(क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति
Textbook Questions and Answers
गीत गाने दो मुझे –
प्रश्न 1.
कंठ रुक रहा है, काल आ रहा है’ – यह भावना कवि के मन में क्यों आई ?
उत्तर :
कवि ने जीवन-पर्यन्त संघर्ष किया है और संघर्ष करते-करते वह थक गया है। ठग-ठाकुरों द्वारा किए गए शोषण को देखकर कवि व्याकुल हो गया है, उसकी आत्मा रो रही है। जीवन में निरन्तर अन्याय सहने के कारण वह सुध-बुध खो चुका है। ऐसे संसार में कवि को जीवन-यापन करना कठिन लग रहा है। वह अपनी जिजीविषा की समाप्ति का अनुभव कर रहा है। इस शोषण भरे समाज में वह अनुभव करता है कि उसका दम घुट रहा है। इसी कारण कवि के मन में यह भाव आ रहा है कि उसका कंठ रुक रहा है, काल आ रहा है।
प्रश्न 2.
‘ठग-ठाकुरों’ से कवि का संकेत किसकी ओर है ?
उत्तर :
‘ठग-ठाकुरों’ एक प्रतीक है जो उन शोषकों की ओर संकेत करता है जो सदैव समाज का शोषण करते रहे हैं और स्वयं विलासिता का जीवन व्यतीत करते रहे हैं। ये पूँजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और सदैव सामान्यजन पर अत्याचार करते रहते हैं। अपने अपार धन के कारण वे समाज के स्वामी बने हुये हैं। वे दूसरे की परिश्रम से की हुई कमाई पर स्वयं विलासी जीवन जीते हैं। ये छिपे हुये ठग हैं जो प्रत्यक्ष में सीधे और सरल स्वभाव के दिखते हैं पर पर्दे की आड़ में जनता का खून पीते हैं।
प्रश्न 3.
‘जल उठो फिर सींचने को’ इस पंक्ति का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति से कवि का आशावादी दृष्टिकोण प्रकट होता है। अन्याय, अत्याचार और शोषण के कारण जो निराश हो गए हैं. कवि उनमें आशा का संचार करना चाहता है। वेदना को दूर करने के लिए कवि आशा के गीत गाने की प्रेरणा देता है। ‘जल’ और ‘सींचना’ शब्द ही प्रेरणा-दायक हैं। इस पंक्ति में लोक-कल्याण की भावना निहित है। ‘बुझ गई है लौ पृथा की, जल उठो फिर सींचने को’ पंक्ति इसी आशावादी भाव को व्यक्त करती है। जल उठना आशा और उत्साह को व्यंजित करता है।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता दुःख और निराशा से लड़ने की शक्ति देती है। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता का प्रतिपाद्य है कि यह निराशा में आशा का संचार करने वाली कविता है। आज के वातावरण में व्यक्ति का दम घुट रहा है। वह स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर रहा है। लोगों का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष करते हुए व्यतीत हुआ है, इस कारण वे निराश हो गए हैं। इस कविता के द्वारा कवि लोगों को निराशा छोड़कर आशावादी बनने की प्रेरणा देता है। वह दुःख और निराशा से लड़ने की प्रेरणा देता है इसीलिए’जल उठो फिर सींचने को’, पृथा की बुझी हुई आग को गीत गाकर वह जगाने का प्रयत्न करता है।
सरोज स्मृति –
प्रश्न 1.
सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
नव-वधू के रूप में सरोज अत्यधिक सुन्दर दिखाई दे रही थी। सर्वप्रथम उस पर कलश का पवित्र जल छिड़का गया। उसके होठों पर व्याप्त मन्द हँसी बिजली के समान प्रतीत होती थी। उसके रूप-रंग में उसकी माँ की छवि झलकती थी। वह मन्द मुसकान के साथ पिता की ओर देख रही थी। उसके हृदय में पति की सुन्दर छवि विद्यमान थी और वह अपने दाम्पत्य जीवन की सुखद कल्पना कर रही थी। उसके अंग-अंग में उच्छ्वास की तरह प्रसन्नता व्याप्त थी। उसकी आँखें लज्जा और संकोच के कारण झुकी थीं जिनमें एक चमक थी जो उतरकर उसके अधरों पर छा गई थी। इस कारण उसके अधरों में कम्पन्न था। इस प्रकार वह रति का साकार रूप दिखाई देती थी।
प्रश्न 2.
कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद क्यों आई?
उत्तर :
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ को अपनी पत्नी की याद दो बार आई। पहली बार तब याद आई जब उन्होंने लहन के रूप में देखा। पत्री में उसकी माँ (कवि की स्वर्गीया पत्नी) की झलक दिखाई दे रही थी। उसी समय उन कविताओं की याद आई जिन्हें उन्होंने अपनी पत्नी के साथ गाया था। वह संगीत सुनाई दे रहा था जिसे उन्होंने अपने दाम्पत्य जीवन में गाया था। दूसरी बार पुत्री की विदाई के समय स्वर्गीया पत्नी की याद आई। विवाहोपरान्त माँ ही पुत्री को कुल-शिक्षा देती है। यह कार्य पिता (निराला जी) को ही करना पड़ा। उनको, पिता होकर माँ के उत्तरदायित्व का निर्वाह करना पड़ा।
प्रश्न 3.
‘आकाश बदल कर बना मही’ में ‘आकाश’ और ‘मही’ शब्द किनकी ओर संकेत करते हैं ?
उत्तर :
वह अद्वितीय श्रृंगारिक संगीत जिसे कवि ने अपनी स्वर्गीया पत्नी के साथ गाया था, वह आज रति के रूप में सम्पूर्ण विश्व में घूम रहा है। मानो वह रूप उनकी पुत्री के रूप में उतरकर आ गया हो। ‘आकाश’ शब्द कवि के श्रृंगारिक गीत के लिए और ‘मही’ शब्द पुत्री के लिए आया है।
प्रश्न 4.
सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर :
सरोज का विवाह एक सामान्य विवाह था। उसमें किसी प्रकार का आन्तरिक और बाह्य प्रदर्शन नहीं था। विवाह में निराला ने किसी को नि त्रण पत्र नहीं भेजा, केवल कुछ स्वजन ही विवाह के समय उपस्थित थे। सरोज के विवाह में दहेज के रूप में कुछ सामान भी नहीं दिया गया। घर पर न तो संगीत का कार्यक्रम हुआ और न रात का जागरण ही हुआ। विदाई के समय कन्या को शिक्षा भी स्वयं पिता (निराला जी) ने ही दी। इस प्रकार यह विवाह अन्य विवाहों से भिन्न था।
प्रश्न 5.
‘वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?
उत्तर :
कवि यह उद्घाटित करना चाहते हैं कि बेटी! जिस लता पर तुम कली बनकर खिली वह लता भी नहीं की थी, उसी जमीन की थी। कवि ने सरोज की माता को लता और सरोज को कली बताया है। सरोज की माता को अपने पीहर (मायके) में सुख मिला था और सरोज को भी अपनी नानी के घर स्नेह मिला। एक भाव यह भी प्रकट होता है कि सरोज का ननिहाल लता है और सरोज कली है, क्योंकि सरोज बचपन से वहीं रही। और वहीं बड़ी हुई। कविता की यह पंक्ति दोनों प्रसंगों को उद्घाटित करती है।
प्रश्न 6.
“मुझ भाग्यहीन की तू संबल’ निराला की यह पंक्ति क्या -बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे कार्यक्रम की माँग करती है?
