Chapter 7 सौहार्दं प्रकृतेः शोभा

पाठ परिचय : 

आजकल हम यहाँ-वहाँ सभी जगह देखते हैं कि समाज में प्रायः सभी स्वयं को श्रेष्ठ समझते हुए परस्पर एक-दूसरे का तिरस्कार कर रहे हैं। सामान्यतः पारस्परिक व्यवहार में दूसरों के कल्याण के विषय में तो सोच ही नहीं रह गई। सभी स्वार्थ-साधना में ही लगे हुए हैं और जीवन का उद्देश्य ऐसे लोगों के लिए यही बन गया है कि – 
 
“नीचैरनीचैरतिनीचनीचैः सर्वैः उपायैः फलमेव साध्यम” 

अतः समाज में मेल-जोल बढ़ाने की दृष्टि से इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाने के प्रयास को दिखाते हुए प्रकृति माता के माध्यम से अन्त में यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि सभी का यथासमय अपना-अपना महत्त्व है तथा सभी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। अत: हमें परस्पर विवाद करते हुए नहीं अपितु मिल-जुलकर रहना चाहिए, तभी हमारा कल्याण संभव है। 

पाठ के गद्यांशों/श्लोकों के कठिन-शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद – 

(वनस्य दृश्यम् समीपे एवैका नदी अपि वहति।) एकः सिंहः सुखेन विश्राम्यते तदैव एकः वानरः आगत्य तस्य पुच्छं धुनोति। कुद्धः सिंहः तं प्रहर्तुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा वृक्षमारूढः। तदैव अन्यस्मात् वृक्षात् अपरः वानरः सिंहस्य कर्णमाकृष्य पुनः वृक्षोपरि आरोहति एवमेव वानराः वारं वारं सिंहं तुदन्ति। कुद्धः सिंहः इतस्ततः धावति, गर्जति परं किमपि कर्तुमसमर्थः एव तिष्ठति। वानराः हसन्ति वृक्षोपरि च विविधाः पक्षिणः अपि सिंहस्य एतादृशीं दशां दृष्ट्वा हर्षमिश्रितं कलरवं कुर्वन्ति। 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय अपना-अपना महत्त्व बतलाया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में वन में कुछ वानरों द्वारा एक सिंह को प्रताड़ित करने पर क्रुद्ध सिंह द्वारा उन्हें पकड़ने के लिए इधर-उधर दौड़ने तथा गर्जने का वर्णन करते हुए वृक्ष पर बैठे हुए वानरों व अन्य पक्षियों द्वारा सिंह की दशा पर हँसने का चित्रण हुआ है। 

हिन्दी अनुवाद – (वन का दृश्य है, पास में ही एक नदी भी बहती है।) एक शेर सुखपूर्वक विश्राम कर रहा था, तभी एक बन्दर आकर उसकी पूँछ को पकड़ कर घुमा देता है। क्रोधित सिंह उस पर प्रहार करना चाहता है किन्तु बन्दर तो कूदकर वृक्ष पर चढ़ गया। तभी दूसरे वृक्ष से दूसरा बन्दर सिंह के कान को खींच कर पुनः वृक्ष के ऊपर चढ़ जाता है। इसी प्रकार बन्दर बार-बार सिंह को तंग करते हैं। क्रोधित सिंह इधर-उधर दौड़ता है, गर्जता है परन्तु कुछ भी करने में असमर्थ ही रहता है। बन्दर हँसते हैं और वृक्ष के ऊपर विविध पक्षी भी सिंह की इस प्रकार की दशा को देखकर हँसी से युक्त चहचहाहट करते हैं। 

2. निद्राभङ्गदुःखेन वनराजः सन्नपि तुच्छजीवैः आत्मनः एतादृश्या दुरवस्थया श्रान्तः सर्वजन्तून् दृष्ट्वा पृच्छति – 
सिंहः – (क्रोधेन गर्जन्) भोः! अहं वनराजः किं भयं न जायते ? किमर्थं मामेवं तुदन्ति सर्वे मिलित्वा? 
एकः वानरः – यतः त्वं वनराजः भवितुं तु सर्वथाऽयोग्यः। राजा तु रक्षकः भवति परं भवान् तु भक्षकः। अपि च स्वरक्षायामपि समर्थः नासि तर्हि कथमस्मान् रक्षिष्यसि?। 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय अपना-अपना महत्त्व बतलाया गया है। यांश/गद्यांश में सिंह द्वारा स्वयं को वन का राजा बताने तथा एक वानर द्वारा उसे अयोग्य दर्शाने का रोचक वार्तालाप वर्णित है। 

