Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध कथाग्रन्थ ‘पञ्चतन्त्रम्’ के तृतीय तन्त्र ‘काकोलूकीयम्’ से संकलित है। पञ्चतंन्त्र के मूल लेखक विष्णु शर्मा हैं। इसमें पाँच खण्ड हैं जिन्हें ‘तन्त्र’ कहा गया है। इनमें गद्य-पद्य रूप में कथाएँ दी गयी हैं जिनके पात्र मुख्यतः पशु-पक्षी हैं।
पाठ के गद्यांशों का हिन्दी-अनुवाद एवं पठितावबोधनम् –
1. कस्मिंश्चित् वने ……………………… तिष्ठामि” इति।
- कठिन-शब्दार्थ :
- कदाचित् = किसी समय।
- इतस्ततः = इधर-उधर।
- परिभ्रमन् = घूमता हुआ।
- क्षुधार्तः = (क्षुधा + आर्तः) भूख से व्याकुल।
- आहारं = भोजन।
- महती = विशाल ।
- निगूढो भूत्वा = छिपकर।
हिन्दी अनुवाद – किसी वन में खरनखर नामक सिंह रहता था। उसने किसी समय इधर-उधर घूमते हुए भूख से व्याकुल होकर कुछ भी भोजन (आहार) प्राप्त नहीं किया। इसके बाद सूर्यास्त के समय (सायंकाल) एक विशाल गुफा को देखकर उसने सोचा-“निश्चय ही इस गुफा में रात को कोई भी जीव आता है। इसलिए यहीं पर छिपकर मैं बैठ जाता हूँ।”
पठितावबोधनम् –
निर्देश:-उपर्युक्तं गद्यांशं पठित्वा प्रदत्तप्रश्नानां यथानिर्देशम् उत्तराणि लिखत प्रश्नाः
- सिंहस्य किन्नाम आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
- गुहायां कदा कोऽपि जीवः आगच्छति? (एकपदेन उत्तरत)
- क्षुधातः सिंहः कुत्र किञ्चिदपि न प्राप्तवान्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
- ‘इतस्ततः’ इति पदस्य सन्धिच्छेदं कुरुत।
उत्तराणि :
- खरनखरः।
- रात्रौ।
- क्षुधार्तः सिंहः वने किञ्चिदपि आहारं न प्राप्तवान्?
- इत: + ततः।
2. एतस्मिन् अन्तरे ……………………………. करवाणि?”
एवं विचिन्त्य …………………………………….. बिलं यास्यामि इति।”
कठिन-शब्दार्थ :
- समागच्छत् = आया।
- सिंहपदपद्धति = शेर के पैरों के चिह्न।
- बहिरागता = बाहर आते हुए।
- विनष्टोऽस्मि = नष्ट हो गया हूँ।
- तर्कयामि = सोचता हूँ।
- विचिन्त्य = विचार करके।
- दूरस्थः = दूर स्थित होकर।
- रवम् = आवाज।
- समयः = शर्त।
हिन्दी अनुवाद – इसी बीच में गुफा का स्वामी दधिपुच्छ नामक गीदड़ आ गया। और वह जैसे ही देखता है कि तभी उसे शेर के पैरों के चिह्न गुफा के अन्दर प्रवेश करते हुए दिखाई दिए और बाहर आते हुए नहीं। गीदड़ ने सोचा “अहो ! मैं तो नष्ट हो गया (मर गया) हूँ। अवश्य ही इस गुफा में शेर है, ऐसा मैं सोच रहा हूँ। इसलिए अब मैं क्या करूँ?” इस प्रकार विचार करके वह दूर स्थित होकर आवाज करने लगा “हे गुफा! हे गुफा! क्या तुम्हें याद नहीं है कि मेरे द्वारा तुम्हारे साथ शर्त की गई थी कि जब मैं बाहर से वापस आऊँगा, तब तुम मुझे बुलाओगी? यदि तुम मुझे नहीं बुलाओगी तो मैं दूसरी गुफा में चला जाऊँगा।”
पठितावबोधनम् –
प्रश्न 1.
(i) गुहायां प्रविष्टा का दृश्यते स्म? (एकपदेन उत्तरत)
(i) बिले कः अस्ति? (एकपदेन उत्तरत)
(iii) गुहाया? स्वामी कः आसीत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(iv) स च यावत् पश्यति-‘ इत्यत्र ‘सः’ सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(i) सिंहपदपद्धतिः।
(ii) सिंहः।
(iii) गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः आसीत्।
(iv) शृगालाय। अथवा
प्रश्न 2.
