Chapter 4 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प को चुनें
(i) मानचित्र प्रक्षेप, जो कि विश्व के मानचित्र के लिए न्यूनतम उपयोगी है
(क) मर्केटर
(ख) बेलंनी
(ग) शंकु
(घ) ये सभी
उत्तर-(ग) शंकु। |

(ii) एक मानचित्र प्रक्षेप, जो न समक्षेत्र हो एवं न ही शुद्ध आकार वाला हो तथा जिसकी दिशा भी शुद्ध नहीं होती है
(क) शंकु ।
(ख) ध्रुवीय शिरोबिन्दु
(ग) मर्केटर
(घ) बेलनी
उत्तर-(क) शंकु।

(iii) एक मानचित्र प्रक्षेप, जिसमें दिशा एवं आकृति शुद्ध होती है लेकिन ध्रुवों की ओर यह बहुत अधिक विकृत हो जाती है
(क) बेलनाकार समक्षेत्र
(ख) मर्केटर |
(ग) शंकु
(घ) ये सभी
उत्तर-(ख) मर्केटर।।

(iv) जब प्रकाश के स्रोत को ग्लोब के मध्य रखा जाता है तथा प्राप्त प्रक्षेप को कहते हैं
(क) लम्बकोणीय
(ख) त्रिविम
(ग) नोमॉनिक
(घ) ये सभी
उत्तर-(ग) नोमॉनिक।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्व निम्नलिखित हैं–

  1. पृथ्वी का लघु रूप-प्रक्षेप द्वारा लघु मापनी की सहायता से पृथ्वी के स्वरूप को कागज की | समतल सतह पर दर्शाया जाता है।
  2. अक्षांश के समान्तर-ये ग्लोब के चारों ओर स्थित वे वृत्त हैं जो विषुवत् वृत्त के समान्तर एवं , ध्रुवों से समान दूरी पर स्थित होते हैं। इनका विस्तार ध्रुव पर बिन्दु से लेकर विषुवत् वृत्त पर ग्लोबीय परिधि तक होता है। इनका सीमांकन 0° से 90° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों में किया जाता है।
  3. देशान्तर-ये अर्द्धवृत्त होते हैं जो कि उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक खींचे जाते हैं तथा दो विपरीत देशान्तर एक वृत्त का निर्माण करते हैं।
  4. भूमण्डलीय गुण-मानचित्र प्रक्षेप में ग्लोब के गुणों को संरक्षित किया जाता है। यही गुण किसी स्थान की दूरी, आकृति, क्षेत्रफल तथा दिशा को अभिव्यक्त करते हैं।

(ii) भूमण्डलीय सम्पत्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-भूमण्डलीय गुण ही भूमण्डलीय सम्पत्ति कहलाता है। एक मानचित्र में चार : भूमण्डलीय गुण-क्षेत्रफल, आकृति, दिशा और दूरी-होते हैं। ये गुण विश्वव्यापी सम्पत्ति है जो प्रत्येक देश या स्थान के पास होती है। वास्तव में भूगोल इसी भूमण्डलीय सम्पत्ति के परिप्रेक्ष्य में मानवीय क्रियाओं का अध्ययन करता है।

(iii) कोई भी मानचित्र ग्लोब को सही रूप में नहीं दर्शाता है, क्यों?
उत्तर-ग्लोब पृथ्वी का लगभग अधिकाधिक शुद्ध प्रतिरूप है। मानचित्र में हम पृथ्वी के किसी भी भाग या सम्पूर्ण पृथ्वी को उसके सही आकार एवं विस्तार में दिखाने का प्रयास करते हैं, लेकिन विकृति किसी-न-किसी रूप में अवश्य बनी रहती है। ऐसा इसलिए है कि पृथ्वी नारंगी की तरह गोल है जिसका प्रतिरूप ग्लोब भी इसी का समरूप है, किन्तु मानचित्र समतल सतह पर ग्लोब का एक प्रदर्शन है, जिसे त्रिविम रूप में प्रदर्शित करना कठिन है। फिर भी मानचित्र एवं ग्लोब दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता एवं महत्ता है।

