Chapter 4 Growing up as Boys and Girls (Hindi Medium)
पाठगत प्रश्न
1. आपके बड़े होने के अनुभव, सामोआ के बच्चों और किशारों के अनुभव से किस प्रकार भिन्न हैं? इन अनुभवों में वर्णित क्या ऐसी कोई बात है, जिसे आप अपने बड़े होने के अनुभव में शामिल करना। चाहेंगे। (एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक, पेज-45)
उत्तर : जब हम छोटे थे तो हमारी देखभाल माता-पिता करते थे और यह सिलसिला किशोरावस्था के बाद तक चलता रहा और युवावस्था में जाकर खत्म हुआ। जबकि सामोआ में छोटे बच्चे जैसे ही चलना शुरू कर देते थे, उनकी माताएँ या बड़े लोग उनकी देखभाल करना बंद कर देते थे। यह जिम्मेदारी बड़े बच्चों पर आ जाती थी, जो प्रायः स्वयं भी पाँच वर्ष के आस-पास की उम्र के होते थे। लड़के-लड़कियाँ दोनों अपने छोटे-भाई बहनों की देखभाल करते थे, लेकिन जब कोई लड़का लगभग नौ वर्ष का हो जाता था वह बड़े लड़कों के समूह में सम्मिलित हो जाता था और बाहर के काम सीखता था, जैसे-मछली पकड़ना और नारियल के पेड़ लगाना। लड़कियाँ जब तक तेरह चौदह साल की नहीं हो जाती थीं, छोटे बच्चों की देखभाल और बड़े लोगों के छोटे-मोटे कार्य करती रहती थीं, लेकिन एक बार जब वे तेरह-चौहद साल की हो जाती थीं, वे अधिक स्वतंत्र होती थीं। लगभग चौदह वर्ष की उम्र के बाद भी वे भी मछली पकड़ने जाती थीं, बागानों में काम करती थीं और डलिया बुनना सीखती थीं। साथ-ही-साथ खाना बनाने का भी काम करती थीं। ।
ये सभी अनुभव हमारे जीवन में नहीं देखने को मिले, क्योंकि भारत में बच्चे लगभग 20 वर्ष के बाद ही कमाना शुरू करते हैं, कुछ बच्चे मजबूरीवश इससे कम उम्र में भी काम करना शुरू कर देते हैं।
2. क्या आप वे कारण बता सकते हैं जिनकी वजह से आपके पड़ोस में, सड़क पर, पार्को और बाज़ारों में देर शाम या रात के समय स्त्रियाँ तथा लड़कियाँ कम दिखाई देती हैं? (एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक, पेज-46)
उत्तर : हमारे पड़ोस में सड़क पर, पार्को और बाजारों में देर शाम या रात के समय स्त्रियाँ तथा लड़कियाँ कम दिखाई देने के कई कारण हैं|
- हमारे देश में बाहर के अधिकांश काम पुरुष करते हैं महिलाएँ अधिकांशतः घर के काम करती हैं।
- हमारे देश में कार्यालयों, व्यवसायों तथा अन्य कार्यों में महिलाओं की संख्या काफी कम है इसलिए । भी महिलाएँ घर से बाहर कम दिखाई देती हैं।
- महिलाएँ एवं लड़कियाँ अपने आपको बाहर में असुरक्षित महसूस करती हैं।
- भारतीय संस्कृति भी इस तरह की है कि महिलाओं को काफी कम स्वतंत्रता प्रदान की गई है कि वे घर से बाहर काफी देर तक रह सकें।
3. क्या लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग कामों में लगे हैं? क्या आप विचार करके इसका कारण बता सकते हैं? यदि आप लड़के और लड़कियों का स्थान परस्पर बदल देंगे, अर्थात् लड़कियों के स्थान पर लड़कों और लड़कों के स्थान पर लड़कियों को रखेंगे तो क्या होगा? (एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक, पेज-46)
उत्तर : भारत में अधिकांश लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग कामों में लगे हैं। इसके कई कारण हैं|
- भारतीय संस्कृति में लड़कियों को घरेलू कामों का जिम्मा दिया गया है, जबकि लड़कों को बाहर के कामों की जिम्मेदारी दी गई है।
- भारत में व्यवसाय, यातायात के साधनों में जैसे ड्राइवर व अन्य कर्मचारी, सेना, पुलिस जैसे अनेक कामों में लड़कों की बहुलता है जबकि शिक्षा के क्षेत्र, नर्स और कुछ कार्यालयों में लड़कियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