उत्तर :
निराला क्रान्तिकारी कवि थे। उनका पूरा जीवन संघर्षों में बीता। परिवारीजनों की मृत्यु तथा पत्नी की मौत ने . उनको गहरा आघात पहुँचाया। उनके जीवन की एकमात्र संबल उनकी पुत्री सरोज थी। विवाह के पश्चात् उनकी पुत्री ‘सरोज’ की भी आकस्मिक मृत्यु हो गई। पुत्री की मृत्यु के पश्चात् निराला स्वयं को ‘भाग्यहीन’ कहने लगे। सरोज का लालन-पालन नानी के घर हुआ। अभावों के कारण निराला अपनी पुत्री को उचित शिक्षा-दीक्षा नहीं दिलवा सके। निश्चित ही यह पंक्ति बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की ओर संकेत करती है। शिक्षा प्राप्त करके, अपने अधिकारों को जानकर उनकी पुत्री सरोज शायद असमय मौत से भी बच सकती थी। वर्तमान स्थितियों में भी बालिका शिक्षा का महत्व और बढ़ जाता है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए –
(क) नत नयनों से आलोक उतर
उत्तर :
अर्थ – विवाह के समय सरोज की सुन्दरता अद्वितीय थी। उसकी आँखों में एक चमक थी। ऐसा प्रतीत होता था मानो उसकी नम्रता से झुकी आँखों में एक प्रकाश व्याप्त हो गया हो और वह होठों पर उतरकर थर-थर काँप रहा हो।
(ख) श्रृंगार रहा जो निराकार
अर्थ – कवि ने अपनी पुत्री के वैवाहिक स्वरूप में उस श्रृंगार के दर्शन किए जो उसके काव्य के रस में हमेशा छिपा . रहकर अपनी सरस धारा को प्रकट करता रहा है। कवि के काव्य का मोहक रस पुत्री के विवाह के श्रृंगार में साकार हो गया था।
(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला
अर्थ – बेटी सरोज को विदा करते समय कवि को कालिदास की शकुन्तला की याद आ गई। किन्तु शकुन्तला और सरोज़ की शिक्षा-दीक्षा में अन्तर है। दोनों के संस्कारों और परिस्थितियों में भी भिन्नता है। इसलिए कवि ने सरोज को अलग। प्रकार की शिक्षा दी।
(घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ.
अर्थ – कवि का कथन है कि हे पुत्री! मैंने जीवन-पर्यन्त अपने धर्म का निर्वाह किया है। यदि मेरे धर्म (कर्म) पर बिजली गिर पड़े, मेरे कर्मों पर आपत्तियों का पहाड़ टूट पड़े तो भी मैं सिर झुकाकर उन्हें स्वीकार करूँगा।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
निराला के जीवन से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करने के लिए रामविलास शर्मा की कविता ‘महाकवि मिराला’ पढ़िए।
उत्तर :
विद्यार्थी पस्तकालय से रामविलास शर्मा की कति ‘महाकवि निराला’ लेकर पढ़ें अथवा अपने अध्यापक जी से निराला के जीवन और कृतित्व के बारे में ज्ञान प्राप्त करें। यहाँ बहुत संक्षेप में परिचय दिया जा रहा है। निराला छायावादी कवि हैं फिर भी उनके काव्य में प्रगतिवादी भावना के दर्शन होते हैं।
सन् 1934 से 1938 तक का चार वर्ष का काल उनके जीवन का उत्कर्ष काल था। इस समय उनकी बहुत-सी कृतियाँ प्रकाशित हुईं। पहले वे भावों को मन में संजोते थे फिर उन भावों को कविता में व्यक्त करते थे। निराला जी सामासिक पदावली का प्रयोग अधिक करते थे इसलिए उनकी कविताएँ कठिन लगती हैं और देर से समझ में आती हैं। वे बड़े परिश्रम से अपनी रचना को तैयार करते थे।
वे कविताओं को पढ़ने और सुनने में बहुत आनन्दित होते थे। वे भाव विभोर होकर हाव-भाव के साथ कविता सुनाते थे। उनके घर पर साहित्यकार एकत्रित होते रहते थे। वे बड़े स्वाभिमानी थे। वे तार्किक थे और अपने तर्कों से अच्छे-अच्छों के छक्के छुड़ा देते थे। वे व्यक्तिगत आक्षेप सहन नहीं कर सकते थे।
वे शरीर से सुडौल थे और कबड्डी तथा फुटबाल बड़े शौक से खेलते थे। वे भोजन बनाने में सिद्धहस्त थे। वे तम्बाकू खाते थे। अच्छी पोशाक पहनने और उसकी प्रशंसा सुनने में उन्हें बड़ा आनन्द आता था। वे गरीबी में भी उच्च आकांक्षाएँ रखते थे। उन्हें साधारण जीवन जीना अच्छा लगता था। उन्हें सारे जीवन में विरोध सहन करना पड़ा। प्रिय पुत्री संरोज की अकाल मृत्यु ने उन्हें व्यथित कर दिया। वे अन्दर ही अन्दर दुखी रहते थे।
प्रश्न 2.
अपने बचपन की स्मृतियों को आधार बनाकर एक छोटी-सी कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
छात्र अध्यापक या अपने मित्रों की सहायता से प्रयास करें।
प्रश्न 3.
‘सरोज स्मृति’ पूरी पढ़कर आम आधारण के कवि थे। उनकी कविता में उसके जीवन की समस्यायें प्रकट हई हैं। हमारे समाज में अधिकांश लोग आम आदमी हैं किनदमी के जीवन-संघर्षों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
निराला जनसा्तु कुछ प्रतिशत विशिष्ट कहलाने वाले उनका शोषण करते हैं। श्रम आम आदमी करता है। उसका सुख कुछ लोग उठाते हैं। आम आदमी जीवनभर कठिनाइयों से जूझता है और संघर्ष करते-करते ही मर जाता है। उसके सपने कभी पूरे नहीं होते। उसको कभी सुख नहीं मिलता। वह शोषणपूर्ण व्यवस्था का जीवनभर शिकार बना रहता है।
Important Questions and Answers
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
हृदय की वेदना को भूलने के लिए कवि निराला क्या करना चाहते हैं?
उत्तर :
हृदय की वेदना को भूलने के लिए कवि निराला गीत गाना चाहते हैं।
प्रश्न 2.
कवि के अनुसार किसकी लौ बुझ गई है?
उत्तर :
कवि के अनुसार पृथ्वी की लौ बुझ गई है।
प्रश्न 3.
‘सरोज स्मृति’ कैसा गीत है?
उत्तर :
‘सरोज स्मृति’ शोक गीत है।
प्रश्न 4.
निराला की पुत्री सरोज का लालन-पालन कहाँ हुआ?
उत्तर :
निराला की पुत्री सरोज का लालन-पालन नानी के घर हुआ।
प्रश्न 5.
सरोज को श्रद्धांजलि के रूप में कवि क्या समर्पित करता है?
उत्तर :
सरोज को श्रद्धांजलि के रूप में कवि पुण्य कर्मों का फल समर्पित करता है।
प्रश्न 6.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता में कवि हमें क्या करने की प्रेरणा देते हैं?
उत्तर :
कविता ‘गीत गाने दो मुझे’ में कवि हमको ‘निरंतर संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 7.
गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को। – इन पंक्तियों का भावार्थ लिखो।
उत्तर :
कवि अपने जीवन में मिलने वाले दुखों से संघर्ष करते-करते थक गया है। कवि अपने दुःख को कम करने के लिए गीत गाना चाहता है।
प्रश्न 8.
कवि क्यों दुःखी है?
उत्तर :
कवि के परिवार वाले उसका साथ छोड़कर जा रहे हैं अर्थात् धीरे-धीरे सबकी मृत्यु हो रही है।
प्रश्न 9.
कवि संसार से क्यों दुःखी है?
उत्तर :
कवि के अनुसार आज के लोग इतना ज्यादा स्वार्थी हो गए हैं कि कोई एक दूसरे की मदद नहीं करता है और कोई किसी को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहता है। इसलिए.कवि संसार से दु:खी है।
प्रश्न 10.
कवि किसको समाज का दुश्मन मानता है? .
उत्तर :
कवि समाज में रहने वालों को ही समाज का दुश्मन मानता है। कवि के अनुसार समाज ऐसा हो गया है कि अगर कोई सड़क पर गिर गया है तो लोग उसकी मदद नहीं करते हैं।
लयूत्तरात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
तू खिली, स्नेह से हिली, पली,
अन्त भी उसी गोद में शरण
ली, मूँदे द् वग वर महामरण!