(iv) बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप में क्षेत्र को समरूप कैसे रखा जाता है?
उत्तर-बेलनाकार प्रक्षेप में अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं की दूरी की गणना कर आनुपातिक रूप में बनाया जाता है। ये रेखाएँ परस्पर समानान्तर तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं, जिसके कारण क्षेत्रफल विकृतियाँ न्यूनतम हो जाती हैं। इस प्रकार बेलनाकार, समक्षेत्र प्रक्षेप में क्षेत्र समरूप हो जाता है।

प्रश्न 3. अन्तर स्पष्ट कीजिए
(i) विकासनीय एवं अविकासनीय पृष्ठ।
उत्तर-विकासनीय पृष्ठ वह होता है जिसे समतल करके अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के जाल को प्रक्षेपित किया जा सकता है, जबकि अविकासनीय सतह वह है जिसे बिना खण्डित या बिना तोड़े-मोड़े चपटा नहीं किया जा सकता है। अत: ग्लोब या गोलाकार सतह में अविकासनीय पृष्ठ (सतह) के गुण हैं, जबकि बेलन, शंकु या समतल में विकासनीय पृष्ठ के गुण हैं। (चित्र 4.1)


ग्लोब से समतल सतह पर परिवर्तन, क्षेत्रफल, आकार एवं दिशा में विकृति पैदा करता है।
चित्र 4.1: विकासनीय एवं अविकासनीय पृष्ठ का प्रदर्शन

(ii) समक्षेत्र तथा यथाकृतिक प्रक्षेप।।
उत्तर-समक्षेत्र प्रक्षेप में पृथ्वी के विभिन्न भागों का क्षेत्रफल शुद्ध रखने का प्रयास किया जाता है, जबकि यथाकृतिक प्रक्षेप में क्षेत्रफल की शुद्धता के स्थान पर आकृति को शुद्ध रखने का प्रयास किया जाता है।

(iii) अभिलेख एवं तिर्यक प्रक्षेप।
उत्तर-जब विकासनीय पृष्ठ ग्लोब के विषुवत् वृत्त पर स्पर्श करता है तो उसे विषुवतीय या अविलम्ब प्रक्षेप कहा जाता है, किन्तु यदि कोई प्रक्षेप विषुवत् वृत्त या ध्रुव के बीच किसी बिन्दु पर स्पर्शरेखीय आधार पर बनाया जाए तो वह तिर्यक प्रक्षेप कहलाता है।

(iv) अक्षांश के समान्तर एवं देशान्तर के याम्योत्तर।
उत्तर-अक्षांश विषुवत् वृत्त के उत्तर या दक्षिण में स्थित किसी बिन्दु की कोणीय दूरी को डिग्री, मिनट तथा सेकण्ड में व्यक्त करता है। इन रेखाओं को प्रायः समान्तर अक्षांश कहते हैं। जबकि देशान्तर रेखाओं को प्रायः याम्योत्तर कहा जाता है। ये ग्रीनविच के पूर्व या पश्चिम में स्थित किसी बिन्दु की कोणीय स्थिति को डिग्री एवं मिनट में व्यक्त करती हैं।

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों में दीजिए ।
(i) मानचित्र प्रक्षेप का वर्गीकरण करने के आधार की विवेचना कीजिए तथा प्रक्षेपों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-प्रक्षेपों का वर्गीकरण
प्रक्षेपों का वर्गीकरण प्रकाश तथा उनके उपयोग के आधार पर निम्नवत् किया जा सकता है ।

1. प्रकाश के प्रयोग के आधार पर प्रकाश के प्रयोग पर आधारित जो प्रक्षेप बनाए जाते हैं, उन्हें निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
(क) सन्दर्भ प्रक्षेप–इने प्रक्षेपों की रचना करने के लिए ग्लोब के मध्य भाग से प्रकाश डालकर अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं का जाल प्राप्त किया जाता है। इन प्रक्षेपों के निर्माण में रेखागणित का सहयोग लिया जाता है; अतः इन्हें ज्यामितीय या अनुदृष्टि प्रक्षेप भी कहते हैं।
(ख) असन्दर्श प्रक्षेप-इन प्रक्षेपों की रचना गणित के सिद्धान्तों के आधार पर की जाती है। अतः इन्हें गणितीय या अभौतिक प्रक्षेप भी कहते हैं।