- भारतीय संस्कृति में कुछ कामों को लड़कियों के लिए उचित नहीं माना जाता है इसलिए उन कामों को लड़के ही करते हैं।यदि हम लड़कियों के स्थान पर लड़कों और लड़कों के स्थान पर लड़कियों को रखेंगे, तो कई तरह की दिक्कत होगी, क्योंकि कई काम लड़कियों द्वारा ही सही तरीके से किया जाता है, तो कई कामों को लड़के सही तरीके से करते हैं इसलिए लड़के-लड़कियाँ अपने अनुकूल व्यवसाय को चुनते हैं। ऐसी स्थिति में अगर हम परिवर्तन करते हैं तो कई तरह की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
4. क्या हरमीत और सोनाली का यह कहना सही था कि हरमीत की माँ काम नहीं करती? ( एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक, पेज-49)
उत्तर : हरमीत और सोनाली का यह कहना सही नहीं था कि हरमीत की माँ काम नहीं करती। हरमीत की माँ घर | का सारा काम करती थी, वह सिर्फ बाहर काम करके पैसा नहीं कमा पाती थी, लेकिन घरेलू सारा काम हरमीत की माँ के जिम्मे था।
5. आप क्या सोचते हैं, अगर आपकी माँ या वे लोग, जो घर के काम में लगे हैं, एक दिन के लिए हड़ताल पर चले जाएँ, तो क्या होगा? ( एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक, पेज-49)
उत्तर : अगर हमारी माँ या वे लोग जो घर के काम में लगे हैं, एक दिन के लिए हड़ताल पर चले जाएँ तो घर का सारा काम ठप्प हो जाएगा। या घर का सारा काम हमारे पिता जी को करना पड़ेगा, जो करने के लिए आदी नहीं हैं। और कई घरेलू काम जैसे खाना बनाना, कपड़े धोना आदि काम हमारे पिता जी को नहीं आता, ऐसी स्थिति में मुझे खाना सही ढंग से नहीं मिलेगा या खाना बाहर होटल से मँगाकर खाना पड़ेगा।
6. आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि सामान्यतया पुरुष या लड़के घर का काम नहीं करते? आपके विचार में क्या उन्हें घर का काम करना चाहिए? (एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक, पेज-49)
उत्तर : हम ऐसा इसलिए सोचते हैं, क्योंकि अधिकांश घरों में घर का काम लड़कियाँ या महिलाएँ करती हैं इसलिए
पुरुष या लड़के को घर का काम नहीं करना पड़ता। हमारे विचार में पुरुषों या लड़कों को भी घर का काम करना चाहिए, क्योंकि जब महिलाएँ घर में बीमार पड़ जाती हैं या वे कहीं बाहर चली जाती हैं, तो ऐसी स्थिति में घर का काम पुरुषों या लड़कों को करना चाहिए। पर्व त्यौहार तथा घर में अगर कोई मेहमान आ जाता है, तब भी घर के काम में बढ़ोतरी होती है। ऐसी स्थिति में पुरुषों को महिलाओं के काम में हाथ बँटाना चाहिए। कई बार महिलाएँ काम करते-करते थक जाती हैं, ऐसी स्थिति में भी पुरुषों को घर का काम करना चाहिए।
7. हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में स्त्रियाँ प्रति सप्ताह कुल कितने घंटे काम करती हैं? इस संबंध में स्त्रियों या पुरुषों में कितना फर्क दिखाई देता है? (एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक, पेज-50)
उत्तर : हरियाणा में स्त्रियाँ प्रति सप्ताह 53 घंटे काम करती हैं। जिसमें 23 घंटे वैतनिक काम और 30 घंटे अवैतनिक घरेलू काम करती हैं। तमिलनाडु में स्त्रियाँ प्रति सप्ताह 54 घंटे काम करती हैं जिसमें 19 घंटे वैतनिक कार्य और 35 घंटे अवैतनिक घरेलू काम करती हैं। हरियाणा में पुरुष सप्ताह में 40 घंटे काम करते हैं जिसमें 38 घंटे वैतनिक कार्य और 2 घंटे घरेलू कार्यों को करते हैं जो कि महिलाओं से 13 घंटे कम है। तमिलनाडु में पुरुष सप्ताह में 44 घंटे काम करते हैं जिसमें 40 घंटे वैतनिक कार्य और 4 घंटे अवैतनिक कार्य को करते हैं जो कि महिलाओं से 10 घंटे कम हैं।
प्रश्न-अभ्यास
पाठ्यपुस्तक से
1. साथ में दिए गए कुछ कथनों पर विचार कीजिए और बताइए कि वे सत्य हैं या असत्य? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण भी दीजिए।
(क) सभी समुदाय और समाजों में लड़कों और लड़कियों की भूमिकाओं के बारे में एक जैसे विचार नहीं पाए जाते।
(ख) हमारा समाज बढ़ते हुए लड़कों और लड़कियों में कोई भेद नहीं करता।
(ग) वे महिलाएँ जो घर पर रहती हैं, कोई काम नहीं करतीं।
(घ) महिलाओं के काम, पुरुषों के काम की तुलना में कम मूल्यवान समझे जाते हैं।
उत्तर :
