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Chapter 10 प्राकृतिक आपदाएँ

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
बाढ़, भूकम्प, चक्रवात, सूखा आदि आपदाओं के पीछे निहित कारक होते हैं।
(a) दैवी प्रकोप सम्बन्धी कारक
(b) पाप में वृद्धि सम्बन्धी कारक
(C) प्राकृतिक कारक
(d) मानव द्वारा पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि सम्बन्धी कारक
उत्तर:
(c) प्राकृतिक कारक

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सी भूकम्प की स्थिति है?
(a) मकान गिरने से भूमि का हिलना
(b) रेलगाड़ी की धमक से भूमि में कम्पन
(C) पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों की उथल-पुथल से भूमि में कम्पन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(c) पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों की उथल-पुथल से भूमि में कम्पन

प्रश्न 3.
भूकम्प किन कारणों से आ सकता है?
(a) विवर्तनिक हलचल
(b) ज्वालामुखी विस्फोट
(c) अत्यधिक खनन (d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 4.
16 व 17 जून, 2013 में भारत के किस राज्य को भयंकर प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा था? (2014)
(a) बिहार
(b) उत्तर प्रदेश
(c) उत्तराखण्ड
(d) केरल
उत्तर:
(c) उत्तराखण्ड

प्रश्न 5.
बाढ़ से नष्ट होता है। (2017)
(a) फसल
(b) मकान
(c) सड़के और रेलमार्ग
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 6.
बाढ़ से क्षति होती है। (2018)
(a) मनुष्य एवं पालतू जानवर की
(b) मकान की
(C) फसलों की
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 7.
सूखा आपदा का कारण है। (2014)
(a) वन-विनाश
(b) भूमिगत जल का अधिक दोहन
(c) नदी मार्गों में परिवर्तन
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 8.
सुनामी का सबसे अधिक प्रभाव कहाँ होता है? (2013)
(a) पहाड़ी क्षेत्रों में
(b) तटवर्ती क्षेत्रों में
(C) समुद्र के मध्यवर्ती क्षेत्रों में
(d) मैदानी भागों में
उत्तर:
(b) तटवर्ती क्षेत्रों में

प्रश्न 9.
अकस्मात् उत्पन्न होने वाली आपदा है।
(a) पर्यावरण प्रदूषण
(b) भूमि का मरुस्थलीकरण
(C) सूखा
(d) भूस्खलन
उत्तर:
(d) भूस्खलन

प्रश्न 10.
आग लगने का कारण है। (2016)
(a) पानी
(b) सूरज की किरण
(c) कीचड़
(d) लघु परिपथ
उत्तर:
(d) लघु परिपथ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक, 25 शब्द)

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदा से क्या तात्पर्य है? (2009, 18)
उत्तर:
जिन आपदाओं के पीछे उत्तरदायी कारक मानवे नहीं, वरन् प्रकृति होती है, उन्हें प्राकृतिक आपदा’ कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक आपदाएँ कौन-कौन सी हैं? (2009, 13)
उत्तर:
बाढ़, सूखा, भूकम्प, भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, चक्रवात, बादल फटना, सुनामी, ओलावृष्टिं आदि प्राकृतिक आपदाएँ हैं।

प्रश्न 3.
बाढ़ की उत्पत्ति में मानवीय क्रियाकलापों की भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर:
अन्धाधुन्ध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ, अनियोजित निर्माण कार्य आदि मानवीय क्रियाकलापों से प्राकृतिक अपवाह तन्त्र अवरुद्ध हो जाता है। तथा बाढ़ की विध्वंसता बढ़ जाती है।

प्रश्न 4.
सुनामी की उत्पत्ति किस अन्य आपदा से सम्बन्धित है?
उत्तर:
सुनामी की उत्पत्ति भूकम्पीय तरंगों से होती है। अत: यह भूकम्प का एक प्रभाव है।

