प्रश्न-अभ्यास
- कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री शिक्षा का समर्थन किया?
उत्तर इस निबंध में लेखक ने स्त्री-शिक्षा के कुतर्कों का जोरदार खंडन किया है। द्विवेदी जी के काल में कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के घोर विरोधी थे। उनका मानना था कि स्र्री-शिक्षा से घर का विनाश होता है। उन्होंने अकाट्य तर्कों द्वारा स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया है। उनका कहना है
- जब वाल्मीकि रामायण के बंदर संस्कृत बोलते थे, तो क्या स्त्रियाँ नहीं बोलती होंगी?
- प्राचीन काल में भी स्त्री शिक्षित थी। शकुंतला, रुविमणी, सीता, अत्रि-ऋषि पत्नी, मंडन मिश्र की पत्नी आदि उदाहरण हमारे सामने हैं। ये सभी पढ़ी-लिखी और विदुषी थीं। स्त्रियों ने वेदमंत्रों की रचनाएँ की, पद्य रचन की।
- भवभूति, कालिदास आदि के नाटक जिस जमाने के हैं, उस जमाने के समस्त शिक्षितों का समुदाय संस्कृत ही बोलता था, इसका प्रमाण कोई पहले दे, तब प्राकृत बोलने वाली स्त्रियों को अपढ़ बताने का साहस करे।
- प्राकृत यदि अपने समय की प्रचलित भाषा न होती, तो बौद्ध-जैनों के हजारों ग्रंथ उसमें क्यों लिखे जाते?
- आज के युग में स्र्री-शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती। स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज की उन्नति में बाधा डालना है।
- स्त्री-शिक्षा में सुधार एवं संशोधन की गुंजाइश तो है, पर उसे अनर्थकारी नहीं माना जा सकता। हमने कई पुराने नियमों को तोड़ा है, अतः इसे भी तोड़ दें। इसका विरोध न करें।
- 'स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं'-कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर कुतर्कवादियों का कहना है कि स्तिर्रों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं। उनका ऐसा मानना सर्वथा अनुचित है। द्विवेदी जी ने उनकी दलील का खंडन इस प्रकार किया है
अगर स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं, तो पुरुषों को पढ़ाने से भी अनर्थ होते होंगे। यदि शिक्षा को अनर्थ का कारण माना जाए, तो सुशिक्षित पुरुषों द्वारा किए जाने वाले सारे अनर्थ भी पढ़ाई के दुष्परिणाम माने जाने चाहिए। अतः उनके लिए भी शिक्षण संस्थाएँ बंद कर दी जानी चाहिए।
स्त्रियों को पढ़ाने में कभी कोई अनर्थ नहीं हुआ। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में महिला पंडितों का उल्लेख है। स्त्रियों ने पढ़-लिख कर वेद मंत्रों की रचना की, दर्शन की विचारधारा पर बहसें कीं, कविताएँ लिखीं। गार्गी ने तो शास्त्रार्थ तक किया। वे नारियाँ "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" उक्ति को चरितार्थ कर सम्मानित हुईं।
द्विवेदी जी ने शकुंतला द्वारा दुष्यंत को कहे गए कटुवचन पर यह तर्क दिया कि ये कटुवचन उसकी शिक्षा का दुष्परिणाम नहीं बल्कि उसका स्वाभाविक क्रोध था।
जिस भारत में कुमारियों को चित्र बनाने, नाचने, गाने, फूल चुनने, पैर मलने, हार गूँथने की कला सीखने की आज्ञा थी, तो भला उन्हें पढ़ने-लिखने की आज्ञा कहाँ रही होगी?
एक व्यंग्यपूर्ण तर्क है-'स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट! ऐसी ही दलीलों और दुष्यंतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अनपढ़ रखकर भारत का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।'
अतः पढ़ने-लिखने में कोई अनर्थ नहीं होता। अनर्थ तो अनपढ़ और शिक्षित दोनों से हो जाता है। अनर्थ के अन्य कारण हो सकते हैं।
- द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है-जैसे 'यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।' आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर इस निबंध में निम्नलिखित अंश व्यंग्यात्मक हैं
वाल्मीकि रामायण के तो बंदर तक संस्कृत बोलते हैं। बंदर संस्कृत बोल सकते हैं, स्त्रियाँ न बोल सकती थीं।
जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गँवार थे, तो हिंदी के प्रसिद्ध-से-प्रसिद्ध अखबार का संपादक इस जमाने में अपढ़ और गँवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने जमाने की प्रचलित भाषा में अखबार लिखता है।
ऋषियों की वेदांतवादिनी पत्नियाँ कौन-सी भाषा बोलती थीं? उनकी संस्कृत क्या कोई गँवारी संस्कृत थी?