(क) यह कथन सही है, क्योंकि जिन समुदाय या समाजों में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या काफी कम है या जो समाज रूढ़िवादी परंपरा से जकड़ा हुआ है, उन समाजों में लड़कों और लड़कियों की भूमिकाओं के बारे में एक जैसे विचार नहीं पाए जाते।
(ख) यह कथन सही नहीं हैं। हमारे ग्रामीण या नगरीय समाज में भी लड़के और लड़कियों के परवरिश में भेद भाव किए जाते हैं। भले ही ग्रामीण और नगरीय समाज में भेदभाव करने के अनुपात में अंतर हो।
(ग) यह कथन सही नहीं है, क्योंकि जो महिलाएँ घर पर रहती हैं वे घरेलू कामों को करती हैं; जैसे-खाना बनाना, घर की सफ़ाई करना, बच्चों की देखभाल करना आदि प्रमुख है।
(घ) यह कथन सही है, क्योंकि महिलाएँ जो घर में काम करती हैं उन्हें पैसों में नहीं आँका जाता और न ही इन कामों से आय की प्राप्ति होती है इसलिए महिलाओं के काम को पुरुषों के काम की तुलना में कम मूल्यवान समझे जाते हैं।
2. घर का काम अदृश्य होता है और इसका कोई मूल्य नहीं चुकाया जाता। घर के काम शारीरिक रूप
से थकाने वाले होते हैं।
घर के कामों में बहुत समय खप जाता है।
अपने शब्दों में लिखिए कि ‘अदृश्य होने’ शारीरिक रूप से थकाने’ और ‘समय खप जाने’ जैसे वाक्यांशों से आप क्या समझते हैं? अपने घर की महिलाओं के काम के आधार पर हर बात को एक
उदाहरण से समझाइए।
उत्तर :
काम का अदृश्य होना- कई काम दिखाई नहीं देता, जैसे-बच्चों की देखभाल करना, जब बच्चा काफी छोटा होता है उस पर हमेशा निगरानी रखना पड़ता है और निगरानी रखने का कार्य दिखाई नहीं देता।
शारीरिक रूप से थकाने वाले- घरेलू कार्यों जैसे घर की सफ़ाई, कपड़े की सफ़ाई, खाना बनाना आदि कार्यों में अत्यधिक श्रम की आवश्यकता होती है इसलिए यह काम शरीर को थकाने वाले होते हैं।
समय खप जाने- समय खप जाने से अभिप्राय है कि घर में छोटे-छोटे इतने अधिक काम होते हैं, जिन्हें करने में दिन का अधिकांश समय व्यतीत हो जाता है। कई बार घरों में नए-नए काम बढ़ जाते हैं, जैसे कि मेहमानों के आने पर कार्यों का बढ़ना।
3. ऐसे विशेष खिलौनों की सूची बनाइए, जिनसे लड़के खेलते हैं और ऐसे विशेष खिलौनों की भी सूची बनाइए, जिनसे केवल लड़कियाँ खेलती हैं। यदि दोनों सूचियों में कुछ अंतर है, तो सोचिए और बताइए कि ऐसा क्यों है? सोचिए कि क्या इसका कुछ संबंध इस बात से है कि आगे चलकर वयस्क के रूप में बच्चों को क्या भूमिका निभानी होगी?
उत्तर : खिलौनों की सूची
समाज में लड़के जब युवावस्था में पहुँचते हैं तो वे उन्हीं कामों को ज्यादा पसंद करते हैं जिसे वे बचपन में खिलौने के रूप में खेला करते थे; जैसे-सेना में भर्ती होना, पुलिस या पुलिस ऑफिसर बनना, गाड़ी चलाना
आदि कार्यों को करना पसंद करते हैं। इसके विपरीत लड़कियाँ युवावस्था में किसी भी कार्य करने के
साथ-साथ घरेलू जिम्मेवारी अवश्य निभाती हैं।
4. अगर आपके घर में या आस-पास, घर के कामों में मदद करने वाली कोई महिला है तो उनसे बात कीजिए और उनके बारे में थोड़ा और जानने की कोशिश कीजिए कि उनके घर में और कौन-कौन हैं? वे क्या करते हैं? उनका घर कहाँ है? वे रोज कितने घंटे तक काम करती हैं? वे कितना कमा लेती हैं? इन सारे विवरणों को शामिल कर, एक छोटी-सी कहानी लिखिए।
उत्तर : हमारे पड़ोस में एक महिला घर के कामों में मदद करने के लिए आती है। उसका नाम राजेश्वरी है। उसके पाँच बच्चे हैं। उसका पति सब्जी बेचने का काम करता है। उसके पाँच बच्चों में तीन लड़के और दो लड़कियाँ है। उसके पति का नाम सोमेश्वर है। राजेश्वरी का घर दिल्ली के उपनगर गोकुलपुरी के नाले पर स्थित झोपड़पट्टी में है। राजेश्वरी प्रतिदिन 16 घंटे काम करती है, जिसमें आठ घंटे अपने घर पर काम करती है। और आठ घंटे दूसरे के घरों पर काम करती है। आठ घंटे दूसरे के घरों पर काम करने पर उसे 1800 रुपये मिलता है। उसका पति सब्जी बेचकर 3000 से लेकर 3500 रुपये तक कमा लेता है।