Chapter – 2 मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, पग घुँघरू बाधि मीरां नाची

कवि परिचय
मीरा

जीवन परिचय-कृष्ण भक्त कवियों में मीराबाई का प्रमुख स्थान है। उनका जन्म 1498 ई० में मारवाड़ रियासत के कुड़की नामक गाँव में हुआ। इनका विवाह 12 वर्ष की आयु में चित्तौड़ के राणा सांगा के पुत्र कुंवर भोजराज के साथ हुआ। शादी के 7-8 वर्ष बाद ही इनके पति का देहांत हो गया।
इनके मन में बचपन से ही कृष्ण-भक्ति की भावना जन्म ले चुकी थी। इसलिए वे कृष्ण को अपना आराध्य और पति मानती रहीं।
इन्होंने देश में दूर-दूर तक यात्राएँ कीं। चित्तौड़ राजघराने में अनेक कष्ट उठाने के बाद ये वापस मेड़ता आ गई। यहाँ से उन्होंने कृष्ण की लीला भूमि वृंदावन की यात्रा की। जीवन के अंतिम दिनों में वे द्वारका चली गई। माना जाता है कि वहीं रणछोड़ दास जी की मंदिर की मूर्ति में वे समाहित हो गई। इनका देहावसान 1546 ई. में माना जाता है।

रचनाएँ-मीरा ने मुख्यत: स्फुट पदों की रचना की। ये पद ‘मीराबाई की पदावली’ के नाम से संकलित हैं। दूसरी रचना नरसीजी-रो-माहेरो है।

साहित्यिक विशेषताएँ-मीरा सगुण धारा की महत्वपूर्ण भक्त कवयित्री थीं। कृष्ण की उपासिका होने के कारण इनकी कविता में सगुण भक्ति मुख्य रूप से मौजूद है, लेकिन निर्गुण भक्ति का प्रभाव भी मिलता है। संत कवि रैदास उनके गुरु माने जाते हैं। इन्होंने लोकलाज और कुल की मर्यादा के नाम पर लगाए गए सामाजिक और वैचारिक बंधनों का हमेशा – विरोध किया। इन्होंने पर्दा प्रथा का पालन नहीं किया तथा मंदिर में सार्वजनिक रूप से नाचने-गाने में कभी हिचक महसूस नहीं की। मीरा सत्संग को ज्ञान प्राप्ति का माध्यम मानती थीं और ज्ञान को मुक्ति का साधन। निंदा से वे कभी विचलित नहीं हुई। वे उस युग के रूढ़िग्रस्त समाज में स्त्री-मुक्ति की आवाज बनकर उभरी।

भाषा-शैली-मीरा की कविता में प्रेम की गंभीर अभिव्यंजना है। उसमें विरह की वेदना है और मिलन का उल्लास भी। इनकी कविता में सादगी व सरलता है। इन्होंने मुक्तक गेय पदों की रचना की। उनके पद लोक व शास्त्रीय संगीत दोनों क्षेत्रों में आज भी लोकप्रिय हैं। इनकी भाषा मूलत: राजस्थानी है तथा कहीं-कहीं ब्रजभाषा का प्रभाव है। कृष्ण के प्रेम की दीवानी मीरा पर सूफियों के प्रभाव को भी देखा जा सकता है।

पाठ का सारांश

पहले पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्यता व्यक्त की है तथा व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगों के प्रति दुख प्रकट किया है। वे कहती हैं कि मोर मुकुटधारी गिरिधर कृष्ण ही उसके स्वामी हैं। कृष्ण-भक्ति में उसने अपने कुल की मर्यादा भी भुला दी है। संतों के पास बैठकर उसने लोकलाज खो दी है। आँसुओं से सींचकर उसने कृष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी है। अब इसमें आनंद के फल लगने लगे हैं। उसने दही से घी निकालकर छाछ छोड़ दिया। संसार की लोलुपता देखकर मीरा रो पड़ती हैं और कृष्ण से अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।
दूसरे पद में प्रेम रस में डूबी हुई मीरा सभी रीति-रिवाजों और बंधनों से मुक्त होने और गिरिधर के स्नेह के कारण अमर होने की बात कर रही हैं।
मीरा पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के सामने नाचती हैं। लोग इस हरकत पर उन्हें बावली कहते हैं तथा कुल के लोग कुलनाशिनी कहते हैं। राणा ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा जिसे उन्होंने हँसते हुए पी लिया। मीरा कहती हैं कि उसके प्रभु कृष्ण सहज भक्ति से भक्तों को मिल जाते हैं।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 

1.

मरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी

अब त बेलि फॅलि गायी, आणद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी 
दधि  मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी 
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी 
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही (पृष्ठ-137)

शब्दार्थ

गिरधर-पर्वत को धारण करने वाला यानी कृष्ण। गोपाल-गाएँ पालने वाला, कृष्ण। मोर मुकुट-मोर के पंखों का बना मुकुट। सोई-वही। जा के-जिसके। छाँड़ि दयी-छोड़ दी। कुल की कानि-परिवार की मर्यादा। करिहै-करेगा। कहा-क्या। ढिग-पास। लोक-लाज-समाज की मर्यादा। असुवन-आँसू। सींचि-सींचकर। मथनियाँ-मथानी। विलायी-मथी। दधि-दही। घृत-घी। काढ़ि लियो-निकाल लिया। डारि दयी-डाल दी। जगत-संसार। तारो-उद्धार। छोयी-छाछ, सारहीन अंश। मोहि-मुझे।

प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित मीराबाई के पदों से लिया गया है। इस पद में उन्होंने भगवान कृष्ण को पति के रूप में माना है तथा अपने उद्धार की प्रार्थना की है।
व्याख्या-मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात् कृष्ण ही सब कुछ हैं। दूसरे से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिसके सिर पर मोर का मुकुट है, वही मेरा पति है। उनके लिए मैंने परिवार की मर्यादा भी छोड़ दी है। अब मेरा कोई क्या कर सकता है? अर्थात् मुझे किसी की परवाह नहीं है। मैं संतों के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करती हूँ और इस प्रकार लोक-लाज भी खो दी है। मैंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है। अब यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने लगे हैं। वे कहती हैं कि मैंने कृष्ण के प्रेम रूप दूध को भक्ति रूपी मथानी में बड़े प्रेम से बिलोया है। मैंने दही से सार तत्व अर्थात् घी को निकाल लिया और छाछ रूपी सारहीन अंशों को छोड़ दिया। वे प्रभु के भक्त को देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर रोती हैं। वे स्वयं को गिरधर की दासी बताती हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।

विशेष-

  1. मीरा कृष्ण-प्रेम के लिए परिवार व समाज की परवाह नहीं करतीं।
  2. मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्यता व समर्पण भाव व्यक्त हुआ है।
  3. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  4. ‘बैठि-बैठि’, ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  5. माधुर्य गुण है।
  6. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का सुंदर रूप है।
  7. ‘मोर-मुकुट’, ‘प्रेम-बेलि’, ‘आणद-फल’ में रूपक अलंकार है।
  8. संगीतात्मकता व गेयता है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  1. मीरा किसको अपना सर्वस्व मानती हैं तथा क्यों?
  2. मीरा कृष्ण-प्रेम के विषय में क्या बताती हैं?
  3. मीरा के रोने और खुश होने का क्या कारण है?
  4. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने क्या-क्या खोया?

उत्तर-

  1. मीरा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं; क्योंकि उन्होंने कृष्ण बड़े प्रयत्नों से पाया है। वे उन्हें अपना पति मानती हैं।
  2. कृष्ण-प्रेम के विषय में मीरा बताती है कि उसने अपने आँसुओं से कृष्ण प्रेम रूपी बेल को सींचा अब वह बेल बड़ी हो गई है और उसमें आनंद-फल लगने लगे हैं।
  3. मीरा भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हैं तथा संसार के अज्ञान व दुर्दशा को देखकर रोती हैं।
  4. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने अपने परिवार की मर्यादा व समाज की लाज को खोया है।

2.

पग घुँघरू बांधि मीरां नाची,
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची
लोग कहँ, मीरा भई बावरी, न्यात कहैं कुल-नासी
विस का प्याला राणी भेज्या, पवित मीरा हॉर्सी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी (पृष्ठ-137)

शब्दार्थ

पग-पैर। नारायण-ईश्वर। आपहि-स्वयं ही। साची-सच्ची। भई-होना। बावरी-पागल। न्यात-परिवार के लोग, बिरादरी। कुल-नासी-कुल का नाश करने वाली। विस-जहर। पीवत-पीती हुई। हाँसी-हँस दी। गिरधर-पर्वत उठाने वाले। नागर-चतुर। अविनासी-अमर।

