Chapter 2 नैदानिक पोषण और आहारिकी
Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
नैदानिक पोषण और आहारिकी के अध्ययन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नैदानिक पोषण और आहारिकी के अध्ययन का महत्त्व
नैदानिक पोषण और आहारिकी, बीमारी के समय के पोषण से संबंधित है, जिसे चिकित्सीय पोषण उपचार भी कहते हैं। इसके अध्ययन के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) प्रमाणित बीमारी वाले मरीजों के पोषण प्रबंधन पर केन्द्रित अध्ययन-स्वास्थ्य समस्यायें/अस्वस्थता/ बीमारियाँ और उनका उपचार पोषण स्थिति को कई प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं, जैसे-व्यक्ति के खाने और निगलने की क्षमता को कम करके; पाचन, अवशोषण और उपापचय के साथ-साथ उत्सर्जन में बाधा डालकर। यदि कुछ व्यक्तियों में प्रारंभ में एक क्रिया प्रभावित होती है, तो स्वास्थ्य समस्यायें बढ़ जाने पर शरीर की अन्य क्रियायें भी प्रभावित हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में मरीजों के सही पोषण के लिए नैदानिक पोषण और आहारिकी का अध्ययन अत्यन्त उपयोगी होता है क्योंकि यह प्रमाणित बीमारी वाले मरीजों के पोषण प्रबंधन पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करता है।

(2) मरीज का समुचित रूप से पोषण तथा देखभाल की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण-शरीर के किसी अवयवं/ऊतक/ तंत्र की क्रिया बीमारी से प्रभावित हो सकती है। यह बीमारी छोटी और विकट से बड़ी और कभी-कभी असाध्य अथवा दीर्घकालीन समस्याओं के रूप में हो सकती है। इन सब परिस्थितियों में, यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि व्यक्ति का समुचित रूप से पोषण हो और इसके लिए जो व्यक्ति सेवाएँ दे रहा है, वह प्रशिक्षित आहार विशेषज्ञ हो। व्यावसायिक कित्सीय पोषण विशेषज्ञ/आहार विशेषज्ञ पोषण देखभाल के लिए एक व्यवस्थित और औचित्यपूर्ण तरीका काम में लेता है, जो प्रत्येक व्यक्ति/मरीज की विशिष्ट आवश्यकताओं पर केन्द्रित होता है और व्यक्तिगत तथा पूर्ण रूप से लागू होता है। मरीज, पोषण देखभाल प्रक्रिया का प्राथमिक केन्द्र होता है।

स्पष्ट है कि मरीज के उचित पोषण तथा देखभाल के लिए नैदानिक. पोषण और आहारिकी का अध्ययन आवश्यक है।

(3) बीमारियों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण-बीसवीं तथा इक्कीसवीं सदियों में अनेक नयी बीमारियाँ जैसे-एच.आई.वी./एड्स उभर कर आई हैं और मोटापा, हृदय रोग, अति तनाव, मधुमेह जैसी गैर-संक्रामक बीमारियाँ न केवल व्यापक रूप से बढ़ रही हैं, बल्कि बहुत कम उम्र में हो रही हैं। इसके अतिरिक्त जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहे हैं जिसमें वृद्धजनों की संख्या में वृद्धि हुई है।

इस प्रकार, जनसंख्या का वह भाग बढ़ रहा है, जिसे पोषण देखभाल, सहायता और आहार सलाह की आवश्यकता है। नैदानिक पोषण विशेषज्ञ/चिकित्सा पोषण उपचारक विभिन्न बीमारियों के प्रबंधन के लिए चिकित्सीय आहार बताने के अलावा बीमारियों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(4) असाध्य बीमारियों में शरीर-क्रियात्मक और उपापचयी गड़बड़ी संबंधी नवीन वैज्ञानिक ज्ञान के उपयोग की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण-असाध्य और गंभीर बीमारियों में शरीर-क्रियात्मक और उपापचयी गड़बड़ी संबंधी नवीन वैज्ञानिक ज्ञान सामने आया है; पोषण मूल्यांकन के नए तरीके विकसित हुए हैं और अपनाए जा रहे हैं; मरीजों के पोषण की नयी तकनीक और पूरकों का उपयोग किया जा रहा है। पोषण सम्बन्धी आधारभूत शोध ने विभिन्न पोषकों और अन्य पदार्थों की भूमिका और औषध निर्माण उद्योग में हुए विकास पर प्रकाश डाला है इससे नैदानिक पोषण के क्षेत्र में उन्नति हुई है।

