Chapter 3 मुद्रा और साख

अभ्यास प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. वस्तु विनिमय की कठिनाई हैं-

a. दोहरे संयोग का अभाव

b. मूल्य माप का अभाव

c. मूल्य संचय का अभाव

d. ये सभी। (d)

2. विनिमय के लिए आवश्यक है-

a. दो पक्ष

b. तीन पक्ष

c. चार पक्ष

d. पाँच पक्ष । (a)

3. किसी भी वस्तु को मुद्रा के रूप में स्वीकार किए जाने के लिए उसमें सबसे पहले आवश्यक विशेषता होनी चाहिए-

a. सर्वस्वीकृति

b. विधिग्राह्यता

c. परिवर्तनीयता

d. मूल्य में स्थिरता । (a)

4. दो पक्षों के बीच होने वाली वस्तुओं और सेवाओं की अदला-बदली की प्रक्रिया को कहते हैं-

a. वस्तु-विनिमय

b. क्रय-विक्रय

c. वितरण

d. इनमें से कोई नहीं । (a)

5. गेहूँ से चावल की अदला-बदली एक उदाहरण है-

a. वस्तु-विनिमय का

b. क्रय-विक्रय का

c. a और b दोनों का

d. इनमें से कोई नहीं । (a)

6. कौन-सा कथन सही है?

a. मुद्रा का कार्य केवल आय का वितरण करना है।

b. मुद्रा द्वारा वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों को दूर करने में सहायता नहीं मिलती है।

c. मुद्रा समाज के लिए अभिशाप है।

d. मुद्रा मुख्य रूप से विनिमय माध्यम एवं मूल्य-मापक का कार्य करती है। (d)

7. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?

a. मुद्रा विनिमय का माध्यम है।

b. मुद्रा मूल्य का मापक है।

c. मुद्रा रोजगार के सृजन का आधार है।

d. मुद्रा विलंबित भुगतानों का आधार है। (d)

8. भारत में करेंसी नोट जारी करने का एकाधिकार किसे प्राप्त है?

a. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया

b. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया

c. पंजाब नेशनल बैंक

d. बैंक ऑफ बड़ौदा । (a)

9. मुद्रा का निर्गमन किसके द्वारा किया जाता है?

a. भारतीय रिजर्व बैंक

b. भारत के राष्ट्रपति

c. वित्तमंत्री

d. प्रधानमंत्री | (a)

10. जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से वस्तुएँ खरीदने और बेचने पर सहमत हों तो उसे कहते हैं-

a. आवश्यकताओं का दोहरा संयोग

b. क्रेता-विक्रेता

c. व्यापार

d. अर्थव्यवस्था । (a)

11. यदि R को वस्त्र चाहिए जो S के पास है, तो R के पास ऐसी वस्तु होनी चाहिए जिसकी 5 को आवश्यकता हो । अनुकूलन के संयोग के इस अभाव के कारण कोई विनियोग नहीं हो पाएगा।

उस स्थिति को बताइए जब R और 5 इस दुविधा से उन्मुक्त होंगे, और सही विकल्प का निर्धारण कीजिए-

a. दोहरा संयोग, वस्तु का वस्तु से विनिमय

b. दोहरा संयोग, वस्तु का धन से विनिमय

c. दोहरा संयोग, वस्तु पर उधार

d. दोहरा संयोग, विनिमय में धनराशि | (d)

12. सुश्री 5 ऋण प्राप्ति हेतु समीप के एक बैंक और एक स्वपोषित समूह से संपर्क करती है जो उसके गाँव में ही स्थित है। बैंक उसके ऋण को अस्वीकृत कर देता है, जबकि समूह उसके आवेदन को स्वीकार कर लेता है।

निम्नलिखित में से कौन-सा प्रलेख (कागजात) बैंक द्वारा वांछनीय है जबकि स्वपोषित समूह को इस प्रलेख की आवश्यकता नहीं हैं ताकि सुश्री 5 के ऋण आवेदन को स्वीकार किया जाए-

a. ऋण के लिए आवेदन

b. एग्रीमेण्ट लेटर

c. संपार्श्विक कागजात

d. डिमांड प्रामिसरी नोट और टेक डिलिवरी पत्र । (c)

13. ऋण के औपचारिक स्रोत क्या है?

a. बैंक व सहकारी समितियाँ

b. साहूकार व व्यापारी

c. मालिक व रिश्तेदार

d. उपर्युक्त सभी (a)

