Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण

Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1. 
वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव ने सजीव प्राणियों के वर्गीकरण के प्रयास सभ्यता के प्रारम्भ से ही किये हैं। वर्गीकरण के यह प्रयास वैज्ञानिक मानदण्डों के स्थान पर सहज बुद्धि पर आधारित हमारे भोजन एवं आवास जैसी समान्य उपयोगिता की वस्तुओं के उपयोग की आवश्यकताओं पर आधारित थे। इन प्रयासों में जीयों के वर्गीकरण के वैज्ञानिक मानदण्डों का उपयोग सर्वप्रथम अरस्तू ने किया था। उन्होंने पादपों को सरल आकारिक लक्षणों के आधार पर वृक्ष, शाही एवं शाक में वर्गीकृत किया था। जबकि उन्होंने प्राणियों का वर्गीकरण लाल रजन की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति के आधार पर किया था।

लोनियस के काल में सभी पादपों और प्राणियों के वर्गीकरण के लिए द्विजगत पद्धति विकसित की गई थी। जिसमें उन्हें क्रमश: प्लांटी (पाद) एवं एनिमेलिया (प्रापी) जगत में वर्गीकृत किया गया था। यह पाइति कुछ काल तक अपनाई जाती रही थीं। पांच जगत वर्गीकरण की पद्धति सन् 1989 में आर.एच. विटेकर द्वारा प्रस्तारित की गई थी। ये पाँच जागत मानेग, प्रोटिस्य, पंचाई, प्लांटी एवं ऐनिलिया है। कोशिका संरचना, वैसस संरचना, पोषण की प्रक्रिया, प्रजनन एवं जातिकृतीय सम्बन्ध उनके वर्गीकरण की पद्धति के प्रमुख मानदण्ड थे।

प्रश्न 2. 
निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखें:
(क) परपोषी बैक्टीरिया 
(ख) आद्य बैक्टीरिया। 
उत्तर:
(क) परपोषी वैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria)

  1. प्रतिनि के उत्पादन में 
  2. दक्ष से दही बनाने में
  3. लेग्यूम पादप की जड़ों में नवट्रोजन रिश्वीकरण में सहायता करते हैं।

(ख) आश बैक्टीरिया (Archachacteria)

  1. गाय व भैंस के गोबर से जैव गैस के उत्पादन में
  2. ये जीवाणु रूमिनेंट पशुओं के आन्च में पाये जाते हैं तथा स्टार्च के पाचन में सहायता करते हैं।

प्रश्न 3. 
डाएटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं?
उत्तर:
आइएटम (diatims) को कोशिका भिति साबुनदानी को तरह इसी के अनुरूप दो अतिछादित कवच बनाता है। इसमें सिलिका पायो जानी है। जिसके कारण कोशिका भिति नछ नहीं होती है। मृत झाटन अपने वास स्थान में शिक्षा भित्ति के अवशेष बहुत बड़ी संख्या में भेड़ देते हैं। करोड़ों वर्षों में जमा हुए इस अवशेष को डाइएटमी मृदा कहते हैं।

प्रश्न 4. 
‘शैवाल पुष्पन’ (Algal Bloom) तथा ‘लाल तरंगें’ (Red tides) क्या दर्शाती है?
उत्तर:
शैवाल पुष्पन (Algal Blocal) बोल हरी शैवाल के अनेक सदस्य जलाशयों में अधिक मात्र में उत्पन्न हो जाते हैं। जब इनकी मृत्यु हो जाती है तो जलाशयों के जाल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इस कारण जल में एक विशेष तरह की बदबू भी आने लगती है एवं जल का रंग भी बदल जाता है। इस प्रकार के ऑक्सीजन रहित जल का उपयोग करने से महलिया तथा अन्य जलीय जीवों को मृत्यु हो जाती है। इसे शैवाल पृष्यन कड़ते हैं, जो जीव-जन्तओं के लिए हानिकारक है। उदा, माइकोसिस्टम, एनेबीना, नास्टॉक तथा आसिनेटोरिया आदि।

