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(क) यह दीप अकेला (ख) मैंने देखा, एक बूँद
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
प्रश्न-अभ्यास
यह दीप अकेला
- 'दीप अकेला' के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि कवि ने स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है?
उत्तर कवि अज्ञेय अस्तित्ववादी हैं। मनुष्य की अस्मिता तथा क्षमता पर उनका भरोसा है। 'यह दीप अकेला' कविता में 'दीप' को प्रतीक के रूप में रखकर अक्षेय ने मनुष्य की क्षमता तथा विशिष्टताओं को दर्शाया है। वह मानता है कि व्यक्ति अपनी छोटी-सी हैसियत में भी अपने आत्म-विश्वास तथा मनुष्यता से प्रेम के कारण स्नेह, गर्व और आशावादी मस्ती में लीन रहता है। कवि व्यक्ति के इस गुण के कारण उसे स्नेह भरा, गर्व भरा और मदमाता कहता है। लेकिन कवि व्यक्ति की इस विशिष्टता को समाज में अंतर्निहित करने के लिए उसे समाज का अंग भी बनाना चाहता है।
- यह दीप अकेला है 'पर इसको भी पंक्ति को दे दो' के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय क्यों और कैसे संभव है?
उत्तर 'दीप' व्यक्ति का प्रतीक है जबकि 'पंक्ति' समाज का प्रतीक है। समाज का निर्माण व्यक्ति से होता है। व्यक्ति का हित समाज के साथ है। व्यष्टि की शक्ति समष्टि में अंतर्निहित होती है। समष्टि में विलय से ही व्यष्टि की सार्थकता है। कवि दीप (व्यक्ति या व्यष्टि) की विशिष्टताओं से परिचित है। वह जानता है कि दीप अकेला भी आत्म-विश्वास को जीवित रख सकता है, किंतु उस आत्म-विश्वास की सार्थकता पंक्ति के साथ मिल जाने से है। पंक्ति में जाकर ही दीप अपने प्रकाश (ज्योति) को दूसरों के हित में लगा सकता है। कवि व्यक्ति की उपलध्धियों के व्यापक उपयोग के लिए 'दीप' को 'पंक्ति' में देना चाहता है।
3. 'गीत' और 'मोती' की सार्थकता किससे जुड़ी है?
उत्तर गीत की लयात्मकता तथा मधुरता का संबंध गायक के प्रस्तुतीकरण से है। यदि गायक गीत को भावानुकूल नहीं गाए तो गीत की सार्थकता नहीं रह जाती। उसी प्रकार गोताखोर मोती लाने समुद्र के गर्त में जाता है। जब तक गोताखोर मोती को समुद्र तल पर नहीं लाता, तब तक उसकी कीमत का पता नहीं चलता। समुद्र के गर्त में पड़ा मोती अर्थहीन है।
कवि 'गीत' तथा 'मोती' को सृजन का प्रतीक मानता है। इसकी सृजनात्मकता गीतकार (गायक) के लय तथा सुर पर आधारित है। 'मोती' का अस्तित्व भी इसी रूप में है।
- 'यह अद्वितीय-यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित'-पंक्ति के आधार पर व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए।
उत्तर कवि व्यष्टि का महत्त्व समष्टि के साथ विलय में मानता है। वह मानता है कि जब तक व्यष्टि अहंकार-शून्य होकर समष्टि में समाहित होने की चेतना से युक्त नहीं होगा, तब तक व्यष्टि एवं समष्टि को संपूर्णता के साथ परिभाषित करना संभव नहीं है। व्यक्ति समाज की शक्ति है और समाज में ही व्यक्ति की अस्मिता को महत्त्व मिल सकता है।
कवि 'दीप' अर्थात् व्यष्टि को अद्वितीय मानता है। वह दीप को पंक्ति में शामिल कर उसे सार्थकता देना चाहता है। यह 'दीप' व्यक्ति का प्रतीक है। कवि इसे इसी कारण 'यह अद्वितीय-यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित' कहकर, व्यक्ति के जीवन की सार्थकता को समाज में दर्शाता है।
- 'यह मधु है......तकता निर्भय'-पंक्तियों के आधार पर बताइए कि 'मधु', 'गोरस' और 'अंकुर' की क्या विशेषता है?