प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित प्रसिद्ध कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई के पदों से लिया गया है। इस पद में, उन्होंने कृष्ण प्रेम की अनन्यता व सांसारिक तानों का वर्णन किया है।
व्याख्या-मीराबाई कहती हैं कि वह पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के समक्ष नाचने लगी है। इस कार्य से यह बात सच हो गई कि मैं अपने कृष्ण की हूँ। उसके इस आचरण के कारण लोग उसे पागल कहते हैं। परिवार और बिरादरी वाले कहते हैं कि वह कुल का नाश करने वाली है। मीरा विवाहिता है। उसका यह कार्य कुल की मान-मर्यादा के विरुद्ध है। कृष्ण के प्रति उसके प्रेम के कारण राणा ने उसे मारने के लिए विष का प्याला भेजा। उस प्याले को मीरा ने हँसते हुए पी लिया। मीरा कहती हैं कि उसका प्रभु गिरधर बहुत चतुर है। मुझे सहज ही उसके दर्शन सुलभ हो गए हैं।

विशेष-

  1. कृष्ण के प्रति मीरा का अटूट प्रेम व्यक्त हुआ है।
  2. मीरा पर हुए अत्याचारों का आभास होता है।
  3. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
  4. संगीतात्मकता है।
  5. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
  6. भक्ति रस की अभिव्यक्ति हुई है।
  7. ‘बावरी’ शब्द से बिंब उभरता है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  1. मीरा कृष्ण-भक्ति में क्या करने लगीं?
  2. लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
  3. राणा ने मीरा के लिए क्या भेजा तथा क्यों?
  4. ‘सहज मिले अविनासी’-आशय स्पष्ट करें।

उत्तर-

  1. मीरा कृष्ण-भक्ति में अपने पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के सामने नाचने लगीं। वे कृष्ण प्रेम में खो गई।
  2. लोग मीरा को बावरी कहते हैं, क्योंकि वे विवाहिता हैं। इसके बावजूद वे कृष्ण को अपना पति मानती हैं। वे लोक-लाज को छोड़ कर मंदिर में कृष्णमूर्ति के सामने नाचने लगीं। तत्कालीन समाज के लिए यह कार्य मर्यादा-विरुद्ध था।
  3. राणा ने मीरा के कृष्ण प्रेम को देखते हुए उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा। वह अपने परिवार का अपमान नहीं करवाना चाहता था। मीरा ने उस प्याले को पी लिया।
  4. इसका अर्थ है कि जो कृष्ण से सच्चा प्रेम करता है, उसे भगवान सहजता से मिल जाते हैं।

● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

1.

मंरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बलि बोयी

अब त बलि फैलि गयी, आणद-फल होयी 
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी 
दधि  मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी 
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही

प्रश्न

  1. भाव-सौदर्य बताइए।
  2. शिल्प–सौदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

  1. इस पद में मीरा का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त हुआ है। वे कुल की मर्यादा को भी छोड़ देती हैं तथा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। उन्होंने कृष्ण-प्रेम की बेल को आँसुओं से सींचकर बड़ा किया है और भक्ति रूपी मथानी से सार रूपी घी निकाला है। वे प्रभु से अपने उद्धार की प्रार्थना करती हैं और उससे विरह की पीड़ा सहती हैं।
  2. ● राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।
    ● भक्ति रस है।
    ● ‘दूध की मथनियाँ . छोयी’ में अन्योक्ति अलंकार है।
    ● ‘प्रेम-बेलि’, ‘आणद-फल’ में रूपक अलंकार है।
    ● अनुप्रास अलंकार की छटा है-

– गिरधर गोपाल
– मोर-मुकुट
– कुल की कानि
– कहा करिहै कोई
– लोक-लाज
– बेलि बोयी

● ‘बैठि-बैठि’, ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
● कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की सुंदरता बढ़ी है-गिरधर, गोपाल, लाल आदि।
● संगीतात्मकता व गेयता है।

2.

पग धुंधरू बाधि मीरा नाची,
मैं तो मेरे नारायण सू, आपहि हो गई साची
लोग कहैं, मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुल-नासी
विस का प्याला राणा भंज्या, पीवत मीरा हँसी
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिल अविनासी

प्रश्न

  1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
  2. शिल्प–सौदर्य बताइए।

उत्तर-

  1. इस पद में मीरा की आनंदावस्था का प्रभावी वर्णन हुआ है। वे धुंघरू बाँधकर नाचती हैं तथा प्रिय कृष्ण को रिझाती हैं।  उन्हें लोकनिंदा की परवाह नहीं है।
    राणा का विष का प्याला भी उन्हें मार नहीं पाता है। वे अपनी सहज भक्ति से अपने प्रिय को पाती हैं।
  2. ● राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
    ● संगीतात्मकता व गेयता है।
    ● अनुप्रास अलंकार है-कहै कुल।
    ● भक्ति रस की अभिव्यक्ति हुई है।
    ● नृत्य करने का बिंब प्रत्यक्ष हो उठता है।
    ● कृष्ण के कई नामों का प्रयोग किया है-नारायण, अविनासी, गिरधर, नागर।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पद के साथ

प्रश्न 1:
मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती हैं? वह रूप कैसा है?