अतः नैदानिक पोषण के क्षेत्र में हुए नए वैज्ञानिक शोधों व ज्ञान के उपयोग की दृष्टि से भी नैदानिक पोषण और आहारिकी का अध्ययन अत्यन्त महत्त्व का है।

प्रश्न 2.
चिकित्सीय आहारों को हम सामान्य आहारों का संशोधन रूप क्यों मानते हैं?
उत्तर:
चिकित्सीय आहारों को हम सामान्य आहारों का संशोधन रूप मानते हैं क्योंकि-
एक सामान्य आहार, एक स्वस्थ मानव का वह नियमित आहार होता है, जो सभी प्रकार के भोजनों को सम्मिलित करता है और स्वस्थ व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। दूसरी तरफ संशोधित आहार वे होते हैं जो एक रोगी की चिकित्सीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समायोजित किए जाते हैं। इनमें निम्नलिखित में से एक या अधिक हो सकते हैं-

क्रमबद्धता और/अथवा बनावट (जैसे-तरल और नरम आहार),
ऊर्जा (कैलोरी) अंतर्ग्रहण में कमी अथवा वृद्धि,
एक या अधिक पोषकों को कम या अधिक मात्रा में शामिल करना।
हरण के लिए शल्यक्रिया (सर्जरी) में अधिक प्रोटीन लेनाः गर्दा (किडनी) खराब हो जाने पर कम प्रोटीन लेना, अधिक या कम रेशा, कम वसा लेना, सोडियम लेने पर रोक, तरल भोजन पर रोक, कुछ विशेष खाद्य पदार्थों पर रोक जिनमें अपोषणीय आहार अवयवों की मात्रा अधिक हो सकती है, जैसे-गुर्दे में पथरी होने पर कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करते हैं या हटा देते हैं, आदि।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि चिकित्सीय आहार सामान्य आहारों का संशोधन रूप ही होते हैं, क्योंकि वे मरीज की आयु, शारीरिक अवस्था, स्वास्थ्य की स्थिति के आधार पर सामान्य आहारों में से एक या अधिक पोषक को कम या अधिक मात्रा में लेने, मरीज की आवश्यकतानुसार भोजन की बनावट में परिवर्तन करने तथा कैलोरी अंतग्रहण में कमी या वृद्धि करने से तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 3.
आहारी संशोधन क्या है, जो एक चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ कर सकता है?
उत्तर:
आहारी संशोधन से आशय-आहारी संशोधन एक सामान्य आहार को, रोगी की चिकित्सीय आवश्यकताओं के अनुसार भोजन की बनावट में परिवर्तन करके, कैलोरी के अंतर्ग्रहण में कमी या वृद्धि करके तथा एक या अधिक पोषकों को कम या अधिक मात्रा में सम्मिलित करके, संशोधित रूप में तैयार किया जाता है।

यह आहारी संशोधन एक चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ ही कर सकता है क्योंकि
(अ) उसमें निम्नलिखित आवश्यक ज्ञान होते हैं-

रोग की परिस्थितियों में शारीरिक परिवर्तनों का ज्ञान।
पोषक तत्त्व की प्रस्तावित दैनिक मात्रा (आर.डी.ए.) में परिवर्तनों का ज्ञान।
बीमारी में पोषकों की आवश्यकता का ज्ञान।
आवश्यक आहारी संशोधनों के प्रकार का ज्ञान।
परंपरागत और जातीय पाक-विधियों का ज्ञान।
रोगियों के साथ प्रभावी रूप से बातचीत के लिए विभिन्न भाषाओं का ज्ञान।
(ब) उसमें निम्नलिखित आवश्यक कौशल होते हैं-

नैदानिक और जैव रासायनिक मापदण्डों का उपयोग कर रोगियों की आहारी दशा के मूल्यांकन का कौशल।
वैयक्तिक रोगियों और विशिष्ट रोग परिस्थितियों में आवश्यकताओं के अनुरूप आहार योजना तैयार करने का कौशल।
रोगियों के लिए आहारों की संस्तुति करने और देने का कौशल।
आहार की सलाह हेतु बातचीत करने का कौशल।
सांस्कृतिक वातावरण को अपनाने तथा भोजन निषिद्धता और मिथ्या धारणाओं से मुक्त होने का कौशल।
उपर्युक्त ज्ञान और कौशल के अभाव में किसी मरीज के लिए उपयुक्त आहार-संशोधन करना संभव नहीं है और चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ उपर्युक्त ज्ञान तथा कौशलों से परिपूर्ण होता है। इसलिए आहारी संशोधन एक चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ ही कर सकता है।

