Chapter 4 हास्यबालकविसम्मेलनम्
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में बच्चों के द्वारा हास्य कवि-सम्मेलन का वर्णन हुआ है। इसमें हास्य प्रधान कविताओं और वार्तालाप के द्वारा वैद्य, गजाधर, यमराज आदि पर रोचक ढंग से व्यंग्य किया गया है। साथ ही इस पाठ में प्रमुख अव्ययों का भी प्रयोग हुआ है। ऐसे शब्द जो तीनों लिंगों में, तीनों वचनों में तथा सभी विभक्तियों में समान रहते हैं, उनके स्वरूप में अन्तर नहीं आता है, वे ‘अव्यय’ कहलाते हैं।
पाठ का हिन्दी-अनुवाद एवं श्लोकों का अन्वय –
- (विविध-वेशभूषा ………………………………………………….. च कुर्वन्ति।)
हिन्दी-अनुवाद – (विभिन्न प्रकार की वेशभूषा धारण किए हुए चार बाल कवि मंच के ऊपर बैठे हुए हैं। नीचे श्रोता हास्य कविता सुनने के लिए उत्सुक हैं और शोर कर रहे हैं।)
- सञ्चालक:-अलं कोलाहलेन …………………………………………….. एतेषां स्वागतम् कुर्मः।
हिन्दी अनुवाद – सञ्चालक-कोलाहल (शोर) मत कीजिए। आज परम हर्ष का अवसर है कि इस कवि सम्मेलन में काव्य को नष्ट करने वाले और समय को बर्बाद करने वाले भारत के हास्य कवियों में श्रेष्ठ कवि आए हुए हैं। आइए, तालियों से हम सब इनका स्वागत करते हैं।
RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 4 हास्यबालकविसम्मेलनम्
- गजाधरः – सर्वेभ्योऽरसिकेभ्यो …………………………………………… काव्यं श्रावयामि –
वैद्यराज! नमस्तुभ्यं ………………………………………………… वैद्यः प्राणान् धनानि च।। (सर्वे उच्चैः हसन्ति।)
श्लोकस्य अन्वयः – वैद्यराज! यमराजसहोदर! तुभ्यं नमः। यमः तु प्राणान् हरति, वैद्यः प्राणान् धनानि च (हरति)।
हिन्दी अनुवाद – गजाधर – सभी नीरस जनों को नमस्कार। सबसे पहले तो मैं आधुनिक वैद्य को लक्ष्य में करके अपनी कविता सुनाता हूँ हे वैद्यराज! यमराज के सगे भाई! आपको नमस्कार है। यमराज तो प्राणों का हरण करता है, किन्तु वैद्य तो प्राण और धन दोनों का हरण करता है।
(सभी जोर से हँसते हैं।)
- कालान्तकः – अरे! वैद्यास्त सर्वत्र ……………………………………. इदं शृण्वन्तु भवन्तः
चिन्तां प्रज्ज्वलितां दृष्ट्वा …………………………………… कस्येदं हस्तलाघवम्।।
(सर्वे पुनः हसन्ति।)
श्लोकस्य अन्वयः – वैद्यः चितां प्रज्वलितां दृष्ट्वा विस्मयम् आगतः। न अहं गतः, न मे भ्राता (गतः)। इदं कस्य हस्तलाघवम् (अस्ति)?।
हिन्दी अनुवाद – कालान्तक-अरे ! वैद्य तो सभी जगह हैं; किन्तु जनसंख्या निवारण में कुशल मेरे जैसे नहीं हैं। मेरी भी यह कविता आप सुनिए जलती हुई चिता को देखकर (कोई) वैद्य आश्चर्यचकित हो गया कि न तो मैं गया और न ही मेरा भाई (यमराज) गया, फिर यह किसके हाथ की सफाई है। (सभी फिर से हँसते हैं।)
- तुन्दिल:-(तुन्दस्य उपरि हस्तम् आवर्तयन्) तुन्दिलोऽहं भोः! ममापि इदं काव्यं श्रूयताम, जीवने धार्यतां च परानं प्राप्य दुर्बुद्धे! ………………………………. शरीराणि पुनः पुनः।।