हिन्दी अनुवाद – नींद के टूटने से दुःखी वन का राजा होते हुए भी तुच्छ जीवों से अपनी इस प्रकार की दुर्दशा से थका हुआ (पीड़ित) सिंह सभी जन्तुओं को देखकर पूछता है –

सिंह – (क्रोध से गर्जन करता हुआ) अरे! मैं वन का राजा हूँ, क्या मुझसे भय उत्पन्न नहीं हो रहा है? 
किसलिए सभी मिलकर मुझे इस प्रकार तंग कर रहे हो? 
एक बन्दर – क्योंकि तुम वन का राजा होने के लिए सर्वथा अयोग्य हो। राजा तो रक्षक होता है परन्तु आप तो भक्षक हैं। और भी तुम अपनी रक्षा करने में भी समर्थ नहीं हो, तब किस प्रकार हमारी रक्षा करोगे? 

3. अन्यः वानरः – किं न श्रुता त्वया पञ्चतन्त्रोक्तिः – 
यो न रक्षति वित्रस्तान् पीड्यमानान्परैः सदा। 
जन्तून् पार्थिवरूपेण स कृतान्तो न संशयः॥ 
काकः – आम् सत्यं कथितं त्वया-वस्तुतः वनराजः भवितुं तु अहमेव योग्यः। 
पिकः – (उपहसन्) कथं त्वं योग्यः वनराजः भवितुं, यत्र तत्र का-का इति कर्कशध्वनिना 
वातावरणमाकुलीकरोषि। न रूपं न ध्वनिरस्ति।
कृष्णवर्ण, मेध्यामध्यभक्षकं त्वां कथं वनराजं मन्यामहे वयम् ? 

श्लोकस्य अन्वयः – यः सदा परैः पीड्यमानात् वित्रस्तान् जन्तून् पार्थिवरूपेण न रक्षति, सः कृतान्तः, न। संशयः। 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में वानर, कौआ तथा कोयल के वार्तालाप में स्वयं को श्रेष्ठ तथा दूसरे को हीन बतलाते हुए रोचक संवाद किया गया है। 

हिन्दी अनुवाद – 
दूसरा बन्दर – क्या तुमने पञ्चतन्त्र की उक्ति को नहीं सुना है –
जो राजा के रूप में हमेशा दूसरों से पीड़ित व विशेषरूप से डरे हुए प्राणियों की रक्षा नहीं करता है, वह निस्सन्देह साक्षात् यमराज है। 
कौआ – हाँ तुमने सत्य कहा है – वास्तव में वन का राजा होने के लिए तो मैं ही योग्य हूँ।
कोयल – (उपहास करते हुए) तुम वन का राजा होने के लिए किस प्रकार योग्य हो, यहाँ-वहाँ ‘का-का’ इस प्रकार कर्कश ध्वनि के द्वारा वातावरण को व्याकुल कर देते हो। न रूप है और न ही आवाज। काले वर्ण वाले और भक्ष्य-अभक्ष्य पदार्थ खाने वाले तुमको कैसे हम वन का राजा माने?

4. काकः – अरे! अरे! किं जल्पसि? यदि अहं कृष्णवर्णः तर्हि त्वं किं गौराङ्गः ? अपि च विस्मयते किं यत् मम सत्यप्रियता तु जनानां कृते 
उदाहरणस्वरूपा – ‘अनृतं वदसि चेत् काकः दशेत्’ इति प्रकारेण। अस्माकं परिश्रमः ऐक्यं च विश्वप्रथितम् अपि च काकचेष्टः विद्यार्थी एव आदर्शच्छात्रः मन्यते। 
पिकः – अलम् अलम् अतिविकत्थनेन। किं विस्मयते यत् – 
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।
वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः॥ 

श्लोकस्य अन्वयः-काकः कृष्णः (भवति), पिकः (अपि) कृष्णः (भवति), पिक-काकयोः कः भेदः (अस्ति)? वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः, पिकः पिकः (भवति)। 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस नाट्यांश में स्वयं को एक-दूसरे से श्रेष्ठ बतलाते हुए कौए तथा कोयल का रोचक वार्तालाप वर्णित है। 

