प्रश्न-अभ्यास
1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर गोपियाँ भ्रमर के बहाने उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़ते हुए कहती हैं कि उद्धव बड़े भाग्यवान हैं कि वे कभी स्नेह के धागे से नहीं बँधे। अगर उन्हें कृष्ण के प्रति जरा भी स्नेह होता, तो वे उनसे बिछुड़ने पर विरह की वेदना को अवश्य अनुभूत कर पाते। उनके मन में तो तनिक भी अनुराग नहीं, वे तो इससे अछूते हैं।
2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर उद्धव के व्यवहार की तुलना कमस के पत्तों और जल में पड़ी तेल की बूँद से की गई है जो कभी साथ रहकर भी प्रभावित नहीं होती। इसी प्रकार, कृष्ण के साथ रहकर भी उद्धव पर उनके प्रेम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। कृष्ण का समाचार जान लेने के बाद गोपियाँ, उद्धव की राजनीतिज्ञ, कृष्ण के गुरु, ज्ञान-योगी और भले लोगों से तुलना करती हैं। उनका मानना है कि मथुरा जाकर कृष्ण ने उद्धव से राजनीति की शुष्क बातें सीख ली हैं। पहले तो वे चतुर थे ही अब उद्धव ने उन्हें और भी चतुर चितेरा बना दिया है। वे अब इतने अधिक बुद्धिमान हो गए हैं कि योग का संदेश देने उद्धव को हमारे पास भेज दिया है।
उद्धव जैसे भले लोग इस दुनिया में हैं, जो दूसरों की भलाई करते फिरते हैं। हरि का उनके प्रति मन फेर लेना और अनीति की बातें करना, यह सब उद्धव का करा-धरा है। गोपियाँ उद्धव को ही इन सब बातों के लिए दोषी मानती हैं।
3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर उद्धव अपने ज्ञान गर्व में डूबे हुए जब ब्रज पहुँचते हैं और यहाँ पहुँच गोपियों के समक्ष अपनी ज्ञान चर्चा छेड़ देते हैं, इसे सुन गोपियाँ खीझ उठती हैं। इसी ज्ञान चर्चा के समय मथुरा की ओर से उड़कर आए हुए भ्रमर के बहाने अपने हृदय की खीझ को गोपियाँ व्यंग्योक्ति के रूप में व्यक्त करती हैं। वे उद्धव की योग साधना को कड़वी ककड़ी जैसा बताकर अपने एकनिष्ठ प्रेम में दृढ़ विश्वास को प्रकट करती हैं। इस योग साधना को एक ऐसी व्याधि बताती हैं जिसे कभी किसी ने न देखा, न सुना और न अनुभव किया। कृष्ण के सगुण-साकार रूप की अनुरागी गोपियाँ भला निर्गुण ब्रह्म की बातों को कैसे स्वीकार कर सकती हैं?
- उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहागिन में घी का काम कैसे किया?
उत्तर उद्धव ने जब गोपियों को ज्ञानोपदेश देना प्रारंभ किया, तो उन्हें उनका यह उपदेश तनिक भी अच्छा नहीं लगा। कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ पहले ही उनके वियोग में तड़प रही थीं। कृष्ण के आने की प्रतीक्षा में वे आस बाँधे समय को आधार मानकर जीती हुई शारीरिक और मानसिक यातनाएँ सहती रहीं। अब उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को सुन-सुनकर विरहिणी गोपियाँ विरह में जलने लगीं। उनमें हृदय पक्ष की प्रधानता होने से वे भावुकतावश सह नहीं पातीं। उनकी विरह की अग्नि और अधिक बढ़ गई है, जिस प्रकार, आग में घी डाल दिया जाए, तो वह अधिक प्रज्वलित हो उठती है।
- 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर गोपियों के लिए कृष्ण ही सब कुछ हैं। गोपियों की यह स्वीकारोक्ति कि उनके मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गई हैं, कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहराई को अभिव्यक्त करती हैं। प्रेम की मर्यादा यही है कि प्रेमी-प्रेमिका दोनों प्रेम को निभाएँ। लेकिन कृष्ण ने प्रेम का धर्म नहीं निभाया, इसके बदले उन्होंने योग संदेश भिजवा दिया है, यही मर्यादा का उल्लंघन है। गोपियाँ ज्ञान मार्ग की बजाय
प्रेम मार्ग को पसंद करती हैं। कृष्ण-प्रेम में अनुरक्त गोपियाँ, कृष्ण के वियोग में अपनी व्यथा को प्रकट कर रही हैं। साथ ही प्रबल योग संदेशों की धारा बहने के कारण गोपियों के धैर्य का बाँध टूट गया है और वे मर्यादा नहीं रख पा रहीं अर्थात् उद्धव उनके अतिथि हैं पर वे उनके मन के विरुद्ध वियोग की बातें कर रहे हैं, जो वे सहन नहीं कर पा रहीं। अतः अपनी प्रतिष्ठा का उन्हें ख्याल नहीं रहा।
6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त
किया है?
