Chapter 4 Change and Development in Rural Society (Hindi Medium)
[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)
प्र० 1. नीचे लिखे गद्यांश को पढ़े तथा प्रश्नों के उत्तर दें-
अघनबीघा में मजदूरों की कठिन कार्य-दशी, मालिकों के एक वर्ग के रूप में आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति के सदस्य के रूप में अपरिमित शक्ति के संयुक्त प्रभाव का परिणाम थी। मालिकों की सामाजिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण पक्ष, राज्य में विभिन्न अंगों का अपने हितों के पक्ष में करवा सकने की क्षमता थी। इस प्रकार प्रबल तथा निम्न वर्ग के मध्य खाई को चौड़ा करने में राजनीतिक कारकों का निर्णयात्मक योगदान रहा है।
(i) मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए कैसे प्रयोग कर सके, इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
(ii) मजदूरों की कार्य दशा कठिन क्यों थी?
उत्तर-
(i) एक प्रबल जाति के होने के कारण मालिक लोग राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक रूप से बेहद शक्तिशाली थे। शक्ति-संपन्न होने के कारण वे अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु राज्य की शक्तियों का प्रयोग करते थे। वे अपने लाभ के लिए बड़ी ही कुशलता से राज्य की विभिन्न संस्थाओं का उपयोग करते थे।
(ii) श्रमिक बड़ी ही विषम परिस्थितियों में काम करते थे। दलित होने के कारण वे अपनी भूमि नहीं खरीद सकते थे। उन्हें प्रभुत्वसंपन्न जातियों के खेतों में श्रमिक के तौर पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता था।
प्र० 2. भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए आपके अनुसार सरकार ने क्या उपाय किए हैं, अथवा क्या किए जाने चाहिए?
उत्तर- भूमिहीनों के संरक्षण के लिए उपाय
- विधिक रूप से बंधुआ मजदूरी की समाप्ति – उत्तर प्रदेश तथा बिहार में बंधुआ मजदूरी की प्रथा, गुजरात में हेलपति तथा कर्नाटक में जोता व्यवस्था की भारत सरकार द्वारा कानूनी रूप से समाप्ति।
- जमींदारी व्यवस्था का उन्मूलन – किसानों तथा राज्यों के बीच जमींदार बिचौलिए थे। सरकार ने बड़े ही प्रभावशाली तथा गहन रूप से अधिनियम को पारित कर इस व्यवस्था को खत्म कर दिया।
- पट्टेदारी समाप्ति तथा नियमन अधिनियम – इस कानून ने बँटाईदारी व्यवस्था को हतोत्साहित किया। पश्चिम बंगाल तथा केरल, जहाँ की साम्यवादी सरकारें थीं, वहाँ पट्टेदारों को जमीन पर अधिकार दिए गए।
- भूमि हदबंदी अधिनियम का प्रावधान – इस अधिनियम के अनुसार, भू-स्वामियों के द्वारा रखी जाने वाली जमीन की अधिकतम सीमा तय कर दी गई। अतिरिक्त भूमि की पहचान कर उसे भूमिहीनों के बीच वितरित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर दी गई। विनोबा भावे की भू-दान योजना ने इस कानून के क्रियान्वयन में मदद की। किंतु इस अधिनियम में बहुत सारी त्रुटियाँ भी हैं, जिनका कि निराकरण होना चाहिए।
भूमिहीन श्रमिकों की दशाओं को सुधारने के लिए समुचित प्रयास किए जाने चाहिए तथा इस पूरे क्षेत्र को संगठित किया जाना चाहिए। - गाँवों की आर्थिक अवस्था को राज्यों के द्वारा सुधारा जाना चाहिए। गाँवों का संबंध शेष जगत् से अच्छी तरह से होना चाहिए। गाँवों में रोजगार के अवसरों का सृजन किया जाना चाहिए। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ गाँवों में मनोरंजन की सुविधाएँ भी प्रदान की जानी चाहिए ताकि श्रमिकों में पलायन की प्रवृत्ति पर रोक लग सके। इसके लिए मनरेगा (MANREGA) एक अच्छी पहल है।
- भूमि की चकबंदी – भू-स्वामी किसानों को बिखरी हुई अथवा भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों के बजाय । एक या दो भूमि का बड़ा आकार वाला भाग दिया जाना चाहिए। इसे स्वैच्छिक अथवा अनिवार्य किसी भी रूप में कार्यान्वित किया जाना चाहिए। इससे किसानों की कार्यक्षमता में काफी वृद्धि होगी।
प्र० 3. कृषि मजदूरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक उर्ध्वगामी गतिशीलता के अभाव के बीच एक सीधा संबंध है। इनमें से कुछ के नाम बताइए।