14. औपचारिक स्रोत अभी भी ग्रामीण परिवारों की कुल ऋण जरूरतों का कितना प्रतिशत पूरा कर पाते हैं?

a. 42%

b. 45%

c. 48%

d. 50% से अधिक। (d)

15. व्यावसायिक बैंक ग्रामीण परिवारों को लगभग कितने प्रतिशत ऋण उपलब्ध करा पाते हैं?

a. 20%

b. 22%

c. 25%

d. 33%. (c)

16. किसानों द्वारा लिए गए उधार की अदायगी मुख्यतः निर्भर करती है-

a. उसके परिश्रम पर

b. फसल की कमाई पर

c. लौटाने की मंशा पर

d. इनमें से कोई नहीं। (b)

17. ऋण (उधार) क्या है?

a. इससे तात्पर्य एक सहमति से है, जहाँ साहूकार कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ मुहैया कराता है और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है।

b. दुकानदारों से लिया गया उधार सामान

c. कंपनियों से लिया गया उधार सामान

d. उपर्युक्त सभी। (a)

18. ऋण की शर्तें कौन-सी होती हैं?

a. ब्याज दर

b. आवश्यक कागजात और भुगतान के तरीके

c. समर्थक ऋणाधार

d. उपर्युक्त सभी। (d)

19. समर्थक ऋणाधार का उदाहरण है-

a. कर्जदार की भूमि

b. मकान, गाड़ी

c. पशु, बैंकों में जमाराशि

d. उपर्युक्त सभी। (d)

20. भारत में बैंक जमा का कितने प्रतिशत भाग नकद के रूप में अपने पास रखते हैं?

a. 10%

b. 15%

c. 20%

d. 25%. (b)

21. भारत में ग्रामीण परिवारों को सबसे अधिक ऋण कहाँ से प्राप्त होता है?

a. साहूकार से

b. व्यापारी से

c. रिश्तेदार और दोस्त से

d. व्यावसायिक बैंक से। (a)

22. साहूकार उधार राशि पर कितना ब्याज लेता है?

a. बहुत कम

b. बहुत अधिक

c. सामान्य

d. इनमें से कुछ नहीं। (b)

23. कुछ व्यक्तियों या समूहों को बैंक ऋण देने को इसलिए तैयार नहीं होते क्योंकि-

a. ऋण की शर्तें पूरी नहीं होती

b. आवश्यक कागजात का न होना

c. समर्थक ऋणाधार का न होना

d. उपर्युक्त सभी। (d)

24. बैंक का कार्य क्या है?

a. जनकल्याण

b. सरकार को सहयोग

c. माँग जमा ऋण की उपलब्धता

d. ये सभी। (c)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वस्तु विनिमय की दो कठिनाइयाँ बताइए ।

उत्तर- (i) दोहरे संयोग का अभाव, (ii) सर्वमान्य मूल्य मापक का अभाव ।

प्रश्न 2. मुद्रा क्या है?

उत्तर- मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो व्यापक क्षेत्र में विनिमय के माध्यम मूल्य के मापक स्थगित भुगतानों के मान एवं मूल्य के संचय के साधन के रूप में सामान्य रूप से स्वीकार की जाती है। इसे राजकीय संरक्षण अथवा मान्यता प्राप्त होती है।

प्रश्न 3. मुद्रा के दो लाभ बताइए ।

उत्तर—- मुद्रा द्वारा विनिमय कार्य सरल हो गया है। मुद्रा की 5. सहायता से उत्पादन के विभिन्न साधनों को आदर्श अनुपात में जुटाना संभव हो गया है।

प्रश्न 4. वस्तु विनिमय का अर्थ बताइए ।

उत्तर – एक वस्तु से दूसरी वस्तु के प्रत्यक्ष विनिमय को ही ‘वस्तु विनिमय’ कहते हैं। उदाहरण के लिए गेहूँ से मछली की अदला-बदली वस्तु विनिमय कहलाएगी।

प्रश्न 5. क्रय-विक्रय से क्या आशय है?

उत्तर- क्रय-विक्रय प्रणाली में क्रय-विक्रय संबंधी क्रियाएँ मुद्रा के माध्यम से होती हैं। व्यक्ति अपनी अतिरिक्त वस्तुओं को बेचकर मुद्रा प्राप्त कर लेता है और मुद्रा की सहायता से आवश्यकता के समय दूसरी वस्तुओं को प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न 6. माँग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है?