पुराणादि में विमानों और जहाजों द्वारा की गई यात्राओं के हवाले देखकर उनका अस्तित्व तो हम बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं, परंतु पुराने ग्रंथों में प्रगल्भ महिला पंडितों के नामोल्लेख देखकर भी कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख, अनपढ़ और गँवार बताते हैं। इस तर्क शास्त्रज्ञता और इस न्यायशीलता की बलिहारी! वेदों को प्रायः सभी हिंदू ईश्वर-कृत मानते हैं। सो ईश्वर तो वेदमंत्रों की रचना अथवा उनका दर्शन विश्ववारा आदि स्त्रियों से करावें और हम उन्हें ककहरा पढ़ाना भी अपराध समझें।
परंतु विक्षिप्तों, बातव्यथितों और ग्रहग्रस्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करने वाले बहुत कम मिलेंगे। शकुंतला ने दुष्यंत को कटुवाक्य कहकर कौन-सी अस्वाभाविकता दिखाई? क्या वह यह कहती कि "आर्यपुत्र! शाबाश बड़ा अच्छा काम किया, जो मेरे से गांधर्व विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप साक्षात् मूर्ति हैं।"
परित्यक्त होने पर सीता ने राम के विषय में क्या कहा है-"लकक्ष्मण! जरा उस राजा से कह देना कि मैंने तुम्हारी आँख के सामने ही आग में कूदकर अपनी विशुद्धता साबित कर दी थी। जिस पर भी, लोगों के मुख से निकला मिथ्यावाद
सुनकर ही तुमने मुझे छोड़ दिया। क्या यह बात तुम्हारे कुल के अनुरूप है? अथवा क्या यह तुम्हारी विद्वता या महत्ता को शोभा देने वाली है ?"
सीता का यह संदेश कटु नहीं तो क्या मीठा है? यह उक्ति न किसी गँवार स्त्री की है न ब्रह्मज्ञानी राजा जनक की लड़की की, बल्कि एक परित्यक्ता पीड़ित स्त्री की है।
- पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है-पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर पुराने समय में स्त्रियों के प्राकृत भाषा में बोलने के प्रमाण मिलते हैं लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि प्राकृत भाषा अनपढ़ों की भाषा थी। वास्तव में प्राकृत अपने समय की सर्वसाधारण की बोलचाल की भाषा थी और संस्कृत राजदरबारों में विद्वानों की भाषा थी। आज हिंदी, बांग्ला, मराठी आदि प्राकृत से निकली भाषाएँ हैं। पंडितों ने अनेक ग्रंथ प्राकृत भाषा में रचे। भगवान शाक्य मुनि और उनके शिष्य प्राकृत में ही धर्मोपदेश देते थे। यदि प्राकृत भाषा अनपढ़ों की भाषा होती, तो बौद्धों का धर्मग्रंथ 'त्रिपिटक' और जैनों के हजारों ग्रंथ प्राकृत में क्यों लिखे जाते? अतः स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना उनकी निरक्षरता का चिह्न नहीं है।
- परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों-तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर हमारी परंपरा अनंत काल से चली आ रही है। उसकी सभी बातें अपनाने योग्य नहीं। कालिदास ने भी कहा था कि "पुराणंमिति एव न साधु सर्वम्", "नवानि इति एव न त्याज्यम्" अर्थात् सभी पुराना अच्छा नहीं होता और नया त्याग करने योग्य नहीं होता। विवेकीजन पुराने और नए में से सार तत्व निकालकर उसमें सामंजस्य करते हैं। उस समय की परिस्थितियों में स्त्रियों को शिक्षा न देना परंपरा के अनुरूप था, परंतु अब परंपरा के उन्हीं रूपों को स्वीकार नहीं करना युग की माँग है। आज का युग समानता का युग है। स्त्री-पुरुष समाज के दो अभिन्न अंग हैं। गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। एक अंग के कमजोर रह जाने से समाज की गाड़ी सुचारू रूप से नहीं चल पाएगी। आज लिंग भेद स्वीकार्य नहीं है, अतः परंपरा को, उन बातों को त्याग देना हमारे लिए हितकर है, जो भेदभाव को बढ़ावा देती हैं। समाज की उन्नति में पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों का सहयोग भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
- तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर तब की शिक्षा-प्रणाली में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित किया जाता था। शिक्षा गुरुओं के आश्रम में दी जाती थी। स्त्रियों के लिए शिक्षा इतनी सहज और सुलभ नहीं थी जितनी आज है। कुमारियों को नृत्य, गान और शृंगार आदि की विद्या दी जाती थी। आज की शिक्षा-प्रणाली में बालक-बालिका में कोई भेद नहीं किया जाता। लड़कियाँ भी लड़कों की तरह वे सभी विषय पढ़ती हैं। उनकी कक्षाएँ साथ-साथ लगती हैं। पहले सह-शिक्षा का प्रचलन नहीं था। आज सह-शिक्षा में पढ़ना फैशन बन गया है। विद्यार्थियों के चहुँमुखी विकास पर बल दिया जाता है। आज स्त्रियों की शिक्षा के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। उनके लिए उच्च शिक्षा उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी पुरुषों के लिए।