उत्तर सूर की दृष्टि में श्रीकृष्ण के लौकिक और अलौकिक दोनों रूप रहे हैं। उनके लिए श्रीकृष्ण साक्षात् परब्रह्म और अक्षय सौंदर्य का स्रोत हैं, जिनके अंग-अंग के सौंदर्य पर गोपिकाएँ न्यौछावर हो जाती हैं। इस प्रेम प्रसंग में स्वकीया और परकीया दोनों प्रकार की प्रेम-भावनाओं का विकास मिलता है। स्वकीया प्रेम में मर्यादा है, परंतु परकीया रूप में प्रेम करने वाली गोपिकाएँ तो समस्त आकांक्षाओं से अनासक्त होकर कांतभाव की भक्ति में आसक्त हैं। श्रीकृष्ण के अनिर्वचनीय सौंदर्य के दर्शन से नेत्रों को जो सुख मिलता है, वह अनुपम और अलौकिक है। श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेम में गोपियों की वृत्तियाँ श्रीकृष्ण में लीन हो जाती हैं-भगवत्परायण बन जाती हैं, रागानुरागी भक्ति की सुंदर व्यंजना मिलती है। कृष्ण-प्रेम रूपी लकड़ी को दृढ़ता से पकड़कर रखने वाली गोपियाँ स्वयं को हारिल पक्षी कहती हैं। उनके नेत्र कृष्ण दर्शन की लालसा पाले हुए हैं। गुड़ में लिपटी चींटी की भाँति वे भी कृष्ण प्रेम में लिप्त हो गई हैं।
- गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है जिनका मन स्थिर नहीं रहता, चंचल है और इधर-उधर भटकता रहता है। योग साधना द्वारा उसे नियंत्रण में लाया जा सकता है और मन को वशीभूत किया जा सकता है।
- प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर सूरदास के 'भ्रमरगीत' से अवतरित पदों में कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के माध्यम से गोपियों के पास योग संदेश भेजा था।
उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म एवं योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह-वेदना को शांत करने का प्रयास किया। गोपियाँ सगुणोपासक थीं, उन्हें ज्ञान मार्ग की बजाय प्रेम मार्ग पसंद था इसलिए वे उद्धव के ज्ञान के संदेश को शुष्क मानती हैं तथा उसे नकार देती हैं। गोपियाँ कृष्ण के आने की प्रतीक्षा में तन-मन की पीड़ा भी सहन करती रहीं, किंतु उद्धव के योग संदेश को सुनकर विरहिणी गोपियाँ कृष्ण के वियोग में जलने लगीं। वे हरि को हारिल पक्षी की लकड़ी की भाँति मनसा, वाचा, कर्मणा से दृढ़तापूर्वक पकड़े रहती हैं।
जागते-सोते-स्वप्न में भी कृष्ण के नाम को जकड़े रहती हैं। उद्धव के योग की बातें उन्हें कड़वी ककड़ी की भाँति लगती हैं। गोपियाँ अंतिम पद में उद्धव को उलाहना देती हैं कि उसी ने गुरु बनकर कृष्ण को राजनीति का पाठ पढ़ाया है तभी तो बुद्धिमान कृष्ण ने उन्हें योग संदेश देने को भेजा है। मथुरा जाते समय कृष्ण हमारा हृदय चुराकर ले गए थे और अब हमसे मन ही फेर लिया है और अनीति की बात तुम्हारे कहने पर ही की है। गोपियाँ किसी भी कीमत पर योग साधना को स्वीकार नहीं करना चाहतीं।
9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर राजा के लिए प्रजा संतान की तरह होती है इसीलिए उन्हें प्रजापालक भी कहा जाता है। गोपियों के अनुसार राजा का धर्म है-अपनी प्रजा की रक्षा करना, हर तरह से उसकी भलाई के बारे में सोचना चाहिए ताकि राज्य में शांति बनी रहे। कृष्ण ने उद्धव को योग का संदेश देने के लिए भेजकर गोपियों की कृष्ण मिलन की रही-सही आशा भी समाप्त कर दी और आग में घी डालकर उनकी विरहाग्नि को और बढ़ा दिया।
- गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए, जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर गोपियों के अनुसार कृष्ण अब राजनीति पढ़ने लगे हैं, एक तो पहले से ही चतुर थे, अब उद्धव जैसे गुरु से योग साधना के ज्ञान को पढ़ने लगे, जिससे वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं, तभी तो उद्धव को ज्ञान-योग का कोरा, शुष्क संदेश देने को भेज दिया। पहले मथुरा जाते समय हमारा हृदय चुराकर अपने साथ ले गए और अब हमसे अपना मन फेर लिया है। वे राजा होकर भी अनीति करने लगे हैं। अपनी प्रजारूपी संतान को खुश रखने की बजाय सताने लगे हैं। पहले अपने सगुण-साकार रूप द्वारा प्रेम का पाठ पढ़ाया था, अब निर्गुण निराकार ब्रह्म के स्वरूप की उपासना करने के लिए उद्धव को संदेश देने भेज दिया।
- गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्वव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर उद्धव ज्ञानी एवं कुशल नीतिज्ञ थे। गोपियों के समक्ष उन्होंने तर्क शक्ति के माध्यम से योग साधना को श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रसास किया परन्तु गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य का परिचय देते हुए उद्धव को परास्त कर दिया। गोपियों के वाक्चातुर्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
सरलता गोपियों का व्यवहार अत्यन्त सरल व सहज है। उन्होंने उद्धव की ज्ञान व नीति से परिपूर्ण बातों का सरलतापूर्वक उत्तर दिया।
व्यंग्य एवं शिष्ट कटाक्ष गोपियों ने उद्धव की ज्ञान भरी बातों को अपने शिष्ट कटाक्ष से तुच्छ सिद्ध कर दिया। उन्होंने स्वयं को भोली एवं उद्धव को भाग्यशाली कहकर व्यंग्य किया।
तार्किकता उद्धव के द्वारा योग साधना में चित्त को एकाग्र करने का उपदेश दिया गया, तब उन्होंने योग साधना को व्यर्थ बताते हुए श्रीकृष्ण के प्रति अपने चित्र की एकाग्रता को स्पष्ट किया।
उक्ति वैचित्र्य गोपियों ने उद्धव की बातों को अत्यन्त सरलतापूर्वक काट दिया। उन्होंने योग साधना को अनदेखी व अनसुनी बीमारी कहकर योग की निरर्थकता सिद्ध की।
स्वाभाविक उपालंभ गोपियाँ श्रीकृष्ण को उलाहना देने से भी नहीं चूकती। वे उद्धव से कहती हैं कि जिस कृष्ण के दर्शन से हमें विरहाग्नि बुझाने की आशा थी, वे तो योग साधना का संदेश भिजवाकर इसे और भड़का रहे हैं।
12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमर गीत की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर भ्रमर गीत का शब्दगत अर्थ तो 'भ्रमर का गीत' अथवा 'भ्रमर से संबद्ध गीत' है; किंतु हिंदी साहित्य में वह एक प्रसंग-विशेष का सूचक बनकर आया है और यह प्रसंग है उद्धव-गोपी संवाद। जब कृष्ण ब्रज से मथुरा चले गए, तब वहाँ जाकर उन्होंने ब्रजवासियों को सांत्वना देने के लिए उद्धव के हाथ संदेश भेजा। उद्धव ने यह संदेश गोपियों को दिया; किंतु गोपियों को उनका नीरस उपदेश लेशमात्र भी नहीं भाया और उन्होंने भ्रमर को संबोधित करते हुए उद्धव तथा कृष्ण पर जो व्यंग्य किए, वे ही काव्य निबद्ध होकर भ्रमर गीत के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस प्रकार, व्यंग्य के लक्ष्य की दृष्टि से भ्रमर गीत के मूलतः दो पक्ष हो गए हैं- पहला बुद्धि पक्ष है जो सैद्धांतिक और व्यंग्य प्रधान है, इसके प्रतीक हैं उद्धव। दूसरा हृदय पक्ष है जो रागात्मक और उपालंभ प्रधान है, इसके प्रतीक हैं
