Chapter 6 तीन वर्ग
In Text Questions and Answers
प्रश्न 1.
विभिन्न मानकों, जैसे-व्यवसाय, भाषा, धन और शिक्षा पर आधारित श्रेणीबद्ध सामाजिक ढाँचे की चर्चा कीजिए। मध्यकालीन फ्रांस की तुलना मेसोपोटामिया और रोमन साम्राज्य से करें।
उत्तर:
यूरोप में व्यापार-वाणिज्य एवं कई शिल्पों और दस्तकारियों का विकास हुआ। व्यापारिक प्रोत्साहन के कारण अनेक बड़े-बड़े नगरों का अस्तित्व सम्भव हो सका, परिणामस्वरूप अनेक व्यापारियों एवं शिल्पकारों ने अपने-अपने क्षेत्र के संगठन बनाए ताकि उनका शासक और सामंत शोषण न कर सकें। व्यापारियों के अलावा अनेक अन्य व्यवसायों के लोगों (शिल्पियों) के संगठन बन गए, जैसे-लोहार, सुनार, चर्मकार, बढ़ई, चमड़े की रँगाई करने वाले, अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण करने वाले आदि। लोगों की ये श्रेणियाँ अपने-अपने क्षेत्र की निर्मित वस्तुओं की उत्पादन लागत एवं उनका विक्रय मूल्य स्वयं निर्धारित करती थीं।
अनेक श्रेणियों ने अपनी-अपनी श्रेणी के लिए व्यवसाय का एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास किया, ताकि वे अपने सदस्यों का आर्थिक विकास करके उनके जीवन-स्तर को ऊँचा उठा सकें। अब ये दस्तकार व्यापार के विस्तार से अधिक अमीर और शक्तिशाली हो गये तथा अभिजात वर्ग से प्रतिस्पर्धा करने लगे। अतः ये आर्थिक आधार पर श्रेणीबद्ध हो गये। चर्चों को इन अमीरों के द्वारा धन दान मं दिया जाता था, जिससे फ्रांस में 12वीं सदी में ‘कथीडूल’ कहलाने वाले बड़े-बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा था। इन कथीड्रल चर्चों की खिड़कियों में अभिरंजित काँचों का प्रयोग होता था।
इन खिड़कियों पर विभिन्न क्षेत्रों से आए विशेषज्ञों के अति कुशल हाथों से तरह-तरह की पुताई कराई गई। अभिरंजित काँच की खिड़कियों पर बने चित्र बाइबिल की कथाओं का वर्णन करते थे, जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति भी पढ़ सकते थे। अतः इस काल में चर्च ने शिक्षा को जीवनदान दिया। चर्च लोगों को शिक्षा देता था, यह विशेषत कथील चर्च और कथील नगर के कारण हुआ। चर्च की यह शिक्षा यद्यपि काफी संकुचित थी फिर भी उसमें व्याकरण, तर्क-शास्त्र, गणित और धर्मशास्त्र जैसी शिक्षाएँ सम्मिलित थीं। पढ़ाई गई भाषा का आधार लैटिन भाषा था जिसे साधारण व्यक्ति नहीं पढ़ सकता था। परन्तु ऐसे व्यक्ति जो पादरी बनना चाहते थे उनके लिए यह शिक्षा उपयुक्त थी।
मध्यकालीन फ्रांस की मेसोपोटामिया से तुलना:
मध्यकालीन फ्रांस का समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित था-
- पादरी वर्ग
- अभिजात वर्ग तथा
- कृषक वर्ग।
समाज में पादरी वर्ग तथा अभिजात वर्ग का बोलबाला था। इस वर्ग के लोग विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। ये लोग कृषकों का शोषण करते थे।
जबकि मेसोपोटामिया का समाज भी तीन वर्गों में विभाजित था-
- उच्च वर्ग
- मध्यम वर्ग
- निम्न वर्ग।
अधिकांश धन-दौलत पर उच्च वर्ग का अधिकार था। मध्यकालीन फ्रांस की रोमन साम्राज्य से तुलना
पूर्ववर्ती काल में रोमन समाज अनेक वर्गों में बँटा हुआ था। ये वर्ग थे-
- सैनेटर,
- अश्वारोही या नाइट वर्ग
- सम्माननीय जनता का वर्ग
- फूहड़ निम्नतर वर्ग या प्लेब्स सोर्डिडा। परवर्तीकाल में रोमन समाज निम्नलिखित वर्गों में विभाजित था
- अभिजात वर्ग
- मध्य वर्ग
- निम्न वर्ग।
जबकि मध्यकालीन फ्रांस-
- पादरी वर्ग
- अभिजात वर्ग तथा
- कृषक वर्ग में विभाजित था। कालान्तर में वहाँ नगरों में रहने वाले एक चौथे वर्ग का भी उदय हुआ।
प्रश्न 2.