उत्तर- बैंक खातों में जमा धन को माँग करने पर निकाला जा सकता है, इसलिए इस माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है।

प्रश्न 7. बैंक के दो मुख्य कार्य बताइए ।

अथवा

बैंक के दो कार्यों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर- (i) जमा खातों में धन स्वीकार करना। (ii) ऋण देना।

प्रश्न 8. बैंक जमा का एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद रूप में क्यों रखते हैं?

उत्तर – एक विशेष दिन में केवल कुछ जमाकर्त्ता ही बैंक में नकदी निकालने के लिए आते हैं। इन्हें नकदी देने के लिए बैंक जमा का एक छोटा हिस्सा अपने पास रखते हैं।

प्रश्न 9. बैंक शेष जमाराशि का कैसे उपयोग करते हैं?

उत्तर- बैंक शेष जमाराशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग करते हैं।

प्रश्न 10. बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत क्या है?

उत्तर- बैंक जमाओं पर कम ब्याज देते हैं और ऋणों पर अधिक ब्याज लेते हैं। ऋणों और जमाओं पर ब्याज का अंतर ही बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 11. ऋण (उधार) से क्या आशय है?

उत्तर – ऋण से तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जहाँ साहूकार ऋणी को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ मुहैया कराता है और बदले में भविष्य में ऋणी से भुगतान करने का वादा लेता है।

प्रश्न 12. ऋण किस प्रकार एक महत्त्वपूर्ण एवं सकारात्मक भूमिका अदा करता है?

उत्तर – ऋण उत्पादन के कार्यशील खर्चों को पूरा करने, उत्पादन कार्य को समय पर पूरा करने तथा आय बढ़ाने में मदद करता है। इस प्रकार यह महत्त्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करता है।

प्रश्न 13. ग्रामीण क्षेत्रों में साख की माँग किसलिए होती है?

उत्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में साख की मुख्य माँग फसल उगाने के लिए होती है। फसल उगाने में बीज, खाद, कीटनाशक दवाएँ, पानी, बिजली उपकरणों की मरम्मत आदि के लिए साख की माँग होती है।

प्रश्न 14. किस परिस्थिति में ऋण के कारण किसान की स्थिति बदतर हो जाती है?

उत्तर- फसल बर्बाद हो जाने पर जब किसान के लिए ऋण की अदायगी मुश्किल हो जाती है तो उसे इसके लिए अपनी जमीन जायदाद का कुछ हिस्सा बेचना पड़ता है। फलस्वरूप उसकी स्थिति बदतर हो जाती है।

प्रश्न 15. समर्थक ऋणाधार से क्या आशय है?

उत्तर – समर्थक ऋणाधार ऐसी सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार है जैसे भूमि, इमारत, गाड़ी, पशु अथवा बैंकों में पूँजी और उसका इस्तेमाल वह ऋणदाता को गांरटी देने के रूप में करता है जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता।

प्रश्न 16. ऋण की शर्तों से क्या आशय है?

उत्तर- व्याज दर, समर्थक ऋणाधार आवश्यक कागजात और भुगतान के तरीकों को सम्मिलित रूप से ऋण की शर्तें’ कहा जाता है।

प्रश्न 17. उधारदाता उधार देते समय समर्थक ऋणाधार की माँग क्यों करता है?

उत्तर— उधार वापस न मिलने पर ऋणदाता समर्थक ऋणाधार को बेचकर दिए गए ऋण की पूर्ति करता है। इससे उसका मूलधन व ब्याज सुरक्षित रहता है।

प्रश्न 18. हमारे देश की एक बहुत बड़ी आबादी निर्धन है। क्या यह उसके कर्ज लेने की क्षमता को प्रभावित करती है?

उत्तर- निर्धन लोगों की आय कम होती है और उन्हें दिए गए ऋण सुरक्षित नहीं होते। इसलिए ऋणदाता उन्हें कर्ज देने में संकोच करते हैं। इस प्रकार कर्ज लेने की क्षमता प्रभावित होती है।

प्रश्न 19. कृषक सहकारी समिति का क्या कार्य है?

उत्तर – कृषक सहकारी समिति कृषि उपकरण खरीदने, खेती तथा कृषि व्यापार करने, मछली पालन करने, घर बनाने और अन्य विभिन्न प्रकार के खर्चों के लिए ऋण उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 20. औपचारिक क्षेत्रकऋण के स्रोत क्या हैं?