उत्तर-
- भारतीय ग्रामीण समाज पूरी तरह से कृषि पर आश्रित है। यह उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है। दुर्भाग्यवश भूमि का वितरण समान तथा संगठित रूप से ग्रामीण समाज के भूमिहीनों के बीच नहीं किया गया। • भारतीय ग्रामीण समाज में नाते-रिश्तेदारी की प्रथा प्रचलित है। कानून के मुताबिक महिलाओं को परिवार की संपत्ति पर समान रूप से अधिकार है। लेकिन व्यावहारिक रूप से कागजों पर ही सीमित है। पुरुषों के प्रभुत्व के कारण उन्हें इस अधिकार से वंचित कर दिया गया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश लोग भूमिहीन हैं तथा वे अपनी आजीविका के लिए कृषि श्रमिक बन जाते हैं। उन्हें निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी मिलती है। उनका रोजगार सुरक्षित नहीं होता। उन्हें नियमित रूप से काम भी नहीं मिलते। अधिकांश कृषि श्रमिक दैनिक मजदूरी पर काम करते हैं।
- पट्टेदारों को भी अधिक आमदनी नहीं होती क्योंकि उन्हें अपने उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा भू-स्वामी को देना पड़ता है।
- भूमि का स्वामित्व ही किसानों की सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता का निर्धारक है। अतएव ग्रामीण समाज को एक वर्ग संरचना के रूप में जाति व्यवस्था के आधार पर देखा जा सकता है।
- यद्यपि यह हमेशा सत्य नहीं होता। उदाहरण के तौर पर, ग्रामीण समाज में ब्राह्मण एक प्रभुत्वसंपन्न जाति है, किंतु यह प्रभुत्व भू-स्वामी नहीं है। इसलिए यह ग्रामीण समाज का अंग तो है, किंतु कृषि संरचना
से बाहर है।
प्र० 4. वे कौन से कारक हैं, जिन्होंने कुछ समूहों को नव धनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया है? क्या आप अपने राज्य में इस परिवर्तन के उदाहरण के बारे में सोच सकते हैं?
उत्तर- निम्नलिखित कारकों ने कुछ समूहों को नवधनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया
(i) नयी तकनीक
(ii) यातायात के साधन
(iii) नए-नए क्षेत्रों में निवेश की सुविधा।
(iv) शिक्षा
(v) विकसित क्षेत्रों की तरफ पलायन
(vi) राजनीतिक गतिशीलता
(vi) बाह्य अर्थव्यवस्था से जुड़ाव
(vii) मिश्रित अर्थव्यवस्था।
हाँ, मैं अपने राज्य में इस प्रकार के परिवर्तन के बारे में सोच सकता हूँ। उपरोक्त कारकों के साथ किसी भी राज्य या कोई भी समूह उद्यमी तथा प्रबल वर्ग में परिवर्तित हो सकता है।
प्र० 5. हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में अकसर ग्रामीण परिवेश में होती हैं। ग्रामीण भारत पर आधारित किसी फिल्म के बारे में सोचिए तथा उसमें दर्शाए गए कृषक समाज और संस्कृति का वर्णन कीजिए। उसमें दिखाए गए संस्कृति वास्त. चिक कितने हैं? क्या आपने हाल में ग्रामीण क्षेत्र पर आधारित फिल्म देखी है? यदि नहीं तो आप इसकी व्याख्या किस प्रकार से करेंगे?
उत्तर- स्वयं करें।
प्र० 6. अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएँ जहाँ आपको प्रवासी मजदूरों के मिलने की संभावना हो, पता लगाइए कि वे मजदूर कहाँ से आए हैं? उनके गाँव से उनकी भर्ती किस प्रकार की गई, उनका मुकादम कौन है? अगर वे ग्रामीण क्षेत्र से हैं तो गाँवों में उनके जीवन के बारे में पता लगाइए तथा उन्हें काम ढूँढ़ने के लिए प्रवासन करके बाहर क्यों जाना पड़ा?
उत्तर- स्वयं करें।
प्र० 7. अपने स्थानीय फल विक्रेता के पास जाएँ और उससे पूछे कि वे फल जो वह बेचता है कहाँ से आते हैं, और उनका मूल्य क्या है। पता लगाइए कि भारत के बाहर से फलों के आयात (जैसे कि आस्ट्रेलिया से सेब) के बाद स्थानीय उत्पाद के मूल्यों का क्या हुआ। क्या कोई ऐसा आयातित फल है जो भारतीय फलों से सस्ता है?
उत्तर- स्वयं करें।
प्र० 8. ग्रामीण भारत में पर्यावरण स्थिति के विषय में जानकारी एकत्र कर एक रिपोर्ट लिखें। उदाहरण के लिए विषय, कीटनाशक, घटता जल स्तर, तटीय क्षेत्रों में झींगें की खेती का प्रभाव, भूमि का लवणीकरण तथा नहर सिंचित क्षेत्रों में पानी को जमाव, जैविक विविधता का ह्रास।
उत्तर- स्वयं करें।