हिन्दी अनुवाद – 
कौआ – अरे! अरे! क्या बकवास (व्यर्थ की बात) कर रहे हो? यदि मैं काले रंग का हूँ तो तुम क्या गोरे (सफेद) शरीर वाले हो? और भी क्या तुम भूल गये हो कि मेरी सत्यप्रियता तो लोगों के लिए उदाहरणस्वरूप है-‘यदि झूठ बोलोगे तो कौआ काटेगा”-इस प्रकार से। हमारा परिश्रम और एकता संसार में प्रसिद्ध है, और भी कौए की चेष्टा वाला विद्यार्थी ही आदर्श छात्र माना जाता है। 
कोयल – बस, बस डींगें मारने से। क्या भूल रहे हो कि कौआ काला होता है, कोयल भी काली होती है फिर कोयल और कौए में क्या भेद है? वसन्त का समय आने पर कौआ कौआ होता है और कोयल कोयल होती है। 

5. काकः – रे परभृत्! अहं यदि तव संततिं न पालयामि तर्हि कृत्र स्युः पिकाः? अतः अहम् एव करुणापरः पक्षिसम्राट् काकः। 
गजः – समीपतः एवागच्छन् अरे! अरे! सर्वां वार्ता शृण्वन्नेवाहम् अत्रागच्छम्। अहं विशालकायः, बलशाली, पराक्रमी च। सिंहः वा स्यात् अथवा अन्यः कोऽपि। वन्यपशून् तु तुदन्तं जन्तुमहं स्वशुण्डेन पोथयित्वा मारयिष्यामि। किमन्यः कोऽप्यस्ति एतादृशः पराक्रमी। अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय। 
वानरः – अरे! अरे! एवं वा (शीघ्रमेव गजस्यापि पुच्छं विधूय वृक्षोपरि आरोहति।) 

कठिन शब्दार्थ :

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्दै प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में कौए, हाथी तथा बन्दर का स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए रोचक संवाद वर्णित है। 

हिन्दी अनुवाद :

कौआ – अरे कोयल ! मैं यदि तुम्हारी सन्तान का पालन-पोषण नहीं करूँगा तो कोयल कहाँ होंगे? इसलिए मैं ही कौआ करुणापरायण पक्षियों का राजा हूँ 
हाथी – पास से ही आता हुआ-अरे! अरे! सारी बात सुनते हुए ही मैं यहाँ आया हूँ। मैं विशाल शरीर वाला, बलशाली और पराक्रमी हूँ। सिंह हो अथवा अन्य कोई भी। जंगल के पशुओं को तंग करने वाले जीव को मैं अपनी सूंड से पटक-पटक कर मार डालूँगा। क्या दूसरा कोई भी ऐसा पराक्रमी है? इसलिए मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ। 
बन्दर – अरे! अरे! ऐसा है (शीघ्र ही हाथी की भी पूँछ को खींच कर पेड़ के ऊपर चढ़ जाता है।) 

6. (गजः तं वृक्षमेव स्वशुण्डेन आलोडयितुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा अन्यं वृक्षमारोहति। एवं गजं वृक्षात् वृक्षं प्रति धावन्तं दृष्ट्वा सिंहः अपि हसति वदति च।) 
सिंहः – भोः गज! मामप्येवमेवातुदन् एते वानराः। 
वानरः – एतस्मादेव तु कथयामि यदहमेव योग्यः वनराजपदाय येन विशालकायं पराक्रमिणं, भयंकरं चापि सिहं गजं वा पराजेतुं समर्था अस्माकं जातिः। 
अतः वन्यजन्तूनां रक्षायै वयमेव क्षमाः। 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक वार्तालाप द्वारा स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझने का तथा प्रकृति माता द्वारा सभी का यथासमय महत्त्व दर्शाने का प्रेरक वर्णन किया गया है। इस अंश में हाथी, सिंह, वानर आदि के संवाद का रोचक वर्णन है। 

हिन्दी अनुवाद – (हाथी उस वृक्ष को ही अपनी सूंड से उखाड़ना चाहता था, किन्तु बन्दर कूद कर दूसरे पेड़ पर चढ़ जाता है। इस प्रकार एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष की ओर हाथी को दौड़ता हुआ देखकर सिंह भी हँसता है और कहता है।) 

