Chapter 5 Market Competition (Hindi Medium)
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
प्र० 1. बाजार संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: बाजार संतुलन से तात्पर्य उस स्थिति से है जब एक विशेष कीमत पर बाजार में माँगी गई मात्रा पूर्ति की गई मात्रा के बराबर होती है। बाजार माँग वक्र माँग के नियम के अनुसार बाईं से दाईं ओर नीचे की ओर
अधिपति अधिपूर्ति ढलान वाला होता है, क्योंकि वस्तु की कीमत तथा उसकी माँगी गई मात्रा में ऋणात्मक संबंध है। बाजार पूर्ति वक्र पूर्ति के नियम के है। अनुसार बाईं से दाईं ओर ऊपर की ढलानवाला होता है, क्योंकि वस्तु की कीमत और उसकी पूर्ति की गई मात्रा में धनात्मक संबंध होता है। अधिमाँग अतः दिये गए चित्र में माँग वक्र PD एक नीचे की ढलान वाला वक्र है और पूर्ति वक्र SS एक ऊपर की ओर ढलान वाला वक्र है। जहाँ पर DD और SS एक दूसरे को काटते हैं वहाँ पर बाजार संतुलन में होता है। इस बिन्दु पर Dn = Sn होता है। इस बिन्दु के अनुरूप संतुलन कीमत OP तथा संतुलन मात्रा पर निर्धारित हो जाती है। यदि बाजार कीमत OP से कम होगी तो बाजार में अधिमाँग होगी। यदि बाजार कीमत OP से अधिक होगी तो बाजार में अधिपूर्ति होगी।
प्र० 2. हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर: जब किसी वस्तु की बाजार माँग उसकी बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इसे अधिमाँग कहा जाता है। यह संतुलन कीमत से कम कीमत पर होता है, इसे अभावी पूर्ति भी कहते हैं।
प्र० 3. हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर: जब किसी वस्तु की बाजार पूर्ति उसकी बाजार माँग से अधिक होती है तो इसे अधिपूर्ति कहा जाता है। यह संतुलन कीमत से अधिक कीमत पर होता है। इसे अभावी माँग भी कहते हैं।
प्र० 4. क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित मूल्य है?
(a) संतुलन कीमत से अधिक।
(b) संतुलन कीमत से कम हो।
उत्तर: (i) यदि बाजार कीमत संतुलन कीमत से अधिक है-इस स्थिति में बाजार माँग बाजार पूर्ति से कम होगी
अतः अधिपूर्ति जन्म लेगी।
(a) यह अधिपूर्ति विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धी को बढ़ायेगी।
(b) प्रतिस्पर्धा के कारण विक्रेता कम कीमत लेने को तैयार हो जाते हैं।
(c) कीमत कम होने से माँग विस्तृत हो जाती है और पूर्ति संकुचित हो जाती है।
यह तब तक होता है जब तक कीमत पुनः संतुलन कीमत तक नहीं पहुँच जाती।
(ii) यदि बाजार कीमत संतुलन कीमत से कम हो-इस स्थिति में बाजार माँग बाजार पूर्ति से अधिक होती है और अधिक माँग जन्म लेती है।
(a) यह अधिमाँग क्रेताओं में प्रतिस्पर्धा को बढ़ा देता है।
(b) इस प्रतिस्पर्धा के कारण क्रेता अधिक कीमत देने को तैयार हो जाते हैं।
(c) इस बढ़ी कीमत के कारण माँग संकुचित हो जाती है तथा पूर्ति विस्तृत हो जाती है। यह तब तक होता है जब तक संतुलन कीमत पुनः स्थापित न हो जाये।
प्र० 5. फर्मों की एक स्थिर संख्या होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: जब फर्मों की संख्या स्थिर हो तो माँग वक्र बाँई से दाईं ओर नीचे की ओर ढलान वाला होता है, और पूर्ति वक्र दाईं से बाईं ओर नीचे की कीमत ओर ढलान वाला होता है। जहां पर ये वक्र एक दूसरे को काटते हैं। अर्थात् जिस कीमत पर बाजार माँग और बाजार पूर्ति बराबर हो जाते हैं, वहाँ पर संतुलन कीमत का निर्धारण होता है। इसे नीचे चित्र में दिखाया गया है। बिन्दु E पर माँग वक्र DD और पूर्ति वक्र SS एक दूसरे को काट रहे हैं,
अतः यह संतुलन बिन्दु है। इसके अनुरूप OP संतुलन कीमत है और OQ संतुलन मात्रा है।
प्र० 6. मान लीजिए कि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम
फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें तो बाजार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर:
1. यदि हम फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें तो पूर्ति में वृद्धि होगी।
2. पूर्ति में वृद्धि होने से संतुलन कीमत कम होगी तथा संतुलन मात्रा बढ़ेगी।
3. संतुलन कीमत कम होने से फर्मों के असामान्य लाभ विलुप्त हो जायेंगे।
इसे चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है। बाजार कीमत OP थी जब माँग (DD) = पूर्ति (SS) थे। इस कीमत पर AR > AC अत: फर्ने सामान्य से अधिक लाभ कमा रही थी। हमने फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दी तो पूर्ति में वृद्धि हो गई। यह वृद्धि तब तक होगी जब तक कीमत इतनी कम न हो जाए कि AR = Min. AC हो।
चित्र में पैनल B में फर्म बिन्दु E पर संतुलन में है जहाँ MC = MR तथा MC, MR वक्र को नीचे से काट रही है। इस बिन्दु के अनुरूप उत्पादक OQ मात्रा बेचेगा जिसकी प्रति इकाई लागत = OC तथा प्रति इकाई संप्राप्ति = OP है। अतः प्रति इकाई लाभ = OP – 0C = PC है। अतः कुल लाभ = PC x OQ = ar PC ME
यह असामान्य लाभ है, अतः नई फमें प्रवेश के लिए आकर्षित होंगी नई फर्मों के प्रवेश से कीमत (Panel A में) OP से 0P, हो जायेगी। इस कीमत पर प्रति इकाई लागत = OC, प्रति इकाई संप्राप्ति = OC अतः प्रति इकाई लाभ = शून्य अतः अब फर्म केवले सामान्य लाभ अर्जित करेगी। नोट-हानि की स्थिति में विपरीत होगा। कुछ फर्मे बाजार छोड़ देंगी, पूर्ति में कमी होगी, संतुलन कीमत बढ़ेगी और हानियाँ विलुप्त हो जायेंगी।।
प्र० 7. जब बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? ऐसे बाजार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि उत्पादन में बने रहकर संतुलन में कोई भी फर्म न असामान्य लाभ अर्जित करती है और न हानि उठाती है। ऐसी स्थिति में संतुलन कीमत सभी फर्मों की न्यूनतम लागत के बराबर होगी। कारण-यदि प्रचलित बाजार कीमत पर प्रत्येक फर्म अधिसामान्य लाभ अर्जित कर रही है, तो नई फर्मे आकर्षित होंगी। इससे पूर्ति में वृद्धि होगी, कीमत कम होगी और अधिसामान्य लाभ विलुप्त हो जायेगा। इसी प्रकार यदि प्रचलित कीमत पर फर्ने सामान्य से कम लाभ अर्जित कर रही हैं तो कुछ फर्मे बहिर्गमन कर जायेंगी, जिससे लाभ में वृद्धि होगी और प्रत्येक फर्म के लाभ बढ़कर सामान्य लाभ के स्तर पर आ जायेंगे। इस बिन्दु पर और अधिक फर्मं प्रवेश या बहिर्गमन नहीं करेंगी। अतः प्रवेश तथा बर्हिगमन के द्वारा प्रत्येक फर्म प्रचलित बाजार कीमत पर सदैव सामान्य लाभ अर्जित करेगी। सूत्र के अनुरूप में जब तक AR > AC, नई फर्ने प्रवेश करेंगी। यदि AR < AC तो कुछ फर्मे बहिर्गमन करेंगी। अतः बाजार कीमत सदैव न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। (AR)P = न्यूनतम औसत लागत इस स्थिति में पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार होगा क्योंकि P = न्यूनतम औसत लागत के स्तर पर फर्म कितनी भी पूर्ति कर सकती है। माँग वक्र D इसे बिन्दु E पर काटता है जब संतुलन कीमत = OP तथा संतुलन मात्रा = OQ निर्धारित हो जाती है।
प्र० 8. एक बाजार में फर्मों की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर: इसे एक संख्यात्मक उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लो,
अत: निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन के साथ संतुलन कीमत, संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या क्रमश: 230, 320 इकाई तथा 4 है।
प्र० 9. संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में (a) वृद्धि होती है (b) कमी होती है?