लाल तरंगें (Red – tides):
कुल झायनोप्लैजिलेट की कोशिकाओं में लाल वर्गक पाये जाते हैं। इन लाल डामनोपजिलेट की संख्या में विस्फोट होता है। जिससे समुद्र का बल लाल (लाल रंगे) दिखाई देता हैं।

प्रश्न 5. 
बाइरस से बाइराइड कैसे भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वाइरस से वाइराइड में भिन्नता:

वाइरस (Vinuses)

वाड्राइड (Viroids)

1. वे वैक्टीरिया से खोटे होते हैं।

वायरस से छोटे होते हैं।

2. इनमें आनुवंशिक पदार्थ RNA अथवा DNA हो सकता है।

जवकि पनमें केवल RNA पाया जाता है।

3. इनमें प्रोटीन का आवरण पाया जाता है।

जबकि इनमें प्रोटीन का आवरण नहीं पाया जाता है।

4. के परा निम्न रोग होतेर एनस, चेचक आदि।

जबकि इनके द्वारा पोटेटो स्पावन्टल ट्यूबर नामक रोग होता है।

प्रश्न 6. 
प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रोटोजोआ के चार प्रमख सगहों का वर्णन निम्न प्रकार से है:
(1) अमीबीच प्रोटोजोआ:
इस समूह के प्राणी स्वच्या जाल, समुदी जल तथा नम मिट्टी में पाये जाते हैं। इनमें कूटपाद पाये जाते हैं। कूटपाद की सहायता से चलन एवं भोजन का अन्तर्गहण होता है। इसके साथ ही कूटपाद शिकार को पकड़ने को सहायता करते हैं। ये पोषण के आधार पर समभोजी (holozoic) होते हैं। इनमें अलैंगिक जनन द्विविखण्डन, बीजाणु जनन परिकोरुन व बहुविभाजन व पुनरुदभवन द्वारा होता है।
उदाहरण: एंटजमीश।

(2) कशाभी प्रोटोजोआ:
इस समूह के प्राणी स्वच्कंद अथवा परजीवी होते हैं। इनमें कशाभ पाया जाता है, जिसके द्वारा गमन होता है। इनमें मृतोपजीवी (Sapraphytic) अवमा विषमपोषी (Heterotrophic) प्रकार का पोषण पाच जत है। इनमें अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) अनुदैर्ज द्विखण्डन (Longitudinal Binary Fission) द्वारा होता है।
उदाहरण: ट्रिपैनेसोगा। इसके द्वारा निदातु व्याधि नामक बीमारी होती है।

(3) पक्ष्माभी प्रोटोजोआ:
इस समूह के अन्तर्गत आने वाले प्राणी जलीय एवं तेज सक्रिय गति करने वाले होते हैं। क्योंकि उनके शरीर पर हजारों संखा में पक्ष्माभ पाये जाते हैं। इनमें एक गुहा पाई जाती है जो कोशिका की सतह के बाहर की तरफ खुलती है । पक्ष्माभों को लयबद्ध गति के कारण जल से पूरित भोजन गलेट की तरफ भेज दिया जाता है। इनमें पोषण हीटरोजोइक, होलोजोड़क एवं सेपरोजोइक प्रकार का होता है। अलैंगिक जनन अनुप्रस्थ द्विविभाजन द्वारा होता है।
उदाहरण: पैरामीशियम।

(4) स्पोरोजोआ:
इस समूह के समस्त प्राणी अन्तःपरजीवी (Endoparasite) होते हैं। इनमें गमन के लिए अंगों का अभाव होता है अर्थात् गमनांग अनुपस्थित होते हैं। इनके शरीर पर पेलिफल का आवरण पाया जाता है। इनमें अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों प्रकार का प्रजनन पाया जाता है। अलैंगिक जान बहुविखण्डन द्वारा होता है व इससे बोजपुओं का निर्माण होता है। इनके जीवन च्छ में स्पोरोजोर अवस्था प्लाज्मोडियम की संक्रामक अवस्था होती है।
उदाहरण: प्लान्मोडियम।