सिंह – हे हाथी! मुझे भी इसी प्रकार ये बन्दर तंग कर रहे थे। 
बन्दर – इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ जिससे हमारी जाति (वानर जाति) विशाल शरीर वाले, पराक्रमी और भयंकर सिंह अथवा हाथी को भी पराजित करने में समर्थ है। इसलिए जंगल के जीवों की रक्षा करने में हम ही सक्षम हैं। 

7. (एतत्सर्वं श्रुत्वा नदीमध्य स्थितः एकः बकः) 
बकः – अरे! अरे! मां विहाय कथमन्यः कोऽपि राजा भवितुमर्हति अहं तु शीतले जले बहुकालपर्यन्तम् अविचलः ध्यानमग्नः स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां रक्षायाः उपायान् चिन्तयिष्यामि, योजना निर्मीय च स्वसभायां विविधपदमलंकुर्वाणैः जन्तुभिश्च मिलित्वा रक्षोपायान् क्रियान्वितान् कारयिष्यामि अतः अहमेव वनराजपदप्राप्तये योग्यः। 
मयूरः – (वृक्षोपरितः-साट्टहासपूर्वकम्) विरम विरम आत्मश्लाघायाः किं न जानासि यत् यदि न स्यान्नरपतिः सम्यङ्नेता ततः प्रजा। अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव॥ को न जानाति तव ध्यानावस्थाम्। ‘स्थितप्रज्ञ’ इति व्याजेन वराकान् मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयसि। धिक् त्वाम्। तव कारणात् तु सर्वं पक्षिकुलमेवावमानितं जातम्। श्लोकस्य अन्वयः-यदि नरपतिः सम्यक् नेता न स्यात्, ततः इह प्रजा अकर्णधारा नौः इव जलधौ विप्लवेत्।
 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक वार्तालाप द्वारा स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझने का तथा प्रकृति माता द्वारा. सभी का यथासमय महत्त्व दर्शाने का प्रेरक वर्णन किया गया है। इस अंश में दूसरों से स्वयं को श्रेष्ठ बतलाते हुए बगुले तथा मयूर का रोचक वार्तालाप वर्णित है। 

हिन्दी अनुवाद – (यह सब सुनकर नदी के बीच में स्थित एक बगुला) 
बगुला – अरे ! अरे! मुझे छोड़कर कैसे दूसरा कोई भी राजा हो सकता है। मैं तो शीतल जल में बहुत समय तक स्थिर रहता हुआ, ध्यानमग्न स्थितप्रज्ञ के समान स्थित होकर सभी की रक्षा के उपायों को सोचूँगा और योजना का निर्माण करके अपनी सभा में विभिन्न पदों को सुशोभित करने वाले जीवों के साथ मिलकर रक्षा के उपायों को क्रियान्वित कराऊँगा। इसलिए मैं ही वनराज पद की प्राप्ति के लिए योग्य हूँ।

मयूर – (वृक्ष के ऊपर से ठहाका मारते हुए) रुको रुको आत्मप्रशंसा करने से, क्या नहीं जानते हो कि यदि राजा सही नेतृत्व करने वाला नहीं होता है तो यहाँ प्रजा उसी प्रकार नष्ट हो जाती है जिस प्रकार समुद्र में बिना मल्लाह/चालक वाली नाव (नौका) डूब जाती है। तुम्हारी ध्यान-अवस्था को कौन नहीं जानता है। ‘स्थितप्रज्ञ’ इस बहाने से बेचारे मछलियों को कपट से पकड़ कर क्रूरतापूर्वक खाते हो। तुमको धिक्कार है। तुम्हारे कारण तो सम्पूर्ण पक्षि- समुदाय ही अपमानित हो गया है। 