उत्तर: उपभोक्ता की आय में वृद्धि या कमी से संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होगी वह इस बात पर निर्भर करता है कि वस्तु सामान्य वस्तु है या निम्नकोटि की वस्तु।
(a) उपभोक्ता की आय में वृद्धि
(b) उपभोक्ता की आय में कमी
प्र० 10. पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जाने वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर: जूतों की जोड़ी तथा मोजों की जोड़ी पूरक वस्तुएँ है। पूरक वस्तु की कीमत और मात्रा में ऋणात्मक संबंध है अर्थात् X की कीमत बढ़ने पर Y की माँग कम हो जाती है तथा विपरीत। इसलिए जूतों की कीमतों कीमत में वृद्धि होने पर मोजों की जोड़ी की माँग में कमी होगी। तदनुसार माँग वक्र बाईं ओर खिसक जायेगा और मोजों की कीमत तथा उसकी खरीदी व बेची जाने वाली संख्या में कमी होगी। (चित्र देखें।)
प्र० 11. कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा संतुलन मात्रा पर प्रभाव को समझाइए।
उत्तर:
चाय और कॉफी प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ हैं। प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमत और माँग में धनात्मक संबंध होता है अर्थात् वस्तु X की कीमत बढ़ने पर वस्तु Y की मात्रा बढ़ती है, तथा विपरीत। अतः कॉफी की कीमत बढ़ने से चाय की माँग में वृद्धि होगी, माँग में वृद्धि होने पर संतुलन कीमत भी बढ़ेगी और संतुलन मात्रा भी बढ़ेगी। कॉफी की कीमत कम होने से चाय की माँग में कमी होगी। माँग में कमी होने से संतुलन कीमत भी घटेगी तथा संतुलन मात्रा भी घटेगी।
प्र० 12. जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है?
उत्तर: आगतों की कीमतों में परिवर्तन वस्तु की उत्पादन लागत और फलस्वरूप लाभ को प्रभावित करता है। इससे उत्पादक का पूर्ति वक्र प्रभावित होता है।
प्र० 13. यदि वस्तु X की स्थानापन्न वस्तु (Y) की कीमत में वृद्धि होती है तो वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर: वस्तु X की संतुलन कीमत तथा मात्रा दोनों बढ़ जायेंगी।
प्र० 14. बाजार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में माँग वक्र के स्थानान्तरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर: यदि फर्मों की संख्या स्थिर है तो माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने (माँग में वृद्धि) से संतुलन मात्रा तथा संतुलन कीमत दोनों बढ़ेंगे और माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने (माँग में कमी) से संतुलन मात्रा और संतुलन कीमत दोनों कम होंगे।
यदि फर्मों के लिए निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है तो P = न्यूनतम औसत लागत पर स्थिर रहेगा इस कीमत पर कोई भी फर्म कितनी भी मात्रा की पूर्ति कर सकती है, परन्तु कीमत को परिवर्तित नहीं कर सकती। अतः ऐसे में माँग बढ़ने से संतुलन मात्रा बढेगी, संतुलन कीमत समान रहेगी तथा माँग कम होने से संतुलन मात्रा कम होगी, संतुलन कीमत समान रहेगी।
प्र० 15. माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर: इसमें तीन स्थितियाँ संभव हैं।
(i) जब माँग वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि बराबर होते हैं। इस स्थिति में माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि का प्रभाव एक दूसरे को समाप्त कर देते हैं तथा संतुलन कीमत जितनी थी उतनी ही रहती है परंतु संतुलन मात्रा
अधिक हो जाती है।
(ii) जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से अधिक हो—इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के
प्रभाव से अधिक होता है। इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाते हैं।
(iii) जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से कम हो-इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से कम होता है। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाती है।
प्र० 16. संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब ।
(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं?