अथवा

साख के औपचारिक क्षेत्रक के दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर- औपचारिक क्षेत्रक ॠण के मुख्य स्रोत हैं- व्यापारिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियाँ और नाबार्ड ।

प्रश्न 21. अनौपचारिक क्षेत्रक ॠण के स्रोत क्या हैं?

अथवा

साख के अनौपचारिक क्षेत्रक के दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर- अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण के मुख्य स्रोत हैं साहूकार व महाजन, व्यापारी, नियोक्ता, मित्र व रिश्तेदार ।

प्रश्न 22. औपचारिक ऋण स्रोतों की कार्य प्रणाली पर कौन निगरानी रखता है?

उत्तर- भारतीय रिजर्व बैंक औपचारिक ऋण स्रोतों की कार्य- प्रणाली पर निगरानी रखता है।

प्रश्न 23. किस क्षेत्र का ऋण कर्जदार को महँगा पड़ता है?

उत्तर- औपचारिक क्षेत्रक के ऋणदाताओं की तुलना में अनौपचारिक क्षेत्रक के ऋणदाता कहीं अधिक ब्याज वसूल करते हैं। इसलिए, अनौपचारिक क्षेत्रक का ऋण कर्जदार को अधिक महँगा पड़ता है।

प्रश्न 24. स्वयं सहायता समूह किसे कहते हैं?

उत्तर – यह आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों द्वारा बनाया गया समूह है, जिसके सदस्य छोटी-छोटी बचत कर परस्पर सहायता करते हैं।

प्रश्न 25. ग्रामीण क्षेत्रों में साख की माँग क्यों होती है?

उत्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में साख की माँग इसलिए होती है क्योंकि वहाँ गरीब होते हैं और नकदी का अभाव होता है।

प्रश्न 26. आधुनिक व प्राचीन मुद्रा का एक-एक उदाहरण लिखिए।

उत्तर- (i) रुपया (ii) कौड़ियाँ |

27. ‘चैक’ से क्या आशय है?

उत्तर- चैक एक ऐसा कागज है, जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चैक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक खास रकम का भुगतान करने का आदेश देता है।

28. माँग जमा को मुद्रा क्यों समझा जाता है?

उत्तर – माँग जमा चैक या मुद्रा निकालने वाली पर्ची के माध्यम से भुगतान योग्य होती है। इसलिए माँग जमा को मुद्रा समझा जाता है।

29. ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन परिवार ऋण हेतु किस पर निर्भर हैं?

उत्तर – ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन परिवार ऋण हेतु अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं।

30. ऋण क्या है?

उत्तर – ऋण से तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ उधारदाता कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है।

31. ऋणाधार से क्या तात्पर्य है?

उत्तर – ऋणाधार ऐसी संपत्ति है जो मालिक (उधारदाता) के पास गिरवी रहती है। कर्जदार इसका इस्तेमाल उधारदाता को गारंटी देने के रूप में करता है, जब तक कि ऋण का भुगतान नहीं हो जाता।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. बैंक लोगों को किस प्रकार सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं?

उत्तर- बैंक लोगों को निम्नलिखित प्रकार से सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं-

(i) लोगों का धन बैंक के पास सुरक्षित रहता है।

(ii) बैंक में जमा धन से लोगों को ब्याज प्राप्त होता है।

(iii) बैंक बचत के लिए आवश्यक है।

(iv) बैंक जमा राशि से लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।

(v) माँग जमा के बदले चैक लिखने की सुविधा से बिना नकद का प्रयोग किए सीधा भुगतान किया जा सकता है।

प्रश्न 2. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग को किस प्रकार समाप्त करती है? संक्षेप में लिखिए।

उत्तर- आवश्यकताओं का दोहरा संयोग वस्तु विनिमय प्रणाली में देखने को मिलता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में रुपये का उपयोग किए बिना वस्तुओं का विनिमय होता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मनुष्य ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ता है जो उसकी अतिरिक्त वस्तु लेकर उसे इच्छित वस्तु दे दे। उदाहरण के लिए, किसान गेहूँ बेचकर जूते खरीदना चाहता है तो उसे ऐसा व्यक्ति ढूँढ़ना पड़ेगा जो उससे गेहूँ लेकर जूते दे दे। यह एक कठिन कार्य है। इसकी तुलना में ऐसी अर्थव्यवस्था में जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है, मुद्रा महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके दोहरे संयोग की आवश्यकता को समाप्त कर देती है। अब किसान के लिए जरूरी नहीं रह जाता कि वह ऐसे जूता निर्माता को ढूँढ़े जो न केवल उसका गेहूँ खरीदे बल्कि साथ-साथ उसको जूते भी बेचे ।

प्रश्न 3. बैंक मध्ययता का कार्य किस प्रकार करते हैं?

