Chapter 8 संसारसागरस्य नायकाः
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ अनुपम मिश्र की कृति ‘आज भी खरे हैं तालाब के संसार सागर के नायक’ नामक अध्याय से लिया गया है। इसमें विलुप्त होते जा रहे पारम्परिक ज्ञान, कौशल एवं शिल्प के धनी गजधर के सम्बन्ध में चर्चा की गयी है। पानी के लिए मानव निर्मित तालाब, बावड़ी जैसे निर्माणों को लेखक ने यहाँ संसार सागर के रूप में चित्रित किया है। पाठ के गद्यांशों के कठिन-शब्दार्थ, हिन्दी-अनुवाद एवं पठितावबोधनम्
1. के आसन् ते अज्ञातनामानः? ………………………………. प्रयतितम्।
कठिन-शब्दार्थ :
- सहस्रशः = हजारों।
- तडागाः = तालाब।
- शून्यात् = आकाश से।
- सहसैव (सहसा + एव) = अचानक।
- प्रकटीभूता = प्रकट हुए, दिखाई दिए।
- नेपथ्ये = पर्दे के पीछे।
- निर्मापयितृणाम् = बनवाने वालों की।
- निर्मातृणाम् = बनाने वालों की।
- एककम् = इकाई।
- दशकम् = दहाई।
- आहत्य = मिलकर।
- उद्भूता = उत्पन्न हुई, जागृत हुई।
- अस्मात्पूर्वम् = इससे पहले।
- प्रविधिः = विधि, तरीका।
- मापयितुम् = मापने/नापने के लिए।
- प्रयतितम् = प्रयत्न किया।
हिन्दी अनुवाद – वे अज्ञात नाम वाले कौन (लोग) थे? सैकड़ों, हजारों तालाब अचानक आकाश से प्रकट नहीं हुए हैं। ये तालाब ही यहाँ संसाररूपी समुद्र हैं। इन तालाबों के आयोजन (निर्माण) के पर्दे के पीछे बनवाने वालों की इकाई और बनाने वालों की दहाई थी। ये इकाई और दहाई मिलकर ही सैकड़ा अथवा हजार बनाते थे। परन्तु विगत दो सौ वर्षों में नवीन पद्धति से समाज ने जो कुछ भी पढ़ा है।
(परन्तु) उस पढ़े हुए समाज ने इकाई, दहाई और सैकड़ा को शून्य में ही बदल दिया है। इस नवीन समाज के मन में यह भी जानने की इच्छा उत्पन्न नहीं हुई कि हमसे पहले इतने तालाबों को कौन बनाते थे? इस प्रकार के कार्य करने के लिए ज्ञान की जो नवीन विधि विकसित हुई है, उस विधि से भी पहले सम्पादित इस कार्य को मापने का किसी ने भी प्रयत्न नहीं किया।
पठितावबोधनम् –
निर्देश: – उपर्युक्तं गद्यांशं पठित्वा प्रदत्तप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत –
(क) अस्य गद्यांशस्य उपयुक्तं शीर्षकं किम्?
(ख) सहस्रशः तडागाः सहसैव कस्मात् न प्रकटीभूताः? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) इमे एव तडागाः अत्र के सन्ति? (एकपंदेन उत्तरत)
(घ) किम् आहत्य शतकं सहनं वा रचयतः स्म? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(ङ) ‘विगतेषु’ इति विशेषणपदस्य अत्र विशेष्यपदं किम्?
(च) ‘निर्मातृणाम्’ इति पदे का विभक्तिः ?