8. वानरः – (सगर्वम्) अतएव कथयामि यत् अहमेव योग्यः वनराजपदाय। शीघ्रमेव मम राज्याभिषेकाय तत्पराः भवन्तु सर्वे वन्यजीवाः।। 
मयूरः – अरे वानर! तूष्णीं भव। कथं त्वं योग्यः वनराजपदाय? पश्यतु पश्यतु मम शिरसि राजमुकुटमिव शिखां स्थापयता विधात्रा एवाहं पक्षिराजः कृतः अतः वने निवसन्तं माम् वनराजरूपेणापि द्रष्टुं सज्जाः भवन्तु अधुना यतः कथं कोऽप्यन्यः विधातुः निर्णयम् अन्यथाकर्तु क्षमः। 
काकः – (सव्यङ्ग्यम् ) अरे अहिभुक्। नृत्यातिरिक्तं का तव विशेषता यत् त्वां वनराजपदाय योग्यं मन्यामहे वयम्। 
मयूरः – यतः मम नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना। पश्य! पश्य! मम पिच्छानामपूर्वं सौंदर्यम् (पिच्छानुद्घाट्य नृत्यमुद्रायां स्थितः सन्) न कोऽपि त्रैलोक्ये मत्सदृशः सुन्दरः। वन्यजन्तूनामुपरि आक्रमणं कर्तारं तु अहं स्वसौन्दर्येण नृत्येन च आकर्षितं कृत्वा वनात् बहिष्करिष्यामि। अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय। 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक वार्तालाप के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास का तथा प्रकृति-माता द्वारा सभी का यथासमय महत्त्व का प्रेरक वर्णन हुआ है। इस अंश में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाते हुए वानर, मयूर व कौए का रोचक वार्तालाप वर्णित है। 

हिन्दी अनुवाद –

बन्दर – (गर्वपूर्वक) इसीलिए कहता हूँ कि मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ। शीघ्र ही मेरे राज्याभिषेक के लिए सभी वन्यजीव तत्पर हो जावें।। 
मयूर – अरे बन्दर! चुप रहो। तुम कैसे वनराज पद के लिए योग्य हो? देखो, देखो, मेरे शिर पर राजमुकुट के समान शिखा (कलंगी) को स्थापित करने वाले विधाता के द्वारा ही मैं पक्षिराज बनाया गया हूँ। इसलिए वन में निवास करते हुए अब मुझको वनराज के रूप में भी देखने के लिए तैय्यार हो जाओ। क्योंकि कोई भी अन्य विधाता के निर्णय को बदलने में समर्थ नहीं है। 
कौआ – (व्यंग्यपर्वक) अरे सर्प को खाने वाले मौर! नाचने के अलावा तम्हारी क्या विशेषता है कि हम तुमको वनराज पद के लिए योग्य मानें? 
मयूर – क्योंकि मेरा नाचना तो प्रकृति की आराधना (पूजा) है। देखो! देखो! मेरे पंखों का अपूर्व सौन्दर्य (पंखों को खोलकर नाचने की मुद्रा में स्थित होता हुआ)। कोई भी तीनों लोकों में मेरे समान सुन्दर नहीं है। वन के जीवों के ऊपर आक्रमण करने वाले को तो मैं अपने सौन्दर्य और नृत्य से आकर्षित करके वन से बाहर कर दूंगा। इसलिए मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ। 

9. (एतस्मिन्नेव काले व्याघ्रचित्रको अपि नदीजलं पातुमागतौ एतं विवादं शृणुतः वदतः च) 
व्याघ्रचित्रको – अरे किं वनराजपदाय सुपात्रं चीयते ? 
एतदर्थं तु आवामेव योग्यौ। यस्य कस्यापि चयनं कुर्वन्तु सर्वसम्मत्या। 
सिंहः – तूष्णीं भव भोः। युवामपि मत्सदृशौ भक्षकौ न तु रक्षको। एते वन्यजीवाः भक्षकं रक्षकपदयोग्यं न मन्यन्ते अतएव विचारविमर्शः प्रचलति। 
बकः – सर्वथा सम्यगुक्तम् सिंहमहोदयेन। वस्तुतः एव सिंहेन बहुकालपर्यन्तं शासनं कृतम् परमधुना तु कोऽपि पक्षी एव राजेति निश्चेतव्यम् अत्र तु संशीतिलेशस्यापि अवकाशः एव नास्ति। 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक वार्तालाप के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास का तथा प्रकृति-माता द्वारा सभी का यथासमय महत्त्व का प्रेरक वर्णन हुआ है। इस अंश में दूसरों से स्वयं को श्रेष्ठ एवं वनराज बनने के योग्य बतलाते हुए बाघ, चीता, सिंह और बगुला का परस्पर में रोचक वार्तालाप वर्णित है। 