रचना और अभिव्यक्ति
- महावीर प्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
उत्तर महावीर प्रसाद द्विवेदी का यह निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है। वे एक चिंतक थे। उन्होंने उस समय में स्त्री-शिक्षा की वकालत की, जब सब लोग उसे निरर्थक और अनावश्यक बता रहे थे। वे इस बात को समझते थे कि स्त्रियों को शिक्षित किए बिना समाज के पिछड़ेपन को दूर नहीं किया जा सकता। वे स्त्रियों और पुरुषों को बराबर अधिकार देने के समर्थक थे। जो बात उन्होंने अब से सौ वर्ष पहले सोची थी वह आज सच होती दिखाई दे रही है। सभी लोगों को स्त्री-शिक्षा का महत्त्व समझ में आने लगा है। स्त्री के शिक्षित होने से परिवार शिक्षित होता है, जिससे पूरा समाज शिक्षित होता है। आज की स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त कर ऊँचे-ऊँचे पदों पर पहुँच रही हैं। यदि उस समय स्त्री-शिक्षा पर ध्यान दिया गया होता, तो आज स्थिति कुछ और ही होती।
8. द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर द्विवेदी जी को हिंदी गद्य का निर्माता कहा जाता है। उन्होंने गद्य की भाषा को परिष्कृत किया और लेखकों की सुविधा के लिए व्याकरण और वर्तनी के नियम स्थिर किए। कविता की भाषा के रूप में भी ब्रजभाषा के बदले खड़ी बोली को प्रतिष्ठित किया। उनकी भाषा न तो संस्कृत के कारण और न तो उर्दू-फारसी के कारण बोझिल हुई है। उनकी भाषा भावानुकूल और विषयानुकूल है। उन्होंने छोटे-छोटे वाक्यों द्वारा अपने विचारों को व्यक्त किया है। शब्द-विधान सरल तथा
वाक्य छोटे-छोटे व प्रभावशाली हैं। इसमें सजीवता व प्रवाह है। द्विवेदी जी ने निबंध में वर्णनात्मक, विचारात्मक, व्यंग्यात्मक एवं भावात्मक शैली को प्रधानता दी है। द्विवेदी जी अपने समय के भाषा सुधारक थे। उन्होंने अमानक और अशुद्ध हिंदी को शुद्ध करने का प्रयास किया। उनके इस निबंध में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग है
विद्यमान, प्रमाणित, सुशिक्षित (संस्कृत शब्द)
अपढ़, गँवारी, बात, पुराना (तद्भव शब्द)
मुश्किल, बरबाद, दलील, जमाना (उर्दू शब्द)
तिस, जावे, करावे, सो, आवे (पुराने प्रयोग)
कॉलेज, स्कूल (अंग्रेजी शब्द)
द्विवेदी जी ने स्वाधीनता की चेतना विकसित करने में 'सरस्वती' के माध्यम से पत्रकारिता का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप सामने रखा। विद्वत्ता, बहुज्ञता के साथ सरसता उनके लेखन की प्रमुख विशेषता है। उनके लेखन में व्यंग्य की छटा देखते ही बनती है।
भाषा-अध्ययन
- निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हों चाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल
उत्तर
चाल नेहरू की एक चाल ने अंग्रेजो की चालबाजी की हवा निकाल दी।
दल सभी राजनीतिक दल जनता की आकांक्षाओं को दल कर रख देते हैं।
पत्र देश के नाम एक सैनिक का पत्र आज सभी समाचार-पत्रों की सुर्खियाँ बन गया है।
हरा भारतीय क्रिकेट टीम हरे मैदान पर सभी टीमों को हरा देती है।
पर पक्षी के बच्चे के पर तो उग आए हैं। पर अभी वो उड़ नहीं सकता।
फल मीठा फल खाने का फल भी मीठा होता है।
कुल सोहन के कुल में कुल 16 सदस्य शामिल हैं।
पाठेतर सक्रियता
- लड़कियों की शिक्षा के प्रति परिवार और समाज में जागरूकता आए-इसके लिए आप क्या-क्या करेंगे?
उत्तर लड़कियों की शिक्षा के प्रति परिवार एवं समाज में जागरूकता लाने के लिए घर-घर जाकर लोगों से इसका महत्त्व बताना पड़ेगा तथा सामाजिक सांस्कृतिक रूप से अनेक कार्यक्रम आयोजित करने पड़ेंगे जिससे लोगों को स्त्री शिक्षा की सार्थकता के बारे में पता चल सके।
स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार एवं प्रशासन से उन्हें अनेक सुविधाएँ एवं छूट देने की वकालत करूँगा जिससे लोग उन्हें पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित हों।