पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में अत्यन्त सरल श्लोकों के द्वारा वृक्षों के महत्त्व को बताया गया है। वृक्ष मनुष्यों के मित्र हैं। वे मनुष्यों के लिए कल्याणकारी तथा अत्यंत उपयोगी हैं। वृक्षों से ही वनों का निर्माण होता है। वृक्षों की शाखाओं पर बैठे हुए पक्षी मधुर कलरव करते हैं मानो वृक्ष मनुष्यों का मनोरञ्जन करने के लिए मधुर गान कर रहे हों। वृक्ष स्वयं तो केवल पानी और वायु को ही ग्रहण करते हैं, किन्तु वे मनुष्यों के लिए छाया, फल, काष्ठ (लकड़ी) आदि प्रदान करते हैं। वास्तव में वृक्ष हमारे लिए महान् उपकारी हैं।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ :
- वने वने = प्रत्येक वन में।
- निवसन्तः = रहते हुए रहने वाले।
- रचयन्ति = रचते हैं, बनाते हैं।
- शाखा = डालियाँ, टहनियाँ।
- दोला = झूला।
- आसीनाः = बैठे हुए।
- विहगाः = पक्षीगण।
- किमपि = कुछ भी।
- कूजन्ति = कूकते हैं/कूकती हैं।
- सन्ततम् = निरन्तर/लगातार।
- साधुजनाः = तपस्वी लोग/सज्जन।
- इव = की तरह।
- पिबन्ति = पीते हैं।
- स्पृशन्ति = स्पर्श करते हैं।
- नभः = आकाश को।
- शिरस्सु = सिर पर।
- वहन्ति = ढोते हैं।
- पयोदर्पणे = जल रूपी दर्पण/आइने में।
- स्वप्रतिबिंबम् = अपने प्रतिबिम्ब को।
- पश्यन्ति = देखते हैं।
- कौतुकेन = आश्चर्य से।
- प्रसार्य = फैलाकर।
- स्वच्छायासंस्तरणम् (स्व+छाया+संस्तरणम्) = अपनी छाया रूपी बिस्तरे को।
- सत्कारम् = आदर।
पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ –
1. वने वने निवसन्तो ………………………………रचयन्ति वृक्षाः।।
अन्वयः – वृक्षाः वने वने निवसन्तः। वृक्षाः वनं वनं रचयन्ति।
हिन्दी-भावार्थ – प्रत्येक वन में वृक्ष (पेड़) निवास करते हैं। वृक्ष प्रत्येक वन (जंगल) को बनाते हैं। अर्थात् वृक्षों से ही वनों का निर्माण होता है।
2. शाखादोलासीनाः विहगाः………………………….. कूजन्ति वृक्षाः॥
अन्वयः – विहगाः शाखादोलासीनाः (सन्ति)। वृक्षाः तैः किमपि कूजन्ति।
हिन्दी-भावार्थ – पक्षीगण शाखा (टहनी) रूपी झूलों पर बैठे हुए हैं। वृक्ष उनके द्वारा कुछ भी (कुछ-कुछ) कूजते हैं। अर्थात् वृक्ष मानो पक्षियों के माध्यम से कूकते हैं।
3. पिबन्ति पवनं जलं …………………………………इव सर्वे वृक्षाः।।
अन्वयः – सर्वे वृक्षाः साधुजना इव पवनं जलं सन्ततं पिबन्ति।
हिन्दी-भावार्थ – सभी वृक्ष सज्जन (तपस्वी) लोगों के समान हैं। वे निरन्तर वायु और जल पीते हैं। अर्थात् वृक्ष तपस्वी लोगों के समान संसार का कल्याण करते हैं।
4. स्पृशन्ति पादैः पातालं. ……………………………………… वहन्ति वृक्षाः॥
अन्वयः – वृक्षाः पादैः पातालं स्पृशन्ति, शिरस्सु च नभ: वहन्ति।
हिन्दी-भावार्थ – वृक्ष जड़ रूपी पैरों से पाताल का स्पृश करते हैं और सिर पर आकाश को वहन करते (ढोते) हैं।
5. पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम् ………………………….. पश्यन्ति वृक्षाः।।
अन्वयः – वृक्षाः पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बं कौतुकेन पश्यन्ति।
हिन्दी भावार्थ – वृक्ष जल रूपी दर्पण (शीशे) में अपनी परछाईं को उत्सुकता (आश्चर्य) से देखते हैं।
6. प्रसार्य स्वच्छायासंस्तरणम् …………………….सत्कारं वृक्षाः॥
अन्वयः – वृक्षाः स्वच्छाया संस्तरणं प्रसार्य सत्कारं कुर्वन्ति।
हिन्दी भावार्थ – वृक्ष अपनी छाया रूपी बिस्तर को फैला कर लोगों का सत्कार करते हैं। अर्थात् वृक्ष लोगों को छाया प्रदान करते हैं, अतः वे अत्यन्त उपकारी हैं।