2. उपयोग के आधार पर-उपयोग की दृष्टि से प्रक्षेपों को निम्नलिखित तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(क) शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में क्षेत्रफल तथा मापक शुद्ध रहता है, उन्हें शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों का प्रयोग विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन, वितरण तथा राजनीतिक मानचित्रों की रचना में किया जाता है।
(ख) शुद्ध आकृति प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में विभिन्न प्रदेशों की आकृतियाँ शुद्ध रहती हैं, उन्हें शुद्ध आकृति प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों का प्रयोग विभिन्न देशों के मानचित्र, जलधाराओं की प्रवाह दिशा, वायुमार्ग तथा पवन की प्रवाह दिशा दर्शाने के लिए किया जाता है। ऐसे प्रक्षेपों का क्षेत्रफल प्रायः अशुद्ध रहता है।
(ग) शुद्ध दिशा प्रक्षेप-जिन प्रक्षेपों में सभी दिशाएँ शुद्ध रहती हैं, उन्हें शुद्ध दिशा प्रक्षेप
कहते हैं। इन प्रक्षेपों के मध्य से देखने पर प्रत्येक ओर शुद्ध दिशा का ज्ञान होता है, परन्तु यह दिशानुरूपता केन्द्र के निकटवर्ती क्षेत्रों तक ही रहती है। उत्तर-दक्षिण दिशाओं में इनका प्रसार अधिक होता है। इन प्रक्षेपों का उपयोग नाविकों के लिए बहुत ही लाभप्रद होता है। वायुमार्ग, जलमार्ग तथा स्थलमार्ग प्रदर्शित करने हेतु इन्हीं प्रक्षेपों का उपयोग किया जाता है।

3. रचना के आधार पर-रचना प्रक्रिया के आधार पर प्रक्षेपों का वर्गीकरण निम्नलिखित चार प्रकार से किया जा सकता है
(क) शंक्वाकार प्रक्षेप,
(ख) बेलनाकार प्रक्षेप,
(ग) शिरोबिन्दु प्रक्षेप,
(घ) परम्परागत अथवा रूढ़ प्रक्षेप (चित्र 4.2)।

प्रक्षेप की विशेषताएँ

विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपों में निम्नलिखित गुण या विशेषताएँ होती हैं|

  1. एक उत्तम प्रक्षेप में शुद्ध दिशा, शुद्ध क्षेत्रफल, शुद्ध आकृति, शुद्ध मापक जैसे ही गुण नहीं होते और उसकी रचना भी सरल होती है।
  2. कोई भी प्रक्षेप सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता, इसीलिए विभिन्न उद्देश्यों के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रक्षेपों की रचना की जाती है।
  3. प्रत्येक प्रक्षेप में अक्षांश रेखाएँ विषुवत् रेखा के समान्तर तथा देशान्तर रेखाएँ उत्तर-दक्षिण ध्रुवों | की ओर प्रसारित होती हैं।
  4. प्रत्येक प्रक्षेप अक्षांश व देशान्तर रेखाओं का जाल होता है।
  5. प्रक्षेप में दो देशान्तर रेखाओं के बीच की दूरी चाप कहलाती है, जबकि दो अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी पेटी कहलाती है।




चित्र 4.2-रचना एवं प्रकाश स्थिति के आधार पर प्रक्षेप के विभिन्न प्रकार।

(ii) कौन-सा मानचित्र प्रक्षेप नौसंचालन उद्देश्य के लिए बहुत उपयोगी होता है। इस प्रक्षेप की सीमाओं एवं उपयोगों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-नौसंचालन उद्देश्य के लिए मर्केटर प्रक्षेप बहुत उपयोगी होता है। इस प्रक्षेप की रचना सन् 1569 में एक डच मानचित्रकार जेरार्डस मर्केटर ने की थी। यह एक यथाकृतिक प्रक्षेप है, जिसमें आकृति को सही बनाए रखा जाता है (चित्र 4.3)।.


