Chapter 12 कः रक्षति कः रक्षितः

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ स्वच्छता तथा पर्यावरण सुधार को ध्यान में रखकर सरल संस्कृत में लिखा गया एक संवादात्मक पाठ है। हम अपने आस-पास के वातावरण को किस प्रकार स्वच्छ रखें तथा यह भी ध्यान रखें कि नदियों को प्रदूषित न करें, वृक्षों को न काटें, अपितु अधिकाधिक वृक्षारोपण करें और धरा को शस्यश्यामला बनाएँ। प्लास्टिक का प्रयोग कम करके पर्यावरण संरक्षण में योगदान करें। इन सभी बिन्दुओं पर इस पाठ में चर्चा की गई है। पाठ का प्रारंभ कुछ मित्रों की बातचीत से होता है, जो सायंकाल में दिन भर की गर्मी से व्याकुल होकर घर से बाहर निकले हैं। 

वे परस्पर में बातचीत करते हुए वर्तमान में बिगड़ रहे पर्यावरण-सन्तुलन के कारणों पर चर्चा करते हैं। पाठ के नाट्यांशों का हिन्दी-अनुवाद एवं श्लोकों का अन्वय 
(ग्रीष्मर्ती सायंकाले विद्युदभावे प्रचण्डोष्मणा पीडितः वैभवः गृहात् निष्क्रामति) 

1. वैभव:-अरे परमिन्दर् …………………………………. सर्वातिशायिमूल्यः पवनः।। 

श्लोकस्य अन्वयः – पवनेन सकलं जगत् प्राणिति (वर्तते), निखिला सृष्टि: चैतन्यमयी (वर्तते)। अनेन विना क्षणमपि न जीव्यते। अमूल्यः पवनः सर्वातिशायि। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – [गर्मी के समय में (ग्रीष्म ऋतु में) सायंकाल बिजली चले जाने पर अत्यधिक गर्मी से पीड़ित वैभव घर से निकलता है।] 
वैभव – अरे परमिन्दर् ! क्या तुम भी बिजली चले जाने से पीड़ित होकर बाहर आये हो? 
परमिन्दर् – हाँ मित्र! एक ओर तो बहुत अधिक गर्मी का समय और दूसरी ओर बिजली का अभाव, परन्तु बाहर आकर भी देख रहा हूँ कि हवा का वेग पूर्णतः रुका हुआ है अर्थात् हवा भी नहीं चल रही है। सत्य ही कहा गया है – 
हवा से सम्पूर्ण संसार प्राणयुक्त (जीवित) है, सम्पूर्ण सृष्टि (संसार) चेतनता से युक्त है। इसके बिना क्षण भर भी कोई जीवित नहीं रहता है। वायु सबसे अधिक मूल्यवान् है। 

2. विनय: ………………………………….. नैव दृश्यन्ते॥ 
श्लोकस्य अन्वयः-तप्तैः वाताघातैः लोकान् अवितुं नभसि मेघाः आरक्षिविभाग-जना इव समये नैव दृश्यन्ते। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – 
विनय – अरे मित्र ! शरीर से न केवल पसीने की बूंदें अपितु पसीने की नदियाँ जैसी बह रही हैं। शुक्ल महोदय द्वारा रचित श्लोक स्मरण में आ रहा है – 
अत्यन्त गर्म हवा के झोंकों (प्रहारों) से लोगों की रक्षा करने के लिए आकाश में बादल पुलिस – विभाग के लोगों के समान समय पर दिखलाई नहीं देते हैं। 

3. परमिन्दर्-आम् अद्य …………………………. स्वेदवज्जायते वपुः॥ 
श्लोकस्य अन्वयः – निदाघतापतप्तस्य तालु शुष्कतां याति। हि भयादितस्य पुंसः इव वपुः स्वेदवत् जायते। 

कठिन-शब्दार्थ :

हिन्दी अनुवाद – 
परमिन्दर् – हाँ, आज तो वास्तव में ही ग्रीष्म के ताप से दुःखी मनुष्य का तालु सूख जाता है। निश्चय ही (ग्रीष्म ऋतु में) भयभीत मनुष्य के समान शरीर पसीने से युक्त हो जाता है। अर्थात् भयभीत मनुष्य का शरीर जिस प्रकार पसीने से युक्त हो जाता है, उसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु के ताप से दु:खी मनुष्य का शरीर भी पसीने से युक्त हो जाता है। 

4. जोसेफ:-मित्राणि! यत्र-तत्र बहुभूमिकभवनानां…………………………………. शान्तिं प्राप्तुं शक्ष्येम। 
श्लोकस्य अन्वयः – यथा एकेन कुपुत्रेण सर्वं कुलं (नश्यते, तथैव) वह्निना दह्यमानेन एकेन शुष्कवृक्षेण तद् सर्वं वनं दह्यते। 

कठिन-शब्दार्थ :

हिन्दी अनुवाद जोसेफ – मित्रो! यहाँ-वहाँ बहुमंजिले भवनों, भूमिगत मार्गों, विशेष रूप से मैट्रो-मार्गों, ऊर्ध्वगामी पुलों, मार्गों आदि के निर्माण के लिए वृक्ष काटे जा रहे हैं, फिर अन्य क्या हमारे द्वारा अपेक्षा की जा सकती है? हम तो भूल ही गए हैं कि जिस प्रकार एक कुपुत्र के द्वारा सम्पूर्ण कुल (वंश) को नष्ट कर दिया जाता है, उसी प्रकार अग्नि से जलते हुए एक सूखे वृक्ष के द्वारा ही उस वन को पूरा जला दिया जाता है। 