उत्तर मधुमक्खियाँ मधु का संचय बूँद-बूँद कर करती हैं और इस प्रक्रिया में उनका बहुत समय लग जाता है परंतु मधुमक्खियाँ अपना यह संचयन शांत भाव से करती चली जाती हैं। उसी प्रकार से कवि के गीतों में निहित माधुर्य उसके चुपचाप किए जा रहे प्रयासों का संचित फल है। जिस प्रकार कामधेनु गाय सदैव पवित्र जीवनदायी दूध देती है, उसी प्रकार से कवि भी समाज को अपने गीतों रूपी पवित्र जीवनदायिनी दूध से पौष्टिकता प्रदान करता है। जिस प्रकार अंकुर निर्भयतापूर्वक पृथ्वी को फोड़कर सूर्य का दर्शन करता है, उसी प्रकार कवि भी अपनी कल्पनाओं को गीतों के रूप में मूर्त रूप प्रदान कर ऊँची उड़ानें भरता है।
6. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
(क) 'यह प्रकृत, स्वयंभू. शक्ति को दे दो।
(ख) 'यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक चिर-अखंड अपनापा।'
(ग) 'जिज्ञासु, प्रबद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो।'
उत्तर (क) उपरोक्त पंक्ति में कवि ने अंकुर को प्रकृत, स्वयंभू और ब्रह्म के समान संज्ञा दी है क्योंकि नन्हें से अंकुर में इतनी शक्ति और ऊर्जा होती है कि वह स्वयं ही धरती की कठोर छाती को फोड़कर बाहर निकल आता है और निर्भीक होकर सूर्य की ओर देखने लगता है। उसी प्रकार कवि भी ऊर्जस्वित होकर स्वयं अपने गीतों की रचना करता है और निर्भीकतापूर्वक अपने गीतों को गाता है। इसलिए इनको सम्मान प्राप्त करने का पूरा अधिकार है और कवि के हृदय में काव्य भावनाएँ उत्पन्न होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
(ख) जिस प्रकार दीपक परपीड़ा को दूर करने के लिए स्वयं अग्नि को धारण कर अंधकार को दूर करने का प्रयास करता है। वह सदैव सावधान, जागरूक तथा सबके प्रति स्नेह भाव से परिपूर्ण रहता है और भुजाएँ उठाकर सबको गले लगाने के लिए तत्पर रहता है, उसी प्रकार कवि भी समस्त कष्टों को स्वयं सहते हुए सबको अपनाने के लिए तैयार रहता है।
(ग) यह दीपक सदैव ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा से भरा हुआ, ज्ञानवान तथा श्रद्धालु रहा है। अतः इसे समाज कल्याण के हितार्थ समर्पित कर दो। इसी प्रकार से कवि सामाजिक समस्याओं के प्रति जिज्ञासु, सदैव जागरूक और समर्पित होता है। इसलिए उसे भी लोक कल्याण की भावना में निरन्तर कर्मशील रहना चाहिए।
- 'यह दीप अकेला' यह प्रयोगवादी कविता है। इस कविता के आधार पर 'लघु मानव' के अस्तित्व और महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर 'प्रयोगवाद' कविता में बौद्धिकता को महत्त्व देता है। यहाँ प्रतीकों के माध्यम से शब्द और सत्य के अंतर्संबंधों को दर्शाने का प्रयास हुआ है। 'यह दीप अकेला' कविता में प्रकृति के एक महत्त्वपूर्ण आयाम के माध्यम से व्यष्टि तथा समष्टि के संबंध को दर्शाया गया है।
'यह दीप अकेला' कविता में 'लघु मानव' के अस्तित्व को सामने लाया गया है। यह 'लघु मानव' कोई 'होलोमैन' नहीं है। वह आत्मविश्वास से प्रदीप्त मानव है, जो अपनी लघुता के बीच अपनी विशिष्टताओं के कारण प्रभावित करता है। वह अमरता का पुंज है। संघर्षों में हार नहीं मानने की क्षमता रखने वाला मनुष्य है। कवि ने 'दीप'
के माध्यम से ऐसे 'लघु मानव' का चित्र खींचा है, किंतु वह मानता है कि इस 'लघु मानव' अर्थात् 'आम आदमी' का अस्तित्व समाज के साथ ही सार्थक होता है।
मैंने देखा, एक बूँद
1. 'सागर' और 'बूँद' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर 'सागर' विराट ब्रह्म का प्रतीक है तथा बूँद जीव का प्रतीक है। सागर का अस्तित्व बूँद के समन्वय से संभव है। बूँद की सार्थकता भी सागर के साथ सम्बद्ध होने के कारण ही है। बूँद क्षणभंगुरता का बोध कराती है। सागर से अलग बूँद की क्षणभंगुरता सूर्य की सायंकालीन लालिमा में दिख जाती है, किंतु क्षणभर में ही बूँद सागर में समाहित होकर अमरता को प्राप्त कर लेती है।
- 'रंग गई क्षणभर, ढलते सूरज की आग से'-पंक्ति के आधार पर बूँद के क्षणभर रंगने की सार्थकता बताइए।
उत्तर जीव विराट ब्रह्म की सत्ता की एक इकाई है। उसी प्रकार बूँद अनंत सागर का अंश है। सायंकालीन लालिमा युक्त सूर्य की किरणें सागर की लहरों में उछली एक बूँद को अनुरंजित कर देती हैं। यह अनुरंजित बूँद उछलकर अपना अस्तित्व दिखला जाती है। क्षणभर में अनुरंजित बूँद सागर में विलीन हो जाती है। यह उस जीव की भाँति है, जो सांसारिक अथवा भौतिकता के रंग में रंगने के बाद भी विराट ब्रह्म की सत्ता में लीन हो जाता है। सांसारिकता में रंगे जीव का अस्तित्व ब्रह्म में है, उसी प्रकार सूर्य की लालिमा से अनुरंजित बूँद का मूल भी विराट सागर ही है।
3. 'क्षण के महत्त्व' को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए।
उत्तर जीवन में क्षण का विशेष महत्त्व है। क्षणभर के लिए सागर की लहरों से उछली बूँद सूर्य की सायंकालीन लालिमा से अनुरंजित होती है। बूँद मनुष्य के अस्तित्व का वाचक है जो क्षणभंगुर है। वह सागर से एकाकार होकर अपनी अमरता को नवीन रूप में परिभाषित करता है।
कवि सागर से अलग बूँद की क्षणभंगुरता को स्पष्ट करता है। यह क्षणभंगुरता बूँद की है, समुद्र की नहीं। विराट के सम्मुख बूँद का समुद्र से अलग अस्तित्व वास्तव में मुक्ति की कामना के कारण ही है।
'मैंने देखा, एक बूँद' कविता जीवन में 'क्षण' के महत्त्व को प्रदर्शित करती है।