मध्यकालीन मेनर, महल और पूजा के स्थान पर विभिन्न सामाजिक-स्तर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार के तरीकों की उदाहरण देते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन मेनर, महल और पूजा के स्थान पर विभिन्न सामाजिक स्तर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार के तरीकों की उदाहरण सहित चर्चा निम्न प्रकार से कर सकते हैं
(i) मध्यकालीन मेनर के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार के तरीके-अभिजात वर्ग का घर मेनर कहलाता था। लॉर्ड का अपना मेनर भवन होता था। वह गाँवों पर नियंत्रण रखता था। कुछ लॉर्ड अनेक गाँवों के मालिक होते थे। बढ़ई व लोहार लॉर्ड के औजारों की देखभाल व हथियारों की मरम्मत करते थे, जबकि राजमिस्त्री उनकी इमारतों की देखभाल करते थे। महिलाएँ सूत कातती एवं बुनती थीं तथा उनके बच्चे लॉर्ड की मदिरा सम्पीडक में कार्य करते थे। लॉर्ड अपनी जागीरों में स्थित वनों में शिकार करने जाते थे। कुशल अश्वसैनिक (नाइट्स) लॉर्ड से सम्बद्ध थे। लॉर्ड अपनी रक्षा के बदले नाइट्स को भूमि का एक भाग जिसे ‘फ़ीफ़’ कहा जाता था, देते थे। बदले में नाइट अपने लॉर्ड को एक निश्चित राशि देने के साथ-साथ उसकी ओर से युद्ध करने का भी वचन देता था।
(ii) मध्यकालीन महल के व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार के तरीके-फ्रांस में अभिजात वर्ग को सामाजिक व्यवस्था में द्वितीय स्थान प्राप्त था। वे विस्तृत क्षेत्र के मालिक थे। जिनमें उनके महल, खेत, चारागाह, असामी-कृषकों के घर व खेत होते थे। उनका घर/महल ‘मेनर’ कहलाता था। महलों में रहने वाले, भूमि के स्वामी या सामंत अत्यधिक सुविधाजनक जीवन व्यतीत करते थे जबकि इसमें कार्य करने वाले मजदूरों एवं कृषकों का जीवन अत्यधिक कष्टप्रद था। किसानों के घर झोंपड़ीनुमा होते थे और वे भूमि पर सोते थे। मेनर का अपना न्यायालय होता था जो निर्णय देने, नियम बनाने एवं दण्ड देने का कार्य करता था। किसान व दास कृषकों को गलतियों के लिए कठोर दण्ड दिया जाता था।
(iii) मध्यकालीन पूजा के स्थान पर व्यक्तियों से अपेक्षित व्यवहार के तरीके पूजास्थल के लिए चर्च होता था जिसका मुखिया पादरी कहलाता था। ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों व पादरियों द्वारा किया जाता था। अधिकांश गाँवों में चर्च होते थे, जहाँ प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के प्रवचन सुनने एवं सामूहिक प्रार्थना करने के लिए एकत्रित होते थे।
धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात वर्ग की तरह होते थे। वे अपने शानदार महलों में शाही तरीके से रहते थे। चर्च को एक वर्ष के अन्तराल पर कृषकों से उनकी उपज का दसवाँ भाग कर के रूप में प्राप्त करने का अधिकार था, जिसे ‘टीथ’ कहा जाता था।
प्रश्न 3.
नीचे दिए गए नक्शे और नगर के चित्र को ध्यान से देखिए। मध्यकालीन यूरोपीय नगरों के कौन-से महत्वपूर्ण लक्षण आपको उनमें दिखाई पड़ते हैं ? वे अन्य स्थानों व अन्य काल के नगरों से किस प्रकार भिन्न थे?