चित्र 4.3-मर्केटर प्रक्षेप : सीधी रेखाएँ रंब रेखा तथा वक्र रेखाएँ बृहत् वृत हैं।

सीमाएँ-1. इस प्रक्षेप में ध्रुव के निकटवर्ती देशों का आकार वास्तविक आकार से अधिक हो जाता है, क्योंकि देशान्तर एवं अक्षांशों के सहारे मापनी का विस्तार उच्च अक्षांशों पर तीव्रता से बढ़ता है।
2. इस प्रक्षेप में ध्रुवों को प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है क्योंकि 90° समान्तर एवं याम्योत्तर रेखाएँ अनन्त होती हैं।

उपयोग-1. यह विश्व के मानचित्र के लिए बहुत ही उपयोगी है तथा ऐटलस मानचित्रों को बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
2. यह समुद्र एवं वायुमार्गों पर नौसंचालन के लिए बहुत ही उपयोगी है।
3. इस प्रक्षेप का उपयोग अपवाह प्रतिरूपों, समुद्री धाराओं, तापमान, पवनों एवं उनकी दिशाओं, पूरे विश्व में वर्षा का वितरण इत्यादि को मानचित्र पर प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

(iii) एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप के मुख्य गुण क्या हैं तथा उसकी सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-एक मानक अक्षांश वाला शंकु प्रक्षेप
इस प्रक्षेप की आकृति शंकु की भाँति होती है। इसके निर्माण के लिए कागज को ग्लोब परे शंकु के आकार में मोड़कर लपेटा जाता है। कागजरूपी शंकु जिस स्थान पर ग्लोब को स्पर्श करता है, उसे ही प्रामाणिक अक्षांश या मानक अक्षांश अथवा प्रधान अक्षांश कहा जाता है, क्योंकि इस अक्षांश की लम्बाई प्रक्षेप में उतनी ही होती है जितनी इस मापक पर बने ग्लोब पर सम्बन्धित अक्षांश की। चूँकि इस प्रक्षेप में ग्लोब के मध्य में रखे गए प्रकाश द्वारा प्रक्षेपित अक्षांश तथा देशान्तरों का रेखा-जाले प्राप्त किया। जाता है; अतः सभी देशान्तर शंकु के शीर्षबिन्दु से बाहर की ओर प्रसारित होते हैं।

एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप की विशेषताएँ

  1. शंकु प्रक्षेप की रचना अत्यन्त सुगम तथा सरल है।
  2. इस प्रक्षेप में सभी देशान्तर रेखाओं पर मापक शुद्ध रहता है।
  3. इस प्रक्षेप में प्रामाणिक अक्षांश के सहारे मापक तथा क्षेत्रफल दोनों ही शुद्ध रहते हैं।
  4. इस प्रक्षेप में मानचित्र को अलग-अलग भागों में बाँटकर भी बनाया जा सकता है।
  5. इस प्रक्षेप में एक ही गोलार्द्ध को प्रदर्शित किया जा सकता है।
  6. इस प्रक्षेप में क्षेत्रफल शुद्ध नहीं रहता है।
  7. इस प्रक्षेप में मानक या प्रामाणिक अक्षांश रेखा के सहारे वाले भागों को छोड़कर शुद्ध आकृति का | गुण भी नहीं पाया जाता है।
  8. इस प्रक्षेप में ध्रुव अपनी वास्तविक स्थिति से ऊपर प्रकट किया जाता है।
  9. शंकु प्रक्षेप पर सम्पूर्ण विश्व के मानचित्र का प्रदर्शन करना सम्भव नहीं है।

एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप की सीमाएँ
शंकु प्रक्षेप का उपयोग पूर्व-पश्चिम दिशा में विस्तृत समशीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के लिए अधिक किया जाता है। इसमें वे छोटे-छोटे प्रदेश, जिनका विस्तार उत्तर-दक्षिण कम तथा पूर्व-पश्चिम अधिक होता है, सुगमता से प्रदर्शित किए जा सकते हैं। इसी कारण डेनमार्क, हॉलैण्ड, पोलैण्ड, ब्रिटेन आदि । देशों के लिए यह प्रक्षेप सर्वाधिक उपयुक्त रहता है।

महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

कुछ चुने हुए मानचित्र प्रक्षेप (पाठ्य-पुस्तक)
1. एक मानक अक्षांश रेखा वाला शंकु प्रक्षेप
उदाहरण-10° उ० से 70° उ० अक्षांशों तथा 10° पू० से 130° पू० देशान्तरों के बीच घिरे हुए एक क्षेत्र के लिए एक मानक समान्तर के साथ शंकु प्रक्षेप बनाएँ, जबकि मापनी 1: 25,00,00,000 है एवं अक्षांशीय तथा देशान्तरीय अन्तराल 10° है।
गणना-पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या = [latex s=2]\\ \frac { 25,00,00,000 }{ 25,00,00,000 } [/latex] = 1 इंच