हिन्दी अनुवाद – (इसी समय बाघ और चीता भी नदी का जल पीने के लिए आये। इस विवाद को सुनते हैं और बोलते हैं।) 
बाघ और चीता – अरे! क्या वनराज पद के लिए योग्य पात्र को खोजा जा रहा है? 
इसके लिए तो हम दोनों ही योग्य हैं। जिस किसी का भी सर्वसम्मति से चयन कीजिए। 
सिंह – चुप रहो। तुम दोनों भी मेरे समान भक्षक हो, न कि रक्षक। ये वन के जीव भक्षक को रक्षक पद के योग्य नहीं मानते हैं, इसीलिए विचार-विमर्श चल रहा है। 
बगुला – सिंह महोदय के द्वारा सर्वथा उचित कहा गया है। वास्तव में सिंह के द्वारा बहुत समय तक शासन किया गया है, परन्तु अब कोई भी पक्षी ही राजा बने, ऐसा निश्चित किया जाना चाहिए, इसमें जरा से भी सन्देह का अवकाश ही नहीं है। 

10. सर्वे पक्षिणः – (उच्चैः)-आम् आम्-कश्चित् खगः एव वनराजः भविष्यति इति। (परं कश्चिदपि खगः आत्मानं विना नान्यं कमपि अस्मै पदाय योग्यं चिन्तयन्ति तर्हि कथं निर्णयः भवेत् तदा तैः सर्वैः गहननिद्रायां निश्चिन्तं स्वपन्तम् उलूकं वीक्ष्य विचारितम् यदेष: आत्मश्लाघाहीनः पदनिर्लिप्तः उलूको एवास्माकं राजा भविष्यति। परस्परमादिशन्ति च तदानीयन्तां नृपाभिषेकसम्बन्धिनः सम्भाराः इति।) 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखलाने का तथा प्रकृति-माता द्वारा सभी का यथासमय महत्त्व बतलाने का प्रेरक वर्णन हुआ है। इस अंश में वन का राजा बनने हेतु सभी पक्षियों द्वारा उल्लू को ही वनराज बनाने का निर्णय लेने का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी अनुवाद :
सभी पक्षी – (जोर से) हाँ हाँ, कोई पक्षी ही वन का राजा होगा। (परन्तु कोई भी पक्षी स्वयं के अलावा अन्य किसी को भी इस पद के लिए योग्य मानता है, फिर कैसे निर्णय होना चाहिए? तब उन सभी ने गहरी नींद में निश्चिन्त होकर सोते हुए उल्लू को देखकर विचार किया कि यह आत्मप्रशंसा से रहित, पद के लोभ से रहित उल्लू ही हमारा राजा होगा। और आपस में आदेश देते हैं कि राजा के अभिषेक से सम्बन्धित सामग्रियाँ लाई जावें।) 

11. सर्वे पक्षिणः सज्जायै गन्तुमिच्छन्ति तर्हि अनायास एव – 
काकः – (अद्वाहासपूर्णेन-स्वरेण)-सर्वथा अयुक्तमेतत् यन्मयुर-हंस-कोकिल-चक्रवाक शुक – सारसादिषु पक्षिप्रधानेषु विद्यमानेषु दिवान्धस्यास्य करालवक्त्रस्याभिषेकार्थं सर्वे सज्जाः। पूर्णं दिनं यावत् निद्रायमाणः एषः कथमस्मान् रक्षिष्यति। वस्तुतस्तु 
स्वभावरौद्रमत्युग्रं क्रूरमप्रियवादिनम्। 
उलूकं नृपतिं कृत्वा का नु सिद्धिर्भविष्यति॥ 

श्लोकस्य अन्वयः – स्वभावरौद्रम्, अत्युग्रम्, क्रूरम्, अप्रियवादिनम् उलूकं नृपतिं कृत्वा नु का सिद्धिः भविष्यति?