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
‘सरोज-स्मृति’ एक व्यक्तिगत कविता है। इसमें कवि की एकमात्र पुत्री सरोज की मृत्यु पर कवि के मन के भाव व्यक्त हुये हैं। सरोज का अपनी नानी के घर पर ही स्नेह से पालन-पोषण हुआ क्योंकि उसकी माता की मृत्यु पहले ही हो गई थी। उसकी मृत्यु भी वहाँ पर ही हुई थी। उसने अपनी नानी की गोद में ही अपनी आँखें मूंदी थीं।
प्रश्न 2.
निराला ने मातृहीन सरोज की माता के धर्म का निर्वाह किस प्रकार किया ?
उत्तर :
विवाह से पूर्व और विदाई के समय माता ही पुत्री को कुल-धर्म की शिक्षा देती है और ससुराल के लिए विदा करती है। सरोज की माता का देहावसान होने के कारण निराला ने ही यह कार्य किया और इस प्रकार माता के धर्म का निर्वाह किया।
प्रश्न 3.
देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति
मेरे वसन्त की प्रथम गीति –
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला जी कहते हैं कि मैंने सरोज के दुलहन रूप में शीलता और धैर्य की उस मूर्ति को देखा जिसे मैंने अपने जीवन के प्रथम वसन्त में मधुर संगीत के रूप में अनुभव किया था। सरोज को दुलहन के रूप में देखकर कवि को अपनी दिवंगत पत्नी तथा उसके साथ यौवन में गाये गये गीतों की स्मृति हुई। उनको अपना यौवनकाल याद आ गया।
प्रश्न 4.
सरोज की विदाई के समय निराला को शकुन्तला की याद क्यों आई ? सरोज और शकुन्तला के संस्कारों में क्या अन्तर था?
उत्तर :
सरोज की विदाई के समय निराला को शकुन्तला की स्मृति इसलिए हुई कि दोनों मातृहीन थीं। सरोज ननिहाल में पली थी, शकुन्तला का लालन-पालन कण्व ऋषि के आश्रम में हुआ था। शकुन्तला कण्व ऋषि की पोषित पुत्री थी, सरोज निराला की सगी बेटी थी। शकुन्तला ने प्रणय-विवाह किया था सरोज ने नहीं। कण्व वैरागी थे पर शकुन्तला की विदाई के समय वह पिता की तरह दुःखी थे। निराला गृही होकर भी वैरागी थे।
प्रश्न 5.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता का सार लिखिए।
अथवा
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर :
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता में कवि ने उन परिस्थितियों की ओर संकेत किया है जिसमें संघर्षों का सामना करते हुए समर्थ एवं शक्तिशाली व्यक्तियों का जीना भी कठिन हो जाता है। हर दृष्टि से वातावरण प्रतिकूल है। कवि स्वयं अपने जीवन में संघर्ष करते-करते थक गया है। जीवन-मूल्यों का पतन हो रहा है। शोषण और अन्याय के सामने सारे संसार को हार माननी पड़ रही है। मानवता के कहीं दर्शन नहीं होते। मनुष्य की चेतना शक्ति समाप्त हो गई है। कवि ऐसे निराश जीवन में आशा का संदेश देना चाहता है।
प्रश्न 6.
‘सरोज स्मृति’ कविता में कवि ने शंकुतला की विदाई का प्रसंग देकर क्या संकेत किया है और क्यों?
उत्तर :
सरोज और शकुन्तला दोनों के जीवन में कुछ समानता है। शकुन्तला भी मातृविहीन थी और सरोज भी। शकुन्तला का पालन-पोषण कण्व ऋषि ने किया था और उसकी विदाई के समय ऋषि को. अपार वेदना सहन करनी पड़ी का पालन-पोषण नानी और मामा-मामी ने किया था। किन्तु सरोज की विवाहोपरान्त विदाई कवि निराला ने की और उस वेदना को निराला को सहन करना पड़ा था। विदाई के समय सरोज को शिक्षा भी निराला ने ही दी थी। इस प्रकार कवि शकुन्तला के माध्यम से सरोज के अपने गहरे स्नेह का संकेत देना चाहता है।’
प्रश्न 7.
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जीवन में जो समर्थ थे, जिनमें जिजीविषा थी वे भी अन्याय, अत्याचार और शोषण के प्रति संघर्ष करते-करते हार मान बैठे। उनका भी जीवन जीना आसान नहीं रहा। वे भी निराश हो गए। उनके जीवन में भी आशा की किरण के दर्शन नहीं हो रहे। भाव यह है कि समाज में शोषक वर्ग के प्राबल्य ने लोगों को निराश कर दिया है।
प्रश्न 8.
‘बुझ गई है लौ पृथा की’ कथन से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर :
पृथ्वी के लोग जीना नहीं चाहते। उनके जीने की इच्छाशक्ति समाप्त हो गई है। उनमें सहनशीलता के कहीं दर्शन नहीं होते। वे जीवन की कठिनाइयों से लड़ते-लड़ते थक गये हैं। वे शोषित वर्ग के शोषण से त्रस्त हैं और उनमें प्रतिकार की क्षमता समाप्त हो गई है।
प्रश्न 9.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता निराशा में आशा का संचार करने वाली कविता है, स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता में चित्रित सामाजिक स्थितियों का वर्णन करते हुए स्पष्ट कीजिए कि ऐसे में कवित्त करने का क्या उद्देश्य है?
अथवा
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता में कवि ने गीत गाने की इच्छा क्यों प्रकट की है?
अथवा
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि किन परिस्थितियों में कविता करना चाहता है?
उत्तर :
कवि अनुभव करता है कि आज सारा संसार पीड़ा ग्रस्त है। पृथ्वी के प्राणियों का जीवन संघर्ष करते-करते थक गया है। वे अपनी जिजीविषा रूपी समस्त पूँजी लटा चके हैं। मानवता मर गई है। सभी निराश हो गए हैं। ऐसी स्थिति में कवि आशा के गीत गाना चाहता है। जो उसे दु:ख से लड़ने की प्रेरणा दे सके। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रस्तुत गीत निराशा में आशा का संचार करने वाला गीत है।
प्रश्न 10.
‘सरोज स्मृति’ को शोक-गीत क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
शोक-गीत प्रियजन की मृत्यु के उपरान्त उसके विरह में लिखा जाने वाला गीत होता है। उसमें रचनाकार अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त करता है। ‘सरोज स्मृति’ भी निराला की ऐसी ही लम्बी कविता है। निराला ने अपनी प्रिय पुत्री सरोज की मृत्यु के उपरान्त यह कविता लिखी थी जिसमें शोक, निराशा और पीड़ा के भावों की अभिव्यक्ति हुई है। पुत्री की मृत्यु के पश्चात् कवि को आत्मग्लानि की अनुभूति हुई थी क्योंकि जब वह जीवित थी निराला उसके लिए कुछ नहीं कर सके। इस गीत में कवि के मार्मिक भावों की अभिव्यक्ति हुई है।
प्रश्न 11.
‘सरोज स्मृति में निराला अपने समस्त कर्मों के फल से क्या करना चाहते हैं और क्यों ?
अथवा
‘कन्ये, गत कर्मों का अर्पण कर, करता मैं तेरा तर्पण’ उक्त कथन के पीछे छिपी वेदना और विवशता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
लेखक अपने समस्त पुण्य कर्मों से पुत्री सरोज का तर्पण करते हैं। पुत्री सरोज की मृत्यु के पश्चात् तर्पण करने में भी एक नवीनता है जो सामान्य तर्पण पद्धति से भिन्न है। सामान्यतया तर्पण जल एवं तंदुल आदि वस्तुओं द्वारा किया जाता है। पर निराला ने अपने सभी सत्कर्मों का फल सरोज को अर्पित कर उसका तर्पण किया अर्थात् अपने सभी सत्कर्म उसे भेंट कर दिए। क्योंकि निराला के पास तर्पण के समय देने के लिए कुछ भी नहीं है। इस प्रकार कवि ने पुत्री का अनोखा तर्पण किया। यहाँ निराला की विवशता और पीड़ा व्यक्त हुई है।
प्रश्न 12.
निराला ने पुत्री सरोज के विवाह को ‘आमूल नवल’ क्यों कहा है ? इसके पीछे निराला का कौन-सा भाव छिपा है?