नोट-प्रक्षेप की गणना के अन्तर्गत पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

पृथ्वी का वास्तविक अर्द्धव्यास/प्रक्षेप की मापनी ।

पृथ्वी का वास्तविक अर्द्धव्यास 25,16,66,200 या 63,50,00,000 सेमी है। इसे गणना के लिए 25,00,00,000 इंच या 64,00,00,000 सेमी मानते हैं। अतः प्रस्तुत पुस्तक में 25,00,00,000 इंच को ही गणना का आधार माना गया है।

मानक अक्षांश 40° उत्तर है (10, 20, 30, 40, 50, 60, 70), क्योंकि दिए गए उदाहरण के अन्तर्गत 40° ही मध्य में स्थित है।

मध्य देशान्तर 70° पूर्व है क्योंकि दिए गए विस्तार को देखने पर (10, 20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 90, 100, 110, 120, 130) 70° पूर्व ही मध्य में स्थित है।

रचना विधि-1.

2. बेलनाकार समक्षेत्रफल प्रक्षेप
बेलनाकार समक्षेत्रफल प्रेक्षप को लैम्बर्ट प्रक्षेप के नाम से भी जाना जाता है। इसे ग्लोब के विषुवतीय वृत्त पर स्पर्श बेलन पर पड़ने वाली अक्षांश किरणों के प्रक्षेपण के आधार पर बनाया जाता है। इस प्रक्षेप में अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। ध्रुवों को विषुवत् रेखा के समान एवं समान्तर बनाया जाता है, इसलिए उच्च अक्षांशों वाले क्षेत्रों के आकार बहुत अधिक विकृत हो जाते है।

उदाहरण – विश्व का एक बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप बनाइए जिसमें मानचित्र की प्रतिनिधि ‘भिन्न 1: 30,00,00,000 है तथा अक्षांशीय एवं देशान्तरीय मध्यान्तर मध्ये 15° है।
गणना – पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या = [latex s=2]\\ \frac { 25,00,00,000 }{ 30,00,00,000 } [/latex] = 0.83 इंच
विषुवत् वृत्त की लम्बाई 2πR = [latex s=2]\\ \frac { 2 X 22 X 0.83 }{ 7 } [/latex] = 5.23 इंच

रचना विधि –

  1. 0.83 इंच अर्द्धव्यास का एक वृत्त खींचें।
  2. अन्य अक्षांश (उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्थों के लिए) 15°, 30°, 45°, 60°, 75° तथा 90° के | लिए वृत्त के मध्य बिन्दु से कोण बनाएँ।
  3. 0° कोण या केन्द्रीय रेखा के वृत्त की परिधि पर मिले बिन्दु से एक सीधी रेखा बनाइए, जिसकी | लम्बाई 5.23 इंच हो। यही रेखा प्रक्षेप पर विषुवत् रेखा को प्रदर्शित करती है।
  4. अन्य अक्षांश रेखा की रचना भी इस प्रकार पूरी की तथा इनको विषुवत् रेखा की लम्बाई के बराबर तथा समान्तर बनाया।
  5. देशान्तर रेखाएँ बनाने के लिए विषुवत् रेख़ को 24 बराबर भागों में विभाजित कर लम्बवत् । समान्तर रेखाएँ खींचीं।
  6. नीचे दिए गए चित्र 4.5 के अनुसार प्रक्षेप को पूरा करें।

3. मटर प्रक्षेप
यह प्रक्षेप एक गणितीय सूत्र पर आधारित है। इसलिए यह एक यथाकृतिक प्रक्षेप है। इस प्रक्षेप पर किसी भी दो बिन्दुओं को जोड़ने वाली सीधी रेखा एक नियत दिस्थिति को प्रकट करती है, जिसे रम्ब रेखा या लेक्सोड्रोम कहते हैं।

