Chapter 1 सुभाषितानि
पाठ-सार – संस्कृत-साहित्य सुभाषितों का भण्डार है। प्रस्तुत पाठ में अत्यन्त सरल एवं महत्त्वपूर्ण कुल छ: श्लोक हैं, जिनमें जीवनोपयोगी सुन्दर-वचन संकलित हैं।
पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ –
1. पृथिव्यां त्रीणि ………………………………….. विधीयते॥
अन्वयः – पृथिव्यां जलम्, अन्नम्, सुभाषितं त्रीणि रत्नानि (सन्ति)। मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में वास्तविक रूप से रत्न क्या हैं, इसके बारे में कहा गया है कि सभी के लिए लाभदायक एवं उपयोगी जल, अन्न और सुन्दर वचन-ये तीन ही इस पृथ्वी पर रत्न हैं। हीरे आदि पत्थर के टुकड़ों को तो मूर्ख लोग ही रत्न नाम से कहते हैं। अर्थात् मूर्ख रत्न के वास्तविक महत्त्व को नहीं जानते हैं।
2. सत्येन धार्यते …………………………………….. प्रतिष्ठितम्॥
अन्वयः – पृथ्वी सत्येन धार्यते। रविः सत्येन तपते। वायुश्च सत्येन वाति। सत्ये सर्व प्रतिष्ठितम्।।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में सत्य के महत्त्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि सत्य से ही पृथ्वी धारण की जाती है, सत्य से ही सूर्य तपता है, सत्य से ही वायु बहती है तथा संसार में जो भी कुछ है वह सब सत्य पर ही निर्भर है।
3. दाने तपसि शौर्ये …………………………………………. वसुन्धरा॥
अन्वयः – दाने तपसि शौर्ये विज्ञाने विनये नये च विस्मयः न कर्त्तव्यः। हि वसुन्धरा बहुरत्ना (वर्तते)।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में ‘बहुरत्ना वसुन्धरा’ इस सूक्ति के द्वारा स्पष्ट किया गया है कि यह भूमि | अनेक रत्नों वाली है। यहाँ एक से बढ़कर एक दानी, तपस्वी, बलशाली, वैज्ञानिक, विनम्र तथा नीतिज्ञ हैं, अत: इनके कार्य दान, तपस्या आदि में आश्चर्य नहीं करना चाहिए। ये सभी इस पृथ्वी के अमूल्य रत्न हैं। –
4. सद्भिरेव सहासीत ………………… किञ्चिदाचरेत्॥
अन्वयः – सद्भिः सह इव आसीत। सद्भिः सङ्गतिं कुर्वीत। सद्भिः (सह) विवादं मैत्री च (कुर्वीत)। असद्भिः (सह) किञ्चिद् न आचरेत्।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में सत्संगति के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि सज्जनों के साथ ही रहना चाहिए, सज्जनों के साथ ही संगति करनी चाहिए तथा सज्जनों के साथ ही मित्रता अथवा विवाद करना चाहिए, किन्तु दुर्जनों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार नहीं रखना चाहिए, सज्जनों का साथ हर प्रकार से लाभदायक होता है, किन्तु दुर्जनों की संगति सर्वथा हानिकारक ही होती है।
5. धनधान्यप्रयोगेषु ………………………………… सुखी भवेत्॥
अन्वयः – धनधान्यप्रयोगेषु, विद्यायाः संग्रहेषु च आहारे च व्यवहारे त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में संकोच अथवा लज्जा कहाँ नहीं करनी चाहिए, इसका सदुपदेश देते हुए कहा गया है कि धन-धान्य के प्रयोग में, विद्या-प्राप्ति में, भोजन में तथा व्यवहार में संकोच या लज्जा को छोड़ देना चाहिए, जिससे व्यक्ति सुखी हो जाता है। इनमें लज्जा करने से व्यक्ति को कष्ट उठाना पड़ता है। जैसे भोजन के समय संकोच करने से व्यक्ति भूखा ही रह जाता है।
6. क्षमावशीकृतिर्लोके ………………………………… करिष्यति दुर्जनः॥
अन्वयः – लोके क्षमा वशीकृतिः, समया किं न साध्यते? यस्य करे शान्तिखड्गः (अस्ति), दुर्जनः (तस्य) किं करिष्यति?
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में क्षमाशीलता के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि क्षमाशीलता से संसार में सभी को वश में तथा सभी कार्यों को सिद्ध किया जा सकता है। शान्ति (क्षमा) रूपी तलवार होने पर दुर्जन व्यक्ति भी उसका कुछ भी अहित नहीं कर सकता है। अर्थात् क्षमाशीलता एक सर्वश्रेष्ठ शस्त्र है।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ –
- पृथिव्याम् = धरती पर।
- सुभाषितम् = सुन्दर वचन।
- मूढः = मूल् के द्वारा।
- पाषाणखण्डेषु = पत्थर के टुकड़ों में।
- रत्नसंज्ञा = रत्न का नाम।
- विधीयते = किया/समझा जाता है।
- धार्यते = धारण किया जाता है।
- तपते = जलता है।
- वाति = बहता है/बहती है।
- वायुश्च (वायु: + च) = पवन भी।
- प्रतिष्ठितम् = स्थित है।
- तपसि = तपस्या में।
- शौर्ये = बल में।
- नये = नीति में।
- विस्मयः = आश्चर्य।
- बहुरत्ना = अनेक रत्नों वाली।
- वसुन्धरा = पृथिवी।
- सद्भिरेव (सद्भिः+एव) = सज्जनों के साथ ही।
- सहासीत (सह+आसीत) = साथ बैठना चाहिए।
- कुर्वीत = करना चाहिए।
- सद्धिर्विवादम् (सद्भिः विवादम्) = सज्जनों के साथ झगड़ा।
- क्षमावशीकृतिर्लोके (क्षमावशीकृति: लोके) = संसार में क्षमा (सबसे बड़ा) वशीकरण है।
- नासद्धिः (न+असद्भिः) = असज्जन लोगों के साथ नहीं।
- धनधान्यप्रयोगेषु = धनधान्य के प्रयोग में।
- संग्रहेषु = संग्रहों में, संचय करने में।
- त्यक्तलज्जः = संकोच या भीरुता को छोड़ने वाला।
- शान्तिखड्गः = शान्ति की तलवार।