प्रश्न 7. 
पादप स्वपोषी है। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं, जो आंशिक रूप से परपोषित है?
उत्तर: 
पादप जगत में वे सभी जीव जो यूकैरिमोरिक और जिनमें क्लोरोफिल होता है वे पादप स्वपोषों कहलाते हैं।
हाँ, कुछ ऐसे पादप हैं जे आंशिक रूप से परपोषी हैं जो निम्नलिखित हैं- 

  1. विस्कम (Viscuum album)
  2. लोरेन्चस (Loranthus) 

प्रश्न 8.
शैवालांश तथा कवकांश शब्दों से क्या पता लगता है?
उत्तर:
लाइकेन शैवाल तथा कक्क के सहजोखी सहवास अर्थात् पारस्परिक उपयोगी सहवास हैं। शैवाल घटक को संवालांश तथा कक्क के पटक को कवकांश कहते हैं जो क्रमशः स्वोधी तथा परपोषी होते हैं। शैवाल कवक के लिए भोजन का निर्मग करता है और ववक शैवाल के लिए आश्रय देता है तथा खनिज एवं बाल का अवशोषण करता है।

प्रश्न 9. 
कवक (फैजाई) जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं पर करो:
(क) पोषण की विधि 
(ख) जनन की विधि।
उत्तर:

लक्षण

फाड़कोमाइसिटीज

ऐस्कोमाइसिटीज

बेसिडियोमाइसिटीज

इयूटिरोमाइसिटीज

(क) पोषण विधि

अविकल्पी परजीवी

मृतोपजीनी चा शमलरागी

परजीवी या मृतोपजीवी

प्राय: अपपटक कुछ मृतोपवीवी एवं परजीवी

(ख) जनन विधि

(i) अलगिक जनन

(ii) लगिक जनन

चल व अचल बीजाणुओं द्वारा होता है। इनका निर्मन बीजाणुधानियों से होता है।

सम या असमयुग्मकी

कोनिहिया या क्तमिहोबोजणु एककोशिकीय जातियों में विखण्डन, खण्डन, मुकलन द्वारा

एस्कोकार्प फलन पिण्ड में एस्कोसोर्स बनते हैं।

कोनिलिया या ग्लेमिहोबोजणुओं द्वारा होता है।

वेशीडियोकार्प फलन पिण्ड में बेसोडियोबीजानु बनते हैं।

कोनिडिया द्वारा

अनुपस्थित

प्रश्न 10. 
यूालीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन – कौनसे है?
उत्तर:
यूालीनांड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण निम्न है:

  1. इस समूह के अधिकांश प्राणी स्वच्छ जल में बसे तालाब, तालतलेया, नालों आदि में पाये जाते हैं अर्थात् स्थिर गल में पाये जाते हैं।
  2. देह पर लचीला आव्रण पाया जाता है जिसे पेलिकल (Pellicle) कहते हैं।
  3. पेरियल प्रोटीन की बनी होती है। 
  4. दो काशाभ होते हैं जिसमें एक छोय तथा दूसरा लम्या होता है। 
  5. काशाभ प्रचलन में सहायक होते हैं।
  6. इनमें क्लोरोफिल पाया जाता है जिसके द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश – संश्लेषण की क्रिया कर भोजन का निर्माण करते हैं।
  7. सूर्य के प्रकाश के अभाव में अन्य सूक्ष्म जीवधारियों का शिकार कर परपोषी की तरह व्यवहार करते हैं।
  8. इनमें लाल दृक बिन्दु पाया जाता है जो प्रकाश के लिए संवेदी होता है।
  9. इन प्राणियों में संकुचनशील धानी पानी जाती है ले परासरण नियमन का कार्य करती है।
  10. इनमें जनन दिविभाजन द्वारा होता है।