उदाहरण – विश्व मानचित्र के लिए 1 : 25,00,00,000 की मापनी पर तथा 15° के मध्यान्तर पर एक ‘मर्केटर का प्रक्षेप खींचें।
गणना-पृथ्वी की घटी हुई त्रिज्या या अर्द्धव्यास
= [latex s=2]\\ \frac { 25,00,00,000 }{ 25,00,00,000 } [/latex] = 1 इंच
विषुवत् वृत्त की लम्बाई 2πR = [latex s=2]\\ \frac { 2 X 22 X 1 }{ 7 } [/latex] = 6.28 इंच

रचना विधि –

  1. 6.28 इंच की एक रेखा EQ खींचे जो कि विषुवत् रेखा दर्शाती हो।
  2. विषुवत् रेखा के दोनों बिन्दु EQ पर उत्तर-दक्षिण लम्ब खींचें।
  3. खींचे गए लम्ब के दोनों ओर अन्य अक्षांश के बीच की दूरी के चिह्न लगाएँ। इस दूरी की गणना के | लिए अग्रांकित सारणी का प्रयोग करें


4.देशान्तर रेखा बनाने के लिए भूमध्य रेखा पर प्रक्षेप में दिए गए मध्यान्तर 15° के आधार पर 360/15 = 24 बराबर दूरी वाली रेखाएँ खींचें तथा चित्र 4.6 के आधार पर प्रक्षेप की रचना पूर्ण करें।

विशेषताएँ –

क्रियाकलाप

  1. 30° उ० से 70° उ० तथा 40° प० से 30° प० के बीच स्थित एक क्षेत्र का रेखाजाल एक मानक | अक्षांश वाले सामान्य शंकु प्रक्षेप पर बनाइए, जिसकी मापनी 1: 20,00,00,000 तथा मध्यान्तर 10° है।
  2. विश्व का रेखाजाल बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप पर बनाइए, जहाँ प्रतिनिधि भिन्न 1 : 15,00,00,000 तथा मध्यान्तर 15° है।
  3. 1: 25,00,00,000 की मापनी पर एक मर्केटर प्रक्षेप का रेखाजाल बनाइए, जिसमें अक्षांश एवं देशान्तर 20° के मध्यान्तर पर खींची जाएँ।

उत्तर – नोट – दिए गए उदाहरणों की सहायता से विद्यार्थी क्रियाकलाप स्वयं पूर्ण करें।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. दक्षिणी गोलार्द्ध के लिए प्रदर्शक भिन्न 1/25,00,00,000 पर एक मानक अक्षांश वाले शंक्वाकार प्रक्षेप की रचना कीजिए, जवकि
प्रामाणिक अक्षांश = 45° दक्षिण
प्रक्षेपान्तर = 15°
देशान्तरीय विस्तार = 30° दक्षिण से 60° दक्षिण तक
अक्षांशीय विस्तार = 15° पश्चिम से 105° पूर्व तक।

रचना–सर्वप्रथम 1 इंच की त्रिज्या का एक अर्द्धवृत्त बनाइए, जिसका केन्द्र अ है। अ ब लम्ब खींचिए। अ से 45° तथा 15° के कोण बनाइए जो क्रमशः अ स तथा अ द हों। न द की दूरी से अ को केन्द्र मानकर एक चाप लगाइए। च बिन्दु से अ न आधार रेखा के समानान्तर च छ रेखा खींचिए। स बिन्दु से क स समकोण बनाती हुई एक स्पर्श रेखा खींचिए।

अब प्रक्षेप निर्माण हेतु कोई सीधी रेखा क ख लीजिए। ख को केन्द्र मानकार क स की दूरी से एक चाप . लगाइए, जो 45° दक्षिणी अक्षांश अर्थात् मानक या प्रामाणिक अक्षांश रेखा को प्रकट करेगा। द न की दूरी से चाप के दोनों ओर के अक्षांशों की दूरियाँ काट लीजिए तथा ख को केन्द्र मानकर अक्षांशों के चाप लगाइए। च छ की दूरी से प्रामाणिक अक्षांश रेखा पर दोनों ओर देशान्तर रेखाएँ काटिए तथा उन्हें ख बिन्दु से सीधा मिला दीजिए। चित्र 4.7 की भाँति अक्षांशों एवं देशान्तरों का अंकन कीजिए। यह प्रक्षेप दक्षिणी गोलार्द्ध के लिए एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप को प्रकट करेगा।