प्रश्न 4.
विभिन्न प्रकार के चिरकालिक रोगों से बचने के लिए हमें आहारी परिवर्तनों की आवश्यकता क्यों होती है? ये जीवन शैली से किस प्रकार संबंधित हैं? आहार चिकित्सा से दीर्घकालिक रोगों का उपचार किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
चिरकालिक रोग और जीवन-शैली-चिरकालिक रोग हमारी जीवन शैली से संबंधित है। पिछले दशकों में शहरी भारतीयों की जीवन-शैली में आए परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उनके आहारों में भी विभिन्न प्रकार के परिवर्तन आए हैं। जैसे-

उनके भोजन में वसा और परिष्कृत शक्कर का उपयोग बढ़ गया है।
रेशेदार भोजन के अतिरिक्त कई विटामिनों और खनिजों को लिया जाना कम हो गया है।
मांसाहारी लोगों में जंतु प्रोटीन का उपयोग भी बढ़ गया है।
जीवन शैली से आए आहार सम्बन्धी परिवर्तनों के परिणामस्वरूप चिरकालिक रोगों में वृद्धि-परिवर्तित जीवन शैली के कारण जो आहार सम्बन्धी उक्त परिवर्तन आए हैं, उनके परिणामस्वरूप उनमें चिरकालिक रोग, जैसे-मोटापा, कोलन का कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग और अति तनाव आदि बढ़ गए हैं। उदाहरण के लिए, (i) शक्कर और वसा के बढ़ते उपभोग के साथ रेशों के कम उपभोग और शारीरिक गतिविधियों में कमी के कारण मोटापा और मधुमेह पनप रहे हैं।

(ii) अधिक लवण युक्त खाद्य पदार्थों, अधिक सोडियम अंश वाले संसाधित खाद्य पदार्थों, पोटैशियम से परिपूर्ण फलों, सब्जियों, अनाजों और दालों का कम उपयोग, कम कैल्सियम अंतर्ग्रहण, कम शारीरिक गतिविधियाँ और तनाव उच्च रक्तचाप के खतरे को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं।

चिरकालिक रोगों से बचने के लिए आहारी परिवर्तनों की आवश्यकता-चूँकि चिरकालिक रोगों की वृद्धि आहारी परिवर्तनों के कारण ही आए हैं, इसलिए इनसे बचने के लिए हमें अधिक वसा, शक्कर और अधिक लवण युक्त भोजन में परिवर्तन करना आवश्यक है। पोषणयुक्त आहार और स्वस्थ जीवन शैली चिरकालिक रोगों को नियंत्रित करने और उनके प्रारंभ होने की अवस्था में विलम्ब कर सकते हैं। हमें अपने आहार में रेशेदार पदार्थों और ऐसे अन्य महत्त्वपूर्ण अवयवों की वृद्धि करनी चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। जैसे-(i) पोटैशियम से परिपूर्ण फलों, सब्जियों, अनाजों और दालों का अधिक उपयोग किया जाना चाहिए।

(ii) एक अध्ययन में पाया गया है कि सप्ताह में एक बार मछली खाने वालों में हृदय रोग से अचानक मरने की संभावना में 52 प्रतिशत की कमी आती है क्योंकि मछली में ओमेगा-3 वसा अम्लों की मात्रा अधिक होती है, जो कोशिकाओं के आवश्यक अवयव होते हैं और हृदय को घातक एरीथीमियास जैसे रोगों से बचा सकता है।

आहार चिकित्सा से दीर्घकालिक रोगों का उपचार-(i) नैदानिक पोषण विशेषज्ञ दीर्घकालिक रोगों को उत्पन्न होने से रोकने के लिए समाज के विभिन्न समूहों, जैसे-विद्यालय, औद्योगिक क्षेत्र, महाविद्यालय इत्यादि को उचित आहार परामर्श और मार्गदर्शन दे सकते हैं।

(ii) अच्छा पोषणयुक्त आहार और साथ ही स्वस्थ जीवन शैली चिरकालिक रोगों को नियंत्रित करने और उनके प्रारंभ होने की अवस्था में विलम्ब कर सकता है। अच्छा पोषणयुक्त आहार वह है जो रेशेदार भोजन के अतिरिक्त कई विटामिनों और खनिजों से भरा हो, जिसमें पोटैशियम से परिपूर्ण फलों, सब्जियों एवं दालों का उपयोग अधिक हो।