उत्तराणि :
(क) संसारसागरस्य नायकाः।
(ख) शून्यात्।
(ग) संसारसागराः।
(घ) एककं दशकं च आहत्य शतकं सहस्रं वा रचयतः स्म।
(ङ) द्विशतवर्षेषु।
(च) षष्ठी।
2. अद्य ये …………………………… रूपे परिचितः।
कठिन-शब्दार्थ :
- बहप्रथिताः = बहुत प्रसिद्ध।
- अशेषे = सम्पूर्ण।
- निर्मीयन्ते स्म = बनाए जाते थे।
- निर्मातारः = बनाने वाले।
- गजधरः = गज (लम्बाई, चौड़ाई, गहराई, मोटाई मापने की लोहे की छड़) को धारण करने वाला व्यक्ति।
- तडागनिर्मातृणाम् = तालाब बनाने वालों के।
- त्रिहस्तपरिमाणात्मिकाम् = तीन हाथ के नाप की।
- लौहयष्टिम् = लोहे की छड़।
- समादृताः = आदर को प्राप्त।
- गाम्भीर्यम् = गहराई को।
हिन्दी अनुवाद – आज जो अज्ञात नाम वाले हैं, पहले वे बहुत प्रसिद्ध थे। सम्पूर्ण देश में तालाब बनाये जाते थे, निर्माण करने वाले भी सम्पूर्ण देश में रहते थे। तालाब निर्माण करने वालों का आदरपूर्वक स्मरण करने के लिए ‘गजधर’ ऐसा सुन्दर शब्द था। राजस्थान के कुछ भागों में यह शब्द आज भी प्रचलित है। गजधर कौन है? जो गज-परिमाण (लम्बाई. चौडाई.गहराई. मोटाई मापने की लोहे की छड़) को धारण करता है वह ‘गजधर’ कहलाता है। गज-माप का ही मापने के कार्य में उपयोग किया जाता है। समाज में तीन हाथ के नाप की लोहे की छड़ को हाथ में लेकर चलते हुए गजधर इस समय शिल्पकार के रूप में आदर को प्राप्त नहीं होते हैं। गजधर, ‘जो समाज की गहराई को माप सके’ इस रूप में जाना जाता है।
पठितावबोधनम् प्रश्ना:
(क) अस्य गद्यांशस्य उपयुक्तं शीर्षकं किम्?
(ख) अशेषे हि देशे के निर्मीयन्ते स्म? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) गजधरः इति सुन्दरः शब्दः केषां सादरं स्मरणार्थम्? (एकपदेन उत्तरत)
(घ) गजधरः कः कथ्यते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(ङ) ‘शब्दोऽयम्’ इति कर्तृपदस्य गद्यांशे क्रियापदं किम्?
(च) ‘सुन्दरः’ इति विशेषणं गद्यांशे कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(क) गजधराः।
(ख) तडागाः।
(ग) तडागनिर्मातृणाम्।
(घ) यः गजपरिमाणं धारयति स गजधरः कथ्यते।
(ङ) प्रचलति।
(च) शब्दाय।
3. गजधरा: वास्तुकाराः ……………………………..नमः एतादृशेभ्यः शिल्पिभ्यः।
कठिन-शब्दार्थ :
- कामम् = चाहे, भले ही।
- निभालयन्ति स्म = निभाते थे।
- आधृतानि = आधारित।
- आकलयन्ति स्म = अनुमान करते थे।
- उपकरणसम्भारान् = साधन सामग्री को।
- संगृह्णन्ति स्म = संग्रह करते थे।
- प्रतिदाने = बदले में।
हिन्दी अनुवाद – गजधर वास्तुकार (भवन आदि का निर्माण करने वाले) थे। चाहे ग्रामीण समाज हो अथवा शहरी समाज हो, उसके नव-निर्माण और सुरक्षा-प्रबन्ध का दायित्व गजधर ही निभाते थे। नगर-नियोजन से लेकर लघु निर्माण तक के सभी कार्य इन पर ही आधारित थे। वे योजना प्रस्तुत करते थे, होने वाले व्यय (खर्च) का अनुमान लगाते थे और साधन सामग्री का संग्रह करते थे। बदले में वे इतना नहीं माँगते थे कि देने में उनके स्वामी असमर्थ होवें। कार्य समाप्त होने पर वेतन के अतिरिक्त गजधरों को सम्मान भी दिया जाता था। इस प्रकार के शिल्पकारों को नमस्कार।
पठितावबोधनम् प्रश्नाः
(क) गद्यांशस्य उपयुक्तं शीर्षकं किम्?
(ख) पुरा वास्तुकाराः के आसन्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) पुरा गजधराः किम् आकलयन्ति स्म? (एकपदेन उत्तरत)
(घ) कार्यसमाप्तौ गजधरेभ्यः किं प्रदीयते स्म? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(ङ) ‘निभालयन्ति स्म’ इति क्रियापदस्य अत्र कर्तृपदं किं प्रयुक्तम्?
(च) ‘ते न तद् याचन्ते स्म’-इत्यत्र ‘ते’ सर्वनामपदं केभ्यः प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(क) वास्तुकाराः गजधराः।
(ख) गजधराः।
(घ) कार्यसमाप्तौ गजधरेभ्यः वेतनानि अतिरिच्य सम्मानमपि प्रदीयते स्म।
(ङ) गजधराः।
(च) गजधरेभ्यः।
(ग) भाविव्ययम्।