(i) शृगालः दूरस्थः किं कर्तुम् आरब्धः? (एकपदेन उत्तरत)
(ii) बिलेन सहः कः समयः कृतोऽस्ति? (एकपदेन उत्तरत)
(ii) शृगालः कुत्र यास्यति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(iv) प्रत्यागमिष्यामि’ इति पदे कः लकार:?
उत्तराणि-
(i) रवम्।
(ii) शृगालः।
(iii) शृगालः द्वितीयं बिलं प्रति यास्यति।
(iv) लृट्लकारः।
3. अथ एतच्छ्रुत्वा …………………………….. किञ्चित् वदति।”
अथवा साध्विदम् उच्यते –
भयसन्त्रस्तमनसां …………………………………………. भवेत्॥
अन्वयः – भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः वाणी च न प्रवर्तन्ते, वेपथुः च अधिकः भवेत्।
कठिन-शब्दार्थ :
- एतच्छ्रुत्वा = यह सुनकर।
- साध्विदम् = यह ठीक ही।
- उच्यते = कहा गया है।
- समाह्वानम् = आह्वान/बुलाना।
- भयसन्त्रस्तमनसाम् = डरे हुए मन वालों का।
- हस्तपादादिकाः = हाथ-पैर आदि से सम्बन्धित।
- वेपथुः = कम्पन।
हिन्दी अनुवाद – इसके बाद यह (गीदड़ की आवाज) सुनकर शेर ने सोचा-“निश्चय ही यह गुफा अपने स्वामी को हमेशा बुलाती होगी, परन्तु मेरे भय से कुछ भी नहीं बोल रही है।”
अथवा यह ठीक ही कहा गया है कि –
श्लोक का भावार्थ – डरे हुए मन वाले के हाथ-पैर आदि से सम्बन्धित क्रियाएँ रुक जाती हैं, उसकी वाणी भी रुक जाती है और उसके शरीर में कम्पन भी अधिक होने लगता है। अर्थात् भयभीत प्राणी की स्थिति देखकर ही उसके भय का पता चल जाता है।
4. तहम् अस्य आह्वान ……………………………. इममपठत्
अनागतं यः ……………………………………………….. मे श्रुता॥
अन्वयः – यः अनागतं कुरुते, सः शोभते। यः अनागतं न करोति, सः शोच्यते। अत्र वने संस्थस्य (मे) जरा समागता, (परम्) कदापि बिलस्य वाणी मे न श्रुता।
कठिन-शब्दार्थ :
- तदहम् (तत् + अहम्) = इसलिए मैं।
- भोज्यम् = भोजन योग्य (पदार्थ)।
- इत्थम् = इस प्रकार।
- विचार्य = विचार करके।
- पलायमानः = भागते हुए।
- अनागतम् = नहीं आए हुए (दु:ख) को।
- शोच्यते = चिन्तनीय होता है।
- संस्थस्य = रहते हुए का।
- जरा = बुढ़ापा।
हिन्दी अनुवाद – इसलिए मैं इसका (गीदड़ का) आह्वान करता हूँ। इस प्रकार वह (गुफा) में प्रवेश करके मेरा भोजनयोग्य (पदार्थ) हो जायेगा। इस प्रकार विचार करके शेर ने एकाएक गीदड़ का आह्वान किया। शेर की उच्च गर्जना की प्रतिध्वनि के द्वारा उस गुफा ने उच्च स्वर से गीदड़ का आह्वान किया। इससे अन्य पशु भी भयभीत हो गये । गीदड़ भी वहाँ से दूर भागता हुआ यह पढ़ने लगा
श्लोक का भावार्थ – नहीं आए हुए कष्ट का जो पहले ही निराकरण करता है वह सुशोभित (सकुशल) होता है, जो नहीं आए हुए कष्ट का निराकरण नहीं करता है वह चिन्तनीय होता है। इस वन में रहते हुए मेरा बुढ़ापा आ गया है किन्तु मैंने बिल (गुफा) की वाणी कभी नहीं सुनी।
पठितावबोधनम् :
1. प्रश्नाः
(i) सिंहः सहसा कस्य आह्वानमकरोत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ii) अन्येऽपि के भयभीताः अभवन्? (एकपदेन उत्तरत)
(ii) केन गुहा उच्चैः शृगालम् आह्वयत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(iv) तदहम् अस्य आह्वानं करोमि’-अत्र ‘अहम्’ सर्वनामस्थाने संज्ञापदं किम्?
उत्तराणि :
(i) श्रृंगालस्य।
(ii) पशवः।
(iii) सिंहस्य उच्चगर्जन-प्रतिध्वनिना गुहा उच्चैः शृगालम् आह्वयत्।
(iv) सिंहः।