(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर: (a) माँग और पूर्ति वक्र दोनों समान दिशा में शिफ्ट होते हैं।
(b) जब दोनों में वृद्धि हो तो तीन स्थितियाँ संभव हैं।
(i) जब माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि बराबर होती है, इस स्थिति में माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में वृद्धि का प्रभाव एक दूसरे को समाप्त कर देते हैं तथा संतुलन कीमत जितनी थी उतनी ही रहती है, परंतु संतुलन मात्रा अधिक हो जाती है।
(ii) जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से अधिक हो-इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से अधिक होता है। इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना
में बढ़ जाते हैं।
(iii) जब माँग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से कम हो—इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से कम होता है अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना | में बढ़ जाती है।
(c) जब माँग और पूर्ति दोनों में एक साथ कमी हो तो तीन स्थितियाँ संभव हैं।
(i) जब माँग में कमी पूर्ति में कमी के बराबर हो-इस स्थिति में माँग में कमी तथा पूर्ति में कमी का प्रभाव एक दूसरे को खत्म कर देता है। इस स्थिति में संतुलन कीमत जितनी थी उतनी ही रहती है परंतु संतुलन मात्रा पहले से अधिक हो जाती है।
(ii) जब माँग में कमी पूर्ति में कमी से अधिक होती है-इस स्थिति में माँग में कमी का प्रभाव पूर्ति में कमी के प्रभाव से अधिक होता है। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा दोनों पहले से कम हो जाते हैं।
(iii) जब माँग में कमी पूर्ति में कमी से कम होती है-इस स्थिति में माँग में कमी का प्रभाव पूर्ति में कमी के प्रभाव से कम होता है। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत पहले से बढ़ जाती है, जबकि संतुलन मात्रा पहले से कम हो जाती है।
प्र० 17. वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर: वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में दोनों में ईष्टतम मात्रा का निर्धारण पूर्ति और माँग शक्तियों द्वारा ही होता है। परन्तु श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति करने वाले परिवार क्षेत्रक है और श्रम की माँग फर्मों से आती है, जबकि वस्तुओं के बाजार में वस्तुओं की माँग करने वाले परिवार क्षेत्रक है और श्रम की माँग फर्मों से आती है। मजदूरी दरें तथा ईष्टतम मात्रा का निर्धारण श्रम के लिए माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है, जहाँ श्रम की माँग और पूर्ति संतुलन में हों। इसी प्रकार वस्तुओं की कीमतों तथा ईष्टतम मात्रा का निर्धारण भी पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है, जहाँ वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर हो।
प्र० 18. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: मजदूरी दर और ईष्टतम मात्रा का निर्धारण श्रम के लिए माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है।
प्र० 19. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: एक अधिकतमकर्ता फर्म उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करेगी, जिस पर श्रम की अंतिम इकाई के उपयोग की
अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने के अतिरिक्त लागत मजदूरी दर w है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमांत उत्पाद तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त अतिरिक्त आय फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमांत संप्राप्ति है। अतः श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए उसे जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह सीमांत संप्राप्ति तथा सीमांत उत्पाद के गुणनफल के बराबर है। इसे सीमांत संप्राप्ति उत्पाद कहा जाता है। अतः फर्म उस बिन्दु तक श्रम को उपयोग में लाती है जहाँ । |
w = श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद
तथा श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद = सीमांत संप्राप्ति x श्रम का सीमांत उत्पाद
जब तक श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर से अधिक है, फर्म श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग करके अधिक लाभ अर्जित कर सकती है तथा यदि श्रम उपयोग के किसी भी स्तर पर श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर की तुलना से कम हैं, तो फर्म श्रम की एक इकाई कम करके अपने लाभ में वृद्धि कर सकती है।