प्रश्न 5.
सुनामी लहरें तटवर्ती क्षेत्रों पर क्यों अधिक प्रभावी होती हैं?
उत्तर:
जल तरंगों की गति उथले समुद्र में अधिक एवं गहरे समुद्र में कम होती है। इसके अतिरिक्त तरंगों की ऊँचाई तट के निकट अत्यधिक बढ़ जाती है, इन्हीं कारणों से सुनामी लहरें तटवर्ती क्षेत्रों पर अधिक प्रभावी होती हैं।

प्रश्न 6.
सुनामी लहरों से बचाव के कोई दो उपाय बताइए।
उत्तर:
सुनामी लहरों से बचाव के सुरक्षात्मक उपाय के रूप में समुद्रतटवर्ती भागों में पूर्वसूचना केन्द्रों का विकास एवं विस्तार किया जाना चाहिए, इसके अतिरिक्त समुद्री लहरों के प्राकृतिक अवरोधक के रूप में मैंग्रोव वनों को संरक्षित किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आपदा से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन की क्या आवश्यकता है? (2014)
उत्तर:
जिस आपदा से पूरा राष्ट्र प्रभावित वे चिन्तित हो, उसे ‘राष्ट्रीय आपदा कहते हैं। किसी भी राष्ट्रीय आपदा को रोकने, उसके प्रभाव को सीमित करने व उससे बचाव के लिए व्यापक उपाय करने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन की आवश्यकता होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक, 50 शब्द)

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदा पर चार बिन्दु लिखिए। (2008, 10, 13)
उत्तर:
ऐसी आपदाएँ जिनका सम्बन्ध प्रकृति से होता है, ‘प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। प्राकृतिक आपदा से सम्बन्धित चार बिन्दु निम्नलिखित हैं।

  • प्राकृतिक आपदा से जान-माल को बहुत नुकसान होता है।
  • इससे समाज में गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्याएँ बढ़ती हैं।
  • प्राकृतिक आपदाओं को रोकना सम्भव नहीं है, लेकिन इनके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  • प्राकृतिक आपदा के समय जनता को धैर्य से काम लेना चाहिए व मिलकर कार्य करना चाहिए।

प्रश्न 2.
सूखा आपदा के प्रमुख कारण लिखिए। (2012)
उत्तर:
‘सूखा आपदा’ का सीधा सम्बन्ध वर्षा से है, जब किसी क्षेत्र में लम्बे समय तक वर्षा का अभाव होता है और पृथ्वी में नमी की कमी हो जाती है, तो उस स्थिति को ‘सूखा’ कहते हैं। सूखे की स्थिति में कृषि की पैदावार नहीं हो पाती है, प्राकृतिक घास आदि पेड़-पौधे भी नहीं उग पाते हैं, जिससे मानव, पशु व अन्य जीव-जन्तुओं के लिए ‘अकाल’ की स्थिति पैदा हो जाती है।

सूखा आपदा के कारण
सूखा आपदा के निम्नलिखित कारण हैं।

  • किसी क्षेत्र में वर्षा का बिल्कुल न होना या बहुत कम होना।
  • भूमिगत जल को अनियोजित व अनावश्यक रूप में खर्च करना, जिससे पेयजल की कमी हो जाती है।
  • वनों की अन्धाधुन्ध कटाई करना। वन वर्षा को नियमित रूप देने में प्रमुख | भूमिका निभाते हैं। वनों की कमी से वर्षा में भी कमी आ जाती है, जिससे सूखे की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • अवैज्ञानिक ढंग से खनन कार्य करने से भी सम्बन्धित क्षेत्र में सूखे की समस्या हो जाती है।
  • नदी के मार्ग परिवर्तन से पुरातन नदी तटीय क्षेत्र में सूखे की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • मिट्टी की संरचना में परिवर्तन होने से भी सम्बन्धित क्षेत्र में जल की कमी हो जाती है तथा पेड़-पौधे सूखने लगते हैं।