उत्तर:
चर्चों को अमीर व्यापारियों द्वारा खूब धन दान में दिया जाता था, क्योंकि उनके लिए यह अपने धन को खर्च करने का तरीका था। 12वीं सदी में फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले बड़े चर्चों का निर्माण उसी दान के धन से होना . प्रारम्भ हुआ। यद्यपि वे मठों की सम्पत्ति थे, परन्तु लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं और धन से उनके निर्माण में सहयोग दिया। कथीड्रल चर्च पत्थरों के बने होते थे तथा इनके निर्माण कार्य को पूरा होने में वर्षों लग जाते थे। जब कथीइल को बनाया जा रहा था तो उसके आसपास के क्षेत्र में काफी संख्या में लोगों ने आवास बना लिए। इस प्रकार इनके आसपास, जब तक इनका निर्माण पूरा हुआ, ये स्थान एक तीर्थस्थल की तरह बन गए थे।
इस प्रकार कथीलों के चारों तरफ नगर विकसित हो गये और वे कथीड्रल-नगर कहलाए। दूसरी तरफ के यूरोप में नगर निर्माण तब हुआ जब किसान आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने लगे और एक बिक्री केन्द्र की स्थापना की जरूरत महसूस की गई जहाँ जाकर वे अपने उपकरण और वस्त्र बेच सकें। इन जरूरतों के कारण छोटे विपणन केन्द्रों का विकास हुआ जिनमें धीरे-धीरे ‘नगरों के लक्षण’ विकसित होने लगे। उदाहरण के लिए, एक नगर में चौक हो, चर्च हो, सड़कें हों जहाँ व्यापारी घर और दुकानों का निर्माण कर सकें, एक कार्यालय हो, जहाँ नगर पर शासन करने वाले व्यक्ति मिल सकें। नगरों में आर्थिक संस्था का आधार श्रेणी थी। प्रत्येक शिल्प या उद्योग की एक श्रेणी बन गई। 11वीं शताब्दी में पश्चिम एशिया, स्कैंडिनेविया आदि से व्यापार के नए-नए समुद्री मार्ग बन गए और नगर बड़े तथा विस्तृत बन गए।
प्रश्न 4.
तिथियों के साथ दी गई घटनाओं और प्रक्रियाओं को पढ़िए और उनका विवरणात्मक लेखा-जोखा दीजिए।
| ग्यारहवीं से चौदहवीं शताब्दियों में |
$1066 ई$ | नॉरमन लोगों की एंग्लो-सैक्सनी लोगों को हराकर इंग्लैण्ड पर विजय। |
1100 ई. के पश्चात् | फ्रांस में कथीड्रलों का निर्माण। |
1315-17 ई. | यूरोप में महान अकाल। |
1347-50 ई. | ब्यूबोनिक प्लेग (Black Death) । |
1338-1461 ई. | इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य ‘सौ वर्षीय युद्ध’। |
1381 ई. | कृषकों के विद्रोह। |
उत्तर:
ग्यारहवीं से चौदहवीं शताब्दियों में हुई घटनाएँ एवं प्रक्रियाएँ तथा उनका विवरणात्मक लेखा-जोखा निम्नवत् है
(i) 1066 ई.-नॉरमन लोगों की एंग्लो-सैक्सनी लोगों को हराकर इंग्लैण्ड पर विजय-1066 ई. में नारमंडी के ड्यूक राजा विलियम ने एक सेना की सहायता से इंग्लिश चैनल को पार कर इंग्लैण्ड के सैक्सन राजा को हराया। इसके पश्चात् ड्यूक विलियम ने भूमि को नपवाया, उसके मानचित्र बनवाये एवं अपने साथ आये 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दी।
(ii) 1100 ई. के पश्चात् फ्रांस में कथीलों का निर्माण-1100 ई. के पश्चात् धनी व्यापारियों के सहयोग से कथीड्रल कहलाने वाले चर्चों का निर्माण प्रारम्भ हुआ, जिनके चारों ओर छोटे-छोटे नगर विकसित हुए।
(iii) 1315-17 ई. में यूरोप में महान अकाल-चौदहवीं शताब्दी में यूरोपियन देशों को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। जैसे-पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण फसल उगाना कठिन हो गया। उचित शू-संरक्षण के अभाव में कृषि उपज कम होती गई। इसके साथ ही जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई। चारागाहों की कमी के कारण पशुओं की संख्या में कमी आ गई। जिसका परिणाम हुआ अकाल। अतः 1315 से 1317 की अवधि में यूरोप में कई अकाल पड़े, जिनसे जन-धन के साथ-साथ पशुधन की भी हानि हुई।
(iv) 1347-50 ई. में ब्यूबोनिक प्लेग-बारहवीं व तेरहवीं सदी में जैसे-जैसे वाणिज्य का विस्तार हुआ तो दूर देशों से व्यापार करने वाले पोत यूरोपीय तटों पर आने लगे। पोतों के साथ-साथ चूहे आए जो अपने साथ ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण लाए। इस महामारी से यूरोप की लगभग 20% जनसंख्या मौत के मुँह में चली गई।