प्रश्न 5.
एक आहार विशेषज्ञ की भूमिकाएँ क्या होती हैं? एक आहार विशेषज्ञ रोगी के देखभाल के लिए, अन्य स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कर्मचारियों के साथ टीम कैसे बनाता है?
उत्तर:
एक आहार विशेषज्ञ की भूमिकाएँ
एक आहार विशेषज्ञ की प्रमुख भूमिकाएँ निम्नलिखित होती हैं-
(1) एक आहार विशेषज्ञ की भूमिका सलाह देने और तकनीकी सूचना को आहार सम्बन्धी दिशा-निर्देशों में बदलने की होती है और यदि आवश्यक हो तो जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों (गर्भावस्था, नवजात और बाल्यावस्था से वृद्धावस्था) तक अच्छी पोषण स्थिति बनाए रखने और स्वस्थ रहने में मदद करने की होती है।

(2) पोषण और आहार चिकित्सा का उपयोग विस्तृत परिस्थितियों में मरीजों के स्वास्थ्य के सम्पूर्ण सुधार के लिए भी किया जाता है। इन परिस्थितियों के उदाहरण हैं-दस्त, उल्टी, भोजन एलर्जी, बुखार, टायफॉयड, क्षयरोग, अल्सर, अति अम्लता और हृदय जलन, मिरगी, जठरांत्र समस्याएँ, एड्स, कैंसर, मोटापा, जलन, उपापचयी गड़बड़ और किडनी, लीवर की गड़बड़ियाँ आदि।

(3) जिन मरीजों को ऑपरेशन कराना होता है, उन्हें सर्जरी से पहले और बाद में पोषण हस्तक्षेप। पूरक आहार की आवश्यकता होती है।

अतः स्पष्ट है कि एक आहार विशेषज्ञ का सरोकार विभिन्न रोगों से पीड़ित मरीजों को पोषण आवश्यकताओं से और उन्हें सही प्रकार का आहार सुझाने से है।

(4) एक आहार विशेषज्ञ के लिए यह भी आवश्यक है कि वह भोजन के स्वीकरण और उपयोग पर अस्वस्थता के प्रभाव को भी देखे।

रोगी के देखभाल के लिए आहार विशेषज्ञ की टीम-चिकित्सक ही रोगी की चिकित्सीय आवश्यकताओं, जिसमें पोषण भी सम्मिलित है, को पूरा करने के लिए मूल रूप से उत्तरदायी होते हैं। डॉक्टर आहार के बारे में बताता है और चिकित्सीय रिकॉर्ड में आहार आदेश लिखता है। वह पोषण देखभाल, जैसे-व्यापक पोषक मूल्यांकन, आहार लेने का आकलन और आहार सलाह सम्बन्धी आदेश भी लिख सकता है। इनको लागू करने के लिए डॉक्टर आहार विशेषज्ञ। डॉक्टरी पोषण चिकित्सक पर निर्भर रहता है। इस प्रकार रोगी के देखभाल के लिए डॉक्टर आहार विशेषज्ञ की टीम बनाता है।

प्रश्न 6.
डॉक्टरी पोषण और आहार विशेषज्ञों की जीविका के लिए हम कैसे तैयारी कर सकते हैं?
उत्तर:
डॉक्टरी पोषण और आहार विशेषज्ञों की जीविका के लिए तैयारी
(1) आहारिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पास करना-यदि हम आहार विशेषज्ञ बनना चाहते हैं, तो हमें कम से-कम आहारिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पास करना होगा और साथ ही इंटर्नशिप करनी होगी, जिससे हम पंजीकृत आहार विशेषज्ञ के योग्य हो सकें।

जिनके पास जीव विज्ञान, जैवरसायन, सूक्ष्मजैविकी, या जैव प्रौद्योगिकी में बी.एस.सी. की डिग्री है, वे इस क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिप्लोमा स्तर पर प्रवेश पा सकते हैं।

(2) खाद्य विज्ञान और पोषण (आहारिकी) में एम.एस.सी.-खाद्य विज्ञान और पोषण अथवा आहारिकी में एम.एस.सी. किसी भी व्यक्ति को इस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदान करती है और ऐसे व्यक्ति को कई स्थानों पर नौकरी में वरीयता दी जाती है।

