(I) कविता के बहाने (II) बात सीधी थी पर
वुँग्वर नारायण
।. कविता के बहाने
अभ्यास
कविता के साथ
- इस कविता के बहाने बताएँ कि 'सब घर एक कर देने के माने' क्या है?
उत्तर इस कविता में कवि कविता और बालक में समानता व्यक्त करते हुए कहता है कि 'कविता एक खेल है। बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता। बच्चा जिस प्रकार अपने-पराये का भेद जाने बगैर सब जगह अपने स्वाभाविक रूप में रहता है, वैसे ही कविता सबके लिए समान अर्थ और भाव व्यक्त करती है। जिस प्रकार बालक के सपने और कल्पनाएँ असीम होते हैं, वैसे ही कविता में असीम संभावनाएँ, असीम कल्पनाएँ छिपी होती हैं। बालक का विकास अपरिमित है, उसी प्रकार कविता का विकास भी कभी रुकने वाला नहीं है।
- 'उड़ने' और 'खिलने' का कविता से क्या संबंध बनता है?
उत्तर कविता के संबंध में उड़ने का अर्थ है-कल्पना की उड़ान, सोच की उड़ान तथा विचारों की उड़ान। 'खिलने' शब्द को कविता के अर्थ में विकास से जोड़ा जा सकता है। कविता विचारों और भावों की परिपक्वता का नाम है। जब हमारे विचार विकास पाते हैं, भावनाओं का ज्वार संयत हो जाता है, तब कविता रची जाती है। यही कविता सही अर्थों में विकसित होती है।
3. कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर कवि ने बच्चे और कविता को समानांतर रखा है। जिस प्रकार बच्चों के सपने असीम होते हैं, बच्चों के खेल का कोई अंत नहीं होता, बच्चे की प्रतिभा, बच्चे में छिपी संभावना का कोई अंत नहीं है, ठीक वैसे ही कविता असीम होती है। कविता के खेल यानि कविता में किए जाने वाले प्रयोग असीम हैं। जिस प्रकार बच्चे अपने-पराए का भेद नहीं करते, उन्हें सभी घर अपने ही प्रतीत होते हैं; ठीक उसी प्रकार कवि के लिए यह सारा संसार अपना है, उसका लक्ष्य सिर्फ मानवता के धर्म का प्रसार करना है, आत्मीयता का संदेश घर-घर पहुँचाना है। कविता प्रकृति,
मनुष्य, जीव, निर्जीव, काल, इतिहास, भावी जीवन अनेक विषयों पर लिखी जा सकती है, अर्थात् इसके खेल भी असीम हैं। कविता में भावों और रचनात्मकता के गुण वैसे ही जान पूँक देते हैं, जैसे बच्चे में कभी न थकने वाला, सदा कुछ-न-कछ करने वाला तत्व विद्यमान रहता है।
4. कविता के संदर्भ में 'बिना मुरझाए महकने के माने' क्या होते हैं?
उत्तर कविता को फूल के बहाने से खिलने की प्रक्रिया से जोड़ा गया है। कविता के माध्यम से हमारी भावनाएँ, हमारे विचार, हमारी कल्पनाएँ विकसित होती हैं। फूल से कविता ने खिलना भले ही सीखा हो, लेकिन कविता का जो विकास क्रम है, उसे फूल नहीं जानता। एक निश्चित समय तक महकने के बाद फूल तो अपनी विकसित जीवन-लीला समाप्त करके चले जाते हैं लेकिन कविता का स्वरूप अनंत काल तक बना रहता है। यह परत-दर-परत अर्थ की परतें खोलती रहती है। शब्दशः भावों की सुगन्ध व रस बिखेरती है, खिलकर अर्थाभिव्यक्ति कर जाती है, बिना मुरझाए खिलने के कारण ही कविता अनश्वर है। सभी अपने अर्थ के अनुसार कविता को पढ़ते, समझते और अपनी चेतना का आधार बनाते हैं। कविता वस्तुतः निरंतर युगों-युगों तक विकास पाती रहती है और बिना मुरझाए खिलती रहती है वही कविता है।
5. 'भाषा को सहूलियत' से बरतने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर भाषा को सहूलियत से बरतने का तात्पर्य है-भाषा को सुविधाजनक ढंग से प्रयोग में लाना। बेकार का शब्दजाल बुनने से लेखक को लिखने में और पाठक को समझने में परेशानी होती है। भाषा को सहूलियत से प्रयुक्त करने पर ही रचना भी सहजता से अपना अर्थ संप्रेषित करने में समर्थ होती है।
6. बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में 'सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है' कैसे?
उत्तर बात का अर्थ है-भाव। भाषा उसे प्रकट करने का माध्यम है। दोनों का चोली-दामन का साथ है। किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। इसका कारण यह है कि जो बात सीधी, सरल शब्दावली में कही जा सकती है उसे अधिक प्रभावपूर्ण बनाने हेतु पेचीदा शब्दजाल में सामने रखने का प्रयास किया जाता है और इससे सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है।
- बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबों/मुहावरों से मिलान करें।
बिंब/मुहावरा
(क) बात की चूड़ी मर जाना
(ख) बात की पेंच खोलना
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना
(ङ) बात का बन जाना उत्तर
(क) बात की चूड़ी मर जाना
(ख) बात की पेंच खोलना
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना
(ङ) बात का बन जाना
विशेषता
कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना बात का पकड़ में न आना बात का प्रभावहीन हो जाना
बात में कसावट का न होना बात को सहज और स्पष्ट करना
बात का प्रभावहीन हो जाना
बात को सहज और स्पष्ट करना
बात का पकड़ में न आना बात में कसावट का न होना
कथ्य और भाषा का सही
सामंजस्य बनना
कविता के आस-पास
- व्याख्या करें
जोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
उत्तर भाषा के साथ जबरदस्ती करने का परिणाम यह हुआ कि उसकी वास्तविक अभिव्यक्ति की धार कुंद हो गई। भाषा को तोड़ने-मरोड़ने से मूलभाव का प्रभाव ही नष्ट हो गया, उसकी व्यंजना की मारक क्षमता समाप्त हो गई। कविता भाषा के खेल में भावहीन एवं जीवंतहीन बनकर रह गई। उसकी जीवंतता एवं सार्थकता व्यर्थ हो गई।