उत्तर :
निराला ने सरोज के विवाह को ‘आमूल नवल’ कहा है क्योंकि यह विवाह नवीन ढंग से सम्पन्न हुआ था। इसमें प्रदर्शन का अभाव था। कुछ परिचितों के अतिरिक्त उसमें कोई सम्मिलित नहीं था। साज-सज्जा और संगीत आदि की व्यवस्था भी नहीं थी। दूसरी ओर यह भाव भी छिपा है कि वे पुत्री का विवाह धूमधाम से और परम्परानुसार नहीं कर सके। अतः उनके मन में विषाद का भाव भी है।
प्रश्न 13.
उर में भर झूली छबि सुंदर
प्रिय की अशब्द श्रृंगार-मुखर
तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,
विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग’
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव यह है कि सरोज के हृदय में प्रिय की सुन्दर छवि प्रकट हो गई और वह उस छवि को देखकर झूम उठी। मानो पति का अवर्णनीय सुन्दर रूप उसके हृदय में मुखरित हो गया हो। वह मधुर भाव की तरह खिल . गई। ऐसा लगता था मानो सरोज के प्रत्येक अंग में विश्वास का भाव नाचने लगा हो और फिर स्थिर हो गया हो। कवि ने अपनी कल्पना के सहारे सरोज के हृदय के भावों को साकार रूप प्रदान किया है।
प्रश्न 14.
श्रृंगार, रहा जो निराकार,
रस कविता में उच्छ्वसित-धार
उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
कवि निराला कहना चाहते हैं कि उन्होंने अपनी पुत्री के सौन्दर्य में उस शृंगार के दर्शन किए जो उनके काव्य के रस में छुपा रहकर अपनी सहस्रधारा को अजस्र रूप में छलकाता रहता है। कवि को अपनी पुत्री के विवाह के समय का सुसज्जित स्वरूप अपने काव्य में प्रवाहित रस की धारा के समान आनन्ददायक लग रहा था।
प्रश्न 15.
दुख ही जीवन की कथा रही।
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही !
उपर्युक्त पंक्तियों में निहित कवि के भाव को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘सरोज स्मृति’ कविता में कवि के आत्मकथन’ दुःख ही जीवन की कथा रही’ की वेदना को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘दुःख ही जीवन की कथा रही’ क्या कहूँ आज, जो नहीं कही’ के आलोक में कवि के हृदय की पीड़ा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कवि का भाव यह है कि मेरा सारा जीवन दुःख से भरा हुआ है। मुझे आजीवन संघर्षों से जूझना पड़ा। मेरे जीवन की सारी कथा दुःख में डूबी हुई है। इसलिए मैंने इस कविता में उस दुःख-गाथा को गाया है जिसे मैंने आज तक किसी से नहीं कहा। इन पंक्तियों में निराला की गहरी वेदना छिपी है। इसमें वह तड़प छिपी है जिसे शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 16.
‘भर जलद धरा को ज्यों अपार’ पंक्ति में प्रयुक्त उपमा अलंकार की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सरोज का पालन-पोषण ननिहाल में हुआ। उन्होंने उसे अपार स्नेह प्रदान किया, वात्सल्य दिया, उसी के लिए यह उपमा दी है। बादल वर्षा करके धरती को उर्वर बनाते हैं, तभी धरती कुछ देती है। इसी प्रकार नानी तथा मामा-मामी ने उसका लालन-पालन किया। प्रेम की वर्षा करके सरोज के धरतीरूपी व्यक्तित्व को अनेक सम्भावनाओं से भर दिया। वह अकल्पनीय है। इस कारण यह उपमा सार्थक है।
प्रश्न 17.
‘मुझ भाग्यहीन की तू संबल’ पंक्ति में निराला की वेदना व्यक्त हुई है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला क्रान्तिकारी कवि थे। परम्पराओं से जुड़ने की उनकी आदत नहीं थी। उन्होंने कभी भाग्य को महत्त्व नहीं दिया और जीवन-पर्यन्त संघर्ष करते रहे। पुत्री सरोज ही उनके लिए प्रसन्नता का आधार थी किन्तु उसकी आकस्मिक मृत्यु ने निराला के हृदय को घायल कर दिया। भाग्य को महत्त्व न देने वाले निराला पुत्री की मृत्यु के पश्चात् अपने को ‘भाग्यहीन’ कहने लगे। इस शब्द में निराला की गहरी पीड़ा व्यक्त हुई है।
प्रश्न 18.
‘दख ही जीवन की कथा रही पंक्ति निराला की गहरी पीड़ा को व्यक्त करती है। इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
निराला ने जीवनभर संघर्ष किया, किन्तु कभी हार नहीं मानी। सरोज की मृत्यु का पहाड़ टूटकर जैसे ही ‘ निराला पर गिरा मानो उनका सारा उत्साह ही समाप्त हो गया। भाग्य को नकारने वाले निराला अपने को भाग्यहीन कहने लगे। इसमें जो पीड़ा घनीभूत हुई है वह शब्दों द्वारा अभिव्यक्त नहीं की जा सकती। उसे केवल अनुभव ही किया जा सकता है। उन्होंने जीवन में कभी सुख देखा ही नहीं, उनका जीवन दुःख का पर्याय बन गया था।
प्रश्न 19.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता में समाज की भयावह स्थिति का चित्रण हुआ है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कविता में ऐसे समाज का चित्रण है जिसमें नर नहीं नर रूप में भेड़िये रहते हैं। जिसमें शोषण और अत्याचार का भय व्याप्त है। जहाँ संघर्ष करते-करते समर्थ व्यक्ति के भी होश उड़ गए हैं। जीना असम्भव हो गया है। जीवन मूल्य नष्ट हो गए हैं। समाज विषाक्त हो गया है। मानवता हाहाकार कर उठी है। पृथ्वी के निवासियों की जीवनीशक्ति समाप्त हो गई है। इस प्रकार कह सकते हैं कि इस कविता में समाज की भयावह स्थिति का चित्रण है।
प्रश्न 20.
कंठ रुकता जा रहा है
आ रहा है काल देखो।
उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवि क्या व्यक्त करना चाहता है ?
अथवा
उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा समाज की किस दुर्दशा का चित्रण किया गया है ?
उत्तर :
कवि का कथन है कि समाज की दशा यह हो गई है कि शोषकों तथा अत्याचारियों ने अपनी शक्ति के बल पर निर्दोषों को पीडा पहँचाना आरम्भ कर दिया है। जीना कठिन हो गया है। कंठ की आवाज ब कह नहीं पा रहे हैं। लगता है मृत्यु काली चादर सब पर डालना चाहती है अर्थात् मृत्यु निकट आती जा रही है। किसी में अन्यायियों का सामना करने की शक्ति शेष नहीं रही है। समाज की इस दुर्दशा का चित्रण इन पंक्तियों में हुआ है।
प्रश्न 21.
‘सरोज स्मृति’ कविता के संकलित अंश में निराला के हर्ष और विषाद के भाव व्यक्त हुए हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संकलित अंश में निराला के हर्ष और विषाद के भाव व्यक्त हुए हैं। बेटी का विवाह नये ढंग से करने का हर्ष था, जिसमें किसी प्रकार का प्रदर्शन नहीं. था। किसी को निमंत्रण-पत्र भी नहीं भेजा गया। दूसरी ओर वह उसका विवाह परम्परानुसार धूमधाम से सम्पन्न नहीं कर सके तथा अच्छी तरह उसका पालन-पोषण भी नहीं कर सके, इस बात का विषाद भी था। पुत्री का विवाह करके उनके मन में राग का भाव उत्पन्न होता है और दूसरी ओर विषाद की भावना हृदय को कचोट रही है।
प्रश्न 22.
निराला प्रगतिवादी कवि हैं, सिद्ध कीजिए। ..