उत्तर- जिन लोगों के पास अतिरिक्त धनराशि है और जिनको धनराशि की आवश्यकता है, के बीच बैंक मध्यस्थता का कार्य निम्नलिखित प्रकार से करते हैं-

(i) बैंक उन लोगों से जमा राशि स्वीकार करते हैं जिनके पास अतिरिक्त धन होता है।

(ii) बैंक जमाओं पर ब्याज का भुगतान करते हैं।

(iii) बैंक अपने पास जमा धनराशि का एक छोटा भाग नकद के रूप में रखते हैं। इसे किसी एक दिन में जमाकर्त्ताओं द्वारा धन निकालने की संभावना को देखते हुए रखा जाता है।

(iv) चूँकि किसी एक दिन में केवल कुछ जमाकर्त्ता ही नकद धनराशि निकालने के लिए आते हैं, इसलिए बैंक अपने पास जमाओं का अधिकांश भाग उन्हें ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं, जिनको धन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4. श्रीमान X ने एक साहूकार से ऊँची ब्याज दर पर धन उधार लिया लेकिन वह ब्याज का भुगतान करने में असमर्थ रहा। अतः वह एक अन्य साहूकार से उधार लेने के लिए विवश हुआ ताकि पहले ब्याज की धनराशि का भुगतान किया जा सके। इस स्थिति में उसके द्वारा भुगते जाने वाले परिणाम को रेखांकित कीजिए।

उत्तर— श्रीमान x ब्याज के जाल में फँस गया है। वह ऐसी स्थिति में पहुँच गया है जहाँ पर वो धनराशि को लौटाने में असमर्थ रहेगा क्योंकि-

(i) ब्याज की दर काफी ऊँची हैं.

(ii) कोई कागज़ी कार्रवाई नहीं की गयी है,

(ii) कोई भी कानूनी कार्रवाई करना संभव नहीं होगा,

(iv) प्रायः ही उधार लेने वालों को सजा दी जाती है और प्रताड़ित भी किया जाता है,

(v) इस प्रकार के अनौपचारिक लेन-देन में मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना ही होता है।

उसके द्वारा भुगते जाने वाले परिणाम

(i) श्रीमान x को अपमान झेलना पड़ सकता है और साहूकार के लोग शारीरिक रूप से भी कष्ट दे सकते हैं।

(ii) वह पूरा भुगतान या ब्याज की राशि का भुगतान करने में असमर्थ ही रहेगा। इससे मानसिक तनाव व वेदना भी उत्पन्न हो सकती है।

(iii) ब्याज का भुगतान करने के लिए अन्य से धनराशि लेने से उधार का एक चक्र प्रारंभ हो जाता है जिससे निकल पाना असंभव हो जाता है।

साहूकारों द्वारा श्रीमान X का लगातार उत्पीड़न किया जाता रहेगा जिससे उसे शारीरिक व मानसिक वेदना होती रहेगी।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अनौपचारिक क्षेत्रक के ऋणों की तुलना में औपचारिक क्षेत्रक के ऋण क्यों बेहतर हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- औपचारिक क्षेत्रक में बैंकों और सहकारी समितियों के ऋण सम्मिलित होते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर नजर रखता है। वह यह सुनिश्चित करता है कि बैंक केवल लाभ अर्जित करने वाले व्यापारियों को ही कर्ज न दें बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों और छोटे कर्जदारों को भी कर्ज दें। समय-समय पर विभिन्न बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनको ऋण दे रहे हैं और ऋण की ब्याज दरें क्या हैं। स्थिति को सभी के अनुकूल बनाए रखने हेतु भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समस्त बैंकों को समय-समय पर दिशा-निर्देश दिए जाते हैं।

