन्न उनके खेलों का संसार असीमित एवं व्यापक है। उसी प्रकार कवि भी शब्दों के द्वारा नये-नये भावों एवं मनोरम कल्पनाओं के खेल खेलता है।
जिस प्रकार बच्चे खेल खेलते हुए सभी के घरों में समान रूप से खेल खेलते हैं और अपने-पराये का भेदभाव नहीं रखते उसी प्रकार कविता में भी शब्दों का खेल होता है। कवि शब्दों द्वारा आन्तरिक बाह्य भाव विचारों को, अपने-पराये सभी लागों के मनोभावों को कलात्मक अभिव्यक्ति देता है। वह सभी को समान मानकर सार्वकालिकं भावों को वाणी देता है।
प्रश्न 3.
‘बात सीधी थी पर’ कविता में कवि ने किस विषय पर ध्यान आकर्षित किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘बात सीधी थी पर’ कविता में कवि ने भाषा की सहजता पर बात की है। कवि का कहना है कि हमें सीधी-सरल बात को बिना जटिल बनाये आसान शब्दों में कहने का प्रयास करना चाहिए। भ फेर में बात स्पष्ट नहीं हो पाती है तथा अभिव्यक्ति की सरलता में उलझाव आ जाता है। व्यक्ति जैसा सोचता व अनुभव करता है उसे उसी रूप में सहजता से व्यक्त कर देना चाहिए। लेकिन कभी-कभी वाह-वाही पाने के लोभ में अपनी बात को सजा-सँवारकर, कलात्मक ढंग से अलंकृत शैली का प्रयोग करने लगता है। जिसके चक्कर में सीधी-सरल बात भी टेढ़ी हो जाती है। रचना-कर्म में इसे एक दोष माना जाता है।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –
प्रश्न 1.
कवि कुँवर नारायण के रचनात्मक योगदान को बताते हुए उनके जीवन-चरित्र पर भी संक्षिप्त में प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘तीसरा सप्तक’ के प्रमख कवियों में अपना नाम दर्ज कराने वाले कवि कँवर नारायण का जन्म 19 सितम्बर, सन् 1927 को फैजाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। अंग्रेजी में एम.ए. करने के पश्चात् इन्होंने कई देशों की यात्राएँ की। भाषा और विषय की विविधता इनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। इनकी रचनाओं में यथार्थ का खुरदरापन भी मिलता है और सहज सौंदर्य भी।
‘चक्रव्यूह’, ‘परिवेश’, ‘हम तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’ (काव्य-संग्रह); ‘आत्मजयी’ (प्रबंध काव्य); ‘आकारों के आस-पास’ (कहानी-संग्रह); ‘आज और आज से पहले’ (समीक्षा); ‘मेरे साक्षात्कार.’ (सामान्य) आदि। व्यास सम्मान, लोहिया सम्मान, प्रेमचंद तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा कबीर सम्मान जैसे अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित कवि का जीवन सदैव सृजन-कर्म में लगा रहा।