उत्तर :
निराला परम्परावादी कवि नहीं थे। उनके काव्य में परम्परा से हटकर प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती हैं। उन्होंने अपने से पूर्व प्रचलित काव्य-प्रवृत्तियों से कविता को मुक्ति दिलाई। यदि जीवन में परिवर्तन न हो तो वह नीरस हो जाता है, उसी प्रकार एक ही विषय और शैली में लिखा काव्य भी नीरस हो जाता है। अतः उन्होंने काव्य के कथ्य और शिल्प दोनों में नवीनता का वरण किया। उन्होंने अपने काव्य को समाज के साथ जोड़ा। शोषित और दलित वर्ग को काव्य में स्थान दिया। उसके प्रति करुणा और सहानुभूति दिखाई। शैली के क्षेत्र में निराला ने भाषा को नया रूप दिया, व्यंग्य और विद्रोह को नया .स्वर दिया। उन्होंने भिक्षुक, तोड़ती पत्थर, कुकुरमुत्ता जैसी कविताएँ लिखीं। इससे स्पष्ट है कि निराला प्रगतिवादी कवि थे।
प्रश्न 23.
‘हाथ जो पाथेय थे, ठग… ठाकुरों ने रात लूटे’-प्रस्तुत पंक्तियों के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए। .
उत्तर :
‘हाथ जो ……….. लूटे’ इन पंक्तियों में निराला का प्रगतिवादी कवि का स्वरूप दिखाई देता है। निराला समाज में व्याप्त पूँजीवादी लूट-खसोट का जिक्र कर रहे हैं और उसके शोषक स्वरूप को प्रकट कर रहे हैं। पूँजीपति सामान्य श्रमिक तथा किसान लोगों के श्रम से उपार्जित धन को तरह-तरह के बहानों के द्वारा लूट लेता है और अपने धन-बल से समाज का ठाकुर (स्वामी) बन जाता है। निराला ने पूँजीवाद के इस स्वरूप को स्पष्ट कर लोगों को सतर्क रहकर उसके विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी है।
निबन्धात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘गीत गाने दो मुझे’ कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर :
गीत गाने दो मुझे-यह कविता निराश व्यक्तियों के हृदय में आशा का संचार करने वाली है। इस गीत में निराला ने ऐसे व्यक्तियों की भावना को अभिव्यक्ति दी है जो उपेक्षा, शोषण और अन्याय की चोट खाते और संघर्ष करते हुए थक गये हैं। जिनकी जिजीविषा शक्ति समाप्त हो गई है और जिनका जीवित रहना भी असम्भव हो गया है। निरन्तर ठोकरें खाते-खाते मनुष्य निराश हो गया है। मूल्यवान जीवन भी खोता जा रहा है। उसका कोई महत्त्व दिखाई नहीं देता।
जिनमें संघर्ष करने की शक्ति थी वे भी हार मान चुके हैं। मानवता कराह रही है। आशा की ज्योति बुझ गई है, निराशा के अन्धकार लिया है। अतः कवि इस कविता में आशा की लौ जगाना चाहता है। वेदना और पीडा को छिपाने के लिए आशा का गीत गाना चाहता है। निराशा में आशा का संचार करना चाहता है। ‘गीत गाने दो मझे गीत से निराला के व्यक्तिगत जीवन की भी झलक मिलती है।
प्रश्न 2.
‘सरोज स्मृति’ कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर :
सरोज स्मृति – ‘सरोज स्मृति’ निराला की लम्बी कविताओं में से एक है। इसका आधार व्यक्तिगत जीवन है। इसमें एक पिता के हृदय की आन्तरिक पीड़ा की अभिव्यक्ति हुई है। यह वह रचना है जो पुत्री सरोज की मृत्यु के दो वर्ष बाद सन् 1935 में निराला जी ने लिखी थी। इसमें पिता का विलाप है। पूरी कविता में पुत्री सरोज के जन्म से लेकर मृत्यु तक की घटनाओं का स्मरण करते हए उन्हें व्यक्त किया है।
प्रस्तत अंश में पत्री के विवाह और मत्य का वर्णन है। पत्री के विवाह के समय कवि को अपनी पत्नी की याद आती है। कवि ने पुत्री की विदाई के समय स्वयं ही माँ का धर्म निभाया। पुत्री के लिए बहुत कुछ न कर पाने के कारण उन्हें पश्चात्ताप है। इसमें निराला के जीवन संघर्ष की झलक मिलती है। उन्होंने स्वयं कहा है “दुःख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज जो नहीं कही।”
प्रश्न 3.
‘सरोज स्मृति’ कविता का सार लिखिए।
अथवा
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘सरोज स्मृति’ की मूल संवेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘सरोज स्मृति’ निराला की व्यक्तिगत लम्बी कविता है। पाठ्य-पुस्तक में संकलित भाग उसका एक अंश है। यह कविता निराला की पुत्री के निधन के बाद लिखा गया एक शोक गीत है। कवि ने पुत्री का विवाह बड़े साधारण ढंग से किया। कवि ने मातृहीन पुत्री को विदा के समय स्वयं ही शिक्षा दी।
विदाई के समय कवि को शकुन्तला की याद आई, यद्यपि उसका पालन-पोषण और शिक्षा शकुन्तला से भिन्न थी। उसे अपनी दिवंगत पत्नी की भी याद आई। उसे पुत्री के रंग-रूप में अपनी पत्नी के रंग-रूप की झलक दिखाई दी। पुत्री का पालन-पोषण ननिहाल में हुआ और वहीं उसकी मृत्यु हुई। कवि ने अपने जीवन के सत्कर्मों के फल द्वारा पुत्री का तर्पण किया।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए –
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग –
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ सकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य को देखने के लिए विद्वानों ने दो पक्षों का उल्लेख किया है – एक भावपक्ष दूसरा कलापक्ष। इसी कसौटी पर हम उपर्युक्त पंक्तियों को परखेंगे।
(क) भावपक्ष – कवि का कथन है कि जीवन में संघर्षों से जूझते-जूझते, जो समर्थ थे, जिनमें संघर्षों का सामना करने की शक्ति थी, वे भी हार गए। उनकी जिजीविषा समाप्त हो गई। जो जीवन मूल्यवान था अथवा जीवन में जो मूल्यवान था उसे भी शोषकों नें, समाज के भेड़ियों ने छीन लिया। ठग तो रात को लूटते हैं पर समाज के इन ठगों ने दिन में ही जीवन की मूल्यवान वस्तु लूट ली है। कंठ रुकता जा रहा है, लगता है काल ने आकर घेर लिया है। मूल भाव यह है कि संसार में जीना कठिन हो गया है। लोग किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए हैं। जीवन में सभी कुछ खो चुके हैं पर कुछ कहने में असमर्थ हैं।
(ख) कलापक्ष – निराला की अभिव्यक्ति का अपना एक निराला ही ढंग है। वे छायावादी युग के कवि हैं फिर भी उन्होंने एक नई राह पकड़ी जो उनको प्रगतिवाद के निकट तक ले जाती है। उपर्युक्त पंक्तियाँ मुक्त छन्द में लिखी गई हैं। तत्सम शब्दावली है। भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण एवं भावानुकूल है। ठग-ठाकुरों’ जैसे प्रतीकों का प्रयोग किया है। ‘ठग-ठाकुरों’ में अनुप्रास अलंकार और लक्षणा शक्ति है। उपर्युक्त पंक्तियों का भावपक्ष और कलापक्ष दोनों सबल हैं।
प्रश्न 5.
भर गया है जहर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
उपर्युक्त पंक्तियों में निहित काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) भावपक्ष – संसार विषमता के विष से ग्रसित हो गया है। लोग एक-दूसरे को पहचानते नहीं, सभी एक – दूसरे को अपरिचित की तरह देखते हैं। लगता है सभी अजनबी हैं। मानवता का ह्रास हो गया है। पारस्परिक प्रेम और सौहार्द्र का भाव समाप्त हो गया है। लोगों में जीने की इच्छा समाप्त हो गई है।
(ख) कलापक्ष – इन पंक्तियों में निराला जी की पीड़ा के दर्शन होते हैं। भावों के प्रवाह में यदि कोई अलंकार अथवा अन्य भाषा का शब्द आ जाए तो निराला उसका सहज प्रयोग कर लेते थे। जैसे ‘जहर’ शब्द का सहज ही प्रयोग हो गया है। ‘संसार जैसे हार खाकर’ में उपमा अलंकार है। लोग-लोगों में अनुप्रास अलंकार है। खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है। लाक्षणिक शक्ति और प्रसाद गुण है। भावानुकूल भाषा का प्रयोग है।
प्रश्न 6.