प्रश्न 3.
सूखे के परिणामस्वरूप क्या हानियाँ होती हैं? (2016, 18)
उत्तर:
सूखे के परिणामस्वरूप होने वाली हानियों/प्रभावों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत वर्णित किया जा सकता है।

  • सूखा पड़ने पर फसलें बर्बाद हो जाती हैं, जिससे अन्न की कमी हो जाती है। इस स्थिति को अकाल कहा जाता है।
  • सूखा प्रभावित क्षेत्रों में चारे की कमी होने से मवेशियों की मृत्यु होने लगती है। कृषि कर्म में उपयोगी पशुओं की मौत से सर्वाधिक छोटे एवं सीमान्त किसान प्रभावित होते हैं, इसके अतिरिक्त दूध, मांस आदि की आपूर्ति भी प्रभावित होती है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि कर्म पर आधारित होती है। अतः सूखे की स्थिति में बेरोजगारी वृद्धि दर में तेजी आती है। लोग रोजगार के अवसरों की तलाश में पलायन करने लगते हैं। अत: जनसंख्या असन्तुलन की समस्या उत्पन्न होने लगती है।
  • सूखे की स्थिति में लोगों की क्रयक्षमता कम हो जाती है, जबकि महँगाई में तेजी से वृद्धि होती है, इसका प्रभाव सम्पूर्ण वाणिज्य व्यवस्था पर पड़ता है।
  • कृषि आधारित कच्चे माल के उत्पादन में गिरावट आने से देश के औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • सरकार को सूखे की स्थिति से निपटने के लिए विभिन्न उपायों पर धन व्यय करना पड़ता है। उदाहरणत: सरकार की सब्सिडी एवं आयात आदि पर व्यय बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं विकास कार्यों में ठहराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • पानी की कमी के कारण लोग दूषित जल पीने को बाध्य होते हैं। इसके परिणामस्वरूप पेयजल सम्बन्धी बीमारियाँ; जैसे-आन्त्रशोथ, हैजा और हेपेटाइटिस हो जाती हैं।

प्रश्न 4.
सूखे के प्रभावों का उल्लेख करते हुए उसके निवारण के उपाय लिखिए।
उत्तर:
सूखा आपदा निवारण के उपाय
सूखे से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय सम्भव हैं।

  • वर्षाजल का संरक्षण-संवर्द्धन, नदियों एवं नहरों के जल का समुचित उपयोग आदि माध्यमों से जल-प्रबन्धन आवश्यक है।
  • वृक्षारोपण के माध्यम से हरित पट्टी को विस्तार किया जाए।
  • कुओं, पोखरों एवं तालाबों को स्थानीय जन-सहयोग से पुनर्जीवित किया जाए।
  • नदी-जोड़ो परियोजना के माध्यम से बाढ़ एवं सूखा दोनों आपदाओं पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
  • भूमि उपयोग नियोजन प्रणाली का निर्धारण क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
भूस्खलन आपदा पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भूस्खलन के कारण
भूस्खलन की घटना को प्रभावित करने वाले कारकों में भूआकृतिक कारक, ढाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मनव क्रियाकलाप प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भूस्खलने की घटना प्रायः असंघटित चट्टानों एवं तीव्र ढालों पर अधिक होती है। भूमि का कटाव भी इसमें योगदान देता है।

भूस्खलन के प्रभाव

  • इसका प्रभाव स्थानीय होता है, किन्तु सड़क मार्ग में अवरोध, रेलपटरियों का टूटना और जल वाहिकाओं में चट्टानें गिरने से पैदा हुई रुकावटों के गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।
  • भूस्खलन के कारण नदी मार्गों में बदलाव, बाढ़ का कारण बनता है।
  • विकास कार्यों की गति धीमी पड़ जाती है।

भूस्खलन आपदा के निवारण के उपाय
भूसखलन आपदा के निवारण के लिए निम्न उपाय लिए जा सकते हैं

