प्रश्न-अभ्यास
- परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन-से तर्क दिए?
उत्तर धनुष टूटने पर जब परशुराम ने क्रोध प्रकट किया, तब लक्ष्मण ने निम्नलिखित तर्क दिए
- हम तो इस धनुष को अन्य धनुषों के समान साधारण धनुष समझ रहे थे।
- श्रीराम ने तो इसे नया ही समझा था।
- यह धनुष तो पुराने होने के कारण श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं।
हम धनुष को तोड़ने में लाभ-हानि नहीं देखते।
- परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं. उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर राम-लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताएँ
राम राम स्वभाव से कोमल और विनयशील हैं। उनके मन में बड़ों के प्रति श्रद्धा और आदर है। वे गुरुजनों के सामने झुकना अपना धर्म समझते हैं। वे महाक्रोधी परशुराम के बिना बात क्रुद्ध होने पर भी स्वयं को उनका दास कहते हैं। उनके वचन अग्नि में जल के समान शीतल थे। इस प्रकार, वे परशुराम का भी दिल जीत लेते हैं।
लक्ष्मण लक्ष्मण उग्र स्वभाव के थे। उनकी व्यंग्योक्तियों ने परशुराम के क्रोध को और अधिक भड़का दिया। उनकी उग्रता और कठोर वचनों को सुनकर परशुराम क्रोध में आकर और अधिक उत्तेजित हो जाते हैं। यहाँ तक कि सभाजन भी उन्हें अनुचित कहने लगते हैं। लक्ष्मण के वचन अग्नि में घी के समान हैं। लक्ष्मण वीर, साहसी और निडर हैं इसलिए परशुराम के क्रोध और फरसे से आतंकित नहीं होते।
- लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा हो, उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर लक्ष्मण-परशुराम संवाद का निम्नलिखित दृश्य सबसे अधिक रोचक है लक्ष्मण हे मुनि! हमारे लिए तो सभी धनुष एक समान हैं। परशुराम यह कोई साधारण धनुष नहीं था, यह शिवजी का धनुष था। लक्ष्मण यह पुराना धनुष तो छूने मात्र से टूट गया। राम ने तो इसको नया समझा था।
परशुराम अब तुम्हारी खैर नहीं, तुम्हें अब कोई नहीं बचा सकता। लक्ष्मण यह तो छूने से टूट गया, भला इसमें राम का क्या दोष?
परशुराम मैं तुझे बालक समझकर नहीं मार रहा, तुम मेरे क्रोध को नहीं जानते। मैंने अनेक बार इस पृथ्वी को क्षत्रियों से खाली कर दिया है।
- परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए
बाल ब्रहमचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
उत्तर परशुराम ने सभा में कहा कि मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। सारी दुनिया जानती है कि मैं क्षत्रिय कुल का नाश करने वाला हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल से अनेक बार इस पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया था और जीती हुई पृथ्वी ब्राह्मणों को दान में दे दी। मैंने इस फरसे से सहस्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था। तू अपने माता-पिता को सोचने के लिए विवश मत कर। मेरा यह फरसा इतना भयानक है कि यह गर्भस्थ शिशुओं को भी नष्ट कर देता है।
- लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताईं
- वीर योद्धा अपनी वीरता का बखान अपने मुँह से नहीं करते।
- अपने बल का बखान करना तो कायरों का काम है।
- वीर व्यक्ति धैर्यवान और क्षोभ रहित होता है।
- वीर योद्धा अपनी बड़ाई स्वयं नहीं करते और न ही अपशब्द बोलते हैं।
- साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर साहस और शक्ति एक योद्धा के अनिवार्य गुण हैं। यदि इन गुणों के साथ विनम्रता हो तो अकारण ही होने वाला कोई विवाद या युद्ध नहीं हो पाता। विनम्र व्यक्ति अपनी विनम्रता से शत्रु के क्रोध को शांत कर देता है। क्रोध क्षणिक होता है, एक बार शांत होने पर विवेक जागृत होता है और अनर्थ होने से बच जाता है।