परमिन्दर् – हाँ, यह भी सब तरह से सत्य है। आइए नदी के किनारे चलते हैं। शायद वहाँ कुछ शान्ति प्राप्त कर सकेंगे। 

5. (नदीतीरं गन्तुकामाः बाला: यत्र-तत्र अवकरभाण्डारं दृष्ट्वा वार्तालापं कुवन्ति) 
जोसेफ: – पश्यन्तु मित्राणि यत्र-तत्र ……………………………………. ध्यानं न दीयते? 

कठिन-शब्दार्थ :

हिन्दी अनुवाद –
(नदी के किनारे जाने के इच्छुक बालक इधर-उधर कूड़े के ढेर को देखकर बातचीत करते हैं।) 
जोसेफ – देखो मित्रो, इधर-उधर प्लास्टिक के लिफाफे और दूसरा कूड़ा फेंका हुआ है। कहा जाता है कि स्वच्छता स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है परन्तु हम शिक्षित होने पर भी अशिक्षित के समान व्यवहार करते हैं, इस प्रकार से….. 
वैभव – घरों को तो हमारे द्वारा नित्य स्वच्छ किये जाते हैं परन्तु किसलिए अपने पर्यावरण की स्वच्छता की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है? 

6. विनयः – पश्य-पश्य उपरितः ………………………………… इदानीमेवागच्छामि। 
(रोजलिन् आगत्य बालैः साकं ……………………………………… पातयति) 

कठिन-शब्दार्थ :

हिन्दी अनुवाद – 

विनय – देखो-देखो ऊपर से इस समय भी कूड़ा रास्ते में फेंका जा रहा है। (बुलाकर) महोदय ! रास्ते में चलने वालों पर कृपा करो। यह तो सब तरह से अशोभनीय कार्य है। हमारे जैसे बालकों के लिए आप जैसों के द्वारा इस प्रकार से संस्कार देने योग्य हैं? 
रोजलिन् – हाँ पुत्र! सब तरह से सही कहते हो। क्षमा कीजिए। अभी आता हूँ। (रोजलिन् आकर के बालकों के साथ स्वयं के द्वारा फेंके गये कूड़े को तथा रास्ते में बिखरे हुए अन्य कूड़े को भी इकट्ठा करके कूड़ेदान में डालता है।) 

7. बाला: – एवमेव जागरूकतया …………………………….. अवकरकण्डोले क्षिपन्ति)। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद : 

बालक – इसी प्रकार जागरूकता से ही प्रधानमंत्री महोदय का स्वच्छता अभियान गति को प्राप्त करेगा।
विनय – देखो, देखो वहाँ गाय सब्जियों और फलों के छिलकों के साथ प्लास्टिक के लिफाफे को भी खा रही है। जिस किसी भी तरह उसे रोकना चाहिए। (रास्ते में केले के फल बेचने वाले को देखकर बालक केले खरीद कर गाय को बुलाते हैं और भोजन कराते हैं तथा रास्ते से प्लास्टिक के लिफाफों (थैलियों) को हटाकर ढके हुए कूड़ेदान में डालते हैं।) 

8. परमिन्दर्-प्लास्टिकस्य मृत्तिकाया ………………….. प्लास्टिकनिर्मितानि भवन्ति। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – 
परमिन्दर् – प्लास्टिक के मिट्टी में नष्ट न होने से हमारे पर्यावरण के लिए अत्यधिक हानि होती है। 
पहले तो कपास से, चमड़े से, लोहे से, लाख से, मिट्टी से अथवा लकड़ी से निर्मित वस्तुएँ ही प्राप्त होती हैं। 
वैभव – हाँ घड़ी की पट्टी, अन्य बहुत तरह के पात्र, कलम आदि सभी वस्तुएँ प्लास्टिक से निर्मित होती हैं। 

9. जोसेफ: – आम् अस्माभिः पित्रो: ………………….भवन्ति गायन्ति च –
सुपर्यावरणेनास्ति ………………………………….सम्भवो भुवि॥ 
सर्वे – अतीवानन्दप्रदोऽयं जलविहारः। 

श्लोकस्य अन्वयः – सखे! सुपर्यावरणेन जगतः सुस्थितिः, जगति जायमानानां भुवि सम्भवः सम्भवः अस्ति। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद –  
जोसेफ – हाँ हमारे द्वारा माता-पिता और शिक्षकों के सहयोग से प्लास्टिक के विभिन्न पक्षों पर विचार किया जाना चाहिए। पर्यावरण के साथ ही पशुओं की भी रक्षा करनी चाहिए। (इस प्रकार बात करते हुए सभी नदी के किनारे पहुँच जाते हैं, नदी के जल में प्रवेश करते हैं और गाते हैं – 
हे मित्र! श्रेष्ठ (स्वच्छ) पर्यावरण से संसार की सुस्थिति एवं संसार में उत्पन्न होने वालों का पृथ्वी पर जीवन सम्भव है।) 
सभी – यह जल-विहार अत्यन्त आनन्ददायक है।

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