‘सरोज स्मृति’ की निम्न पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए –
उर में भर झूली छबि सुन्दर
प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर
तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,
विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग
उत्तर :
(क) भावपक्ष निराला जी कहते हैं कि तू (सरोज) मेरी ओर देखकर होठों ही होठों में मुसकराई। तेरे हृदय में प्रिय पति की सुन्दर छवि जाग्रत हो गई जिसे देखकर तू झूम उठी। वह छवि तेरे शब्दों में नहीं बल्कि तेरे श्रृंगार में ही मुखरित हो रही थी। तू मधुर भाव की तरह खिल रही थी। तेरा वह सौन्दर्य उच्छ्वास की तरह दिखता हुआ अंग-अंग में व्याप्त हो गया था।
(ख) कलापक्ष – कलापक्ष की दृष्टि से उपर्युक्त पंक्तियाँ श्रेष्ठ हैं। तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। भावानुसार भाषा का प्रयोग है। भाषा में एक प्रवाह और लक्षणा शक्ति है। मुक्त छन्द है और वर्णनात्मक शैली है। उत्प्रेक्षा अलंकार है। स्मृति बिम्ब है। शब्दों का सार्थक प्रयोग भी हुआ है।
प्रश्न 7.
निम्न पंक्तियों के भावपक्ष एवं कलापक्ष पर अपने विचार प्रकट कीजिए –
श्रृंगार, रहा जो निराकार,
रस कविता में उच्छ्वसित-धार
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग
भरता प्राणों में राग-रंग,
रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,
आकाश बदल कर बना मही।
उत्तर :
(क) भावपक्ष-निराला जी कहते हैं कि मैंने तुम्हारे शृंगार में उस शृंगार को देखा जो मेरे काव्य के रस में छिपा रहता है और सहस्र रसधारा के रूप में प्रवाहित होता रहता है। मेरी कविता में जो भावधारा प्रवाहित हो रही थी और जिसे मैंने अपनी स्वर्गीया पत्नी के साथ गाया था वह आज भी दाम्पत्य सुख के रूप में समस्त विश्व में व्याप्त हो रही है। लगता है वह रंग-रूप आकाश से उतर आया है और तेरे श्रृंगारिक रूप में साकार हो उठा है।
(ख) कलापक्ष-उपर्युक्त पंक्तियाँ निराला की कल्पना का सुन्दर उदाहरण हैं। सरोज के सौन्दर्य का साकार चित्रण किया गया है। सामासिक शब्दावली का प्रयोग है। तत्सम शब्दों का प्रयोग है। राग-रंग, रति-रूप में अनुप्रास अलंकार है। भाषा में प्रसाद गुण है। मुक्त छन्द और वर्णनात्मक शैली है
साहित्यिक परिचय का प्रश्न –
प्रश्न :
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – भाव पक्ष – निराला छायावादी कवि होने के साथ-साथ प्रगतिवादी कवि भी हैं क्योंकि उनकी कविता में शोषण का विरोध और शोषकों के प्रति घृणा की अभिव्यक्ति हुई है। वे क्रान्तिदर्शी कवि हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति का चित्रण भी अपनी रचनाओं में किया है।
कला पक्ष – निराला छायावाद तथा स्वच्छन्दतावादी कविता के आधार स्तम्भ थे। उनका काव्य जगत बहुत व्यापक है। उनके काव्य में विचारों की व्यापकता, विविधता और गहराई मिलती है। उन्होंने छन्द मुक्त तथा छन्दबद्ध कवितायें लिखी हैं। प्राचीन तथा मानवीकरण, विशेषण विपर्यय आदि अंग्रेजी काव्य के अलंकार उनकी कविता की शोभा बढ़ाते हैं। बोलचाल की भाषा तथा संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त भाषा – उनकी भाषा के ये दो रूप हैं। उन्होंने हिन्दी में गजलें भी लिखी हैं।
कृतियाँ – प्रमुख काव्य कृतियाँ – परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते। उपन्यास-बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, प्रभावती। कहानियाँ सुकुल की बीबी, लिली।
(क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति Summary in Hindi
कवि परिचय :
जन्म – सन् 1898 ई. बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल गाँव में। पैतृक गाँव गढ़कोला जिला उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। बचपन का नाम सूर्य कुमार। पत्नी, परिवारीजनों तथा पुत्री सरोज के देहावसान से आहत। ‘समन्वय’, ‘मतवाला’ आदि पत्रिकाओं के सम्पादन से जुड़े। ‘छायावाद’ और स्वच्छंदतावादी कविता के आधार स्तम्भ। हिन्दी में मुक्त छन्द के प्रणेता। सन् 1961 में देहावसान।
साहित्यिक परिचय – भाव पक्ष-निराला छायावादी कवि होने के साथ-साथ प्रगतिवादी कवि भी हैं क्योंकि उनकी कविता में शोषण का विरोध और शोषकों के प्रति घृणा की अभिव्यक्ति हुई है। वे क्रान्तिदर्शी कवि हैं। ‘बादल राग’ उनकी क्रांतिभावना से युक्त कविता है। इसी प्रकार ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता भी प्रगतिवादी स्वर से युक्त है। उन्होंने भारतीय संस्कृति का चित्रण भी अपनी रचनाओं में किया है। वे प्रकृति प्रेमी कवि हैं। भारतीय कृषक जीवन से भी उनका लगाव है।
कला पक्ष – निराला को सर्वाधिक प्रसिद्धि 1916 ई. में लिखी कविता ‘जुही की कली’ से मिली और बाद में वे मुक्त छंद के प्रवर्तक माने गए। सन् 1922 में रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘समन्वय’ से जुड़े और सन् 1923-24 में वे ‘मतवाला’ के सम्पादक मण्डल में शामिल हो गए। सन् 1935 में वे लखनऊ से निकलने वाली ‘सुधा’ पत्रिका से जुड़े। निराला जी को जीवनपर्यन्त आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा।
निराला छायावाद तथा स्वच्छन्दतावादी कविता के आधार स्तम्भ थे। उनका काव्य जगत बहुत व्यापक है। उनके काव्य में विचारों की व्यापकता, विविधता और गहराई मिलती है। उन्होंने छन्द मुक्त तथा छन्दबद्ध कवितायें लिखी हैं। प्राचीन तथा मानवीकरण, विशेषण विपर्यय आदि अंग्रेजी काव्य के अलंकार उनकी कविता की शोभा बढ़ाते हैं। बोलचाल की भाषा तथा संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त भाषा – उनकी भाषा के ये दो रूप हैं। उन्होंने हिन्दी में गजलें भी लिखी हैं।
कृतियाँ-काव्य कृतियाँ – परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज।
उपन्यास-बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, कुल्लीभाट, काले कारनामे, चोटी की पकड़। … कहानियाँ सुकुल की बीबी, लिली।
सप्रसंग व्याख्याएँ :
गीत गाने दो मुझे
1. गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने कों।
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग –
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रुकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।
शब्दार्थ :
- वेदना = पीड़ा।
- राह = रास्ता।
- पाथेय = संबल, सहारा।
- ठाकुरों = मालिक, स्वामी।
- कंठ = गला।
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित कविता ‘गीत गाने दो मुझे से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता छायावादी कवि महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ हैं।
प्रसंग : इस कविता में कवि ने उन ठगों के प्रति आक्रोश व्यक्त किया है जिनके कारण संसार के लोग व्यथित हैं और अपने हवाश खो चुके हैं। होश वालों के भी होश उड़ गये हैं, लोगों का जीवन जीना कठिन हो गया है। कवि इस गीत से आशा का संचार करना चाहता है।
व्याख्या : कवि निराला का हृदय मानव की विषम परिस्थितियों को देखकर व्यथित हो गया है। वे कहते हैं कि इस व्यथित हृदय की वेदना को भूलने के लिए, इससे मुक्ति पाने के लिए मुझे गीत गाने दो अर्थात् वेदना की अभिव्यक्ति करने दो जिससे मैं वेदना को भूल सकूँ। जीवन में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, शोषण से जूझते-जूझते होश वालों के भी होश उड़ गये हैं।
भाव यह है कि जिनमें संघर्ष करने की शक्ति थी, जो विषम परिस्थितियों से संघर्ष करने में समर्थ थे, वे भी जिजीविषा शक्ति खो चुके हैं, निराश हो गये हैं। उनका जीना भी कठिन हो गया है। जीवन में जो संबल था, सहारा था उसे भी शोषण तथा अन्याय करने वाले ठगों ने लूट लिया। ठगों के ठेकेदारों के कारण संघर्ष करने वालों की विरोध भरी आवाज भी बन्द हो गई। अब उनमें विरोध करने की शक्ति नहीं रही है। ऐसा लगता है मानो मृत्यु निकट आ रही है।
