Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम्

पाठ-परिचय – श्रीधरभास्कर वर्णेकर के द्वारा विरचित प्रस्तुत गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्वान किया गया है। इसके प्रणेता राष्ट्रवादी कवि हैं और इस गीत के द्वारा उन्होंने जागरण तथा कर्मठता का सन्देश दिया है। कवि कहता है कि अरे मनुष्य! तू सदैव आगे कदम बढ़ाता चल। तुम्हारे मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ आयेंगी, साधनों का अभाव होगा, मार्ग में तीक्ष्ण पत्थर होंगे, तुम्हारे चारों ओर हिंसक पशु होंगे, किन्तु सभी विघ्नों को पार करते हुए तुम निरन्तर आगे बढ़ते रहो। भय को त्यागकर तुम सदैव राष्ट्र से प्रेम करो। अपने लक्ष्य/कर्त्तव्य का चिन्तन करते हुए आगे बढ़ते रहो।

पाठ के पद्यों का अन्वय, कठिन-शब्दार्थ एवं हिन्दी-भावार्थ –

1.चल चल ………………………………….. निधेहि चरणम्॥
गिरिशिखरे ननु ……………………………….. सदैव पुरतो॥

अन्वयः – चल, चल। पुरतः चरणं निधेहि। सदैव पुरतः चरणं निधेहि। ननु निजनिकेतनं गिरिशिखरे (अस्ति)। (अतः) यानं विना एव नगारोहणं (कुरु)। स्वकीयं बलं साधनं भवति। सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

कठिन-शब्दार्थ :

पुरतः = आगे।
निधेहि = रखो।
गिरिशिखरे = पर्वत की चोटी पर।
निजनिकेतनम् = अपना निवास।
विनैव (विना + एव) = बिना ही।
नगारोहणम् = पर्वत पर चढ़ना।
हिन्दी भावार्थ – कवि निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता हुआ कहता है कि चलो, चलो, आगे पैर रखो। हमेशा आगे ही कदम रखो। निश्चय ही पर्वत की चोटी पर अपना निवास है। इसलिए वाहन के बिना ही पर्वत पर चढ़ना है। अपना बल ही साधन होता है। इसलिए हमेशा आगे ही पैर रखो अर्थात् आगे कदम बढ़ाओ।

2. पथि पाषाणा: ……………………………………. सदैव पुरतो।

अन्वयः – पथि विषमाः प्रखराः (च) पाषाणाः (सन्ति)। परितः घोराः हिंस्राः पशवः (सन्ति)। यद्यपि गमनं खलु सुदुष्करम् (अस्ति, तथापि) सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

कठिन-शब्दार्थ :

पथि = मार्ग में।
पाषाणाः = पत्थर।
विषमाः = असामान्य।
प्रखराः = तीक्ष्ण, नुकीले।
परितः = चारों ओर।
घोराः = भयङ्कर, भयानक।
हिंस्त्राः = हिंसक।
हिन्दी भावार्थ – कवि जीवन में कठिनाइयों से न घबराकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता हुआ कहता है कि मार्ग में तीक्ष्ण एवं असामान्य (ऊबड़-खाबड़) पत्थर हैं और चारों ओर भयानक हिंसक पशु हैं। यद्यपि (मार्ग में) चलना निश्चय ही अत्यन्त कठिन कार्य है, (फिर भी) हमेशा आगे ही पैर रखो अर्थात् जीवन में निरन्तर आगे बढ़ते रहो।

  1. जहीहि भीति …………………………………सदैव पुरतो ॥

अन्वयः – भीतिं जहीहि। शक्तिं भज, भज। तथा राष्ट्र अनुरक्तिं विधेहि। ध्येय-स्मरणं सततं कुरु-कुरु। सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

कठिन-शब्दार्थ :

भीतिम् = भय को।
जहीहि = छोड़ो/छोड़ दो।
भज = भजो, जपो।
अनुरक्तिम् = प्रेम, स्नेह।
विधेहि = करो।
हिन्दी भावार्थ – कवि भय को त्यागने, राष्ट्र प्रेम रखने और निरन्तर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता हुआ कहता है कि भय (डर) को छोड़ो, शक्ति का सेवन करो तथा राष्ट्र में प्रेम रखो। निरन्तर अपने उद्देश्य (लक्ष्य) का स्मरण करो। हमेशा आगे ही पैर रखो अर्थात् आगे कदम बढ़ाओ।

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