(v) 1338-1461 के मध्य इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य सौ-वर्षीय युद्ध-1338 ई. से 1461 ई. के मध्य इंग्लैण्ड और फ्रांस के मध्य युद्ध हुआ जिसे सौ वर्षीय युद्ध के नाम से जाना जाता है।
(vi) 1381 ई. कृषकों के विद्रोह-यूरोप में महामारी के बाद आई आर्थिक मंदी से लॉर्डों की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई। मजदूरी की दरें बढ़ने एवं कृषि सम्बन्धी मूल्यों में कमी के कारण इनकी आमदनी घट गई। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने पुराने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया एवं पुरानी मजदूरी सेवाओं को पुनः प्रचलित कर दिया जिसका कृषकों ने हिंसक विरोध किया। फलस्वरूप 1381 ई. में ब्रिटेन में कृषकों ने विद्रोह कर दिया।
Textbook Questions and Answers
संक्षेप में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
फ्रांस के प्रारम्भिक सामंती समाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस के प्रारम्भिक सामंती समाज के लक्षण-फ्रांस के प्रारम्भिक सामंती समाज के दो लक्षण निम्नलिखित थे
(i) फ़्रांस के कृषक, अपने खेतों के साथ-साथ लॉर्ड के खेतों पर भी कार्य करते थे। कृषक लॉर्ड को श्रम सेवा प्रदान करते थे और बदले में वे उन्हें सैनिक सुरक्षा देते थे। इसके साथ-साथ लॉर्ड के कृषकों पर व्यापक न्यायिक अधिकार भी प्राप्त थे।
(ii) फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव ‘वैसलेज’ नामक प्रथा के कारण था, जो सामंतवाद का एक लक्षण थी। इसके अनुसार बड़े भू-स्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक भू-स्वामियों के अधीन होते थे। कृषक अभिजात वर्ग को अपना स्वामी मान लेता था और वे आपस में वचनबद्ध होते थे कि लॉर्ड दास अर्थात् कृषकों की रक्षा करेगा और बदले में वह उसके प्रति निष्ठावान रहेगा।
प्रश्न 2.
जनसंख्या के स्तर में होने वाले लम्बी-अवधि के परिवर्तनों ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया ?
उत्तर:
जनसंख्या के स्तर में होने वाले लम्बी-अवधि के परिवर्तनों ने निम्न प्रकार से यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया
(i) जनसंख्या में हो रही निरन्तर वृद्धि ने तत्कालीन यूरोपीय अर्थव्यवस्था को प्रत्येक दृष्टि से प्रभावित किया। यूरोप की जनसंख्या जो 1000 ई. में लगभग 420 लाख थी, बढ़कर 1200 ई. में लगभग 620 लाख और 1300 ई. में लगभग 730 लाख हो गई। 13वीं सदी तक एक औसत यूरोपीय आठवीं सदी की अपेक्षा 10 वर्ष अधिक लम्बा जीवन जी सकता था। पुरुषों की तुलना में महिलाओं की जीवन अवधि छोटी होती थी। इसका मुख्य कारण आहार की प्राप्ति थी। पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षा अच्छा भोजन मिलता था।
(ii) ग्यारहवीं सदी में यूरोप में जब कृषि का विस्तार हुआ और वह अधिक जनसंख्या का भार सहने में सक्षम हुई तो नगरों में भी वृद्धि होने लगी। नगरों में हाट-बाजार व वाणिज्य केन्द्र विकसित हो गए। अर्थव्यवस्था ने गतिशीलता धारण कर ली। लोग नगरों में आकर रहने लगे। कालान्तर में पश्चिम एशिया के साथ व्यापारिक मार्ग स्थापित हो गए।
(iii) चौदहवीं शताब्दी में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण उपलब्ध संसाधन कम पड़ गये जिसके फलस्वरूप यूरोप में भीषण अकाल पड़े। इसके पश्चात् ब्यूबोनिक प्लेग महामारी के कारण यूरोप में लाखों लोग मारे गये। फलस्वरूप जनसंख्या घटकर 1400 ई. में केवल 450 लाख रह गयी।
(iv) जनसंख्या घटने से नगर बर्बाद हो गये और यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ गया। व्यापार और वाणिज्य में आर्थिक मंदी छा गई। इससे लॉर्डों की आय भी बुरी तरह प्रभावित हुई। मजदूरों की भारी माँग ने मजदूरी की दरों को 250 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। इसके फलस्वरूप अभिजात वर्ग ने धन सम्बन्धी अनुबन्धों को तोड़ दिया। इसका कृषकों विशेषकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया।
प्रश्न 3.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ ?