  • भूस्खलन सम्भावी क्षेत्रों में बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्यों पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  • कृषि कार्य, नदी घाटी तथा कम ढाल वले क्षेत्रों तक सीमित होना चाहिए। पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि करनी चाहिए।
  • वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • जल बहाव को कम करने के लिए छोटे अवरोधक बाँधों का निर्माण करना
    चाहिए।

प्रश्न 6.
आग लगने के सम्भावित कारणों का वर्णन करते हुए आग की घटनाओं से बचाव हेतु व्यवहार्य उपायों का सुझाव कीजिए।
उत्तर:
आग लगने के कारण
आग लगने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।

  • ज्वलनशील पदार्थ एवं उपकरणों से आग लगने की सम्भावना अधिक रहती है। विद्युत हीटर, विद्युत प्रेस आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
  • रसोईघर में चूल्हे के बर्नर का खुला रह जाना, स्टोव अथवा सिलेण्डर का फटना आदि घटनाएँ भी आग लगने का प्रमुख कारण होते हैं।
  • विद्युत धारा के प्रवाह में अनियमितता, बिजली की कमजोर वायरिंग अथवा बहुकेन्द्रीय एडाप्टर शॉर्ट सर्किट (लघु परिपथ) का कारण बनकर आग लगा सकते हैं।
  • शीघ्र आग पकड़ने वाले पैकिंग पेपर, पटाखे आदि में भी आग लगने की सम्भावना विद्यमान रहती है। असावधानीपूर्वक धूम्रपान का व्यवहार भी आग लगने का प्रमुख कारण माना जाता है।

आग से बचाव
आग की घटनाओं से बचाव हेतु निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है।

  • घर के अन्दर ज्वलनशील पदार्थ रखने से बचना चाहिए यदि रखना आवश्यक ‘: हो तो पूरी सावधानी अपनानी चाहिए।
  • घर में आग बुझाने वाले सिलिण्डर को आवश्यक रूप से रखना चाहिए एवं सभी सदस्यों को इसका प्रयोग करना आना चाहिए।
  • घर से बाहर निकलते समय विद्युत तथा गैस उपकरणों को ध्यान से बन्द कर देना चाहिए एवं घर में प्रवेश करने पर सर्वप्रथम गैस आदि के रिसाव की जाँच कर लेनी चाहिए।
  • बिजली के एक सॉकिट से अनेक विद्युत उपकरणों को नहीं जोड़ना चाहिए अन्यथा शॉर्ट सर्किट होने की सम्भावना हो सकती है।
  • आग लगने के कारण को जानकर, तद्नुसार तत्काल आवश्यक कदम उठाना चाहिए। यदि बिजली के शॉर्ट सर्किट से आग लगी हैं, तो आग बुझाने में पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • आग लगने की घटना की सूचना तत्काल ही फायर बिग्रेड को दी जानी चाहिए।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (5 अंक, 100 शब्द)

प्रश्न 1.
भूकम्प आपदा द्वारा कौन-कौन सी हानियाँ होती हैं? (2017)
अथवा
प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव व उनसे बचने का उपाय लिखिए। (2017)
अथवा
हमारे समाज में भूकम्प का क्या प्रभाव पड़ता है? इससे बचने के उपायों को समझाइए। (2010)
अथवा
टिप्पणी कीजिए भूकम्प के प्रभाव तथा उससे बचने के उपाय। (2010)
उत्तर:
भूकम्प
पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों के प्रभाव के कारण से पृथ्वी के किसी भी भाग में होने वाले धीमे या भयंकर कम्पन को भूकम्प कहते हैं। जब पृथ्वी की आन्तरिक परतों में हलचल होती है, तो इसका प्रभाव पृथ्वी की सतह पर खड़ी इमारतों, सड़कों, पुलों, बाँधों आदि पर होता है, जिससे प्रभावित मानवों का जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है।