अनौपचारिक क्षेत्रक के ऋण प्रदान करने वालों में साहूकार, व्यापारी, भूस्वामी आदि सम्मिलित हैं। विभिन्न कारणों से लोग आज भी अनौपचारिक क्षेत्रक से ही अधिकाधिक ऋण लेने को बाध्य हैं। अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देख-रेख करने वाली कोई संस्था नहीं है। अनौपचारिक क्षेत्रक के लोग ऐच्छिक दरों पर ऋण देकर वैधानिक एवं अवैधानिक तरीकों से अपना धन वापस ले सकते हैं। उन पर नियंत्रण की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋण की ब्याज दरें अधिक होने के कारण कर्जदार की आय का अधिकतर भाग ऋण को वापस करने में ही खर्च हो जाता है। ऐसी स्थिति में कर्जदारों के पास अपने लिए बहुत कम धन बच पाता है। कभी-कभी कर्जदार, कर्ज जाल में भी फँस जाते हैं।

इस विवरण से स्पष्ट है कि अनौपचारिक क्षेत्रक के ऋणों की तुलना में औपचारिक क्षेत्रक के ऋण बेहतर हैं।

प्रश्न 2. साख (ऋण) की दो भिन्न स्थितियों का उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिए।

उत्तर- साख की दो भिन्न स्थितियों को हम निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं-

प्रथम स्थिति

इस स्थिति में साख (ऋण) से आय बढ़ाने में मदद मिलती है, जिसके कारण व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पहले से अच्छी हो जाती है। इस बात को हम निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं-

अब से दो महीने बाद त्योहार का मौसम है और जूता निर्माता के० अहमद के पास शहर के एक बड़े व्यापारी से 3000 जोड़ी जूते की माँग आती है, जिसे उसे एक महीने के अंदर पूरा करना है। उत्पादन के काम को समय पर पूरा करने के लिए के० अहमद को सिलाई और चिपकाने के काम के लिए अतिरिक्त मजदूर रखने की आवश्यकता है। उसे कच्चा माल भी खरीदना है। इन सभी खर्चों को पूरा करने के लिए के० अहमद दो स्रोतों से ऋण लेता है। पहला, वह चमड़ा व्यापारी को चमड़ा अभी देने का प्रस्ताव रखता है और बाद में भुगतान करने का वादा करता है। दूसरा, वह इस बड़े व्यापारी से 1000 जूतों के लिए अग्रिम भुगतान के रूप में नकद कर्ज लेता है तथा महीना खत्म होने से पहले पूरा ऑर्डर पहुँचाने का वादा करता है।

महीने के अंत में के० अहमद जूते पहुँचाने में सफल होता है। उसे अच्छा आर्थिक लाभ भी होता है और वह उधार लिए धन को वापस भी लौटा देता है।

उपर्युक्त उदाहरण में हम देखते हैं कि साख (ऋण) एक महत्त्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर रहा है।

द्वितीय स्थिति

साख (ऋण) की दूसरी स्थिति में व्यक्ति कर्ज जाल में फँस जाता है। इस स्थिति में आमदनी में वृद्धि के स्थान पर स्थिति पहले से खराब हो जाती है। वस्तुतः ऋण उपयोगी होगा या नहीं, यह बात परिस्थितियों के खतरों एवं हानि होने पर प्राप्त सहयोग की संभावना पर निर्भर करता है। इस संबंध में प्रस्तुत उदाहरण महत्त्वपूर्ण है-

एक छोटी किसान आराधना अपनी 3 एकड़ जमीन पर मूँगफली उगाती है। वह इस विश्वास पर कि फसल तैयार होने पर कर्ज को लौटा देगी, खेती के खर्चों के लिए साहूकार से ऋण लेती है। फसल पर कीटों के हमले से फसल बर्बाद हो जाती है। यद्यपि आराधना फसल पर महँगी कीटनाशक दवाइयाँ छिड़कती है परंतु उससे कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। वह साहूकार का कर्ज लौटाने में असफल रहती है और साल के अंदर यह कर्ज बड़ी रकम बन जाता है। अगले साल, आराधना खेती के लिए दोबारा उधार लेती है। इस साल फसल सामान्य रहती है. लेकिन इतनी कमाई नहीं होती कि वह अपना कर्ज वापस कर सके। वह कर्ज में फँस जाती है। उसे कर्ज को चुकाने के लिए अपनी जमीन का कुछ हिस्सा बेचना पड़ता है।

उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि साख (ऋण) से व्यक्ति की स्थिति अच्छी होने के बजाय खराब भी हो सकती है।