उत्तर-
मीरा कृष्ण की उपासना पति के रूप में करती हैं। उसका रूप मन मोहने वाला है। वे पर्वत को धारण करने वाले हैं। उनके सिर पर मोरपंखी मुकुट है। इस रूप को अपना मानकर वे सारे संसार से विमुख हो गई हैं।

प्रश्न 2:
भाव व शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

(क)

अंसुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गई आणंद-फल होयी

(ख)

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी

उत्तर-
(क)
भाव-सौंदर्य- इस पद में भक्ति की चरम सीमा है। विरह के आँसुओं से मीरा ने कृष्ण-प्रेम की बेल बोयी है। अब यह बेल बड़ी हो गई है और आनंद-रूपी फल मिलने का समय आ गया है।
शिल्प-सौंदर्य-

1. ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
2. सांगरूपक अलंकार है-प्रेम-बेलि, आणंद-फल, असुवन जल
3. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
4. अनुप्रास अलंकार है-बलि बोयी।
5. संगीतात्मकता है।

(ख) भाव-सौंदर्य- इन काव्य पंक्तियों में कवयित्री ने दूध की मथानी से भक्ति रूपी घी निकाल लिया तथा सांसारिक सुखों को छाछ के समान छोड़ दिया। इस प्रकार उन्होंने भक्ति की महिमा को व्यक्त किया है।
शिल्प-सौंदर्य-

1. अन्योक्ति अलंकार है।
2. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
3. प्रतीकात्मकता है-‘घी’ भक्ति का तथा ‘छाछ” सांसारिकता का प्रतीक है।
4. दधि, घृत आदि तत्सम शब्द हैं।
5. संगीतात्मकता है।
6. गेयता है।

प्रश्न 3:
लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
उत्तर-
दीवानी मीरा कृष्ण भक्ति में अपनी सुध-बुध खो चुकी है। उसे संसार की किसी परंपरा, रीति-रिवाज, मर्यादा अथवा लोक-लाज का ध्यान नहीं है। इसीलिए लोग उसे बावरी कहते हैं। संसारी लोग मीरा की भक्ति की पराकाष्ठा को पागलपन मानते हैं। मीरा राजसी वैभव और सुख को ठुकराकर कृष्ण भजन गाती हुई घूम रही है। ऐसा कार्य तो कोई पागल ही कर सकता है।

प्रश्न 4:
विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरा हाँसी-इसमें क्या व्यंग्य छिपा है?
उत्तर-
मीरा को मारने के लिए राणा ने विष का प्याला भेजा, जिसे मीरा ने हँसते-हँसते पी लिया। कृष्ण-भक्ति के कारण उनका कुछ नहीं हुआ। इस तरह यह व्यंग्य करता है कि प्रभु-भक्ति करने वालों का विरोधी लोग कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

प्रश्न 5:
मीरा जगत को देखकर रोती क्यों हैं?
उत्तर-
संसार के सभी लोग संसारी मायाजाल में फंसकर ईश्वर (कृष्ण) से दूर हो गए हैं। उनका सारा जीवन व्यर्थ जा रहा है। इस सारहीन जीवन-शैली को देखकर मीरा को रोना आता है। लोग दुर्लभ मानव जन्म को ईश्वर भक्ति में नहीं लगाते। इसलिए संसार की दुर्दशा पर मीरा को रोना आ रहा है।

पद के आसपास

प्रश्न 1:
कल्पना करें, प्रेम-प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा?
उत्तर-
मीरा के कष्टों और कठिनाइयों की कल्पना करना आसान नहीं है। मीरा ने समस्त संसार का विरोध सहन किया। उस की मन:स्थिति घरवाले भी नहीं समझ सके और उनका विवाह कर दिया। ससुराल पहुँचने पर पहले दिन से ही पागल कहा गया। राजघराने की मर्यादा उन्हें बाँध न सकी। उस कड़े पहरे और पर्दे से निकलना ही कठिन था। मीरा गली-गली कृष्ण का भजन गाती नाचती फिर रही थीं। उन्हें मारने के लिए विष दिया गया, सर्प का पिटारा भेजा गया और काँटों की सेज पर सुलाया गया। ये सभी कष्ट वे कृष्ण के सहारे ही झेल रही थीं।

