प्रश्न-अभ्यास
- लेखक की दृष्टि में 'सभ्यता' और 'संस्कृति' की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर लेखक की दृष्टि में 'सभ्यता' और 'संस्कृति' शब्दों की सही समझ अब तक इसलिए नहीं बन पाई है, क्योंकि हम इन बातों को एक ही समझते हैं या एक-दूसरे से मिला लेते हैं। इन दोनों शब्दों के साथ अनेक विशेषण लगा देने से इनका अर्थ गडु-मडु हो जाता है। यह जानना जरूरी है कि क्या यह एक चीज है अथवा दो चीज हैं? तभी सही बात समझ में आएगी।
- आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर आग की खोज मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता की पूर्ति करती है। वह भोजन पकाने के काम आती है। आज भी इसका महत्व सर्वोपरि है। इसने सभ्यता को नई दिशा दी है, तभी तो हर सांस्कृतिक कार्यक्रम से पहले दीया (दीप) जलाया जाता है और खेलों में मशाल जलाई जाती है।
आग की खोज के पीछे पेट की ज्वाला की प्रेरणा रही होगी। मनुष्य ने पत्थरों से पत्थर टकराकर आग निकलती देखी होगी। आग से चूल्हा जलाकर पेट की ज्वाला को शांत किया होगा। प्रकाश तथा गर्मी पाने की प्रेरणा भी मिली होगी। मांस को भूनकर खाने से स्वाद और स्वास्थ्य दोनों मिला, तब मनुष्य ने भोजन पकाना सीख लिया और वह पशुओं की श्रेणी से अलग नजर आने लगा होगा। अतः उसने अग्नि को देवता माना होगा और उसे सुरक्षित रखने के उपाय सोचे होंगे।
3. वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है?
उत्तर जो व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक से समाज को किसी नए तथ्य से अवगत कराता है और अनुसंधान करता है, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है। ऐसा व्यक्ति नए-नए आविष्कारों को आविष्कृत करता है; जैसे-न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोजा। वह वास्तविक अर्थों में संस्कृत व्यक्ति था।
- न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन-से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था, जो उनसे पहले किसी ने नहीं किया। संस्कृत मानव वही है जो नई खोजें करता है। किसी सिद्धांत को और अधिक परिमार्जित करने वाले को संस्कृत मानव नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वह उसके द्वारा आविष्कृत किए गए काम को ही आगे बढ़ा रहा है। न्यूटन के सिद्धांत की कोई कितनी ही बारीकियाँ क्यों न जान ले परंतु संस्कृत मानव कहलाने का अधिकारी उस सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाला ही होगा। अन्य व्यक्ति न्यूटन से ज्यादा सभ्य हो सकते हैं, लेकिन संस्कृत नहीं।
- किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर अपने तन को ढँकने के लिए, स्वयं को सर्दी-गर्मी तथा नंगेपन से बचाने के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा। मनुष्य जैसे-तैसे वृक्ष की खाल
या पत्तों से तन को ढँकता था किंतु उससे शरीर की रक्षा ठीक से नहीं हो पाती थी। अतः जब उसने सुई-धागे की खोज कर ली, तो उसके हाथ बहुत बड़ी तकनीक लग गई। शरीर को सजाने की प्रवृत्ति को संतुष्ट करने के लिए आज भी लोग इस तकनीक का भरपूर उपयोग करते हैं।
- "मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।" किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ख) मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर (क) मानव संस्कृति एक है, लेकिन कई बार मानव संस्कृति को धर्म-संप्रदाय के आधार पर बाँटने की चेष्टाएँ की गईं। हिंदू संस्कृति एवं मुस्लिम संस्कृति के पक्षधर अपनी-अपनी संस्कृति को महान् एवं श्रेष्ठ बताते हैं तथा अपनी पहचान स्थापित करना चाहते हैं। यह स्वाभाविक है। किंतु सबसे घृणित लोग वे हैं जो किसी संस्कृति के नाम पर अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति करते हैं। ऐसे लोग सांप्रदायिकता को हथियार बनाकर अपने विरोधियों को नीचा दिखाते हैं और वही सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देते हैं।
(ख) मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है। इसे बाँटा नहीं जा सकता क्योंकि इसमें मानव कल्याण का भाव निहित होता है। विश्व के सभी लोग अपनी संस्कृतियों का भेद छोड़कर श्रेष्ठ चीजों को खुले मन से अपनाते हैं। 'त्याग' संस्कृति का महान् गुण है, जिसे हिंदू-मुस्लिम-सिख- ईसाई सभी अपनाते हैं।
उदाहरण
- कार्ल मार्क्स ने संसार के सभी मजदूरों को सुखी देखने के लिए अपना सारा जीवन दुखों एवं अभावों में बिता दिया।
- सिद्धार्थ (महात्मा बुद्ध) ने अपना घर केवल इसलिए त्याग दिया कि तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता सुखी रह सके। बुद्ध के 'अत्त दीपो भव' (अपने दीपक स्वयं बनो) पर सभी का अधिकार है।
- रसखान ने कृष्ण का गुणगान किया, तो बिस्मिल्ला खाँ ने बालाजी का आशीर्वाद लिया। इसी भाँति करोड़ों हिंदू अजमेर शरीफ जाकर चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं।
7. आशय स्पष्ट कीजिए
मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?
उत्तर मनुष्य अपनी जिस प्रतिभा के आधार पर अपने अस्तित्व के समूल नाश हेतु विनाशकारी आविष्कार करता है, हम उसे संस्कृति नहीं कह सकते। यह तो असंस्कृति ही कही जा सकती है जो मानवता विरोधी कार्यों को संपन्न करती है।
रचना और अभिव्यक्ति
- लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं, लिखिए।
उत्तर हमारे विचार एवं चिंतन की प्रवृत्तियों की विशेषता ही संस्कृति है। वह सूक्ष्म गुण है, वह हमारे मन और बुद्धि का गुण है, जो हमारी भाषा और प्रतिक्रियाओं में व्यक्त होता है। दूसरे शब्दों में संस्कार संस्कृति के मूर्त रूप हैं। सभ्यता इसी संस्कृति का परिणाम है।
संस्कृति मन के भावों का परिष्कृत रूप है। इसमें परोपकार, सहिष्णुता तथा धैर्य का समावेश होता है। सभ्यता से हमारे रहन-सहन, खान-पान एवं वेशभूषा का परिचय मिलता है। संस्कृति आंतरिक वस्तु है जबकि सभ्यता बाह्य।
भाषा-अध्ययन
- निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए
गलत-सलत
महामानव
हिंदू-मुसलिम
सप्तर्षि आत्म-विनाश
पददलित
यथोचित
सुलोचना
उत्तर
समस्त पद | विग्रह | समास |
गलत-सलत | गलत ही गलत | अव्ययीभाव |
आत्म-विनाश | स्वयं का विनाश | तत्पुरुष |
महामानव | महान् मानव | कर्मधारय |
पददलित | पद से दलित | तत्पुरुष |
हिंदू-मुस्लिम | हिंदू और मुस्लिम | द्वन्द्व |
यथोचित | जैसा उचित हो | अव्ययीभाव |
सप्तर्षि | सप्त ऋषियों का समूह | द्विगु |
सुलोचना | अच्छे नेत्रों वाली (सुंदरी) | बहुब्रीहि |
पाठेतर सक्रियता
- उन खोजों और आविष्कारों की सूची तैयार कीजिए जो आपकी नजर में बहुत महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर छात्र स्वयं करें।