समाज में भूकम्प का प्रभाव
भूकम्प उन प्राकृतिक आपदाओं में से एक है, जिन्होंने हमारे समाज को सबसे अधिक दुष्प्रभावित किया है। वास्तव में, भूकम्प अनेक प्रकार की तबाही का कारण बनता है। भूकम्प से पृथ्वी की बाह्य परत पर भी कम्पन होता है, जिससे प्रभावित क्षेत्र के मकान, सड़कें, टावर, पुल, वन-क्षेत्र इत्यादि को क्षति पहुँचती है। बाँध टूटने से नदियों में बाढ़ आ जाती है, जिससे आस-पास के क्षेत्र भी डूबने लगते हैं।

इन सभी स्थितियों से जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। बहुत-से लोग काल का ग्रास बन जाते हैं, तो बहुत-से जीवनभर के लिए अवसादग्रस्त हो जाते हैं। बहुत-से परिवार बिखर जाते हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं। इसका सम्पूर्ण सामाजिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रभावित क्षेत्रों में सुधार के प्रयासों में देरी होने पर महामारियाँ फैलने लगती हैं, जिसका प्रभाव जन-सामान्य पर पड़ता है। इस प्रकार भूकम्प से प्रभावित समाज के पुनर्वास में बहुत समय लग जाता है।

भूकम्प से बचाव के उपाय
यद्यपि भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदा को टाला नहीं जा सकता है, किन्तु इसके प्रभावों को शीघ्रता से कम अवश्य ही किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।

  1. भूकम्प की आशंका होने पर, इसकी चेतावनी जारी कर देनी चाहिए, ताकि प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को हटाया जा सके, इससे जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकेगी।
  2. भूकम्प आने पर शीशे की खिड़की आदि नुकीली चीजों से दूर हट जाना चाहिए।
  3. भूकम्प आते ही घरों से बाहर आकर किसी खुले भाग में चले जाना चाहिए।
  4. खुला स्थान न मिलने पर मेज या पलंग के नीचे बैठ जाना चाहिए।
  5. मकान की दीवारों या भारी सामान से दूर हट जाना चाहिए।
  6. दरवाजों के पास खड़े होकर चौखट को पकड़ लेना चाहिए।
  7. भूकम्प आने पर खुले स्थान पर भी बिजली के तारों इत्यादि से दूर हट जाना चाहिए।
  8. भूकम्प से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में मकान लकड़ी के बनाए जाने चाहिए।

प्रश्न 2.
बाढ़ के प्रभाव तथा उससे बचने के उपाय लिखिए। (2011)
उत्तर:
बाढ़
जब नदी का पानी अपने प्रवाह क्षेत्र से बाहर निकलकर आस-पास के क्षेत्रों में फैल जाती है, तो उस स्थिति को ‘बाढ़’ कहते हैं। सामान्यत: वर्षा ऋतु में अधिक वर्षा के कारण नदियों में बाढ़ की स्थिति देखी जाती है। इसके अलावा बाँधों के टूटने से, नदी के मार्ग परिवर्तित करने आदि स्थितियों के कारण भी बाढ़ की स्थिति देखी जाती है।

बाढ़ के प्रभाव
बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है। यह अपने प्रभाव क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित कर देती है। बाढ़ के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं।

  1. बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र में चारों ओर पानी-ही-पानी भरा होता है। पानी इमारतों, घरों, दफ्तरों, स्कूलों में भर जाता है, जिससे लोगों का जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।
  2. बाढ़ में डूबने से बड़ी संख्या में मानव जीवने व पशुओं की क्षति होती है।
  3. बाढ़ का सर्वाधिक प्रभाव बुजुर्गों व अपाहिज लोगों पर पड़ता है, जो अपना बचाव करने में सक्षम नहीं होते हैं।
  4. बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में भोजन, पेयजल आदि दिन-प्रतिदिन की आवश्यक वस्तुओं की कमी हो जाती है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा भी कुप्रभावित होती है।
  5. अधिक समय तक पानी भरे रहने से सम्बन्धित क्षेत्रों में महामारी फैलने का डर बना रहता है। इसके अलावा मच्छर आदि का भी प्रकोप बढ़ जाता है।