भाव यह है कि इन विषम परिस्थितियों के कारण जीना कठिन हो गया हैं। लोग किंकर्तव्यविमूढ़ और निराश हो गये हैं। ऐसी स्थिति में कविता ही लोगों के हृदय में आशा का संचार कर सकती है। उनमें चेतना का संचार कर सकती है।
विशेष :
- इस गीत में कवि ने आशावाद का सन्देश दिया है तथा ‘ठग-ठाकुरों……… लूटे’ में शोषण का वर्णन है।
- इस कविता में निराला जी ने मुक्त छन्द का प्रयोग किया है।
- होश के भी होश छूटे’ में व्यंजना शक्ति है।
- ठग-ठाकुरों और गीत-गाने में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा में प्रसाद गुण और प्रवाह है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
2. भर गया है जहर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बुझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।
शब्दार्थ :
- लौ = ज्योति।
- पृथा = पृथ्वी (लक्षणा से)।
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘गीत गाने दो मुझे से अवतरित हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित है।
प्रसंग : इस काव्यांश में कवि ने संसार में व्याप्त शोषण तथा अत्याचार की भयावह स्थिति का यथार्थ चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि निराला कहते हैं कि सारा संसार विषमता से भर गया है। द्वेष और ईर्ष्या का विष जन-जन में व्याप्त हो गया है। विषमता के कारण लोग निराश हो गये हैं और हार मान बैठे हैं अर्थात् जिजीविषा खो बैठे हैं। मनुष्यता हार गई है। विषम परिस्थितियों से संघर्ष करने के कारण लोग जीना नहीं चाहते। वे जीवन का दाँव हार चुके हैं। लोग एक-दूसरे को अपरिचित की तरह देखते हैं। मनुष्य को उसकी सही पहचान नहीं मिल रही है।
पारस्परिक स्नेह, सौहार्द्र का भाव समाप्त हो गया है। उसकी चेतना की लौ बुझ गई है। अतः कवि उस बुझी हुई लौ (जिजीविषा) को पुनः जगाना चाहता है। कवि सांसारिक विषमता को दूर करने और संघर्ष करने के लिए लोगों का आह्वान करता है। कवि गीत गाकर लोगों को प्रेरणा देना चाहता है कि वे जागें और अपने तेज से पृथ्वी की बुझी हुई लौ (जिजीविषा) को पुनः प्रज्वलित करें। कवि क्रान्ति चाहता है, विषाक्त और असंगत व्यवस्था को बदलना चाहता है।
विशेष :
- सार्थक शब्दों का प्रयोग।
- भाषा लाक्षणिक एवं प्रसाद गुण से सम्पन्न।
- लोग-लोगों में अनुप्रास अलंकार।
- ‘भर गया है जहर से, संसार जैसे हार खाकर’ में उपमा अलंकार।
- मुक्त छन्द।
(सरोज स्मृति)
1. देखा विवाह आमूल नवल,
तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।
देखती मुझे तू हँसी मंद,
होठों में बिजली फँसी स्पंद
उर में भर झूली छबि सुन्दर
प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर
तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,
विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग
नत नयनों से आलोक उतर
काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति
मेरे वसंत की प्रथम गीति
शब्दार्थ :
- आमूल = मूल अथवा जड़ तक, पूरी तरह।
- नवल = नया।
- उ = हृदय।
- स्तब्ध = स्थिर, गतिहीन।
- उच्छ्वास = ऊपर खींची गई साँस, आह भरना।
- धीति = प्यास, पान।
- स्पंद = धड़कन।
- नतनयन = झुके हुए नेत्र।
- आलोक = प्रकाश।
सन्दर्भ : उपर्युक्त पद्यांश महाकवि निराला की लम्बी कविता ‘सरोज स्मृति’ से उद्धृत कर हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित किया गया है।
प्रसंग : यह कविता पुत्री सरोज की मृत्यु के पश्चात् उसकी स्मृति में लिखी गई है। वास्तव में यह एक शोक गीत है। . कवि सरोज के विवाह का स्मरण करके दुखी हैं।
व्याख्या : कवि कहता है-पुत्री सरोज! तेरे विवाह में जो आमंत्रित व्यक्ति आए, उन्होंने तेरे एकदम नवीन विवाह को देखा। ऐसा लगा मानो तुझ पर शुभ कलश का जल छिड़का गया हो। उस समय तू मेरी ओर देखकर होठों ही होठों में मन्द-मन्द मुसकराई थी। उस मुसकान को देखकर ऐसा लगा मानो तेरे होठों में बिजली काँप रही थी। उस समय तेरे हृदय में प्रिय पति की छवि झूल रही थी। ऐसा प्रतीत होता था मानों तेरे दाम्पत्य जीवन का सुख तेरे श्रृंगार में मुखरित हो उठा था।
उस समय त मधुर भाव से खिलती हुई दीख रही थी और लगता था जैसे तेरे प्रत्येक अंग में भविष्य के विश्वास का भाव स्थिर हो गया था जो पति के प्रति प्रगाढ़ प्रेम और विश्वास का द्योतक था। लज्जा और संकोच के कारण नम्रता से भरी तेरी आँखों में जो नया प्रकाश उभर आया था वह आँखों से उतरकर होठों पर थर-थर काँप रहा था।
उस समय मुझे तेरी सुशील और धैर्य की मूर्ति के दर्शन हुए। उस सौन्दर्य में मैंने अपने जीवन के प्रथम वासन्ती प्रभाव के दर्शन किये। आशय यह है कि उस सौन्दर्य को देखकर कवि को अपने यौवन की याद आ गई।
विशेष :
- सरोज के विवाह को ‘आमूल नवल’ कहकर उसका भावपूर्ण चित्रण किया गया है।
- एक बिम्ब साकार हो उठा है।
- अंग-अंग, थर-थर-थर में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार तथा नत-नयनों में अनुप्रास अलंकार है।
- वर्णनात्मक शैली है।
- मुक्त छन्द का प्रयोग है।
2. शृंगार, रहा जो निराकार,
रस कविता में उच्छ्वसित-धार
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग
भरता प्राणों में राग-रंग,
रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,
आकाश बदल कर बना मही।
हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन,
कोई थे नहीं, न आमंत्रण
था भेजा गया, विवाह-राग
भर रहा न घर निशि-दिवस जाग;
प्रिय मौन एक संगीत भरा
नव जीवन के स्वर पर उतरा।
शब्दार्थ :
- निराकार = जिसका कोई आकार न हो।
- स्वर्गीया-प्रिया = कवि की स्वर्गवासी पत्नी।
- रति-रूप = कामदेव की पत्नी के रूप जैसी, अत्यन्त सुन्दर।
- मही = पृथ्वी।
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैं। यह कविता ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित की गई है।
प्रसंग : कवि निराला अपनी पुत्री सरोज की मृत्योपरान्त अपने भावों को व्यक्त कर रहे हैं। वे अपनी दिवंगत पत्नी का सौन्दर्य पुत्री के सौन्दर्य में देखते हैं। इन पंक्तियों में उन्होंने पुत्री के विवाह की सादगी का वर्णन किया है।
व्याख्या : कवि कहता है हे पुत्री ! मैंने अपनी कविताओं में सौन्दर्य के जिन निराकार भावों का वर्णन किया है उन्हें मैं आज तुम्हारे सौन्दर्य में देख रहा हूँ। काव्य की रसधारा जो छिपी रहकर भी सहस्र रूप में छलकती रहती है, वहीं शृंगारिक रसधारा मैंने तुम्हारे शृंगार में देखी है। जिस गीत को मैंने अपनी स्वर्गीया पत्नी के साथ गाया था वह मानो आज भी मेरे मन में प्रेम का संगीत भर रहा है। वही तुम्हारे सुन्दर स्वरूप में रति के रूप में प्रकट हो रहा है।
जिस प्रेमगीत को मैंने स्वर्गीया पत्नी के साथ गाया था, वह उच्छ्वसित धारा आज भी मेरे प्राणों में प्रेम का संचार कर रही है। वही रूप-रस आकाश (स्वर्गीय पत्नी) से बदल कर पार्थिव रूप (पुत्री. सरोज) में साकार हो उठा है। पुत्री! तेरा विवाह सम्पन्न हो गया। विवाह में कोई भी रिश्तेदार नहीं आया था क्योंकि उन्हें आमंत्रण नहीं भेजा था। विवाह बड़े साधारण रूप में सम्पन्न हुआ था इसलिए न तो घर में रौनक हुई, न गीत गाये गये और न. रतजगा संगीत सर्वत्र समा गया। इस प्रकार तेरा विवाह सम्पन्न हुआ।
विशेष :
- तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है। भावानुकूल एवं प्रवाहमय भाषा है।
- वर्णनात्मक शैली है।
- मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है।
- पुत्री के विवाह का बिम्ब मूर्तिमान हुआ है।
- राग-रंग, रति-रूप में अनुप्रास अलंकार है।
3. माँ की कुल शिक्षा मैंने दी,
पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,
सोचा मन में, “वह शकुन्तला,
पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।”
कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,
बैठी नानी की स्नेह-गोद।
मामा-मामी का रहा प्यार,
भर जलद धरा को ज्यों अपार,
वे ही सुख-दुख में रहे न्यस्त,
तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त,
वह लता वहीं की, जहाँ कली
तू खिली, स्नेह से हिली, पली,
अन्त भी उसी गोद में शरण
ली, मूंदे दृग वर महामरण!