प्रश्न 2. प्रदर्शक भिन्न [latex s=2]\\ \frac { 1 }{ 25,00,00,000 } [/latex] पर एक समक्षेत्रफल प्रक्षेप की रचना कीजिए, जबकि 25,00,00,000 प्रक्षेपान्तर 30°दिया हो।
हल – वृत्त की त्रिज्या (R) = [latex s=2]\\ \frac { 25,00,00,000 }{ 25,00,00,000 } [/latex] = 1 इंच
भूमध्य रेखा की लम्बाई = 2πR
= [latex s=2]\\ \frac { 2 X 22 X 1 }{ 7 } [/latex] = [latex s=2]\\ \frac { 44 }{ 7 } [/latex] =6.3 इंच

रचना – 1 इंच की त्रिज्या का अर्द्धवृत्त बनाइए। केन्द्रक से दोनों ओर प्रक्षेपान्तर के बराबर 30° के कोण बनाइए। क ख को च तक 6.3 इंच बढ़ाइए। खच से दोनों ओर लम्ब उठाइए तथा उस पर प्रत्येक कोण के कटान बिन्दु से विषुवत् रेखा के समानान्तर रेखाएँ खींचिए। ख च का लम्बार्द्धक खींचिए। लम्बार्द्धक के दोनों ओर की प्रत्येक रेखा को 6′ समभागों में विभक्त कीजिए तथा लम्बे रेखाएँ खींचकर देशान्तर रेखाएँ प्रदर्शित कीजिए। चित्र 4.8 के अनुसार अक्षांशों एवं देशान्तरों के जाल पर अंश लिखिए।

प्रश्न 3. समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप की विशेषताएँ एवं उपयोगिता बताइए।
उत्तर- समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप की विशेषताएँ

  1. समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप में क्षेत्रफल शुद्ध रहता है।
  2. विषुवत् रेखा की लम्बाई मापक के अनुसार बनाई जाती है; अतः उस पर एक मापक तथा आकृति दोनों ही शुद्ध रहती हैं।
  3. समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप में पूर्व-पश्चिम फैलावे जिस अनुपात में बढ़ता है, उसी अनुपात में उत्तर-दक्षिण फैलाव घटता जाता है, फलतः मापक सन्तुलित हो जाता है। यही कारण है कि शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप बना रहता है।
  4. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के प्रदर्शन करने में यह प्रक्षेप सर्वोत्तम है।।
  5. बेलनाकार प्रक्षेप पर विश्व का मानचित्र भली-भाँति प्रदर्शित किया जा सकता है।
  6. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के प्रदर्शन के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों के लिए यह प्रक्षेप अनुपयोगी है।
  7. इस प्रक्षेप में ध्रुव, विषुवत् रेखा की लम्बाई के बराबर दूरी द्वारा ही प्रदर्शित किए जाते हैं, जबकि वास्तव में ग्लोब पर ध्रुव एक बिन्दु-मात्र होता है।
  8. बेलनाकार प्रक्षेप शुद्ध दिशा प्रक्षेप नहीं है।
  9. विषुवत् रेखा के अतिरिक्त अक्षांश रेखाओं पर मापक शुद्ध नहीं रहता है और देशान्तरों पर भी मापक शुद्ध नहीं रहता है, बल्कि उसका फैलाव हो जाता है।
  10. यह शुद्ध आकृति प्रक्षेप नहीं है।

समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप की उपयोगिता

प्रायः बेलनाकार प्रक्षेप का प्रयोग विश्व का मानचित्र बनाने में किया जाता है। उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के गनचित्र टपी प्रक्षेप पर बनाए जाते हैं। उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में उत्पन्न होने वाली विभिन्न कृषि उपजों; जैसे-रबड़, चाय, गन्ना, चावल, कहवा, गर्म मसाले आदि का उत्पादन एवं वितरण इसी प्रक्षेप : पर प्रदर्शित किया जाता है।

मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. प्रक्षेप से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – दीर्घवृत्तीय या अण्डाकार पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग को समतल कागज पर चित्रित करने की विधि को प्रक्षेप कहते हैं। दूसरे शब्दों में, अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के जाल को प्रक्षेप कहते हैं।

प्रश्न 2. प्रक्षेप के निर्माण का आधार बताइए।
उत्तर – प्रक्षेप के निर्माण का आधार प्रकाश और गणित की गणना है।