परशुराम और लक्ष्मण दोनों के उदाहरण हमारे सामने हैं। परशुराम पराक्रमी हैं, किंतु स्वयं को महापराक्रमी, बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रियकुल घातक कहना उनके घमण्ड को दर्शाता है। लक्ष्मण का साहस हमें भला लगता है, किंतु वह भी अपनी सीमाएँ तोड़ देते हैं। धीरे-धीरे वह बहुत उग्र, कठोर और असहज हो जाते हैं, इस कारण सभी सभाजन उसके विरुद्ध हो जाते हैं। दूसरी ओर रामचंद्र शक्ति और साहस के साथ विनम्रता का भी परिचय देते हैं। इसलिए वे सबका दिल जीत लेते हैं।
- भाव स्पष्ट कीजिए
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।। देखि कुठारू सरासन बाना। मैं कुछ कहा सहित अभिमाना।
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ। अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
उत्तर (क) लक्ष्मण परशुराम पर व्यंग्य बाण करके उनके क्रोध को बढ़ा रहे हैं। उन्होंने परशुराम को बड़ा योद्धा कहकर और फूंक मारकर पहाड़ उड़ाने की बात कहकर उन पर तीखा व्यंग्य किया है।
(ख) लक्ष्मण जी यह बताना चाहते हैं कि हमें कमजोर समझने की भूल मत करना। हम तुम्हारा यह फरसा और धनुष-बाण देखकर तुम्हारा सम्मान कर रहे हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि हम कायर हैं।
(ग) विश्वामित्र परशुराम की नासमझी पर मन-ही-मन मुस्कुराते हैं। वे सोचते हैं कि ये राम और लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय बालक समझ रहे हैं। ये इनके बल, पराक्रम को नहीं जानते।
8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर तुलसी की भाषा, शुद्ध-साहित्यिक अवधी है। यह काव्यांश 'रामचरितमानस' के 'बालकांड' से संकलित है। इस पाठ में तुलसी ने चौपाई-दोहा-छंद शैली अपनाई है। तुलसीदास की भाषा सरल, सरस और मधुर है। इन चौपाइयों में वीर रस एवं रौद्र रस की अनुभूति जगह-जगह होती है। व्यंग्योक्तियों और व्यंजना शैली की सरस अभिव्यक्ति हुई है। लक्ष्मण के कथनों में व्यंजना शक्ति परिलक्षित होती है। इन चौपाइयों में अलंकार अपने सहज एवं स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त हुए हैं। अनुप्रास की छटा सर्वत्र विद्यमान है। उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक भी स्थान-स्थान पर दृष्टव्य हैं, जो भाषा को और अधिक अलंकृत करते हैं। उनका शब्द चयन भी अवसर के अनुकूल है, जो सूक्ष्म-से-सूक्ष्म भावों को वहन करने में पूर्णतया सफल है। कोमलकांत पदावली के प्रयोग से उनकी कविता में संगीतात्मकता और गेयता का गुण आ गया है।
- इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ सपष्ट कीजिए।
उत्तर सर्वप्रथम जब श्रीराम ने कहा कि धनुष भंग करने वाला आपका कोई सेवक ही होगा, तब परशुराम जी ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा कि शत्रुता का कार्य करने में कोई सेवकाई नहीं होती।
सेवकु करिअ लराई।
लक्ष्मण और परशुराम जी के मध्य के संवाद तो व्यंग्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। लक्ष्मण ने परशुराम जी से कहा कि सभी धनुष एक जैसे होते हैं, आप अकारण ही क्रोधित हो रहे हैं। तब परशुराम ने अपना फरसा दिखाया और कहा
मातुपिताहि अति घोर।
इस पर लक्ष्मण ने व्यंग्य किया कि बार-बार कुठार दिखाकर आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं? क्या आप फूंक से पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। यहाँ कुम्हड़े का कोई छोटा सा कच्चा फल नहीं है, जो तर्जनी उंगली को देखते ही मर जाता है।
इहाँ
मरि जाहीं।