(सर्वे पुनः अट्टहासं कुर्वन्ति।)
श्लोकस्य अन्वयः – दुर्बद्धेः! परान्नं प्राप्य शरीरे दयां मा कुरु। लोके परान्नं दुर्लभम्, शरीराणि (तु) पुनः पुनः (भवन्ति)।
हिन्दी अनुवाद – तुन्दिल-(तोंद के ऊपर हाथ फेरता हुआ) हे लोगो! मैं तुन्दिल (पेटू) हूँ। मेरा भी यह काव्य |सुनिए और जीवन में धारण कीजिए अरे! दुर्बुद्धि ! दूसरों का अन्न प्राप्त करके शरीर पर दया मत करो। संसार में पराया अन्न दुर्लभ है, शरीर तो बार- बार प्राप्त हो जाता है। (सभी फिर से बहुत जोर से हंसते हैं।)
चार्वाक:-आम्, आम्। शरीरस्य पोषणं …………………………….ऋणं प्रत्यर्पयेत् जनः।।
(काव्यपाठश्रवणेन उत्प्रेरितः एकः बालकोऽपि आशुकविता रचयति, हासपूर्वकं च श्रावयति।)
श्लोकस्य अन्वयः – यावत् जीवेत् (तावत्) सुखं जीवेत्। ऋणं कृत्वा (अपि) घृतं पिबेत्। घृतं पीत्वा श्रमं (च)]. कृत्वा जनः ऋणं प्रत्यर्पयेत्।
हिन्दी अनुवाद – चार्वाक-हाँ, हाँ। शरीर को पुष्ट करना सर्वथा उचित ही है। यदि धन नहीं है, तब ऋण (कर्ज) करके भी पष्टि देने वाला पदार्थ ही खाना चाहिए, जैसा कि चार्वाक कवि कहता है जब तक जीवित रहो तब तक सुखपूर्वक जीवित रहो, ऋण करके भी घी पीना चाहिए। श्रोता-तब ऋण (कर्ज) को कैसे लौटाना होगा? चार्वाक-मेरे शेष काव्य को सुनिएमनुष्य को घी पीकर और परिश्रम करके ऋण लौटाना चाहिए। (काव्य-पाठ सुनने से प्रेरित हुआ एक बालक भी शीघ्र कविता की रचना करता है और हास्यपूर्वक सुनाता है।)
- बालकः – श्रूयताम् श्रूयतां भोः! ममापि काव्यम्गजाधरं कविं चैव ……………………….. चार्वाकं च नमाम्यहम्।।
(काव्यं श्रावयित्वा हा हा हा’ इति कृत्वा हसति। अन्ये चाऽपि हसन्ति। सर्वे गृहं गच्छन्ति।)
श्लोकस्य अन्वयः – अहं गजाधरं कविं तुन्दिलं च एव भोज्यलोलुपम् कालान्तकं तथा वैद्यं चार्वाकं च नमामि। हिन्दी अनुवाद-बालक-सुनिए, अरे! मेरा भी काव्य सुनिएकवि गजाधर को और खाने के लोभी तुन्दिल को, कालान्तक वैद्य को तथा चार्वाक को मैं नमस्कार करता हूँ। (काव्य सुनाकर ‘हा हा हा’ ऐसा करके हँसता है। अन्य भी हँसते हैं। सभी घर चले जाते हैं।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ –
अधः = नीचे।
कोलाहलम् = शोर।
काव्यहन्तारः = काव्य को नष्ट करने वाले।
कालयापकाः = समय बर्बाद करने वाले।
धुरन्धराः = अग्रणी/श्रेष्ठ।
एहि = आयें, आइए।
करतलध्वनिना = तालियों से।
अरसिकेभ्यः = नीरसजनों को।
स्वकीयम् = अपने।
मादृशाः = मेरे जैसे।
हस्तलाघवम् = हाथ की सफाई।
तुन्दस्य = तोंद के।
आवर्तयन् = फेरता हुआ।
धार्यताम् = धारण करें।
परान्नम् (परा+अन्नम्) = दूसरे के अन्न को।
पौष्टिकः = पुष्टि देने वाला।
प्रत्यर्पणम् (प्रति+अर्पणम्) = लौटाना।
अवशिष्टम् = बचा हुआ, शेष।
उत्प्रेरितः = प्रेरित होकर।
श्रावयति = सुनाता है।
भोज्यलोलुपम् = खाने का लोभी।