पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में किसानों के कष्टमय एवं कर्मशील जीवन का वर्णन किया गया है। सामान्यतः किसान के रूप में पुरुषों का ही उल्लेख होता है, किन्तु कृषि-कार्य में महिलाओं का भी योगदान पुरुषों से कम नहीं है। इसलिए प्रस्तुत पाठ में लेखक ने विशेष रूप से महिला-किसानों का वर्णन किया है। वस्तुतः सच्चे कर्मशील किसान ही हैं।

वे सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि के कष्टों को सहन करते हुए मानव-कल्याण के लिए अन्न का उत्पादन करते हैं। किसानों का जीवन अत्यन्त कष्टमय होता है। उनके पास न घर होता है, न पर्याप्त वस्व एवं भोजन होता है, फिर भी वे अपने कष्टों की परवाह न करते हुए खेतों में अथक परिश्रम करते रहते हैं।

पाठ के कठिन शब्दार्थ : 

पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ

1. सूर्यस्तपतु मेघाः वा …………………………………………………. शीतकालेऽपि कर्मठौ। 

अन्वयः – सूर्यः तपतु मेघाः वा विपुलं जलं वर्षन्तु। कृषिका कृषिकः (च) शीतकालेऽपि नित्यं कर्मठौ (स्तः)।
हिन्दी-भावार्थ – (चाहे) सूर्य तंपाये अथवा बादल अत्यधिक जल बरसायें, (किन्तु) किसान और उसकी पत्नी (महिला किसान) हमेशा सर्दी में भी काम में लगे रहते हैं। अर्थात् किसान पति-पत्नी भीषण गर्मी, वर्षा एवं शीत में भी कार्य करते रहते हैं।

2. ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं ……………………………………….. क्षेत्राणि कर्षतः॥ 

अन्वयः – ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं (भवति), शीते सदा कम्पमयं (भवति)। (तथापि) तौ हलेन च कुदालेन क्षेत्राणि कर्षतः। 
हिन्दी-भावार्थ – गर्मी में शरीर पसीने से युक्त (लथपथ) होता है और सर्दी में शरीर हमेशा कम्पनयुक्त होता है, फिर भी वे दोनों किसान पति-पत्नी हल के द्वारा और कुदाल से खेत को जोतते रहते हैं।

3. पादयोन पदत्राणे ………………………………………… सुखं दूरे हि तिष्ठति।। 

अन्वयः – पादयोः न पदत्राणे, शरीरे नो वसनानि। जीवनं निर्धनं कष्टम् (अस्ति)। सुखं (तु) दूरे हि तिष्ठति।
हिन्दी-भावार्थ – उन किसानों के पैरों में जूते नहीं हैं, शरीर पर वस्त्र नहीं हैं। उनका जीवन निर्धन और कष्टमय है। सुख तो उनसे दूर ही रहता है। अर्थात् किसानों का जीवन अत्यन्त कष्टमय होता है।

4. गृहं जीर्णं न वर्षास …………………………………………… कृषिकाणां न नश्यति॥ 

अन्वयः – गृहं जीर्णम् (अस्ति)। वर्षासु वृष्टिं वारयितुं न क्षमम्। तथापि कृषिकाणां कर्मवीरत्वं न नश्यति।
हिन्दी भावार्थ – उन महिला किसानों का घर पुराना है, जो वर्षाकाल में वर्षा (बारिश) को रोकने के भी लिए समर्थ नहीं है। फिर भी (उन) महिला किसानों की कर्मठता (परिश्रम करने की भावना) नष्ट नहीं होती है।

5. तयोः श्रमेण क्षेत्राणि ………………………………………… शुष्का कण्टकावृता। 

अन्वयः – तयोः श्रमेण क्षेत्राणि सर्वदा सस्यपूर्णानि (भवन्ति)। या शुष्का कण्टकावृता धरित्री (सा) सरसा जाता।
हिन्दी-भावार्थ – उन दोनों (किसानों) के परिश्रम के द्वारा ही खेत हमेशा फसलों (अन्न) से भरे रहते हैं। जो धरती सूखी और काँटों से ढकी हुई है, वह सरस (हरी-भरी) हो गई है।

6. शाकमन्नं फलं दुग्धं …………………………………………………. विचित्रौ जन-पालको॥ 

अन्वयः – तौ सर्वेभ्यः एव शाकम् अन्नं फलं दुग्धं दत्त्वा विचित्रौ जनपालको (तौ) नित्यं क्षुधा-तृषाकुली (स्तः)।
हिन्दी भावार्थ – वे दोनों किसान पति-पत्नी सभी प्राणियों के लिए शाक (सब्जी), अन्न, फल और दूध देकर विचित्र जनपालक (लोगों का पालन करने वाले) हमेशा (स्वयं) भूख और प्यास से व्याकुल रहते हैं। अर्थात् किसान स्वयं भूखे एवं प्यासे रहकर भी लोगों के लिए खाद्य-पदार्थों का उत्पादन करते हैं।

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