प्रश्न 11. 
संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति के संदर्भ में बाइरस का संक्षिप्त विवरण दो। बाइरस से होने वाले चार रोगों के नाम भी लिखें।
उत्तर:
सभी वाइनस अकोशिकीय, कणिकीय संरचना हैं। इनका आवरण प्रोटोन का होता है जो इसके सममिति हेतु उत्तरदायी होता है, इसे केपिपाड कहते हैं। केप्सिड की उप-इकाइयों को कैप्सोमियर्स कहते है। प्रत्येक कैप्सोमियर्स अनेक प्रोटीन अणुओं द्वारा निर्मित होता है। प्रोटीन कोर के अन्दर DNA या RNA दोनें में से एक न्यूक्लिक अम्ल होता है। यह वाइनस का केन्द्रीय कोर होता है। कोर एवं कैपिड को मिलाकर इसे न्यूक्लिओकैप्सिह कहते हैं। कुछ गाटिल प्रकार के वादरसों में प्रोटीन एवं न्यूषिशक अम्ल के अतिरिका एक बाहरी आवरण भी पाया जात है जे शर्करा, वसा या वसा प्रोटीन का होता है, लिपो वाइरस कहते हैं।

थाइरसजनित चार रोग निम्नलिखित हैं –

  1. मास 
  2. पेषक
  3. हपोज
  4. इंग्लूएंजा एवं पदस।

प्रश्न 12. 
अपनी कक्षा में इस शीर्षक ‘क्या वाइरस सजीव है अथवा निर्जीव’ पर चर्चा करें।
उत्तर:
वाइरस अविकल्पी अन्तराकोशिकीय परजीवी होते हैं जिनमें बाहरी आवरण प्रोटीन का तथा अन्दर दो प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल में से एक हो प्रकार का अर्थात् RNA या DNA ही होता है। इनका संवर्धन कृषिम माध्यम में सम्भव नहीं तथा ये अकोशिकीय होते हैं परन्तु इनमें पुषावृत्ति की प्रक्रिया पायी जाती है। इनमें संक्रमण, रोगवनकता व प्रतिजनी जैसे गुण पाये जाते हैं। इनका क्रिस्टलीकरण किया जा सकता है। वाइरसों में सजीव व निजीव दोनों प्रकार के गुण पाये जाने से इनें सजीव एवं निर्जीव के मध्य की कड़ी कहा जाता है।

वे गुण निम्न प्रकार से है –
वाइरसों के सजीव लक्षण 
(1) ये परपोषी विशिष्टता दशति हैं।

  1. इनका आनुवंशिक पदार्थ RNA या DNA होता है।
  2. पादप विषाणुओं में RNA तथा जन्तु विषाणुओं में DNA पाया जाता है।
  3. इनमें आनुवंशिक पदार्थों की पुनरावृत्ति होती है। 
  4. इनमें प्रतिजनो गुण होते हैं। 
  5. इनका प्रवर्धन केवल सजीव कोशिकाओं में ही सम्भव है।
  6. ये ताप, रासायनिक पदार्थ, विकिरन तथा जद्दीपकों के प्रति अनुक्रिया दर्शाते हैं।
  7. इनका उत्परिवर्तन का मुख्य लक्षण है। 
  8. इनमें कोशिका नहीं पायी जाती है। 

वाइरसों के निर्जीव लक्षण 

  1. ये सजीव कोशिकाओं के बाहर अक्रिय होते हैं।
  2. ये स्वोत्प्रेरक (Autocatalytic) होते हैं, इनमें प्रकार्षक स्वायत्तता (Functional Autonomy) का अभाव होता है।
  3. वाहरसों का क्रिस्टलीकरण किया जा सकता है।

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