प्रश्न 3. स्वयं सहायता समूहों की अवधारणा / आवश्यकता का विस्तृत वर्णन कीजिए।

उत्तर – स्वयं सहायता समूहों की अवधारणा / आवश्यकता ‘स्वयं सहायता समूह’ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों द्वारा बनाया गया एक ऐसा समूह है जिसके सदस्य छोटी-छोटी बचत करके, उसे एकत्रित कर समूह के सदस्यों की परस्पर सहायता करते हैं। इसकी एक निश्चित प्रक्रिया होती है जिसका सभी सदस्यों को पालन करना होता है। किसी स्वयं सहायता समूह में लगभग 15-20 सदस्य हो सकते हैं। स्वयं सहायता समूहों का प्रमुख उद्देश्य गरीब लोगों की बचत पूँजी को एकत्रित करना होता है। प्रतिव्यक्ति बचत ₹25 से लेकर ₹100 या उससे अधिक भी हो सकती है। यह परिवारों की बचत करने की क्षमता पर निर्भर करती है। स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराते हैं। यह साहूकार द्वारा लिए जाने वाले ब्याज से कम होता है। एक या दो वर्षों के बाद यदि समूह नियमित रूप से बचत करता है तो समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है। बैंकों द्वारा ॠण समूह के नाम पर दिया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना होता है। सदस्यों को छोटे-छोटे ऋण अपनी गिरवी भूमि को छुड़ाने हेतु, कार्यशील पूँजी की आवश्यकताओं जैसे बीज, खाद व कपड़ा आदि खरीदने के लिए लेने होते हैं। साथ ही साथ घर बनाने तथा सिलाई मशीन, हथकरघा, पशु आदि खरीदने के लिए भी ऋण दिए जाते हैं।

स्वयं सहायता समूह के अंतर्गत बचत व ऋण गतिविधियों से संबंधित निर्णय समूह के सदस्य स्वयं लेते हैं। समूह ही दिए जाने वाले ऋण, उसका लक्ष्य, उसकी धनराशि, ब्याज दर, वापस लौटने की अवधि आदि के बारे में निर्णय करता है।

स्वयं सहायता समूहों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अधिकांश समूह महिलाओं द्वारा संचालित किए जाते हैं। ये समूह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में मदद करते हैं। समूह की नियमित बैठकों के माध्यम से लोगों को एक मंच मिलता है जहाँ लोग अपनी विभिन्न आर्थिक समस्याओं पर विचार करके उसका अपनी क्षमता के भीतर समग्र और सर्वस्वीकार्य समाधान खोजने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 4. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते हैं?

उत्तर – अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमन्द लोगों के बीच बैंक निम्न प्रकार मध्यस्थता करते हैं-

(i) अतिरिक्त मुद्रा वाले लोग अपनी मुद्रा को बैंक में अपने खाते खोलकर जमा करते हैं। बैंक इन जमाओं को स्वीकार करते हैं और इन पर ब्याज भी देते हैं। लोग अपनी सुविधानुसार अपने उपयोग के लिए

मुद्रा को निकाल भी सकते हैं। ये जमाएँ ‘माँग जमा’ (demand deposit) कहलाती हैं क्योंकि इस मुद्रा को बैंक से माँग पर निकाला जा सकता है।

(ii) बैंक इस जमाराशि को अन्य जरूरतमंद लोगों को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं। बैंक जानते हैं कि सभी जमाकर्त्ता अपनी जमाओं को एक साथ नहीं निकालेंगे। अतः वे अपने अनुभव के आधार पर अथवा केंद्रीय बैंक के आदेशानुसार अपनी जमाओं का एक छोटा सा हिस्सा अपने पास जमा (reserve) के रूप में रख लेते हैं और शेष जमाराशि को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं।

इस प्रकार बैंक दो वर्गों के मध्य मध्यस्थता का कार्य करते हैं। इसमें प्रथम वर्ग जमा करने वालों का होता है और द्वितीय वर्ग ऋण लेने वालों का होता है। जमाकर्ता अपनी अतिरिक्त राशि को बैंक में जमा करते हैं और ऋणी आवश्यकता पड़ने पर ऋण लेते हैं। बैंक ऋणों पर, जमा पर दिए जाने वाले ब्याज से अधिक ब्याज वसूल करते हैं। ऋणी से लिए गए ब्याज और जमा पर दिए गए ब्याज का अन्तर ही बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है।

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