उत्तर:
नौवीं सदी में यूरोप के सामंतों में अपनी शक्ति बढ़ाने एवं भूमि विस्तार के लिए प्राय: स्थानीय युद्ध होते रहते थे। इसके लिए शौकिया कृषक सैनिक पर्याप्त नहीं थे और कुशल अश्वसेना की आवश्यकता थी। साथ ही सैनिकों में बहादुरी और उत्साह का भी अभाव था। फलतः एक नये वर्ग की आवश्यकता महसूस हुई और उसका जन्म हुआ, जिसे ‘नाइट’ कहा जाता था। नाइट लॉर्ड से सम्बद्ध थे। लॉर्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग दिया जिसे ‘फ़ीफ’ कहा जाता था। फ़ीफ़ में नाइट और उसके परिवार के लिए एक पनचक्की, मदिरा संपीडक, घर तथा चर्च आदि भी थे। दूसरी ओर नाइट अपने लॉर्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी ओर से लड़ने का वचन देता था। नाइट्स अपनी वीरता तथा युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। 9वीं से 11वीं शताब्दी तक नाइट्स की प्रथा फलती-फूलती रही परन्तु 12वीं शताब्दी में सामंतवाद के पतन के साथ ही नाइट्स वर्ग का भी पतन हो गया।
प्रश्न 4.
मध्यकालीन मठों का क्या कार्य था ?
उत्तर:
मध्यकाल में चर्च के अतिरिक्त धार्मिक गतिविधियों के केन्द्र मठ भी थे। मठ आबादी से दूर होते थे। मठों में भिक्षु निवास करते थे। वे प्रार्थना करने के साथ-ही-साथ अध्ययन-अध्यापन करते और कृषि का भी कुछ कार्य करते रहते थे। मठों का मुख्य कार्य धार्मिक प्रचार-प्रसार करना था। मठों में रहने वाले स्त्री और पुरुष भिक्षु ईसाई धर्म के ग्रन्थों का अध्ययन एवं ईसाई धर्म का प्रचार करते थे। कुछ मठ सैकड़ों लोगों के समुदाय बन गए, जिनसे स्कूल या कॉलेज और अस्पताल सम्बद्ध थे। ये मठ कलात्मक गतिविधियों के भी केन्द्र थे। संक्षेप में निबन्ध लिखिए
प्रश्न 5.
मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना कीजिए और इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन फ्रांस में अधिकांश लोगों का निवास गाँवों में होता था और वे शासकों और लॉर्डों या अभिजात वर्ग के द्वारा दी गई भूमि पर खेती करते थे। इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लॉर्ड को ही मिलती थी। परन्तु समय के बदलने के साथ फ्रांस में व्यापारिक केन्द्र, धार्मिक स्थल और प्रशासनिक इकाइयों के साथ-साथ अनेक नगर भी बस गये। इस व्यापार और नगर निर्माण व्यवस्था से चौथे वर्ग की शुरुआत हुई। इन केन्द्रों के समीप शिल्पकार, दस्तकार, जैसे- मिस्त्री, बढ़ई, लोहार, जुलाहे, चमड़ा रँगने वाले, अस्त्र-शस्त्र निर्माता, शराब बनाने वाले आदि कई प्रकार के लोग बसने लगे।
यदि किसी नगर के एक शिल्पकार या मिस्त्री को लें, जो भवन निर्माण का कार्य करता था तो यह अब दास न रहकर स्वतन्त्र कार्य करने वाला और स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति था। अब वह लॉर्ड को कर देकर उनकी भूमि पर बसे नगरों में रहता था। अब फ्रांस में विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों; यथा-शिल्पकार की आवश्यकता बढ़ने लगी। आर्थिक आधार पर नगर के शिल्पकार जैसे लोगों की एक संस्था श्रेणी बन गयी।
प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक श्रेणी के रूप में संगठित हो गया और प्रत्येक शिल्पकार अन्य शिल्पकारों की तरह इस संस्था का महत्वपूर्ण सदस्य था जो अपने सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता था। श्रेणी एक ऐसी संस्था बन गयी जो उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियन्त्रण रखती थी। नगरों के विकास और विस्तार से ये शिल्पी या व्यापारी अधिक अमीर और शक्तिशाली होने लगे और अभिजात वर्ग से प्रतिस्पर्धा करने लगे।
प्रश्न 6.
