Chapter 5 Judiciary (Hindi Medium)

पोठगत प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या आपको ऐसा लगता है कि इस तरह की न्यायिक व्यवस्था में एक आम नागरिक भी किसी नेता के खिलाफ मुकदमा जीत सकता है? अगर नहीं तो क्यों? [एनसीआरटी पाठ्यपुस्तक पेज-56]
उत्तर
इस तरह की न्यायिक व्यवस्था जहाँ किसी न्यायाधीश को उसके पद से हटा सकते हैं या उसका तबादला कर सकते हैं, वहाँ एक आम आदमी किसी नेता के खिलाफ मुकदमा नहीं जीत सकता है, क्योंकि इस स्थिति में न्यायाधीश स्वतंत्र रूप से फैसले नहीं ले सकते हैं, और वह हमेशा नेता के पक्ष में ही फैसला सुनाएगा।

प्रश्न 2.
दो वजह बताइए कि लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका अनिवार्य क्यों होती है? [एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक पेज-57]
उत्तर
लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका अनिवार्य

  1.  न्यायपालिका की स्वतंत्रता अदालतों को भारी ताकत देती है, क्योंकि स्वतंत्र न्यायपालिका ही | विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकती है।
  2.  स्वतंत्र न्यायपालिका ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सकती है। यदि न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होगी तो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा।

प्रश्न 3.
उपरोक्त मामले को पढ़ने के बाद दो वाक्यों में लिखिए कि अपील की व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं। [एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक पेज-59)
उत्तर
अपील व्यवस्था से मतलब है कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि निचली अदालत का फैसला सही नहीं है तो वह उससे ऊपर की अदालत में उस फैसले के विरुद्ध अपील कर सकता है।

तालिका अध्ययन प्रश्न

प्रश्न 1.


उत्तर –
उदाहरण

  1. सरदार सरोवर बाँध को लेकर केंद्र और राज्य (गुजरात) सरकार के बीच विवाद।
  2. दो राज्यों पंजाब और हरियाणा राज्य में पानी को लेकर विवाद।
  3. पड़ोसी की भूमि पर जबरदस्ती कब्जा करना।
  4. अस्पताल द्वारा घायल व्यक्ति को भर्ती करने से इनकार करना।

प्रश्न 2.
फौजदारी और दीवानी कानून के बारे में आप जो समझते हैं उसके आधार पर इस तालिका को भरें [एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक पेज-60]

प्रश्न-अभ्यास

( पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
आप पढ़ चुके हैं कि कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना’ न्याय पालिका का एक मुख्य काम होता है। आपकी राय में इस महत्त्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना क्यों जरूरी है?
उत्तर
स्वतंत्र न्यायपालिका-

  1. न्यायपालिका की स्वतंत्रता अदालतों को भारी ताकत देती है इसके आधार पर वह विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकती है।
  2. न्यायपालिका देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में अहम भूमिका निभाती है।
  3. अगर किसी नागरिक को लगता है कि उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है।

प्रश्न 2.
अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है। उसे फिर पढ़े। आपको ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है?
उत्तर
संवैधानिक उपचार का अधिकार-
यदि किसी नागरिक को लगता है कि राज्य द्वारा उसके किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है तो मौलिक अधिकार की प्राप्ति के लिए इस अधिकार का सहारा लेकर अदालत जा सकता है।

न्यायिक समीक्षा-
यदि न्यायपालिका को लगता है कि संसद द्वारा पारित किया गया कोई कानून संविधान के अनुसार नहीं है। तो वह उस कानून को रद्द कर सकती है। इसे न्यायिक समीक्षा कहा जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा से जुड़ा है, क्योंकि संवैधानिक उपचार के अंतर्गत न्यायालय कानून को रद्द कर सकता है।

प्रश्न 3.
नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया है। प्रत्येक के सामने लिखिए कि उसे न्यायालय ने सुधा गोयल के मामले में क्या फैसला दिया था? अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलाकर देखें।

उत्तर
सर्वोच्च न्यायालय-लक्ष्मण और उसकी माँ शकुंतला को दोषी पाया और उम्रकैद की सजा सुनायी। सुभाषचंद्र के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे इसलिए उसे दोष मुक्त कर दिया।

उच्च न्यायालय-सुधा की मौत एक दुर्घटना थी क्योंकि तीनों के विरुद्ध पर्याप्त सबूत नहीं। लक्ष्मण, शकुंतला और सुभाषचंद्र तीनों को बरी कर दिया।

निचली अदालत-लक्ष्मण, उसकी माँ शकुंतला और सुधा के जेठ सुभाष को दोषी करार दिया और तीनों को मौत की सजा सुनाई।

प्रश्न 4.
सुधा गोयल मामले को ध्यान में रखते हुए नीचे दिए गए बयानों को पढ़िए। जो वक्तव्य सही हैं उन पर सही का निशान लगाइए और जो गलत हैं उनको ठीक कीजिए।
(क) आरोपी इस मामले को उच्च न्यायालय लेकर गए, क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थे।
(ख) वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए।
(ग) अगर आरोपी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में जा सकते हैं।
उत्तर
(क) सही।
(ख) गलत।
निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए।
(ग) गलत।
सर्वोच्च न्यायालय देश की सबसे ऊपरी अदालत है इसके फैसले के खिलाफ निचली अदालत में नहीं जा सकते हैं।