प्रश्न 3. एक उत्तम प्रक्षेप में कौन-कौन से लक्षणे होते हैं?
उत्तर – एक उत्तम प्रक्षेप में निम्नलिखित लक्षण होते हैं(क) सरल रचना, (ख) शुद्ध दिशा, (ग) शुद्ध क्षेत्रफल, (घ) शुद्ध आकृति तथा (ङ) शुद्ध मापक।

प्रश्न 4. शंक्वाकार प्रक्षेप का क्या उपयोग है?
उत्तर – शंक्वाकार प्रक्षेप का उपयोग पूर्व-पश्चिम अधिक विस्तार वाले समशीतोषण प्रदेशों के मानचित्र प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5. बोन प्रक्षेप के निर्माणकर्ता का नाम क्या है?
उत्तर – बोन प्रक्षेप के निर्माणकर्ता फ्रांसीसी मानचित्रकार ‘रिग्रोबर्ट बोन’ हैं।

प्रश्न 6. बोन प्रक्षेप किस प्रक्षेप का संशोधित रूप है?
उत्तर – बोन प्रक्षेप एक प्रामाणिक अक्षांश वाले शंक्वाकार प्रक्षेप को संशोधित रूप है।

प्रश्न 7. बोन प्रक्षेप का उपयोग बताइए।
उत्तर – बोन प्रक्षेप का उपयोग फ्रांस, बेल्जियम तथा भारत जैसे देशों के मानचित्रों की रचना के लिए किया जाता है।

प्रश्न 8. ध्रुवीय शिरोबिन्दु प्रक्षेप को समदूरी प्रक्षेप क्यों कहा जाता है?
उत्तर – ध्रुवीय शिरोबिन्दु प्रक्षेप में सभी अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी बराबर रहती है; अतः इसे ‘समदूरी’ प्रक्षेप कहते हैं।

प्रश्न 9. ध्रुवीय प्रक्षेप का प्रयोग किन क्षेत्रों में किया जाता है?
उत्तर – ध्रुवीय प्रक्षेप का अधिकांश प्रयोग 60°से 90° अक्षांशों वाले ध्रुवीय प्रदेशों के प्रदर्शन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 10. बेलनाकार प्रक्षेप क्या है?
उत्तर – बेलन के आकार वाले प्रक्षेप को ‘बेलनाकार प्रक्षेप’ कहते हैं।

प्रश्न 11. बेलनाकार प्रक्षेप में भूमध्य रेखा की लम्बाई ज्ञात करने का सूत्र क्या है?
उत्तर – बेलनाकार प्रक्षेप में भूमध्य रेखा की लम्बाई ज्ञात करने का सूत्र 2πR है।

प्रश्न 12. समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप का उपयोग बताइए।
उत्तर – समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप विषुवत्रेखीय प्रदेशों (उष्णकटिबन्धीय प्रदेशों) के प्रदर्शन के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसमें चाय, चावल, गन्ना, रबड़, कहवा आदि उष्ण प्रदेशों की उपजों का उत्पादन एवं वितरण भली-भाँति प्रदर्शित किया जा सकता है।

प्रश्न 13, गोलीय शिरोबिन्दु ध्रुवीय प्रक्षेप को ध्रुवीय शिरोबिन्दु क्यों कहते हैं?
उत्तर – समतल कागज को ग्लोब के ध्रुवों पर स्पर्श करने के कारण इसे गोलीय शिरोबिन्दु ध्रुवीय प्रक्षेप कहते हैं।

प्रश्न 14. प्रधान अक्षांश रेखा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – जिस अक्षांश रेखा पर शंकु ग्लोब को स्पर्श करता है, उसे प्रधान अक्षांश रेखा या प्रामाणिक अक्षांश रेखा अथवा मानक अक्षांश रेखा कहते हैं।

प्रश्न 15. स्टीरियोग्रैफिक ध्रुवीय खमध्य प्रक्षेप से क्यों अभिप्राय है?
उत्तर – एक ध्रुव पर प्रकाश डालकर तथा दूसरे पर स्पर्शी कागज रखकर जब अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं का जाल प्राप्त किया जाता है तो उसे स्टीरियोग्रैफिक ध्रुवीय खमध्ये प्रक्षेप कहते हैं।

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