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखलाने का तथा प्रकृति-माता द्वारा सभी का यथासमय महत्त्व बतलाने का प्रेरक वर्णन हुआ है। इस अंश में सभी पक्षियों द्वारा उल्लू को वन का राजा बनाये जाने हेतु लिये गये निर्णय का कौए द्वारा दृढ़ता से विरोध किया गया है। 

हिन्दी अनुवाद – सभी पक्षी तैय्यारी करने के लिए जाना चाहते हैं, तभी अचानक ही 
कौआ – (अट्टहासपूर्ण स्वर से)-सभी तरह से यह उचित नहीं है कि मोर, हंस, कोयल, चकवा, तोता, सारस आदि प्रधान पक्षियों के होते हुए दिन के अन्धे और भयंकर मुख वाले उल्लू का राज्याभिषेक करने के लिए सभी तत्पर हो। पूरे दिन सोता हुआ यह (उल्लू) किस प्रकार हमारी रक्षा करेगा। वास्तव में तो स्वभाव से ही रौद्र, अत्यन्त उग्र, क्रूर, अप्रिय बोलने वाले उल्लू को राजा बनाकर क्या सफलता प्राप्त होगी? 

12. (ततः प्रविशति प्रकृतिमाता) (सस्नेहम्) भोः भोः प्राणिनः। यूयम् सर्वे एव मे सन्ततिः। कथं मिथः कलहं कुर्वन्ति। वस्तुतः सर्वे वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः। सदैव स्मरत 
ददाति प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते योजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्॥ 
(सर्वे प्राणिनः समवेतस्वरेण) 
मातः! कथयति तु भवती सर्वथा सम्यक् परं वयं भवतीं न जानीमः। भवत्याः परिचयः कः? 

श्लोकस्य अन्वयः-ददाति, प्रतिगृह्णाति, गुह्यम् आख्याति, पृच्छति, भुङ्क्ते, योजयते च, प्रीतिलक्षणं षड्विधम् एव (भवति)। 

कठिन शब्दार्थ :
 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखलाने का तथा प्रकृति माता द्वारा सभी का यथासमय महत्त्व बतलाने का प्रेरक वर्णन हुआ है। इस अंश में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दर्शाते हुए तथा कलह करते हुए पशु-पक्षियों को देखकर प्रकृति-माता के आने का एवं प्रेरणास्पद उपदेश दिए जाने का वर्णन हुआ है। 

हिन्दी अनुवाद – (तत्पश्चात् प्रकृति-माता प्रवेश करती है) – (स्नेहपूर्वक) हे प्राणियों! तुम सभी मेरी सन्तान हो। क्यों आपस में कलह कर रहे हो? वास्तव में सभी एक दूसरे पर आश्रित हैं। हमेशा याद रखो – 
प्रीति (प्रेम) के लक्षण छः प्रकार के ही हैं-देता है, लेता है, रहस्य कहता है, कुशलता पूछता है, साथ भोजन करता है और अच्छे कार्यों में लगाता है। 
(सभी प्राणी इकट्ठे स्वर से) 
माता! आप कहती तो सर्वथा उचित हैं, परन्तु हम आपको जानते नहीं हैं। आपका क्या परिचय है? 

13. प्रकृतिमाता – अहं प्रकृतिः युष्माकं सर्वेषां जननी? यूयं सर्वे एव मे प्रियाः। सर्वेषामेव मत्कृते महत्त्वं विद्यते यथासमयम् न तावत् कलहेन समयं वृथा यापयन्तु अपितु मिलित्वा एव मोदध्वं जीवनं च रसमयं कुरुध्वम्। तद्यथा कथितम् – 
प्रजासुखे सुखं राज्ञः, प्रजानां च हिते हितम्। 
नात्मप्रियं हितं राज्ञः, प्रजानां तु प्रियं हितम्॥ 
श्लोकस्य अन्वयः – प्रजासुखे राज्ञः सुखम्, प्रजानां हिते च (राज्ञः) हितम्। आत्मप्रियं राज्ञः हितं न, प्रजानां प्रियं तु (राज्ञः) हितम्। 

कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्दै प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ। से उद्धत है। इस अंश में वन के पश-पक्षियों द्वारा स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दर्शाते हए परस्पर में कलह किये जाने पर . वहाँ प्रकृति-माता के आगमन का तथा उसके द्वारा सभी का यथासमय महत्त्व होने एवं परस्पर में सौहार्द रखने की प्रेरणा दी गई है। 

हिन्दी अनुवाद – प्रकृति-माता-मैं प्रकृति तुम सब की माता हूँ। तुम सभी मुझे प्रिय हो। सभी का ही मेरे लिए यथा-समय महत्त्व है। कलह (झगड़ा) करने में समय को व्यर्थ ही व्यतीत न करो, अपितु मिलकर ही प्रसन्न रहो और जीवन को रसमय करो। जैसा कि कहा भी गया है 