प्र० 20. क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर: भारत में ऐसी कई वस्तएँ हैं जहाँ सरकार कुछ वस्तुओं की अधिकतम स्वीकार्य कीमत निर्धारित करती है। जैसे-गेहूँ, चावल, मिट्टी का तेल आदि। नीचे दिया गया चित्र पेट्रोल के लिए बाजार पूर्ति वक्र SS तथा बाजार माँग वक्र DD को दर्शा रहा है। इसके अनुसार पेट्रोल की संतुलन कीमत OP तथा OQ है। परन्तु सरकार इसकी कीमत OP0 पर निर्धारित कर देती हैं। इस कीमत पर इसकी माँग (OQ1) इसकी पूर्ति (OQ1) से अधिक है। बाजार में अधिमाँग है। अतः बाजार में वस्तु की कमी हो जायेगी। ऐसी स्थिति का परिणाम निम्नलिखित हो सकते हैं
1. कालाबाजारी
2. राशन कूपनों का प्रयोग करके सामान खरीदने के लिए लम्बी कतारें।
प्र० 21, माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर: जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है तो माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में माँग वक्र दाईं ओर नीचे की ओर ढलान वाला तथा पूर्ति वक्र दाईं ओर ऊपर की ओर ढलान वाला होता है। इसे नीचे दिए वक्र में दिखाया गया है। जब माँग वक्र DD से D1D1 की ओर खिसक गया तो नई संतुलन कीमत OP1 तथा नयी संतुलन मात्रा OQ1 पर निर्धारित हो गई।
दूसरी स्थिति जब फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा विकास की। स्वतंत्रता हो तो पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार होता है। ऐसे में माँग में वृद्धि होनेपर संतुलन कीमत समान रहती है, परन्तु संतुलन मात्रा बढ़ जाती हैं इसे नीचे दिए चित्र में दिखाया गया है। माँग वक्र DD में वृद्धि पर यह D1D1 पर खिसक जाता है। इसके 6 खिसकने से संतुलन कीमत समान रहती है, परन्तु संतुलन मात्रा OQ1 पर निर्धारित हो जाती है।
अतः यह कहना बिल्कुल उचित है कि माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है उसकी तुलना में जब निर्बाध प्रवेश तथा । बहिर्गमन की अनुमति हो।
प्र० 22. मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में वस्तु X की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिए गए हैं।
मान लीजिए कि बाजार में समरूपी फर्मे हैं। 15 ₹ से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाजार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए संतुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में
की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर:
1. 15 ₹ से कम किसी भी कीमत पर वस्तु x की पूर्ति के शून्य होने का कारण है कि 15 ₹ न्यूनतम औसत
लागत है। यदि एक फर्म को अपनी न्यूनतम औसत लागत जितनी कीमत भी नहीं मिल रही तो वह उत्पादन
प्र० 23. अभ्यास 22 में दिए गए समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाजार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है-
(a) P = 20 का क्या महत्व है?
(b) बाजार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
(c) संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
(a) P = 20 का अर्थ है कि इतनी फर्म की औसत लागत है। यदि यह भी एक फर्म को नहीं मिलती तो
वह उत्पादन बंद कर देगी और उत्पादन शून्य के बराबर होगा।
(b) बाजार में ४ की संतुलन कीमत P = 20 होगी क्योंकि यदि बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा अधिर्गमन की अनुमति है तो कोई भी फर्म न्यूनतम औसत लागत से अधिक कीमत नहीं ले सकती।
प्र० 24. मान लीजिए कि नमक की माँग और पूर्ति वक्र इस प्रकार दिया गया है।
(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है :
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 ₹ प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
उत्तर:
(a) संतुलन बिन्दु वहाँ होगा जहाँ ।
अतः संतुलन कीमत में वृद्धि हो गई और संतुलन मात्रा में कमी हो गई। यह हमारी अपेक्षा के अनुकूल है। पूर्ति में कमी होने पर संतुलन कीमत बढ़ती है और संतुलन मात्रा कम होती है।
प्र० 25. मान लीजिए कि अपार्टमेंट के लिए बाजार-निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता। यदि सरकार किराए पर अपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है, तो इसका अपार्टमेंटों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: ऐसे में बाजार में अधिमाँग उत्पन्न होगा। अपार्टमेंट लेने की माँग अधिक होगी और सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर किराये के लिए अपार्टमेंट की पूर्ति कम होगी। इस स्थिति में या तो सरकार को सरकारी अपार्टमेंट किराये पर देकर इस अधिमाँग को पूरा करना होगा या बाजार की यह अधिमाँग कालाबाजारी को जन्म देगी, जिसमें अपार्टमेंट के मालिक सरकार द्वारा निर्धारित किराये से अधिक किराया वसूल करेंगे और उस किराये पर भी उन्हें किरायेदार मिल जायेंगे।