प्रश्न 5.
आपको ऐसा क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्त्वपूर्ण कदम थी?
उत्तर
जनहित याचिका-

  1. इसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय तक ज्यादा-से-ज्यादा लोगों की पहुँच स्थापित पर करने का प्रयास किया है।
  2. न्यायालय ने किसी भी व्यक्ति या संस्था को ऐसे लोगों की ओर से जनहित याचिका दायर करने का अधिकार दिया है जिनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
  3. यह याचिका उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है।
  4. अब सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के नाम भेजे गए पत्र या तार (टेलीग्राम) को भी जनहित याचिका माना जा सकता है।

प्रश्न 6.
ओल्गा टेलिस बनाम बंबई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के अंशों को दोबारा पढ़िए। इस फैसले में कहा गया है कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है। अपने शब्दों में लिखिए कि इस बयान से जजों का क्या मतलब था?
उत्तर
आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा-

  1.  कानून के द्वारा तय की गयी प्रक्रिया जैसे मृत्युदंड देने और उसे लागू करने के अलावा और किसी तरीके से किसी की जान नहीं ली जा सकती।।
  2. जीवन के अधिकार का इतना ही महत्त्वपूर्ण पहलू आजीविका का अधिकार भी है, कोई भी व्यक्ति आजीविका के बिना जीवित नहीं रह सकता।
  3. इस मुकदमे में याचिकाकर्ता झुग्गियों और पटरियों में रहते हैं और उन्हें वहाँ से हटाने की माँग की जा रही है।
  4. अगर उन्हें झुग्गियों या पटरी से हटा दिया जाए तो उनका रोजगार भी खत्म हो जाएगा और वे अपनी आजीविका से हाथ धो बैठेंगे। इस प्रकार वे जीवन के अधिकार से भी वंचित हो जाएँगे।

प्रश्न 7.
‘इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल’ इस विषय पर एक कहानी बनाइए।
उत्तर
इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल-
हाशिमपुरा हत्याकांड-

  1. हाशिमपुरा (उ.प्र.) में पी.ए.सी. की हिरासत में 22 मई, 1987 को 43 मुसलमानों की हत्या कर दी गयी। उनके परिवार पिछले 20 साल से न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
  2. इस हत्याकांड में मुकदमा शुरू होने में जो इतना विलंब हुआ उसके कारण सिंतबर 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह मामला उत्तर प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया।
  3. यह मुकदमा अभी भी चल रहा है इसमें प्रोविंशियल आर्ल्ड काँस्टेब्युलरी (पी.ए.सी.) के 19 लोगों पर हत्या और अन्य आपराधिक मामलों के आरोपों में मुकदमा चला जा रहा है।
  4. इस मुकदमे में 2007 तक केवल तीन गवाहों के ही ब्यान दर्ज किए जा सके थे।

प्रश्न 8.
एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्यपुस्तक पेज 65 के शब्द संकलन में दिए गए प्रत्येक शब्द से वाक्य बनाइए।
उत्तर

  1. बरी करना-सर्वोच्च न्यायालय ने सुधा गोयल केस में सुभाषचंद्र को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
  2. अपील करना-आरोपियों ने अधीनस्थ न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
  3. मुआवजा-न्यायालये पीड़ित पक्ष के लिए मुआवजा देने का आदेश दे सकता है।
  4. बेदखली-रेलवे स्टेशन के पास झुग्गियों में रहने वालों को अदालत ने वहाँ से बेदखल कर दिया।
  5. उल्लंघन-यदि किसी नागरिक को लगता है कि किसी व्यक्ति या राज्य द्वारा उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है तो वह अदालत में जा सकता है।

प्रश्न 9.
यह पोस्टर भोजन अधिकार अभियान द्वारा बनाया गया है।

इस पोस्टर को पढ़कर भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के दायित्वों की सूची बनाइए। इस पोस्टर में कहा गया है कि “भूखे पेट भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!!” इस वक्तव्य को पाठ्यपुस्तक पृष्ठ 61 पर भोजन के अधिकार के बारे में दिए गए चित्र निबंध से मिलाकर देखिए।
उत्तर
1. सरकार के दायित्व-

2. राजस्थान और उड़ीसा में सूखे की वजह से लाखों लोगों के सामने भोजन का भारी अभाव पैदा हो गया
था, जबकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे पड़े थे। इस स्थिति को देखते हुए पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिर्टीज (पी.यू.सी.एल.) नामक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन के मौलिक अधिकारों में भोजन का अधिकार भी शामिल है। राज्य की इस दलील को भी गलत साबित कर दिया गया कि उसके पास संसाधन नहीं है, क्योंकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे हुए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि नए रोजगार पैदा करे। राशन की सरकारी दुकानों के माध्यम से सस्ती दर पर आनाज उपलब्ध कराए और बच्चों को स्कूल में दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाए।

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