प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा के हित में ही राजा का हित है। अपना ही प्रिय करने में राजा का हित नहीं है, प्रजाजनों का प्रिय करने में ही राजा का हित (भला) है। 

14. अपि च – 
अगाधजलसञ्चारी न गर्वं याति रोहितः। 
अगुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुफुरायते॥ 
अतः भवन्तः सर्वेऽपि शफरीवत् एकैकस्य गुणस्य चर्चा विहाय मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय वनरक्षायै च प्रयतन्ताम्। 
सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति मिलित्वा दृढसंकल्पपूर्वकं च गायन्ति – 
प्राणिनां जायते हानिः परस्परविवादतः। 
अन्योन्यसहयोगेन लाभस्तेषां प्रजायते ॥ 

(i) श्लोकस्य अन्वयः-अगाधजलसञ्चारी रोहितः गर्वं न याति। (परन्तु) अङ्गुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुफुरायते। 
(ii) श्लोकस्य अन्वयः-परस्परविवादतः प्राणिनां हानिः जायते। अन्योन्यसहयोगेन तेषां लाभः प्रजायते।
 
कठिन शब्दार्थ : 

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस अंश में वन के पशु-पक्षियों द्वारा स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दर्शाते हुए परस्पर में कलह किये जाने पर वहाँ प्रकृति-माता के आगमन का तथा उसके द्वारा सभी का यथासमय महत्त्व होने एवं परस्पर में सौहार्द रखने की प्रेरणा दी गई है। 

हिन्दी अनुवाद – और भी अथाह जलधारा में संचरण करने वाली रोहित नाम बड़ी मछली गर्व (अभिमान) नहीं करती है, परन्तु अँगूठे के बराबर जल में अर्थात् थोड़े से जल में छोटी सी मछली फड़कती रहती है। 

इसलिए आप सभी छोटी मछली (शफरी) के समान एक-एक के गुण की चर्चा छोड़कर व मिलकर प्रकृति के सौन्दर्य के लिए और वन की रक्षा के लिए प्रयत्न कीजिए। 

सभी प्रकृति-माता को प्रणाम करते हैं और मिलकर दृढ़ संकल्पपूर्वक गाते हैं आपस में विवाद करने से प्राणियों की हानि होती है। एक-दूसरे के सहयोग से उनका (प्राणियों का) लाभ होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

0:00
0:00

casibom-casibom-casibom-casibom-sweet bonanza-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-aviator-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-sweet bonanza-bahis siteleri-bahis siteleri-bahis siteleri-bahis siteleri-bahis siteleri-bahis siteleri-bahis siteleri-bahis siteleri-bahis siteleri-bahis siteleri-casino siteleri-casino siteleri-casino siteleri-casino siteleri-casino siteleri-casino siteleri-casino siteleri-casino siteleri-casino siteleri-casino siteleri-deneme bonusu-deneme bonusu-deneme bonusu-deneme bonusu-deneme bonusu-deneme bonusu-deneme bonusu-deneme bonusu veren siteler-deneme bonusu veren siteler-deneme bonusu veren siteler-deneme bonusu veren siteler-deneme bonusu veren siteler-deneme bonusu veren siteler-deneme bonusu veren siteler-deneme bonusu veren yeni siteler-deneme bonusu veren yeni siteler-deneme bonusu veren yeni siteler-deneme bonusu veren yeni siteler-deneme bonusu veren yeni siteler-deneme bonusu veren yeni siteler-deneme bonusu veren yeni siteler-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-yeni slot siteleri-deneme bonusu veren siteler-deneme bonusu veren siteler-bahis siteleri-bahis siteleri-güvenilir bahis siteleri-aviator-sweet bonanza-sweet bonanza-slot siteleri-slot siteleri-slot siteleri-güvenilir casino siteleri-güvenilir casino siteleri-güvenilir casino siteleri-güvenilir casino siteleri-güvenilir casino siteleri-güvenilir casino siteleri-lisanslı casino siteleri-lisanslı casino siteleri-lisanslı casino siteleri-lisanslı casino siteleri-lisanslı casino siteleri-lisanslı casino siteleri-deneme bonusu-