शब्दार्थ :
- सेज = शय्या, बिस्तर।
- शकुन्तला = कालिदास की नाट्यकृति, ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ की नायिका।
- समोद = हर्ष सहित, खुशी के साथ।
- न्यस्त = निहित।
- जलद = बादल।
- वर = अपनाकर।
सन्दर्भ : ‘सरोज स्मृति’ नामक निराला की कविता से उद्धृत ये पंक्तियाँ इसी शीर्षक वाली कविता के रूप में हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित हैं।
प्रसंग : निराला ने मातृहीन पुत्री का विवाह नयी पद्धति से किया और स्वयं माँ का फर्ज निभाते हुए उसे शिक्षा दी। पुत्री का विवाह करके निराला को सुख हुआ, किन्तु उनको कुछ समय पश्चात् ही पुत्री की मृत्यु का दुःख झेलना पड़ा।
व्याख्या : कवि कहता है-हे पुत्री! विवाह के समय तुम मातृहीन थीं जो एक अभिशाप था। वह भी मुझे झेलना पड़ा। विवाह के पश्चात् माँ ही बेटी को विदा करती है और माँ ही विदाई के समय पुत्री को ससुराल में लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने की शिक्षा देती है। दुर्भाग्य है कि यह फर्ज मुझे ही निभाना पड़ा। तेरी पुष्प शय्या भी मुझे ही सजानी पड़ी। तुझे विदा करते समय मुझे कालिदास की नायिका शकुन्तला की याद आ गई।
किन्तु तुम्हारी और शकुन्तला की स्थिति में अन्तर था। दोनों के संस्कारों में अन्तर था। तुम दोनों मातृहीन थीं। इस कारण शकुन्तला की याद आ गई। उसी क्रम में कण्व ऋषि की याद आई। शकुन्तला को विदा करते समय कण्व ऋषि को जो दुःख हुआ होगा उससे अधिक दुःख मुझे हुआ। हे बेटी! तुमने ससुराल में कुछ समय सुख से व्यतीत किया फिर तुम अपनी नानी के घर आ गईं। तुम्हें नानी, मामा-मामी का अपार स्नेह मिला।
जैसे बादल वर्षा करके धरती की प्यास बुझाते हैं, उसका हित करते हैं; उसी प्रकार नानी, मामा-मामी ने अपने अपार स्नेह से तुमको सुख दिया। उन्होंने सदैव तुम्हारे सुख-दुःख का ध्यान रखा। जिस लता पर तुम कली बनी और फूल बन खिली, वह लता (सरोज की माँ) भी वहीं की थी। जिस नानी के घर तुम पली, बड़ी हुईं उसी नानी की गोद में अपने प्राण त्याग दिये।
विशेष :
- भर जलद धरा को ज्यों अपार’ पंक्ति में सटीक और सार्थक उपमा दी गयी है।
- सार्थक एवं भावानुकूल शब्दों का प्रयोग किया गया है।
- मुक्त छन्द की रचना है।
- विवाहोपरान्त पुत्री की विदाई और मृत्यु का भावात्मक वर्णन है।
- कविता में कवि के व्यक्तिगत जीवन का वर्णन हुआ है।
4. मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
हो इसी कर्म पर वज्रपात
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण!
शब्दार्थ :
- संबल = सहारा।
- वज्रपात = भारी विपत्ति, कठोर।
- तर्पण = देवताओं, ऋषियों और पितरों को तिल या तंदुल मिश्रित जल देने की क्रिया।
- अर्पण = देना, अर्पित करना, चढ़ाना।
सन्दर्भ : कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘सरोज स्मृति’ से ली गई ये पंक्तियाँ इसी शीर्षक वाली कविता के रूप में ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित हैं।
प्रसंग : निराला की लम्बी कविता ‘सरोज स्मृति’ का यह अन्तिम अंश है। यहाँ कवि ने अपने हृदय की सम्पूर्ण करुणा अपनी पुत्री के प्रति अर्पित की है। एक भाग्यहीन पिता के संघर्षमय जीवन और पुत्री के प्रति कुछ न कर पाने का पश्चात्ताप इसमें व्यक्त हुआ है।
व्याख्या : कवि प्रिय पुत्री के प्रति अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हे पुत्री सरोज! तू मुझ भाग्यहीन पिता का एकमात्र सहारा थी। दो वर्ष तक अथवा लम्बे समय तक मैंने तेरी स्मृतियों को अपने हृदय में संजोए रखा, परन्तु अब मैं बहुत व्याकुल हो गया हूँ। अतः उस व्याकुलता को अब प्रकट कर रहा हूँ। मेरे जीवन की कथा दुःख भरी है अर्थात् मैंने जीवन-पर्यन्त दुःख ही झेला है। आज तक जिस दुःख की कथा को प्रकट नहीं कर पाया था, उसे आज इस कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा हूँ।
मानवीय धर्म की रक्षा करते हुए यदि मेरे सम्पूर्ण. कर्मों पर वज्रपात भी हो जाए तो भी मेरा सिर नम्रता से झुका ही रहेगा। मैं अपने जीवन धर्म का निर्वाह करता ही रहूँगा, चाहे मेरे शील सौजन्य रूपी सत्कर्म और धर्म शीतकालीन कमल की पंखुड़ियों की तरह बिखर ही क्यों न जाएँ, मुझे इसकी चिन्ता नहीं है। मैं अपने जीवन के सभी पुण्य कर्मों का फल तुझे श्रद्धांजलि रूप में अर्पित करता हूँ। यही मेरा तर्पण है। यही मेरी तेरे प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
विशेष :
- इन पंक्तियों में कवि का करुणा भाव तथा पुत्री के प्रति स्नेह व्यक्त हुआ है।
- ‘मुझ भाग्यहीन की तू संबल’ पंक्ति में निराला की वेदना साकार हो गई है।
- ‘शीत के-से शतदल’ में उपमा अलंकार है।
- तत्सम प्रधान एवं भावानुकूल भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा में लाक्षणिकता का समावेश है।
- मुक्त छंद का प्रयोग है।