Chapter 10 विश्वबंधुत्वम्

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में भाईचारे की भावना की आवश्यकता एवं महत्त्व को दर्शाते हुए सभी को मिलजुल कर रहने तथा एक-दूसरे की सहायता करने की प्रेरणा दी गई है। इस पाठ में आज सम्पूर्ण संसार में फैले हुए कलह और अशान्त वातावरण के प्रति दुःख व्यक्त करते हुए राष्ट्र की समृद्धि एवं विकास के लिए परस्पर में शत्रुता, द्वेष-भाव आदि को त्याग कर मित्रभाव से रहने का सदुपदेश दिया गया है। इसमें प्रकृति के दिव्य एवं परोपकारी स्वभाव का भी प्रेरणास्पद वर्णन हुआ है। सूर्य, चन्द्रमा आदि संसार में किसी के साथ भेदभाव नहीं करते हैं।

पाठ के गद्यांशों का हिन्दी-अनुवाद एवं पठितावबोधनम् –

1. उत्सवे, व्यसने, दुर्भिक्षे, ………………………………….. विश्वबन्धुत्वं सम्भवति। 

हिन्दी अनुवाद –

उत्सव में, संकट में, अकाल पड़ने पर, राष्ट्र/देश पर आपदा आने पर और दैनिक व्यवहार में जो सहायता करता है, वह बन्धु (भाई) होता है। यदि विश्व (संसार) में इस प्रकार का भाव सभी जगह हो जाए, तो विश्व (संसार) के प्रति भाई-चारा सम्भव होता है।

पठितावबोधनम् : 
निर्देशः-उपर्युक्तं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारितप्रश्नानाम् उत्तराणि यथानिर्देशं लिखतप्रश्ना :
(क) विश्वे सर्वत्र सहायतायाः (बन्धुत्वस्य) भावे सति किं सम्भवति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) ‘व्यसने’ इति पदस्य कोऽर्थ:? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग) कः बन्धुः भवति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘य: सहायतां।’ अत्र पूरणीयं क्रियापदं किमस्ति?
(ङ) ‘बन्धुः’ इति संज्ञापदस्य गद्यांशे सर्वनामपदं किम्?
उत्तराणि : 
(क) विश्वबन्धुत्वम्।
(ख) सङ्कटे। 
(ग) यः उत्सवे व्यसने दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवादिषु च सदैव सहायतां करोति, सः बन्धुः भवति। 
(घ) करोति।
(ङ) सः।

2. परन्तु अधुना निखिले संसारे …………………………………………… अपि अवरुद्धः भवन्ति। 

हिन्दी अनुवाद – परन्तु इस समय सम्पूर्ण संसार में कलह और अशान्ति का वातावरण है। मानव आपस में विश्वास नहीं करते हैं। वे दूसरे के कष्ट को अपना नहीं मानते हैं। और भी समर्थ देश असमर्थ देशों के प्रति अनादर की भावना दिखलाते हैं। उनके ऊपर अपना प्रभुत्व स्थापित करते हैं। संसार में सभी जगह ईर्ष्या, शत्रुता और हिंसा की भावना दिखाई देती है। देश का विकास भी रुक जाता है। 

पठितावबोधनम्प्रश्ना :
(क) अधुना मानवा: परस्परं किम् न कुर्वन्ति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) समर्थाः देशाः असमर्थान् देशान् प्रति किम् प्रदर्शयन्ति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग) संसारे सर्वत्र का भावना दृश्यते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) 
(घ) ‘संसारे’ इति पदस्य गद्यांशे विशेष्यपदं किं प्रयुक्तम्?
(ङ) ‘मित्रतायाः’ इति पदस्य गद्यांशे विलोमपदं किम्? 
उत्तराणि : 
(क) विश्वासम्।
(ख) उपेक्षाभावम्। 
(ग) संसारे सर्वत्र विद्वेषस्य, शत्रुतायाः, हिंसायाः च भावना दृश्यते।
(घ) निखिले।
(ङ) शत्रुतायाः।

3. इयम् महती आवश्यकता …………………………….. प्राप्तुं समर्थाः भविष्यन्ति। 

हिन्दी अनुवाद – यह बहुत अधिक आवश्यकता है कि एक देश दूसरे देश के साथ निर्मल हृदय से भाई-चारे का व्यवहार करे। संसार के लोगों में यह भावना होनी आवश्यक है। तभी विकसित और अविकसित देशों के बीच स्वस्थ होड़ होगी। सभी देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मैत्री (मित्रता की) भावना और सहयोग से समृद्धि को प्राप्त करने में| समर्थ होंगे। 

पठितावबोधनम्प्रश्ना :

(क) एकः देशः अपरेण देशेन सह कस्याः व्यवहारं कुर्यात्? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) कयो: देशयोः मध्ये स्वस्था स्पर्धा भवेत? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) सर्वे देशाः ज्ञानविज्ञानयोः क्षेत्रे कथं समृद्धि प्राप्तुं समर्थाः भविष्यन्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) 
(घ) ‘भविष्यन्ति’ इति क्रियायाः गद्यांशे कर्तृपदं किम् अस्ति?
(ङ) ‘देशेन सह’-अत्र रेखाङ्कितपदे का विभक्तिः प्रयुक्ता? 
उत्तराणि : 
(क) बन्धुतायाः।
(ख) विकसिताविकसितयोः। 
(ग) सर्वे देशाः ज्ञानविज्ञानयोः क्षेत्रे मैत्रीभावनया सहयोगेन च समृद्धि प्राप्तुं समर्थाः भविष्यन्ति। 
(घ) देशाः।
(ङ) तृतीया।

4. सूर्यस्य चन्द्रस्य च प्रकाशः ……………………………………….. विश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्।

हिन्दी अनुवाद – सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश सभी जगह समान रूप से फैलता है। प्रकृति भी सभी में समान भाव से व्यवहार करती है। इसलिए हम सभी को भी आपस में वैरभाव छोड़कर विश्व में भाई-चारे की भावना स्थापित करनी चाहिए। 

पठितावबोधनम्प्रश्ना : 
(क) सूर्यस्य चन्द्रस्य च प्रकाशः सर्वत्र कथं प्रसरति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) का सर्वेषु समत्वेन व्यवहरति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग).अस्माभिः सर्वैः कथं विश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्? 
(घ) ‘सूर्यस्य’ इति पदस्य विलोम पदं किम् अस्ति?
(ङ) ‘अपहाय’ इति पदे कः उपसर्ग:? 
उत्तराणि : 
(क) समानरूपेण।
(ख) प्रकृतिः। 
(ग) अस्माभिः सर्वैः परस्परं वैरभावम् अपहाय विश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्। 
(घ) चन्द्रस्य।
(ङ) अप।

5. अतः विश्वस्य कल्याणाय एतादृशी भावना भवेत्अयं निजः परो वेति ……………………………………….. वसुधैव कुटुम्बकम्॥ 

श्लोकस्य अन्वयः – अयं निजः वा परः इति लघुचेतसां गणना (भवति)। तु उदारचरितानां वसुधा एव कुटुम्बकम् (भवति)।
हिन्दी अनुवाद-इसलिए विश्व के कल्याण के लिए इस प्रकार की भावना होनी चाहिए यह अपना है अथवा पराया है-इस प्रकार की गणना क्षुद्र (तुच्छ) हृदय वालों की होती है, किन्तु उदार चरित्र वालों के लिए तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है।

पाठ के कठिन-शब्दार्थ :

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