इसी प्रकार, जब बार-बार परशुराम जी अपनी वीरता का बखान करने लगे, तब लक्ष्मण उनकी वीरता पर व्यंग्य करते हुए उन्हें कायर कहने से भी नहीं चूकते।
सूर समर कथहिं प्रतापु।
इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनुपम सौंदर्य विद्यमान है।
- निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार-बार मोहि लागि बोलावा।।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुगरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर (क) यहाँ अनुप्रास अलंकार है ('ब' वर्ण की आवृत्ति)।
(ख) यहाँ 'उपमा अलंकार' है क्योंकि परशुराम के वचनों की तुलना कठोर वज्र से की गई है ('सम' वाचक शब्द)। कोटि कुलिस में अनुप्रास अलंकार।
(ग) यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है। परशुराम की हुँकार में काल की संभावना व्यक्त की गई है। ('जनु' वाचक शब्द) 'बार-बार' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
(घ) 'कोप कृसानु' में रूपक अलंकार है क्योंकि कृसानु में कोपु का अभेद आरोप है (क्रोध रूपी अग्नि)। जल सम वचन में उपमा अलंकार है, क्योंकि राम के वचनों की तुलना शीतल जल से की गई है।
रचना और अभिव्यक्ति
- "सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो, तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत-से कष्टों की चिर निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।"
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी हो जाता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर क्रोध के पक्ष में जीवन में क्रोध की बराबर आवश्यकता पड़ती है क्योंकि
- क्रोध अन्याय का प्रतिकार करता है।
- क्रोध मनुष्य को आत्मसम्मान के भाव से भर देता है।
- क्रोध हममें उत्साह का संचार करता है।
- क्रोध कष्टों से निवृत्ति कराता है।
- क्रोध हमारे व्यक्तित्व का परिचायक है।
क्रोध के विपक्ष में गीता में 'क्रोध' की निष्पत्ति इस प्रकार से की गई है
"क्रोधात् भवति सम्मोह, सम्मोहात् स्मृति विभ्रमः।
स्मृति भृंशात बुद्धि नाशः, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।।
अर्थात् क्रोध करने से मनुष्य मोह में, संशय में पड़ जाता है, सम्मोह से स्मृति भ्रमित हो जाती है, मनुष्य अविवेक में अंधा हो जाता है, स्मृति भ्रमित होने से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि नष्ट होने से मनुष्य स्वयं भी नष्ट हो जाता है। इस प्रकार
- क्रोध हमारे मन व शरीर पर दुष्प्रभाव डालता है।
- क्रोध हमें अहंकार से भर देता है।
- क्रोध में मनुष्य अविवेकी बन जाता है।
- क्रोध में किसी के प्रति न्याय नहीं हो पाता।
- संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर मेरा व्यवहार संतुलित होता जो न तो राम की तरह अत्यधिक संयमित होता और न ही लक्ष्मण की तरह अत्यधिक उग्र। परशुराम के बड़बोलेपन की हकीकत तो बताता लेकिन व्यंग्य वाणों से उन्हें अपमानित नहीं करता। उन्हें परिस्थितियों से अवगत कराकर विनयपूर्वक धनुष तोड़ने का कारण बताता और उन्हें पहुँची चोट के लिए क्षमा याचना करता क्योंकि वे बड़े, ज्ञानी एवं मुनि हैं।
- अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए। उत्तर छात्र स्वयं करें।
- दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर छात्र स्वयं करें।
- उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर छात्र अपना अनुभव लिखें।
- अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर अवधी भाषा वर्तमान में लखनऊु, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर, जौनपुर, फतेहपुर तथा आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है।