उषा
शमशेर बहादुर सिंह
अभ्यास
कविता के साथ
- कविता के किन उपमानों को देखकर कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?
उत्तर 'उषा' कविता में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने ग्रामीण उपमानों का प्रयोग कर गाँव की सुबह के गतिशील शब्दचित्र को सामने लाने का प्रयास किया है। कविता में नीले रंग के प्रातःकालीन आकाश को 'राख से लीपा हुआ चौका' कहा गया है। ग्रामीण परिवेश में ही गृहिणी भोजन बनाने के बाद रात को चौका (चूल्हे) को राख से लीपती है, जो प्रायः भोर के समय तक गीला ही होता है।
दूसरा बिंब काले सिल का है। काला सिल अर्थात् पत्थर के काले टुकड़े पर केसर पीसने का काम भी गाँव की महिलाएँ ही करती हैं। तीसरा बिंब काले स्लेट पर लाल खड़िया चाक मलने की क्रिया नन्हें ग्रामीण बालकों द्वारा संभव होता है। इस बिंबात्मक चेतना में गतिशील शब्द-चित्र भी मौजूद है। यह सवेरे अपने-अपने कार्यों में लगे ग्रामीण वर्ग तथा जनजीवन की गतिशीलता को स्पष्ट करने वाले प्रतिमान हैं। यहाँ स्थिरता का नामोनिशान नहीं है। गतिशीलता इस अर्थ में भी है कि तीनों शब्दचित्र स्थिर न होकर किसी-न-किसी क्रिया के अभी-अभी समाप्त होने के सूचक हैं।
2. भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्हों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपरोक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
उत्तर नयी कविता में प्रयोग को महत्व मिला है। भाषा तथा शिल्प के स्तर पर यहाँ प्रयोगधर्मी चेतना मिलती है। अभिव्यक्ति के नये रूपों को जगह देने की प्रवृत्ति मिलती है। कोष्ठक का प्रयोग कविता की भाव-व्यंजना को और अधिक स्पष्ट करने के लिए किया जाता है। यहाँ कोष्ठक में लिखित पंक्ति 'अभी गीला पड़ा है' वस्तुतः
राख से लिपे हुए चौके की पूरी जानकारी देती है। यह आकाश रूपी चौके की ताजगी एवं नमी की सूचना देती है।
कविता में एकमात्र विराम-चिह्न आया है, वह भी दृश्य-परिवर्तन की सूचना देने वाला प्रमाणित होता है। विराम-चिह्न के बाद 'उषा' के जादू टूटने की सूचना दी गई है। पंक्तियों के बीच स्थान बिंबों की सार्थकता को स्थापित करते हैं।
अपनी रचना
- अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
उत्तर सूर्योदय नीले विशाल सरोवर से बाहर निकलती तेज आभा मंडल वाली नारी की तरह सुबह का खिलता सूरज अपनी किरणों को काफी कोमल बनाए हुए है, जो शरीर को चुभती नहीं हैं। आकाश के सारे तारों को उसने बाग के माली की तरह चुनकर अपने दामन में भर लिया है और अपने प्रिय को प्रेम निवेदन करने के आग्रह संबंधी विचार से पूरे चेहरे पर लाली फैल गई है।
सूर्यास्त सूर्यास्त का सूर्य थका-हरा, श्रम से धूल धूसरित देह लिए अब विश्राम करने की इच्छा से अपना काम समाप्त कर रहा है। वह धीरे-धीरे अपने घर में प्रवेश कर रहा है और उसे निस्तेज देखकर अंधकार को अपनी शूरवीरता दिखाने का अवसर मिल गया है जो सुबह के समय डटकर भाग गया था अब फिर से वापस अपने साम्राज्य के विस्तार हेतु आने की प्रक्रिया प्रारंभ कर रहा है।