कृष्ण। भ्रमर गीत का मूल उद्देश्य है ज्ञान पर प्रेम की, मस्तिष्क पर हृदय की, विजय दिखाकर निर्गुण निराकार ब्रह्म की, उपासना की अपेक्षा सगुण साकार ब्रह्म की भक्ति भावना की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करना।
भ्रमर गीत की पृष्ठभूमि यह है कि श्रीकृष्ण अक्रूर के साथ कंस के निमंत्रण पर मथुरा गए और वहाँ कंस को मारकर अपने पिता वासुदेव का उद्धार किया। जब अवधि बीत जाने पर कृष्ण लौटकर गोकुल न आए, तब नंद, यशोदा तथा सारे ब्रजवासी बड़े दुखी हुए। उन गोपियों के विरह का क्या कहना है, जिनके साथ उन्होंने इतनी क्रीड़ाएँ की थीं। बहुत दिनों बाद श्रीकृष्ण ने ज्ञानोपदेश द्वारा गोपियों को समझाने-बुझाने के लिए अपने सखा उद्धव को ब्रज भेजा। उद्धव को ही क्यों भेजा? कारण यह था कि उन्हें अपने ज्ञान का बड़ा गर्व था, वे प्रेम या सगुण भक्ति मार्ग की उपेक्षा करते थे। कृष्ण चाहते थे कि वे गोपियों से प्रेम की गहराई और एकनिष्ठता का पाठ पढ़ें ताकि उनका ज्ञान गर्व दूर हो।
रचना और अभिव्यक्ति
- गोपियों ने उद्वव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर गोपियाँ-ऊधौ। यदि यह योग इतना प्रभावशाली है तो तुम इसे कृष्णा को क्यों नहीं सिखाते? कृष्णा को इसकी जरूरत हमसे ज्यादा है।
हमारी जुबान पर तो पीछे गुड़ का स्वाद चढ़ा हुआ है, तो हम भला योग रूपी निबौरी क्यों खाएँगे? सुनो ऊधौ! यह योग मार्ग तो बड़ा कठिन है, बिल्कुल तप जैसा और हमारा शरीर तो बड़ा ही कोमल है, तो फिर भला हमारा कोमल शरीर इस कठिन योग को कैसे सह पाएगा ?
- उद्वव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थें गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर गोपियों के पास एक निष्कसुषित दिल की प्रेम भरी भावनाएँ हैं जो उनके वाक्चातुर्य से मिलकर उद्वव जैसे ज्ञानी को लाजवाब कर देती हैं। उद्वव के पास मस्तिष्क है, ज्ञान है लेकिन गोपियों के पास सरल हृदय की तीव्र भावनाएँ है जो सिर्फ कृष्ण का प्रेम समझती हैं, उसके सिवा न कुछ दिखाई देता है और न कुछ सुनाई देता है। उनके हृदय का सच्चे प्रेम का ज्वार महाज्ञानी उद्धव की बोलती बंद कर उन्हें गोपियों के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर देता है।
- गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर गोपियों के कथन का तात्पर्य यह है कि कृष्ण अब छल-कपट सीख गए हैं, धोखा देना जान गए है। किसी की भावनाओं एवं विश्वास से खेलना जान गए हैं। इसीलिए तो उन्होंने कृष्ण-प्रेम की दीवानी गोपियों के पास योग संदेश भिजवाकर उनके प्रेम की मर्यादा को भंग किया, उन्हें धोखा दिया।
आज की राजनीति भी पूरी तरह छल-कपट एवं विश्वासघात से परिपूर्ण है। लोगों के सरल हृदय को तोड़ना अत्यंत सामान्य बात है। गोपियों का यह कथन समकालीन राजनीति पर बिल्कुल खरा उतरता है।