बाढ़ आपदा निवारण के उपाय
बाढ़ आपदा निवारण के उपाय सामान्यत: तीन स्तरों में बाँटे जा सकते हैं, इनका विवरण निम्नलिखित है।

1. बाढ़ आपदा से पूर्व उपाय
बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में निम्नलिखित उपायों पर ध्यान देकर बाढ़ जैसी प्राकृतिक घटना को आपदा बनने से रोका जा सकता है।

  • बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में नदी जलमार्गों को सीधा रखने पर ध्यान देना चाहिए, नदियों के मार्ग बदलने से बाढ़ आने की आशंका अधिक रहती है।
  • स्थानीय स्तर पर कृत्रिम जलाशय बनाए जाने चाहिए, जिससे बाढ़ की स्थिति में जल को कृत्रिम जलाशय की ओर मोड़ा जा सके।
  • नदियों को आपस में जोड़ने की व्यवस्था की जानी चाहिए, इससे वर्षा के अधिक जल को कम जल क्षेत्र की ओर मोड़ा जा सकता है।
  • तटबन्धों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में बाढ़ आपदा को रोकने के लिए भूस्खलन पर नियन्त्रण आवश्यक है। अतः पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण हेतु विस्फोटों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे भूस्खलन की आशंकाएँ बढ़ती हैं।
  • नगर नियोजन के दौरान जल निकास व्यवस्था पर पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। किसी भी प्रकार से जलधाराओं का प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध नहीं होना चाहिए।
  • नदियों, तालाबों व झीलों के निकट अतिक्रमण के द्वारा बसाव कार्यों पर पूर्ण रोक लगाई जानी चाहिए, जिससे बाढ़ द्वारा होने वाली क्षति न्यूनतम हो।
  • नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों पर सघन वृक्षारोपण का अभियान चलाया जाना चाहिए तथा वन विनाश को रोकने के लिए हर सम्भव उपाय किए। जाने चाहिए।

2. बाढ़ आपदा के दौरान उपाय
बाढ़ आपदा के दौरान निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

  • जल बहाव के मार्ग में, सतह पर रेत के थैले रखे जाने चाहिए, जिससे सतह सुरक्षित रहे।
  • कमजोर इमारतों से निकलकर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाना चाहिए।
  • बाढ़ के दौरान पेड़ों पर चढ़ना खतरनाक साबित हो सकता है। घर की छतों का उपयोग बाढ़ के दौरान उपयुक्त हो सकता है।

3. बाढ़ आपदा के पश्चात् उपाय
बाढ़ आपदा के पश्चात् किए जाने वाले राहत कार्यों के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

  • अपने घर तथा आस-पास के क्षेत्र की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • युवा पीढ़ी को मिलकर स्थानीय स्तर पर वृक्षारोपण का अभियान चलाया जाना चाहिए, जिससे मिट्टी के कटाव की समस्या का स्थायी समाधान किया जा सके।
  • सरकारी स्तर पर प्राप्त हो रही सुविधाओं का लाभ उठाने हेतु, क्षेत्र के सम्बन्धित प्रशासनिक अधिकारी से अवश्य सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।
  • बाढ़ के पश्चात् चारों ओर फैले हुए पानी पर कीटाणुनाशक दवाएँ छिड़कनी चाहिए, जिससे संक्रामक रोगों के प्रसार को रोका जा सके।

उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में बाढ़ के लिए प्राकृतिक कारणों की अपेक्षा मानवीय कारण अधिक प्रभावी होते जा रहे हैं। अतः आवश्यकता है कि हम पर्यावरण व्यवस्था को बनाए रखने पर विशेष ध्यान केन्द्रित करें। इससे बाढ़ प्रकोप की घटनाओं में अवश्य ही कमी आएगी।

Chapter 10 प्राकृतिक आपदाएँ