(3) पंजीकृत आहार विशेषज्ञ की योग्यता का प्रमाण पत्र प्राप्त करना-एक आहार विशेषज्ञ अपनी विश्वविद्यालय की शिक्षा पूरी करने के बाद आगे अध्ययन करके ‘पंजीकृत आहार विशेषज्ञ’ की योग्यता का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकता है। बहुत से देशों में इस सम्बन्ध में नियंत्रक कानून हैं।

(4) शिक्षण और शोध पर केन्द्रित जीविका पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त करना-यदि कोई व्यक्ति शिक्षण और ‘शोध पर केन्द्रित जीविका का चयन करता है तो विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और शोध संस्थानों में बहुत से विकल्प खुल जाते हैं।

शिक्षण सम्बन्धी पदों के लिए योग्य होने के लिए अब आवश्यक हो गया है कि व्यक्ति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अथवा राज्य पात्रता परीक्षा पास करे। यह सलाह दी जाती है कि यदि कोई व्यक्ति शैक्षिक या शोध क्षेत्रों में अपनी जीविका चाहता है तो वह पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त करे।

प्रश्न 7.
अच्छे पोषण का क्या महत्त्व है? अस्वस्थता/रोग किस प्रकार किसी व्यक्ति की पोषण स्थिति को प्रभावित करता है?
उत्तर:
अच्छे पोषण का महत्त्व
अच्छे पोषण के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण-संक्रमण से प्रतिरोध क्षमता और सुरक्षा देने तथा विभिन्न प्रकार की बीमारियों से स्वास्थ्य लाभ पाने के साथ असाध्य बीमारियों से निपटने के लिए अच्छा पोषण महत्त्वपूर्ण होता है। जब पोषक पदार्थों की प्राप्ति अपर्याप्त होती है तो शरीर के लिए रोधक्षमता रक्षा, घाव भरने, उपचार के उपयोग तथा अंगों के सुचारु रूप से कार्य करने में कठिनाई होती है। ऐसे व्यक्ति अतिरिक्त जटिलताओं के शिकार हो सकते हैं।

(2) बीमारियों के उपचार में महत्त्व-अच्छा पोषण कुछ बीमारियों के उपचार में भी प्रमुख भूमिका निभाता है और कुछ में यह चिकित्सीय उपचार के पूरक का कार्य करता है।

(3) बीमारी से पहले और उसके बाद में उपयोगी-बीमारी से पहले और बीमारी के बाद में पोषक स्थिति और पोषक सहायता रोग के पूर्वानुमान, स्वास्थ्य लाभ और अस्पताल में ठहराने के समय निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(4) चिरकालिक रोगों की रोकथाम-अच्छा पोषण (साथ ही स्वस्थ जीवन शैली) रोगी व्यक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण होने के अतिरिक्त, चिरकालिक रोगों मोटापा, मधुमेह, हृदयरोग, अति तनाव, उच्च रक्तचाप आदि-को नियंत्रित करने और उनके प्रारंभ होने की अवस्था में विलम्ब कर सकता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य और अच्छा पोषण परस्पर अंतरंग रूप से जुड़े हुए हैं। निम्न पोषण न केवल नई स्वास्थ्य समस्यायें उत्पन्न करता है, बल्कि वर्तमान स्वास्थ्य समस्याओं को बदतर बना सकता है।

रोग का व्यक्ति की पोषण स्थिति पर प्रभाव
रोग रोगी की पोषण स्थिति को कई प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं। यथा-

व्यक्ति के खाने और/अथवा निगलने की क्षमता को कम करके।
पाचन, अवशोषण तथा उपापचय के साथ-साथ उत्सर्जन में बाधा डालकर।
यदि कुछ रोगियों में प्रारंभ में एक क्रिया प्रभावित होती है, तो स्वास्थ्य समस्यायें बढ़ जाने पर उनके शरीर की अन्य क्रियायें भी प्रभावित हो सकती हैं। शरीर के किसी अवयव/ऊतक/तंत्र की क्रिया बीमारी से प्रभावित हो सकती है, लेकिन बीमारी से छोटी और विकट से बड़ी और कभी-कभी असाध्य अथवा दीर्घकालिक समस्यायें पैदा हो सकती हैं।

उक्त सभी परिस्थितियों में यह आवश्यक है कि व्यक्ति को समुचित रूप से नैदानिक पोषण दिया जाये।

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