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास दोनों के ही जीवन का शोषण होता था। फिर भी रोमन दासों की तुलना में फ्रांस के सर्फ का जीवन अच्छा था। इनमें निम्नलिखित अन्तर देखे जा सकते हैं
(i) रोम में समाज के तीन वर्गों में सबसे निम्न वर्ग दास था। उसी प्रकार फ्रांस में सर्फ भी तीसरे निम्न वर्ग के रूप में कृषक वर्ग से भी निम्न थे अर्थात् सबसे निम्न स्तर पर थे।
(ii) फ्रांस के सर्फ की संख्या समाज में सर्वाधिक थी, जिन्हें अपने स्वामी के द्वारा प्रदत्त भूमि पर खेती करनी होती थी। फलतः उपज का अधिकतर भाग सामंत को देना पड़ता था। साथ ही उन्हें बिना मजदूरी के अन्य कार्य या बेगार भी करने पड़ते थे; जैसे- गड्डे खोदना, लकड़ियाँ इकट्ठा करना, बाड़ लगाना, मरम्मत करना आदि। दूसरी तरफ रोम के दासों की स्थिति अधिक दयनीय थी। उनके साथ पशुवत् व्यवहार किया जाता था, क्योंकि प्रायः युद्धों में बन्दी बनाए गये लोगों एवं ऋण न चुका पाने वाले लोगों को दास बनाया जाता था। उनसे सम्पूर्ण दिन कठोर परिश्रम कराया जाता था और पेटभर भोजन भी नहीं दिया जाता था। रोमन दास भी खेती-कार्य, खाने खोदने का कार्य एवं सड़क निर्माण आदि का कार्य करते थे परन्तु उनको कृषि में अपनी इच्छानुसार उत्पादन करने का अधिकार नहीं था। न ही उन्हें कृषि का भूखण्ड स्वतन्त्र रूप से खेती करने को प्राप्त होता था। वे हमेशा किसी के गुलाम के रूप में कार्य करते थे।
(iii) सर्फ के पास जीवनयापन और परिवार की देखभाल हेतु लॉर्ड की भूमि का एक भाग होता था, जिसमें से उपज का कुछ भाग उसके पास रह जाता था। रोमन साम्राज्य में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। दास भू-भाग पर खेती करते थे जिसके बदले में उपज या धन प्राप्त नहीं कर सकते थे बल्कि जो कुछ खाने को मिल जाता वही पर्याप्त होता था।
(iv) रोम में दासों का क्रय-विक्रय भी किया जा सकता था परन्तु फ्रांस के सफर्मों के साथ ऐसा नहीं था। क्योंकि वे कृषि कार्य करने वाले दास थे न कि किसी के द्वारा बेचे या खरीदे जाने योग्य लोग। रोम में दासों से उच्च वर्ग के लोग प्रायः क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे जबकि साधारण लोग सहानुभूति रखते थे। फ्रांस में सौ से उच्च वर्ग के लोग भी सहानुभूति रखते थे क्योंकि ये लोग उनको उपज का भाग उपलब्ध कराते थे।
(v) रोम में दासों को कारखानों, जलपोतों या कहीं भी कार्य पर लगाया जा सकता था और कभी-कभी तो मनोरंजन के लिए उन्हें खूखार जंगली जानवरों से भी लड़ाया जाता था, जिसमें कभी-कभी उनके प्राण भी चले जाते थे। जबकि फ्रांस के सर्फ केवल कृषि, पशुपालन, मकान बनाने, शराब बनाने, लकड़ी इकट्ठा करने जैसे कार्य ही करते थे।
इस प्रकार फ्रांस के सर्फ और रोमन दासों की जीवन शैली में कोई विशेष अंतर नहीं था। हम कह सकते हैं कि दोनों का जीवन पशु जैसा ही था।