प्रश्न 2:
लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है?
उत्तर-
मीरा का विवाह राजपूत राजपरिवार में हुआ था। वहाँ महिलाएँ पर्दे में रहती थीं। उन्हें मंदिरों में नाचने, संतों के साथ बैठने, परपुरुष के साथ संबंध बनाने का अधिकार नहीं था। ऐसे कार्य करने वाली महिलाओं को समाज से प्रताड़ना मिलती थी। मीरा ने ये सभी बंधन तोड़े और लोक-लाज खो दी। लोक-लाज खोने का अर्थ है-समाज की मर्यादाओं को तोड़ना।

प्रश्न 3:
मीरा ने ‘सहज मिले अविनासी’ क्यों कहा है?
उत्तर-
मीरा के अनुसार कृष्ण का जो रूप, जो संबंध (पति) उन्होंने पाया वह बिलकुल सहजता से, बिना किसी बाह्याडंबर के मीरा की व्यक्तिगत अनुभूति रही। अतः मीरा ने उन्हें ‘सहज मिले अविनासी’ कहा है।

प्रश्न 4:
‘लोग कहै, मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुल-नासी’- मीरा के बारे में लोग (समाज) और न्यात (कुटुब) की ऐसी धारणाएँ क्यों हैं?
उत्तर-
समाज के लोग धन-दौलत, सप्ता, जमीन आदि को ही सच मानते हैं। जबकि मीरा सुख-सुविधाएँ छोड़कर गलियों में भटकती रहती थीं। अत: वे उसे बावली समझते थे। वे उसकी भक्ति को नहीं समझ सके।
परिवारवालों का कहना था कि मीरा ने परिवार की मर्यादाओं का पालन नहीं किया। उसने पर्दा-प्रथा न मानना, संतों के साथ घूमना, मंदिरों में नाचना आदि कार्य करके सांसारिक धर्म को नहीं निभाया। अत: वे उसे कुल का नाश करने वाली मानते थे।

अन्य हल प्रश्न

● लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1:
मीरा ने जीवन का सार किस उदाहरण से समझाया है?
उत्तर-

मीरा कहती हैं कि उसने दही को मथकर घी निकाल लिया तथा छाछ छोड़ दिया। उसने जीवन का मंथन करके कृष्ण-भक्ति को सार के रूप में प्राप्त कर लिया तथा शेष संसार को छाछ की तरह छोड़ दिया।

प्रश्न 2:
‘मेरे तो गिरधर गोयाल’-पद का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-
इस पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्यता तथा व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगों के प्रति दुख प्रकट किया है। वे कहती हैं कि मोर मुकुटधारी गिरिधर कृष्ण ही उसके स्वामी हैं। कृष्ण-भक्ति में उसने अपने कुल की मर्यादा भी भुला दी है। संतों के पास बैठकर उसने लोकलाज खो दी है। आँसुओं से सींचकर उसने कृष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी है। अब इसमें आनंद के फल लगने लगे हैं। उसने दही से घी निकालकर छाछ छोड़ दिया। संसार की लोलुपता देखकर मीरा रो पड़ती हैं। वे कृष्ण से अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।

प्रश्न 3:
‘पग धुंधरू बाँध मीरा नाची’-पद का प्रतिपादय बताइए।
उत्तर-
इस पद में प्रेम रस में डूबी हुई मीरा सभी रीति-रिवाजों और बंधनों से मुक्त होने और गिरिधर के स्नेह के कारण अमर होने की बात कर रही हैं। मीरा पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के सामने नाचती हैं। लोग इस हरकत पर उन्हें बावरी कहते हैं तथा कुल के लोग उन्हें कुलनाशिनी कहते हैं। राणा ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा जिसे उसने हँसते हुए पी लिया। मीरा कहती हैं कि उसके प्रभु कृष्ण सहज भक्ति से भक्तों को मिल जाते हैं।

प्रश्न 4:
आनंद-फल की प्राप्ति के लिए मीरा ने क्या किया?
उत्तर-
आनंद-फल की प्राप्ति के लिए उन्होंने कुल की मर्यादा त्यागी, परिवार के ताने सहे साथ ही संतों की संगति करनी पड़ी। उन्होंने आँसुओं से प्रेम-बेल को सींचा तब जाकर उन्हें आनद-फल प्राप्त हुआ।

प्रश्न 5:
‘प्रेम-केलि’ के रूपक को स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रेम की बेल को विरह के आँसुओं से सींचना पड़ता है, फिर वह बड़ी होती है तथा अंत में आनंद रूपी फल मिलता है। सच्चे प्रेम में विरह सहना पड़ता है तभी आनंद प्राप्त होता है।

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